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कमला महाविद्या की स्तोत्रात्मक उपासना

सिद्धि-प्रदा सिद्धिदात्री जी की महिमा - नवरात्र का नवम दिन

माँ
सिद्धिदात्री दुर्गाजी की  नवीं शक्ति हैं। माता सिद्धिदात्री सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। मार्कण्डेयपुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व - ये आठ सिद्धियाँ होती हैं। ब्रह्मवैवर्त्तपुराण के ब्रह्मखण्ड के अध्याय छः में महादेव शिव जी द्वारा सिद्धियों की संख्या अट्ठारह बतायी गयी है। इन अट्ठारह तरह की सिद्धियों के नाम इस प्रकार कहे जाते हैं-
     १-अणिमा , २-लघिमा, ३-प्राप्ति, ४-प्राकाम्य, ५-महिमा, ६-ईशित्व और वशित्व, ७-सर्वकामावसायिता, ८-सर्वज्ञत्व, ९-दूरश्रवण, १०-परकायप्रवेशन, ११-वाक्सिद्धि, १२-कल्पवृक्षत्व, १३-सृष्टि, १४-संहारकरणसामर्थ्य, १५-अमरत्व, १६-सर्वन्यायकत्व, १७-भावना और १८-सिद्धि
सिद्धगंधर्व यक्षाद्यैर सुरैरमरै रपि। सेव्यमाना सदाभूयात्सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥  अर्थात्  सिद्धों, गन्धर्वों, यक्षों, असुरों और देवों द्वारा भी सदा सेवित होने वाली सिद्धिदायिनी सिद्धिदात्री दुर्गा सिद्धि प्रदान करने वाली हों।

    माँ सिद्धिदात्री भक्तों व साधकों को सभी सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ हैं। देवीपुराण के अनुसार भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया थासिद्धिदात्री माँ की अनुकम्पा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वह लोक में 'अर्द्धनारीश्वर' नाम से प्रसिद्ध हुए। माँ सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। सिद्धिदात्री माँ कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं। माता सिद्धिदात्री की दाहिनी तरफ के नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा तथा बायीं तरफ के नीचे वाले हाथ में शङ्ख और ऊपर वाले हाथ में कमलपुष्प सुशोभित है। नवरात्र-पूजन के नवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और सम्पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने से साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिये अगम्य नहीं रह जाता। ब्रह्माण्ड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमें आ जाती है।
इन सिद्धिदात्री माँ की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तों व साधकों की लौकिक-पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। लेकिन सिद्धिदात्री माँ के कृपापात्र भक्त के भीतर कोई ऐसी कामना शेष बचती ही नहीं है, जिसे वह पूर्ण करना चाहे। वह सभी सांसारिक इच्छाओं, आवश्यकताओं और स्पृहाओं से ऊपर उठकर मानसिकरूप से माँ भगवती भगवती के दिव्य लोकों में विचरण करता हुआ उनके कृपा-रस-पीयूष का निरन्तर पान करता हुआ, विषय-भोग-शून्य हो जाता है।
     प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है कि वह माँ सिद्धिदात्री की कृपा प्राप्त करने का निरन्तर प्रयत्न करे और वह सिद्धिदायिनी माँ सिद्धिदात्री की आराधना की ओर अग्रसर हो। इनकी कृपा से अनन्त दुःख रूप संसार से निर्लिप्त रहकर सारे दुःखों का भोग करता हुआ भी उपासना में मग्न हुआ वह मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। माँ सिद्धिदात्री का ध्यान इस प्रकार है-

सिद्ध-गंधर्व-यक्षाद्यैर-सुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना-सदाभूयात्सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥
अर्थात्
सिद्धों, गन्धर्वों, यक्षों, असुरों और देवों द्वारा भी सदा सेवित होने वाली सिद्धिदायिनी सिद्धिदात्री दुर्गा सिद्धि प्रदान करने वाली हों।
सिद्धिदात्री देवी माँ का यह ध्यान, मन्त्र-स्वरूप है, नवरात्र के नवें दिन इसका 11 या 21 या 28 या 108 बार या निरन्तर मानस जप करें। सिद्धिदात्री माँ की स्तुति करने के लिए महालक्ष्मी अष्टक स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। इन्द्रकृत महालक्ष्म्यष्टक स्तोत्र में  सिद्धिदात्री माँ की ही आराधना की गयी है।
प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है कि वह माँ सिद्धिदात्री की कृपा प्राप्त करने का निरन्तर प्रयत्न करे। उनकी आराधना की ओर अग्रसर हो। इनकी कृपा से अनन्त दुःख रूप संसार से निर्लिप्त रहकर सारे दुःखों का भोग करता हुआ वह मोक्ष को प्राप्त कर सकता है
     नव दुर्गाओं में सिद्धिदात्री अंतिम हैं। अन्य आठ दुर्गाओं की पूजा-उपासना शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार करते हुए भक्त दुर्गा-पूजा के नवें दिन इनकी उपासना में प्रवृत्त होते हैं। कुछ महाविद्या उपासक विद्वान साधकजन महाविद्या क्रम से नवरात्र की नवमी को श्री मातङ्गी महाविद्या की आराधना करते हैं और अगले दिन अर्थात दशमी को श्री कमला महाविद्या की आराधना करते हैं। माँ जगदम्बा की प्रीति हेतु आज यानि नवमी को दुर्गा माँ की महापूजा और कुमारीपूजा की जाती है। नवरात्रि के नवें दिन माता सिद्धिदात्री को धान का लावा(खील) अथवा खीर का भोग लगाकर धान के लावे का ब्राह्मण को दान करें, इस दान के प्रभाव से पुरुष इस लोक और परलोक में भी सुख पाता है। मान्यता है कि माता रानी को आज काले तिल(अथवा तिल के लड्डू) का भोग लगाकर दान करने से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है और किसी भी प्रकार की कोई अनहोनी नही होती है।
    भगवती सिद्धिदात्री ही महाविद्याओं में 'कमला'  नामक शक्ति हैं। इन सिद्धिदात्री माँ की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तों व साधकों की लौकिक-पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। लेकिन सिद्धिदात्री माँ के कृपापात्र भक्त के भीतर कोई ऐसी कामना शेष बचती ही नहीं है, जिसे वह पूर्ण करना चाहे। वह सभी सांसारिक इच्छाओं, आवश्यकताओं और स्पृहाओं से ऊपर उठकर मानसिकरूप से माँ भगवती भगवती के दिव्य लोकों में विचरण करता हुआ उनके कृपा-रस-पीयूष का निरन्तर पान करता हुआ, विषय-भोग-शून्य हो जाता है। माँ भगवती का परम सान्निध्य उसका सर्वस्व हो जाता है। इस परम पद को पाने के बाद उसे अन्य किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं रह जाती।
महालक्ष्मी अष्टक स्तोत्र
प्रतिदिन पाठ करने योग्य महालक्ष्मी अष्टक स्तोत्र महालक्ष्मी रूपिणी भगवती सिद्धिदात्री की अतीव कृपा दिलाता है। नवरात्र में नवमी को तो इसे अवश्य पढ़ें -
सिद्धिदात्री माँ सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था। इनकी अनुकम्पा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वह लोक में 'अर्द्धनारीश्वर' नाम से प्रसिद्ध हुए।
इन्द्र उवाच-
नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुर-पूजिते।
शङ्ख-चक्र-गदा-हस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥१॥
इन्द्र बोले- श्रीपीठ पर स्थित और देवताओं से पूजित होने वाली हे महामाये! तुम्हें नमस्कार है। हाथ में शङ्ख, चक्र और गदा धारण करने वाली हे महालक्ष्मी! तुम्हें प्रणाम है॥

नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयङ्करि ।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥ २॥
गरुड़ पर आरुढ़ हो कोलासुर को भय देने वाली और समस्त पापों को हरने वाली हे भगवति महालक्ष्मी! तुम्हें प्रणाम है।

सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्ट-भयङ्करि ।
सर्वदुःख-हरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥ ३॥
सब कुछ जानने वालीसबको वर देने वालीसमस्त दुष्टों को भय देने वाली और सबके दु:खों को दूर करने वालीहे देवि महालक्ष्मी! तुम्हें नमस्कार है।

सिद्धि-बुद्धिप्रदे देवि भुक्ति-मुक्ति-प्रदायिनि।
मन्त्रपूते(मन्त्रमूर्ते) सदा देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥ ४॥ 
सिद्धिबुद्धिभोग और मोक्ष देने वाली हे पवित्र मंत्रमयी(मन्त्र रुपी मूर्ति वाली) भगवती महालक्ष्मी! तुम्हें सदा प्रणाम है।

आद्यन्त-रहिते देवि आद्य-शक्ति-महेश्वरि।
योगजे योग-सम्भूते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥५॥
हे देवी! हे आदि-अन्तरहित आदिशक्ति! हे महेश्वरी! हे योग से प्रकट हुई भगवती महालक्ष्मी! तुम्हें नमस्कार है।

स्थूल-सूक्ष्म-महारौद्रे महाशक्ति-महोदरे।
महापाप-हरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥६॥
हे देवी! तुम स्थूलसूक्ष्म एवं महारौद्ररूपिणी होमहाशक्ति होमहोदरा हो और बड़े-बड़े पापों का नाश करने वाली हो। हे देवी महालक्ष्मी! तुम्हें नमस्कार है।

पद्मासन-स्थिते देवि परब्रह्म-स्वरूपिणि।
परमेशि जगन्मात-र्महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥ ७॥
हे कमल के आसन पर विराजमान परब्रह्मस्वरूपिणी देवी! हे परमेश्वरी! हे जगदम्ब! हे महालक्ष्मी! तुम्हें मेरा प्रणाम है।

श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कार-भूषिते।
जगत्स्थिते जगन्मात-र्महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥८॥
हे देवी तुम श्वेत एवं लाल वस्त्र धारण करने वाली और नाना प्रकार के अलंकारों से विभूषिता हो। सम्पूर्ण जगत् में व्याप्त एवं अखिल लोक को जन्म देने वाली हो। हे महालक्ष्मी! तुम्हें मेरा प्रणाम है।

महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं यः पठेद्भक्तिमान्नरः ।
सर्वसिद्धि-मवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा ॥ ९॥
जो मनुष्य भक्तियुक्त होकर इस महालक्ष्मी अष्टक (महालक्ष्म्यष्टक) स्तोत्र का सदा पाठ करता हैवह सारी सिद्धियों और राजवैभव को प्राप्त कर सकता है।

एककाले पठेन्नित्यं महापाप-विनाशनम्।
द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्य-समन्वितः ॥ १०॥
जो प्रतिदिन एक समय पाठ करता हैउसके बड़े-बड़े पापों का नाश हो जाता है। जो दो समय पाठ करता हैवह धन-धान्य से सम्पन्न होता है।

त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रु-विनाशनम् ।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा ॥ ११॥
जो प्रतिदिन तीन काल पाठ करता है उसके महान शत्रुओं का नाश हो जाता है और उसके ऊपर कल्याणकारिणी वरदायिनी महालक्ष्मी सदा ही प्रसन्न होती हैं।
     ॥इन्द्रकृतं श्रीमहालक्ष्मी-स्तोत्रम् शुभमस्तु॥

     सिद्धिदात्री माँ के चरणों का यह सान्निध्य प्राप्त करने के लिये हमें निरन्तर नियमनिष्ठ रहकर उनकी उपासना करनी चाहिये। माँ भगवती का स्मरण, ध्यान, पूजन हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हुए वास्तविक परमशान्तिदायक अमृत पद की ओर ले जाने वाला है। माँ सिद्धिदात्री के श्री चरणों में हम सभी का बारम्बार प्रणाम.....
नवरात्रि के  नवे दिन वागीश्वरी भगवती की आराधना भी की जाती है -

॥नवमदिनस्य श्री वागीश्वरी पूजाविधिः॥
 नवरात्रि के नवें दिन की इस पूजनात्मक साधना में नवमी तिथि को वागीश्वरी(सरस्वती) देवी की  पूजा करे । सरस्वती जी के या दुर्गा जी की मूर्ति या चित्र पर यह पूजा करें । सर्वप्रथम ध्यान मंत्र पढ़कर फूल चढ़ाएं -
ध्यानम्
अमल-कमल-संस्था लेखनी-पुस्तकोद्यत् -
कर-युगल-सरोजा कुन्दमन्दार-गौरा।
धृत-शशधर-खण्डो - ल्लासि-कोटीरचूडा
भवतु भव-भयानां भङ्गिनी भारती नः॥

  श्रीवाग्वादिन्याः नामावली
अब नीचे दिये गये नाम मंत्र पढ़कर देवी को फूल / अक्षत चढ़ाते जायें - 
1. श्री वागीश्वर्यै नमः।
2. सर्वमन्त्रमय्यै नमः।
3. विद्यायै नमः।
4. सर्वमन्त्राक्षरमय्यै नमः।
5. वरायै नमः।
6. मधुस्रवायै नमः।
7. श्रवणायै नमः।
8. भ्रामर्यै नमः।
9. भ्रमरालयायै नमः।
10. मातृमण्डलमध्यस्थायै नमः।
11. मातृमण्डलवासिन्यै नमः।
12. कुमारजनन्यै नमः।
13. क्रूरायै नमः।
14. सुमुख्यै नमः।
15. ज्वरनाशिन्यै नमः।
16. अतीतायै नमः।
17. विद्यमानायै नमः।
18. भाविन्यै नमः।
19. प्रीतिमन्दिरायै नमः।
20. सर्वसौख्यदात्र्यै नमः।
21. अतिशक्तायै नमः।
22. आहारपरिणामिन्यै नमः।
23. निदानायै नमः।
24. पञ्चभूतस्वरूपायै नमः।
25. भवसागरतारिण्यै नमः।
26. अर्भकायै नमः।
27. कालभवायै नमः।
28. कालवर्तिन्यै नमः।
29. कलङ्क-रहितायै नमः।
30. हरिस्वरूपायै नमः।
31. चतुःषष्ट्यभ्युदय-दायिन्यै नमः।
32. जीर्णायै नमः।
33. जीर्णवस्त्रायै नमः।
34. कृत-केतनायै नमः।
35. हरिवल्लभायै नमः।
36. अक्षरस्वरूपायै नमः।
37. रतिप्रीत्यै नमः।
38. रतिरागविवर्धिन्यै नमः।
39. पञ्चपातकहरायै नमः।
40. भिन्नायै नमः।
41. पञ्चश्रेष्ठायै नमः।
42. आशाधारायै नमः।
43. पंचवित्तवातायै नमः।
44. पङ्क्तिस्वरूपिण्यै नमः।
45. पञ्चस्थानविभाविन्यै नमः।
46. उदक्यायै नमः।
47. वृषभाङ्कायै नमः।
48. त्रिमूर्त्यै नमः।
49. धूम्राकृत्यै नमः।
50. प्रस्रवणायै नमः।
51. बहिःस्थितायै नमः।
52. रजसे नमः।
53. शुक्लायै नमः।
54. धराशक्त्यै नमः।
55. जरायुषायै नमः।
56. गर्भधारिण्यै नमः।
57. त्रिकालज्ञायै नमः।
58. त्रिलिङ्गायै नमः।
59. त्रिमूर्त्यै नमः।
60. पुरवासिन्यै नमः।
61. अरागायै नमः।
62. परकामतत्वायै नमः।
63. रागिण्यै नमः।
64. प्राच्यावाच्यायै नमः।
65. प्रतीच्यायै नमः।
66. उदीच्यायै नमः।
67. उदग्दिशायै नमः।
68. अहङ्कारात्मिकायै नमः।
69. अहङ्कारायै नमः।
70. बालवामायै नमः।
71. प्रियायै नमः।
72. स्रुक्स्रुवायै नमः।
73. समिध्यै नमः।
74. सुश्रद्धायै नमः।
75. श्राद्धदेवतायै नमः।
76. मात्रे नमः।
77. मातामह्यै नमः।
78. तृप्तिरूपायै नमः।
79. पितृमात्रे नमः।
80. पितामह्यै नमः।
81. स्नुषादायै नमः।
82. दौहित्रदायै नमः।
83. नादिन्यै नमः।
84. पुत्र्यै नमः।
85. श्वासायै नमः।
86. प्रियायै नमः।
87. स्तनदायै नमः।
88. स्तनधरायै नमः।
89. विश्वयोन्यै नमः।
90. स्तनप्रदायै नमः।
91. शिशुरूपायै नमः।
92. सङ्गरूपायै नमः।
93. लोकपालिन्यै नमः।
94. नन्दिन्यै नमः।
95. खट्वाङ्गधारिण्यै नमः।
96. सखड्गायै नमः।
97. सबाणायै नमः।
98. भानुवर्तिन्यै नमः।
99. विरुद्धाक्ष्यै नमः।
100. महिषासृक्प्रियायै नमः।
101. कौशिक्यै नमः।
102. उमायै नमः।
103. शाकम्भर्यै नमः।
104. श्वेतायै नमः।
105. कृष्णायै नमः।
106. कैटभनाशिन्यै नमः।
107. हिरण्याक्ष्यै नमः।
108. शुभलक्षणायै नमः॥
इस प्रकार नवरात्र में नवें दिन की पूजा सम्पन्न हुई। 
भगवती वागीश्वरी को हम  सबका बारम्बार प्रणाम.....





टिप्पणियाँ

  1. उत्कृष्ट प्रयास,आगे भी आप इसी प्रकार की जानकारी लिखतें रहें।माँ सदैव आपको स्वस्थ्य एवं सुखी रखे।

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    1. धन्यवाद महोदय, जी जरूर लिखेंगे.. आप जैसे पाठकों की प्रतिक्रियाओं से ही लिखने के प्रति हमारा उत्साह बढ़ता है... जय माँ सिद्धिदात्री

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