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नोट - यहाँ प्रकाशित साधनाओं, स्तोत्रात्मक उपासनाओं को नियमित रूप से करने से यदि किसी सज्जन को कोई विशेष लाभ हुआ हो तो कृपया हमें सूचित करने का कष्ट करें।

⭐विशेष⭐


23 अप्रैल - मंगलवार- श्रीहनुमान जयन्ती
10 मई - श्री परशुराम अवतार जयन्ती
10 मई - अक्षय तृतीया,
⭐10 मई -श्री मातंगी महाविद्या जयन्ती
12 मई - श्री रामानुज जयन्ती , श्री सूरदास जयन्ती, श्री आदि शंकराचार्य जयन्ती
15 मई - श्री बगलामुखी महाविद्या जयन्ती
16 मई - भगवती सीता जी की जयन्ती | श्री जानकी नवमी | श्री सीता नवमी
21 मई-श्री नृसिंह अवतार जयन्ती, श्री नृसिंहचतुर्दशी व्रत,
श्री छिन्नमस्ता महाविद्या जयन्ती, श्री शरभ अवतार जयंती। भगवत्प्रेरणा से यह blog 2013 में इसी दिन वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को बना था।
23 मई - श्री कूर्म अवतार जयन्ती
24 मई -देवर्षि नारद जी की जयन्ती

आज - कालयुक्त नामक विक्रमी संवत्सर(२०८१), सूर्य उत्तरायण, वसन्त ऋतु, चैत्र मास, शुक्ल पक्ष।
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श्री काली ककारादि सहस्रनाम स्तोत्र

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भ गवान महाकाल की अभिन्न शक्ति हैं महाकाली। उपासकों के कल्याण के लिये भगवती पार्वती के दो रूप हो गये लालिमा लिया हुआ रूप भगवती त्रिपुर सुंदरी का है, और कृष्ण वर्ण का रूप भगवती काली का है। सभी देवियों में एकत्व है। देवी के सभी रूपों में अभेद रहता है। पूजा - अर्चना करने से व मंत्र जाप द्वारा मां काली की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है। मंत्र द्वारा भगवती काली की उपासना करने के लिये मंत्र दीक्षा की आवश्यकता होती है। लेकिन सामान्य आराधकों को, अदीक्षितों को स्तोत्रों का ही पाठ करना चाहिये।  यूं तो भगवती महाकाली को प्रसन्नता देने वाले बहुत से स्तोत्र हैं, परन्तु श्री काली सहस्रनाम स्तोत्र का महत्व इन सबमें श्रेष्ठ है। दीक्षित साधक भी पूर्णता हेतु अपनी साधना में सहस्रनाम स्तोत्र पढ़ते ही हैं। सहस्रनाम या शतनाम स्तोत्राें के माध्यम से सरलता पूर्वक साधना हो जाती है। इसमें नाम रूपी मंत्रों का जप तो चलता ही है; साथ ही एक ही देव के विभिन्न नामों को पढ़ते—पढ़ते मन में उन नामों का अर्थ चिंतन होने से उस देवता के स्वरूप गुण के विषय में कई भाव प्रकट होते हैं, देवता के बारे में कई विशिष्ट बातें ज्ञा

अनूठे सिद्धयोगी श्री तैलंगस्वामी जी के संस्मरण

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ब हुत वर्ष पूर्व आंध्रप्रदेश के विशाखापत्तनम जिले के होलिया गाँव में एक उदार व प्रजावत्सल जमींदार हुए जिनका नाम था- श्रीनृसिंहधर । ये कट्टर ब्राह्मण थे - तीनों समय संध्या किया करते थे। इनकी पत्नी श्रीमती विद्यावती इनसे बढ़कर धार्मिक प्रवृत्ति की थीं। गृह-देवता शंकर की पूजा में अधिक समय व्यतीत करती थीं और अधिक व्रत-उपवास किया करती थीं। अपनी मनोकामना व्रत-उपवास-पूजा से पूरी न होती समझकर एक दिन उन्होंने आपने पति से कहा- “ शायद मेरे भाग्य में संतान सुख नहीं , मेरा अनुरोध है कि आप ‘ धर-वंश ’ की रक्षा के लिये एक विवाह और कर लें। ”

श्रीहनुमत्स्तुति का महापर्व - हनुमान जयन्ती [द्वादश नाम स्तोत्र]

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ह नुमान जी की श्रीराम भक्ति जग प्रसिद्ध है। पञ्चमुखी -एकमुखी- एकादशमुखी और गदा धारण करने वाले महापराक्रमी अखण्ड ब्रह्मचारी हनुमान जी को उनकी अनन्य श्री राम जी की भक्ति ने समस्त जगत में पूजनीय अमर भगवान बना दिया। सूर्यदेव के शिष्य एवं  बल-बुद्धि-सिद्धि देने वाले हनुमान जी के विषय में जितना कहा जाय कम ही है। कलयुग में इन्हीं महाबलशाली बजरंगबलीजी का सान्निध्य प्रत्यक्ष और सहज ही प्राप्त हो जाता है। अन्य सभी भगवान के लीलावतार तो अपनी लीला करके वापस अपने धाम को लौट चुके हैं, परन्तु रुद्रावतार हनुमान जी ही एक ऐसे अजर-अमर देव हैं जो अब तक राम नाम का जप करते हुए इसी धरा पर उपस्थित हैं। यदि मन में सच्ची श्रद्धा   हो तो हनुमान जी की कृपा सहज ही प्राप्त हो जाती है। जिनके कृपाकटाक्ष मात्र से सभी भूत-प्रेत बाधाओं, त्रिविध कष्ट, भय-दुर्घटना, बुरे तन्त्र-अभिचार कर्मों का कुप्रभाव साधक पर क्रियाहीन हो जाता है, इन्हीं हनुमान जी की जयन्ती आज मनाई जाती है।

वामन जयंती पर जानिये भगवान वामन के अवतार की कथा

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आ ज यानि भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की  द्वादशी तिथि को ही भगवान श्री हरि ने वामन अवतार धारण किया था। प्रह्लाद के पुत्र विरोचन से महाबाहु बलि का जन्म हुआ। दैत्यराज बलि धर्मज्ञों में श्रेष्ठ, सत्यप्रतिज्ञ, जितेन्द्रिय, बलवान, नित्य धर्मपरायण, पवित्र और श्रीहरि के प्रिय भक्त थे।  यही कारण था कि उन्होंने इन्द्रसहित सम्पूर्ण देवताओं और मरुद्गणों को जीतकर तीनों लोकों को अपने अधीन कर लिया था। इस प्रकार राजा बलि समस्त त्रिलोकी पर राज्य करते थे। इंद्रादिक देवता दासभाव से उनकी सेवा में खड़े रहते थे। परम भक्त तो थे राजा बलि किन्तु बलि को अपने बल का अभिमान था। इन्द्र आदि देवों का अधिपत्य हड़प चुके थे वो। कितना ही बड़ा भक्त हो कोई अभिमान आ जाय तो सारी भक्ति व्यर्थ है। तब महर्षि कश्यप ने अपने पुत्र इन्द्र को राज्य से वंचित देखकर तप किया और भगवान विष्णु से बलि को मायापूर्वक परास्त करके इन्द्र को त्रिलोकी का राज्य प्रदान करने का वरदान माँगा।

भक्ति का सही अर्थ समझाने में समर्थ धर्म-प्रचारक व भगवान के मन देवर्षि नारद [श्रीनारद स्तोत्रम्]

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न मस्कार, आज है भक्त शिरोमणि देवर्षि नारद जी की जयंती।  कौन नहीं जानता निरंतर " नारायण नारायण " का जप करते रहने वाले मुनि नारद जी को? नारद जी की नारायण भक्ति तो श्रेष्ठातिश्रेष्ठ है। पिछली पोस्ट में कूर्म जी के विषय में चर्चा की थी आइये आज नारद जी के विषय में चर्चा करते हैं। देवर्षि का पद प्राप्त है नारद जी को। पुराणों में वर्णित अनेक कथाओं में नारद जी का भी वर्णन आता है। नारद पुराण पढ़ा होगा आपने अथवा नहीं पढ़ा हो तो जरूर कभी पढ़कर देखिएगा नारद पुराण में हिन्दी-संस्कृत व्याकरण के विभिन्न पक्षों को रखा गया है। गणित का ज्ञान, ज्योतिष, मंत्र, औषधि, व्रतोत्सव आदि का ज्ञान आपको कूट-कूट कर इसमें भरा हुआ मिलेगा; और मिलेगा भी क्यों नहीं नारद जी कई गूढ़ बातों को जानने वाले प्रकांड विद्वान जो ठहरे। ब्रह्मा जी के मानस पुत्र नारद जी