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⭐विशेष⭐


23 अप्रैल - मंगलवार- श्रीहनुमान जयन्ती
10 मई - श्री परशुराम अवतार जयन्ती
10 मई - अक्षय तृतीया,
⭐10 मई -श्री मातंगी महाविद्या जयन्ती
12 मई - श्री रामानुज जयन्ती , श्री सूरदास जयन्ती, श्री आदि शंकराचार्य जयन्ती
15 मई - श्री बगलामुखी महाविद्या जयन्ती
16 मई - भगवती सीता जी की जयन्ती | श्री जानकी नवमी | श्री सीता नवमी
21 मई-श्री नृसिंह अवतार जयन्ती, श्री नृसिंहचतुर्दशी व्रत,
श्री छिन्नमस्ता महाविद्या जयन्ती, श्री शरभ अवतार जयंती। भगवत्प्रेरणा से यह blog 2013 में इसी दिन वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को बना था।
23 मई - श्री कूर्म अवतार जयन्ती
24 मई -देवर्षि नारद जी की जयन्ती

आज - कालयुक्त नामक विक्रमी संवत्सर(२०८१), सूर्य उत्तरायण, वसन्त ऋतु, चैत्र मास, शुक्ल पक्ष।
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गंगा दशहरा पर जानिए गंगा जी की महिमा [गंगा दशहरा स्तोत्रम्]

द्रजनों, धूंकाररूपिणी महाविद्या धूमावती जी की जयंती के अगले दिन से प्रारम्भ होता है दस दिनात्मक गंगा दशहरा का पावन पर्व। धूर्जटी शिव शंकर की जटा से निकलने वाली माँ गंगा, जिनका जल जिस स्थान से होकर गया वे पवित्र तीर्थ बन गए।  हमारे हिन्दू धर्म ग्रन्थों में गौ, गंगा एवं गायत्री इन तीनों को पापनाशक त्रिवेणी बतलाया गया है। ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन कलिमल का दहन करने में सक्षम गंगाजी अवतरण हुआ था अतः इस इस अवसर पर गंगास्नान का विशेष महत्व  बताया गया है। आइये पहले माँ गंगा के स्वरूप का चिंतन करते हैं। माँ गंगा जी का ध्यान इस प्रकार है-

सितमकर-निषण्णां शुक्लवर्णां त्रिनेत्राम्
करधृत-कमलो-द्यत्सूत्पलाऽभीत्यभीष्टाम् ।
विधिहरिहर-रूपां सेन्दु-कोटीरचूडाम्
कलितसितदुकूलां जाह्नवीं तां नमामि ॥

अर्थात् 
श्वेत मकर पर विराजित, शुभ्र वर्ण वाली, तीन नेत्रों वाली, दो हाथों में भरे हुए कलश
तथा दो हाथों में सुंदर कमल धारण किए हुए, भक्तों के लिए परम इष्ट, ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनों
का रूप अर्थात् तीनों के कार्य करने वाली, मस्तक पर सुशोभित चंद्रजटित मुकुट वाली तथा
सुंदर श्वेत वस्त्रों से विभूषित माँ गंगा को मैं प्रणाम करता हूँ।  

करधृतकमलोद्यत्सूत्पलाऽभीत्यभीष्टा गंगा देव्यै नमो नमो नमः।  अर्थात् हाथ में सुंदर कमल धारण किए हुए, भक्तों के लिए परम इष्ट गंगा देवीजी को नमस्कार है, नमस्कार है।

      जब गंगाजी का धरती पर अवतरण हुआ उस समय ये दस प्रकार के योग बने थे-

‘ज्येष्ठ मासे सिते पक्षे दशम्यां बुध हस्तयो:
व्यतीपाते गरा नन्दे कन्या चन्द्रे वृषे रवौ।
हरते दश पापानि तस्माद्दशहरा स्मृता।।’
अर्थात् ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि, बुधवार, हस्त नक्षत्र, व्यतीपात योग, गर और आनन्द योग, कन्या राशि में चंद्रमा तथा वृष राशि में सूर्य - इन दस योगों से युक्त समय में अवतीर्ण हुई गंगा का स्नान दस पापों का हरण करता है।

     बिना दी हुई वस्तु को ले लेना, निषिद्ध हिंसा, परस्त्री गमन- ये तीन दैहिक पाप हैं।

कठोर वचन मुँह से निकालना, झूठ बोलना, चुगली करना और अनाप शनाप बातें बकना
- ये वाणी से होने वाले चार पाप हैं।

और दूसरे के धन को लेने का विचार करना, मन से दूसरों का बुरा सोचना और असत्य वस्तुओं  में आग्रह रखना (व्यर्थ की बातों में दुराग्रह)- ये तीन मानसिक पाप हैं।

     इन दस पापों हरण करने में यही गंगा दशहरा नामक पावन त्यौहार सक्षम है। स्कन्द पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को [यदि उपर्युक्त दस योगों में से अधिकांश हस्त नक्षत्र आदि योग हों तो और भी उत्तम] गंगा तट पर रात्रि जागरण करके दस प्रकार के दस-दस सुगंधित पुष्पों, फल, दस दीप, नैवेद्य और दशांग धूप द्वारा गंगाजी की दस बार श्रद्धा के साथ पूजा करने का विधान है । इसके अंतर्गत गंगाजी के जल में तिलों की दस अंजलि डालें। फिर गुड व सत्तू  के दस पिंड बनाकर इन्हें भी गंगाजी में डाल दें। गंगाजी के लिए उक्त पूजा, दान, जप, होम ये सभी कार्य-


ॐ नमः शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै स्वाहा

इस मंत्र द्वारा ही किए जाने चाहिए। 
जिनका यज्ञोपवीत संस्कार नहीं हुआ है उन द्वारा ॐ तथा स्वाहा का उच्चारण करना वर्जित है, इसलिए वे श्री शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै नमः इस मंत्र को कहें।
इसके साथ ही ब्रह्माजी, विष्णुजी,  शिवजी, सूर्य देव का, हिमवान् पर्वत और राजा भगीरथ का भी भलीभांति अर्चन-स्मरण करना चाहिए। फिर दस ब्राह्मणों को — दस के ही वजन में [दस ग्राम/किलो/सेर आदि] तिल दान करें व  गंगा दशहरा स्तोत्र पढ़ें। गंगा जी का वह पवित्र स्तोत्र अनुवाद सहित प्रस्तुत कर रहा हूँ-

॥ गंगा दशहरा स्तोत्रम् ॥

नमः शिवायै गङ्गायै शिवदायै नमो नमः।
नमस्ते विष्णुरुपिण्यै, ब्रह्ममूर्त्यै नमोऽस्तु ते
नमस्ते रुद्र–रुपिण्यै शाङ्कर्यै ते नमो नमः।
सर्वदेव–स्वरुपिण्यै नमो भेषज–मूर्त्तये॥
शिव–स्वरूपा श्रीगंगा जी को नमस्कार है। कल्याणदायिनी गंगा जी को नमस्कार है। हे देवि गंगे! आप विष्णुरूपिणी हैं, आपको नमस्कार है। हे ब्रह्मस्वरूपा! आपको नमस्कार है, नमस्कार है। हे रुद्रस्वरूपिणी! शांकरी! आपको नमस्कार है। हे सर्वदेवस्वरूपा! औषधिरूपा! देवी आपको नमस्कार है। 


सर्वस्य सर्वव्याधीनां, भिषक्श्रेष्ठ्यै नमोऽस्तु ते।
स्थास्नु जङ्गम सम्भूत विषहन्त्र्यै नमोऽस्तु ते॥
संसारविषनाशिन्यै,जीवनायै नमोऽस्तु ते।
तापत्रितयसंहन्त्र्यै,प्राणेश्यै ते नमो नमः॥
आप सबके संपूर्ण रोगों की श्रेष्ठ वैद्य हैं, आपको नमस्कार है। स्थावर और जंगम प्राणियों से प्रकट होने वाले विष का आप नाश करने वाली हैं, आपको नमस्कार है। संसार के विषय रूपी विष का नाश करने वाली जीवनरूपा आपको नमस्कार है। आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक तीनों प्रकार के क्लेशों का संहार करने वाली आपको नमस्कार है। प्राणों की स्वामिनी आपको नमस्कार है, नमस्कार है।

शांतिसन्तानकारिण्यै नमस्ते शुद्धमूर्त्तये।
सर्वसंशुद्धिकारिण्यै नमः पापारिमूर्त्तये॥
भुक्तिमुक्तिप्रदायिन्यै भद्रदायै नमो नमः।
भोगोपभोगदायिन्यै भोगवत्यै नमोऽस्तु ते॥
 शांति का विस्तार करने वाली शुद्ध स्वरूपा आपको नमस्कार है। सबको शुद्ध करने वाली तथा पापों की शत्रुस्वरूपा आपको नमस्कार है। भोग, मोक्ष तथा कल्याण प्रदान करने वाली आपको बार-बार नमस्कार है। भोग और उपभोग देने वाली भोगवती नाम से प्रसिद्ध आप पाताल गंगा को नमस्कार है। 

मन्दाकिन्यै नमस्तेऽस्तु स्वर्गदायै नमो नमः।
नमस्त्रैलोक्यभूषायै त्रिपथायै नमो नमः॥
नमस्त्रिशुक्लसंस्थायै क्षमावत्यै नमो नमः।
त्रिहुताशनसंस्थायै तेजोवत्यै नमो नमः॥
मंदाकिनी नाम से प्रसिद्ध तथा स्वर्ग प्रदान करने वाली आप आकाश गंगा को बार-बार नमस्कार है। आप भूतल, आकाश और पाताल तीन मार्गों से जाने वाली और तीनों लोकों की आभूषण स्वरूपा है, आपको बार-बार नमस्कार है। गंगाद्वार, प्रयाग और गंगा सागर संगम इन तीन विशुद्ध तीर्थ स्थानों में विराजमान आपको नमस्कार है। क्षमावती आपको नमस्कार है। गार्हपत्य, आहवनीय और दक्षिणाग्निरूप त्रिविध अग्नियों में स्थित रहने वाली तेजोमयी आपको बार-बार नमस्कार है। आप ही अलकनंदा हैं, आपको नमस्कार है। 

नन्दायै लिंगधारिण्यै सुधाधारात्मने नमः।
नमस्ते विश्वमुख्यायै  रेवत्यै ते नमो नमः॥
बृहत्यै ते नमस्तेऽस्तु लोकधात्र्यै नमोऽस्तु ते।
नमस्ते विश्वमित्रायै नन्दिन्यै ते नमो नमः॥
शिवलिंग धारण करने वाली आपको नमस्कार है। सुधाधारामयी आपको नमस्कार है। जगत में मुख्य सरितारूप आपको नमस्कार है। रेवतीनक्षत्ररूपा आपको नमस्कार है। बृहती नाम से प्रसिद्ध आपको नमस्कार है। लोकों को धारण करने वाली आपको नमस्कार है। संपूर्ण विश्व के लिए मित्ररूपा आपको नमस्कार है। समृद्धि देकर आनंदित करने वाली आपको नमस्कार है।


पृथ्व्यै शिवामृतायै च सुवृषायै नमो नमः।
परापरशताढ्यायै तारायै ते नमो नमः॥
पाशजालनिकृन्तिन्यै अभिन्नायै नमोऽस्तु ते।
शान्तायै च वरिष्ठायै वरदायै नमो नमः॥
हे मां गंगा,आप पृथ्वीरूपा हैं, आपको नमस्कार है। आपका जल कल्याणमय है और आप उत्तम धर्मस्वरूपा हैं, आपको नमस्कार है, नमस्कार है। बड़े-छोटे सैकड़ों प्राणियों से सेवित आपको नमस्कार है। सबको तारने वाली आपको नमस्कार है, नमस्कार है। संसार बंधन का उच्छेद करने वाली अद्वैतरूपा आपको नमस्कार है। आप परम शांत, सर्वश्रेष्ठ तथा मनोवांछित वर देने वाली हैं, आपको बारम्बार नमस्कार है। 

उग्रायै सुखजग्ध्यै च सञ्जीवन्यै नमोऽस्तु ते।
ब्रह्मिष्ठायै ब्रह्मदायै, दुरितघ्न्यै नमो नमः॥
प्रणतार्तिप्रभञ्जिन्यै जग्मात्रे नमोऽस्तु ते।
सर्वापत्प्रतिपक्षायै मङ्गलायै नमो नमः॥
आप प्रलयकाल में उग्ररूपा हैं, अन्य समय में सदा सुख का भोग करवाने वाली हैं तथा उत्तम जीवन प्रदान करने वाली हैं, आपको नमस्कार है। आप ब्रह्मनिष्ठ, ब्रह्मज्ञान देने वाली तथा पापों का नाश करने वाली हैं। आपको बार-बार नमस्कार है। प्रणतजनों की पीड़ा का नाश करने वाली जगन्माता आपको नमस्कार है। आप समस्त विपत्तियों की शत्रुभूता तथा सबके लिए मंगलस्वरूपा हैं, आपके लिए बार-बार नमस्कार है।

 शरणागत–दीनार्त–परित्राण–परायणे।
सर्वस्यार्ति हरे देवि! नारायणि ! नमोऽस्तु ते॥
निर्लेपायै दुर्गहन्त्र्यै दक्षायै ते नमो नमः।
परापरपरायै च गङ्गे निर्वाणदायिनि॥
  शरणागतों, दीनों तथा पीडि़तों की रक्षा में संलग्न रहने वाली और सबकी पीड़ा दूर करने वाली देवि नारायणि! आपको नमस्कार है। आप पाप-ताप अथवा अविद्यारूपी मल से निर्लिप्त, दुर्गम दुख का नाश करने वाली तथा दक्ष हैं, आपको बारम्बार नमस्कार है। आप, पर और अपर सबसे परे हैं। मोक्षदायिनी गंगे! आपको नमस्कार है।

गङ्गे ममाऽग्रतो भूया गङ्गे मे तिष्ठ पृष्ठतः।
गङ्गे मे पार्श्वयोरेधि गंङ्गे त्वय्यस्तु मे स्थितिः॥
आदौ त्वमन्ते मध्ये च सर्वं त्वं गाङ्गते शिवे!
त्वमेव मूलप्रकृतिस्त्वं पुमान् पर एव हि।
गङ्गे त्वं परमात्मा च शिवस्तुभ्यं नमः शिवे॥
गंगे! आप मेरे आगे हों, गंगे! आप मेरे पीछे रहें, गंगे! आप मेरे उभयपार्श्व में स्थित हों तथा गंगे! मेरी आप में ही स्थिति हो। आकाशगामिनी कल्याणमयी गंगे! आदि, मध्य और अंत में सर्वत्र आप हैं गंगे! आप ही मूलप्रकृति हैं, आप ही परम पुरुष हैं तथा आप ही परमात्मा शिव हैं। शिवे! आपको नमस्कार है।

     इस स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पढ़ना, सुनना मन, वाणी और शरीर द्वारा होने वाले पूर्वोक्त दस प्रकार के पापों से मुक्त कर देता है। यह स्तोत्र जिसके घर लिखकर रखा हुआ होता है उसे कभी अग्नि, चोर, सर्प आदि का भय नहीं रहता है।
दस दिनात्मक गंगा दशहरा पर्व में गंगा माँ की वंदनात्मक उपासना तथा पापनाश के लिए श्रद्धालु, इस गंगा दशहरा स्तोत्र का एकोत्तर वृद्धि से पाठ किया करते हैं। अर्थात्- ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा को इस स्तोत्र का एक बार पाठ करे ज्येष्ठ शुक्ल द्वितीया को इसके दो पाठ करे। इसी तरह तृतीया को तीन बार, चतुर्थी को 4, पंचमी को 5, षष्ठी को 6, सप्तमी को 7 बार, अष्टमी को 8, नवमी को 9 तथा दशमी को 10 बार पाठ करे। इस प्रकार यह पापनाशक दसदिनात्मक अनुष्ठान पूरा होता है।

  'ॐ नमो भगवति हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा' 

     इस मंत्र का भी गंगा दशहरा के दिन यथाशक्ति पाठ करना चाहिए। इस प्रकार विधिवत पूजा कर दिन भर उपवास करने वाले के ऊपर बताये गये दस पापों को गंगा जी हर लेती हैं।


  शास्त्रों में वर्णन है कि वामन अवतार के समय विस्तीर्ण पादक्षेप कर तीन पगों में समस्त सृष्टि नाप लेने के लिए विष्णु जी ने जब कदम के आघात से ब्रह्मरंध्र को भी भेद दिया, तब उनके पैरों से निकल रहे  गंगाजी रूपी उस जल को कमंडल में ब्रह्माजी ने भर लिया। विष्णुपदी इन गंगाजी का एक अन्य प्रसंग है कि महादेव शिव का संगीत सुन कर विष्णु द्रवीभूत हो गए तो ब्रह्मा ने अपना कमंडल भर लिया और फिर भूतल पर भगीरथ के माध्यम से जल को भेजा।
     एक अन्य कथा में कहा गया है कि गंगा को पीहर  छोड़ते समय उनकी मां ने शोकाभिभूत हो गंगा को सलिल रूपिणी होने को कह दिया। फलस्वरूप गंगाजी ने जल रूप में ब्रह्मा के कमंडल में वास किया। गंगा जी त्रिपथगा भी हैं। ये स्वर्ग में अलकनंदा, भूतल पर भागीरथी और पाताल में अधोगंगा नाम से प्रसिद्ध हुईं। इन तीनों धाराओं का मूल स्रोत स्वर्ग में है जिसे स्वर्घुनी कहते हैं।
गंगा जी के अवतरण के संदर्भ में कथा है कि अयोध्या के सूर्यवंशी राजा सगर ने एक बार अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान किया। यज्ञीय घोड़े की रक्षा के लिए उनके साठ हजार पुत्र भी उसके पीछे-पीछे गए। इन्द्र ने ईर्ष्यावश उस अश्व को पकड़वाकर कपिल मुनि के आश्रम में बंधवा दिया। सगर पुत्र सब जगह खोजते हुए जब अंत में वे कपिल मुनि के आश्रम में गए तो वहां घोड़े देखकर शोर मचाने लगे और उनको बुरा-भला कहा। कपिल मुनि को इन्द्र के षडय़ंत्र का पता न था। अतएव उन्हें क्रोध आया और उन्होंने शाप देकर राजकुमारों को भस्म कर दिया। बहुत दिन बीतने पर जब राजकुमार लौटकर नहीं आए तो राजा सगर ने अपने पौत्र अंशुमान को पता लगाने के लिए भेजा। उत्साही और कुशल अंशुमान ने घोड़े का पता लगाया और अपने पितृगणों की दुर्दशा भी देखी। उसे गरुड़ से यह भी ज्ञात हुआ कि भस्म हुए राजकुमारों का उद्धार तभी संभव है, जब स्वर्ग लोक से गंगाजी को पृथ्वी पर लाया जाए और उनके पवित्र जल से इन सबकी भस्म का स्पर्श कराया जाए। गरुड़ ने कहा कि पहले घोड़ा ले जाकर यज्ञ पूरा कीजिये। अंशुमान ने वैसा ही किया, पर स्वर्ग से गंगाजी का लाना आसान न था। पहले राजा सगर , अंशुमान ने और बाद में दिलीप  ने भी कठोर तपस्या की किंतु सफल नहीं हुए। 
     तब परम धार्मिक राजा भगीरथ अपने पितामहों का उद्धार करने की इच्छा से तपस्या करने गोकर्ण तीर्थ, हिमालय में गए। उनके तप ने देवताओं को विचलित कर दिया। ब्रह्मा जी देवताओं के साथ राजा के पास गए और उनसे वरदान मांगने को कहा। भगीरथ ने गंगावतरण की प्रार्थना की। ब्रह्माजी ने कमंडल से गंगाजी को पृथ्वी पर पहुंचाना स्वीकार कर लिया, किंतु कहा कि गंगाजी की वेगवती धारा को भूतल पर संभालने का प्रबंध करना पड़ेगा। यह भी कहा कि उनकी धारा को केवल शिवजी रोक सकते हैं। तब राजा भगीरथ शिवजी को प्रसन्न करने में लग गए।  शिवजी ने गंगा की वेगवती धारा को संभालने का कार्य अंगीकार करते हुए अपनी जटा से गंगा को रोका और बाद में जटा के अग्रभाग को निचोड़ कर बिन्दु के रूप में गंगा जी को बाहर निकाला। वह बिन्दु शिवजी के निवास स्थान कैलाश के पास बिन्दु सरोवर में गिरा।

पाशजालनिकृन्तिन्यै अभिन्नायै नमोऽस्तु ते। शान्तायै च वरिष्ठायै वरदायै नमो नमः।। उग्रायै सुखजग्ध्यै च सञ्जीविन्यै नमोऽस्तु ते। ब्रह्मिष्ठायै ब्रह्मदायै, दुरितघ्न्यै नमो नमः।।  अर्थात् संसार बंधन का उच्छेद करने वाली अद्वैतरूपा आपको नमस्कार है। आप परम शांत, सर्वश्रेष्ठ तथा मनोवांछित वर देने वाली हैं, आपको बारम्बार नमस्कार है। आप प्रलयकाल में उग्ररूपा हैं, अन्य समय में सदा सुख का भोग करवाने वाली हैं तथा उत्तम जीवन प्रदान करने वाली हैं, आपको नमस्कार है। आप ब्रह्मनिष्ठ, ब्रह्मज्ञान देने वाली तथा पापों का नाश करने वाली हैं।

  वहां पर गंगाजी की सात धाराएं हो गईं। तीन धाराएं हादिनी, पावनी और नलिनी पूर्व दिशा में तथा सुचक्षु, सीता और सिन्धु ये तीन धाराएं पश्चिम की ओर चल पड़ीं। सातवीं धारा राजा भगीरथ के साथ उनके पूर्वजों के उद्धार के लिए चल पड़ी, किंतु मार्ग में राजर्षि जह्नु का तपोवन था। वे तप में लीन थे। धारा ने जब उथल-पुथल मचा दी तो जह्नुजी ने क्रोधित होकर मार्ग रोक दिया।

                                   गंगाजी की सातवीं धारा राजा भगीरथ के साथ उनके पूर्वजों के उद्धार के लिए चल पड़ी। सगर पुत्रों के भस्मावशेष के पास पहुंची और उन्हें मुक्त करके समुद्र में मिल गई

     फिर भगीरथ ने प्रार्थना की तो मुक्त कर दिया। वहां से गंगा माँ सगर पुत्रों के भस्मावशेष के पास पहुंचीं और उन्हें मुक्त करके समुद्र में मिल गईं और भगीरथ वापस अयोध्या आ गए।

  गंगाजी  की महिमा अपार है। गंगा के जल में स्नान करने से,गंगा जल का पान करने से तथा गंगाजल में पितृगणों का तर्पण करने से महान पातक समूहों का विनाश होता है। जिस प्रकार अग्नि के समीप रखी रुई या सूखा तिनका क्षण भर में जल कर नष्ट हो जाता है उसी प्रकार गंगा के जल का स्पर्श करने मात्र से मनुष्यों के पाप क्षण भर में नष्ट हो जाते हैं। गंगा के जल में स्नान करने की बहुत बड़ी महिमा है। इस स्नान से भगवान केशव के चरणों की प्राप्ति होती है। संसार में उत्तम फल प्राप्त होता है,राज्यलाभ  होता है,महान पुण्य मिलता है और अंत में परमगति प्राप्त होती है। अपने पितृगण को यदि गंगा में पिंड देते हैं तो अन्न का पिंड देने वालों के पूर्वज पूज्य हो जाते हैं। तिलों सहित पिंड देने से स्वर्ग में स्थान मिलता है। अनंत काल तक उसके पूर्वज स्वर्ग में निवास करते हैं।
  राशियों पर सूर्य के संक्रमण होने वाले दिनों में और चंद्र तथा सूर्य के ग्रहण के समय में एवं व्यतीपात के दिन में गंगा के जल में स्नान करने से यह मनुष्यों के दोनों वंशों को संसार रूपी समुद्र से तार दिया करती है। पुष्य नक्षत्र में गंगा के जल में स्नान करने से एक करोड़ कुलों का उद्धार हो जाता है। उत्तरायण सूर्य के हो जाने पर शुक्लपक्ष में और दिन के समय में जो मनुष्य गंगा में अर्थात गंगा के समीप स्थल अथवा तट पर हृदय में भगवान जनार्दन का ध्यान करते हुए देह का त्याग करते हैं अर्थात मृत्युगत होते हैं और इस विधि से जो भागीरथी के शुभ जल में प्राणों का त्याग किया करते हैं वे स्वर्गलोक को प्राप्त हो जाते हैं, जहां से फिर इस संसार में आवृत्ति नहीं होती है। इतना ही नहीं जो नित्य ही गंगा पर रहता है, उसके पीछे तो सभी देवगण रहा करते हैं।
  गंगाजी के नाम की तो इतनी महिमा है कि चाहे गंगा नदी से सौ योजन दूर भी हो तब भी गंगा! गंगे! इतना  मात्र श्रद्धापूर्वक कहने भर से ही मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर विष्णुजी के लोक को जाता है।

ङ्गा गङ्गेति यो ब्रूयाद्योजनानां शतैरपि।
मुच्यते सर्व पापेभ्यो विष्णुलोकं स गच्छति॥

     महादेव ने स्वयं कहा है कि,"हे विष्णो! जैसा मैं हूँ, वैसे ही तुम हो, जैसे तुम हो, वैसी उमादेवी हैं और जैसी उमादेवी हैं, वैसी गंगा हैं। अर्थात् महेश्वर शिवजी, विष्णु जी, उमादेवी व गंगाजी इन चारों में कोई भेद नहीं है।" दूर रहकर भी जो गंगाजी के माहात्म्य को जानता है और भगवान गोविंद में भक्ति रखता है, वह अयोग्य हो तो भी गंगा उस पर प्रसन्न होती हैं।

ॐ नमो गंगायै विश्व रूपिण्यै नारायण्यै नमो नमः॥
     देवी गंगा के इस मूल मंत्र  का एक बार भी जाप कर लेने से मनुष्य परम पवित्र हो जाता है और विष्णुजी के लोक में प्रतिष्ठित होता है, फिर जो एक माला अर्थात 108 बार या फिर 5 माला या दस माला जप करे उसके लिए तो कहना ही क्या है । जिनका यज्ञोपवीत संस्कार नहीं हुआ है उन लोगों को गंगायै विश्व रूपिण्यै नारायण्यै नमो नमः॥ इस मंत्र को जपना चाहि।

गंगास्नान कर पाने में अक्षम हों उन्हें नहाने के पानी में थोड़ा गंगाजल या तुलसीदल व आंवले का चूर्ण डालकर या रुद्राक्ष मस्तक पर धारण करके स्नान करना चाहिए इससे उन्हें भी गंगास्नान का फल मिलता है।
     यदि ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को बुधवार के साथ हस्त नक्षत्र का भी संयोग हो तो उस दिन गंगाजी के जल में खड़ा होकर जो कोई भी दस बार  गंगा दशहरा स्तोत्र पढ़ता है वह दरिद्र हो चाहे असमर्थ, वह उसी फल को प्राप्त करता है जो पूर्वोक्त विधि से यत्नपूर्वक गंगाजी की पूजा करने पर उपलब्ध होने वाला बताया गया है। इसके अलावा गंगा सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ करने से भी गंगास्नान का फल मिलता है।


विधिहरिहररूपां सेन्दुकोटीरचूडाम् कलितसितदुकूलां जाह्नवीं तां नमामि ॥ अर्थात्  भक्तों के लिए परम इष्ट, ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनों का रूप अर्थात् तीनों के कार्य करने वाली, मस्तक पर सुशोभित चंद्रजटित मुकूट वाली तथा सुंदर श्वेत वस्त्रों से विभूषित माँ गंगा को मैं प्रणाम करता हूँ।


  इस प्रकार कुछ अंश माँ गंगे की अपार महिमा का प्रस्तुत किया गया। तो आईए माँ गंगा की महिमा का पुनः स्मरण कर उन्हें अनेकों बार नमन करें।
पतित पावनी पाप नाशिनी।
करुणामयी ममतामयी गंगे॥
हर हर गंगे। हर हर गंगे।
हर हर गंगे। जय माँ गंगे॥
हर हर गंगे। हर हर गंगे।
हर हर गंगे॥ 

टिप्पणियाँ

  1. नमस्कार मित्रों, अब आप http://www.scribd.com/doc/155000128/About-Goddess-Ganga-hindi
    इस लिंक पर जाकर इस आलेख को पीडीएफ़/डॉक के रूप में डाउन्लोड कर अपने पास सहेज कर रख सकते हैं। खासकर आपको गंगा दशहरा का अनुष्ठान करना हो तो स्तोत्र पाठ हेतु आपके लिए उपयोगी रहेगा।

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