नोट - यहाँ प्रकाशित साधनाओं, स्तोत्रात्मक उपासनाओं को नियमित रूप से करने से यदि किसी सज्जन को कोई विशेष लाभ हुआ हो तो कृपया हमें सूचित करने का कष्ट करें।

⭐विशेष⭐


23 अप्रैल - मंगलवार- श्रीहनुमान जयन्ती
10 मई - श्री परशुराम अवतार जयन्ती
10 मई - अक्षय तृतीया,
⭐10 मई -श्री मातंगी महाविद्या जयन्ती
12 मई - श्री रामानुज जयन्ती , श्री सूरदास जयन्ती, श्री आदि शंकराचार्य जयन्ती
15 मई - श्री बगलामुखी महाविद्या जयन्ती
16 मई - भगवती सीता जी की जयन्ती | श्री जानकी नवमी | श्री सीता नवमी
21 मई-श्री नृसिंह अवतार जयन्ती, श्री नृसिंहचतुर्दशी व्रत,
श्री छिन्नमस्ता महाविद्या जयन्ती, श्री शरभ अवतार जयंती। भगवत्प्रेरणा से यह blog 2013 में इसी दिन वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को बना था।
23 मई - श्री कूर्म अवतार जयन्ती
24 मई -देवर्षि नारद जी की जयन्ती

आज - कालयुक्त नामक विक्रमी संवत्सर(२०८१), सूर्य उत्तरायण, वसन्त ऋतु, चैत्र मास, शुक्ल पक्ष।
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भगवान धन्वन्तरी की स्तोत्रात्मक उपासना

गवान श्री हरि विष्णु ने समुद्र मंथन के समय यह श्री धन्वन्तरी नामक अवतार  ग्रहण किया था। भगवान धन्वन्तरि हाथ में अमृत कलश लेकर समुद्र से प्रकट हुए थे। भगवान  धन्वन्तरि ने तीन नाम रूपी मंत्र दिये हैं जिनका उच्चारण करने से सभी रोग सभी उत्पात दूर होते हैं - अच्युत , अनन्त, गोविन्द | धनत्रयोदशी अर्थात् कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को इनकी ही आराधना की जाती है।

वैद्य या चिकित्सकों या डाक्टरों के लिये तो ये परम आराध्य हैं। धनतेरस के दिन इनकी आराधना अवश्य करें। अन्य किसी दिन भी इनकी आराधना की जा सकती है। एकादशी त्रयोदशी पूर्णिमा गुरुवार इनके स्तोत्र पाठ के लिये  उपयुक्त हैं। इनकी आराधना से बालक की रक्षा होती है। इनका आराधक मोक्ष पाता है। श्री धन्वन्तरी जी के भक्त को कष्ट साध्य बिमारी, भूत प्रेतादि के भय से भी मुक्ति मिलती है, महान् उत्पात से रक्षा होती है, अल्प आयु में मृत्यु नहीं होती। ग्रह आदि की कुदृष्टि - बुरी नजर दूर हो जाती है।


श्री धन्वन्तरी भगवान का उपासक प्रातः काल सर्वप्रथम निम्न लिखित स्तोत्र पढ़े। वैसे तो सुप्रभात स्तोत्रों का पाठ सुबह ही करते हैं लेकिन यदि कभी सुबह पाठ करने का समय न मिले तो "स्तुति करने के उद्देश्य से"  मध्याह्न या सायं भी पढ़ सकते हैं।  

श्री धन्वन्तरी सुप्रभात स्तोत्रम्

   श्री गणेश विष्णु शिव दुर्गा सूर्येभ्यो नमः॥

अस्मत्स्तवम् जलधि-मन्थन-घोषतुल्य -
माकर्ण्य भग्न निजयोग-समाधिनिद्रः।
उन्मील्य नेत्र-युगलीमवलोकयास्मान्,
धन्वन्तरे, भवतु भो तव सुप्रभातम्॥१॥

  क्षीरार्णवे भुजग-वर्ष्मणि योगनिद्रा -
  लीनस्य निस्तुल-निजात्म-सुखोत्सुकस्य।
  कारुण्यतोऽद्य शयनात् स्वयमुत्थितस्य,
  धन्वन्तरे, मधुरिपो तव सुप्रभातम्॥२॥

उद्बिभ्रतो नवसुधा-कलशं जलूकां,
शंखं रथाङ्गमपि पाणि-तलैश्चतुर्भिः।
चिह्नानि कौस्तुभ-मुखानि च तत्तद्ङ्गैर्
धन्वन्तरे, मुररिपो तव सुप्रभातम्॥३॥

  आनील-गात्र, कपिशाम्बर, वन्यमालिन्,
  काञ्ची-किरीट-कटकादि विभूषिताङ्ग।
  धन्वन्तरे धृत-सुधाघट दीनबन्धो,
  भवतु भो भवचिकित्सक सुप्रभातम्॥४॥

आपीन-दीर्घ-भुजदण्ड मृगादिपांस,
कारूण्य-शीतल-विलोचन कम्बुकण्ठ।
हासोल्लसन्मुख विशाल भुजान्तराल,
धन्वन्तरेऽस्तु भगवंस्तव सुप्रभातम्॥५॥

  विष्णो, जनार्दन, मुरान्तक, वासुदेव,
  वैकुण्ठ, केशव, हरे, जगदीश, शौरे।
  गोविन्द, नन्दसुत, कंसरिपो, मुकुन्द,
  धन्वन्तरे भवतु भो तव सुप्रभातम्॥६॥

पञ्चास्त्रकोटि-कमनीय कलेवराय,
पञ्चास्यसन्निभ-विलोकन विक्रमाय।
रागादिरोग-कुलनाश-कृतेऽस्तु तुभ्यम्,
धन्वन्तरे प्रणतवत्सल सुप्रभातम्॥७॥

  नाम्नैव यो झटिति-कृन्तति दोषकोपम्,
  स्मृत्यैव यस्सपदि हन्ति गुणत्रयं च।
  बाह्यन्तर-द्विविध रोगहरस्य तस्य,
  धन्वन्तरे, भवतु भो तव सुप्रभातम्॥८॥

द्रव्यामृतस्य कलशार्णव निर्गतस्य,
ज्ञानामृतस्य निगमाब्धि समुत्थितस्य।
रोगद्वय प्रशमनाय नृणां प्रदातुर्,
धन्वन्तरे, भवतु भो तव सुप्रभातम्॥९॥

  अमृतघट-जवूकं चक्रशंखांश्चतुर्भिः,
  मसृणकरसरोजैर्बिभ्रते, विश्वगोप्त्रे।
  उभयनरकहंत्रे, नाथ, धन्वन्तरे, ते,
  भवतु शुभवराणां दाशुषे सुप्रभातम्॥१०॥

मेघश्यामल-लोचनीयवपुषे विद्युत् स्फुरद्वाससे,
श्रीमद्दीर्घ चतुर्भुजैः नवसुधाकुम्भम् जलूकामरिम्।
शंखंचोद्वहते, कृपाप्लुतदृशे मन्दस्मितश्रीमुचे,
भूयात् सन्तत सुप्रभातमयि भो धन्वन्तरे ते हरे॥११॥

आयुर्वेद - विधायिन स्तनुभृतामन्तर्बहिर्वासिनः,
  श्रीनामौषधदायिनो, भवमहारोगस्य संहारिणः।
  निर्वाणामृतवर्षिणो निजयशस्सिन्धौ जगत् प्लावितो,
  भो भूयात्तव सुप्रभात मयि भो धन्वन्तरे श्रीहरे॥१२॥

सर्वेषां सुखहेतवे, भव महापाथोनिधेस्सेतवे,
मुक्तिश्रीजयकेतवे, मृतिभयत्रस्तस्य जीवातवे।
सक्तानां सुरधेनवे, विधिविमृग्यांघ्रि-द्वयीरेणवे,
भूयादुज्ज्वल सुप्रभातमयि ते गोविन्द धन्वन्तरे॥१३॥

  श्रीधन्वन्तरिमूर्तये सुरवरैरुद्गीथ-सत्कीर्तये,
  विध्वस्तप्रणतार्त्तये त्रिभुवनी सौभाग्यसम्पूर्तये।
  कारुण्यामृतसिन्धवे भवरुजाशान्त्यर्थिना बन्धवे,
  तुभ्यम् भास्वर सुप्रभातमयि भो, भूयोऽपि भो भूयताम्॥१४॥

भक्तैर्निर्मथ्य मानान्नवविधभगवद्धर्मदुग्धाम्बुराशेः,
प्रादुर्भूताय भक्त्यात्मकवयुनसुधाकुम्भ हस्ताम्बुजाय,
संसारव्याधिहंत्रे, निरुपम परमानन्द सन्दोहदात्रे,
भो भूयात् सुप्रभातं मुरमथन, हरे कृष्ण धन्वन्तरे ते॥१५॥

श्री धन्वन्तरि भगवान की स्तोत्रात्मक उपासना

सामग्री - अपने सामने श्री धन्वन्तरि जी का चित्र रखें, कलर प्रिन्ट निकलवाकर भी रख सकते हैं। या फिर श्री विष्णु जी की प्रतिमा या चित्र रखें। इसके अलावा शालग्राम, शिवलिंग या श्री यन्त्र पर भी यह पूजन किया जा सकता है। 
* लक्ष्मी जी का चित्र या मूर्ति 
*शिव प्रतिमा/चित्र ( गुरु पूजन के लिये)
* साथ में जल युक्त पात्र, आचमनी, रोली, चंदन- पाउडर हो तो अच्छा, सफेद तिल या जौं।
*नैवेद्य, दीपक (तेल या घी का ), धूप।
* फूल , तुलसी पत्र, तुलसी मंजरी, फूल, पीला फूल हो तो उत्तम। कमलगट्टा( पूजा की दुकान पर मिलेगा) अर्पित करे।
*पुष्प के अभाव में चन्दन मिश्रित सफेद तिल चढ़ाते हैं। इन्हें चावल नहीं चढ़ते।
संकल्प
श्री गणपतिर्जयति विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः ओऽम् तत्सदद्य श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य श्रीब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्रीश्वेतवाराह-कल्पे वैवस्वत-मन्वन्तरे, अष्टाविंशति-तमे कलियुगे, कलि-प्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे भूप्रदेशे------प्रदेशे ----- नगरे (......ग्रामे), ..... नाम्नि सम्वत्सरेसूर्य (उत्तरायणे/दक्षिणायने)-----ऋतौ,------मासे --------पक्षे , ----तिथौ, -----वासरे ------गोत्रोत्पन्नो ------(नाम) अहं अद्य श्री महालक्ष्मी सहित श्री धन्वन्तरि नारायण प्रीत्यर्थं श्री धन्वन्तरि अष्टोत्तरशत नाम मन्त्रैः यथाशक्ति यजनं कृत्वा स्तोत्रैः स्तुतिं करिष्ये।

महागणपति पूजन- पुष्प या अक्षत अर्पित करे-
• ऐं आत्म तत्व व्यापकाय महा-गणपतये श्री पादुकां पूजयामि नमः।
• ह्रीं विद्या तत्व व्यापकाय महा-गणपतये श्री पादुकां पूजयामि नमः।
• क्लीं शिव तत्व व्यापकाय महा-गणपतये श्री पादुकां पूजयामि नमः।

गुरु पूजा - अपने गुरू का पूजन करे गुरु न हों तो पुष्प शिव जी को चढ़ा दे - श्री दक्षिणामूर्तये तुभ्यं वटमूल-निवासिने ध्यानैक निरतांगाय नमः रुद्राय शम्भवे, श्री दक्षिणामूर्ति गुरवे नमः श्रीगुरुपादुकां पूजयामि नमः 
गुरु को नमस्कार करे-
• गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः,
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।
• अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया, चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः।

श्री लक्ष्मी पूजा - ध्यान करके फूल श्री लक्ष्मी जी को चढा दें -
श्वेतचम्पक-वर्णाभां शतचन्द्र - समप्रभाम्।
वह्निशुद्धां - शुकाधानां रत्नभूषण - भूषिताम्॥
ईषद्धास्य—प्रसन्नास्यां भक्तानुग्रह -कारिकाम्।
सहस्रदल—पद्मस्थां स्वस्थां च सुमनोहराम्॥ 
शान्तां च श्रीहरेः कान्तां,
तां भजेज्जगतां प्रसूम्॥(ब्रह्मवैवर्त्त पुराण के गणपतिखण्ड में)
श्रियै नमः श्री महालक्ष्मी श्रीपादुकां पूजयामि नमः।

(जिनके शरीर की आभा श्वेत चन्द्रमाओं के समान है, जो अग्नि में तपाकर शुद्ध की हुई साड़ी को धारण करती हैं तथा रत्ननिर्मित आभूषणों से विभूषित हैं, जो भक्तों पर अनुग्रह करने वाली, स्वस्थ और अत्यन्त मनोहर हैं, सहस्रदल कमल जिनका आसन है, जो परम शान्त तथा श्रीहरि विष्णु की प्रियतमा पत्नी हैं, उन जगज्जननी श्रीकमला महालक्ष्मी भगवती का भजन करना चाहिये।)


अब फूल व तुलसी लेकर श्री धन्वन्तरि जी का ध्यान करें-

श्री धन्वन्तरि ध्यानम्

चतुर्भुजं पीत-वस्त्रं सर्वालङ्कार-शोभितम् ।
ध्याये धन्वन्तरं देवं सुरासुर-नमस्कृतम्॥ 
युवानं पुण्डरीकाक्षं सर्वाभरणभूषितम्। दधानममृतस्यैव कमण्डलं श्रिया युतम्॥ यज्ञ-भोग-भुजं देवं सुरासुर - नमस्कृतम्। ध्याये धन्वन्तरि देवं श्वेताम्बर-धरं शुभम् ॥
(मैं चार भुजाओं वाले, पीले वस्त्र पहने हुये, सभी प्रकार के आभूषणों से सुशोभित, सुरों और असुरों द्वारा वन्दित भगवान् धन्वन्तरि का ध्यान करता हूँ। तरुण, कमल-नयन, सभी अलंकारों से विभूषित, अमृत-पूर्ण कमण्डलु लिये हुये, यज्ञ-भाग को खानेवाले, देवों और दानवों से वन्दित, श्री से युक्त, भगवान् धन्वन्तरि का मैं ध्यान करता हूँ।)
श्री धन्वन्तरि देवता का ध्यान कर तुलसी व फूल चढ़ाने के बाद श्री विष्णु जी पर तुलसी,तिल ,फूल चढ़ाकर उनका आवाहन करे - 

अच्युताय नमः। अनन्ताय नमः। गोविंदाय नमः। आगच्छ देव-देवेश ! तेजोराशे जगत्-पते! क्रियमाणां मया पूजां गृहाण सुर-सत्तम! श्री धन्वन्तरि देवं आवाहयामि॥
( हे देवताओं के ईश्वर ! तेज सम्पन्न हे संसार के स्वामिन् ! हे देवोत्तम ! आइए, मेरे द्वारा की जानेवाली पूजा को स्वीकार करें ।)

मानस पूजा -  लं पृथिवी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्री महालक्ष्मी सहित श्री  धन्वन्तरि नारायण श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (कनिष्ठिका अंगुली से अंगूठे को मिलाकर अधोमुख(नीची) करके भगवान को दिखाए, यह गन्ध मुद्रा है)

• हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्री महालक्ष्मी सहित श्री  धन्वन्तरि नारायण श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (अधोमुख तर्जनी व अंगूठा मिलाकर बनी पुष्प मुद्रा दिखाए)

• यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्री महालक्ष्मी सहित श्री  धन्वन्तरि नारायण श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्वमुख(ऊपर को) तर्जनी व अंगूठे को मिलाकर दिखाए)

• रं वह्नि-तत्त्वात्मकं दीपं श्री महालक्ष्मी सहित श्री  धन्वन्तरि नारायण श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्व मुख मध्यमा व अंगूठे को दिखाए)

• वं अमृत-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्री महालक्ष्मी सहित श्री  धन्वन्तरि नारायण श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्व मुख अनामिका व अंगूठे को दिखाए)

• सौं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलादि सर्वोपचाराणि मनसा परिकल्प्य श्री महालक्ष्मी सहित श्री  धन्वन्तरि नारायण श्रीपादुकाभ्यां नमः 
अनुकल्पयामि।(सभी अंगुलियों को मिलाकर ऊर्ध्वमुखी करते हुए दिखाये)
उपरोक्त मुद्राओं को समझने के लिये यहाँ क्लिक करें।


 श्री धन्वंतरि शतार्चन विधि - एक-एक फूल या तुलसी या श्वेत तिल/ जौं लेकर श्री धन्वन्तरि अष्टोत्तर शत नामावली का एक एक नाम मंत्र पढ़ते हुए विष्णु जी को समर्पित करते जायें-

योऽर्थाय विष्णु-रुदधेरुदभूत्सुराणां
   नानाविधामय-विनाश-विधानविज्ञः।
पीयूष-परिपूर्णघटं गृहीत्वा
   धन्वन्तरिः सुखकरोऽस्तु करोनविंशः।
   
   1. श्री धन्वन्तरये नमः।
 2. श्री धर्मध्वजाय नमः।
 3. श्री धरावल्लभाय नमः।
 4. श्री धिषण-वन्द्याय नमः।
 5. श्री धीराय नमः।
 6. श्री धीवरेण्याय नमः।
 7. श्री धार्मिकाय नमः।
 8. श्री धर्म-नियामकाय नमः।
 9. श्री धर्मरूपाय नमः।
 10. श्री धीरोदात्त-गुणोज्ज्वलाय नमः।
 11. श्री धर्मविदे नमः।
 12. श्री धराधर-धारिणे नमः।
 13. श्री धात्रे नमः।
 14. श्री धातृ-गर्भविदे नमः।
 15. श्री धरित्री-हिताय नमः।
 16. श्री धराधर-रूपाय नमः।
 17. श्री धार्मिक-प्रियाय नमः।
 18. श्री धार्मिक-वन्द्याय नमः।
 19. श्री धार्मिकजन-ध्याताय नमः।
 20. श्री धनदादि-समर्चिताय नमः l 
20. श्री धनञ्जय-रूपाय नमः।
 21. श्री धनञ्जय-वन्द्याय नमः।
 22. श्री धनञ्जय-सारथये नमः।
23. श्रीधिषणरूपाय नमः।
(धिषण = वृहस्पति)
 24. श्री धिषण-पूज्याय नमः।
 25. श्री धिषणाग्रज-सेव्याय नमः।
26. श्रीधिषणारूपाय नमः।
 27. श्री धिषणा-दायकाय नमः।
 28. श्री धार्मिक-शिखामणये नमः।
 29. श्री धीप्रदाय नमः।
30. श्रीधीरूपाय नमः।
 31. श्री ध्यानगम्याय नमः।
 32. श्री ध्यानदात्रे नमः।
 33. श्री ध्यातृध्येय-पदाम्बुजाय नमः।
34. श्रीधीरसम्पूज्याय नमः।
 35. श्री धीरसमर्चिताय नमः।
 36. श्री धीरशिखामणये नमः।
 37. श्री धुरन्धराय नमः।
38. श्रीधूपधूपित-विग्रहाय नमः।
 39. श्री धूपदीपादि-पूजाप्रियाय नमः l 
40. श्री धूमादि-मार्गदर्शकाय नमः।
 41. श्री धृष्टाय नमः।
 42. श्री धृष्टद्युम्नाय नमः।
43. श्रीधृष्टद्युम्न-स्तुताय नमः।
 44. श्री धेनुकासुरसूदनाय नमः।
 45. श्री धेनुव्रजरक्षकाय नमः।
46. श्रीधेनुकासुरवरप्रदाय नमः।
 47. श्री धैर्याय नमः।
 48. श्री धैर्यवतामग्रण्ये नमः।
49. श्रीधैर्यवतां धैर्यदाय नमः।
 50. श्री धैर्यप्रदायकाय नमः।
 51. श्री धोयिने नमः।
 52. श्री धौम्याय नमः।
53. श्रीधौम्येडित-पदाय नमः।
 54. श्री धौम्यादि-मुनिस्तुताय नमः।
 55. श्री धौम्यवरदाय नमः।
 56. श्री धर्मसेतवे नमः।
57. श्री धर्ममार्गप्रवर्तकाय नमः।
 58. श्री धर्ममार्ग-विघ्नकृत्सूदनाय नमः।
59. श्रीधर्मराजाय नमः|
60. धर्ममार्ग-परैकवन्द्याय नमः।
 61. श्री धामत्रय-मन्दिराय नमः।
62. श्रीधनुर्वातादि-रोगघ्नाय नमः।
 63. श्री धुतसर्वाघ-वृन्दाय नमः।
 64. श्री धारणारूपाय नमः।
65. श्रीधारणा-मार्गदर्शकाय नमः
 66. श्री ध्यानमार्ग-तत्पराय नमः।
 67. श्री ध्यानमार्गैक-लभ्याय नमः।
68. श्रीध्यानमात्र-सुलभाय नमः।
 69. श्री ध्यातृ-पापहराय नमः।
 70. श्री ध्यातृ-तापत्रय-हराय नमः।
71. श्रीधनधान्य-प्रदाय नमः।
 72. श्री धनधान्य-मत्तजन-सूदनाय नमः।
 73. श्री धूमकेतु-वरप्रदाय नमः।
74. श्रीधर्माध्यक्षाय नमः।
 75. श्री धेनुरक्षा - धुरीणाय नमः।
 76. श्री धरणीरक्षण - धुरीणाय नमः।
77. श्रीधरणी-भारापहारकाय नमः।
 78. श्री धीरसमर्चिताय नमः।
79. श्रीधर्मवृद्धिकर्त्रे नमः l 
80. श्री  धर्मगोप्त्रे नमः।
 81. श्री धर्मकर्त्रे नमः।
 82. श्री धर्मबन्धवे नमः।
83. श्रीधर्महेतवे नमः।
 84. श्री धार्मिकव्रज-रक्षाधुरीणाय नमः।
85. श्रीधनञ्जयादि-वरप्रदाय नमः।
( धनंजय- अर्जुन)
 86. श्री धनञ्जय-सेवातुष्टाय नमः।
87. श्रीधनञ्जय-सहायकृते नमः।
 88. श्री धनञ्जय-स्तोत्रपात्राय नमः।
89. श्रीधनञ्जय-गर्वहर्त्रे नमः।
 90. श्री धनञ्जय-स्तुतिहर्षिताय नमः।
91. श्रीधनञ्जय-वियोगखिन्नाय नमः।
 92. श्री धनञ्जय-गीतोपदेश-कृते नमः।
93. श्रीधर्माधर्म-विचार-परायणाय नमः।
 94. श्री धर्मसाक्षिणे नमः।
 95. श्री धर्म-नियामकाय नमः।
96. श्रीधर्म-धुरन्धराय नमः।
 97. श्री धन-दृप्त-जन-दूरगाय नमः।
 98. श्री धर्मपालकाय नमः।
99. श्रीधर्म-मार्गोपदेश-कृद्वन्द्याय नमःl 
100. श्री धर्मजन-वन्द्याय नमः।
 101. श्री धर्मरूप-विदुर-वन्द्याय नमः।
 102. श्री धर्मतनय-स्तुत्याय नमः।
( धर्मतनय - युधिष्ठिर)
103. श्रीधर्मतनय-स्तोत्रपात्राय नमः।
 104. श्री धर्मतनय-संसेव्याय नमः।
 105. श्री धर्मतनय-नमान्याय नमः।
106. श्रीधारामृत-हस्ताय नमः।
107. श्री धनप्रदाय नमः।
108. श्री धर्माय नमः।

॥धकारादि श्रीधन्वन्तर्यष्टोत्तर शतनामावलिः शुभमस्तु॥

इसके बाद पुष्प लेकर श्रीधन्वन्तरि जी के एक अन्य अष्टोत्तर शत नाम स्तोत्र का पाठ करे -

 श्रीधन्वन्तरि अष्टोत्तरशत नामस्तोत्रम् 

धन्वन्तरिः सुधापूर्ण-कलशाढ्यकरो हरिः।
जरामृति-त्रस्त -देवप्रार्थना-साधकः प्रभुः॥१॥

निर्विकल्पो निस्समानो मन्दस्मित-मुखाम्बुजः।
आञ्जनेय-प्रापिताद्रिः पार्श्वस्थ-विनतासुतः॥२॥

निमग्न-मन्दरधरः कूर्मरूपी बृहत्तनुः।
नील-कुञ्चित-केशान्तः परमाद्भुत-रूपधृत्॥३॥

कटाक्ष-वीक्षणाश्वस्त-वासुकिः सिंहविक्रमः।
स्मर्तृहृद्रोग-हरणो महाविष्ण्वंश-सम्भवः॥४॥

प्रेक्षणीयोत्पलश्याम आयुर्वेदाधि-दैवतम्।
भेषज-ग्रहणानेहस्स्मरणीय-पदाम्बुजः॥५॥

नवयौवन-सम्पन्नः किरीटान्वित-मस्तकः।
नक्रकुण्डल-संशोभि-श्रवणद्वय-शष्कुलिः॥६॥

दीर्घ-धीवरदोर्दण्डः कम्बु-ग्रीवोऽम्बुजेक्षणः।
चतुर्भुजः शङ्खधरश्चक्र-हस्तो वरप्रदः॥७॥

सुधापात्रो-परिलसदाम्रपत्र-लसत्करः।
शत-पद्माढ्यहस्तश्च कस्तूरी-तिलकाञ्चितः॥८॥

सुकपोल-स्सुनासश्च सुन्दरभ्रू-लताञ्चितः।
स्वङ्गुलीतल-शोभाढ्यो गूढजत्रुर्महाहनुः॥९॥

दिव्याङ्गदलसद्बाहुः केयूर-परिशोभितः।
विचित्ररत्न-खचित-वलय-द्वयशोभितः॥१०॥

समोल्लस-त्सुजातांसश्चाङ्गुलीय-विभूषितः।
सुधागन्ध-रसास्वाद-मिलद्भृङ्ग-मनोहरः॥११॥

लक्ष्मी-समर्पितोत्फुल्ल कञ्ज-माला-लसद्गलः।
लक्ष्मीशोभित-वक्षस्को वनमाला-विराजितः॥१२॥

नवरत्नमणी-क्लृप्त हारशोभित-कन्धरः।
हीरनक्षत्र-मालादि -शोभा -रञ्जितदिङ्मुखः॥१३॥

विरजोऽम्बर-संवीतो विशालोराः पृथुश्रवाः।
निम्ननाभिः सूक्ष्ममध्यः स्थूलजङ्घो निरञ्जनः॥१४॥

सुलक्षण-पदाङ्गुष्ठः सर्व-सामुद्रिकान्वितः।
अलक्तका-रक्तपादो मूर्तिमद्वाधिपूजितः॥१५॥

सुधार्थान्योन्य-संयुध्यद्देवदैतेयसान्त्वनः।
कोटिमन्मथ-सङ्काशः सर्वावयव-सुन्दरः॥१६॥

अमृतास्वादनो-द्युक्त-देवसङ्घ-परिष्टुतः।
पुष्पवर्षण-संयुक्त-गन्धर्व-कुल-सेवितः॥१७॥

शङ्खतूर्य-मृदङ्गादि-सुवादित्राप्सरोवृतः।
विष्वक्सेनादि-युक्पार्श्वः सनकादि-मुनिस्तुतः॥१८॥

साश्चर्यसस्मित-चतुर्मुख-नेत्रसमीक्षितः।
शशाङ्क-सम्भ्रमदितिदनु-वंश्यसमीडितः॥१९॥

नमनोन्मुख-देवादिमौलीरत्न-लसत्पदः।
दिव्यतेजःपुञ्जरूपः सर्वदेव-हितोत्सुकः॥२०॥

स्वनिर्गमक्षुब्ध -दुग्धवाराशि-र्दुन्दुभिस्वनः।
गन्धर्वगीता-पदान-श्रवणोत्कमहामनाः॥२१॥

निष्किञ्चन-जनप्रीतो भवसम्प्राप्त-रोगहृत्।
अन्तर्हित-सुधापात्रो महात्मा मायिकाग्रणीः॥२२॥

क्षणार्ध-मोहिनीरूपः सर्वस्त्रीशुभ-लक्षणः।
मदमत्तेभगमनः सर्वलोक -विमोहनः॥२३॥

स्रंसन्नीवीग्रन्थि-बन्धासक्त-दिव्यकराङ्गुलिः।
रत्नदर्वी-लसद्धस्तो देवदैत्य-विभागकृत्॥२४॥

सङ्ख्यात-देवतान्यासो दैत्यदानव-वञ्चकः।
देवामृतप्रदाता च परिवेषणहृष्टधीः॥२५॥

उन्मुखोन्मुख-दैत्येन्द्र-दन्तपङ्क्ति विभाजकः।
पुष्पवत्सु-विनिर्दिष्ट-राहुरक्षःशिरोहरः॥२६॥

राहुकेतु-ग्रहस्थान-पश्चाद्गति-विधायकः।
अमृतालाभ-निर्विण्णयुध्य-द्देवारिसूदनः॥२७॥

गारुत्मद्वाहनारूढः सर्वेशस्तोत्रसंयुतः।
स्वस्वाधिकार-सन्तुष्ट-शक्र-वह्न्यादि-पूजितः॥२८॥

मोहिनी-दर्शनायात-स्थाणु-चित्तविमोहकः।
शचीस्वाहादि-दिक्पाल-पत्नीमण्डलसन्नुतः॥२९॥

वेदान्तवेद्य-महिमा सर्वलौकैक-रक्षकः।
राजराज-प्रपूज्याङ्घ्रिः चिन्तितार्थ-प्रदायकः॥३०॥

फलश्रुति

धन्वन्तरेर्भगवतो नाम्नामष्टोत्तरं शतम्।
यः पठेत्सततं भक्त्या नीरोगस्सुख-भाग्भवेत्॥३१॥
( श्री धन्वन्तरि भगवान के ये 108 नाम जो प्रति दिन भक्ति पूर्वक पढ़ता है निरोगता पाता है, सुख का भागी होता है।)

॥बृहद् ब्रह्मानन्दोपनिषदान्तर्गतं श्री धन्वन्तर्यष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् शुभमस्तु॥
   पुष्प अर्पित करे।


इसके बाद पुष्प लेकर सुदर्शन संहिता ग्रंथ में वर्णित निम्न स्तोत्र पढ़ें-

 अमृतसञ्जीवन श्रीधन्वन्तरि स्तोत्रम्

नमो नमो विश्वविभावनाय
  नमो नमो लोकसुखप्रदाय।
नमो नमो विश्वसृजेश्वराय
  नमो नमो नमो मुक्तिवरप्रदाय॥१॥

नमो नमस्तेऽखिल-लोकपाय
  नमो नमस्तेऽखिल-कामदाय।
नमो नमस्तेऽखिल-कारणाय
  नमो नमस्तेऽखिल-रक्षकाय॥२॥

नमो नमस्ते सकलार्तिहर्त्रे 
  नमो नमस्ते विरुजः प्रकर्त्रे।
नमो नमस्तेऽखिलविश्वधर्त्रे 
  नमो नमस्तेऽखिल-लोकभर्त्रे॥३॥

सृष्टं देव चराचरं जगदिदं ब्रह्म-स्वरूपेण ते
  सर्वं तत्परिपाल्यते जगदिदं विष्णुस्वरूपेण ते।
विश्वं संह्रियते तदेव निखिलं रुद्रस्वरूपेण ते
  संसिच्यामृत-शीकरैर्हर महारिष्टं चिरं जीवय॥४॥

यो धन्वन्तरि-संज्ञया निगदितः क्षीराब्धितो निःसृतो
  हस्ताभ्यां जनजीवनाय कलशं पीयूषपूर्णं दधत्।
आयुर्वेद-मरीरचज्जनरुजां नाशाय स त्वं मुदा
  संसिच्यामृत-शीकरैर्हर महारिष्टं चिरं जीवय॥५॥

स्त्रीरूपं वरभूषणाम्बर-धरं त्रैलोक्यसंमोहनं
  कृत्वा पाययति स्म यः सुरगणान्पीयूष-मत्युत्तमम्।
चक्रे दैत्यगणान् सुधा-विरहितान् संमोह्य स त्वं मुदा
  संसिच्यामृत-शीकरैर्हर महारिष्टं चिरं जीवय॥६॥

चाक्षुषोदधि -सम्प्लाव भूवेदप झषाकृते।
सिञ्च सिञ्चामृत-कणैः चिरं जीवय जीवय॥७॥

पृष्ठमन्दर-निर्घूर्णनिद्राक्ष कमठाकृते।
सिञ्च सिञ्चामृतकणैः चिरं जीवय जीवय॥८॥

धरोद्धार हिरण्याक्षघात क्रोडाकृते प्रभो।
सिञ्च सिञ्चामृत-कणैः चिरं जीवय जीवय॥९॥

भक्तत्रास-विनाशात्तचण्डत्व नृहरे विभो।
सिञ्च सिञ्चामृत-कणैः चिरं जीवय जीवय॥१०॥

याञ्चाच्छल-बलित्रास-मुक्तनिर्जर वामन।
सिञ्च सिञ्चामृतकणैः चिरं जीवय जीवय॥११॥
क्षत्रियारण्य-सञ्छेद-कुठारकर-रैणुक।
सिञ्च सिञ्चामृतकणैः चिरं जीवय जीवय॥१२॥

रक्षोराज-प्रतापाब्धि-शोषणाशुग राघव।
सिञ्च सिञ्चामृतकणैः चिरं जीवय जीवय॥१३॥

भूभरासुर -सन्दोह -कालाग्ने रुक्मिणीपते।
सिञ्च सिञ्चामृतकणैः चिरं जीवय जीवय॥१४॥

वेदमार्ग-रतानर्ह-विभ्रान्त्यै बुद्धरूपधृक्।
सिञ्च सिञ्चामृतकणैः चिरं जीवय जीवय॥१५॥

कलिवर्णाश्रमा-स्पष्टधर्मर्द्द्यै कल्किरूप-भाक्।
सिञ्च सिञ्चामृतकणैः चिरं जीवय जीवय॥१६॥

असाध्याः कष्टसाध्या ये महारोगा भयङ्कराः।
छिन्धि तानाशु चक्रेण चिरं जीवय जीवय॥१७॥

अल्पमृत्युं चापमृत्युं महोत्पातानुपद्रवान्।
भिन्धि भिन्धि गदाघातैः चिरं जीवय जीवय॥१८॥

अहं न जाने किमपि त्वदन्यत्
  समाश्रये नाथ पदाम्बुजं ते।
कुरुष्व तद्यन्मनसीप्सितं ते
  सुकर्मणा केन समक्षमीयाम्॥१९॥

त्वमेव तातो जननी त्वमेव 
 त्वमेव नाथश्च त्वमेव बन्धुः।
विद्यार्थिनागारकुलं त्वमेव 
 त्वमेव सर्वं मम देवदेव॥२०॥

न मेऽपराधं प्रविलोकय प्रभोऽ-
 पराधसिन्धोश्च दयानिधिस्त्वम्।
तातेन दुष्टोऽपि सुतः सुरक्ष्यते
 दयालुता तेऽवतु सर्वदाऽस्मान्॥२१॥

अहह विस्मर नाथ न मां सदा
 करुणया निजया परिपूरितः।
भुवि भवान् यदि मे न हि रक्षकः
 कथमहो मम जीवनमत्र वै॥२२॥

दह दह कृपया त्वं व्याधिजालं विशालं
 हर हर करवालं चाल्पमृत्योः करालम्।
निजजनपरिपालं त्वां भजे भावयालं
 कुरु कुरु बहुकालं जीवितं मे सदाऽलम्॥२३॥

क्लीं श्रीं क्लीं श्रीं नमो भगवते जनार्दनाय सकलदुरितानि नाशय नाशय क्ष्रौं आरोग्यं कुरु कुरु ह्रीं दीर्घमायुर्देहि नमः॥२४॥

फलश्रुतिः
अस्य धारणतो जपादल्पमृत्युः प्रशमयति।
गर्भरक्षाकरं स्त्रीणां बालानां जीवनं परम्॥२५॥
(इस स्तोत्र के धारण करने से या जप करने से अल्पमृत्यु का शमन होता है। यह स्तोत्र गर्भिणी स्त्री के गर्भ की रक्षा करता है। बालकों को श्रेष्ठ जीवन देता है।)

सर्वे रोगाः प्रशमयन्ति सर्वा बाधा प्रशमयति।
कुदृष्टिजं भयं नश्येत् तथा प्रेतादिजं भयम्॥२६॥
( सभी रोगों का शमन होता है। समस्त बाधा दूर हो जाती है। बुरी दृष्टि जनित भय नष्ट होते हैं। प्रेत आदि का भय भी नष्ट हो जाता है।)
॥सुदर्शनसंहितोक्तं अमृतसञ्जीवन धन्वन्तरि स्तोत्रम् शुभमस्तु॥

पुष्प चढ़ा दे। अब एक आचमनी से जल चढ़ाते हुए जप समर्पण करे -
 
*मन्त्र हीनं, क्रिया हीनं, विधि हीनं, देश-काल हीनं, भक्ति हीनं यत् कृतं तत् सर्वं परिपूर्णमस्तु।
अच्युताय नमः, अनन्ताय नमः, गोविन्दाय नमः।
•  गुह्याति गुह्य गोप्ता त्वम्, गृहाणास्मद्कृतं जपं।
सिद्धिर्भवतु मे देव, त्वत्- प्रसादात् सुरेश्वरः॥
• अनेन मया कृतेन अनेन  स्तोत्रपाठाख्य कर्मणा श्री महालक्ष्मी सहित श्री धन्वन्तरि विष्णु देवता सुप्रसन्न  वरदो भव।
• सर्वं श्रीशिव-गुरु-परदेवता-परब्रह्मार्पण-मस्तु।
नमस्कार पूर्वक प्रार्थना करे-
शिव प्रसादेन विना न बुद्धिः। शिव प्रसादेन विना न युक्तिः।
शिव प्रसादेन विना न सिद्धिः। शिव प्रसादेन विना न मुक्तिः।
न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं।
शिव शासनतः शिव शासनतः शिव शासनतः। गुरुकृपा हि केवलं।

आसन के नीचे भूमि पर थोड़ा जल छिड़कें और भूमि के उस जल को मस्तक पर लगायें। कहे -
* यस्य स्मृत्या च  नामोक्त्या तपोयज्ञ क्रियादिषु न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम्।
* श्रीविष्णवे नमः श्रीविष्णवे नमः श्रीविष्णवे नमः। हरिस्मरणात् परिपूर्णतास्तु।


इस प्रकार से यह श्री धन्वन्तरि भगवान की स्तोत्रात्मक उपासना है।
भगवान धन्वन्तरि को हमारे अनेकों प्रणाम।

 

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