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कमला महाविद्या की स्तोत्रात्मक उपासना

मुद्रा पूर्वक पंचोपचार मानस पूजन की विधि

कि
सी भी देवता की उपासना करते समय कम से कम पंचोपचार पूजा तो की ही जाती है। कोई मन्त्र साधना करनी हो, नित्य का मन्त्र जप करना हो, प्रातः स्मरण के समय गुरु व इष्ट की पूजा करनी हो, कोई अष्टोत्तरशत नाम स्तोत्र या सहस्रनाम स्तोत्र या कोई अन्य बड़ा स्तोत्र पाठ करना हो, शतार्चन/सहस्रार्चन करना हो, तो पहले उस देवता की पांच प्रमुख उपचारों से मानस पूजा करनी चाहिए। इसको लमित्यादि पंच पूजा भी कहते हैं। इसमें प्रत्येक उपचार का मन्त्र पढ़ते हुए पाँच विशिष्ट मुद्राएं दिखाए। मानस पूजा की यह विधि यहाँ प्रस्तुत है। यह विधि विशुद्धेश्वर तन्त्र में वर्णित है, साधकों विद्वानों द्वारा पूजा में प्रयुक्त होती है, सर्वथा प्रामाणिक है। सुविधा के लिए चित्र दे दिए हैं-

1)• लं पृथिव्यात्मकं गन्धं श्री(-------) पादुकाभ्यां नम: अनुकल्पयामि।

(भाव यह है कि मैं पृथ्वी रूपी गन्ध अर्पित करता हूं)

⭐गन्ध मुद्रा- दाहिने हाथ के अंगूठे से कनिष्ठिका अंगुली को स्पर्श करे, इसे अधोमुखी(नीचे की ओर) करके दिखाए। तर्जनी मध्यमा अनामिका अंगुलियां चित्रानुसार कुछ झुकी परंतु ऊपर को रहेंगी।

कनिष्ठिका व अँगूठे को मिलाने से बनी गंध मुद्रा



2)• हं आकाशात्मकं पुष्पं श्री(-------) पादुकाभ्यां नम: अनुकल्पयामि।

(यहाँ भगवान को आकाश रूपी फूल अर्पित करने की भावना करे)

⭐पुष्प मुद्रा- दाहिने हाथ के अंगूठे से तर्जनी को मिलाकर अधोमुख(नीची) करके दिखाए।

पुष्प मुद्रा


3)• यं वाय्वात्मकं धूपं श्री(-------) पादुकाभ्यां नम: अनुकल्पयामि।

(वायु रूपी धूप अर्पित करने की भावना करे)

⭐धूप मुद्रा- इसमें दाहिने हाथ के अंगूठे व तर्जनी अंगुली को मिलाकर ऊर्ध्वमुखी(ऊपर को) करके दिखाए।

धूप मुद्रा


4)• रं वह्न्यात्मकं दीपं श्री(------) पादुकाभ्यां नम:  अनुकल्पयामि।

(तेज या अग्नि रूपी दीप अर्पण करने का भाव रखे)

⭐दीप मुद्रा- इसमें दाहिने हाथ के अंगूठे को मध्यमा अंगुली से मिलाकर दिखाए।

दीप मुद्रा


5)• वं अमृतात्मकं नैवेद्यं श्री(-----) पादुकाभ्यां नम: अनुकल्पयामि।

(अमृत रूपी नैवेद्य भोग लगाने की भावना करे)

⭐नैवेद्य मुद्रा- इसमें दाहिने हाथ के अंगूठे को अनामिका अंगुली से स्पर्श करते हुए दिखाए।

नैवेद्य मुद्रा


6)• शं शक्त्यात्मकं ताम्बूलादि सर्वोपचाराणि मनसा परिकल्प्य श्री(---) पादुकाभ्यां नम: अनुकल्पयामि।

(मैं मन की संकल्प शक्ति से ही सब उपचार समर्पित करता हूं)

⭐इसमें दाहिने हाथ के अंगूठे से बाकी चारों अंगुलियों को मिलाकर ऊपर की ओर रखते हुए दिखाए, यह सर्वोपचार मुद्रा, ग्रासमुद्रा के समान है।

सर्वोपचार मुद्रा

उपरोक्त में रिक्त स्थान (---) में देवता का नाम कहे जैसे - लं पृथिव्यात्मकं गन्धं श्रीगणेश पादुकाभ्यां नम: अनुकल्पयामि। *गंध मुद्रा प्रदर्शन*

हं आकाशात्मकं पुष्पं श्रीदुर्गा पादुकाभ्यां नम: अनुकल्पयामि।*पुष्प मुद्रा दिखायें*

यदि कोई उपचार सामग्री अर्पित करनी हो तो मंत्र बोलते हुए सम्बन्धित मुद्रा को दिखाकर वह सामग्री अर्पित करे। यदि पूजन सामग्री न हो तो मन के ही संकल्प से भी पूजा सम्पन्न हो जाती है।



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