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वरात्र में हवन करने की प्रथा भारत में पुरातन काल से प्रचलित है। इसमें योग्य ब्राह्मण या गुरुजी को यज्ञ करने के लिए बुलाते हैं। यदि न मिलें तो स्वयं करे।
अनुपनीत ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र व स्त्री हवन न करें। जो जनेऊ नहीं पहनते हैं, पहनते भी हैं अगर नित्य संध्या नहीं करते उनको हवन करने से शास्त्रों में निषेध किया गया है।अत: वे जिनका यज्ञोपवीत संस्कार हो गया है वही यह हवन करें।
जो लोग हवन न कर सके वे माँ दुर्गा के अनेक स्तोत्रों का पाठ करें तथा मंदिरों आदि में जहाँ-जहाँ हवन होता हो वहाँ जाकर शुद्ध घी, तिल आदि सामग्री और दक्षिणा दान दे दें।
इस अवसर पर साफ धुले या नए कपड़े पहनते हैं। अगर विवाहित हो तो हवन अनुष्ठान करने के लिए, यजमान और उसकी पत्नी दो अलग आसन पर बैठते हैं। पहले तैयारियाँ कर लें -
तैयारियाँ
• यज्ञ कुंड या यज्ञवेदी - इसे बनाने के लिए शुद्ध मिट्टी या बालू बिछाकर ईंटों को वर्गाकार लगाया जाता है। पत्थर, नाखून, बाल आदि निषेध वस्तु से रहित मिट्टी हो। एक हस्त परिमाण की वेदी हो मतलब वर्गाकार कुंड के चारों ओर की माप एक-एक हाथ हो। एक हाथ = 18 इंच। आजकल तो तांबे के कुण्ड भी आने लगे हैं। लेकिन आकार में छोटे मिल रहे हैं यदि 18 इंच वाला ताम्र कुण्ड मिले तो अच्छा है, हाँ महंगा जरूर बैठेगा।
ईंट वाले यज्ञ कुंड के तले की मिट्टी में सुगंधित पदार्थ भी डाले जाते हैं।
अपने पास पर्याप्त कुश रखले कुश के अभाव में दूर्वा या दूब घास ले सकते हैं।
• आचमन पात्र, पवित्री, कलश, जल, दुर्गा जी की मूर्ति रख ले।
• यज्ञ कुंड के सामने थाली रखे और उस पर चावल की दो छोटी ढेरी रखे। इन दोनों में दायीं ओर की ढेरी पर तांबे का एक कलश पानी से भरा हुआ रखकर उस पर आम के पांच पत्ते डालकर कुछ दूब(सम्भव हो तो ५१) डाले और फिर चावल से भरा हुआ कटोरा रखे। इस पर एक सुपारी रखें। कलश भगवान वरुण व ब्रह्मा जी का प्रतीक है।
• अब जो दूसरी ढेरी है वहाँ भगवान गणेश के प्रतीक के रूप में गणेश जी की मूर्ति या एक सुपारी रखे।
• कलश के सामने 5 फल, पांच पत्ते, पंचमेवा(या बादाम, किसमिस) कलश के लिये नारियल रखे।
• गोमूत्र गोबर दूध दही घी मिलाकर पंचगव्य बनायें।
• प्रसाद बनाकर रख ले।
• षोडश मातृका पूजा के लिये बाईं ओर, एक थाली पर चित्रानुसार 16 बिन्दु दें। या फिर आप अक्षतों पर 16 सुपारियाँ या १६ सिक्के भी षोडश मातृका के रूप में रख सकते हैं।
- समय हो तो सप्तघृतमातृका मण्डल भी बना सकते हैं -
• हवन सामग्री - यज्ञ कुंड में आहुति देने के लिये घी, काले तिल, चावल रखें। हवन सामग्री में जौ की मात्रा बाकी सबसे कम हो। सत्तू, गन्ने के पतले छोटे टुकड़े, कपूर टुकड़े, थोड़ा गुड़, सुगंधित फूल भी डाले।
• स्रुवा नहीं है तो आम्र के डंठल में आम्रपत्र को मौली के सहारे बांध कर होमार्थ स्रुवा बनावे।
- समिधा के लिये प्रादेश मात्र (अँगूठे से तर्जनी अंगुलि के बीच की लम्बाई) लम्बी लकड़ियों की पर्याप्त व्यवस्था कर लें।
• हाथ में लिये जाने वाले आहुति के पदार्थ की मात्रा न बिलकुल कम हो और न बहुत अधिक। तर्जनी और कनिष्ठा को हटाकर, यानी मध्यमा, अनामिका और अंगुष्ठ के सहारे जितनी मात्रा उठायी जा सके यही उचित मात्रा है।
• पूर्णाहुति के लिये सूखे नारियल में ऊपर से थोड़ा काटकर छेद करके घी गुड़ दही कपूर पान सुपारी भरे।
• लाल कपड़ा(टूल) जिससे नारियल को लपेटा जायेगा।
• पूजा के लिये सफेद या पीली सरसों, चंदन, कुमकुम, हल्दी, फूल, धूप, घी, दिया, बत्तियाँ पहले ही रखलें।
• दूध, दक्षिणा, कपूर, माचिस भी रखे।
आहुति कब डालें-
'सकारे सूतक विद्याद्धकारे मृत्युमादिशेत्। आहुतिस्तत्र दातव्यो यत्र आकार दृश्यते।'
अर्थात् स्वाहा शब्द के 'स' यानि 'स्वा' का उच्चारण करने पर आहुति डालेंगे तो वह सूतक उत्पन्न करेगी और 'ह' का उच्चारण करने पर आहुति डालेंगे तो वह मृत्यु को उत्पन्न करेगी, अतः 'स्वाहा' शब्द के अन्तिम अक्षर 'आ' का श्रवण यानि ठीक से पूरा सुनने के बाद ही आहुति देनी चाहिये। अतः आहुति देते समय ध्यान रहे कि जब मंत्र पढ़कर स्वाहा कह दे उसके बाद ही आहुति देनी है। स्वाहा के हा को थोड़ा लम्बा खींचना चाहिये।
हवन विधान
३ आचमन करे -
ॐ श्री केशवाय नमः
ॐ श्री माधवाय नमः
ॐ श्री नारायणाय नमः
इससे भूमि पर जल छोड़े-
ॐ श्री हृषीकेशाय नमः
शिखा बन्धन करें। पवित्री पहने। तीन प्राणायाम करें।
संकल्प करें-
ॐ गणपतिर्जयति विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्य ..... नाम संवत्सरे.... मासे .... पक्षे..... तिथौ..... वासरे...... ऋतौ (दक्षिण / उत्तर ) अयने ...... प्रदेशे... स्थाने...... गोत्रीय ..... शर्मा / वर्मा अहं मम (यजमानस्य) सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य कायिक, वाचिक , मानसिक, ज्ञाताज्ञात सकलदोष परिहारार्थं श्रुति स्मृति पुराणोक्त फल प्राप्त्यर्थं सकलकामना - सिद्ध्यर्थ-मायु-रारोग्या-भिवृद्ध्यर्थम् नवरात्र्यां हवन कर्मांगत्वेन आदौ निर्विघ्नता सिद्ध्यर्थं, शत्रुपराजय, आधि व्याधि,जरा पीडा मृत्यु परिहार द्वारा समस्त अरिष्ट,ग्रहपीडा दोष निवारणार्थं स्थिरलक्ष्मी , कीर्तिलाभ सिद्ध्यर्थं गणपति पूजनं कृत्वा दुर्गापूजांगत्व सिद्धयर्थे हवनं करिष्ये।
गणपति पूजा करें—
फूल चढ़ाये-
वक्रतुंड महाकाय सुर्यकोटीसमप्रभ । निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥ ॐ एकदंताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्॥ श्री गणेशाय नमः ध्यानार्थे पुष्पं समर्पयामि।
अब फूल अक्षत पकड़कर कहना चाहिए-
हे हेरम्ब त्वमेह्येहि अम्बिका त्र्यम्बकात्मज।
सिद्धिबुद्धिपते त्र्यक्ष लक्षलाभ पितः प्रभो॥
आवाहयामि पूजार्थं रक्षार्थं च मम क्रतौ।
इहागत्य गृहाण त्वं पूजां रक्ष क्रतुं च मे॥ श्री महागणपतये नमः श्री महागणपति मावाहयामि।
पुष्प अक्षत अर्पित करें ।
श्री गणेशाय नमः गंधम् समर्पयामि कहकर चंदन का तिलक लगाए।
अब दूर्वार्पण करे -
दूर्वाङ्कुरान् सुहरितान् अमृतान् मङ्गलप्रदान् ।
आनीतांस्तव पूजार्थं गृहाण गणनायक॥ श्री गणेशाय नमः दूर्वाम् समर्पयामि ।
श्री गणेशाय नमः धूपं आघ्रापयामि कहकर धूप दिखाये।
श्री गणेशाय नमः दीपं दर्शयामि कहकर दीप दिखाये।
श्री गणेशाय नमः नैवेद्यं निवेदयामि बोलकर नैवेद्य चढ़ाये।
हाथ जोड़कर कहे-
विश्वेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय। लंबोदराय सकलाय जगद्धिताय। नागाननाय सितसर्पविभूषाय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते।
सर्वेश्वराय शुभदाय सुरेश्वराय। भक्तप्रसन्न वरदाय नमो नमस्ते॥
कलश का स्पर्श करके कहे-
ॐमनो-जूतिर्जुषता-माज्यस्य बृहस्पति-र्यज्ञमिमं तन्नोत्वरिष्टं यज्ञ ᳪ समिमं दधातु। विश्वेदेवा स इह मादयंताम् ॐ प्रतिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः अस्मिन् कलशे वरुणं साङ्गम् सपरिवारम् सशक्तिकं आवाहयामि स्थापयामि प्रतिष्ठापयामि नमः।
ॐ गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिं कुरु।
इसके बाद कलश पर अक्षत फूल अर्पण करें -
नमो नमस्ते स्फटिकप्रभाय, सुश्वेतहाराय सुमङ्गलाय।
सुपाशहस्ताय झषासनाय, जलाधिनाथाय नमो नमस्ते॥
ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः सर्वोपचारार्थे अक्षत पुष्पाणि समर्पयामि नमः।
हाथ जोड़ प्रार्थना करे -
कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुद्र समाश्रितः।
मूले तु अस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः।
शिवः स्वयं त्वमेवासि विष्णुत्वं च प्रजापतिः।
आदित्यावसवो रुद्राः विश्वेदेवाः सपैतृकाः॥
त्वयि तिष्ठन्ति सर्वेऽपि यतः कामफलप्रदाः।
त्वत्प्रसादिमं यज्ञं कर्तुमीहे जलोद्भव।
सान्निध्यं कुरु मे देव प्रसन्नो भव सर्वदा॥
१६ मातृका पूजा - यज्ञ की रक्षा के लिए मातृका देवताओं की पूजा होती है ।
अक्षत व फूल लेकर कहे-
गौरी पद्मा शची मेधा सावित्री विजयाजया।
देवसेना स्वधा स्वाहा मातरो लोकमातर:।
धृति: पुष्टि: तथा तुष्टि आत्मन: कुलदेवता॥
अक्षत युक्त फूल उपरोक्त १६ मातृका मण्डल पर चढ़ा दें-
ॐ षोडश मातृकाभ्यो नमः पूजयामि, सर्वोपचारार्थे अक्षतपुुुष्पाणि समर्पयामि।
पुष्प लेकर सप्तघृत मातृका मण्डल पर (अथवा माँ दुर्गा पर) चढ़ायें -
ॐ श्रीर्लक्ष्मी-र्धृति-र्मेधा स्वाहा प्रज्ञा सरस्वती। माङ्गल्येषु प्रपूज्यन्ते सप्तैता घृतमातरः॥
ॐ भूर्भुवः स्वः वसोर्धारादेवताभ्यो नमः, पूजयामि। ॐ श्रियादि सप्तघृत मातृकाभ्यो नमः, सर्वोपचारार्थे पुुष्पम् समर्पयामि नमः।
पंचगव्य, सफेद या पीली सरसों डालकर यज्ञ कुंड के स्थान को शुद्ध करे।
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपिऽवा।
य: स्मरेत् पुंडरीकाक्षम् स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:॥
फूल चढ़ाते हुए कलश में ही ब्रह्मादि देवताओं की पूजा करे-
विनायकं गुरुं भानुं ब्रह्म विष्णु महेश्वरं। सरस्वतीं च प्रणमाम्यादौ सर्व कार्यार्थ सिद्धये।
दाहिने हाथ से कलश को स्पर्श करके आठ बार ब्रह्माजी की गायत्री से अभिमंत्रित करें - ॐ वेदान्तनाथाय विद्महे हिरण्यगर्भाय धीमहि तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात्।
अक्षत चढ़ायें-
ॐ भूर्भुवः स्वः देवी सावित्री-सरस्वती सहित चतुर्मुख श्रीब्रह्मदेव इहागच्छ इह तिष्ठ इह सन्निधेहि मम् पूजां गृहाण।
पुष्प चढ़ायें -
ॐ देवी सावित्री-सरस्वती सहित श्रीब्रह्मणे नमः अस्मिन कलशे श्री ब्रह्माणं आवाहयामि पूजयामि नमः।
कलश को तिलक लगायें व अक्षत पुष्प समर्पण करे -
ॐ ब्रह्मणे नमः। सर्वोपचारार्थे गंध अक्षत पुष्पाणि समर्पयामि नमः।
अब पानी से भरे कलश पर एक पात्र में चावल रखे और बीच में दुर्गादेवी की मूर्ति स्थापित की जाती है। इसी में श्री महाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वती-नवदुर्गाओं की पूजा की जाती है।
फिर फूल लेकर देवी का ध्यान करें व अर्पित करें-
ॐ अम्बे अम्बिके अम्बालिके न मा नयति कश्चन। ससस्त्यश्वक सुभद्रिकां कांपीलवासिनीम्॥
श्रीदुर्गादैव्यै नम: पूजयामि।
फिर निम्न मंत्रों से फूल चढ़ाते जायें चित्र हो तो तिलक लगाकर पूजा भी करें -
ॐ महाकाल्यै नमः पूजयामि
ॐ महालक्ष्म्यै नमः पूजयामि
ॐ महा सरस्वत्यै नमः पूजयामि
ॐ काली तारा महाविद्या षोडशी भुवनेश्वरी त्रिपुरभैरवी छिन्नमस्ता विद्या धूमावती तथा बगलामुखी मातंगी चैव दशमं कमलात्मिका। श्री दुर्गां पूजयाम्यद्य शुभम् कुर्वन्तु मे सदा।
ॐ काल्यादि दसमहाविद्याभ्यो नमः पूजयामि।
ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा , क्षमा शिवा, धात्री, स्वहा, स्वधा नमोस्तुते ॥
जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणी। जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तुते ॥
ॐ प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गां प्रणमाम्यहम्॥
ॐ नवदुर्गाभ्यो नमः पूजयामि।
ॐ श्री दुर्गा देव्यै नमः धूपं आघ्रापयामि कहकर धूप दिखाये।
ॐ श्री दुर्गा देव्यै नमः दीपं दर्शयामि कहकर दीप दिखाये।
ॐ श्री दुर्गा देव्यै नमः नैवेद्यम् निवेदयामि कहकर नैवेद्य अर्पित करें। एक-एक माला गायत्री मंत्र और नवार्ण मंत्र अर्थात् ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे का जप करें। फिर कहें- गुह्यातिगुह्य गोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपं।
सिद्धिर्भवतु मे देवि! त्वत्प्रसादान्महेश्वरि।
नवग्रह पूजन -
दुर्गा जी को फूल अर्पित करे-
ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्त कारी भानुः शशी भूमि सुतो बुधश्च गुरुश्च शुक्रः शनि राहुकेतवः सर्वे ग्रहाः शान्तिकराः भवन्तु ॐ सूर्यादिनवग्रहेभ्यो नमः पूजयामि
सप्तशती पुस्तक को सुगंधित पुष्प चढ़ाये-
ॐ नमो दैव्यै महादैव्यै शिवाय सततं नमः। नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम्॥
हवन में अग्नि स्थापना
• सबसे पहले तो कुण्ड की मृदा को कुशों द्वारा हल्का झाडकर शुद्ध करे।• इन कुशों को ईशान दिशा में रख कर कुण्ड की मिट्टी पर शुद्ध गोबर में जल मिलाकर छिड़के।
• श्रुवा के अग्रभाग से वेदी के बीच में दक्षिण तरफ से शुरु करके ३ रेखा खींचे जो कि पश्चिम से पूर्व की ओर हो।
• उस खींची हुई रेखाओं की मिट्टी को, अनामिका और अंगूठे से, थोड़ा सा लेकर ईशान दिशा में फेंक दे।
• फिर वेदी पर जल छिड़के।
• वेदी के पूर्वी भाग में उत्तर की ओर अग्रभाग करके कुशा रखे । फिर वेदी के दक्षिणी हिस्से में पूर्व की ओर अग्रभाग करके कुशा रखे। फिर वेदी के पश्चिम में उत्तर की ओर अग्रभाग करके कुशा रखे। पुनः वेदी के उत्तर में पूर्व की ओर अग्रभाग कर कुशा रखे।
कुंड में समिधा की लकड़ियाँ लगा दे। कुछ बाद में हवन के दौरान लगाते रहे।
अब हवन संकल्प करे -
ॐ गणपतिर्जयति विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्य ..... नाम संवत्सरे.... मासे .... पक्षे..... तिथौ..... वासरे...... ऋतौ (दक्षिणायने / उत्तरायणे) .... स्थाने....... गोत्रीय ..... शर्मा / वर्मा ..... राशि अहं श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वती-नवदुर्गा देवता प्रसन्नता प्राप्त्यर्थं सर्वबाधा प्रशमनार्थं, सर्व दोष निवारणार्थम् सर्वविध मनोकामना-सिद्धयर्थम् श्रीदुर्गादेवी प्रीतये यथाविधि होमं करिष्ये ॥
• तब या तो किसी अग्निहोत्र करने वाले ब्राहमण के यहाँ से (संभव हो तो कांसे के पात्र में) अग्नि लाये।
• या फिर हवन के लिए अग्नि स्थापना के लिए विशिष्ट लकड़ी पर लकड़ी रगड़कर अग्नि जलाई जाती है। इसे अग्निमंथन लकड़ी कहते हैं। होमकुंड में अग्निमंथन की लकड़ी, घी, चंदन और आम की लकड़ी डाली जाती है। हवन होने तक आग को जलते रहना चाहिए ।
• या फिर अगर अग्निमंथन की लकड़ी भी नहीं है तो माचिस से ही घी की बत्ती एक दिये में जलावे उस आग से एक अंगार का टुकड़ा ले या उस अग्नि से एक तीली जला दे फिर बुझाकर दक्षिण पश्चिम दिशा को
"क्रव्यादिभ्यो नमः"
बोलकर रखे।
आग को कुण्ड स्थित लकड़ियों में स्थापन करें -
ॐ मुखं यः सर्वदेवानां हव्यभुक् कव्यभुक तथा। पितृणां च नमस्तुभ्यं विष्णवे पावकात्मने। रक्त माल्याम्बर धरं रक्त पद्मासन स्थितम्। रौद्रवागीश्वरी रुपं वह्नि मावाहयाम्यहम्।
ॐ अग्निं प्रज्वलितं वन्दे जातवेदं हुताशनम्। सुवर्ण वर्णममल मनन्तं विश्वतो मुखम्। सर्वतः पाणि पादश्च सर्वतोऽक्षि शिरोमुखम्। विश्वरुपो महानग्निः प्रणीतः सर्वकर्मसु।
ॐ अग्ने शाण्डिल्य गोत्राय मेषध्वज मम सम्मुखो भव। प्रसन्नो भव। वरदो भव। ॐ पावक नाम्नि अग्नये नमः।
अब पावक नामक अग्नि की पूजा करे-
ॐ पावकाग्नये नम: गंधम् समर्पयामि कहकर चंदन के छींटे आग में दे।
ॐ पावकाग्नये नम: धूपं आघ्रापयामि कहकर धूप दिखाये।
ॐ पावकाग्नये नम: पुष्पम् समर्पयामि कहकर आग में फूल चढ़ाये।
ॐ पावकाग्नये नम: दीपं दर्शयामि कहकर दीप दिखाये।
ॐ पावकाग्नये नम: नैवेद्यं निवेदयामि बोलकर थोड़ा नैवेद्य आग में चढ़ाये।
अब घी से निम्न आहुतियां प्रदान करें । प्रत्येक आहुति देने के बाद स्रुवा में लगे शेष घी को उत्तर की ओर रखे पात्र में झाड़ता जाये—
ॐ प्रजापतये स्वाहा। इदं प्रजापतये इदं न मम।
ॐ इन्द्राय स्वाहा। इदमिन्द्राय इदं न मम।
ॐ अग्नये स्वाहा। इदमग्नये इदं न मम।
ॐ सोमाय स्वाहा। इदं सोमाय इदं न मम।
ॐ भूः स्वाहा। इदमग्नये इदं न मम।
ॐ भुवः स्वाहा। इदं वायवे इदं न मम।
ॐ स्वः स्वाहा। इदं सूर्याय इदं न मम।
इसके बाद गणपति आदि देवताओं के लिये आहुति देते जाये -
ॐ गं गणपतये स्वाहा।
ॐ गौर्यादि षोडशमातृकाभ्यो नमः स्वाहा।
ॐ श्रियादि सप्तघृत मातृकाभ्यो नमः स्वाहा।
ॐ दिव्ययोगादि - चतुषष्टियोगिनी - मातृकाभ्यो नमः स्वाहा।
ॐ भैरवाय नमः स्वाहा।
ॐ ब्रह्मणे नमः स्वाहा।
ॐ विष्णवे नमः स्वाहा।
ॐ शिवाय नमः स्वाहा।
ॐ इष्टदेवताभ्यो नमः स्वाहा ।
ॐ कुलदेवताभ्यो नमः स्वाहा ।
ॐ शैलपुत्र्यादि नवदुर्गाभ्यो नमः स्वाहा।
ॐ काल्यादि दश महा विद्याभ्यो नमः स्वाहा।
इस मंत्र से देवी शक्ति को 8 या 28 या फिर 108 आहुति दे-
ॐ अंबिकायै स्वाहा।
फिर गायत्री मंत्र से 8 आहुति दे ।
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे स्वाहा से ८ या २८ आहुति दे।
इसके बाद नीचे की दो आहुति और दे -
ॐ अम्बे अम्बिके-ऽम्बालिके न मा नयति कश्चन। ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पील-वासिनीम् - स्वाहा॥ इदं चण्ड्यै न मम।
ॐ दुर्गादैव्यै नमः स्वाहा॥
बलिदानसंकल्प -
ॐ गणपतिर्जयति विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्य ..... नाम संवत्सरे.... मासे .... पक्षे..... तिथौ..... वासरे...... ऋतौ (दक्षिणायने / उत्तरायणे) .... स्थाने....... गोत्रीय ..... शर्मा / वर्मा ..... राशि अहं कृतस्य दुर्गा पूजाख्येनकर्मणि सांगता सिद्धयर्थं बलिदानं करिष्ये।
श्री दुर्गा देव्यै नमः बलिं समर्पयामि इस तरह बोलकर देवी के सामने फल काटे। यही सात्विक बलिदान है। ब्राह्मण फल भी न काटे बस फल माँ के सामने रख दे।
पूर्णाहुति -
घी कुमकुम लगे सूखे नारियल में पान, सुपारी, घी, थोड़ी दही, गुड़ और शेष बची हवन सामग्री भरकर लाल कपड़े में लपेट कर हाथ में पकड कर पहले मंत्र पढ़े -
ॐ मूर्धानं दिवो अरतिं पृथिव्या वैश्वानरमृत आजात मग्निम्। कवि गं सम्राज - मतिथिञ्जनाना - मासन्ना पात्रां जनयन्त देवाः। ॐ पूर्णा दर्वि परापत सुपूर्णा पुनरापत वस्नेव विक्रीणा वहा इषमूर्ज गं शत क्रतो स्वाहा।
फिर आग में पूर्णाहुति दे और कहे-
गं इदमग्नये वैश्वानराय वसुरुद्रादित्येभ्यः शतक्रतवे सप्तवते अग्नये पुरुषाय श्रियै च न मम।
बचा हुआ घी इस मंत्र से डाले- ॐ वसोः पवित्रमसि शतधारं वसोः पवित्रामसि सहस्र-धारम्। देवस्त्वा सविता पुनातु वसोः पवित्रेण शत-धारेण सुप्वा कामधुक्षः स्वाहा, इदं वाजादिभ्यो-ऽग्नये विष्णवे रुद्राय सोमाय वैश्वानराय च न मम।
उत्तर पूजा -
यज्ञ करने के बाद देवी को ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे मंत्र से हल्दी कुमकुम अक्षत फूल अर्पित करे। धूप दिखाये।
फिर कपूर से आरती करके देवी को प्रसाद चढ़ाया जाता है।
यानि कानि च पापानि जन्मांतरकृतानि च। तानि तानि प्रणश्यन्ति प्रदक्षिण पदे पदे ॥
देवी की एक प्रदक्षिणा करते हैं, जगह न हो तो अपने स्थान पर एक बार गोल घूमते हैं।
एक कुंवारी कन्याओं और सुवासिनी स्त्री की पूजा करें।
प्रार्थना -
यज्ञकर्ता और परिवार के सभी सदस्यों पर कलश से पानी छिड़कने के बाद, वे देवी से प्रार्थना करते हैं कि वे सभी हवन का पुण्य प्राप्त करें। सब होमकुंड की राख को अपने माथे पर लगाएं।
गोप्रदान -
इस अवसर पर ब्राह्मण को सभी कर्मों के फल प्राप्त करने के लिए एक चांदी की गाय की छवि या दक्षिणा और कपड़े प्रदान किए जाते हैं।
देव विसर्जन -
कलश व कुण्ड पर अक्षत छिड़के
यान्तु देवगणास्सर्वे पूजामादाय मामकीम् इष्टकाम समृद्ध्यर्थ पुनरागमनाय च॥
आशीर्वाद -
यजमान हाथ जोड़े ब्राह्मण के लिये दक्षिणा रखे -
श्रीवर्चस्व मायुष्यमारोग्यमाविधा च्छोभमानं महीयते।
धनं धान्यं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरम् दीर्घमायुः॥
तर्पण और मार्जन -
एक बड़े बर्तन में दूध, पानी, फूल डालकर ११ बार आचमन से हाथ के अग्रभाग से जल छोड़ते हुए तर्पण करे-
ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे। श्रीदुर्गादेवीं तर्पयामि।
पानी में दूर्वा डालकर जल ११ बार मस्तक पर छिड़के-
ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे । श्री दुर्गादेवीं मार्जयामि॥
अब हाथ जोड़कर प्रार्थना करे -
ॐ महादेव्यै च विद्महे दुर्गायै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥ महिषासुरनिर्णाशि भक्तानां सुखदे नमः।
रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनी।
रूपं देहि जयं - देहि यशो देहि,द्विशो जहि।
शुम्भनिशुम्भ धूम्राक्षस्य मर्दिनी परमेश्वरी।
सर्वशत्रुविनाशिनी सर्वसौभाग्यदायिनी।
आवाहनं न जानामि न जानामि तवार्चनम्। पूजां श्चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वर॥
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियादिषु ।
न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम् ।।
शिव शिव शिव
विष्णुः विष्णुः विष्णुः।
इस प्रकार हवन पूरा हुआ।
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