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गवान की अतिशय कृपा है कि ज्योतिष शास्त्र के माध्यम से हमको भविष्य में आने वाली बाधाओं का तो पूर्वानुमान होता है ही बल्कि सम्बन्धित ग्रह के उपाय से हम उन बाधाओं से मुक्ति भी पा सकते हैं। जातक की कुंडली या ग्रह गोचर में शनि ग्रह के प्रतिकूल होने पर जातक को निम्न परेशानी रहती हैं - ऋण, दुःख, पैरों की तकलीफ, मन्दाग्नि, वात-वमन, शरीर में कम्पन, अकस्मात चोट-दुर्घटना, दीर्घकालीन, बीमारियां, शरीर की दुर्बलता, अपयश, मुकदमेबाजी में उलझाव, किसी से अकारण शत्रुता हो जाना और बुरी आदतें जैसे चोरी, सट्टा, नशे की लत लग जाना आदि कुप्रभाव देखने को मिलते हैं। कहा जाता है कि शनि ग्रह अपने आप किसी को परेशान नहीं करता बल्कि "दंडाधिकारी" होने से जातक को पिछले जन्म में किये गये बुरे कर्मों का फल देता है हम पिछले जन्म के कर्म तो नहीं बदल सकते परन्तु प्रायश्चित स्वरूप पूजा-साधना करके शनिदेव को प्रसन्न करके हम इस जन्म में आ रही बाधाओं से छुटकारा पा सकते हैं।
ज्येष्ठ मास की अमावस्या को शनिदेव का प्रादुर्भाव हुआ था इसलिए इस दिन शनि जयंती मनाई जाती है। शनि देव की अनुकूलता के लिए शनि जयंती के दिन अथवा शनिवार को उत्तम प्रकार से शनि देव की पूजा अर्चना करके उनके स्तोत्रों का पाठ करना चाहिए।
जहाँ मन्त्र उपासना विधिवत् सम्पन्न होने में अधिक समय लगता है तो वहीं अगर विधि ज्ञात हो तो स्तोत्रात्मक पूजन साधना सहज ही सम्पन्न हो जाती है। किसी भी देवता की उपासना में अष्टोत्तरशत नाम स्तोत्र से की गई उपासना का विशेष महत्व रहता है। क्योंकि एक तो 108 नाम की यह उपासना सरल होती है और दूसरा यह कि इससे नमन, पूजन, तर्पण, होम चार प्रकार की साधनाएं सम्पन्न हो सकती हैं।
शतार्चन साधना के अंतर्गत यहां जो शनि अष्टोत्तरशत नाम स्तोत्र प्रस्तुत है उसे शनैश्चर स्तवराज स्तोत्र कहा गया है। इस स्तोत्र के प्रारम्भ में शनि कवच भी है जिससे बाधाओं से रक्षा हो जाती है और उसके बाद शनिदेव के 111 नाम दिये गये हैं जिनसे नवग्रह जन्य पीडाएं दूर हो जाती हैं। इसीलिये इसे शनि-स्तोत्रों का राजा अर्थात स्तवराज कहा जाता है। प्रस्तुत पूजा को शनि जयंती के दिन अथवा शनिवार को किया जाना चाहिए।
⭐श्री शनैश्चर शतार्चन साधना विधान⭐
शनि देव की पूजा करने के लिए एक शनि प्रतिमा/चित्र या शनि यन्त्र की आवश्यकता होगी। यदि शनि देव का चित्र हो तो इसकी पूजा करने के लिए चित्र के सामने एक पात्र रखना होगा जिसमें पूजा की सामग्री अर्घ्य जल अक्षत आदि चढ़ायें। शनि यन्त्र पूजा सामग्री की दुकान से ले सकते हैं। अगर शनि चित्र या यन्त्र न मिले तो एक थाली में रोली - चन्दन द्वारा यहाँ दिये गये शनि यन्त्र का निर्माण कर लें। इसको भोजपत्र पर भी बना सकते हैं।
थाली पर बनाए गये शनि यन्त्र में अक्षत आदि से पूजन तो किया जा सकता है लेकिन अर्घ्य जल चढ़ाने से यन्त्र खराब हो जाएगा, इसलिए यन्त्र के सामने एक पात्र रखे जिस पर अर्घ्य जल चढ़ाया जाएगा।
⭐पूजन सामग्री - जल, कुमकुम, यज्ञ भस्म या धूप की राख, चन्दन पाउडर, काले तिल, अक्षत, थोड़े साबुत उड़द,
फूल= यदि नीले/काले फूल, लाजवन्ती अर्थात छुई मुई के फूल या शमी के पत्र पुष्प मिलें तो उत्तम है अन्यथा जो भी पुष्प मिलें,
नैवेद्य= लौंग, गुड़ लें तथा उड़द का कोई व्यन्जन भी रखें जैसे सरसों के तेल में तले हुए उड़द के बड़े, उड़द के पापड़ आदि, केला या अमरूद या अन्य कोई फल,
अर्घ्य पात्र, पूजा के दौरान एक मुख्य दीपक जलता रहे, सरसों के तेल का छोटा दीपक, धूप, आरती का दिया व कपूर या घी की बत्ती।
सावधानी- काली तन्त्र, प्रपंचसार, आगम तत्वविलास आदि के अनुसार साधना में शूद्र, स्त्री और जिनका जनेऊ/उपनयन नहीं हुआ है वो ॐ और स्वाहा तथा वेदमन्त्र नहीं बोलें। ॐ की जगह ह्रीं या औं बोला जा सकता है।सुविधा के लिए हम प्रायः बता देते हैं कि कौन सा वेदमन्त्र है।
⭐तैयारी - शनिदेव का चित्र या यन्त्र तैयार रखें। शतार्चन के लिए साबुत उड़द, सरसों दाने, काले तिल, अक्षत व पुष्पों को चन्दन युक्त करके एक पात्र में पहले ही तैयार करके रख लें। साथ ही एक पात्र जिसमें अर्घ्यजल अर्पित करेंगे।
⭐श्री शनिदेव की पूजन विधि -
• सर्वप्रथम तीन आचमन करे - ओऽम् श्री केशवाय नमः। श्री माधवाय नमः। श्री नारायणाय नमः। अब "श्री हृषीकेशाय नमः" बोलकर हाथ में जल लेकर भूमि पर छोड़ दे।
•जल छिड़ककर पवित्रीकरण करे - अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। य : स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।
•अब इस मन्त्र का उच्चारण कर आसन पर जल छिडकें - ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥
• संकल्प - हाथ में दूब फूल अक्षत जल लेकर संकल्प करे -
ओऽम् गणपतिर्जयति विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः हरि हरि नमः परमात्मने परब्रह्म पुरुषोत्तमाय ॐ तत्सत् श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य श्रीब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे भूप्रदेशे------प्रदेशे ---नगरे/ग्रामे----नाम्नि सम्वत्सरे सूर्य-(दक्षिणायने/उत्तरायणे)-----ऋतौ------मासे --------पक्षे , ----तिथौ, -----वासरे ------गोत्रोत्पन्न ------(नाम) अहं अद्य श्री शनैश्चर प्रीति द्वारा सकल ग्रह दोष शमनार्थं सकल सुख दीर्घायु आरोग्य विद्या बल बुद्धि उत्तरोत्तर-वृद्धयर्थं शनि ग्रहजन्य सकलपीर्थं श्री शनैश्चर अष्टोत्तरशत नामावल्याः श्री शनैश्चर यजनं कृत्वा श्री शनैश्चर अष्टोत्तरशत नाम स्तोत्रस्य पाठमहम् करिष्ये।
• गणेश पूजन - अक्षत-फूल लेकर हाथ जोड़ें और यह मन्त्र कहकर गणेशजी को चढ़ा दें - ॐ गजाननं भूतगणादि-सेवितं कपित्थ-जम्बूफल-चारुभक्षणम्। उमासुतं शोकविनाश-कारकं नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्॥
• पंचदेव स्मरण :- अब इस मन्त्र से पांच प्रमुख देवों को एक-एक पुष्प अर्पित करें- ओऽम् श्री गणेश विष्णु शिव दुर्गा सूर्येभ्यो नमः।
• श्री महामृत्युंजय शिव पूजा :- शिव जी को फूल अर्पित करे - "ओऽम् त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिम् पुष्टि वर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् श्रीमहामृत्युंजय शिवं पूजयामि नमः"
• श्री हनुमान पूजा :- हनुमान जी को फूल चढ़ाए - "अतुलित-बलधामं नमामि, हेमशैलाभ-देहं नमामि, दनुजवन-कृशानुं नमामि, ज्ञानिनामग्र-गण्यम् नमामि। सकलगुण-निधानं नमामि, वानराणामधीशं नमामि रघुपति-प्रियभक्तं नमामि, वातजातं नमामि॥ श्री हनुमते नमः पूजयामि"
• नवग्रह स्मरण - हाथ जोड़कर स्तुति करे -
ब्रह्मा-मुरारिस्त्रिपुरांत-कारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च। गुरुश्च शुक्रः शनि-राहु-केतवः सर्वे ग्रहाः शान्तिकरा भवन्तु॥
• श्री शनि पूजन - अब शनिदेव का पूजन करे। किसी सामग्री का अभाव हो तो उसकी जगह अक्षत चढ़ा दे।
1) ध्यान- नीलद्युतिः शूलधरः किरीटी गृध्रस्थितस्त्रासकरो धनुष्मान्। चतुर्भुजः सूर्यसुतः प्रशान्तः वन्दे सदा अभीष्ट करम् वरेण्यम्। (फूल चढ़ा दें)
(नीली आभा वाले शूल धारण करने वाले, गिद्ध पर सवार, दुष्टों को भय देने वाले,धनुष-धारी, चतुर्भुज, सूर्यपुत्र, निश्चल व शान्त, अभीष्ट देने वाले शनिदेव की मैं वन्दना करता हूँ)
2)आवाहन- हाथ में अक्षत-फूल ले -
आगच्छ भगवन् देव स्थाने चात्र स्थिरो भव ।
यावत् पूजां करिष्यामि तावत् त्वं संनिधौ भव॥
ॐ शन्नो-देवीरभिष्टयऽआपो-भवन्तु-पीतये। शं यो रभिस्रवन्तु नः। ॐ भू्र्भुवः स्वः सौराष्ट्र-देशोद्भव काश्यप-गोत्र शनैश्चर इहागच्छ, इह तिष्ठ , मम पूजां गृहाण! ॐ शं शनैश्चराय नम: श्री शनैश्चरं आवाहयामि स्थापयामि नमः। (अक्षत पुष्प चढाये)
3)आसन -
रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्वासौख्यकरं शुभम्। आसनं च मया दत्तं गृहाण शनैश्चर। ॐ शं शनैश्चराय नम:। आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि। (अक्षत चढ़ा दें)
4)अर्घ्य - कुमकुम,चन्दन, काले तिल, अक्षत-पुष्प से युक्त अर्घ्य अर्पित करें -
अर्घ्यं गृहाण नीलांश! गन्धपुष्पाक्षतैः सह। करुणां कुरु मे देव! गृहाणार्घ्यं नमोस्तु ते। ॐ शं शनैश्चराय नम:, अर्घ्यं समर्पयामि।
5)स्नान-
गंगा सरस्वती रेवा पयोष्णी नर्मदा जलैः।
स्नापितोऽसि मया देव तथा शान्तिं कुरुष्व मे॥
ॐ शं शनैश्चराय नम: । स्नानीयं जलं समर्पयामि (आचमनी से स्नानीय जल अर्पित करें)
श्री शनैश्चराय नमः स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि। (आचमनीय जल समर्पित करे।)
6) काला वस्त्र अर्पित करें -
शीतवातोष्ण-संत्राणं लज्जायाः रक्षणं परम् ।
देहालंकरणं वस्त्रमत: शान्तिं प्रयच्छ मे ॥
ॐ शं शनैश्चराय नम:। वस्त्रं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि।
7)गन्ध-
श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढयं सुमनोहरम् ।
विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ शं शनैश्चराय नम: । चन्दनं समर्पयामि । (चन्दन चढाये व इसके साथ ही यज्ञ भस्म/ धूप की राख भी चढा दें)
8)अक्षत-
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुंकुमाक्ता: सुशोभिता:।
मया निवेदिता भक्त्या गृहाण शनैश्चर॥
ॐ शं शनैश्चराय नम:। अक्षतान् समर्पयामि।
(कुमकुम, सरसों दाने, अक्षत,काले तिल व साबुत उड़द चढाये ।)
9)पुष्प-
माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो।
मयानीतानि पुष्पाणि गृहाण शनैश्चर ॥
ॐ शं शनैश्चराय नम: । पुष्पं समर्पयामि। (फूल समर्पित करे।)
थाली पर चन्दन से निर्मित शनि यन्त्र |
10)⭐श्री शनि शतार्चन साधना - एक पात्र जिसमें उड़द + काले तिल, अक्षत व पुष्प थे उन्हें नीचे दिये गये शनिदेव के 108 नाम मन्त्रों से अर्पित करते हुए पूजा करते जाएं। पूजन के लिए प्रत्येक मन्त्र में "पूजयामि" भी लगा लें ।
1. ॐ शौरये नमः पूजयामि।
2. ओऽम् शनैश्चराय नमः पूजयामि।
3. ओऽम् कृष्णाय नमः पूजयामि।
4. ॐ नीलोत्पल-निभाय नमः।
5. ॐ शनये नमः।
6. ॐ शुष्कोदराय नमः।
7. ॐ विशालाक्षाय नमः।
8. ॐ दुर्निरीक्ष्याय नमः।
9. ॐ विभीषणाय नमः।
10. ॐ शितिकण्ठ-निभाय नमः।
11. ॐ नीलाय नमः।
12. ॐ छाया-हृदय-नन्दनाय नमः।
13. ॐ कालदृष्टये नमः।
14. ॐ कोटराक्षाय नमः।
15. ॐ स्थूल-रोम्णे नमः।
16. ॐ वली-मुखाय नमः।
17. ॐ दीर्घाय नमः।
18. ॐ निर्मांस-गात्राय नमः।
19. ॐ शुष्काय नमः।
20. ॐ घोराय नमः।
21. ॐ भयानकाय नमः।
22. ॐ नीलांशवे नमः।
23. ॐ क्रोधनाय नमः।
24. ॐ रौद्राय नमः।
25. ॐ दीर्घश्मश्रवे नमः।
26. ॐ जटाधराय नमः।
27. ॐ मन्दाय नमः।
28. ॐ मन्दगतये नमः।
29. ॐ खंजाय नमः।
30. ॐ तप्ताय नमः।
31. ॐ संवर्तकाय नमः।
32. ॐ यमाय नमः।
33. ॐ ग्रहराजाय नमः।
34. ॐ करालाय नमः।
35. ॐ सूर्यपुत्राय नमः।
36. ॐ रवये नमः।
37. ॐ शशिने नमः।
38. ॐ कुजाय नमः।
39. ॐ बुधाय नमः।
40. ॐ गुरवे नमः।
41. ॐ काव्याय नमः।
42. ॐ भानुजाय नमः।
43. ॐ सिंहिका-सुताय नमः।
44. ॐ केतवे नमः।
45. ॐ देवपतये नमः।
46. ॐ बाहवे नमः।
47. ॐ कृतान्ताय नमः।
48. ॐ नैर्ऋताय नमः।
49. ॐ कुशिने नमः।
50. ॐ मरूते नमः।
51. ॐ कुबेराय नमः।
52.ॐ ईशानाय नमः।
53. ॐ सुराय नमः।
54. ॐ आत्मभुवे नमः।
55. ॐ विष्णवे नमः।
56. ॐ हरये नमः।
57. ॐ गणपतये नमः।
58. ॐ कुमाराय नमः।
59. ॐ कामाय नमः।
60. ॐ ईश्वराय नमः।
61. ॐ कर्त्रे नमः।
62. ॐ हर्त्रे नमः।
63. ॐ पालयित्रे नमः।
64. ॐ राज्यघ्ने नमः।
65. ॐ राज्यदायकाय नमः।
66. ॐ छायासुताय नमः।
67. ॐ श्यामलाङ्गाय नमः।
68. ॐ धनहर्त्रे नमः।
69. ॐ धनप्रदाय नमः।
70. ॐ क्रूरकर्म-विधात्रे नमः।
71. ॐ सर्व-कर्मावरोधकाय नमः।
72.ॐ तुष्टाय नमः।
73. ॐ रूष्टाय नमः।
74. ॐ कामरूपाय नमः।
75. ॐ कामदाय नमः।
76.ॐ रवि-नन्दनाय नमः।
77.ॐ ग्रहपीडा-हराय नमः।
78. ॐ शान्ताय नमः।
79. ॐ नक्षत्रेशाय नमः।
80. ॐ ग्रहेश्वराय नमः।
81.ॐ स्थिरासनाय नमः।
82.ॐ स्थिर-गतये नमः।
83.ॐ महाकायाय नमः।
84.ॐ महाबलाय नमः।
85.ॐ महाप्रभवे नमः।
86.ॐ महाकालाय नमः।
87.ॐ कालात्मने नमः।
88. ॐ काल-कालकाय नमः।
89. ॐ आदित्य-भयदात्रे नमः।
90. ॐ मृत्यवे नमः।
91. ॐ आदित्य-नन्दनाय नमः।
92. ॐ शतभिदे नमः।
93. रुक्ष-दयिताय नमः।
94.ॐ त्रयोदशी-तिथि-प्रियाय नमः।
95. ॐ तिथ्यात्मने नमः।
96. ॐ तिथि-गणनाय नमः।
97. ॐ नक्षत्रगण-नायकाय नमः।
98. ॐ योग-राशि-मुहूर्तात्मने नमः।
99. ॐ कर्त्रे नमः।
100. ॐ दिनपतये नमः।
101. ॐ प्रभवे नमः।
102. ॐ शमी-पुष्पप्रियाय नमः।
103. ॐ श्यामाय नमः।
104. ॐ त्रैलोक्य-भयदायकाय नमः।
105. ॐ नीलवाससे नमः।
106.ॐ क्रिया-सिन्धवे नमः।
107. ॐ नीलाञ्जन-चयच्छवये नमः।108. ॐ सर्वरोग-हराय नमः।
109. ॐ देवाय नमः।
110. ॐ सिद्धाय नमः।
111. ॐ देवगण-स्तुताय नमः।
⭐शनि तर्पण साधना - उपरोक्त नाम मन्त्रों द्वारा शनि देव का तर्पण भी किया जा सकता है, इसके लिए नाम मन्त्रों में तर्पयामि जोड़ना होगा और एक-एक मन्त्र बोलकर शनिदेव के सामने रखे पात्र पर एक आचमनी जल या दूध या शहद मिश्रित जल चढ़ाना होगा, जैसे- ओऽम् सौरये नमः तर्पयामि। ओऽम् शनैश्चराय नमः तर्पयामि। ओऽम् कृष्णाय नमः तर्पयामि....आदि
11) धूप-
वनस्पति-रसोद्भूतो गन्धाढ्यो गन्ध उत्तम: ।
आघ्रेय: सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ शं शनैश्चराय नम:। धूपमाघ्रापयामि । (धूप आघ्रापित करे ।)
12) दीप- सर्षपतैल वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया। दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम् ॥
ॐ शं शनैश्चराय नम: । दीपं दर्शयामि । (सरसों के तेल का दीप दिखाये तथा हाथ धो ले।)
13) नैवेद्य- शनि देव को नैवेद्य निवेदित करे -
शर्कराखण्ड-खाद्यानि दधि-क्षीर-घृतानि च।
आहारं भक्ष्य-भोज्यं च नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ शं शनैश्चराय नम:। नैवेद्यं निवेदयामि, मध्ये पानीयं जलं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि।
(मध्येपानीय जल व आचमनीय जल अर्पित करे।)
14) अखण्ड ऋतुफल-
इदं फलं मया दत्तं स्थापितं पुरतस्तव।
तेन मे सफला-वाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि॥
ॐ शं शनैश्चराय नम:। अखण्ड-ऋतुफलं समर्पयामि। (केला,अमरूद आदि फल अर्पित करे ।)
15) मन्त्र पुष्पांजलि - हाथ में कुछ फूल पकड़ कर हाथ जोड़कर बोले-
यः पुरा राज्य-भ्रष्टाय नलाय प्रददो किल। स्वप्ने शौरिः स्वयं मन्त्रं सर्वकाम-फलप्रदम्॥
क्रोडं नीलाञ्जन-प्रख्यं नील-जीमूत-सन्निभम्। छायामार्तण्ड-सम्भूतं नमस्यामि शनैश्चरम्॥
ॐ नमोऽर्कपुत्राय शनैश्चराय नीहार-वर्णाञ्जन-नीलकाय। स्मृत्वा रहस्यं भुवि मानुषत्वे फलप्रदो मे भव सूर्यपुत्र॥
नमोऽस्तु प्रेतराजाय कृष्ण-वर्णाय ते नमः। शनैश्चराय क्रूराय सिद्धि-बुद्धि-प्रदायिने॥ भग-भवाय विद्महे मृत्यु-रूपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोदयात्॥ ॐ शं शनैश्चराय नमः। मन्त्र पुष्पांजलिं समर्पयामि। (फूल चढ़ा दें)
अब मूल स्तोत्र का पाठ करे-
श्री शनि स्तवराज स्तोत्रम्
नीलांजन-समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छाया मार्तण्ड सम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।
(जो नीले काजल - सी आभा वाले, सूर्यपुत्र, यमराज के बड़े भाई हैं, छाया और सूर्य से उत्पन्न उन शनिदेव को मैं नमस्कार करता हूँ।)
श्री नारद उवाच
ध्यात्वा गणपतिं राजा धर्मराजो युधिष्ठिरः। धीरः शनैश्चरस्येमं चकार स्तवमुत्तमम्॥
(नारदजी बोले - पहले श्री गणेश जी और धर्मराज युधिष्ठिर का मन में ध्यान करने के बाद धैर्यवान व्यक्ति शनि देव के इस उत्तम स्तव का पाठ करे)
हाथ में जल लेकर यह विनियोग पढ़कर जल भूमि पर गिराए - ॐ अस्य श्री शनि-स्तवराजस्य सिन्धुद्वीप ऋषिः, गायत्री छन्दः, श्री शनैश्चर देवता, श्री शनैश्चर प्रीत्यर्थे पाठे विनियोगः॥
अब ऋष्यादिन्यास करे - सिन्धुद्वीप ऋषये नमः शिरसि। (शिर का स्पर्श)
श्री गायत्री छन्दसे नमः मुखे। (मुख का स्पर्श करे)
श्री शनैश्चर देवताय नमः हृदि। (हृदय का स्पर्श करे)
श्री शनैश्चर-प्रीत्यर्थे स्तोत्र-पाठे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे।( सभी अंगों का स्पर्श करे)
हाथ में फूल लेकर स्तोत्र का पाठ करे -
ओऽम्
शिरो मे भास्करः पातु भालं छाया-सुतोऽवतु। कोटराक्षो दृशौ पातु शिखिकण्ठ-निभः श्रुती॥
घ्राणं मे भीषणः पातु मुखं वलिमुखोऽवतु। स्कन्धौ संवर्तकः पातु भुजौ मे भयदोऽवतु॥
सौरिर्मे हृदयं पातु नाभिं शनैश्चरोऽवतु। ग्रहराजः कटिं पातु सर्वतो रविनन्दनः॥
पादौ मन्दगतिः पातु कृष्णः पात्वखिलं वपुः॥
रक्षामेतां पठेन्नित्यं सौरेर्नाम-बलैर्युताम्। सुखी पुत्री चिरायुश्च स भवेन्नात्र संशयः॥
(सूर्यपुत्र शनिदेव के नामों के बल से युक्त इस रक्षा स्तोत्र को नित्य पढ़ने से सुखी, पुत्रवान व लम्बी उम्र वाला हो जाता है इसमें संशय नहीं है)
(अष्टोत्तरशत नामानि :- सामान्यतः इसका एक बार पाठ करे लेकिन पर्याप्त समय हो तो इसका 11 बार पाठ करे-)
शौरिः शनैश्चरः कृष्णो नीलोत्पल-निभः शनिः। शुष्कोदरो विशालाक्षो दुर्निरीक्ष्यो विभीषणः॥
शितिकण्ठ-निभो नीलश्छाया-हृदय-नन्दनः। कालदृष्टिः कोटराक्षः स्थूल-रोमा वली-मुखः॥
दीर्घो निर्मांस-गात्रस्तु शुष्को घोरो भयानकः। नीलांशुः क्रोधनो रौद्रो दीर्घश्मश्रुर्-जटाधरः॥
मन्दो मन्दगतिः खंजस्तप्तः संवर्तको यमः। ग्रहराजः कराली च सूर्यपुत्रो रविः शशी॥
कुजो बुधो गुरुः काव्यो भानुजः सिंहिका-सुत। केतुर्देवपतिर्बाहुः कृतान्तो नैर्ऋतस्तथा॥
कुशी मरूत्कुबेरश्च ईशानः सुर आत्मभूः। विष्णुर्हरो गणपतिः कुमारः काम ईश्वरः॥
कर्ता हर्ता पालयिता राज्यहा राज्यदायकः। छायासुतः श्यामलाङ्गो धनहर्ता धनप्रदः॥
क्रूरकर्म-विधाता च सर्व-कर्मावरोधकः। तुष्टो रूष्टः कामरूपः कामदो रविनन्दनः॥
ग्रहपीडा-हरः शान्तो नक्षत्रेशो ग्रहेश्वरः। स्थिरासनः स्थिर-गतिर्महा-कायो महाबलः॥
महाप्रभो महाकालः कालात्मा काल-कालकः। आदित्य-भयदाता च मृत्युरादित्य-नंदनः॥
शतभिद्रुक्ष-दयिता त्रयोदशी-तिथि-प्रियः। तिथ्यात्मा तिथि-गणनो नक्षत्रगण-नायकः॥
योग-राशिर्मुहूर्तात्मा कर्ता दिनपतिः प्रभुः। शमी-पुष्पप्रियः श्यामस्त्रैलोक्यभय-दायकः॥
नीलवासाः क्रिया-सिन्धुर्नीलाञ्जन-चयच्छविः। सर्वरोग-हरो देवः सिद्धो देवगण-स्तुतः॥
(फलश्रुति)
अष्टोत्तरशतं नाम्नां सौरेश्छाया-सुतस्य यः। पठेन्नित्यं तस्य पीडा समस्ता नश्यति ध्रुवम्॥
(जो भी छायासुत सूर्यपुत्र के ये 108 नाम नित्य पढ़ता उसकी समस्त पीडाओं का नाश होता है)
कृत्वा पूजां पठेन्मर्त्यो भक्तिमान् यः स्तवं सदा।
विशेषतः शनिदिने पीडा तस्य विनश्यति॥
(भूलोक में विशेषकर शनिवार के दिन शनि देव की पूजा करके जो भक्तिवान व्यक्ति इस स्तोत्र का पाठ करता है उसकी शनि ग्रह जन्य पीडा का विनाश होता है)
जन्मलग्ने स्थितिर्वापि गोचरे क्रूर-राशिगे।
दशासु च गते सौरेस्तदा स्तवमिमं पठेत्॥
(यदि शनि जन्म लग्न में हो या फिर गोचर में क्रूर राशि में स्थित होने से अशुभ फल मिल रहा हो, शनि की दशा हो तब यह स्तोत्र पढ़े)
पूजयेद्यः शनिं भक्त्या शमी-पुष्पाक्षताम्बरैः।
विधाय लौहप्रतिमां नरो दुःखाद्विमुच्यते।
बाधा चान्यग्रहाणां च यः पठेत्तस्य नश्यति॥
(जो शनिदेव की लोहे की प्रतिमा को भक्तिपूर्वक शमी,पुष्प, अक्षत से पूजता है वह दुख से मुक्ति पाता है, इस स्तोत्र के पाठ से अन्य ग्रहों द्वारा उत्पन्न बाधाएं भी नष्ट होती हैं)
भीतो भयाद्विमुच्येत बद्धो मुच्येत बन्धनात्। रोगी रोगाद्विमुच्येत नरः स्तवमिमं पठेत्।। पुत्र-बान्धव-वान् श्रीमान् जायते नात्र संशयः।।
(इस स्तोत्र के पढ़ने से भयभीत व्यक्ति का डर दूर होता है, रोगी रोगमुक्त होता है, वह पुत्रवान, बन्धु युक्त, धनवान हो जाता है इसमें कोई संशय नहीं है)
श्री नारद उवाच
स्तवं निशम्य पार्थस्य प्रत्यक्षोऽ भूच्छनैश्चरः।
दत्त्वा राज्ञे वरः कामं शनिश्चान्तर्दधे तदा।।
(नारद जी बोले - अर्जुन ने जब इस प्रकार स्तुति की तो शनि देव उनके समक्ष प्रत्यक्ष हो गये और राजा को कामना पूर्ति का वर देकर अंतर्धान हो गये)
॥श्री भविष्य महापुराणे नारद प्रोक्तं शनैश्चर-स्तवराजनाम श्रीशन्यष्टोत्तरशत नाम स्तोत्रम् शुभमस्तु ओऽम् तत्सत्॥
16) हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थना करे -
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं शनैश्चर।
यत्पूजितं मया देव परिपूर्ण तदस्तु मे ॥
यदक्षर पदभ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत् ।
तत्सर्वं क्षम्यतां देव प्रसीद शनैश्चर॥
17) दक्षिणा-
दक्षिणा प्रेम-सहिता यथाशक्ति-समर्पिता।
अनन्त-फल-दामेनां गृहाण शनैश्चर॥ ॐ शं शनैश्चराय नम:। द्रव्यदक्षिणां समर्पयामि। (दक्षिणा अर्पित करे।)
18) कर्पूर से आरती करे-
कदलीगर्भ-सम्भूतं कर्पूरं तु प्रदीपितम् ।
आरार्तिकमहं कुर्वे पश्य मे वरदो भव ॥
ॐ शं शनैश्चराय नम:। आरार्तिकं समर्पयामि।
•अक्षत लेकर शनि विग्रह पर छिड़के-
ओऽम् अनेन यथाशक्ति कृतेन शनि यजन कर्मणाः श्री शनैश्चरः प्रीयन्तां, न मम।
विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः।
⭐शनि हवन - उपरोक्त नाम मन्त्रों द्वारा जो जनेऊ पहनने वाले हों और नित्य गायत्री जपने वालों द्वारा शनि देव के निमित्त हवन भी सम्पन्न किया जा सकता है, इसके लिए उपरोक्त मन्त्रों में स्वाहा जोड़ना होगा और एक-एक मन्त्र से आहुति देता जाए, जैसे- ओऽम् सौरये नमः स्वाहा। ओऽम् शनैश्चराय नमः स्वाहा। ओऽम् कृष्णाय नमः स्वाहा....आदि। आहुति खीर या धोकर सुखाए काले तिल, घृतयुक्त शमी की दी जा सकती है।
इस प्रकार यह भविष्य पुराण में वर्णित शनि देव के अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र द्वारा साधना की विधि विस्तृत रूप से प्रस्तुत की गई। यदि शीघ्रता हो और विस्तृत पूजा का समय न हो तो केवल विनियोग न्यास व ध्यान करके अष्टोत्तरशत नाम स्तोत्र या अष्टोत्तरशत नामावली का हाथ जोड़कर पाठ मात्र ही कर ले इससे भी शनि देव की नमस्कारात्मक व स्तोत्रात्मक उपासना सम्पन्न हो जाती है। शनिदेव की अष्टोत्तरशत नामों द्वारा पूजा करने व इस नाम मन्त्रों के जप की साधना करने से भयमुक्ति, रोगमुक्ति के साथ केवल शनि ग्रह की पीडा ही नहीं बल्कि अन्य ग्रहों द्वारा उत्पन्न बाधाओं का भी निवारण होता है ऐसा फलश्रुति में भी स्पष्ट रूप से लिखा गया है। शनि देव की कृपा दृष्टि से आपकी ग्रह पीडा का निवारण हो ऐसी प्रार्थना करते हुए शनि जयंती पर शनिदेव के चरणों में हमारा अनेकों बार प्रणाम...
मुझे एकादशी व्रत का उद्यापन करना है तो मैं इस महीने में उद्यापन कर सकता हूं क्या ? अब तो खरमास आरंभ होगा । तो क्या मुझे अगले महीने उद्यापन करना चाहिए ? कृपा मेरा मार्गदर्शन करें 🙏
जवाब देंहटाएंअभी यानि फाल्गुन शुक्ल 11 (आमलकी एकादशी) को तो होलाष्टक चल रहा है और चैत्र कृष्ण पक्ष में भी उद्यापन ठीक नहीं कहा जाता..... इसलिए मेरी सलाह है कि आप उद्यापन चैत्र शुक्ल 11 या वैशाख या ज्येष्ठ की एकादशी को कीजियेगा..
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