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कमला महाविद्या की स्तोत्रात्मक उपासना

धूमावती माँ अपने भक्तों के कल्याण हेतु रहती हैं सदा तत्पर


श्री
शनिदेव की जयंती के सात दिन बाद की तिथि अर्थात् ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि धूमावती महाविद्या की जयन्ती तिथि है। जो व्यक्ति तंत्र के विषय में जानकारी रखते हैं वे दस महाविद्याओं से भी अवश्य परिचित होंगे। इन्हीं दस महाविद्याओं में से एक महाविद्या हैं धूमावती महाविद्या। ये विश्व की अमांगल्यपूर्ण-अवस्था की अधिष्ठात्री शक्ति हैं। वृद्धारूपा, भूख-प्यास से व्याकुल, अत्यंत रूक्ष नेत्रों वाली, विरूपा और भयानक आकृति वाली होती हुई भी अत्यंत शक्तिमयी धूमावती देवी अपने भक्तों के कल्याण हेतु सदा तत्पर रहती हैं। इनका ध्यान इस प्रकार है:

धूमावती जी का ध्यान 
विवर्णा चंचला दुष्टा दीर्घा च मलिनाम्बरा। 
विमुक्तकुन्तला रूद्रा विधवा विरलद्विजा॥ 
काकध्वजरथारूढा विलम्बितपयोधरा। 
शूर्पहस्तातिरुक्षा च धूतहस्ता वरानना॥ 
प्रवृद्धघोषणा सा तु भृकुटिकुटिलेक्षणा। 
क्षुत्पिपासार्दिता नित्यं भयदा कलहास्पदा॥

अर्थात् धूमावती जी, विवर्णा, चंचला, दुष्टा व दीर्घ तथा गलित अंबर [वस्त्र] धारण करने वाली, खुले केशों वाली, विरल दांत वाली, विधवा रूप में रहने वाली, काक ध्वज वाले रथ पर आरूढ़, लंबे-लंबे पयोधरों वाली, हाथ में सूप लिए हुये, अत्यंत रूक्ष नेत्रों वाली, वर देने वाली, कंपित हस्ता, लंबी नासिका वाली, कुटिल स्वभाव व कुटिल नेत्रों से युक्त, क्षुधा - पिपासा से पीड़ित, सदैव भयप्रदा व कलह की निवास भूमि हैं।
काकध्वजरथारूढा विलम्बितपयोधरा। शूर्पहस्तातिरुक्षा च धूतहस्ता वरानना॥ अर्थात् देवी धूमावती काक ध्वज वाले रथ पर आरूढ़, लंबे-लंबे पयोधरों वाली, हाथ में सूप लिए हुये, अत्यंत रूक्ष नेत्रों वाली, वर देने वाली हैं।
महाविद्या धूमावती
ये विधवा समझी जाती हैं अतः इनके साथ पुरुष का वर्णन नहीं है। यहाँ पुरुष अव्यक्त है। चैतन्य, बोध आदि अत्यंत तिरोहित होते हैं। इनके प्रादुर्भाव के विषय में कथा है कि एक बार देवी पार्वती भगवान शिव के साथ कैलाश पर विराजमान थीं। उन्हें अकस्मात् बहुत भूख लगी और उन्होंने महादेवजी से कुछ खाने की इच्छा प्रकट की। महादेव जी चुप रह गए। जब कई बार निवेदन करने पर भी शिव जी ने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया तो उन्होंने क्रोध से भर कर भगवान शिव को ही निगल लिया। ऐसा करने के फलस्वरूप पार्वती के शरीर से धूमराशि निकलने लगी। और भगवान शिव ने अपनी माया द्वारा प्रकट हो देवी पार्वती से कहा,"आपकी मनोहर मूर्ति धूम्र से व्याप्त शरीर के कारण 'धूमावती' या 'धूम्रा' कहलाएगी।"

धूमावती महाविद्या का मंत्र एवं यन्त्र

 धूमावती मां के मन्त्र उग्र हैं अतः इनके मंत्र व साधना विधान का अनुक्रम योग्य गुरू के मुख से ग्रहण करना चाहिये।  गायत्री मन्त्र गायन मात्र से तारण करता है। अतः यहां महाविद्या धूमावती का तांंत्रिक गायत्री मंत्र प्रस्तुत है-
॥धूमावत्यै च विद्महे संहारिण्यै च धीमहि तन्नो धूमा प्रचोदयात्॥
इस मंत्र का भाव है- "हम भगवती धूमावती को जानते हैं और उन दुष्टों का संहार करने वाली देवी का ही ध्यान करते हैं। वे देवी हमारी चित्तवृत्ति को अपनी ही लीला में लगाये रखें।

धूमावती जयंती पर माँ धूमावती के साधारण उपासकों को इसी भाव के इस साथ धूमावती गायत्री मन्त्र का मन्दिर में भगवान के आगे बैठकर हाथ जोड़कर 5 मिनट या 15 मिनट मानसिक जप करना चाहिए। श्रीयन्त्र भी माता धूमावती का यन्त्र है तथा तन्त्र ग्रंथोक्त धूमावती माता का यंत्र यह है-
धूमावती यंत्र। वृद्धारूपा, भूख-प्यास से व्याकुल, अत्यंत रूक्ष नेत्रों वाली, विरूपा और भयानक आकृति वाली होती हुई भी अत्यंत शक्तिमयी धूमावती देवी अपने भक्तों के कल्याण हेतु सदा तत्पर रहती हैं।
धूमावती महाविद्या यंत्र

धूमावती महाविद्या बारे जानकारी प्रायः बहुत कम पढने-सुनने को मिलती है। क्योंकि धूमावती महाविद्या के साधक बहुत कम मिलते हैं और धूमावती साधना गुरुगम्य होती है। बिना गुरु के सान्निध्य में इनकी साधना करने से विपरीत प्रभाव भी पड़ सकता है, यही कारण है कि लोग घबराते हैं व कम लोग ही धूमावती जी से परिचित हैं। 
मुख्यतः इनकी साधना पुत्र लाभ, धन रक्षा, शत्रु स्तम्भन और शत्रुनाश के लिए की जाती है।कहते हैं इनके विधवा स्वरूप के कारण गृहस्थ स्त्रियों को इनकी साधना नहीं करनी चाहिए पर मंदिर में दूर से नमस्कार कर सकती हैं। गुरु दीक्षा के अभाव में इन महाविद्या की मंत्र साधना नहीं करनी चाहिए पर "स्तोत्रम् कस्य न तुष्टये" के अनुसार स्तोत्रात्मक स्तुति की जा सकती है।धूमावती हृदय, धूमावती कवच, धूमावती अष्टोत्तरशत, सहस्रनाम आदि कई स्तोत्र हैं नाम जप सदैव ही कल्याणकारी होता है।
इनकी मन्त्रात्मक साधना के उग्र होने से उस समय विचित्र अनुभव होते हैं। अतः मान्यता है कि इनकी मंत्र-साधना गुरू के बिना व घर पर नहीं करनी चाहिये। महाविद्या उपासक नवरात्र के अवसर पर दस दिन में क्रम से हर दिन एक महाविद्या की स्तोत्रात्मक-अर्चनात्मक आराधना करते हैं, अतएव नवरात्र के अवसर पर - सप्तमी तिथि को और धूमावती महाविद्या की जयंती तिथि (ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी) पर धूमावती माता की उपासना करते हैं। अतः मेरी आपको यही सलाह है कि घर में सौम्य उपासना हेतु इनकी केवल स्तोत्रात्मक उपासना करें। आप श्री धूमावती महाविद्या की शतार्चन उपासना विधि भी देख सकते हैं।
मान्यता है कि आश्विन शुक्ला सप्तमी को श्रीवराहावतार धारी विश्व संरक्षक भगवान विष्णु धूमावती जी से उद्भूत हुए थे। जिन धूमावती मां की उपासना करने मात्र से शत्रुता का नाश होता है उन धूमावती महाविद्या की जयंती तिथि पर माँ धूमावती के श्री चरणों में हमारा सादर प्रणाम।


टिप्पणियाँ

  1. मुझे 24 एकादशी व्रत करके उद्यापन करना है तो क्या मुझे 25वीं एकादशी को उद्यापन करना होगा या 24वीं एकादशी को।

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    1. महोदय, इसमें स्वतंत्रता दी गई है कि उद्यापन 24वीं एकादशी को भी किया जा सकता है और समय न हो तो 25 वीं एकादशी को भी कर सकते हैं...यदि व्रती 24 व्रत पूरे होने से पहले ही उद्यापन कर ले तो वह भी उचित ही है पर ध्यान रहे चौमासे में उद्यापन नहीं होता ..अधिक जानकारी के लिए एकादशी का विस्तृत विधान वाला आलेख देखिये
      जय श्री राम

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