नोट - यहाँ प्रकाशित साधनाओं, स्तोत्रात्मक उपासनाओं को नियमित रूप से करने से यदि किसी सज्जन को कोई विशेष लाभ हुआ हो तो कृपया हमें सूचित करने का कष्ट करें।

⭐विशेष⭐


23 अप्रैल - मंगलवार- श्रीहनुमान जयन्ती
10 मई - श्री परशुराम अवतार जयन्ती
10 मई - अक्षय तृतीया,
⭐10 मई -श्री मातंगी महाविद्या जयन्ती
12 मई - श्री रामानुज जयन्ती , श्री सूरदास जयन्ती, श्री आदि शंकराचार्य जयन्ती
15 मई - श्री बगलामुखी महाविद्या जयन्ती
16 मई - भगवती सीता जी की जयन्ती | श्री जानकी नवमी | श्री सीता नवमी
21 मई-श्री नृसिंह अवतार जयन्ती, श्री नृसिंहचतुर्दशी व्रत,
श्री छिन्नमस्ता महाविद्या जयन्ती, श्री शरभ अवतार जयंती। भगवत्प्रेरणा से यह blog 2013 में इसी दिन वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को बना था।
23 मई - श्री कूर्म अवतार जयन्ती
24 मई -देवर्षि नारद जी की जयन्ती

आज - कालयुक्त नामक विक्रमी संवत्सर(२०८१), सूर्य उत्तरायण, वसन्त ऋतु, चैत्र मास, शुक्ल पक्ष।
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तारा महाविद्या की स्तोत्रात्मक उपासना

श्री
रामनवमी के दिन अर्थात चैत्र शुक्ल नवमी को होती है भगवती तारा की जयंती। जिस प्रकार राम जी का नाम ही भवबंधन से तार देता है उसी प्रकार भगवती तारा नामानुरूप ही जीव को तारकर जीवन्मुक्त बना देती हैं।
वैसे तो किसी भी महाविद्या की आराधना करो मोक्ष प्राप्त होता ही है। परन्तु तारा महाविद्या के तो नाम में ही मोक्ष छिपा है। कहते हैं महाविद्या में, देवियों में भेद न करे। काली तन्त्र में लिखा भी है- यथा काली तथा तारा छिन्ना च। या काली परमा विद्या सैव तारा प्रकीर्तिता एतयोर्भेद भावेन सिद्धिहानिस्तु जायते। अर्थात् जो काली महाविद्या हैं वही तारा महाविद्या तथा छिन्नमस्ता महाविद्या हैं। इनमें भेद भाव करने से सिद्धि की हानि होती है।महाविद्याओं की आराधना में स्तोत्र पाठ का विशेष स्थान है। 

श्रीशक्तिसंगम तंत्र, छिन्नमस्ता खण्ड, नवम पटल में भगवती तारा की महिमा वर्णित हुई है - 

कदाचिदाद्या श्रीकाली सैव ताराऽस्ति पार्वति। 

कदाचिदाद्या श्रीतारा पुंरूपा रामविग्रहा॥
रावणस्य वधार्थाय देवानां स्थापनाय च । 
दैत्यसंहरणार्थाय रूपं संविभ्रती परम्॥ 
(हे पार्वति! किसी समय  आद्या श्रीकाली जो श्रीतारा भी कही जाती हैं, वह कदाचित्‌ आद्या श्री तारा, श्रीराम के पुरुष रूप को धारण कर रावण के वध के लिये एवं देवताओं की रक्षा कर उनके स्थापन हेतु एवं दैत्यों के विनाश के लिये अवतीर्ण हुई थीं।)

आद्या तारा महाशक्तिः सैव काली महेश्वरि। 
या महावैष्णवी माया सा महासुन्दरी मता॥ 
सर्वे भेदा: कालिकायाः सैवाद्या परिकीर्तिता। 
महाविद्या सिद्धविद्या विद्याभेदैः प्रतिष्ठिता॥
(हे महेश्वरि! आद्या तारा महाशक्ति ही 
काली देवी हैं। जो महावैष्णवी माया हैं, वह महात्रिपुरसुन्दरी हैं, ये सभी उन कालिका के रूप भेद हैं, वह महाकाली ही आद्या कहलाती हैं। वही महाविद्या, सिद्धविद्या आदि विद्या के भेदों से लोक में प्रसिद्ध हैं।)

आज के समय में तारा महाविद्या की योग्य गुरु द्वारा दीक्षा मिलना उतना सुलभ नहीं जितना प्राचीन समय में हुआ करता था। इनकी विशेष मन्त्र साधना दीक्षा प्राप्त साधकों द्वारा श्मशान साधन, पन्चमकार, शव साधन जैसी उग्र व क्लिष्ट विधियों द्वारा की जाती है परंतु ऐसे प्रामाणिक तारा साधक आज दुर्लभ हैं।

इसी कारण से सामान्य उपासकों के लिए हम स्तोत्रात्मक सौम्य साधना प्रस्तुत कर रहे हैं। इसके अंतर्गत भगवती तारा महाविद्या की शतार्चन पूजा विधि आती है जि
समें तारा अष्टोत्तरशत नामावली के 108 नामों से पूजा की जाती है। तारा शतनाम स्तोत्र में निर्दिष्ट नामों में अत्यंत विविधता है इसलिए नाम मंत्रों की संख्या 121 हो गई है।

श्री तारा प्रातः स्मरण स्तोत्र

भगवती तारा के उपासक प्रतिदिन प्रातः काल उठकर इस स्तोत्र का पाठ करे-
प्रातः स्मरामि भवतारिणि तारिणीं त्वां
मन्दस्मितां त्रिनयनां घननील-वर्णाम्।
कर्त्री - कपालोत्पल - खड्गधर्त्रीं
धात्रीं सुरासुर - नृणामखिलेश्वरीं च॥१॥
मैं प्रातः काल भवसागर से तारने वाली तारिणी मां का स्मरण करता हूँ, जो मन्द मन्द मुस्कुरा रही हैं, घने नील-वर्ण की हैं, जो हाथों में कैंची, नर-कपाल, नील-कमल, खड्ग लिये हैं और जो देवों, असुरों, मनुष्यों की उत्पादिका हैं, सबकी ईश्वरी हैं।

प्रातः स्मरामि खर्वामपवर्ग-दात्रीमक्षोभ्य-शम्भु - सहितामहि -भूषणाढ्याम्।
प्रत्यर्पिताङ्घ्र - शिव - वक्षसि सुप्रसन्नां
भक्तार्तिभय - वारण - कर्मदक्षाम् ॥ २॥
मैं प्रातःकाल मोक्षदायिनी, छोटी देह वाली, तारा मां का स्मरण करता हूं, जो अपना दायाँ पैर भगवान शिव के वक्ष पर रखकर प्रसन्न हैं, भक्तों के दुःख-भय दूर करने में दक्ष हैं और अक्षोभ्य शिव के साथ हैं, सर्प को आभूषण के रूप में धारण करती हैं।

प्रातः स्मरामि षट्कोण - त्रिकोण - गेहां
वस्वार - धरणीगृह - शोभमानाम्।
शक्रादि - सुरसङ्घ - सुसेव्यमाना
मानन्दकन्दां पञ्चार्णवीं ताम्॥३॥
मैं प्रातःकाल त्रिकोण, षट्कोण, वृत्त, अष्टदल व भूपुरमय गृह(यन्त्र) में निवास करने वाली मां तारा का स्मरण करता हूँ, जो इन्द्रादि देवों से सेविता हैं, सभी सुखों की मूल हैं और पञ्चाक्षरी मन्त्ररूपिणी हैं।

प्रातर्नमामि नृकरोटि - विशाल-मालां
हाला - विघूर्णित-तरां सुत्रिनेत्र -जालाम्।
व्याघ्राम्बरावृत - कटीतट - भासमानां
जाड्यापहां त्वरित - सिद्धि - प्रदां परेशीम्॥४॥
मैं प्रातःकाल मां तारा को नमन करता हूँ, जो नरमुण्डों की भारी माला पहने हैं, जिनके त्रिनेत्र सुधापान से चञ्चल हैं, जिन्होंने कटि में बाघम्बर पहना है ओर जो भक्तों की बुद्धि की जड़ता को दूर कर शीघ्र ही सिद्धि देती हैं।

प्रातर्भजामि भवताप -विनाशिकाम्बां
सद्यः समृद्धिनिधि -बुद्धि -प्रकाशिकां च।
ज्वलच्चिता - मध्य - गतातिघोरां
दंष्ट्रा - करालामपि भक्त - पालाम् ॥५॥
मैं प्रातःकाल मां तारा का भजन करता हूँ, जो सांसारिक कष्टों को नष्ट कर देती हैं, भक्तों को तुरन्त ज्ञान व समृद्धि देती हैं। प्रज्ज्वलित चिता के मध्य में रहती हैं तथा भयंकर दांतों वाली होती हुई भी भक्तों की पालिका हैं।

यः श्लोक - पञ्चकमिदं पठति प्रभाते 
तारां स्मरन्प्रतिदिनं भुविभार - हाराम्।
विद्याविभूति -सुखशान्ति -यशांस्यवाप्य
सोऽन्ते प्रयाति सालोक्यपदं जनन्याः॥६॥
[ये पाँच श्लोक (प्रतिदिन) प्रातःकाल में "पृथ्वी पर भारस्वरूपों के मुण्डों के हार को पहनने वालीं तारा माँ" का स्मरण करते हुए पढ़ता है, विपुल विद्या, सुख - शान्ति, यश प्राप्त करता हुआ तारा माता की कृपा से "सालोक्य मुक्ति" के पद को पाता है।]
॥श्रीतारा प्रातःस्मरण स्तोत्रम्  शुभमस्तु॥


श्रीतारा प्रातःस्मरण स्तोत्र की फलश्रुति पढ़कर एक प्रश्न उठता है कि इस पृथ्वी पर भार स्वरूप कौन लोग हैं? इस पर भर्तृहरिकृत नीतिशतक में लिखा है-

येषां न विद्या न तपो न दानं,

ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः।

ते मर्त्यलोके भुविभार-भूता,

मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति॥

(जो मनुष्य न विद्वान न तपस्वी न दानी न ज्ञानवान्, न सुशील, न गुणी और न धर्मात्मा हैं, वे मृत्युलोक में "पृथ्वी पर भार रूप हुए मनुष्य" रूप में पशुवत विचरते हैं।)

पापी व्यक्ति पृथ्वी का भार हैं यह बात पुराणों का अध्ययन करने से सिद्ध होती है।

श्री राम जी का अवतार भी भुविभार असुरों के नाश के लिये हुआ था - एक कलप एहि हेतु प्रभु लीन्ह मनुज अवतार। सुररंजन सज्जन सुखद हरि भंजन भुविभार॥
श्रीमद्‌भागवत, ब्रह्मवैवर्तपुराण, ब्रह्म पुराण, पद्म पुराण में भी कई स्थानों पर भगवान श्री कृष्ण द्वारा असुरों का, पापियों अंत करके पृथ्वी का भार उतारने की बात मिलती है। इसी तरह देवीभागवत के चौथे स्कंध में भी भगवती अंशावतार धारण करके दुष्टों का अंत करके पृथ्वी का बोझ उतारने की बात कहती हैं। वे तो अन्य देवताओं को भी भगवती की शक्ति का आश्रय ग्रहण करते हुए अंशावतार धारण करने की प्रेरणा देती हैं-
"भवद्भिरपि स्वैरंशैरवतीर्य धरातले॥ मच्छक्तियुक्तैः कर्तव्यं भारावतरणं सुराः।"

तारा महाविद्या की स्तोत्रात्मक सौम्य साधना

कब करें उपासना- वैसे तो भगवती तारा की आराधना कभी भी कर सकते हैं। शुभ दिन जैसे तारा जयन्ती के दिन, नवरात्रि, होली, दीपावली में विशेषतः उपासना करें अथवा  मंगलवार, शनिवार, रात्रि में अवश्य करे। साथ ही अन्य विशेष अवसर हैं - अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी , संक्रान्तिI

सामग्री - अपने सामने तारा महाविद्या का चित्र अथवा यन्त्र रखें, कलर प्रिन्ट निकलवाकर भी रख सकते हैं। इसके अलावा दुर्गा जी की मूर्ति या श्रीयन्त्र पर भी यह पूजन किया जाता है।
*शिव प्रतिमा/चित्र 
* साथ में जल युक्त पात्र, आचमनी, रोली,चंदन, अक्षत, फूल, नैवेद्य, दीपक (तेल या घी का ), धूप।
*पुष्प के अभाव में चन्दन मिश्रित अक्षत चढ़ाते हैं।
*लौंग, सफेद या नीला फूल, कनेर का फूल हो तो उत्तम, रुद्राक्ष, अनार अर्पित करे।


संकल्प
श्रीगणपतिर्जयति विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः ओऽम् तत्सदद्य श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य श्रीब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्रीश्वेतवाराह-कल्पे वैवस्वत-मन्वन्तरे, अष्टाविंशति-तमे कलियुगे, कलि-प्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे भूप्रदेशे------प्रदेशे ----- नगरे (......ग्रामे), ..... नाम्नि सम्वत्सरे, सूर्य (उत्तरायणे/दक्षिणायने)-----ऋतौ,------मासे --------पक्षे , ----तिथौ, -----वासरे ------गोत्रोत्पन्नो ------(नाम) अहं अद्य श्री अक्षोभ्य शिव सहिता श्री तारा महाविद्या प्रीत्यर्थं श्री तारा महाविद्या अष्टोत्तरशत नाम मन्त्रैः यथाशक्ति यजनं कृत्वा स्तोत्रैः स्तुतिं करिष्ये।

ध्यान
ध्यायेत् कोटि-दिवाकर-द्युति-निभां बालेन्दु-युक्छेखरां,
रक्ताङ्गीं रसनां सुरक्त-वसनां पूर्णेन्दु-बिम्बाननां।
पाशं कर्तृ-महाङ्कुशादि-दधतीं दोर्भिश्चतुर्भिर्युतां
नाना-भूषण-भूषितां भगवतीं तारां जगत्तारिणीं॥

अर्थात् करोड़ों सूर्यों के समान देदीप्यमान कान्ति से युक्त, मस्तक पर बालचन्द्र धारण करने वाली, जो लाल वर्ण की जिह्वा वाली हैं, जिन्होंने सुन्दर लाल वस्त्र धारण किये हुए हैं, पूर्णिमा के चन्द्रमा सदृश मुख वाली, अपने चारों हाथों में पाश, कर्तरि[कैंची], महान् अंकुश आदि को धारण करने वाली, विभिन्न प्रकार के आभूषणों से अलंकृत, जगत् को तारने अर्थात् मोक्ष प्रदान करने वाली भगवती तारा का भजन करना चाहिये।

मानस पूजा -  लं पृथिवी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्री अक्षोभ्य शिव सहिता श्री तारा महाविद्या पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (कनिष्ठिका अंगुली से अंगूठे को मिलाकर अधोमुख(नीची) करके भगवान को दिखाए, यह गन्ध मुद्रा है)

• हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्री अक्षोभ्य शिव सहिता श्री तारा महाविद्या पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (अधोमुख तर्जनी व अंगूठा मिलाकर बनी पुष्प मुद्रा दिखाए)

• यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्री अक्षोभ्य शिव सहिता श्री तारा महाविद्या पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्वमुख(ऊपर को) तर्जनी व अंगूठे को मिलाकर दिखाए)

• रं वह्नि-तत्त्वात्मकं दीपं श्री अक्षोभ्य शिव सहिता श्री तारा महाविद्या पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्व मुख मध्यमा व अंगूठे को दिखाए)

• वं अमृत-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्री अक्षोभ्य शिव सहिता श्री तारा महाविद्या पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्व मुख अनामिका व अंगूठे को दिखाए)

• सौं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलादि सर्वोपचाराणि मनसा परिकल्प्य श्री अक्षोभ्य शिव सहिता श्री तारा परदेवता श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(सभी अंगुलियों को मिलाकर ऊर्ध्वमुखी करते हुए दिखाये)
उपरोक्त मुद्राओं को समझने के लिये यहाँ क्लिक करें।

महागणपति पूजन- पुष्प या अक्षत अर्पित करे-
• ऐं आत्म तत्व व्यापकाय महा-गणपतये श्री पादुकां पूजयामि नमः।
• ह्रीं विद्या तत्व व्यापकाय महा-गणपतये श्री पादुकां पूजयामि नमः।
• क्लीं शिव तत्व व्यापकाय महा-गणपतये श्री पादुकां पूजयामि नमः।

गुरु पूजा - अपने गुरू का पूजन करे गुरु न हों तो पुष्प शिव जी को चढ़ा दे - ह्रीं दक्षिणामूर्तये तुभ्यं वटमूल-निवासिने ध्यानैक निरतांगाय नमः रुद्राय शम्भवे, श्री दक्षिणामूर्ति गुरवे नमः श्रीगुरुपादुकां पूजयामि नमः 
गुरु को नमस्कार करे-
• गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः,
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।
• अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया, चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः।

शिव पूजा - फूल शिव जी को चढा दें - श्री अक्षोभ्य शिवाय नमः श्री पादुकां पूजयामि नमः


श्री तारा शतार्चन विधि - एक एक नाम मन्त्र पढ़े और तारा महाविद्या विग्रह पर अक्षत पुष्प चढ़ाते जाए -

1. श्रीतारिण्यै नमः।
2. श्रीतरलायै नमः।
3. श्रीतन्व्यै नमः।
4. श्रीतारायै नमः।
5. श्रीतरुण - वल्लर्यै नमः।
6. श्री तीररूपायै नमः। श्रीतीव्ररूपायै नमः।
7. श्रीतर्यै नमः।
8. श्रीश्यामायै नमः।
9. श्रीतनुक्षीणायै नमः। श्रीपयोधरायै नमः। श्री तनुक्षीणपयोधरायै नमः।
10. श्रीतुरीयायै नमः।
11. श्रीतरुणायै नमः।
12. श्रीतीव्रायै नमः। श्रीतीव्रगमनायै नमः।
13. श्रीनीलवाहिन्यै नमः।
14. श्रीउग्रतारायै नमः।
15. श्रीजयायै नमः।
16. श्रीचण्ड्यै नमः।
17. श्रीश्रीमदेकजटायै नमः। श्रीश्रीमदेकजटा-शिरायै नमः। श्रीशिवायै नमः। 
18. श्रीतरुण्यै नमः।
19. श्रीशाम्भव्यै नमः।
20. श्रीछिन्नभालायै नमः।
21. श्रीभद्रतारिण्यै नमः।
22. श्रीउग्रायै नमः।
23. श्रीउग्रप्रभायै नमः।
24. श्रीनीलायै नमः।
25. श्रीकृष्णायै नमः।
26. श्रीनीलसरस्वत्यै नमः।
27. श्रीद्वितीयायै नमः। 
28. श्रीशोभिन्यै नमः। श्री शोभनायै नमः।
29. श्रीनित्यायै नमः।
30. श्रीनवीनायै नमः।
31. श्रीनित्यनूतनायै नमः।
32. श्रीचण्डिकायै नमः।
33. श्रीविजयायै नमः। श्रीआराध्यायै नमः। श्रीविजयाराध्यायै नमः।
34. श्रीदेव्यै नमः।
35. श्रीगगनवाहिन्यै नमः।
36. श्रीअट्टहास्यायै नमः। 
37. श्रीकरालास्यायै नमः।
38. श्रीचतुरास्यापूजितायै नमः। श्री चरास्यायै नमः।
39. श्रीअदितिपूजितायै नमः।
40. श्रीरुद्रायै नमः।
41. श्रीरौद्रमय्यै नमः।
42. श्रीमूर्त्यै नमः।
43. श्रीविशोकायै नमः।
44. श्रीशोकनाशिन्यै नमः।
45. श्रीशिवपूज्यायै नमः।
46. श्रीशिवाराध्यायै नमः। 
47. श्रीशिवध्येयायै नमः।
48. श्रीसनातन्यै नमः।
49. श्रीब्रह्मविद्यायै नमः।
50. श्रीजगद्धात्र्यै नमः।
51. श्रीनिर्गुणायै नमः।
52. श्रीगुणपूजितायै नमः।
53. श्रीसगुणायै नमः। श्री असगुणायै नमः।
54. श्री आराध्यायै नमः। श्रीसगुणाराध्यायै नमः।
55. श्रीहरिपूजितायै नमः।
56. श्रीइन्द्रपूजितायै नमः। 
57. श्रीदेवपूजितायै नमः। श्री हरीन्द्रदेव-पूजितायै नमः।
58. श्रीरक्तप्रियायै नमः।
59. श्रीरक्ताक्ष्यै नमः।
60. श्रीरुधिर-भूषितायै नमः। श्री रूधिरास्य-विभूषितायै नमः।
61. श्रीआसवभूषितायै नमः।
62. श्रीबलिप्रियायै नमः।
63. श्रीबलिरतायै नमः।
64. श्रीदुर्गायै नमः।
65. श्री दुर्धायै नमः। श्रीबलवत्यै नमः।
66. श्रीबलायै नमः। 
67. श्रीबलप्रियायै नमः।
68. श्रीबलरतायै नमः।
69. श्रीबलराम-प्रपूजितायै नमः।
70. श्री ऊर्ध्वकेशेश्वर्यै नमः।
71. श्रीकेशायै नमः। श्रीकेशवायै नमः। श्रीसविभूषितायै नमः।
72. श्रीकेशवविभूषितायै नमः। श्रीईशविभूषितायै नमः।
73. श्रीपद्ममालायै नमः।
74. श्रीपद्माक्ष्यै नमः। 
75. श्रीकामाख्यायै नमः।
76. श्रीगिरि - नन्दिन्यै नमः।
77. श्रीदक्षिणायै नमः।
78. श्रीदक्षायै नमः।
79. श्रीदक्षजायै नमः।
80. श्रीदक्षिणेरतायै नमः।
81. श्रीवज्रपुष्पप्रियायै नमः।
82. श्रीरक्तप्रियायै नमः।
83. श्रीकुसुमभूषितायै नमः।
84. श्रीमाहेश्वर्यै नमः। 
85. श्रीमहादेव - प्रियायै नमः।
86. श्रीपञ्चविभूषितायै नमः।
87. श्रीइडायै नमः।
88. श्रीपिङ्ग्लायै नमः।
89. श्रीसुषुम्णा-प्राणरूपिण्यै नमः।
90. श्रीगान्धार्यै नमः।
91. श्रीपञ्चम्यै नमः।
92. श्रीपञ्चाननादि - परिपूजितायै नमः।
93. श्री तथ्यविद्यायै नमः।
94. श्री तथ्यरूपायै नमः।
95. श्री तथ्यमार्गानुसारिण्यै नमः।
96. श्री तत्त्वरूपायै नमः।
97. श्री तत्त्वप्रियायै नमः।
98. श्री तत्त्वज्ञानात्मिकायै नमः।
99. श्री अनघायै नमः।
100. श्री ताण्डवाचार - संतुष्टायै नमः।
101. श्री ताण्डव - प्रियकारिण्यै नमः।
102. श्री तालदान - रतायै नमः।
103. श्री क्रूरतापिन्यै नमः।
104. श्री तरणिप्रभायै नमः।
105. श्री त्रपायुक्तायै नमः।
106. श्री त्रपामुक्तायै नमः।
107. श्री तर्पितायै नमः।
108. श्री तृप्तिकारिण्यै नमः।
109. श्री तारुण्यभाव - संतुष्टायै नमः।
110. श्री शक्ति -भक्तानुरागिन्यै नमः।
111. श्री शिवासक्तायै नमः।
112. श्री शिवरत्यै नमः।
113. श्री शिवभक्ति परायणायै नमः।
114. श्री ताम्रद्युत्यै नमः।
115. श्री ताम्ररागायै नमः।
116. श्री ताम्रपात्र - प्रभोजिन्यै नमः। 
117. श्री बलभद्र - प्रेमरतायै नमः।
118. श्री बलिभुग्बलि - कल्पिन्यै नमः।
119. श्री रामरूपायै नमः।
120. श्री रामशक्त्यै नमः।
121. श्री राम - रूपानुकारिण्यै नमः।


अब हाथ में पुष्प लेकर श्रीतारा शतनाम स्तोत्र का पाठ करे -

श्रीशिव उवाच
  तारिणी तरला तन्वी तारा तरुणवल्लरी। तीररूपा/तीव्ररूपा तरी श्यामा तनुक्षीण-पयोधरा॥१॥
तुरीया तरुणा तीव्रगमना नीलवाहिनी। उग्रतारा जया चण्डी श्रीमदेकजटाशिरा॥२॥
 तरुणी शाम्भवी छिन्नभाला च भद्रतारिणी। उग्रा उग्रप्रभा नीला कृष्णा नीलसरस्वती॥३॥
  द्वितीया शोभना नित्या नवीना नित्यनूतना। चण्डिका विजयाराध्या देवी गगनवाहिनी॥४॥
  अट्टहास्या करालास्या चरास्यादिति-पूजिता। रौद्रा रौद्रमयी मूर्तिर्विशोका शोकनाशिनी॥
  शिव-पूज्या शिवाराध्या शिवध्येया सनातनी। ब्रह्मविद्या जगद्धात्री निर्गुणा गुण-पूजिता॥
   सगुणा सगुणाराध्या हरीन्द्र-देवपूजिता॥५॥
  रक्तप्रिया च रक्ताक्षी रुधिरास्य-विभूषिता। बलिप्रिया बलिरता दुर्गा /दुर्धा बलवती बला॥६॥
   बलप्रिया बलरता बलराम–प्रपूजिता। ऊर्ध्व-केशेश्वरी केशा केशवा सविभूषिता॥७॥
 पद्ममाला च पद्माक्षी कामाख्या गिरिनन्दिनी। दक्षिणा चैव दक्षा च दक्षजा दक्षिणेरता॥८॥
 वज्रपुष्पप्रिया रक्तप्रिया कुसुमभूषिता। माहेश्वरी महादेवप्रिया पञ्चविभूषिता॥९॥
  इडा च पिङ्गला चैव सुषुम्णा-प्राणरूपिणी। गान्धारी पञ्चमी पञ्चाननादि-परिपूजिता॥१०॥
   तथ्यविद्या तथ्यरूपा तथ्य-मार्गानुसारिणी। तत्त्वप्रिया तत्त्वरूपा तत्त्व-ज्ञानात्मिकाऽनघा॥११॥
   ताण्डवाचार–सन्तुष्टा ताण्डव–प्रियकारिणी। ताल-दानरता क्रूरतापिनी तरणिप्रभा॥१२॥
   त्रपायुक्ता त्रपामुक्ता तर्पिता तृप्तिकारिणी। तारुण्य-भाव–सन्तुष्टा शक्ति-भक्तानुरागिणी॥१३॥
   शिवासक्ता शिवरतिः शिवभक्ति- परायणा। ताम्र-द्युतिस्ताम्र-रागा ताम्रपात्र-प्रभोजिनी॥१४॥
   बलभद्र-प्रेमरता बलिभुग्बलि-कल्पिनी। रामरूपा रामशक्ती राम-रूपानुकारिणी॥१५॥
   
  फूल भगवती को अर्पित करें। इस मूल स्तोत्र को 11, 21 या 51 बार पढ़ सकते हैं।
  
   फलश्रुति 
   
   इत्येतत्कथितं देवि रहस्यं परमाद्भुतम्। श्रुत्वा मोक्षमवाप्नोति तारादेव्याः प्रसादतः॥१६॥
  (हे देवि! इस प्रकार यह परम अद्भुत रहस्य कहा गया है जिसे सुनकर तारा देवी के प्रसाद से मोक्ष प्राप्त हो जाता है)
   
   य इदं पठति स्तोत्रं तारास्तुति-रहस्यकम्। सर्वसिद्धियुतो भूत्वा विहरेत् क्षितिमण्डले॥१७॥
   (जो यह तारा देवी की रहस्य स्तुति पढ़ता है सर्वसिद्धि युक्त होकर धरती पर विचरता है)
   
   तस्यैव मन्त्रसिद्धिः स्यान्मम-सिद्धिरनुत्तमा। भवत्येव महामाये सत्यं सत्यं न संशयः॥१८॥
   (उसको ही मन्त्र सिद्धि होती है, मेरी उत्तम सिद्धि भी मिल जाती है, हे महामाये! यह सत्य है सत्य है, इसमें संशय नहीं है)
   
   मन्दे मङ्गलवारे च यः पठेन्निशि संयतः। तस्यैव मन्त्रसिद्धिस्स्याद्गाणपत्यं लभेत सः॥१९॥
   (शनिवार और मंगलवार की रात्रि को जो इसका संयम पूर्वक पाठ करता है उसको मन्त्रसिद्धि होती है गणों का अधिपति होता है)
   
   श्रद्धयाऽश्रद्धया वापि पठेत्तारारहस्यकम्। सोऽचिरेणैव कालेन जीवन्मुक्तः शिवो भवेत्॥२०॥
   (श्रद्धा से या अश्रद्धा से भी यह तारा रहस्य पढ़ता है तो अल्प काल में ही जीते जी मुक्त होकर साक्षात् शिव हो जाता है)
   
   सहस्रावर्तनाद्देवि पुरश्चर्याफलं लभेत्। एवं सततयुक्ता ये ध्यायन्तस्त्वामुपासते। ते कृतार्था महेशानि मृत्युसंसारवर्त्मनः॥२१॥
   (इसे 1000 बार पढ़ने से पुरश्चरण का फल मिलता है। और हे महेशानि! जो तुम्हारा ध्यान करके प्रतिदिन नियमित उपासना करते हैं वे प्रसन्न-संतुष्ट-सफल होकर मृत्यु-संसारसागर से छुटकारा पाते हैं)
   
॥मुण्डमालातन्त्रोक्तं एवं स्वर्णमालातन्त्रोक्तं श्री ताराशतनामस्तोत्रं शुभमस्तु॥

मां तारा महाविद्या के अन्य स्तोत्र

स्तोत्रात्मक उपासना को और अधिक प्रभावी बनाने हेतु माँ तारा के कुछ अन्य स्तोत्र भी यहाँ प्रस्तुत हैं

बृहन्नीलतन्त्रोक्त श्री तारा शतनाम स्तोत्र

बृहन्नील तंत्र में भगवती तारा का एक अन्य शतनाम स्तोत्र मिलता है। इसे नील सरस्वती शतनाम स्तोत्र या नीला शतनाम स्तोत्र भी कहते हैं। तारा महाविद्या को नीलसरस्वती नाम होने से नीला देवी भी कहा जाता है।
श्रीभैरव उवाच
श‍ृणु देवि प्रवक्ष्यामि भक्तानां हितकारकम्। यज्ज्ञात्वा साधकाः सर्वे जीवन्मुक्ति - मुपागताः॥१॥ कृतार्थास्ते हि विस्तीर्णा यान्ति देवीपुरे स्वयम्। नाम्नां शतं प्रवक्ष्यामि जपात् सर्वज्ञदायकम्॥२॥ श‍ृणु साध्वि वरारोहे शतं नाम्नां पुरातनम्। सर्वसिद्धिकरं पुंसां साधकानां सुखप्रदम्॥३॥ तारिणी तारसंयोगा महातार - स्वरूपिणी। तारकप्राणहर्त्री च तारानन्द -स्वरूपिणी॥४॥ महानीला महेशानी महा नील सरस्वती। उग्रतारा सती साध्वी भवानी भवमोचिनी॥५॥ महाशङ्खरता भीमा शाङ्करी शङ्करप्रिया। महादानरता चण्डी चण्डासुरविनाशिनी॥६॥ चन्द्रवद्रूप–वदना चारुचन्द्र—महोज्ज्वला। एकजटा कुरङ्गाक्षी वरदाभयदायिनी॥७॥ महाकाली महादेवी गुह्यकाली वरप्रदा। महाकालरता साध्वी महैश्वर्यप्रदायिनी॥८॥ मुक्तिदा स्वर्गदा सौम्या सौम्यरूपा सुरारिहा। शठविज्ञा महानादा कमला बगलामुखी॥९॥ महामुक्तिप्रदा काली कालरात्रि - स्वरूपिणी। सरस्वती सरिच्श्रेष्ठा स्वर्गङ्गा स्वर्गवासिनी॥१०॥ हिमालयसुता कन्या कन्यारूप-विलासिनी। शवोपरि-समासीना मुण्डमाला–विभूषिता॥११॥ दिगम्बरा पतिरता विपरीत—रतातुरा। रजस्वला रजःप्रीता स्वयम्भू–कुसुमप्रिया॥१२॥ स्वयम्भू–कुसुमप्राणा स्वयम्भू–कुसुमोत्सुका। शिवप्राणा शिवरता शिवदात्री शिवासना॥१३॥ अट्टहासा घोररूपा नित्यानन्द–स्वरूपिणी। मेघवर्णा किशोरी च युवतीस्तन–कुङ्कुमा॥१४॥ खर्वा खर्वजनप्रीता मणिभूषित -मण्डना। किङ्किणी - शब्दसंयुक्ता नृत्यन्ती रक्तलोचना॥१५॥ कृशाङ्गी कृसरप्रीता शरासन–गतोत्सुका। कपाल–खर्परधरा पञ्चाशन्मुण्ड–मालिका॥१६॥ हव्यकव्य–प्रदा तुष्टिः पुष्टिश्चैव वराङ्गना। शान्तिः क्षान्तिर्मनो बुद्धिः सर्वबीज–स्वरूपिणी॥१७॥ उग्रापतारिणी तीर्णा निस्तीर्ण–गुणवृन्दका।
रमेशी रमणी रम्या रामानन्द–स्वरूपिणी॥१८॥ रजनीकर—सम्पूर्णा रक्तोत्पल–विलोचना। इति ते कथितं दिव्यं शतं नाम्नां महेश्वरि॥१९॥ ( हे महेश्वरि! इस प्रकार ये दिव्य शतनाम कहे गये हैं।) प्रपठेद् भक्तिभावेन तारिण्यास्तारण - क्षमम्। सर्वासुर-महानाद - स्तूयमान-मनुत्तमम्॥२०॥ (तारिणी तारा के ये नाम भक्तों को तारने में सक्षम है। सभी देव महान् स्वर में इस उत्तम स्तोत्रमंत्र द्वारा स्तुति करते हैं। इन नामों को जो भक्तिभाव से पढ़ता है…) षण्मासाद् महदैश्वर्यं लभते परमेश्वरि। भूमिकामेन जप्तव्यं वत्सरात्तां लभेत् प्रिये॥२१॥ धनार्थी प्राप्नुयादर्थं मोक्षार्थी मोक्षमाप्नुयात्। दारार्थी प्राप्नुयाद् दारान् सर्वागम पुरोदितान्॥२२॥ (… हे परमेश्वरि वह 6 महीनों में महान ऐश्वर्य पाता है। एक वर्ष तक यह स्तोत्र जपने से धनार्थी धन पाता है, मोक्षार्थी मोक्ष को, पत्नी चाहने वाला उत्तम पत्नी को प्राप्त करता है।) अष्टम्यां च शतावृत्त्या प्रपठेद् यदि मानवः। सत्यं सिद्ध्यति देवेशि संशयो नास्ति कश्चन॥२३॥ (यदि कोई मनुष्य इसे अष्टमी को 100 बार पढ़ता है तो वह सिद्ध [सफलता प्राप्त व्यक्ति] हो जाता है इसमें कोई संशय नहीं है।) इति सत्यं पुनः सत्यं सत्यं सत्यं महेश्वरि। अस्मात् परतरं नास्ति स्तोत्रमध्ये न संशयः॥२४॥ (हे महेश्वरि! यह सत्य है मैं फिर से कहता हूँ सत्य सत्य सत्य है। स्तोत्रों में इससे श्रेष्ठतर स्तोत्र नहीं है।)
॥बृहन्नील तंत्रोक्तम् श्री तारा शतनाम स्तोत्रम् शुभमस्तु॥

श्री ताराष्टक स्तोत्रम्

मातर्नील-सरस्वति प्रणमतां सौभाग्य - सम्पत्प्रदे,
प्रत्यालीढ पदस्थिते शवहृदि स्मेराननाम्भोरुहे।
फुल्लेन्दीवर-लोचने त्रिनयने कर्त्री कपालोत्पले,
खड्गं चादधती त्वमेव शरणं त्वामीश्वरी-माश्रये॥१॥
(प्रणाम करने वाले भक्तों को सौभाग्य व सम्पत्ति देने वाली, भगवान्‌ शिव की छाती पर दायाँ पैर रखकर खड़ी होने वाली, मुस्कान युक्त मुखकमल वाली, खिले हुये नीलकमल के समान तीन नेत्रों वाली, कैंची, नरकपाल, नील-कमल और खड्ग धारण करने वाली; हे नील-सरस्वति माँ! मैं तुम सर्वेश्वरी की शरण का आश्रय लेता हूँ।)

वाचामीश्वरि भक्ति - कल्पलतिके सर्वार्थ-सिद्धीश्वरि
गद्य -प्राकृत - पद्यजात -रचना - सर्वार्थ -सिद्धिप्रदे।
नीलेन्दीवर - लोचनत्रय -युते कारुण्य -वारान्निधे
सौभाग्यामृत - वर्षणेन कृपयासिञ्च त्वमस्मादृशम्॥२॥
(वाणी की ईश्वरी, भक्तों के लिये कल्प-लता, सभी कामनाओं की सिद्धि देने वाली, गद्य-पद्य रचना एवं सर्वज्ञता की सिद्धि देने वाली, नीलकमल के समान सुन्दर तीन नेत्रों वाली, दया-सागरा; हे मां! तुम कृपाकर मुझ जैसे भक्त को सौभाग्यामृत से सींच दो।)

खर्वे गर्वसमूह - पूरित - तनौ सर्पादि -वेषोज्वले,
व्याघ्र-त्वक्परिवीत - सुन्दरकटि -व्याधूत -घण्टाङ्किते।
सद्यः कृत्तगलद्रजः - परिमिलन्मुण्ड-द्वयी -मूर्द्धज,
ग्रन्थि - श्रेणि -नृमुण्ड-दाम -ललिते भीमे भयं नाशय॥३॥
(छोटे शरीर वाली, सभी प्रकार के गर्व से पूर्णा, सर्पादि के वेश से चमकने वाली, बाघम्बर से शोभित सुन्दर कमर में बंधी घण्टियों से मधुर शब्द करने वाली, तत्काल कटे और रक्त बहते हुये दो-दो नरमुण्डों को परस्पर मिलाकर क्रम से बनी नरमुण्ड-माला से शोभित हे भयङ्करि मां! मेरे भय का नाश करो।)

मायानङ्ग - विकाररूप-ललना -बिन्द्वर्द्ध -चन्द्राम्बिके
हूंफट्कार - मयि त्वमेव शरणं मन्त्रात्मिके मादृशः।
मूर्तिस्ते जननि त्रिधाम - घटिता स्थूलाति - सूक्ष्मा - परा
वेदानां नहि गोचरा कथमपि प्राज्ञैर्नुता-माश्रये॥४॥
("माया अनंग विकार-रूप-ललना बिंदु अर्धचंद्र व हूं फट्" मन्त्र-स्वरूपवाली हे मां! मेरे जैसे भक्त की तुम्हीं शरण हो। हे मां! तुम्हारा विग्रह स्थूल, सूक्ष्म और पर तीनों धाम से बना है। वेदों से भी उसका ज्ञान किसी प्रकार नहीं होता। विशेष ज्ञानियों द्वारा नमस्कृता तुम्हारा मैं आश्रय लेता हूँ।)

त्वत्पादाम्बुज-सेवया सुकृतिनो गच्छन्ति सायुज्यतां,
तस्याः श्रीपरमेश्वर - त्रिनयनब्रह्मादि - साम्यात्मनः।
संसाराम्बुधि - मज्जने पटुतनुर्देवेन्द्र - मुख्यान् सुरान्,
मातस्त्वत् पदसेवने हि विमुखान् किं मन्दधीः सेवते॥५॥
(तुम्हारे चरण कमलों की सेवा से पुण्यात्मा लोग सायुज्य मुक्ति को पाते हैं और ब्रह्मा-विष्णु-महेश के समान होते हैं। संसार सांगर में डूबने में कुशल, इन्द्रादिमुख्य देवताओं की, जो तुम्हारी चरणसेवा से विमुख हैं, कौन मन्दबुद्धि सेवा करता है? अर्थात्‌ कोई बुद्धिमान्‌ तुम्हें छोड़ अन्य देवों की उपासना नहीं करता।)

मातस्त्वत्पद - पङ्कज-द्वय - रजोमुद्राङ्क - कोटीरिणः। 
ते देवासुर-सङ्गरे विजयिनो निःशङ्कमङ्के गताः॥
देवोऽहं भुवने न मे सम इति स्पर्द्धां वहन्तः पराः।
तत्तुल्यां नियतं यथा शुचिरवी नाशं व्रजन्ति स्वयम्॥६॥
(हे मां! तुम्हारे दोनों चरणकमलों की धूलि जिन देवों के मुकुटों पर अङ्कित है, वे देवासुरसंग्राम में विजयी होकर तुम्हारी गोद में निश्चिंत होकर रहते हैं। 'मैं देवता हूँ, त्रिभुवन में मेरे समान कोई नहीं है'- ऐसी स्पर्द्धा में बहने वाले भेड़ों के समान स्वयं ही विनष्ट हो जाते हैं।)

त्वन्नाम -स्मरणात्पलायन -परान्द्रष्टुं च शक्ता न ते,
भूतप्रेत-पिशाच - राक्षसगणा यक्षाश्च नागाधिपाः।
दैत्या: दानव-पुङ्गवाश्च खचरा व्याघ्रादिका जन्तवो,
डाकिन्यः कुपितान्तकश्च मनुजं मातः क्षणं भूतले॥७॥
(हे मां! तुम्हारे नाम के स्मरण मात्र से भूत-प्रेत-पिशाच-राक्षसों के समूह और यक्ष, नाग, दैत्य, दानव, खेचर, व्याघ्रादि पशु, डाकिनी तथा क्रुद्ध यम भी भाग खड़े होते हैं, तुम्हारे भक्त की ओर देख तक नहीं सकते अर्थात्‌ उन्हें कुछ भी हानि नहीं पहुँचा सकते।)

लक्ष्मीः सिद्धिगणश्च पादुकमुखाः सिद्धास्तथा वैरिणां,
स्तम्भश्चापि वराङ्गने गजघटा स्तम्भस्तथा मोहनम्।
मातस्त्वत्पद - सेवया खलु नृणां सिद्ध्यन्ति ते ते गुणाः,
क्लान्तः कान्त - मनोभवस्य भवति क्षुद्रोऽपि वाचस्पतिः॥८॥
(हे मां ! तेरे चरण-कमलों की सेवा से मनुष्यों को सभी गुणों की सिद्धि निश्चय ही मिल जाती है- लक्ष्मी सिद्धि, सर्व सिद्धियाँ, पादुकादि सिद्धियां, शत्रु स्तम्भन, गजसमूह स्तम्भन, सम्मोहनादि सिद्धियाँ प्राप्त होकर मनुष्य कामदेव से भी बढ़ जाता है। साधारण मनुष्य भी वृहस्पति के समान पूजनीय विद्वान्‌ हो जाता है।)

ताराष्टकमिदं पुण्यं भक्तिमान् यः पठेन्नरः।
प्रातर्मध्याह्नकाले च सायाह्ने नियतः शुचिः॥९॥
(जो भक्तिमान व्यक्ति इस पुण्यप्रद ताराष्टक को प्रातः, मध्याह्न, सायंकाल को पवित्र होकर पढ़ता है…)

लभते कवितां विद्यां सर्वशास्त्रार्थ-विद्भवेत्
लक्ष्मीमनश्वरां प्राप्य भुक्त्वा भोगान्यथेप्सितान्।
कीर्तिं कान्तिं च नैरुज्यं प्राप्यान्ते मोक्षमाप्नुयात्॥१०॥
(… वह पाठकर्ता कवित्व क्षमता, विद्या, पाता है। सबसे शास्त्रार्थ करने में समर्थ विद्वान होता है। नष्ट न होने वाला धन प्राप्त कर इच्छित भोगों को प्राप्त करके कीर्ति, कान्ति और निरोगता प्राप्त कर जीवन के अन्त में मोक्ष भी पाता है।)
॥इति श्रीनीलतन्त्रे तारास्तोत्रं अथवा ताराष्टकं सम्पूर्णम्॥



श्री नीलसरस्वती स्तोत्रम्
घोररूपे महारावे सर्वशत्रुभयङ्करि।
भक्तेभ्यो वरदे देवि त्राहि मां शरणागतम्॥१॥ 
(भयानक रूप वाली, घोर निनाद करने वाली, सभी शत्रुओं को भयभीत करने वाली तथा भक्तों को वर प्रदान करने वाली हे देवि! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।)

सुरासुरार्चिते देवि सिद्धगन्धर्वसेविते।
जाड्यपापहरे देवि त्राहि मां शरणागतम्॥२॥
(देवों व दानवों के द्वारा पूजित, सिद्धों तथा गन्धर्वों के द्वारा सेवित और जड़ता तथा पापों को हरने वाली हे देवि ! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।)

जटाजूट - समायुक्ते लोल - जिह्वान्त-कारिणि।
द्रुत - बुद्धि -करे देवि त्राहि मां शरणागतम्॥३॥
(जटाजूट से सुशोभित, चंचल जीभ को अंदर की ओर करने वाली, बुद्धि को तीक्ष्ण बनाने वाली हे देवि ! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।)

सौम्य - क्रोधधरे रूपे चण्डरूपे नमोऽस्तु ते।
सृष्टिरूपे नमस्तुभ्यं त्राहि मां शरणागतम्॥४॥
(सौम्य मुद्रा तथा क्रोध मुद्रा वाले रूप धारण करने वाली, उत्तम विग्रह वाली, प्रचण्ड स्वरूप वाली हे देवि आपको नमस्कार है।  हे सृष्टि स्वरूपिणि! आपको नमस्कार है; मुझ शरणागत की रक्षा करें।)

 जडानां जडतां हन्ति भक्तानां भक्तवत्सला।
मूढतां हर मे देवि त्राहि मां शरणागतम्॥५॥
(आप मूर्खों की मूर्खता का नाश करती हैं और भक्तों के लिये भक्तवत्सला हैं। हे देवि! आप मेरी मूढ़ता को दूर करें और मुझ शरणागत की रक्षा करें।)
 
वं ह्रूं ह्रूं कामये देवि बलिहोमप्रिये नमः।
उग्रतारे नमो नित्यं त्राहि मां शरणागतम्॥६॥
(वं ह्रूं ह्रूं स्वरूपिणी हे देवि! मैं आपके दर्शन की कामना करता हूँ। बलि तथा होम से प्रसन्न होने वाली हे देवि! आपको नमस्कार है। उग्र आपदाओं से तारने वाली हे उग्रतारे! आपको नित्य नमस्कार है; आप मुझ शरणागत की रक्षा करें)

बुद्धिं देहि यशो देहि कवित्वं देहि देहि मे।
मूढत्वं च हरेद्देवि त्राहि मां शरणागतम्॥७॥
(हे देवि ! आप मुझे बुद्धि दें, कीर्ति दें, कवित्व शक्ति दें और मेरी मूढ़ता का नाश करें। आप मुझ शरणागतकी रक्षा करें)

इन्द्रादि - विलसद्वन्द्व वन्दिते करुणामयि
तारे ताराधिनाथास्ये त्राहि मां शरणागतम्॥८॥
(इन्द्र आदि के द्वारा वन्दित शोभायुक्त चरण युगल वाली, करुणा से परिपूर्ण, चन्द्रमा के समान मुखमण्डल वाली और जगत्‌ को तारने वाली भगवती तारा! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।)

अष्टम्यां च चतुर्दश्यां नवम्यां यः पठेन्नरः। 
षण्मासैः सिद्धिमाप्नोति नात्र कार्या विचारणा।।९।।
 (अष्टमी, नवमी और चतुर्दशी को जो यह पढ़ता रहता है उसे 6महीने में सिद्धि मिलती है, इसपर शंका न करे)
 
 मोक्षार्थी लभते मोक्षं धनार्थी लभते धनम्।
विद्यार्थी लभते विद्यां तर्क-व्याकरणादिकम्॥१०॥
 ( इस स्तोत्र के पढ़ने से मोक्ष चाहने वाला मोक्ष पाता है, धनार्थी धन पाता है, विधार्थी तर्कशक्ति व्याकरण आदि विद्या पाता है)
 
 इदं स्तोत्रं पठेद्यस्तु सततं श्रद्धयाऽन्वितः।
तस्य शत्रुः क्षयं याति महाप्रज्ञा प्रजायते॥११॥
 (जो यह स्तोत्र नित्य श्रद्धापूर्वक पढ़ता है उसके शत्रुओं का क्षय होता है, पाठकर्ता को महाप्रज्ञा प्राप्त होती है)
 
पीडायां वापि संग्रामे जाड्ये दाने तथा भये। 
य इदं पठति स्तोत्रं शुभं तस्य न संशयः॥१२॥
(कष्ट के समय, संग्राम में, जड़ता - दुःख/ घबराहट/मोह में विवेक शून्यता होने पर, महा उत्पात होने पर, भय होने पर यह स्तोत्र पढ़ने वाले का शुभ होता है, इसमें संशय नहीं)

एवं स्तुत्वा महादेवीं दण्डवत् प्रणिपत्य च।
आत्मानं च  समर्प्याथ योनि मुद्रां प्रदर्शयेत्॥१३॥
(इस प्रकार स्तुति करके महादेवी को दण्डवत प्रणाम करके स्वयं को माँ के चरणों में समर्पित करता हुआ, योनि मुद्रा दिखावें।)
॥श्री नीलसरस्वती स्तोत्रम् शुभमस्तु॥

* क्षमा प्रार्थना- फूल लेकर हाथ जोड़कर कहे -
 मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि , यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे। स्तोत्रहीनं, मन्त्र हीनं, पूजाहीनं, क्रिया हीनं, विधि हीनं, देश-काल हीनं, भक्ति हीनं यत् कृतं तत् सर्वं परिपूर्णमस्तु। 
फूल चढ़ा दे।
* अब एक आचमनी से जल चढ़ाते हुए जप समर्पण करे -
• गुह्याति गुह्य गोप्त्री त्वम्, गृहाणास्मद्कृतं जपं।
सिद्धिर्भवतु मे देवि, त्वत्-प्रसादान्महेश्वरी॥
• अनेन मया कृतेन श्रीतारा महाविद्या शतार्चनेन स्तोत्रपाठाख्य कर्मणा श्री अक्षोभ्य शिव सहिता श्रीतारा महाविद्या देवता सुप्रसन्ना वरदा भवतु।
• सर्वं श्रीशिव-गुरु-परदेवता-परब्रह्मार्पण-मस्तु।

* श्रीविष्णुः विष्णुः विष्णुः हरिस्मरणात् परिपूर्णतास्तु।

इस प्रकार भगवती तारा की शतार्चन साधना सम्पूर्ण होती है। भविष्य में इस पद्धति में भगवती के कुछ अन्य उपयोगी स्तोत्रों व उपयोगी जानकारी को भी जोड़ दिया जाएगा लेकिन उसमें कुछ समय लगेगा। भगवती तारा को तारा जयन्ती पर हमारा अनेक बार प्रणाम है...

टिप्पणियाँ

  1. Manyawar kripa karke batae ki kya hum maa tara ke 121 naamo ko seeda pad sakte he ya jese aapne vidhi batai he use poora kar ke hi maa ke 121 naamo ko padhe.

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    उत्तर
    1. अगर सीधे-सीधे पाठ करना है तो मां तारा के शतनाम स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं।
      लेकिन शत-नामों से पूजा करने के लिए उपरोक्त विधि के अनुसार पाठ करना होगा।
      उपरोक्त विधि ज्यादा बड़ी नहीं है प्रारम्भ में संकल्प दिया गया है। जैसे धन के लिए हमारा निश्चित उददेश्य निर्धारित होता है इसको खर्च करना है इसको बचाकर रखना है इससे कुछ खरीदना है। वैसे ही संकल्प तथा पंचोपचार पूर्वक पूजा करके पाठ करने से स्तोत्र पाठ को एक उचित दिशा मिलती है।
      क्षमा प्रार्थना तो भूल चूक के लिए करनी ही चाहिए कई बार पाठ में गलती हो जाया करती है।
      अंत में पाठ समर्पण के मंत्र हैं इसके पीछे भाव है कि मां यह जो पाठ किया वह हे तारा माई तुझे ही समर्पित है। अर्थात मैने कुछ पाठ नहीं किया कर्ता पन का अभाव हो गया। मैने किया वाले घमंड का नाश होता है इससे मां की प्रसन्नता जल्दी मिल सकती है।
      तो उपरोक्त बातों के कारण यह स्तोत्रात्मक उपासना की विधि प्रस्तुत हुई है। एक होता है खाली पाठ करना एक होता विधि पूर्वक पाठ करना।
      आपके पास समय वाकई कम हो तो केवल स्तोत्र ही पढ़े।
      जय मां तारा।

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    2. Manyawar kya aap is pooja ki video bana sakte he. Kyuki bohot sari cheeje esi he jinse padke samajna thoda mushkil he jese kuch ungliyo ko angute me daba kar maa ko dikhana he. To isliye agar video ho to samajna Asian ho jaega ki kese pooja karni he.

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    3. महोदय, वीडियो तो नहीं है लेकिन - पंचोपचार पूजा की इन मुद्राओं को हमने चित्र के माध्यम से भी समझाया है इसके लिये कृपया - यहाँ पर क्लिक करें
      जय माँ तारा

      हटाएं
  2. जय माँ तारा।कृपया माँ तारा के नील सरस्वती साधना के बारे संपूर्ण विधि बताएँ। धन्यवाद

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    उत्तर
    1. माँ तारा को ही नीलसरस्वती कहा गया है। माँ तारा के मंत्र गूढ़ है इनके प्रकाशन करने से हानि बतलाई गई है, इनके मंत्र दीक्षा द्वारा गुरु मुख से ही प्राप्त करें। जबतक गुरु न मिले स्तोत्र पाठ करे। कुछ स्तोत्र भी इसी प्रकार गुप्त रखने को कहा गया है। लेकिन जो स्तोत्र प्रकाशित किये जा सकते थे वे ऊपर लिख दिये हैं। नीलसरस्वती स्तोत्र भी उपर लिख दिया है। पाठ करें लाभ उठायें।
      जय माँ तारा

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