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हालांकि शिवरात्रि व्रत की विधि हमने पहले एक पोस्ट में दे दी थी। रात्रि में चारों प्रहरों के शिव पूजन की विधि नहीं दी थी सो वह यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं। सबसे पहले रात्रि के चार प्रहरों का लगभग समय क्या रहता है वो बता देते हैं -
चार प्रहरों में प्रायः भारतीय समयानुसार
सायं 6:30 से रात 9:30 बजे तक प्रथम प्रहर,
9:31 से 12:30 बजे तक दूसरा प्रहर,
12:31 से 3:30 बजे तक तीसरा प्रहर और
3:31 से सूर्योदय होने तक चतुर्थ प्रहर होता है।
(इसमें स्थानीय सूर्योदय के आधार पर कुछ ही मिनटों का अंतर होता है)
श्रीशिव महापुराण की कोटि रुद्र संहिता के अध्याय३८ में वर्णन है कि एक समय भोग-मोक्षदायक व्रतों के विषय में पूछे जाने पर भगवान शिव जी, भगवान विष्णु जी से कहते हैं-
हे हरे! शिवरात्रि में श्रेष्ठ भक्तों को जिस प्रकार प्रत्येक प्रहर में शिवजी की विशेष पूजा करनी चाहिये, उसे मैं आपसे कहता हूँ।
शिवरात्रि में चारों प्रहरों की पूजाविधि यहाँ प्रस्तुत है
प्रत्येक प्रहर में अनेक उत्तम उपचारों से परम भक्तिपूर्वक स्थापित शिवलिंग की पूजा करें।
जिनका यज्ञोपवीत संस्कार न हुआ हो(अनुपनीत)अथवा स्त्री शूद्र ये लोग पार्थिव लिंग बनाकर उसका पूजन करें। आटे या मिट्टी से पार्थिव शिवलिंग बन जाता है। अथवा शिव जी की मूर्ति याचित्र रखकर सामने पात्र रखे उसमें ही पूजा कर लें।
पूजन में कोई सामग्री उपलब्ध न हो सके तो उसके स्थान पर अक्षत चढ़ाकर "मनसा परिकल्प्य समर्पयामि" कहें।सर्वप्रथम हाथ में जल अक्षत फूल लेकर प्रहर पूजन का संकल्प कर लें-
संकल्प करें-
श्रीविष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद् भगवतो महापुरुषस्य,विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्रीश्वेत वाराहकल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशति तमे कलियुगे कलि प्रथम-चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे बौद्धावतारे आर्यावर्तैक देशान्तर्गते …(संवत्सरका नाम)…… संवत्सरे महांमागल्यप्रद मासोतमे मासे फाल्गुन मासे, कृष्ण पक्षे, चतुर्दश्यां तिथौ ……वार का नाम…… वासरे ……गोत्र का नाम…… गोत्रोत्पन्नः …… आपका नाम…… (शर्माऽहं/वर्माऽहं/गुप्तोऽहं / दासोऽहं)* ममात्मनः श्रुति स्मृति पुराणतन्त्रोक्त फलप्राप्तये ग्रहदोष, दैहिक, दैविक, भौतिक – त्रिविध ताप निवृत्यर्थं सर्वारिष्ट निरसन पूर्वक सर्वपाप क्षयार्थं, मनसेप्सित फल प्राप्ति पूर्वकं, दीर्घायु शरीरारोग्य कामनया धन-धान्य-बल-पुष्टि-कीर्ति-यश लाभार्थं, सकल आधि-व्याधि-दोष परिहारार्थं शिवरात्रि व्रतस्य सांगता सिद्धयर्थे रात्रिकाले [प्रथम / द्वितीय / तृतीय / चतुर्थ] प्रहरस्य श्रीशिवपूजनमहं करिष्ये।
[*अपने नाम के बाद ब्राह्मण शर्माऽहं कहें, क्षत्रिय वर्माऽहं कहें, वैश्य गुप्तोऽहं कहें, शूद्र दासोऽहं कहेंगे।]
अब दायें हाय में एक फूल लेकर भगवान सदाशिव का ध्यान करे-
ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरि-निभं चारु-चन्द्रा-वतंसं।
रत्नाकल्पो-ज्ज्वलाङ्गं परशुमृग-वराभीतिहस्तं प्रसन्नम्॥
पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममर-गणैर्व्याघ्र-कृत्तिं वसानं।
विश्वाद्यं विश्वबीजं निखिल-भयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम्॥
साङ्गाय सायुधाय सशक्तिकाय सवाहनाय श्री सांबसदाशिवाय नमः ध्यानार्थे पुष्पं समर्पयामि।
फूल चढ़ायें। अब पंचोपचार पूजा के अंतर्गत प्रत्येक वस्तु से सम्बन्धित मन्त्र से उन द्रव्यों को समर्पित करे-
१. चंदन लगायें -
श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सु-मनोहरम्।
विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रति-गृह्यताम्॥
साङ्गाय सायुधाय सशक्तिकाय सवाहनाय श्री साम्ब-सदाशिवाय नमः गन्धं समर्पयामि।
लं पृथिव्यात्मकं गन्धं श्री साम्ब सदाशिव पादुकाभ्यां नमः विलेपयामि।
प्रहर अनुसार अक्षत चढ़ायें -
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ शुभ्रा धूताश्च निर्मलाः।
मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर॥
साङ्गाय सायुधाय सशक्तिकाय सवाहनाय श्री साम्बसदाशिवाय नमः अक्षतान् समर्पयामि।
प्रथम प्रहर - अखण्डित अक्षत तथा काले तिलों से परात्मा शम्भु की पूजा करनी चाहिये।
द्वितीय प्रहर - तिल, यव से शिवजी की पूजा करे, विशेषकर बिल्वपत्रों से पूजन करना चाहिये।
तृतीय प्रहर - तिल, गेहूँ से शिवजी की पूजन करे।
चतुर्थ प्रहर - उड़द, कंगुनी, मूँग, सप्तधान्य से पूजा करे।
२. फूल चढ़ायें -
माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो।
मयाऽऽनीतानि पुष्पाणि गृहाण परमेश्वर॥
साङ्गाय सायुधाय सशक्तिकाय सवाहनाय श्री साम्बसदाशिवाय नमः पुष्पाणि समर्पयामि।
हं आकाशात्मकं पुष्पं श्री साम्ब सदाशिव पादुकाभ्यां नमः समर्पयामि।
प्रथम प्रहर - संभव हो तो कमलपुष्पों तथा कनेर के पुष्पों से व विशेषकर बिल्वपत्रों से शिव का पूजन करना चाहिये।
द्वितीय प्रहर - कमल के फूल व बिल्वपत्रों से पूजे।
तृतीय प्रहर - आक के पुष्प व बिल्वपत्रों से पूजे।
चतुर्थ प्रहर - शंखपुष्पी के फूल व बिल्वपत्रों से पूजे।
यदि कोई पुष्प न मिले तो जो फूल प्राप्त हों उनसे पूजे।
शिवजी के आठ नाममन्त्रों से शिवजी को पुष्प अर्पित करने चाहिये। भव, शर्व, रुद्र, पशुपति, उग्र, महान्, भीम एवं ईशान--ये आठ नाम हैं।
श्री भवाय जलमूर्तये नम:
श्री शर्वाय क्षितिमूर्तये नम:
श्री रुद्राय अग्निमूर्तये नम:
श्री पशुपतये यजमानमूर्तये नम:
श्री उग्राय वायुमूर्तये नम:
श्री महादेवाय सोममूर्तये नम:
श्री भीमाय आकाशमूर्तये नम:
श्री ईशानाय सूर्यमूर्तये नम:
बिल्वपत्र चढ़ाने का मंत्र -
बिल्वपत्रं सुवर्णेन त्रिशूलाकारमेव च।
मयाऽर्पितं महादेव! बिल्वपत्रं गृहाण मे॥
साङ्गाय सायुधाय सशक्तिकाय सवाहनाय श्री साम्बसदाशिवाय नमः बिल्वपत्राणि समर्पयामि।
३. यं वाय्व्यात्मकं धूपं श्री साम्ब सदाशिव पादुकाभ्यां नमः आघ्रापयामि।
कहकर शिव जी के लिये धूप आघ्रापित करें।
[विशेष रूप से तीसरे प्रहर में अनेक प्रकार के धूपों को जलाये]
वनस्पति-रसोद्भूतो गन्धाढ्यो गन्ध उत्तमः।
आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रति-गृह्यताम्॥
साङ्गाय सायुधाय सशक्तिकाय सवाहनाय श्री साम्ब-सदाशिवाय नमः धूपं आघ्रापयामि।
४. रं वह्न्यात्मकं दीपं श्री साम्ब सदाशिव पादुकाभ्यां नमः दर्शयामि।
साज्यं च वर्ति-संयुक्तं वह्निना योजितं मया।
दीपं गृहाण देवेश! त्रैलोक्य-तिमिरापहम्॥
साङ्गाय सायुधाय सशक्तिकाय सवाहनाय साम्ब-सदाशिवाय नमः दीपं दर्शयामि।
शिव जी को दीप दिखायें।
[तीसरे प्रहर में अधिक (३/५/११) दीपों को जलाये]
५. वं अमृत तत्वात्मकं नैवेद्यं श्री साम्ब सदाशिव पादुकाभ्यां नमः निवेदयामि।
शर्कराघृत-संयुक्तं मधुरं स्वादु चोत्तमम्।
उपहार-समायुक्तं नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्॥
शर्कराखण्ड-खाद्यानि दधिक्षीर-घृतानि च।
आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम् ॥
साङ्गाय सायुधाय सशक्तिकाय सवाहनाय साम्ब-सदाशिवाय नमः नैवेद्यं निवेदयामि।
नैवेद्य- प्रथम प्रहर - पक्वान्न का नैवेद्य समर्पण करे तथा श्रीफल (नारियल/ पूगीफल) से युक्त अर्घ्य देकर ताम्बूल समर्पित करें।
द्वितीय प्रहर - खीर का नैवेद्य समर्पित करे।
तृतीय प्रहर - नैवेद्य के रूप में मालपुओं एवं अनेक प्रकार के शाकों का भोग लगायें।
चतुर्थ प्रहर - अनेक प्रकार के मधुर पदार्थों से बना हुआ नैवेद्य अर्पित करे। अथवा उड़द के पक्वान्न से सदाशिव को सन्तुष्ट करे।
* इसके बाद फल चढ़ायें -
इदं फलं मया दत्तं स्थापितं पुरतस्तव। तेन मे सफलावाप्तिर् - भवेज्जन्मनि जन्मनि॥
श्री साम्ब-सदाशिवाय नमः, अखण्ड ऋतुफलानि समर्पयामि। फलान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।
बेर आदि फल अर्पित करके आचमनी से जल चढ़ाएं।
६. विशेष-अर्घ्य समर्पण - विशेषार्घ्य में गंध, अक्षत, तिल, दूर्वा, पुष्प के साथ फल रखकर अर्घ्य अर्पित करें-
त्र्यम्बकेश सदाचार जगदादि-विधायक।
अर्घ्यं गृहाण देवेश साम्ब-सर्वार्थ-दायक॥
साङ्गाय सायुधाय सशक्तिकाय सवाहनाय श्री साम्ब सदाशिवाय नमः। विशेषार्घ्यं समर्पयामि।
प्रथम प्रहर - श्रीफल(नारियल या पूगीफल) के साथ अर्घ्य दे।
द्वितीय प्रहर - बीजपूर (बिजौरा नींबू या अनार) के साथ अर्घ्य दे।
तृतीय प्रहर - अनार के साथ अर्घ्य प्रदान करे।
चतुर्थ प्रहर - केले से युक्त अर्घ्य शिवजी को प्रदान करे।
जो फल न मिल पाये उसके स्थान पर जो फल उपलब्ध हो उसको अर्घ्यपात्र में रखकर विशेषार्घ्य प्रदान करे।
७.इसके अनन्तर साष्टांग नमस्कार करे -
नमः सर्वहितार्थाय जगदाधारहेतवे।
साष्टाङ्गोऽयं प्रणामस्ते प्रयत्नेन मया कृतः॥
साङ्गाय सायुधाय सशक्तिकाय सवाहनाय श्रीसाम्बशिवाय नमः। सर्वांग नमस्कारान् समर्पयामि।
८. पुनः ध्यान करें -
कर्पूरगौरं-करुणावतारं
संसार-सारम् भुजगेन्द्र-हारम्।
सदावसन्तं हृदयारविन्दे
भवं भवानी-सहितं नमामि॥
संसार-सारम् भुजगेन्द्र-हारम्।
सदावसन्तं हृदयारविन्दे
भवं भवानी-सहितं नमामि॥
अर्थात् उन परमेश्वर स्वरूपी शिव संग भवानी को मेरा नमन है जिनका वर्ण कर्पूर के समान गौर है, जो करुणा के प्रतिमूर्ति हैं, जो सारे जगत के सार हैं, जिन्होने गलेमें सर्प के हार धारण कर रखे हैं और जो हमारे हृदय रूपी कमल में सदैव विद्यमान रहते हैं।
९. शिवमन्त्र का जप करें-
*जिनका यज्ञोपवीत संस्कार हो गया वे 'नमः शिवाय' मंत्र से पूजा व जप कर सकते हैं।
*मंत्र से दीक्षित साधक को गुरु के द्वारा दिये गये मन्त्र से शिवजी का पूजन व जप करना चाहिये।
*स्त्री शूद्र अदीक्षित अनुपनीत ये लोग नाममन्त्र - शिवाय नमः से जपें व पूजें।
प्रथम प्रहर - एक माला=१०८ जप करें। अथवा ११ बार।
द्वितीय प्रहर - प्रथम प्रहर का दो गुना जप करना चाहिये अर्थात् दो माला=२१६ जप करें। अथवा २२ बार जप करे।
तृतीय प्रहर - द्वितीय प्रहर का दो गुना जप। अर्थात् चार माला=४३२ जप करें। अथवा ४४ बार जप करे।
चतुर्थ प्रहर - तृतीय प्रहर का दो गुना जप। अर्थात् आठ माला=८६४ जप करें। अथवा ८८ बार जप करे।
अब जलधारा अवश्य प्रदान करे। इस जलधारा से ही भगवान के विग्रह पर समर्पित द्रव्यों को उतारे।
१०. इसके बाद धेनुमुद्रा दिखाकर निर्मल जल से शिव का दस बार तर्पण करें। अर्थात् आचमनी से जल अर्पित करें।
साङ्गाय सायुधाय सशक्तिकाय सवाहनाय श्री साम्ब सदाशिवाय नमः। श्री साम्ब सदाशिव पादुकां तर्पयामि नमः।
११. अब अपने सामर्थ्य के अनुसार एक या पाँच ब्राह्मणों को भोजन कराये।
अथवा बाद में भोजन कराने का संकल्प अभी कर लें-
श्रीविष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद् भगवतो महापुरुषस्य,विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्रीश्वेत वाराहकल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशति तमे कलियुगे कलि प्रथम-चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे बौद्धावतारे आर्यावर्तैक देशान्तर्गते …(संवत्सरका नाम)…… संवत्सरे महांमागल्यप्रद मासोतमे मासे फाल्गुन मासे, कृष्ण पक्षे, चतुर्दश्यां तिथौ ……वार का नाम…… वासरे ……गोत्र का नाम…… गोत्रोत्पन्नः …… आपका नाम…… (शर्माऽहं/वर्माऽहं/गुप्तोऽहं / दासोऽहं)* ममात्मनः श्रुति स्मृति पुराणतन्त्रोक्त फलप्राप्तये ग्रहदोष, दैहिक, दैविक, भौतिक – त्रिविध ताप निवृत्त्यर्थं सर्वारिष्ट निरसन पूर्वक सर्वपाप क्षयार्थं मनसेप्सित फल प्राप्ति पूर्वक, दीर्घायु शरीरारोग्य कामनया धन-धान्य-बल-पुष्टि-कीर्ति-यश लाभार्थं, सकल आधि-व्याधि-दोष परिहारार्थं श्रीशिवरात्रि व्रतस्य सांगता सिद्धयर्थे ……(ब्राह्मणों की संख्या)…… संख्यक ब्राह्मणान् भोजयिष्ये।
*अपने नाम के बाद ब्राह्मण शर्माऽहं कहें, क्षत्रिय वर्माऽहं कहें, वैश्य गुप्तोऽहं कहें, शूद्र दासोऽहं कहेंगे।
अथवा ब्राह्मण भोजन संभव न हो तो ब्राह्मण को दक्षिणा दान करने का संकल्प करें-
श्रीविष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद् भगवतो महापुरुषस्य,विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्रीश्वेत वाराहकल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशति तमे कलियुगे कलि प्रथम-चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे बौद्धावतारे आर्यावर्तैक देशान्तर्गते …(संवत्सरका नाम)…… संवत्सरे महांमागल्यप्रद मासोतमे मासे फाल्गुन मासे, कृष्ण पक्षे, चतुर्दश्यां तिथौ ……वार का नाम…… वासरे ……गोत्र का नाम…… गोत्रोत्पन्नः …… आपका नाम…… (शर्माऽहं/वर्माऽहं/गुप्तोऽहं / दासोऽहं)* ममात्मनः श्रुति स्मृति पुराणतन्त्रोक्त फलप्राप्तये ग्रहदोष, दैहिक, दैविक, भौतिक – त्रिविध ताप निवृत्यर्थं सर्वारिष्ट निरसन पूर्वक सर्वपाप क्षयार्थं मनसेप्सित फल प्राप्ति पूर्वक, दीर्घायु शरीरारोग्य कामनया धन-धान्य-बल-पुष्टि-कीर्ति-यश लाभार्थं, सकल आधि-व्याधि-दोष परिहारार्थं शिवरात्रि व्रतस्य सांगता सिद्धयर्थे ब्राह्मण भोजनाभावे इमां निष्क्रय दक्षिणां ब्राह्मणान् दास्ये।
१२.अब कर्पूर से आरती करे -
कदलीगर्भ-सम्भूतं कर्पूरं च प्रदीपितम्।
आरार्तिक्य-महं कुर्वे पश्य मे वरदो भव॥
साङ्गाय सायुधाय सशक्तिकाय सवाहनाय श्रीसाम्ब-सदाशिवाय नमः कर्पूरा-रार्तिक्यं समर्पयामि।
१३. इसके बाद भगवान शिव को पूजा का फल समर्पित करे -
गुह्याति गुह्य गोप्ता त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपं।
सिद्धिर्भवतु मे देव! त्वत् - प्रसादान् - महेश्वर॥
अनेन यथाशक्ति कृतेन श्री साम्ब सदाशिव पूजनाख्य कर्मणा उमा सहित श्री साम्ब-सदाशिव महादेव प्रीयतां नमः। सर्वं श्री साम्ब सदाशिवार्पण-मस्तु।
कहकर आचमनी से जल चढ़ाये।
१४. अब हाथ जोड़कर क्षमा याचना करे -
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व मां परमेश्वर॥
अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम।
तस्मात्-कारुण्य-भावेन रक्षस्व पार्वतीपते॥
जब तक प्रहर न बीते, तब तक महोत्सव करे। स्तोत्रादि पाठ करे, भजन करे। भक्तिपूर्वक भक्तजनों के साथ गीत, वाद्यों, नृत्यों तथा महोत्सवों के द्वारा अरुणोदय - पर्यन्त समय व्यतीत करना चाहिये।
सूर्यके उदित होने पर पुनः स्नान करके अनेक पूजनोपचारों तथा उपहारों से शिवार्चन करे। उस समय [ब्राह्मणोंके द्वारा] अपना अभिषेक करवाये अथवा शिवाय नमः मंत्र द्वारा पुष्प आदि से सर पर जल छिड़के।
पुनः अनेक प्रकार के दान दे। रात्रि के प्रहरों में संकल्पित ब्राह्मणों एवं संन्यासियों को विविध प्रकार का भोजन कराये। दक्षिणा दान करें।
तदनन्तर बुद्धिमान् पुरुष शिवजी को नमस्कार करके पुष्पांजलि अर्पित करे और उत्तम स्तुति करके निम्नांकित मन्त्रों से प्रार्थना करे-
तावकस्-त्वद्गत-प्राणस्-त्वच्चित्तोऽहं सदा मृड।
कृपानिधे इति ज्ञात्वा यथायोग्यं तथा कुरु॥ (७८)
(हे मृड! हे कृपानिधे! मैं आपका हूँ, मेरे प्राण एवं चित्त सदा आपके आश्रित हैं - ऐसा जानकर जो उचित हो, वैसा आप
करें।)
अज्ञानाद्यदि वा ज्ञाना-ज्जप-पूजादिकं मया।
कृपानिधि-त्वाज्-ज्ञात्वैव भूतनाथ प्रसीद मे॥
हे भूतनाथ! मैंने ज्ञान से अथवा अज्ञान से जो भी जप, पूजन आदि किया है, कृपानिधि होने से उसे जान करके आप प्रसन्न हों।
अनेनेवोपवासेन यज्जातं फलमेव च।
तेनैव प्रीयतां देवः शंकरः सुखदायकः॥
(हे प्रभो! इस उपवास के द्वारा जो फल प्राप्त हुआ है, उससे सुखदायक आप शंकरदेव प्रसन्न हों।)
कुले मम महादेव भजनं तेऽस्तु सर्वदा।
माभूत्तस्य कुले जन्म यत्र त्वं नहि देवता॥
[हे महादेव! मेरे कुल में सर्वदा आपका भजन होता रहे, मेरा जन्म उस कुल में न हो, जिसमें आप कुलदेवता न हों।](८१)
इस प्रकार पुष्पांजलि समर्पित करके ब्राह्मणों से आशीर्वाद एवं तिलक ग्रहण करे।
इसके बाद यदि पार्थिव लिंग स्थापित किया था तो बहते पवित्र जल में उस पार्थिव शिवलिंग का विसर्जन करे।
हे विष्णो! जिसने इस प्रकार मेरा व्रत किया, मैं उससे दूर नहीं रहता, उसके फल का वर्णन नहीं किया जा सकता और उस भक्तके लिये मेरे पास कुछ भी अदेय नहीं है॥८२-८३॥
जिसने अनायास भी इस उत्तम व्रत को किया, उसमें मानो मुक्ति का बीज ही अंकुरित हो गया है, इसमें सन्देह नहीं करना चाहिये।
व्रतस्य करणान्नूनं शिवोऽहं सर्वदुःखहा।
दद्मि भुक्तिं च मुक्तिं च सर्वं वै वाञ्छितं फलम्॥
(इस व्रत को करनेपर मैं शिव निश्चित रूप से सारे दुःखों को दूर करता हूँ और भोग, मोक्ष व सम्पूर्ण वांछित फल प्रदान
करता हूँ)
इस प्रकार से श्री शिव महा पुराण में जैसी शिवरात्रि पूजा वर्णित है वो यहाँ प्रस्तुत की गई।
भगवान साम्ब सदाशिव महेश्वर को हमारा अनेकों बार प्रणाम🙏
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