नोट - यहाँ प्रकाशित साधनाओं, स्तोत्रात्मक उपासनाओं को नियमित रूप से करने से यदि किसी सज्जन को कोई विशेष लाभ हुआ हो तो कृपया हमें सूचित करने का कष्ट करें।

⭐विशेष⭐


23 अप्रैल - मंगलवार- श्रीहनुमान जयन्ती
10 मई - श्री परशुराम अवतार जयन्ती
10 मई - अक्षय तृतीया,
⭐10 मई -श्री मातंगी महाविद्या जयन्ती
12 मई - श्री रामानुज जयन्ती , श्री सूरदास जयन्ती, श्री आदि शंकराचार्य जयन्ती
15 मई - श्री बगलामुखी महाविद्या जयन्ती
16 मई - भगवती सीता जी की जयन्ती | श्री जानकी नवमी | श्री सीता नवमी
21 मई-श्री नृसिंह अवतार जयन्ती, श्री नृसिंहचतुर्दशी व्रत,
श्री छिन्नमस्ता महाविद्या जयन्ती, श्री शरभ अवतार जयंती। भगवत्प्रेरणा से यह blog 2013 में इसी दिन वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को बना था।
23 मई - श्री कूर्म अवतार जयन्ती
24 मई -देवर्षि नारद जी की जयन्ती

आज - कालयुक्त नामक विक्रमी संवत्सर(२०८१), सूर्य उत्तरायण, वसन्त ऋतु, चैत्र मास, शुक्ल पक्ष।
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श्री त्रिपुरसुन्दरी षोडशी महाविद्या की स्तोत्रात्मक उपासना [श्रीविद्या खड्गमाला]

प्र
त्येक धर्मशील जिज्ञासु के मन में ये प्रश्न उठते ही हैं कि जीव का ब्रह्म से मिलन कैसे हो? जीव की ब्रह्म के साथ एक-रूपता कैसे हो? इस हेतु हमारे आगम ग्रंथों में अनेक विद्याएँ उपलब्ध हैं। शक्ति-उपासना में इसी सन्दर्भ में दश-महाविद्याएँ भी आती हैं। उनमें महाविद्या भगवती षोडशी अर्थात श्रीविद्या का तीसरा महत्त्व-पूर्ण स्थान है, श्रीविद्या को सामान्य रूप से, श्री प्राप्त करने की विद्या कह सकते हैं और आध्यात्मिक रूप से इसे मोक्ष प्राप्त करने की अत्यन्त प्राचीन परम्परा कहा जा सकता है। शब्दकोशों के अनुसार श्री के कई अर्थ हैं- लक्ष्मी, सरस्वती, ब्रह्मा, विष्णु, कुबेर, त्रिवर्ग(धर्म-अर्थ व काम), सम्पत्ति, ऐश्वर्य, कान्ति, बुद्धि, सिद्धि, कीर्ति, श्रेष्ठता आदि। इससे भी श्रीविद्या की महत्ता ज्ञात हो जाती है।

राजराजेश्वरी भगवती ललिता की आराधना को सम्पूर्ण भारत में एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। जगद्गुरु श्री शंकराचार्य के चारों मठों में (1.गुजरात के द्वारका में, 2.उत्तराखंड के जोशीमठ में स्थित शारदा पीठ, 3.कर्नाटक के श्रृंगेरी पीठ व 4.उड़ीसा के पुरी में) इन्हीं का यजन-पूजन होता है। इन शांकर पीठों से या योग्य गुरु से श्रीविद्या की मन्त्र दीक्षा प्राप्त कर ही भगवती त्रिपुरसुन्दरी की मन्त्र व यन्त्र साधना में प्रवृत होना चाहिए इसलिए दीक्षित व्यक्ति तो माँ ललिता की आराधना करते ही हैं लेकिन जिन्हें विधिवत मन्त्र दीक्षा न मिल पाई हो वे भी भगवती त्रिपुरसुन्दरी केे "स्तोत्रों" का पाठ करके माँ त्रिपुरसुन्दरी की स्तोत्रात्मक उपासना कर सकते हैं। स्तोत्र द्वारा स्तुति करने से देवता के प्रति सद्भावना बढ़ती है तथा देवता की कृपा भी सहज ही मिल जाती है इसलिए हमें स्तोत्रों के पाठ में अधिकाधिक समय देना चाहिए।

षोडशी महाविद्या ही हैं भगवती कामेश्वरी
जो पञ्च-शवासना हैं, जिन्हें जानने से सब जाना जाता है, जिन्हें सुनने से सब सुना जाता है, जिन्हें समझने से सब समझा जाता है, उन्हीं भगवती का उल्लेख तन्त्रों में राजराजेश्वरी, षोडशी, महात्रिपुर-सुन्दरी, श्रीसुन्दरी, ललिता, कामेश्वरी आदि नामों से हुआ है। भगवती महात्रिपुरसुंदरी का एक स्वरूप 'श्रीयन्त्र' भी है। 'तन्त्र' में भगवती कामेश्वरी और भगवती षोडशी महाविद्या के ध्यान का मन्त्र भी एक ही है तथा कहा गया है कि जो इन्हें जानता है, वह सर्वज्ञ है, मुक्त है। 'त्रिपुरोपनिषद्‌' के अनुसार- "पुरं हन्त्री मुखं विश्वमान्‌ रवे रेका स्वर-मध्यं तदेषा। वृहन्तिथिर्दश पञ्च च नित्या स षोडशीकं पुरमध्यं विभर्ति।" इससे सिद्ध होता है कि भगवती त्रिपुरसुन्दरी अथवा कामेश्वरी ही षोडशी महाविद्या है।

पञ्चप्रेतासनस्था श्रीषोडशी त्रिपुरसुन्दरी 

चिन्मय तथा अव्यक्त रूप वाली भगवती षोडशी का आसन पञ्च-प्रेतासन है। अर्थात्‌ १. ब्रह्मा , २. विष्णु ,३. रुद्र, ४. ईश्वर और ५. सदाशिव- ये 'पञ्च महाप्रेत' हैं। ये पाँच महाप्रेत व्यक्त प्रकृति में सृष्टि को सञ्चालित करने के लिए पाँच मंडलों क्रमशः - पृथ्वी मण्डल, चन्द्र मण्डल, सूर्य मण्डल, परमेष्ठी मंडल स्वयंभू-मण्डल का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन पांचों ने अ, उ, म, नाद तथा बिंदु के  रूप में प्रणव का आश्रय लिया है। ब्रह्मा विष्णु रुद्र ईश्वर सदाशिव ये पाँचों पञ्चमहाभूतों के साथ-साथ जाग्रत्‌, स्वप्न, सुषुप्ति, तुरीय तथा तुरीयातीत- इन पाँच अवस्थाओं के भी स्वरूप हैं।

श्रीमहा-कामेश्वर और श्रीमहा-कामेश्वरी 
प्रकाशरूप निराकार निर्विशेष परब्रह्म ही अपनी शक्ति के द्वारा ब्रह्मा-विष्णु-रुद्र-ईश्वर-सदाशिव इन पञ्च स्वरूपों को प्राप्त होकर वामा, ज्येष्ठा, रौद्री, काली, कलविकरिणी, बलविकरिणी, बलप्रमथिनी, सर्वभूतदमनी, मनोन्मनी शक्तियों के सान्निध्य से सृष्टि, स्थिति, संहार, निग्रह और अनुग्रह-रूपी पञ्च कृत्यों को सम्पादित करते हैं। ये पञ्च देव अपनी वामा आदि-शक्तियों से रहित होने पर 'प्रेत' कहे जाते हैं क्योंकि ब्रह्मस्वरूपिणी शक्ति के बिना शिव भी शव ही हैं। ब्रह्मा,विष्णु, रुद्र व ईश्वर अथवा पृथ्वी, चन्द्र, सूर्य व परमेष्ठी-ये  भगवती के परब्रह्ममय सिंहासन के चार पाए हैं। सदाशिव स्वयम्भू उस सिंहासन के फलक हैं। उस पर श्रीमहा-कामेश्वरांक में श्रीमहा-कामेश्वरी अर्थात्‌ जगदम्बा षोडशी महात्रिपुरसुंदरी विराजमान हैं।

सत्य तो यह है कि उपाधि से रहित शुद्ध स्वात्मा(सर्वथा निरुपाधिक आत्मा) महाकामेश्वर हैं और सदानन्द-रूप उपाधियुक्त स्वात्मा(उपासक की आत्मा) जगदम्बा षोडशी अर्थात्‌ त्रिपुरसुन्दरी हैं। परदेवता स्वात्मा से भिन्न होने पर भी अन्तःकरणोपाधिक आत्मा(उपासक) है और सदानन्द की उपाधि से पूर्ण उपास्य है।

श्रीमहात्रिपुरसुंदरी की स्तोत्रात्मक उपासना

   श्रीविद्यार्णव तन्त्र, श्री विद्या रत्नाकर, मन्त्र महार्णव, शाक्त प्रमोद आदि ग्रंथों में भगवती राजराजेश्वरी के अनेक स्तोत्र व विस्तृत पूजा विधान संकलित हैं। श्री विद्या के स्तोत्रों का भंडार विस्तृत है जैसे-  कल्याणवृष्टि स्तव, श्री राज राजेश्वरी अष्टक, श्री ललिता अष्टोत्तरशत नाम स्तोत्र, ललितात्रिशती स्तोत्र, ललिता सहस्र नाम स्तोत्र, महात्रिपुर सुंदरी कवच, अर्धनारीश्वर अष्टोत्तरशत नाम स्तोत्र, षोडशी अष्टोत्तरशत नाम स्तोत्र, षोडशी सहस्रनाम स्तोत्र, षोडशी कवच....आदि। कवच स्तोत्र का पाठ करने उपासक विघ्न बाधाओं से सहज ही छुटकारा पा लेता है। देवी राजराजेश्वरी त्रिपुरसुन्दरी के कई स्तोत्र काफी बड़े भी हैं जैसे सौन्दर्य लहरी स्तोत्र सौ श्लोकों का है। इनके अनेक कवच स्तोत्र मिलते हैं, इनमें से श्री षोडशी त्रिपुरसुन्दरी कवच मुख्य है भी और आकार में लघु भी है और लाभदायक भी। श्री त्रिपुरसुन्दरी उपासक नित्य पाठ में इसे पढ़ सकते हैं। यह कवच स्तोत्र यहाँ प्रस्तुत है -

श्रीषोडशी त्रिपुरसुन्दरी कवच

श्रीगणेशाय नमः। श्रीराजराजेश्वरी-षोडशी-त्रिपुरसुंदर्यै नमः।
श्री देव्युवाच
देवदेव महादेव भक्तानां प्रीति-वर्द्धनम्।
सूचितं यन्महादेव्याः कवचं कथयस्व मे॥१॥
(देवी ने कहा - हे देवों के देव महादेव तुम भक्तों की प्रीति को बढ़ाते रहते हो इसलिए तुमने पहले जो महादेवी के कवच का उल्लेख किया था उसे मुझसे कहें)

श्री महादेव उवाच
श्रृणु देवि प्रवक्ष्यामि कवचं देवदुर्लभम्।
न प्रकाश्यं परं गुह्यं साधकाभीष्ट-सिद्धिदम्॥२॥
(शिव जी ने कहा - हे देवि! सुनो देवताओं को भी दुर्लभ यह कवच कहूंगा जो गोपनीय तथा प्रकट न करने योग्य है और साधक को सब प्रकार की इष्ट सिद्धियां प्राप्त कराने वाला है)

कवचस्य ऋषिर्देवि दक्षिणामूर्तिरव्ययः।
छन्दः पङ्क्तिः समुद्दिष्टं देवी त्रिपुर-सुन्दरी॥३॥
(इस कवच के श्रीदक्षिणामूर्ति ऋषि हैं, पंक्ति छन्द है, त्रिपुरसुन्दरी इसकी देवी हैं)
धर्मार्थ-काम-मोक्षाणां विनियोगस्तु साधने।
वाग्भवः कामराजश्च शक्ति-बीजं सुरेश्वरि॥४॥
(इसका वाग्भव (ऐं) बीज व कामराज(क्लीं) कीलक है, सौः शक्ति है, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष की प्राप्ति के लिए इसका विनियोग किया जाता है )

विनियोग -  हाथ में जल लेकर कहे - "ओऽम् अस्य श्री षोडशी कवचस्य श्री दक्षिणामूर्तिर्ऋषिः पङ्क्तिश्छन्दः श्री त्रिपुरसुन्दरी देवता ऐं बीजं सौः शक्तिः क्लीं कीलकं श्रीषोडशी-महात्रिपुरसुंदरी प्रीतिद्वारा धर्मार्थकाममोक्ष प्राप्तये जपे विनियोगः" जल छोड़ दे 

(कवच पाठ)
ऐं वाग्भवः पातु शीर्षे मां क्लीं कामराजस्तथा हृदि।
सौः शक्तिबीजं सदा पातु नाभौ गुह्ये च पादयोः॥५॥

ऐं क्लीं सौः वदने पातु बाला मां सर्वसिद्धये।
ह्सौः सकलह्रीं पातु भैरवी कण्ठ-देशतः॥६॥

सुन्दरी नाभिदेशे च शीर्षे कामकला सदा।
भ्रू-नासयोरन्तराले महा-त्रिपुर-सुन्दरी॥७॥

ललाटे सुभगा पातु भगा मां कण्ठ-देशतः।
भगोदया च हृदये उदरे भग-सर्पिणी॥८॥

भग-माला नाभिदेशे लिङ्गे पातु मनोभवा ।
गुह्ये पातु महा-देवी राज-राजेश्वरी शिवा ॥९॥

चैतन्य-रूपिणी पातु पादयोर्जगदम्बिका।
नारायणी सर्व-गात्रे सर्व-कार्ये शुभङ्करी॥१०॥

ब्रह्माणी पातु मां पूर्वे दक्षिणे वैष्णवी तथा।
पश्चिमे पातु वाराही उत्तरे तु महेश्वरी॥११॥

आग्नेय्यां पातु कौमारी महालक्ष्मीस्तु नैर्ऋते।
वायव्यां पातु चामुण्डा इन्द्राणी पातु ईशके॥१२॥

जले पातु महामाया पृथिव्यां सर्वमङ्गला।
आकाशे पातु वरदा सर्वत्र भुवनेश्वरी॥१३॥

(फलश्रुति)
इदं तु कवचं देव्या देवानामपि दुर्लभम्।
पठेत्प्रातः समुत्थाय शुचिः प्रयतमानसः॥१४॥
(यह कवच देवताओं को भी दुष्प्राप्य है, इसे प्रभात काल में जगकर (नहाकर)पवित्र होकर एकाग्र मन से पढ़ना चाहिए)

नाधयो व्याधयस्तस्य न भयं च क्वचिद्भवेत्।
न च मारी-भयं तस्य पातकानां भयं तथा॥१५॥
(इस कवच के नियमित पाठक को आधि (मानसिक कष्ट) व व्याधि (शारीरिक कष्ट) तथा अन्य किसी प्रकार का भय नहीं रहता और महामारी का भय तथा पापों का भय नहीं रहता)

न दारिद्र्य-वशं गच्छेत्तिष्ठेन्मृत्यु-वशे न च।
गच्छेच्छिव-पुरं देवि सत्यं सत्यं वदाम्यहम्॥१६॥
(हे देवि! वह पाठकर्ता दरिद्रता के वश में नहीं आता, मृत्यु-मुख में नहीं पड़ता। हे देवि! वह व्यक्ति शिवलोक को पाता है यह मैं सर्वथा सत्य कह रहा हूँ)

इदं कवचमज्ञात्वा श्रीविद्यां यो जपेत्सदा।
स नाप्नोति फलं तस्य प्राप्नुयाच्छस्त्र-घातनम्॥१७॥
(इस कवच को नहीं जानकर जो श्री विद्यामन्त्र जपता है उसको उसका फल नहीं मिलता और शस्त्र द्वारा चोट पहुंचती है)
॥सिद्धयामले श्रीषोडशी-त्रिपुरसुन्दरी कवचं शुभमस्तु॥

अब हम यहाँ श्री विद्या खड्गमाला स्तोत्र विधि सहित प्रस्तुत कर रहे हैं। भगवती ललिता त्रिपुरसुंदरी की आराधना बहुत विस्तार के साथ सम्पन्न होती है। इस सम्बन्ध में विशाल साहित्य का भंडार भी है, जिसका अधिकांश हिस्सा संस्कृत में होने से और गूढ व जटिल बातें लिखी होने से विद्वान्‌ लोग ही अध्ययन एवं प्रयोग कर पाते हैं। परशुराम कल्पसूत्र, तत्त्व-चिन्तामणि, तन्त्रराज तन्त्र, श्रीविद्यार्णव तन्त्र, त्रिपुरार्णव तन्त्र, परमानन्द तन्त्र आदि ग्रन्थ भगवती ललिता की आराधना के लिए उपयोगी ग्रन्थ हैं। ये ग्रन्थ आज भी उपलब्ध हैं, किन्तु आज के भाग दौड़ भरे समय में इनका अध्ययन कर इनके आधार पर राज-राजेश्वरी भगवती ललिता की पूर्ण विस्तार से आराधना कर पाना सबके वश की बात नहीं है। फलतः राजराजेश्वरी भगवती ललिता की आराधना के लिए प्रसिद्ध स्तोत्र, जैसे- अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र, श्री विद्या खड्गमाला, श्रीललिता त्रिशती, श्रीललिता-सहस्त्र-नाम आदि ही साधकों के काम आते हैं। वे इन दिव्य स्तोत्रों के आधार पर भगवती त्रिपुरसुंदरी की आराधना करते हैं।
भगवती राजराजेश्वरी श्री त्रिपुरसुंदरी अर्थात् श्री विद्या की उपासना से सम्बन्धित समस्त स्तोत्रों में श्री विद्या खड्गमाला या श्री देवी खड्गमाला स्तोत्र एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है इसी कारण इसे स्तोत्र'रत्न' की उपाधि दी गयी है। इसमें श्री चक्र के प्रत्येक आवरण के प्रत्येक देवताओं के नामों को एक विशिष्ट क्रम से गुंफित करके श्री देवी को सम्बोधित किया गया है इसलिए इसे शुद्ध शक्ति सम्बुद्ध्यन्त माला-मन्त्र भी कहा जाता है। 
श्री विद्या का जो सम्पूर्ण पूजन विधान है वह दीक्षित साधक द्वारा ही करणीय तथा समयसाध्य व अति विस्तृत है उसकी विधि श्री विद्यार्णव तन्त्र, गन्धर्व तन्त्र, शाक्त प्रमोद, श्री विद्या रत्नाकर जैसे ग्रंथों  में ही द्रष्टव्य है।
लेकिन विशेष बात यह है कि जो समयाभाव के कारण श्री यन्त्र का विधिवत विस्तृत पूजन करने में असमर्थ हों उन्हें इस स्तोत्र का पाठ करने से श्रीचक्र पूजा का फल भी मिल जाता है। इसमें श्रीचक्रावरण देवताओं के नाम संहार क्रम में हैं इसलिए यह स्तोत्र खड्ग स्वरूप है जिस कारण कहते हैं कि नया-नया पारायण(पाठ) शुरु करने पर शुरूआती समय में आर्थिक समस्या रह सकती है परंतु बाद में सब ठीक हो जाता है।आर्थिक दबाव न बने इसके लिए इस स्तोत्र का पाठ करने के बाद माँ ललिता के 108 नामों का पाठ या फिर त्रिशती(300 नामों) का पाठ भी अवश्य करना चाहिए, वह सौभाग्य प्रद अष्टोत्तरशत नाम स्तोत्र भी हमने यहाँ दे दिया है। इसके साथ ही शान्ति स्तोत्र भी पढ़ना चाहिए वह भी यहां दिया गया है। खड्गमाला स्तोत्र का एक समय में अधिक बार पाठ नहीं किया जाता, प्रतिदिन शुद्धता के साथ केवल एक पाठ ही पर्याप्त होता है। 

विशेष-⭐श्री विद्या खड्गमाला स्तोत्र का तीनों समय(सुबह, मध्याह्न, शाम) एक-एक पाठ  करे। ऐसा एक महीने तक प्रतिदिन करने से "श्रीविद्या के मंत्र के मासिक पुरश्चरण" के समान ही फल होता है। इससे पापों से मुक्ति व पुण्य की वृद्धि होती है तथा असाध्य रोगियों को भी स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है। भूत-प्रेत इस खड्गमाला के नियमित पाठकर्ता को देखकर भागने लगते हैं।

 अब श्री विद्या खड्गमाला स्तोत्र का पारायण विधान प्रस्तुत है-

श्रीदेवी 'शुद्ध-शक्ति' खड्गमाला-स्तोत्ररत्नम् 

पूजन सामग्री- अपने सामने श्रीयन्त्र या श्री त्रिपुरसुन्दरी भगवती का चित्र या लक्ष्मी जी की मूर्ति या माँ दुर्गा की मूर्ति रखनी चाहिए। साथ में जल युक्त पात्र, आचमनी, रोली, चंदन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दिया (तेल या घृत का), धूप।

सावधानीकाली तन्त्र, प्रपंचसार, आगम तत्वविलास आदि के अनुसार साधना में शूद्र, स्त्री और ऐसे जिनका जनेऊ/उपनयन नहीं हुआ है वो और स्वाहा तथा वेदमन्त्र नहीं बोलें; ॐ की जगह ह्रीं या औं बोला जा सकता है।वे स्वाहा की जगह नमः बोले। सुविधा के लिए हम प्रायः बता देते हैं कि कौन सा वेदमन्त्र है

आचमन - तीन आचमन करे- 1.ॐ श्री केशवाय नमः 2.ॐ श्री माधवाय नमः 3.ॐ श्री नारायणाय नमः। 
अब ॐ श्री हृषीकेशाय नमः से जल भूमि पर छोड़ दे- 

पवित्रीकरण-स्वयम् पर जल छिड़के- ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:।। 
जल आसन पर छिड़क दे- ॐ पृथ्वि! त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां नित्यं पवित्रं कुरु चासनम्‌॥ 

संकल्प- सर्वप्रथम हाथ में जल अक्षत फूल लेकर खड्गमाला पारायण का संकल्प करें - ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: ॐ तत्सत् श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य श्रीब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्रीश्वेत-वाराहकल्पे वैवस्वत-मन्वन्तरे, अष्टाविंशति-तमे कलियुगे, कलि-प्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे भूप्रदेशे----प्रदेशे---नगरे/ग्रामे----नाम्नि सम्वत्सरे, सूर्य-(दक्षिणायने/उत्तरायणे)-----ऋतौ----मासे ------पक्षे , ----तिथौ, ----वासरे -----गोत्रोत्पन्न ----(नाम) अहं श्री राजराजेश्वरी महात्रिपुर सुंदरी परदेवता प्रसाद सिद्धि द्वारा सर्वाभीष्ट प्राप्त्यर्थं श्री शुद्ध शक्ति खड्गमाला-मन्त्र पाठाख्यं कर्म करिष्ये।

विनियोग:- ॐ अस्य श्रीशुद्धशक्ति-माला-महा-मन्त्रस्य, उपस्थेन्द्रियाधिष्ठायि वरुणादित्य ऋषिः देवी गायत्री छन्दः सात्विक 'क'कार-भट्टारक-पीठस्थित श्री महा-कामेश्वराङ्क-निलया महा-कामेश्वरी श्रीललिता भट्टारिका देवता, ऐं वाग्भव बीजं, सौः शक्तिकूट शक्तिः, क्लीं कामराज कीलकं श्री ललिता महा-त्रिपुरसुन्दरी प्रसाद-सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः।

ऋष्यादिन्यास:- • उपस्थेन्द्रियाधिष्ठायिने वरुणादित्य ऋषये नमः शिरसि (सिर का स्पर्श करे)
 देवी गायत्री छन्दसे नमः मुखे (मुख स्पर्श करे)
 सात्विक 'क'कार-भट्टारक-पीठस्थित श्री महा- कामेश्वराङ्क-निलया महा-कामेश्वरी श्री ललिता भट्टारिका देवतायै नमः हृदिः (हृदय का स्पर्श)
 ऐं वाग्भव बीजाय नमः गुह्ये (गुह्य स्थल का स्पर्श)
 सौः शक्तिकूट शक्तये नमः पादयोः (पैरों का स्पर्श करे)
 क्लीं कामराज कीलकाय नमः नाभौ (नाभि स्पर्श करे)
 श्री ललिता महा-त्रिपुरसुन्दरी प्रसाद-सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे (सभी अंग छुए)

षडङ्गन्यासः- (१)ह्रां हृदयाय नमः’(दाहिने हाथ की पाँचों अङ्गुलियों से हृदय का स्पर्श करे)
(२) ‘ह्रीं शिरसे स्वाहा’ (दाहिने हाथकी पाँचों अङ्गुलियों से मस्तक का स्पर्श करे)
(३) ‘ह्रूं शिखायै वषट्’(दाहिने हाथ की पाँचों अङ्गुलियों से शिखा स्थल का स्पर्श)
(४)ह्रैं कवचाय हुम्’ (दाहिने हाथ की पाँचों अङ्गुलियों से बायें कंधे का और बायें हाथ की पाँचों अङ्गुलियों से दाहिने कंधे का स्पर्श)
(५)ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्’ (तर्जनी अंगुली से दाहिने नेत्र का, अनामिका अंगुली से बायें नेत्र का तथा मध्यमा अंगुली से ललाट के मध्य भाग का अर्थात् वहाँ गुप्त रूप से स्थित रहने वाले ज्ञाननेत्र का एक साथ स्पर्श करे)
(६)ह्रः अस्त्राय फट्’ (दाहिने हाथको सिरके ऊपरसे उलटा अर्थात् बायीं तरफसे पीछेकी ओर ले जाकर दाहिनी तरफसे आगेकी ओर ले आये तथा तर्जनी और मध्यमा अङ्गुलियोंसे बायें हाथकी हथेलीपर ताली बजाये)

करन्यासः- (१)ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः’ (ऐसा कहकर दोनों हाथों के अंगूठों का परस्पर स्पर्श करे)
(२)ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः’ (दोनों हाथोंकी तर्जनी अङ्गुलियोंका परस्पर स्पर्श)
(३)ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः’ (दोनों हाथोंकी मध्यमा अङ्गुलियोंका परस्पर स्पर्श)
(४)ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः’ (दोनों हाथोंकी अनामिका अङ्गुलियों का परस्पर स्पर्श)
(५)ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः’ (दोनों हाथोंकी कनिष्ठिका अङ्गुलियोंका परस्पर स्पर्श)
(६)ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः’ (दोनों हाथोंकी हथेलियों और उनके पृष्ठभागोंका स्पर्श)
ध्यानम्
 हाथ में पुष्प लेकर ध्यान करे -
अरुणां करुणा तरङ्गिताक्षीं धृत-पाशाङ्कुश पुष्प-बाण-चापाम्। अणिमादि-भिरावृतां मयूखै-रहमित्येव विभावये भवानीम्॥१॥
(जो रक्त वर्ण वाली हैं, जिनकी आंखों में करुणा तरंगित हो रही है, जिन्होंने पाश, अंकुश, धनुष और पुष्पमय बाण धारण किया हुआ है, जो अणिमा आदि रूपी लाल रश्मियों से घिरी हुई हैं, ऐसी भवानी भगवती त्रिपुरसुन्दरी का मैं ध्यान करता हूँ)
अति-मधुर-चाप-हस्तामपरिमित-मोद-मान-सौभाग्याम्।
अरुणामतिशय-करुणामभिनव-कुल-सुन्दरीं वन्दे॥२॥
(अत्यन्त मीठे गन्ने से बने धनुष को हाथ में धारण करने वाली असीमित प्रसन्नतामयी, सौभाग्य देने वाली, रक्त वर्णा, अतिशय करुणा से परिपूर्ण भगवती षोडशी त्रिपुरसुन्दरी की मैं वन्दना करता हूँ)
Shri vidya Khadgamala
आरक्ताभां त्रिनेत्रां मणि-मुकुट-वतीं रत्न-ताटङ्क-रम्यां,
हस्ताम्भोजैः स-पाशाङ्कुश-मदनधनुः सायकै-र्विस्फुरन्तीम्।
आपीनोत्तुङ्ग-वक्षोरुह-युग-विलुठत्तार-हारोज्ज्वलाङ्गीं,
ध्याये-दाम्भोरुहस्था-मरुण-सुवसना-मीश्वरी-मीश्वराणाम्॥३॥
(जो लाल रंग की आभा वाली तीन नेत्रों वाली हैं, जिन्होंने मणिमय मुकुट और रत्नमय कुंडलों को धारण किया हुआ है, हाथों में पाश, अंकुश,  कामदेव के धनुष व पुष्पमय बाणों को धारण किया है, जिनके वक्षस्थल पर चमकता हुआ सुंदर हार शोभा पा रहा है, जो सुन्दर लाल वस्त्र धारण करके लाल कमल पर बैठी हुई हैं, जो ईश्वरों की ईश्वरी हैं,मैं उन भगवती त्रिपुरसुन्दरी देवी का ध्यान करता हूंं)
तादृशं खड्ग-माप्नोति येन हस्त-स्थितेन वै
अष्टादश-महाद्वीप-सम्राट् - भोक्ता-भविष्यति॥४॥
(हे राजराजेश्वरी ललिताम्बा आपके भक्त को ज्ञान रूपी ऐसा खड्ग प्राप्त होता है जिससे वह 18 महाद्वीपों का शासक भोक्ता हो जाता है)

मानस पूजा -
लं पृथिवी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीशिव-कामेश्वरांक-निलया श्रीकामेश्वरी ललिता-श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (कनिष्ठिका अंगुली से अंगूठे को मिलाकर अधोमुख(नीची) करके भगवान को दिखाए, यह गन्ध मुद्रा है)

हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीशिव-कामेश्वरांक-निलया श्रीकामेश्वरी ललिता-श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (अधोमुख तर्जनी व अंगूठा मिलाकर बनी पुष्प मुद्रा दिखाए)

यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्रीशिव-कामेश्वरांक-निलया श्रीकामेश्वरी ललिता-श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्वमुख(उपर को) तर्जनी व अंगूठे को मिलाकर दिखाए)

रं वह्नि-तत्त्वात्मकं दीपं श्रीशिव-कामेश्वरांक-निलया श्रीकामेश्वरी ललिता-श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्व मुख मध्यमा व अंगूठे को दिखाए)

वं अमृत-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्रीशिव-कामेश्वरांक-निलया श्रीकामेश्वरी ललिता-श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्व मुख अनामिका व अंगूठे को दिखाए)

सौं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलादि सर्वोपचाराणि मनसा परिकल्प्य श्रीशिव-कामेश्वरांक-निलया श्रीकामेश्वरी ललिता-श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(सभी अंगुलियों को मिलाकर ऊर्ध्वमुखी करते हुए दिखाये)

श्रीगुरु वन्दना
गुरु या शिव जी के विग्रह पर पुष्प/अक्षत अर्पित करे-
श्री दक्षिणामूर्तये विद्महे ध्यान-स्थिताय धीमहि तन्नो धीरः प्रचोदयात्। श्रीदक्षिणामूर्ति गुरवे नमः, श्री पादुकां पूजयामि।
नमस्कार करे-
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः,
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।
अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया, चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः।
महागणपति पूजन
पुष्प या अक्षत अर्पित करे -
ऐं आत्म तत्व व्यापकाय महा-गणपतये श्री पादुकां पूजयामि नमः।
• ह्रीं विद्या तत्व तत्व व्यापकाय महा-गणपतये श्री पादुकां पूजयामि नमः।
श्रीं शिव तत्व व्यापकाय महा-गणपतये श्री पादुकां पूजयामि नमः।

श्री शुद्धशक्ति खड्गमाला  पारायण
(कोष्ठक में स्तोत्र समझने के लिए विवरण दिया गया है उसका पाठ नहीं करना है, केवल लाल रंग से लिखे मुख्य स्तोत्र को शुद्धता के साथ सावधानी से आराम से पाठ करते चले जाएं-)

श्री पार्वत्युवाच 
भगवन! देव–देवेश! सर्वज्ञ! करुणानिधे! शुद्ध-शक्ति महामन्त्रं ब्रूहि मे सकलेष्टदम्॥१॥
(पार्वती जी ने कहा-"हे भगवन! देवों के देव, सब कुछ जानने वाले, दयानिधि, सभी कामनाओं को देने वाले शुद्ध शक्ति महामंत्र को मुझे बताएं")

श्री ईश्वर उवाच
श्रृणु देवि! प्रवक्ष्यामि यन्मां त्वं परिपृच्छसि। यस्य स्मरण-मात्रेण चक्र-पूजा-फलं लभेत्॥
(ईश्वर शिवजी ने कहा- "हे देवि! तुम मुझसे जो पूछ रही हो वह सुनो इसके स्मरण मात्र से श्री यंत्र की पूजा का फल मिलता है")

 ऐं ह्रीं श्रीं नमस्त्रिपुर-सुन्दरि!

(श्रीयन्त्रस्थ न्यास देवता)
हृदय-देवि, शिरो-देवि, शिखा-देवि, कवच-देवि, नेत्र-देव्यस्त्र-देवि!

(16 नित्याकला देवियां)
कामेश्वरि, भगमालिनि, नित्यक्लिन्ने, भेरुण्डे, वह्नि-वासिनि, महा-वज्रेश्वरि, शिवादूति, त्वरिते, कुलसुन्दरि, नित्ये, नीलपताके, विजये, सर्वमङ्गले, ज्वाला-मालिनि, चित्रे, महानित्ये!

(श्रीयन्त्रस्थ दिव्यौघ गुरु)
परमेश्वर-परमेश्वरि, मित्रेश-मयि, षष्ठीश-मय्युड्डीश-मयि, चर्यानाथ-मयि, लोपामुद्रा-मय्यगस्त्य-मयि!

(सिद्धौघ गुरु)
कालतापन-मयि, धर्माचार्य-मयि, मुक्त-केशीश्वर-मयि, दीपकलानाथ-मयि!

(सुमानवौघ गुरु)
विष्णुदेव-मयि, प्रभाकर-देव-मयि, तेजोदेव-मयि, मनोज-देवमयि, कल्याणदेव-मयि, रत्नदेव-मयि, वासुदेव-मयि, श्रीरामानन्द-मयि!

(श्रीयन्त्र के भूपुर की शक्तियां)
अणिमा-सिद्धे, गरिमा-सिद्धे, लघिमा-सिद्धे, महिमा-सिद्धे, ईशित्व-सिद्धे, वशित्व-सिद्धे, प्राकाम्य-सिद्धे, भुक्ति-सिद्धे, इच्छा-सिद्धे, प्राप्ति-सिद्धे, सर्वकाम-सिद्धे, ब्राह्मि, माहेश्वरि, कौमारि, वैष्णवि, वाराहि, माहेन्द्रि, चामुण्डे, महालक्ष्मि, सर्व-सङ्क्षोभिणि, सर्व-विद्राविणि, सर्वाकर्षिणि, सर्व-वशङ्करि, सर्वोन्मादिनि, सर्व-महाङ्कुशे, सर्व-खेचरि, सर्व-बीजे, सर्व-योने, सर्व-त्रिखण्डे, त्रैलोक्य-मोहन चक्र-स्वामिनि, प्रकट-योगिनि!

(श्री यन्त्र के षोडशदल की देवियां)
कामाकर्षिणि, बुद्ध्या-कर्षिण्यहं-कारा-कर्षिणि, शब्दाकर्षिणि, स्पर्शाकर्षिणि, रूपाकर्षिणि, रसाकर्षिणि, गन्धाकर्षिणि, चित्ताकर्षिणि, धैर्याकर्षिणि, स्मृत्याकर्षिणि, नामाकर्षिणि, बीजाकर्षिणि, आत्माकर्षिणि, अमृताकर्षिणि, शरीराकर्षिणि, सर्वाशा-परिपूरक-चक्र-स्वामिनि !

(अष्टदल)
गुप्त-योगिन्यनङ्ग-कुसुमेऽनङ्ग-मेखलेऽनङ्ग-मदनेऽनङ्ग-मदनातुरेऽनङ्ग-रेखेऽनङ्ग-वेगिन्यनङ्गाङ्कुशेऽनङ्ग-मालिनि, सर्व-संक्षोभण-चक्र-स्वामिनि, गुप्ततर-योगिनि!

(चतुर्दशार)
सर्व-संक्षोभिणि, सर्वविद्राविणि, सर्वाकर्षिणि, सर्वाह्लादिनि, सर्वसम्मोहिनि, सर्वस्तम्भिनि, सर्व-जृम्भिणि, सर्व-वशङ्करि, सर्वरञ्जिनि, सर्वोन्मादिनि, सर्वार्थसाधिनि, सर्वसम्पत्ति-पूरिणि, सर्वमन्त्र-मयि, सर्वद्वन्द्व-क्षयङ्करि, सर्वसौभाग्य-दायक-चक्रस्वामिनि, सम्प्रदाय-योगिनि!

(बहिर्दशार)
सर्वसिद्धिप्रदे, सर्वसम्पत्प्रदे, सर्वप्रियङ्करि,
सर्वमङ्गल-कारिणि, सर्वकामप्रदे, सर्वदुःखविमोचिनि, सर्वमृत्यु-प्रशमनि, सर्वविघ्न-निवारिणि, सर्वाङ्ग-सुन्दरि, सर्वसौभाग्य-दायिनि, सर्वार्थ-साधक-चक्र-स्वामिनि, कुलोत्तीर्ण-योगिनि!

(अन्तर्दशार)
सर्वज्ञे, सर्वशक्ते, सर्वैश्वर्य-प्रदे, सर्वज्ञानमयि,
सर्वव्याधि-विनाशिनि, सर्वाधार-स्वरूपे, सर्वपापहरे, सर्वानन्दमयि, सर्वरक्षा-स्वरूपिणि, सर्वेप्सित-प्रदे, सर्वरक्षाकर-चक्रस्वामिनि, निगर्भ-योगिनि!

(अष्टार)
वशिनि, कामेश्वरि, मोदिनि, विमलेऽरुणे, जयिनि, सर्वेश्वरि, कौलिनि, सर्वरोगहर-चक्रस्वामिनि, रहस्ययोगिनि!

(त्रिकोण चक्र)
बाणिनि, चापिनि, पाशिन्यंकुशिनि, महाकामेश्वरि, महावज्रेश्वरि, महा-भगमालिनि, महाश्रीसुन्दरि, सर्वसिद्धिप्रद-चक्र-स्वामिन्यति-रहस्य-योगिनि!

(बिन्दु पर स्थित देवता)
श्री श्रीमहा-भट्टारिके, सर्वानन्दमय-चक्र-स्वामिनि, परापर-रहस्य-योगिनि!

(9 चक्रेश्वरी)
त्रिपुरे, त्रिपुरेशि, त्रिपुरसुंदरि, त्रिपुर-वासिनि,
त्रिपुराश्री-स्त्रिपुर-मालिनि, त्रिपुरा-सिद्धे, त्रिपुराम्ब, महात्रिपुरसुन्दरि!

(श्रीदेवी राजराजेश्वरी-त्रिपुरसुंदरी के लिए विशेषण)
महा-महेश्वरि, महामहा-राज्ञि, महामहा-शक्ते, महामहागुप्ते, महामहा-ज्ञप्ते, महा-महानन्दे, महामहा-स्पन्दे, महामहा-शये, महामहा-श्रीचक्रनगर-साम्राज्ञि! नमस्ते नमस्ते नमस्ते! स्वाहा (नमः)
श्रीं ह्रीं ऐं 

(फलश्रुति)
एषा विद्या महासिद्धि-दायिनी स्मृतिमात्रतः।
अग्नि-वात-महाक्षोभे राज-राष्ट्रस्य विप्लवे॥
(यह विद्या स्मरण मात्र से महान् सिद्धि देती है, अग्नि-वायु द्वारा डाँवाडोल होने पर, राज्य या देश में आपदा आने पर माला मन्त्र स्मरण करे..)

लुण्ठने तस्कर-भये सङ्ग्रामे सलिल-प्लवे।
समुद्रयान-विक्षोभे भूतप्रेतादिजे भये॥
(लूट-खसोट व लुटेरे से उत्पन्न भय में युद्ध में, बाढ़ में, समुद्री जहाज आदि में हलचल होने पर, भूतप्रेतादि का भय होने पर माला मन्त्र का स्मरण करे....)

अपस्मार-ज्वर-व्याधि-मृत्यून्मादादिजे भये।
डाकिनी पूतना-यक्षरक्षः-कूष्माण्डजे भये॥
[अपस्मार, ज्वर, शारीरिक व्याधि, मृत्यु भय, उन्माद भय, डाकिनी,पूतना, यक्ष, राक्षस कूष्मांड भय होने पर माला मन्त्र पढ़े...]

मित्रभेदे ग्रहभये व्यसने चाभिचारिके।
अन्येष्वपि च दोषेषु मालामन्त्रं स्मरेद् बुधः॥
(दोस्ती टूटने पर, ग्रह की विषमता से उत्पन्न बाधा में, व्यसन मुक्ति के लिए, अभिचार(टोना-टोटका)प्रतीत होने पर और अन्य भी दोष होने पर विद्वान व्यक्ति मालामन्त्र का स्मरण करे)

सर्वोपद्रव-निर्मुक्तः सर्वव्याधि विवर्जितः।
सर्वदा पूर्ण हृदयः साक्षाच्छिवमयो-भवेत्॥
(इसका नियमित रूप से तल्लीनता के साथ पाठ करने से पाठकर्ता सभी उपद्रवों से मुक्त रहता है, सभी व्याधियाँ दूर हो जाती हैं, हमेशा पूर्णता का अनुभव होने से वह साक्षात् शिव के समान हो जाता है)

आपत्काले नित्यपूजां विस्तारात्कर्तुमक्षमः।
एकावर्तन-मात्रेण चक्र-पूजाफलं लभेत्॥
(आपत्ति के समय में यदि विस्तार पूर्वक नित्यपूजा न कर सके तो इस स्तोत्र के एक बार पाठ करने से श्री यन्त्र की पूजा का फल प्राप्त होता है)

नवावरण-देवीनां ललिताया महौजसः।
एकत्र गणना-रूपो यन्त्रमन्त्रार्थ-गोचरः॥
(इससे भगवती ललिता के महान तेज में श्री चक्र के नौ आवरणों की देवियों की सम्मिलित रूप से गणना होने से यन्त्र व मन्त्र का अर्थ (सब ललितामय है) भी दृष्टिगोचर होता है)

ललिताया महेशान्या माला विद्या महीयसी।
अणिमादि-गुणैश्वर्यैः रञ्जनी पाप-भञ्जनी॥
(भगवती महेश्वरी श्रीललिता की यह माला विद्या अणिमा आदि गुणों तथा ऐश्वर्यों से युक्त पापनाशिनी है)

तत्तदावरण-स्थायि देवता-वृन्द-मन्त्रजम्।
मालामन्त्रो महादेव्याः सर्व कार्यार्थ सिद्धिदः॥
(श्रीयन्त्र के प्रत्येक आवरण में स्थित देवतागणों के नाममन्त्रों से युक्त महादेवी का मालामन्त्र सभी कार्यों में सफलता दिलाता है)

इदं स्तोत्रं महादेव्याः सर्वलोकविमोहनम्।
सर्व सौख्य प्रदं नृणां सर्व सौभाग्यदायकम्॥
(महादेवी का यह स्तोत्र सबको मोहित करने वाला है सभी प्रकार के सुख - सौभाग्य देने वाला है) 
॥श्री वामकेश्वर-तन्त्रे उमा-महेश्वर-संवादे
देवी-खड्गमाला-स्तोत्र-रत्नं शुभमस्तु ओऽम् तत्सत्॥

पुष्पांजलि- इस मन्त्र से फूल चढ़ाए-  ऐं ह्रीं श्रीं समस्त प्रकट गुप्त-गुप्ततर संप्रदाय कुल-कौल-निगर्भ रहस्याति-रहस्य योगिनि श्रीविद्या राजराजेश्वरी श्रीपादुकां पूजयामि नमः।

अब जप समर्पण की प्रक्रिया करे -
विनियोग- अस्य श्रीशुद्धशक्ति-माला-महामन्त्रस्य, उपस्थेन्द्रियाधिष्ठायि वरुणादित्य ऋषिः देवी गायत्री छन्दः सात्विक 'क'कार-भट्टारक-पीठस्थित श्री महा-कामेश्वराङ्क-निलया महा-कामेश्वरी श्री ललिता भट्टारिका देवता, ऐं वाग्भव बीजं, सौः शक्तिकूट शक्तिः, क्लीं कामराज कीलकं श्री ललिता महा-त्रिपुरसुन्दरी प्रसाद-सिद्ध्यर्थे श्रीशुद्धशक्ति-माला-महामन्त्रस्य जप समर्पणे विनियोगः।

ऋष्यादिन्यास: - • उपस्थेन्द्रियाधिष्ठायिने वरुणादित्य ऋषये नमः शिरसि (सिर का स्पर्श करे)
देवी गायत्री छन्दसे नमः मुखे (मुख स्पर्श करे)
सात्विक 'क'कार-भट्टारक-पीठस्थित श्री महा- कामेश्वराङ्क-निलया महा-कामेश्वरी श्री ललिता भट्टारिका देवतायै नमः हृदिः (हृदय का स्पर्श)
ऐं वाग्भव बीजाय नमः गुह्ये (गुह्य स्थल का स्पर्श)
• सौः शक्तिकूट शक्तये नमः पादयोः (पैरों का स्पर्श करे)
क्लीं कामराज कीलकाय नमः नाभौ (नाभि स्पर्श करे)
श्री ललिता महा-त्रिपुरसुन्दरी प्रसाद-सिद्ध्यर्थे श्रीशुद्धशक्ति-माला-महामन्त्रस्य जप समर्पणे विनियोगाय नमः सर्वांगे (सभी अंग छुए)

षडङ्गन्यासः - (१) ‘ह्रां हृदयाय नमः
(२) ‘ह्रीं शिरसे स्वाहा
(३) ‘ह्रूं शिखायै वषट्
(४) ‘ह्रैं कवचाय हुम्
(५) ‘ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्
(६) ‘ह्रः अस्त्राय फट्

करन्यासः - (१) ‘ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः
(२) ‘ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः
(३) ‘ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः
(४) ‘ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः’ 
(५) ‘ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः’ 
(६) ‘ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः

ध्यान
आरक्ताभां त्रिनेत्रां मणिमुकुट-वतीं रत्न-ताटङ्क-रम्यां
हस्ताम्भोजैः स-पाशाङ्कुश-मदनधनुः सायकै-र्विस्फुरन्तीम् ।
आपीनोत्तुङ्ग-वक्षोरुह-युग-विलुठत्तार-हारोज्ज्वलाङ्गीं
ध्याये-दाम्भोरुहस्था-मरुण-सुवसना-मीश्वरी-मीश्वराणाम्॥
(जो लाल रंग की आभा वाली तीन नेत्रों वाली हैं, जिन्होंने मणिमय मुकुट और रत्नमय कुंडलों को धारण किया हुआ है, हाथों में पाश, अंकुश,  कामदेव के धनुष व पुष्पमय बाणों को धारण किया है, जिनके वक्षस्थल पर चमकता हुआ सुंदर हार शोभा पा रहा है, जो सुन्दर लाल वस्त्र धारण करके लाल कमल पर बैठी हुई हैं, जो ईश्वरों की ईश्वरी हैं,मैं उन भगवती त्रिपुरसुन्दरी देवी का ध्यान करता हूंं)
तादृशं खड्गमाप्नोति येन हस्तस्थितेन वै
अष्टादश-महाद्वीप-सम्राट् - भोक्ता-भविष्यति
(हे राजराजेश्वरी ललिताम्बा आपके भक्त को ज्ञान रूपी ऐसा खड्ग प्राप्त होता है जिससे वह 18 महाद्वीपों का शासक भोक्ता हो जाता है)
मानस पूजा
• लं पृथिवी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीशिव-कामेश्वरांक-निलया श्रीकामेश्वरी ललिता-श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (कनिष्ठिका से अंगूठे को मिलाकर अधोमुख(नीची) करके भगवान को दिखाए, यह गन्ध मुद्रा है)

• हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीशिव-कामेश्वरांक-निलया श्रीकामेश्वरी ललिता-श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (अधोमुख तर्जनी व अंगूठा मिलाकर बनी पुष्प मुद्रा दिखाए)

• यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्रीशिव-कामेश्वरांक-निलया श्रीकामेश्वरी ललिता-श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्वमुख(ऊपर को) तर्जनी व अंगूठे को मिलाकर दिखाए)

• रं वह्नि-तत्त्वात्मकं दीपं श्रीशिव-कामेश्वरांक-निलया श्रीकामेश्वरी ललिता-श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्व मुख मध्यमा व अंगूठे को दिखाए)

• वं अमृत-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्रीशिव-कामेश्वरांक-निलया श्रीकामेश्वरी ललिता-श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्व मुख अनामिका व अंगूठे को दिखाए)

• सौं सर्वतत्त्वात्मकं ताम्बूलादि सर्वोपचाराणि मनसा परिकल्प्य श्रीशिव-कामेश्वरांक-निलया श्रीकामेश्वरी ललिता-श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(सभी अंगुलियों को मिलाकर ऊर्ध्वमुखी करते हुए दिखाये)

एक आचमनी से जल चढ़ाते हुए जप समर्पण करे -
ॐ गुह्याति गुह्य गोप्त्री त्वम्, गृहाणास्मद्कृतं जपं। सिद्धिर्भवतु मे देवि, त्वत्-प्रसादान्महेश्वरी॥
मया कृतेन श्रीशुद्धशक्ति-सम्बुद्ध्यन्त माला मन्त्र जपानुष्ठानं श्रीशिव-कामेश्वरांक  निलया श्रीकामेश्वरी ललिता-राजराजेश्वरी श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी देवतायै अर्पणमस्तु।
अनेन मया कृतेन श्रीशुद्धशक्ति सम्बुद्ध्यन्त माला मन्त्र जपेन श्री शिव-कामेश्वरांक निलया श्रीकामेश्वरी ललिता-राजराजेश्वरी श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी देवता सुप्रसन्ना वरदा भवतु
सर्वं श्री सद्गुरु-परदेवता-परब्रह्मार्पण-मस्तु।

वैदिक शान्ति पाठ 
जिनका यज्ञोपवीत संस्कार हो चुका है केवल वे ही इस वैदिक शान्ति पाठ मन्त्र का तीन बार पाठ करे -
ओऽम् शान्ता पृथिवी शिवमन्तरिक्षं द्यौर्नो देवा अभयं नो अस्तु। शिवा दिशः प्रदिश उद्दिशो नः आपो विश्वतः परिपान्तु सर्वतः। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।(वेदमन्त्र)
(पृथ्वी हमारे लिए शांति दायिनी हो। अंतरिक्ष और दिव्याकाश कल्याणकारी हों। देवगण अभय देने वाले हों, दिशाएं विदिशाएं और ऊर्ध्व दिशाएं मंगलमय हों और जल राशियां(सागर) हमारे चारों ओर से हमारीे रक्षा करें, शान्ति,शान्ति, शान्ति हो)
{*हिन्दी अनुवाद कोई भी पढ़ सकता है}

सौभाग्याष्टोत्तरशत नाम स्तोत्र

हाथ में पुष्प लेकर स्तोत्र का पाठ करे-
ध्यायेत् पद्मासनस्थां विकसित-वदनां पद्म-पत्रायताक्षीं
हेमाभां पीत-वस्त्रां कर-कलित-लसद्धेम-पद्मां वराङ्गीम्।
सर्वालङ्कार-युक्तां सततमभयदां भक्त-नम्रां भवानीं
श्रीविद्यां शान्त-मूर्तिं सकल-सुरनुतां सर्वसम्पत् प्रदात्रीम्॥
(कमल के आसन पर बैठी हुई , प्रसन्न मुख वाली, कमलदल सदृश विशाल नेत्रों वाली, स्वर्णिम आभा वाली, पीले वस्त्र पहनने वाली. कोमल हाथ में सोने का कमल धारण करने वाली, सुन्दर, सभी आभूषणों से अलंकृत, निरंतर अभय देने वाली, भक्तों के प्रति कोमल स्वभाव वाली, शान्त, सभी देवों से नमस्कृत व सम्पूर्ण सम्पदा प्रदान करने वाली भवानी श्रीविद्या का ध्यान करना चाहिए)

ऐं ह्रीं श्रीं ॐ कामेश्वरी कामशक्तिः काम-सौभाग्य-दायिनी।
काम-रूपा काम-कला कामिनी कमलाऽसना॥१॥

कमला कल्पनाहीना कमनीया-कलावती।
पद्मपा भारती-सेव्या कल्पिताऽशेष-संस्थितिः॥२॥

अनुत्तराऽनघाऽनन्ताऽद्भुत - रूपाऽनलोद्भवा।
अति-लोक-चरित्राऽति-सुन्दर्यति-शुभप्रदा॥३॥

विश्वाद्या चाति-विस्ताराऽर्चन-तुष्टाऽमित-प्रभा।
एक-रूपैक-वीरैक-नाथैकान्ताऽर्चन-प्रिया॥४॥

एकैक-भावतुष्टैक-रसैकान्त-जनप्रिया।
एध-मान-प्रभावैधद्भक्त-पातक-नाशिनी॥५॥

एला-मोद-मुखैनोऽद्रि-शक्रायुध-समस्थितिः।
ईहा-शून्येप्सितेशादि-सेव्येशान-वराङ्गना॥६॥

ईश्वराऽऽज्ञापिकेकार-भाव्येप्सित-फलप्रदा।
ईशानेति-हरेक्षेषदरुणाक्षीश्वरेश्वरी॥७॥

ललिता ललना-रूपा लयहीना लसत्तनुः।
लयसर्वा लयक्षोणिर्लयकर्त्री लयात्मिका॥८॥

लघिमा लघुमध्याऽऽढ्या ललमाना लघुद्रुता।
हयाऽऽरूढा हताऽमित्रा हरकान्ता हरिस्तुता॥९॥

हयग्रीवेष्टदा हाला-प्रिया हर्ष-समुद्धता।
हर्षणा हल्लकाभाङ्गी हस्त्यन्तैश्वर्य-दायिनी॥१०॥

हल-हस्ताऽर्चित-पदा हविर्दान-प्रसादिनी।
रामा-रामाऽर्चिता राज्ञी रम्या रव-मयी रतिः॥११॥

रक्षिणी-रमणी-राका रमणी-मण्डल-प्रिया।
रक्षिताऽखिल-लोकेशा रक्षोगण-निषूदिनी॥१२॥

अम्बान्त-कारिण्यम्भोज-प्रियाऽन्तक-भयङ्करी ।
अम्बु-रूपाऽम्बुज-कराऽम्बुज-जात-वर-प्रदा॥१३॥

अन्तःपूजा-प्रियाऽन्तःस्वरूपिण्यन्तर्वचो-मयी।
अन्तकाऽराति-वामाङ्क-स्थिताऽन्तः सुख-रूपिणी॥१४॥

सर्वज्ञा सर्वगा सारा समा सम-सुखा सती।
सन्ततिः सन्तता सोमा सर्वा साङ्ख्या सनातनी ॐ॥१५॥

देवी को फूल अर्पित करें।

सौभाग्याऽष्टोत्तर-शतनाम-स्तोत्रं मनोहरम्।
यस्त्रिसन्ध्यं पठेन्नित्यं न तस्य भुवि दुर्लभम्॥१६॥
(जो प्रतिदिन इस मनोहर सौभाग्याष्टोत्तर-शत-नाम स्तोत्र को तीन संध्याओं में पढ़ता है उसके लिए संसार में कुछ भी दुर्लभ नहीं है)

आगमोक्त शान्ति स्तोत्र 
भक्तिपूर्वक श्री विद्या खड्गमाला को यथासम्भव समझते हुए प्रतिदिन नियमित पारायण(पाठ) करने से उत्पन्न तेज को सँभालना कठिन होने से साधक का कभी-कभी मन व्याकुल हो सकता है ऐसे में शान्ति स्तोत्र भी खड्गमाला स्तोत्र के बाद पढ़ना चाहिए, हालांकि ऊपर वैदिक शान्ति पाठ श्लोक भी दिया है लेकिन वेदोक्त मन्त्र होने से वह केवल उनके लिए है जिनका उपनयन  संस्कार हो चुका है।
 जिनका यज्ञोपवीत नहीं हुआ हो वे तथा अन्य सभी लोगों को भी नीचे दिये गये आगमोक्त शान्ति स्तोत्र को पढ़ना चाहिए, इसके पाठ में सबको अधिकार है। खड्गमाला स्तोत्र के पारायण में कोई न्यूनता-आधिक्यता दोष की शान्ति के लिए प्रस्तुत शान्ति स्तोत्र के पाठ से उस दोष का शमन हो जाता है-

श्री भैरव उवाच-
जय देवि जगद्धात्रि! जय पापौघ-हारिणि!
जय दुःख-प्रशमनि शान्तिर्भव ममार्चने॥१॥

श्रीबाले परमेशानि! जय कल्पान्त-कारिणि!
जय सर्व-विपत्तिघ्ने शान्तिर्भव ममार्चने॥२॥

जय बिन्दुनाद-रूपे जय कल्याण-कारिणि!
जय घोरे च शत्रुघ्ने शान्तिर्भव ममार्चने॥३॥

मुण्डमाले विशालाक्षि! स्वर्णवर्णे चतुर्भुजे।
महा-पद्म-वनान्तस्थे शान्तिर्भव ममार्चने॥४॥

जगद्योनि महायोनि निर्णयातीत-रूपिणि!
परा-प्रासाद-गृहिणि शान्तिर्भव ममार्चने॥५॥

इन्दु-चूड-युते चाक्षहस्ते श्रीपरमेश्वरि!
रुद्रसंस्थे महामाये शान्तिर्भव ममार्चने॥६॥

सूक्ष्मे स्थूले विश्वरूपे जय सङ्कट-तारिणि!
यज्ञ-रूपे जाप्य-रूपे शान्तिर्भव ममार्चने॥७॥

दूती-प्रिये द्रव्य-प्रिये शिवे पञ्चाङ्कुश-प्रिये!
भक्तिभाव-प्रिये भद्रे शान्तिर्भव ममार्चने॥८॥

भाव-प्रिये लास-प्रिये कारणानन्द-विग्रहे!
श्मशानस्य देवमूले शान्तिर्भव ममार्चने॥९॥

ज्ञानाज्ञानात्मिके चाद्ये भीति-निर्मूलनक्षमे!
वीरवन्द्ये सिद्धिदात्रि शान्तिर्भव ममार्चने॥१०॥

स्मर-चन्दन-सुप्रीते शोणितार्णव-संस्थिते!
सर्वसौख्य-प्रदे शुद्धे शान्तिर्भव ममार्चने॥११॥

कापालिनि कलाधारे कोमलाङ्गि कुलेश्वरि!
कुलमार्ग-रते सिद्धे शान्तिर्भव ममार्चने ॥१२॥
॥चिन्तामणि-तन्त्रोक्तं शान्तिस्तोत्रं शुभमस्तु॥


इसके अलावा एक दूसरा शान्ति स्तोत्र भी दिया जा रहा है सभी साधक इच्छानुसार इसका भी पाठ कर सकते हैं-
रुद्रयामलोक्तं शान्ति स्तोत्रम् 
जयन्तु मातरः सर्वा, जयन्तु योगिनी-गणाः।
जयन्तु सिद्ध डाकिन्यो, जयन्तु गुरवः सदा॥१॥

जयन्तु साधकाः सर्वे, विशुद्धाः कौलिकाश्च ये 
समयाचार सम्पन्नाः, जयन्तु पूजकाः नराः॥२॥

अणिमाद्याश्च सिद्धाश्च, नन्दन्तु भैरवादयः।
नन्दन्तु देवताः सर्वे, सिद्ध-विद्या-धरादयः॥३॥

ये चाम्नाय-विशुद्धाश्च, मन्त्रिणः शुद्ध-बुद्धयः।
सर्वदानन्द हृदयः नन्दन्तु कुल-पालकाः॥४॥

नन्दन्तु अणिमा सिद्धा, नन्दन्तु कुल साधकाः।
इन्द्राद्या देवताः सर्वे तृप्यन्तु वास्तु-देवताः॥५॥

सूर्य चन्द्रादयो देवाः, तृप्यन्तु मम-भक्तितः।
नक्षत्राणि ग्रहा योगाः करणाः राशयश्च ये॥६॥

तृप्यन्तु पितरः सर्वे मासाः संवत्सरादयः।
खेचरा भूचराश्चैव तृप्यन्तु मम भक्तितः॥७॥

अन्तरिक्ष-चरा ये च ये चान्ये देव-योनयः।
सर्वे ते सुखिनो यान्तु सर्पा नद्याश्च पक्षिणः॥८॥

पशवः स्थावराश्चैव पर्वताः कन्दराः गुहाः।
ऋषयो ब्राह्मणाः सर्वे शान्तिं कुर्वन्तु मे सदा॥९॥

तीर्थानि बहु प्रसिद्धा ये, चान्ये पुण्य-भूमयः।
वृद्धाः पतिव्रता यास्ताः शान्तिं कुर्वन्तु मे सदा॥१०॥

शिवं सर्वत्र मे चास्तु पुत्र-दारा-धनादिषु।
राजानः सुखिनः सन्तु मित्राः नन्दन्तु मे सदा॥११॥

साधका सुखिनः सन्तु शिवं तिष्ठन्तु सर्वदा।
शुभा मे वन्दिताः सन्तु मित्रा तिष्ठन्तु पूजकाः ॥१२॥
।।श्री रुद्रयामलोक्तं शान्ति स्तोत्रं शुभमस्तु।।

इस प्रकार यह श्री शुद्ध शक्ति खड्गमाला स्तोत्र पाठ का विधान सम्पन्न होता है। कोई बात समझ न आए तो हमें ईमेल पर पूछ लें। नवरात्रि, गुप्तनवरात्रि, दीपावली, होलिका दहन की रात्रि, संक्रान्ति, पंचमी, अष्टमी, पूर्णिमा, चतुर्दशी, अमावास्या एवं शुक्रवार को भगवती ललिताम्बा की आराधना अवश्य करनी चाहिए। आशा है आप उपरोक्त प्रकार से भगवती राजराजेश्वरी त्रिपुरसुन्दरी की स्तोत्रात्मक आराधना करेंगे। भगवती षोडशी त्रिपुरसुन्दरी की आराधना सर्वसिद्धि दायिनी है। श्रीषोडशी सहस्रनाम स्तोत्र के कतिपय नामों से इनकी आराधना का माहात्म्य स्पष्ट होता है - 'सर्व-सम्पत्‌-प्रतिष्ठात्री', 'सर्वमङ्गल-कारिणी', 'सर्वाह्लादन-कारिणी', 'सर्व-सम्मोहिनी देवी ','सर्व-स्तम्भन-कारिणी', 'सर्व-सम्पत्ति-दायिनी', 'सर्व-मन्त्रमयी', 'सर्व-द्वन्द्व-क्षयंकरी', 'सर्व-सिद्धिप्रदा', 'सर्व-दुःख-विमोचिनी', 'सर्व-सौभाग्य-दायिनी', 'सर्वैश्वर्य-फलप्रदा', 'सर्व-व्याधि-विनाशिनी', 'सर्व-पापहरा', 'सर्व-लक्ष्मीमयी-विद्या', 'सर्वेप्सित-फलप्रदा' 'सर्वारिष्ट-प्रशमनी'।
भगवती राजराजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी हम सबका मंगल करें यही प्रार्थना करते हुए श्रीमहाकामेश्वरांक निलया भगवती श्रीमहाकामेश्वरी  के चरणों में हमारा बार बार  प्रणाम।


टिप्पणियाँ

  1. सर्वप्रथम आपका बहुत बहुत आभार जो आपने ये लेख प्रकाशित किया।।
    माँ राजराजेश्वरी त्रिपुरसुन्दरी की कृपा से आपके माध्यम से हमें प्राप्त हुआ।।
    प्रश्न ये है कि जो आपने सँकल्प लिखा है तो ये प्रतिदिन करना है या केवल प्रथम दिन ही करना है।। सादर‌प्रणाम

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    1. नमस्कार, महोदय धन्यवाद कि आपने यह लेख पढ़ा...जी हाँ सुबह शाम तथा प्रतिदिन जब भी आप इसका पाठ करेंगे तो संकल्प भी करना होगा... उसी से विधि पूर्ण होती है ... संकल्प से कार्य की सिद्धि होती है इसीलिए कहते हैं व्रत पूजा संध्या आदि में संकल्प जरूर करना चाहिए ... जय माँ त्रिपुरसुन्दरी

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    2. बहुत बहुत धन्यवाद मार्गदर्शन के लिये प्रणाम 🙏😊 जय माँ राजराजेश्वरी

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  2. कृपया नवम महाविद्या
    माँ मातँगी के ह्रदय स्त्रोत
    कवच के पाठ की सविधि विस्तार से बताने की कृपा करें ।।
    जैसे खड्गमाला के पूरे पाठ के बारे में बताया आपने 😇🙏🙏

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    उत्तर
    1. आपके सुझाव को नोट कर लिया है लेकिन इसे लिखने में कुछ समय लग ही जाएगा कृपया धैर्यपूर्वक प्रतीक्षाकरें.
      जय माँ ललिता

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    2. बहुत बहुत धन्यवाद
      मैं‌ प्रतीक्षा कर रहा हूँ।। 🙏🙏
      जय माँ

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  3. जी में श्रीविद्या का दिक्षित नहीं हु फिर भी खड्गमाला का पाठ कर सकता हूं? और खड्गमाला स्तोत्र मुजे लिए मुझे कौनसे ग्रंथ में पर्याप्त होगा?

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    उत्तर
    1. जी हाँ खड्गमाला मन्त्र एक स्तोत्र भी है तो इसका पाठ अदीक्षित भी कर सकते हैं क्योंकि भगवत्प्रीत्यर्थ स्तोत्र पाठ करने से किसी को वंचित नहीं रखा गया है.. लेकिन साफ-साफ कहा गया है जिनका जनेऊ संस्कार न हुआ हो उन्हें वेदमन्त्र व ॐ का प्रयोग नहीं करना चाहिए...दुष्प्रभाव से बचने के लिए इतनी सावधानी रखनी चाहिए... यह श्रीविद्या खड्गमाला स्तोत्र संकेत रूप में वामकेश्वर तंत्र में मिलता है जो कि दुर्लभ ग्रंथ है

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    2. Kya koe bhi khadgmala stotram kar sakta hai jase normal house wife

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    3. जी हां, लेकिन स्त्री को पाठ में ॐ और स्वाहा नहीं बोलना होगा इस बात का ध्यान रहे। अशुद्धि (मासिक धर्म/नातक/सूतक) के दिनों में पाठ न करे।

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  4. प्रणाम आचार्य वर हमारी ए जिज्ञासा है कि स्तोत्र पाठ करने के बाद हवन भी करना है

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    उत्तर
    1. जी नहीं इसमें पाठ करना ही पर्याप्त है...
      वैसे भी तन्त्र ग्रंथों के अनुसार अदीक्षित, बिना जनेऊ धारण किये व्यक्ति द्वारा ओऽम् और स्वाहा युक्त मन्त्र का या वेद मंत्र का अनुष्ठान और हवन नहीं किये जाते हैं..
      हाँ यदि किसी जनेऊ संस्कार रहित व्यक्ति को साधनाओं में हवनादि कराना ही हो तो किसी यज्ञोपवीत धारी जानकार व्यक्ति से करवाया जा सकता है...उन्हें उचित दक्षिणा देदेनी चाहिए..
      जय माँ ललिताम्बा

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  5. मैंने राम मंत्र की दीक्षा ले रख्खी तो भी श्री विद्या की
    दीक्षा लेना आवश्यक है

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. महोदय किसी भी मन्त्र की साधना करनी हो तो उसकी दीक्षा लेनी ही पड़ती है, इसलिए श्रीविद्या के मन्त्र अनुष्ठान के लिए भी योग्य गुरु से श्री विद्या की दीक्षा लेनी पड़ती है... लेकिन स्तोत्र पाठ करने से किसी को भी वंचित नहीं रखा गया है इसलिए अदीक्षित भी स्तोत्र पढ़ ही सकते हैं...
      अतः यदि राम जी के मन्त्र की दीक्षा ली है तो आपको उनका ही प्रतिदिन मन्त्र जप आदि करना चाहिए...
      लेकिन साथ में यदि श्री विद्या मन्त्र भी प्रतिदिन नियम से जपना हो तो पहले उसकी भी दीक्षा ले लें...
      जय श्री राम

      हटाएं
  6. उत्तर
    1. ईमेल पर सम्पर्क करें..कोई भी प्रश्न पूछें व मार्गदर्शन पायें..
      जय माँ ललिताम्बा

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  7. Kripiya chinnamasta,tara maa,kali maa,baglamukhi bhairavi,matangi,bhuvneshwari,dhumavati,kamla, ke baare me bhi bataye.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. इस blog पर दसों महाविद्याओं के बारे में लिखा जा चुका है कृपया इस लिंक पर जायें 10 महाविद्या
      जय माँ ललिताम्बा

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  8. उत्तर
    1. स्त्री और जिनका यज्ञोपवीत/उपनयन नहीं हुआ है उनको पाठ के दौरान ॐ और स्वाहा तथा वेदमन्त्र नहीं बोलना होगा। ॐ की जगह ह्रीं या औं बोला जा सकता है।सुविधा के लिए हम प्रायः बता देते हैं कि कौन सा वेदमन्त्र है...
      स्त्री साधिका वैदिक शान्ति पाठ नहीं पढ़े। लेकिन आगमोक्त शान्ति पाठ को स्त्रियां भी पढ़ सकती हैं.
      जय माँ ललिताम्बा

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    2. साथ ही जानकारी जोड़ना चाहूंगा कि बड़ा स्तोत्रात्मक मन्त्र होने से शुद्धि का ध्यान रखना जरूरी है, प्रतिदिन नहाकर साफ वस्त्र पहनकर पाठ करे.
      अशुद्धि के दिनों इसका पाठ न ही करे तो अच्छा है, परिवार में किसी सम्बन्धी की मृत्यु के कारण सूतक के दिनों में या किसी का जन्म हो अर्थात् नातक में भी न पढ़े.
      स्त्री रजस्वला से अशुद्ध होने पर पाठ न करे.5वे दिन से पाठ करना शुरु कर सकती हैं .

      हटाएं
  9. aapka bhi bahut hi abhar aapne kathin bisy ko sarl tarike sajha diya hi puna abhar apko sadar parnam

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