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कमला महाविद्या की स्तोत्रात्मक उपासना

नवरात्र में कलश का विसर्जन

 वरात्रि व्रत तो नवमी तिथि की रात को ही अन्न खाकर खोल लिया जाता है इसे नवरात्र पारण कहते हैं। 


दशमी तिथि को कलश उत्थापन या घटोत्थापन करना चाहिए। अर्थात् स्थापित 
कलश का विसर्जन करे।

नवरात्रि के कलश के विसर्जन की यह संक्षिप्त विधि प्रस्तुत है -

पूजा स्थल पर जाये। ३ बार आचमन करे- श्री केशवाय नमः। श्री माधवाय नमः। श्री नारायणाय नमः।

३ बार प्राणायाम करे। 

हाथ में जल अक्षत फूल लेकर संकल्प करना चाहिए -

 श्रीगणेशाय नमः। तिथिर्विष्णुस्तथावारो नक्षत्रं विष्णुरेव च। योगश्च करणंचैव सर्वं विष्णुमयं जगत्। 

हरि ॐ तत् सत्। श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्‌मणोह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेत वाराह कल्पे वैवस्वत मन्वंतरे जम्बू द्वीपे भरत खंडे भारत वर्षे बौद्धावतारे ...(नगर/गांव का नाम)... स्थाने, ...(गोत्र)...गोत्रीय .....(आपका नाम)..... नामाहं अद्य ... (संवत्सर का नाम).... नाम्नि संवत्सरे , सूर्य (उत्तरायणे /दक्षिणायने) ..( वसन्त / शरद)...ऋतौ, मासानां उत्तमे मासे ( चैत्र/ आश्विन)...मासे, शुक्ल पक्षे, गुण विशेषण विशिष्टायां शुभपुण्य तिथौ दशमी तिथौ, .(वार का नाम)....वासरे प्रतिपद स्थापित देवतानां उत्तरपूजनमहं करिष्ये।

कहकर हाथ का जल जमीन पर छोड़ दे।

अब गंध पुष्प धूप दीप नैवेद्य चढ़ाकर पंचोपचार पूजा करनी चाहिए। गणेश जी, दुर्गा जी व कलश को तिलक आदि लगाये। निम्न मंत्रों से कलश पर अक्षत चढ़ाये - 

श्री गणेशाय नमः।

श्री कलशाय नमः।

श्री गणेश-गौर्यादि षोडश मातृकाभ्यो नमः।

श्री काल्यादि दसमहाविद्याभ्यो नमः।

श्री चण्डिका देव्यै नमः।
ह्रीं शैलपुत्र्यादि नवदुर्गाभ्यो नमः।

श्री ब्राह्‌म्यै नमः।
श्री माहेश्वर्यै नमः।

श्री कौमार्यै नमः।

श्री वैष्णव्यै नमः।

श्री वाराह्यै नमः।
श्री ऐन्द्र्यै नमः।

श्री चामुण्डायै नमः।
श्री महालक्ष्म्यै नमः।

प्रार्थनाहाथ जोड़कर प्रार्थना करें -

दुर्गा शिवा शांतिकरी ब्रह्माणी ब्रह्मणप्रियां। सर्वलोकप्रणेत्री च तां नमामि परशिवां॥

विधिहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं यदर्चितं। पूर्णं भवतु तत्सर्वं त्वत्प्रसादात् महेश्वरि॥


कलश के पास से एक फूल उठाकर "ह्रीं दुर्गायै नम:" बोलते हुए उत्तर पूर्व दिशा की ओर फेंके।


घट विसर्जन मंत्र-

निम्न श्लोकों को पढ़ते हुए कलश पर व जौं अंकुर वाली वेदी पर अक्षत डाले- 

उत्तिष्ठ देवि चंडेशि शुभां पूजां प्रगृह्य च। कुरुष्व मम कल्याणमष्टाभि: शक्तिभि: सह॥

दुर्गे देवि जगन्मात: स्वस्थाने गच्छ पूजिता। संवत्सरे व्यतीते तु पुनरागमनाय वै॥

पूजामिमां मया देवि यथाशक्ति निवेदिताम्‌। रक्षणार्थ समादाय व्रज स्थानमनुत्तमम्॥


अब कलश को उठा ले उस कलश का कुछ जल जौं अंकुर की वेदी पर अर्पित करना चाहिए कुछ जल पत्ते से अपने मस्तक पर छिड़के। परिवार के सभी सदस्यों पर भी छिड़कें और घर के अंदर सब ओर छिड़के। बाकी बचा हुआ जल आदि किसी पेड़ की जड में डाले। कलश में डाला गया सोना या कोई रत्न अपने पास संभाल ले। सिक्का दान करे।

नौ दिनों में जौं आदि अनाजों के जो अंकुर निकले हैं इन हरे पत्तों को ज्वारे कहते हैं, इन्हें चाकू से काटकर भगवान को चढ़ाये और ब्राह्मणों, सुहागिनों, कन्याओं और परिवार, इष्टमित्रों के मस्तक पर कान पर रख देना चाहिए। जिस मिट्टी पर ज्वारे उगे हैं वह भी पेड़ के नीचे उल्टा कर दें। इस अवसर पर यथासम्भव अन्नदान, दक्षिणा आदि देना चाहिए और इस पर्व को संपन्न करना चाहिए। दुर्गा देवी को हमारा अनेकों बार प्रणाम, जगदम्बिका माँ हम सबका मंगल करें।



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