नोट - यहाँ प्रकाशित साधनाओं, स्तोत्रात्मक उपासनाओं को नियमित रूप से करने से यदि किसी सज्जन को कोई विशेष लाभ हुआ हो तो कृपया हमें सूचित करने का कष्ट करें।

⭐विशेष⭐


९ अप्रैल - "कालयुक्त" नामक हिंदू नवसंवत्सर २०८१ मंगलमय हो!

९ अप्रैल - चैत्र या वासन्तीय नवरात्रों का प्रारम्भ,
कलश स्थापना विधि, कलशस्थापन का मुहूर्त इस लिंक पर जाकर शहर का नाम डालकर देख लें।
वासंतीय नवरात्र-प्रथम दिन शैलपुत्री जी का पूजन
१० अप्रैल - नवरात्रि के दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी जी का आराधन
११ अप्रैल - श्री मत्स्य-अवतार जयन्ती
११ अप्रैल -नवरात्रि के तृतीय दिवस चन्द्रघंटा माँ की आराधना

१२ अप्रैल -नवरात्रि का चतुर्थ दिन - कूष्माण्डा जी का पूजन
१३ अप्रैल -नवरात्र के पंचम दिन स्कन्दमाता जी का पूजन
१४ अप्रैल -नवरात्र के छठे दिन कात्यायनी माँ की पूजा
१५ अप्रैल -नवरात्र के सप्तम दिन कालरात्रि पूजन महासप्तमी
१६ अप्रैल -नवरात्रि में अष्टमी को महागौरी जी की आराधना, अन्नपूर्णा माँ की पूजा
१७ अप्रैल -नवरात्र के नवम दिन सिद्धिदात्री जी की आराधना
भगवान श्री राम जयंती, श्रीराम नवमी, नवमी हवन विधि।
तारा महाविद्या जयंती
⭐वासन्ती नवरात्रपारणा: पारण अर्थात् प्रसाद व अन्न ग्रहण करके व्रत खोलना..जो नवरात्रि में केवल आठ दिन ही व्रत लेते हैं वे तो अष्टमी रात्रि को ही पारण कर ले और जो पूरे नौ दिन उपवास रख सकते हैं वे नवमी (१७ अप्रैल) की रात्रि को व्रत खोलें...
कलश आदि का विसर्जन दशमी तिथि की प्रातः (१८ अप्रैल को) करना चाहिए


आज - कालयुक्त नामक विक्रमी संवत्सर(२०८१), सूर्य उत्तरायण, वसन्त ऋतु, चैत्र मास, शुक्ल पक्ष।
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भुवनेश्वरी महाविद्या हैं सर्वस्वरूपा मूल प्रकृति (भुवनेश्वरी खड्गमाला स्तोत्र)

माँ
भुवनेश्वरी की आराधना हेतु सर्वोत्तम दिवस है भुवनेश्वरी महाविद्या की जयंती तिथि। दस महाविद्याओं में से पंचम महाविद्या भगवती भुवनेश्वरी का भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को प्रादुर्भाव हुआ माना जाता है। भुवनेश्वरी महाविद्या का स्वरूप सौम्य है और इनकी अंगकान्ति अरुण है। भक्तों को अभय और समस्त सिद्धियाँ प्रदान करना इनका स्वाभाविक गुण है। वास्तव में मूल प्रकृति का ही दूसरा नाम भुवनेश्वरी है। दशमहाविद्याएँ ही दस सोपान हैंकाली तत्व से निर्गत होकर कमला तत्व तक की दस स्थितियाँ हैं, जिनसे अव्यक्त भुवनेश्वरी व्यक्त होकर ब्रह्माण्ड का रूप धारण कर सकती हैं तथा प्रलय में कमला से अर्थात् व्यक्त जगत से क्रमशः लय होकर कालीरूप में मूलप्रकृति बन जाती हैं। इसीलिये भगवती भुवनेश्वरी को काल की जन्मदात्री भी कहा जाता है

भुवनेश्वरी महाविद्या के मुख्य आयुध अंकुश और पाश हैं। अंकुश नियंत्रण का प्रतीक है और पाश राग अथवा आसक्ति का प्रतीक है। इस प्रकार सर्वस्वरूपा मूल प्रकृति ही भुवनेश्वरी हैं, जो विश्व को वमन करने के कारण वामा, शिवमयी होने से ज्येष्ठा और कर्म-नियंत्रण, फलदान करने व जीवों को दण्डित करने के कारण रौद्री कही जाती हैं। भगवान् शिव का वाम भाग ही भुवनेश्वरी कहलाता है
     ईश्वररात्रि में जब ईश्वर के जगद्रूप व्यवहार का लोप हो जाता है, उस समय केवल ब्रह्म अपनी अव्यक्त प्रकृति के साथ शेष रहता है, तब उस ईश्वररात्रि की अधिष्ठात्री देवी भुवनेश्वरी कहलाती हैं। इनके मुख्य आयुध अंकुश और पाश हैं। अंकुश नियंत्रण का प्रतीक है और पाश राग अथवा आसक्ति का प्रतीक है। इस प्रकार सर्वस्वरूपा मूल प्रकृति ही भुवनेश्वरी हैं, जो विश्व को वमन करने के कारण वामा, शिवमयी होने से ज्येष्ठा और कर्म-नियंत्रण, फलदान करने व जीवों को दण्डित करने के कारण रौद्री कही जाती हैं। भगवान् शिव का वाम भाग ही भुवनेश्वरी कहलाता है। 

      भुवनेश्वरी के संग से ही भुवनेश्वर सदाशिव को सर्वेश होने की योग्यता प्राप्त होती है। महानिर्वाणतन्त्र के अनुसार समस्त महाविद्याएँ भगवती भुवनेश्वरी की सेवा में सदा संलग्न रहती है। सात करोड़ महामन्त्र इनकी सदा ही आराधना किया करते हैं। बृहन्नीलतन्त्र व पुराणों के अनुसार प्रकारान्तर से काली और भुवनेशी दोनों में अभेद है अर्थात् कोई अन्तर नहीं है। अव्यक्त प्रकृति भुवनेश्वरी ही रक्तवर्णा काली है। 


     देवीभागवत के अनुसार दुर्गम नामक दैत्य के अत्याचार से संतप्त होकर देवताओं और ब्राह्मणों ने हिमालय पर सर्वकारणस्वरूपा भगवती भुवनेश्वरी की ही आराधना की थी। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवती भुवनेश्वरी तत्काल प्रकट हुईं। वे भुवनेश्वरी महाविद्या अपने हाथों में बाण, कमल-पुष्प तथा शाक-मूल लिये हुए थीं। तब भुवनेश्वरी माँ ने अपने नेत्रों से अश्रुजल की सहस्रों धाराएँ प्रकट कीं। इस जल से भूमण्डल के सभी प्राणी तृप्त हो गये। समुद्रों तथा सरिताओं में अगाध जल भर गया और समस्त औषधियाँ सिंच गयीं। अपने हाथ में लिये गये शाकों और फल-मूल से प्राणियों का पोषण करने के कारण भगवती भुवनेश्वरी ही 'शताक्षी' तथा 'शाकम्भरी' नाम से विख्यात हुईं। इन्होंने ही दुर्गमासुर को युद्ध में मारकर उसके द्वारा अपहृत वेदों को देवताओं को पुनः सौंपा था। उसके बाद इन भगवती भुवनेश्वरी का एक नाम दुर्गा प्रसिद्ध हुआ।

दशमहाविद्या स्वरूपिणी भुवनेश्वरी ने ही दुर्गमासुर को युद्ध में मारकर उसके द्वारा अपहृत वेदों को देवताओं को पुनः सौंपा था। उसके बाद दस महाविद्याओं में से पंचम महाविद्या भगवती भुवनेश्वरी का एक नाम दुर्गा प्रसिद्ध हुआ।

भगवती भुवनेश्वरी की उपासना पुत्र-प्राप्ति के लिए विशेष फलप्रद होती है। इनके बहुत से स्तोत्र हैं जो प्रायः दुर्लभ ही हैं। ⭐हमने इस ब्लोग में  भुवनेश्वरी त्रैलोक्य मंगल कवच प्रकाशित किया है। रुद्रयामल तंत्र में इनका कवच, नीलसरस्वतीतन्त्र में इनका हृदय तथा महातन्त्रार्णव में इनका भुवनेश्वरी सहस्रनाम स्तोत्र संकलित है।

ईश्वररात्रि में जब ईश्वर के जगद्रूप व्यवहार का लोप हो जाता है, उस समय केवल ब्रह्म अपनी अव्यक्त प्रकृति के साथ शेष रहता है, तब उस ईश्वररात्रि की अधिष्ठात्री देवी भुवनेश्वरी कहलाती हैं।

भुवनेश्वरी मन्त्र
इन देवी के कई मंत्र हैं जो क्लिष्ट होने के साथ गुरुगम्य भी हैं पर एक सरल सा एकाक्षरी बीज मंत्र है माँ भुवनेश्वरी का-
"ह्रीं"
ह्रीं को माया बीज भी कहा जाता है, यह अति सरल मन्त्र है। इसमें ह् का अर्थ है शिव, र् का अर्थ है प्रकृति, नाद का अर्थ है विश्वमाता एवं बिंदु का अर्थ दुखहरण है। इस प्रकार इस मायाबीज का अर्थ है 'शिव सहित विश्वमाता प्रकृति आद्याशक्ति मेरे दुखों को दूर करे।'

सावधानी- काली तन्त्र, प्रपंचसार, आगम तत्वविलास आदि के अनुसार साधना में शूद्र, स्त्री और जिनका जनेऊ/उपनयन नहीं हुआ है वो ॐ और स्वाहा तथा वेदमन्त्र नहीं बोलें।  ॐ की जगह ह्रीं या औं बोला जा सकता है।सुविधा के लिए हम प्रायः बता देते हैं कि कौन सा वेदमन्त्र है।

भुवनेश्वरी एकाक्षरी मन्त्र जप विधि :

विनियोग : श्री भुवनेश्वरी एकाक्षरी मन्त्र के जप से पूर्व यह श्लोक पढ़कर आचमनी से भूमि पर जल छोड़ दे :
ओऽम् अस्य श्री भुवनेश्वरी एकाक्षर मन्त्रस्य शक्तिर्ऋषिः  गायत्री छन्दः, भुवनेश्वरी देवताः, हं बीजं, ईं शक्तिः, रं कीलकं, चतुर्वर्गसिद्धयर्थे जपे विनियोगः
(इस एकाक्षर मन्त्र के "शक्ति" ऋषि हैं, छन्द गायत्री, भुवनेश्वरी देवता हैं। हं बीज, ईं शक्ति व कीलक 'रं' है और विनियोग 'चतुर्वर्गसिद्धये' है अर्थात धर्म अर्थ काम मोक्ष चारों पुरुषार्थ इस मन्त्र द्वारा प्राप्त होते हैं।)

ऋष्यादिन्यास :
ॐ शक्तिर्ऋषये नमः शिरसि ।।
(सिर का स्पर्श करे)
 गायत्री छन्दसे नमः मुखे।।
( मुख का स्पर्श करे )
 भुवनेश्वरी देवतायै नमः हृदिः।।
( हृदय को स्पर्श करे )
हं बीजाय नमः गुह्ये ।।
(बायें हाथ से नितम्ब स्पर्श करे )
 ईं शक्तये नमः पादयोः।।
( पैरों को स्पर्श करे )
 रं कीलकाय नमः नाभौ ।।
( नाभि स्पर्श करे )
 चतुर्वर्ग-सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे।।
 (सभी अंगों को छुए)

इसके बाद करन्यास, षडंगन्यास 'ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः' इत्यादि से करे -

करन्यास :
 ह्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः।
(दोनों हाथों की तर्जनी अँगुलियों से दोनों अँगूठों का स्पर्श करे)
 ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः।
(दोनों हाथों के अँगूठों से दोनों तर्जनी अँगुलियों का स्पर्श करे)
 ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः।
(अँगूठों से मध्यमा अँगुलियों का स्पर्श करे)
 ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः।
(अनामिका अँगुलियों का स्पर्श करे)
 ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
(कनिष्ठिका अँगुलियों का स्पर्श करे)
 ह्रः करतल-करपृष्ठाभ्यां नमः।
(हथेलियों और उनके पृष्ठभागों का परस्पर स्पर्श करे)

 हृदयादि षडंगन्यास :
 ह्रां हृदयाय नमः। (दाहिने हाथ की पाँचों अंगुलियों से हृदय का स्पर्श)
 ह्रीं शिरसे स्वाहा। (दाहिने हाथ की चार अंगुलियों से सिर का स्पर्श)
 ह्रूं शिखायै वषट्। (दाहिने हाथ के अंगूठे से शिखास्थान का स्पर्श)
 ह्रैं कवचाय हुम्। (दाहिने हाथ की अँगुलियों से बायें कंधे का और बायें हाथ की अँगुलियों से दाहिने कंधे का एक साथ स्पर्श)
 ह्रौं नेत्र-त्रयाय वौषट्। (दाहिने हाथ की अनामिका व तर्जनी अँगुलियों के अग्रभाग से दोनों नेत्रों का और मध्यमा अंगुली के अग्रभाग से ललाट के मध्यभाग का स्पर्श)
 ह्रः अस्त्राय फट्। (यह वाक्य पढ़कर दाहिने हाथ को सिर के ऊपर से बायीं ओर से पीछे की ओर ले जाकर दाहिनी ओर से आगे की ओर ले आयें और तर्जनी तथा मध्यमा अँगुलियों से बायें हाथ की हथेली पर ताली बजायें)

बालरविद्युतिमिन्दुकिरीटां तुंगकुचां नयनत्रययुक्ताम् । स्मेरमुखीं वरदाङ्कुशपाशाभीतिकरां प्रभजे भुवनेशीम् ॥      इसका भाव है कि "मैं भुवनेश्वरी देवी जी का ध्यान करता हूँ जिनके श्रीअंगों की आभा प्रभातकाल के सूर्य के समान है और मस्तक पर चन्द्रमा का मुकुट है। वे तुंगकुचा और तीन नेत्रों से युक्त देवी हैं। उनके मुख पर मुस्कान की छटा छायी रहती है और हाथों में वरद, अङ्कुश, पाश एवं अभय-मुद्रा शोभा पाते हैं।"


ध्यानभगवती भुवनेश्वरी का ध्यान इस प्रकार है -
बालरवि-द्युतिमिन्दु-किरीटां तुंगकुचां नयनत्रय-युक्ताम् ।
स्मेरमुखीं वरदाङ्कुश-पाशाभीति-करां प्रभजे भुवनेशीम् ॥
     इसका भाव है कि "मैं भुवनेश्वरी देवी जी का ध्यान करता हूँ जिनके श्रीअंगों की आभा प्रभातकाल के सूर्य के समान है और मस्तक पर चन्द्रमा का मुकुट है। वे तुंगकुचा और तीन नेत्रों से युक्त देवी हैं। उनके मुख पर मुस्कान की छटा छायी रहती है और हाथों में वरद, अङ्कुश, पाश एवं अभय-मुद्रा शोभा पाते हैं।"

पूजन : भुवनेश्वरी महाविद्या यन्त्र,  भुवनेश्वरी देवी जी के चित्र पर या फिर श्री यन्त्र पर निम्न प्रकार से पूजन करे :

 १- ॐ ह्रीं भुवनेश्वरी देव्यै नमः लं पृथिव्यात्मकं गंधं परिकल्पयामि|
( देवि भुवनेश्वरी आपको नमस्कार है! मैं पृथ्वीरूप गन्ध (चन्दन) आपको अर्पित करता हूँ )

२-ॐ ह्रीं भुवनेश्वरी देव्यै नमः हं आकाशात्मकं पुष्पं परिकल्पयामि |
(देवि भुवनेश्वरी आपको नमस्कार है! मैं आकाशरूप पुष्प आपको अर्पित करता हूँ )

३-ॐ ह्रीं भुवनेश्वरी देव्यै नमः यं वाय्वात्मकं धूपं परिकल्पयामि |
( देवि भुवनेश्वरी आपको नमस्कार है! मैं वायु के रूप में धूप आपको प्रदान करता हूँ )

४- ॐ ह्रीं भुवनेश्वरी देव्यै नमः रं वह्न्यात्मकं दीपं दर्शयामि |
( देवि भुवनेश्वरी आपको नमस्कार है। मैं अग्नि के रूप में दीपक आपको प्रदान करता हूँ )

५- ॐ ह्रीं भुवनेश्वरी देव्यै नमः वं अमृतात्मकं नैवेद्यं निवेदयामि |
(देवि भुवनेश्वरी आपको नमस्कार है! मैं अमृत के समान नैवेद्य आपको निवेदन करता हूँ  )

६- ॐ ह्रीं भुवनेश्वरी देव्यै नमः सौं सर्वात्मकं सर्वोपचाराणि मनसा परिकल्प्य समर्पयामि |
( हे देवि भुवनेश्वरी आपको नमस्कार है! मैं सर्वात्मक रूप में संसार के सभी उपचारों को आपके चरणों में समर्पित करता हूँ)
इसके बाद जप प्रारम्भ करे।

 पुरश्चरण विधि :
उपरोक्त मन्त्र के पुरश्चरण के लिये ३२ लाख बार मन्त्र जप करने का विधान है। साथ ही जप का दशांश हवन (तीन लाख बीस हजार बार) त्रिमधु मिलाकर अष्टद्रव्यों से करे । त्रिमधु होता है : घृत, मधु, शर्करा। अष्ट-द्रव्य आठ हैं : १. अश्वत्थ (पीपल), २. यज्ञोदुम्बर (गूलर), ३. पाकड़, ४. वट, ५. तिल, ६. सफ़ेद सरसों, ७. पायस (दूध/खीर), ८. घृत।
एक अन्य मत से अष्ट द्रव्य ये भी हैं : ईख, चावल का आटा, कदली फल (केला), चिउड़ा(कुटा चावल /पोहे वाला चावल), तिल, लड्डू, नारियल, खील
इतना अधिक मन्त्र जप तथा हवन एक दिन में सम्भव नहीं। यदि एक सेकंड में दो बार उपरोक्त जप किया जाता है तो उस हिसाब से एक घंटे में 3600सेकंडx2=7200 (67 माला) जप हो सकता है। सुबह शाम एक-एक घण्टा साधना को देंगे तो 67x2 =134माला जप प्रतिदिन होगा।
अतः इस प्रकार से अपनी सुविधा के अनुसार दिनों में जप व हवन संख्या को बांट लेना चाहिए।
प्रतिदिन समान संख्या में जप करे। संख्या घटा बढा नहीं सकते। प्रतिदिन जप करके देवी को समर्पित कर देना चाहिए :
जप समर्पण प्रार्थना : गुह्याति-गुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत् कृतं जपम्।    सिद्धिर्भवतु मे देवि! त्वत् प्रसादान्महेश्वरि॥

पुरश्चर्या हेतु सुझाव: ⭐सुविधा के लिए योजनाएं बना लीजिए कि प्रतिदिन इस तरह से जपना है.. यदि इस मन्त्र की 134 माला प्रतिदिन की जाती है जिसमें लगभग 2 घंटा लगेगा तो प्रतिदिन 14472 जप होगा और 222 दिनों (लगभग 8 महीने) में 32,12784 जप हो जाएगा...

⭐इस प्रकार उपरोक्त 32 लाख जप के बाद या उसी के साथ-साथ 3 लाख 20 हजार बार हवन को भी इसी प्रकार प्रतिदिन के हिसाब से बाँट ले और "ॐ ह्रीं स्वाहा" से हवन सम्पन्न कर लें.... 
[अर्थात् कुल 3000 माला हवन होगा, इसके लिए 30 माला हवन प्रतिदिन 100 दिन तक करे, इससे कुल 3,24000 हवन होगा]

⭐इसके बाद साधक 32000 बार देवी का तर्पण करे अर्थात देवी के विग्रह पर आचमनी से या फिर हथेली के अग्र भाग से 32000 बार जल तर्पण करे...प्रत्येक तर्पण में "ॐ ह्रीं भुवनेश्वरीं तर्पयामि नमः" मंत्र बोले [324 (3 माला) तर्पण प्रतिदिन 100 दिन तक, इससे  कुल 32,400 तर्पण होगा]
तर्पण हेतु पात्र में स्वच्छ जल में दुग्ध, चन्दन, पुष्प, चावल, कुमकुम मिश्रित करें इस पर श्री भुवनेश्वरी का विग्रह (श्रीभुवनेश्वरी यन्त्र या श्रीयन्त्र या दुर्गा जी या लक्ष्मी जी की प्रतिमा) रखें बायें हाथ की अंजलि(हथेली के अग्रभाग) से जल लेकर  देवी पर अर्पित करता जाए, दाहिने हाथ से माला पकड़कर तर्पण संख्या गिने। इतना न हो सके तो बायें हाथ से केवल आचमनी से ही देवी पर जल अर्पण करते जाए और दायें हाथ से माला द्वारा तर्पण संख्या गिनते हुए तर्पण करते जाए। चित्र हो तो उसके सामने पात्र रखकर उसमें तर्पण का जल अर्पित कर सकते हैं।

⭐तर्पण के बाद साधक 3200 बार अपने मस्तक पर मार्जन करे अर्थात "ॐ ह्रीं नमः मार्जयामि" बोलते हुए कुश या दूब से 3200 बार अपने माथे पर जल छिड़के।[32 मार्जन प्रतिदिन 100 दिन तक]

⭐इसके बाद 320 ब्राह्मण को भोजन कराये यह न हो सके तो 320 बार जरुरतमन्द लोगों को,मन्दिर आदि स्थानों में ह्रीं का स्मरण करते हुए खाना बाँट दे।
कुछ समझ न आये तो हमें ईमेल करके पूछ लें। इस प्रकार यह 1 पुरश्चरण सम्पन्न हो जाएगा। यदि अच्छे परिणाम मिलें तो साधक चाहे तो कुल 5 पुरश्चरण कर सकता है।
पुरश्चरण द्वारा सिद्धि प्राप्ति हेतु तो ब्रह्मचर्य, भूमि शयन, गाजर प्याज लहसुन मांस न खाना, सात्विक भोजन आदि नियम होते हैं। नित्य देवी की पूजा करें - खड्गमाला पढ़ें।
इन सब कार्यों में समय जरुर लगेगा लेकिन यदि कोई यह सब कर ले तो वह निश्चय ही धन्य है... इस सबके बाद भी वह साधक अपनी सुविधा के अनुसार प्रतिदिन (यथा संख्या) जप करता रहे तो देवी भुवनेश्वरी जी का यह बीजमन्त्र जीवन पर्यन्त सिद्ध होकर उस व्यक्ति की किसी न किसी रूप में सहायता अवश्य करेगा। एक बात ध्यान में रहे कि साधक गोपनीयता रखे अर्थात यह पूरी साधना मन्त्र गुप्त रखे गुरु के अतिरिक्त किसी को कुछ न बताए ... और कोई सिद्धि मिले या कोई अनुभव हो तो उसको भी सर्वथा गुप्त रखे अन्यथा सब व्यर्थ हो जाएगा।

आदिशक्ति भुवनेश्वरी देवीभागवत में वर्णित मणिद्वीप की अधिष्ठात्री देवी, हृल्लेखा (ह्रीं) मंत्र की स्वरूपाशक्ति, सृष्टि क्रम में महालक्ष्मी स्वरूपा और भगवान शिव के समस्त  लीला-विलास की सहचरी हैं।

श्री भुवनेश्वरी-शुद्धशक्ति-खड्गमाला मन्त्र
      भुवनेश्वरी महाविद्या का खड्गमाला स्तुतिपरक मन्त्र आपके समक्ष प्रस्तुत है,यह स्तोत्र विधान साधना-रूप ही है। स्तोत्र रूप होने से श्री दक्षिणामूर्ति शिवजी को स्मरण करके बिना दीक्षा भी इसका पाठ किया जा सकता है। इस एक मन्त्र के पढ़ने से भुवनेश्वरी माँ के यन्त्र स्थित सभी आवरण देवताओं/शक्तियों का स्मरण हो जाता है। इसे पढ़कर माँ भुवनेश्वरी के चित्र, दुर्गा मूर्ति या भुवनेश्वरी यन्त्र पर पुष्प चढा़ने से उनकी आवरण पूजा सम्पन्न हो जाती है। भुवनेश्वरी महाविद्या के मन्त्र जप का फल भी इसके पाठ से मिल जाता है, नित्य सुबह/शाम  एक पाठ ही पर्याप्त है।

⭐श्री भुवनेश्वरी खड्गमाला स्तोत्र का तीनों समय(सुबह, मध्याह्न, शाम) एक-एक पाठ प्रतिदिन करे। ऐसा एक महीने तक करने से "श्री भुवनेश्वरी मंत्र के मासिक पुरश्चरण" के समान ही फल होता है।


सावधानी -  ध्यान रहे कि शास्त्रों के अनुसार जिनका यज्ञोपवीत संस्कार नहीं हुआ है, जनेऊ नहीं पहनते,जो प्रतिदिन गायत्री संध्या नहीं करते वे पुरुष तथा स्त्री, शूद्र  प्रस्तुत मन्त्रों में ॐ तथा वषट्, स्वाहा का उच्चारण नहीं करें वे ॐ की जगह ह्रीं या औं कहें , वषट् या स्वाहा की जगह नमः कहें।

संकल्पः — ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: ॐ तत्सत् श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य श्रीब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे भूप्रदेशे------प्रदेशे ----- नगरे,(......ग्रामे)..... नाम्नि सम्वत्सरे, सूर्य (उत्तरायणे/दक्षिणायने)-----ऋतौ,------मासे --------पक्षे , ----तिथौ, -----वासरे ------गोत्रोत्पन्न ------(नाम) अहं अद्य श्रीभुवनेश्वरी महाविद्या कृपा प्रसाद सिद्ध्यर्थं श्री भुवनेश्वरी शुद्ध शक्ति खड्गमाला पाठाख्यं कर्ममहं करिष्ये।

विनियोगॐ अस्य श्री भुवनेश्वरी-खड्ग-माला-मन्त्रस्य श्री प्रकाशात्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, श्री भुवनेश्वरी देवता, हं बीजं, ईं शक्तिः, रं कीलकं, श्रीभुवनेश्वरी-पराम्बा-प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।

ऋष्यादि-न्यास श्री प्रकाशात्मा-ऋषये नमः शिरसि, (सिर का स्पर्श करे)
गायत्री छन्दसे नमः मुखे,(मुख का स्पर्श करे)
श्री भुवनेश्वरी देवतायै नमः हृदि, (हृदय का स्पर्श करे)
हं बीजाय नमः गुह्ये, (बाये हाथ से नितम्ब का स्पर्श करे और हाथ धोले)
ईं शक्तये नमः पादयोः,(पैरों का स्पर्श करे)
रं कीलकाय नमः नाभौ, (नाभि का स्पर्श करे)
श्री भुवनेश्वरी पराम्बा प्रीत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे (समस्त अंगों का स्पर्श करे) 
ध्यान
स्मरेद् रवीन्द्वग्नि-विलोचनां तां, सत् पुस्तकां जाप्य-वटीं दधानाम्।
सिंहासनां मध्यम पत्र संस्थां, श्रीतत्त्व-विद्यां परमा पराम्बां भजामि ॥
(सूर्य, चंद्र व अग्नि जिनके नेत्र स्वरूप हैं, पुस्तक और जपमाला धारण करके सिंहासन के मध्य में विराजमान उन परमतत्व-विद्या पराम्बा को स्मरण करके मैं उनकी उपासना करता हूँ)
य एवं-सचिन्तयेन्मन्त्री, सर्व-कामार्थ-सिद्धिदाम्। तस्य हस्ते सदैवास्ति, सर्व-सिद्धिर्न संशयः॥ 
तादृशं खड्गमाप्नोति, येन हस्त-स्थितेन वै। अष्टादश-महा-द्वीपे सम्राट् भोक्ता भविष्यति॥ 

मानस पूजा -
• लं पृथिवी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्री भुवनेश्वरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (कनिष्ठिका से अंगूठे को मिलाकर अधोमुख(नीची) करके भगवान को दिखाए, यह गन्ध मुद्रा है)

• हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्री भुवनेश्वरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (अधोमुख तर्जनी व अंगूठा मिलाकर बनी पुष्प मुद्रा दिखाए)

• यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्री भुवनेश्वरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्वमुख(ऊपर को) तर्जनी व अंगूठे को मिलाकर दिखाए)

• रं वह्नि-तत्त्वात्मकं दीपं श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्री भुवनेश्वरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्व मुख मध्यमा व अंगूठे को दिखाए)

• वं अमृत-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्री भुवनेश्वरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्व मुख अनामिका व अंगूठे को दिखाए)

• सौं सर्वतत्त्वात्मकं ताम्बूलादि सर्वोपचाराणि मनसा परिकल्प्य श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्री भुवनेश्वरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (सभी अंगुलियों को मिलाकर ऊर्ध्वमुखी करते हुए दिखाये)

श्रीगुरु वन्दना -
गुरु या शिव जी के विग्रह पर पुष्प/अक्षत अर्पित करे-
• श्री दक्षिणामूर्तये विद्महे ध्यानस्थाय धीमहि तन्नो धीशः प्रचोदयात्। श्री दक्षिणामूर्ति गुरवे नमः, श्री गुरुपादुकां पूजयामि।
नमस्कार करे-
• गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः,
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।
• अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया, चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः।

श्रीमहागणपति पूजन-
पुष्प या अक्षत अर्पित करे -
• ऐं आत्म तत्व व्यापकाय महा-गणपतये श्री पादुकां पूजयामि नमः।
• ह्रीं विद्या तत्व तत्व व्यापकाय महा-गणपतये श्री पादुकां पूजयामि नमः।
• श्रीं शिव तत्व व्यापकाय महा-गणपतये श्री पादुकां पूजयामि नमः।
मन्त्र
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं श्रीभुवनेश्वरी-हृदय-देवि शिरोदेवि शिखा-देवि कवच-देवि नेत्र-देव्यस्त्र-देवि कराले विकराले उमे सरस्वति श्रीदुर्गे उषे लक्ष्मि श्रुति स्मृति धृति श्रद्धे मेधे रति कान्ति आर्ये श्रीभुवनेश्वरि दिव्यौघ-गुरु-रूपिणि सिद्धौघ-गुरु-रूपिणि मानवौघ-गुरु-रूपिणि श्री-गुरु-रूपिणि परम-गुरु-रूपिणि परापर-गुरु-रूपिणि परमेष्ठी-गुरु-रूपिणि अमृतभैरव-सहित-श्रीभुवनेश्वरि हृदय-शक्ति शिरः-शक्ति शिखा-शक्ति कवच-शक्ति नेत्र-शक्त्यस्त्र-शक्ति हृल्लेखे गगने रक्ते करालिके महोच्छूष्मे सर्वानन्द-मयचक्र-स्वामिनि!
 गायत्री-सहित-ब्रह्म-मयि सावित्री-सहित-विष्णु-मयि सरस्वती-सहित-रुद्र-मयि लक्ष्मी-सहित-कुबेर-मयि रति-सहित काम-मयि पुष्टि-सहित-विघ्न-राज-मयि शङ्ख-निधि-सहित-वसुधा-मयि पद्म-निधि-सहित-वसुमति-मयि गायत्र्यादि-सह-श्रीभुवनेश्वरि ह्रां हृदय-देवि ह्रीं शिरो-देवि ह्रूं शिखा-देवि ह्रैं कवच-देवि ह्रौं नेत्र-देवि ह्रः अस्त्र-देवि सर्व-सिद्धि-प्रद-चक्र-स्वामिनि!
 अनङ्ग-कुसुमे अनङ्ग-कुसुमातुरे अनङ्ग-मदने अनङ्ग-मदनातुरे भुवन-पाले गगन-वेगे शशि-रेखे अनङ्ग-वेगे सर्व-रोग-हर-चक्र-स्वामिनि!
  कराले विकराले उमे सरस्वति श्रीदुर्गे उषे लक्ष्मि श्रुति स्मृति धृति श्रद्धे मेधे रति कान्ति आर्ये सर्व-संक्षोभण-चक्र-स्वामिनि!
  ब्राह्मि माहेश्वरि कौमारि वैष्णवि वाराहि इन्द्राणि चामुण्डे महा-लक्ष्म्य-नङ्ग-रूपेऽनङ्ग-कुसुमे मदनातुरे भुवन-वेगे भुवन-पालिके सर्व-शिशिरेऽनङ्ग मदनेऽनङ्ग-मेखले सर्वाशा-परिपूरक-चक्र-स्वामिनि!
इन्द्र-मय्यग्नि-मयि यम-मयि निर्ऋति-मयि वरुण-मयि वायु मयि सोम-मयीशान-मयि ब्रह्म-मय्यनन्त-मयि वज्र-मय्यग्नि-मयि दण्ड-मयि खड्ग-मयि पाश-मय्यंकुश-मयि गदा-मयि त्रिशूल-मयि पद्म-मयि चक्र-मयि वर-मय्यंकुश-मयि पाश मय्यभय-मयि बटुक-मयि योगिनी-मयि क्षेत्रपाल-मयि गण-पति-मय्यष्ट-वसु-मयि द्वादशादित्य-मय्येकादश- रुद्र-मयि सर्व-भूत-मय्यमृतेश्वर-सहित श्री भुवनेश्वरि त्रैलोक्य-मोहन-चक्र-स्वामिनि नमस्ते नमस्ते नमस्ते स्वाहा श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ॥

फल-श्रुतिः
कथयामि महादेवि! भुवनेशीं महेश्वरीम् । अनया सदृशी विद्या नान्या ज्ञानस्य साधने॥१॥ 
 नात्र चित्त-विशुद्धिर्वा नारि-मित्रादि-दूषणम्। न वा प्रयास-बाहुल्यं समया-समयादिकम्॥२॥
[हे महादेवी इस भुवनेशी-महेश्वरी {खड्गमाला तथा एकाक्षरी भुवनेश्वरी मन्त्र} को कहता हूं जिसके समान दूसरी कोई विद्या ज्ञान साधन में समर्थ नहीं है, इसके जप के लिए न तो चित्त शुद्धि की आवश्यकता है तथा इसमें "अरि(शत्रु) मन्त्र है" या "मित्र मन्त्र है" आदि दोषों का विचार करने की आवश्यकता नहीं है]

 देवैर्देवत्व-विधये सिद्धैः खेचर-सिद्धये । पन्नगैः राक्षसै-र्मर्त्यै-र्मुनिभिश्च मुमुक्षुभिः॥३॥ कामिभि-र्धर्मिभि-श्चार्थ-लिप्सुभिः सेविता परा । न वसु व्यय-बाहुल्यं काय-क्लेश-करं तथा॥४॥
[इसके द्वारा देवता देवत्व पाने के लिए तथा सिद्ध खेचर(आकाशगति) सिद्धि पाने के लिए और सर्प,राक्षस,मनुष्य,मुनि,मोक्षकामी धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष पाने हेतु देवी पराशक्ति की पूजा/सेवा/आराधना करते हैं, तथा इसके द्वारा उपासना करने में धन खर्च भी नहीं हो रहा और शारीरिक कष्ट भी नहीं है]

 य एवं चिन्तयेन्मन्त्री सर्व-कामार्थ-सिद्धिदाम् । तस्य हस्ते सदैवास्ति सर्व-सिद्धिर्न संशयः॥५॥ 
(जो धन देने वाली व सर्व कामना सिद्ध कर देने वाली भुवनेश्वरी  महाविद्या का, मन्त्र जपते हुए चिन्तन करता है उसको सर्वसिद्धियाँ प्राप्त होती हैं इसमें संशय नहीं है)

 गद्य-पद्य-मयी वाणी सभायां विजयी भवेत् । तस्य दर्शन-मात्रेण वादिनो निष्कृतादराः॥६॥ 
(खड्गमाला के नियमित पाठकर्ता की वाणी निबंध-कविता बोलने में कुशल हो जाने से वह सभा में विजयी होता है, विवाद करने वाला उपासक के दर्शन मात्र से सम्मान रहित या आदरपूर्वक क्षमा माँगने वाला हो जाता है)

 राजानोऽपि हि दासत्वं भजन्ते किं प्रयोजनः । दिवा-रात्रौ पुरश्चर्या कर्तुश्चैव क्षमो भवेत् ॥ ७॥
[राजा(आज के समय में सरकारी व्यक्ति) भी खड्गमाला पाठकर्ता के दास हो जाते हैं अन्य की तो बात ही क्या है, दिन व रात को इसका जप करके सामर्थ्यवान्, सशक्त,धैर्यवान होता है]

 सर्वस्यैव जनस्येह वल्लभः कीर्ति-वर्धनः । अन्ते च भजते देवी-गणत्वं दुर्लभं नरः ॥ ८॥  चन्द्र-सूर्य-समो भूत्वा वसेत् कल्पायुतं दिवि । न तस्य दुर्लभं किञ्चित् यो वेत्ति भुवनेश्वरीम् ॥ ९॥
(भुवनेशी खड्गमाला का पाठकर्ता सबका प्रिय व यशस्वी होता है, उसकी कीर्ति बढ़ती है और वह मृत्यु के उपरांत दुर्लभ पद पाता है अर्थात् देवी का गण हो जाता है, सूर्य चन्द्रमा के समान तेजोमय होकर दस हजार कल्प तक स्वर्ग में वास करता है, जो भुवनेश्वरी महाविद्या को जानता है उनका भजन करता है, उसको कुछ भी दुर्लभ नहीं रह जाता है)
॥श्रीभुवनेश्वरीरहस्ये श्री भुवनेश्वरी शुद्धशक्ति-खड्गमालास्तोत्रं शुभमस्तु॥


विनियोग — अस्य श्री भुवनेश्वरी-खड्ग-माला-मन्त्रस्य श्री प्रकाशात्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, श्री भुवनेश्वरी देवता, हं बीजं, ईं शक्तिः, रं कीलकं, श्रीभुवनेश्वरी-पराम्बा-प्रीत्यर्थे श्रीभुवनेश्वरी शुद्धशक्ति-माला-महामन्त्रस्य जप समर्पणे विनियोगः।
ध्यान
स्मरेद् रवीन्द्वग्नि-विलोचनां तां, सत् पुस्तकां जाप्य-वटीं दधानाम्।
सिंहासनां मध्यम पत्र संस्थां, श्रीतत्त्व-विद्यां परमा पराम्बां भजामि ॥
(सूर्य, चंद्र व अग्नि जिनके नेत्र स्वरूप हैं, पुस्तक और जपमाला धारण करके सिंहासन के मध्य में विराजमान उन परमतत्व-विद्या पराम्बा को स्मरण करके मैं उनकी उपासना करता हूँ)

मानस पूजा -
• लं पृथिवी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्री भुवनेश्वरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (कनिष्ठिका से अंगूठे को मिलाकर अधोमुख(नीची) करके भगवान को दिखाए, यह गन्ध मुद्रा है)

• हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्री भुवनेश्वरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (अधोमुख तर्जनी व अंगूठा मिलाकर बनी पुष्प मुद्रा दिखाए)

• यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्री भुवनेश्वरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्वमुख(ऊपर को) तर्जनी व अंगूठे को मिलाकर दिखाए)

• रं वह्नि-तत्त्वात्मकं दीपं श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्री भुवनेश्वरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्व मुख मध्यमा व अंगूठे को दिखाए)

• वं अमृत-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्री भुवनेश्वरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्व मुख अनामिका व अंगूठे को दिखाए)

• सौं सर्वतत्त्वात्मकं ताम्बूलादि सर्वोपचाराणि मनसा परिकल्प्य श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्री भुवनेश्वरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (सभी अंगुलियों को मिलाकर ऊर्ध्वमुखी करते हुए दिखाये)

एक आचमनी से जल चढ़ाते हुए जप समर्पण करे -
• ॐ गुह्याति गुह्य गोप्त्री त्वम्, गृहाणास्मद्कृतं जपं।
सिद्धिर्भवतु मे देवि, त्वत्-प्रसादान्महेश्वरी॥
• मया कृतेन श्री भुवनेश्वरी शुद्धशक्ति-सम्बुद्ध्यन्त माला मन्त्र जपानुष्ठानं श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्री भुवनेश्वरी देव्यै  अर्पणमस्तु।
• अनेन मया कृतेन श्री भुवनेश्वरी शुद्धशक्ति सम्बुद्ध्यन्त माला मन्त्र जपेन श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्री भुवनेश्वरी भगवती सुप्रसन्ना वरदा भवतु।
• सर्वं श्री सद्गुरु-परदेवता-परब्रह्मार्पण-मस्तु।

शान्ति पाठ 
केवल यज्ञोपवीत धारण करने वाले ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य पुरुष इस मंत्र का 3 बार पाठ करें। अन्य लोग अर्थ पढ़ सकते हैं -
ओऽम् शान्ता पृथिवी शिवमन्तरिक्षं द्यौर्नो देवा अभयं नो अस्तु। शिवा दिशः प्रदिश उद्दिशो नः आपो विश्वतः परिपान्तु सर्वतः। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।
(पृथ्वी हमारे लिए शांति दायिनी हो। अंतरिक्ष और दिव्याकाश कल्याणकारी हों। देवगण अभय देने वाले हों, दिशाएं विदिशाएं और ऊर्ध्व दिशाएं मंगलमय हों और जल राशियां(सागर) हमारे चारों ओर से हमारीे रक्षा करें, शान्ति,शान्ति, शान्ति हो)

रुद्रयामलोक्तं शान्ति स्तोत्रम् 
इसे सब पढ़ सकते हैं। भक्तिपूर्वक श्रीखड्गमाला को यथासम्भव समझते हुए प्रतिदिन नियमित पारायण(पाठ) करने से उत्पन्न तेज को सँभालना कठिन होने से साधक का कभी-कभी मन व्याकुल हो सकता है ऐसे में शान्ति स्तोत्र भी खड्गमाला स्तोत्र के बाद पढ़ना चाहिए, हालांकि ऊपर शान्ति पाठ श्लोक भी दिया है लेकिन वह केवल वैदिक पुरुषों हेतु है। खड्गमाला स्तोत्र के पारायण में कोई न्यूनता-आधिक्यता हो गयी हो तो प्रस्तुत शान्ति स्तोत्र के पाठ से उस दोष का शमन हो जाता है-

 जयन्तु मातरः सर्वा, जयन्तु योगिनी-गणाः।
जयन्तु सिद्ध डाकिन्यो, जयन्तु गुरवः सदा॥१॥

जयन्तु साधकाः सर्वे, विशुद्धाः कौलिकाश्च ये 
समयाचार सम्पन्नाः, जयन्तु पूजकाः नराः॥२॥

अणिमाद्याश्च सिद्धाश्च, नन्दन्तु भैरवादयः।
नन्दन्तु देवताः सर्वे, सिद्ध-विद्या-धरादयः॥३॥

ये चाम्नाय-विशुद्धाश्च, मन्त्रिणः शुद्ध-बुद्धयः।
सर्वदानन्द हृदयः नन्दन्तु कुल-पालकाः॥४॥

नन्दन्तु अणिमा सिद्धा, नन्दन्तु कुल साधकाः।
इन्द्राद्या देवताः सर्वे तृप्यन्तु वास्तु-देवताः॥५॥

सूर्य चन्द्रादयो देवाः, तृप्यन्तु मम-भक्तितः।
नक्षत्राणि ग्रहा योगाः करणाः राशयश्च ये॥६॥

तृप्यन्तु पितरः सर्वे मासाः संवत्सरादयः।
खेचरा भूचराश्चैव तृप्यन्तु मम भक्तितः॥७॥

अन्तरिक्ष-चरा ये च ये चान्ये देव-योनयः।
सर्वे ते सुखिनो यान्तु सर्पा नद्याश्च पक्षिणः॥८॥

पशवः स्थावराश्चैव पर्वताः कन्दराः गुहाः।
ऋषयो ब्राह्मणाः सर्वे शान्तिं कुर्वन्तु मे सदा॥९॥

तीर्थानि बहु प्रसिद्धा ये, चान्ये पुण्य-भूमयः।
वृद्धाः पतिव्रता यास्ताः शान्तिं कुर्वन्तु मे सदा॥१०॥

शिवं सर्वत्र मे चास्तु पुत्र-दारा-धनादिषु।
राजानः सुखिनः सन्तु मित्राः नन्दन्तु मे सदा॥११॥

साधका सुखिनः सन्तु शिवं तिष्ठन्तु सर्वदा।
शुभा मे वन्दिताः सन्तु मित्रा तिष्ठन्तु पूजकाः॥१२॥
।।श्री रुद्रयामलोक्तं शान्ति स्तोत्रं शुभमस्तु।।

श्री भुवनेश्वरी गायत्री मंत्र इस प्रकार है-
॥नारायण्यै विद्महे भुवनेश्वर्यै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्॥
इसका भाव है कि हम नारायणी (यश, तेज, रूप और गुणों में नारायण के समान तथा नारायण की ही शक्ति अर्थात् साक्षात दुर्गाजी) को जानते हैं और उन भुवनेश्वरी(त्रैलोक्य की ईश्वरी) देवी जी का ही ध्यान करते हैं, वे देवी हमें ज्ञान-ध्यान में प्रवृत्त करें। माँ भुवनेश्वरी  के साधारण उपासकों को इसी भाव साथ इस भुवनेश्वरी गायत्री मंत्र का देवी के आगे कुछ समय बैठकर मानसिक जप करना चाहिए।
 सर्वस्वरूपा मूल प्रकृति भगवती भुवनेश्वरी महाविद्या को जयंती तिथि पर हमारा अनंत बार प्रणाम....

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श्री भुवनेश्वरी हृदय स्तोत्र (स्तोत्रात्मक उपासना)


टिप्पणियाँ

  1. मैंने सुना है कि मां भुनेश्वरी के मंत्रों से आज्ञा चक्र जाग्रत हो जाता है क्या यह सही है, तो इसकी क्या विधि है

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  2. नमस्कार जी, किसी भी महाविद्या की आराधना बिना छ्ल कपट के करने से स्वतः ही कुंडलिनी जागरण होने लगता है...भुवनेश्वरी माता की कृपा से मात्र आज्ञा चक्र ही नहीं सम्पूर्ण कुंडलिनी का जागरण हो सकता है...भुवनेश्वरी देवी को कुंडलिनी की शक्ति भी कहा जाता है... श्रद्धा जितनी होगी फल मिलने में उतना समय लगेगा... कुंडलिनी योग मार्ग, मन्त्र मार्ग तथा भक्ति मार्ग तीन तरह से जगाई जा सकती है योग मार्ग कठिन है भक्ति मार्ग व मन्त्र मार्ग आपस में जुड़े हैं.. परन्तु माँ की निश्छल भक्ति पूर्वक आराधना करना अधिक सरल है... टिप्पणी करने के लिए धन्यवाद..
    जय जय माँ भुवनेश्वरी...

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    1. कृपया कर ये बताए कि ज्ञान , शक्ति और वैराग्य ये तीनों या फिर असीम शक्ति और ज्ञान किस साधना द्वारा या पुरुष्चरन द्वारा प्राप्त किया जा सकता है ।

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    2. महोदय, ज्ञान के लिए तो केवल धर्म शास्त्रों के अध्ययन की आवश्यकता होती है, ये भी नहीं कि एकदम से दो दिन में ही दुनिया भर का पढ़ लिया.आराम से प्रतिदिन आध्यत्मिक अध्ययन को कुछ न कुछ समय देना चाहिए. इस संदर्भ में गीताप्रेस की पुस्तकें सर्वोत्तम हैं, गीता का व्याख्या सहित अर्थ, पुराणों व उपनिषदों आदि का अध्ययन ज्ञान के स्तर को बढ़ाता है. गूगल पर सर्च करने से फ्री pdf भी मिलेंगी..यूट्यूब पर govardhan math चैनल पर पुरी शंकराचार्य जी के वीडियो देखें बहुत कुछ समझने को मिलेगा. प्राप्त विशुद्ध ज्ञान का अपने दैनिक जीवन में अभ्यास करने से वैराग्य अपने आप ही जाग्रत होने लगता है. शक्ति दो प्रकार की हैं शारीरिक व आध्यात्मिक. शारीरिक शक्ति स्वस्थ दिनचर्या. योग व आयुर्वेद व पौष्टिक भोजन से आती है.
      आध्यत्मिक शक्ति के लिए रुचि के अनुसार कोई एक प्रमुख इष्ट देव चुनकर उनकी जो कोई भी साधना करे उसे पूरे मन से करना चाहिए तो सब कुछ मिलेगा...मन्त्र साधना व पुरश्चरण दीक्षा लेकर ही करें,जब तक दीक्षा नहीं मिलती स्तोत्रात्मक उपासना करे... श्रीगणेश, विष्णु, शिव, दुर्गा, सूर्य इन पंच देवों की साधना सब कुछ देती है तथा 10 महाविद्या में से एक की साधना से ज्ञान, शक्ति, वैराग्य में वृद्धि होती है और मोक्ष का मार्ग आसान हो जाता है... जय माँ भुवनेश्वरी

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  3. उत्तर
    1. श्रीमान् जी आगामी महीने भाद्रपद में भुवनेश्वरी महाविद्या की जयंती आने वाली है... उसके कुछ दिन पहले एक आलेख में भुवनेश्वरी जी का कवच हिन्दी अनुवाद सहित प्रस्तुत करने का प्रयास रहेगा... सुझाव के लिए धन्यवाद... जय माँ भुवनेश्वरी..

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    2. भुवनेश्वरी कवच प्रकाशित हो चुका है कृपया यहाँ देखें : http://ourhindudharm.blogspot.com/2018/09/About-mool-prakriti-bhuvaneshwari-mahavidiya-kavach.html

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  4. कृपया भुवनेश्वरी पुरश्चरण विधि की जानकारी देने की कृपा करे 🙏🙏🙏🙏🙏

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    1. सुझाव के लिए धन्यवाद... अब ऊपर पुरश्चर्या विधि भी लिख दी गई है...
      जय माँ भुवनेश्वरी

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  5. मेरी आत्मशक्ति बहुत कम है, उसको बढाने के लिए में कौनसी योग मुद्रा करू.

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    1. महोदय ध्यान के नियमित अभ्यास द्वारा आत्मशक्ति बढ़ सकती है । भौहों के बीच में यानि आज्ञा चक्र में ध्यान केन्द्रित करने का प्रयास करना चाहिए । चाहें तो इस बीच किसी मन्त्र का जप करें।

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  6. सादर प्रणाम ।
    कृपया भुवनेश्वरी माला मंत्र होतो देने की कृपा करे ।

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    1. महोदय, एक प्राचीन तन्त्र ग्रंथ "भुवनेश्वरी रहस्य" में माँ भुवनेश्वरी का मालामन्त्र, खड्गमाला मन्त्र के रूप में प्राप्त होता है, जिसको नित्य पढना माँ की कृपा दिलाने वाला और रक्षाकारक तो है ही साथ ही इससे जैसे अन्य लाभ भी प्राप्त होते हैं.. यह खड्गमाला मन्त्र उपर लिख दिया गया है... जय माँ भुवनेश्वरी 🙏

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  7. उत्तर
    1. देखिए किसी भी साधना से सम्बन्धित सामग्री की अगर बात की जाय तो उसमें यन्त्र व माला अति महत्वपूर्ण वस्तुएं होती हैं... और क्या चाहिए समय और श्रद्धा...इनके अलावा हवन-पूजा की वस्तुएं भी आती हैं
      माला की बात करें तो भुवनेश्वरी माँ की साधना में रुद्राक्ष माला, स्फटिक माला या कमलगट्टा माला से जप किया जा सकता है...
      भुवनेश्वरी महाविद्या के लिए स्फटिक श्रीयन्त्र अथवा भुवनेश्वरी यन्त्र चाहिए होगा...चाहें तो भुवनेश्वरी यन्त्र को आम/अनार/दाडिम की कलम से भोजपत्र पर लालचन्दन या कुमकुम, अष्टगन्ध से बना सकते हैं... कुछ विशिष्ट साधक क्या करते हैं कि एक रुमाल या वस्त्र पर या फिर तांबे की थाली में कुश/आम की लकड़ी से हर दिन नया यन्त्र बनाकर पूजते हैं पर इसमें समय लगता है और दूसरा यन्त्र पानी आदि से मिट सकता है... इसलिए बना बनाया यन्त्र खरीद लेना उचित है..
      अब आयी पूजा सामग्री : इसमें चन्दन, कुमकुम, साफ पानी, नैवेद्य, फूल, अर्घ्यपात्र..
      हवन सामग्री : जौं,तिल घी , पवित्र वृक्ष की लकड़ी आदि
      ये सब तो उपलब्ध हो ही जाता है...
      ये माला व यन्त्र आपके आसपास की धार्मिक सामग्री वाली दुकान पर भी मिल ही जायेंगी.... अगर न मिले तो ऑनलाइन मंगा लीजिए...amazon आदि से हाँ वहां थोड़ा सावधान रहें सबके reviews, rating देखकर ही खरीदें...
      जय माँ भुवनेश्वरी

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  8. Sir bhuvbeswari ke bhairav aur unka mantra bhi toh karna hoga iske sath
    2) itna din brahmacharya palan karna kathin hua toh

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    1. महोदय, (1) भुवनेश्वरी महाविद्या के भैरव हैं "त्र्यम्बक" नामक शिव ... भुवनेश्वरी माँ और शिवजी को जैसे अर्धनारीश्वर होते हैं वैसे रखे...अर्थात देवी भुवनेश्वरी के विग्रह के दाईं ओर शिवजी का विग्रह(शिवलिंग/मूर्ति/यन्त्र) रखे...श्रीत्र्यम्बक शिवजी की मृत्युंजय मन्त्र(ॐत्र्यम्बकं यजामहे---------मामृतात्) से पूजा करनी चाहिए फिर माँ भुवनेश्वरी की पूजा करे...
      हमने जो ऊपर खड्गमाला दी हुई है उसमें माँ भुवनेश्वरी एवं उनके समस्त परिवार का स्मरण (पुष्प चढ़ाने से पूजन भी) हो जाता है..
      (2) दूसरी बात यह है कि साधना का रास्ता कठिन ही प्रतीत होता है महोदय परंतु कुछ पाने के लिए त्याग भी करना ही पड़ता है...मन्त्र पुरश्चरण में ब्रह्मचर्य का पालन करना अति आवश्यक होता है..ब्रह्मचर्य मन्त्र सिद्ध होने में सहायक है इसीलिए साधक को पुरश्चरण के दौरान पराई स्त्रियों के साथ संबंध नहीं रखना चाहिए...विवाहित पुरुष को केवल ऋतुकाल में अपनी पत्नी को संतुष्ट करने की अनुमति है हर दिन नहीं करे...उत्तम तो यह है कि पत्नी की इच्छा होने पर ही ऋतुकाल में रतिक्रिया करे...पुरश्चरण के दौरान यदि कभी अचानक से गलत विचार आए या रात्रि स्वप्न में nightfall हो जाए तो इससे ब्रह्मचर्य भंग नहीं होता चिन्ता न करे, कामुक बातें न किया करे..भगवान शिव को पिता तथा देवी भुवनेश्वरी को मां मानकर चिन्तन करे..आपके भीतर और हर स्त्री पुरुष में शिव जी व भुवनेश्वरी माँ उपस्थित है यही समझे, धैर्य रखें आप ब्रह्मचर्य पूर्वक रह सकते हैं गूगल पर सर्च करके अनेकों ब्रह्मचारी साधकों की जीवनी पढ़ सकते हो जो कि मन्त्र सिद्धि पा चुके हैं..पुरश्चरण पूरा होने तक की ही तो बात है फिर तो स्वतंत्र हैं.. वास्तव में होता यह है कि पुरश्चरण के समय मन्त्र जप हवन तर्पण की इतनी अधिक संख्या आप कर रहे हैं तो इन क्रियाओं द्वारा उत्पन्न तेज को सम्भालने में ब्रह्मचर्य सहायता करता है..
      इसके साथ ही शास्त्र कहते हैं कि मन्त्र व देवता में पूर्ण विश्वास रखे, नित्य प्राणायाम(कम से कम 3 बार) करे,जहाँ तक सम्भव हो अपने घर का ही खाना खाए, मांस मदिरा त्याग करे, अनर्थकारी झूठ न बोलना, घमंड न करे, दूसरे से जलन न करे, चोरी न करना जैसे आचरण को पुरश्चरण के दिनों में अपने भीतर लाना चाहिए इन सबका पालन करके जप हवन पूजा करने से मन्त्र शीघ्र सिद्ध होता है... आपकी साधना सफल हो...
      जय जय माँ भुवनेश्वरी

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  9. प्रणाम🙏🏻
    आचार्यजी

    महोदय मैं आपसे इस बात पर मार्गदर्शन चाहता हूं कि क्या हवन, तर्पण, मार्जन न कर पाने की दशा में पुरश्चरण कैसे पूरा कर सकते हैं ?
    कृपया उचित मार्गदर्शन प्रदान करें
    कृपा होगी
    🙏🏻

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    1. महोदय, हवन, तर्पण, मार्जन, ब्राह्मण/कन्या को भोजन खिलाना ये पुरश्चर्या के आवश्यक अंग हैं... हवन का तो समझ सकता हूँ सबको सुलभ नहीं हो पाता परंतु कम से कम तर्पण,मार्जन तो स्वयम् करना ही चाहिए..आपके पास जब पर्याप्त समय हो तभी पुरश्चरण आरम्भ करे..पर्याप्त समय हो फिर भी आलस्य करना अनुचित है..खैर जो भी हो यदि अपरिहार्य कारण से पुरश्चरण का कोई अंग न कर पाये तो उसकी जगह उस अंग की निर्धारित संख्या का दोगुना "मूल मन्त्र जप" करने का विधान है... जैसे 3000 माला अर्थात 3,24000 बार हवन नहीं कर सके तो इसका दोगुना अर्थात् 3,24000x2 = 648,000 बार (60 माला) मन्त्र जप करे ... हाँ पहले संकल्प करके बोल भी दे "ओऽम् गणपतिर्जयति विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः ...सम्वत्सरे ...मासे ...पक्षे ...तिथौ ...वासरे श्री भुवनेश्वरी महाविद्या प्रीत्यर्थं श्री भुवनेश्वरी एकाक्षरी मन्त्र पुरश्चरणार्थे 'हवन' स्थाने श्रीभुवनेश्वरी एकाक्षरी मन्त्रस्य षट् लक्ष अष्ट चत्वारिंशत सहस्र जपमहम् करिष्ये" ... तब जप करे.. चाहे तो भली प्रकार कहीं कागज में लिख कर नित्य जप की योजना बनाले, जिससे प्रतिदिन का हिसाब रहे कि इतना तो मूल जप है और इतना जप हवन के लिए है आदि .. इस प्रकार से हीन अंग की पूर्ति हो जाती है... जय माँ भुवनेश्वरी

      हटाएं
  10. आचार्यजी
    एक मनः जिज्ञासा यह भी है कि क्या अनुष्ठान/ पुरश्चरण में अखण्ड दीप एवं कलश का होना अनिवार्य है?

    क्या प्रतिदिन दीप जलाकर साधना काल में जप नहीं किया जा सकता ?


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    1. महोदय, इतने अधिक दिनों तक लगातार अखण्ड दीप जलना कठिन कार्य है अतः "कई दिन तक अखण्ड दीप जलने की" अनिवार्यता की बात नहीं है.. लेकिन प्रतिदिन केवल मन्त्र जप की अवधि में ही दीप जलता रहे तो उत्तम है क्योंकि इससे दीपक में स्थित अग्निदेव साक्षी बन जाते हैं कि आपने मन्त्र जप किया है..इसलिए प्रतिदिन पुनः दीप जलाना ही उचित है..
      और कलश को भी प्रतिदिन नया जल भरकर पूजन के लिए स्थापित किया जाता है ....ऐसा भी कहते हैं कि देवताओं के पीने के लिए यह कलश का पवित्र जल होता है इसे नित्य रखना चाहिए...पूजन व जप के बाद इसका जल पौधे पर डाल दें
      जय माँ भुवनेश्वरी

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  11. प्रणाम आचार्य जी
    आचार्य जी मन मे ऐक प्रश्न है क्या माँ भुवनेश्वरी और माँ कामाख्या ऐक हि देवी है। दोनो माता के बीच मे क्या समानता है ऐवम माँ कामाख्या के बारे मे वृस्तित्व जानकारी दिजीये।मै आपका बहुत आभारी रहुगा।

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    1. नमस्कार, जी हाँ भुवनेश्वरी महाविद्या और देवी कामाख्या एक ही हैं.. देवी के रूपों में तो अंतर होता है लेकिन कोई भी देवी हो तत्वतः देवियों में कोई भेद नहीं होता है ... क्योंकि समय समय पर वह एक ही शक्ति भिन्न-भिन्न उद्देश्यों से विभिन्न रूप मेें प्रकट होती रहती है... भुवनेश्वरी महाविद्या दस महाविद्याओं के अंतर्गत आती हैं और कामाख्या देवी कामरूप स्थित सुप्रसिद्ध कामाख्या पीठ की अधिष्ठात्री हैं..सती के देहत्याग के बाद उनका गुह्य अंग असम के कामरूप नामक स्थान पर गिरा था. चाहे काली-उपासक हों या तारा- भुवनेश्वरी - षोडशी उपासक, महाविद्या-उपासक देवी कामाख्या को अपनी उपास्य देवी का ही रूप मानते हैं, इनका "कामाख्या काली" नाम भी प्रसिद्ध है..
      आपके सुझाव को नोट कर लिया है माँ कामाख्या के विषय में प्राप्त ग्रंथों के आधार पर सामग्री जुटाकर अवश्य ही आलेख प्रस्तुत किया जाएगा, कृपया धैर्य पूर्वक प्रतीक्षा करें। जय माँ कामाख्या जय माँ भुवनेश्वरी

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  12. प्रणाम,
    भुवनेश्वरी हृदय स्तोत्र अर्थ सहीत डालने की कृपा करे। एवं विधि व साधना बतानेकी कृपा करे।
    इंटरनेट पर केवल स्त्रोत है पर अर्थ जोकि ध्यान में काम आए वो नही है।

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    1. नमस्कार महोदय, भुवनेश्वरी हृदय स्तोत्र की कोई अलग से साधना विधि नहीं है.. बस अर्थ समझते हुए पाठ करना ही पर्याप्त है...हां जब भुवनेश्वरी महाविद्या का शतार्चन किया जाता है तो उस समय इस स्तोत्र का पाठ किया जाता है...मैने इसका हिन्दी अर्थ कहीं भी पुस्तक में नहीं देखा क्योंकि इस तरह के स्तोत्र संस्कृत में ही मिलते हैं.. इसलिए इसके अनुवाद में मुझे कुछ समय लग ही जाएगा क्योंकि अभी कुछ नये आलेखों पर भी काम चल रहा है...जब भुवनेश्वरी शतार्चन विधि प्रकाशित की जाएगी उसमें इस स्तोत्र का भी प्रयोग होगा... कृपया धैर्य पूर्वक कुछ समय प्रतीक्षा करें.. जय माँ भुवनेश्वरी

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    2. नमस्कार अब यह स्तोत्र blog में प्रकाशित हो चुका है कृपया अवलोकन करें - भुवनेश्वरी महाविद्या का हृदय स्तोत्र जय माँ भुवनेश्वरी

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  13. आचार्य जी प्रणाम
    आप का बहुत बहुत धन्यवाद ऐवम बहुत बहुत अभार है।

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  14. ह्रीं ॐ नमः शिवाय ह्रीं


    भी मां भुवनेश्वरी का ही मंत्र है क्या





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    1. जी नहीं यह अष्टाक्षर उमापति मन्त्र कहलाता है
      जय भोले

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  15. प्रभु मेरी एक दुविधा को दूर करने में सहायता करें।
    मैं अगर गुप्त नवरात्रि में गुरु द्वारा दिए गए मंत्र को सिद्ध करता हूं
    तो क्या इन दिनों मुझे एकदम एकांत में रहना होगा?
    या फिर मैं घर वालों और फोन से बात इत्यादि कर सकता हूं?
    कृपया मंत्र सिद्ध करने के समय में रहने तथा खाने पीने की आदि की सभी बातों को बताने का कष्ट करें।

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    1. महोदय, पुरश्चरण सम्बन्धी बातें अपने गुरुजी से ही समझना ज्यादा उचित रहता है...खैर जो भी हो, मन्त्र को सिद्ध करना एक दिन का काम तो है नहीं, हम प्रयास मात्र कर सकते हैं...। इसके लिए शुभ पर्वों पर पुरश्चरण करना होता है, साधक की श्रद्धा और पुरश्चर्या के समय किये गये नियम पालन के अनुसार इसका प्रभाव पड़ता है... अगर प्रत्यक्ष कुछ फल न भी दिखे तो भी इससे साधक का पाप नाश व ज्ञान उदय अवश्य होता है... एक व्यक्ति को कई वर्षों में 24 बार पुरश्चरण करने से देवी गायत्री का दर्शन हुआ था उन्हें ज्ञान हुआ कि पूर्व जन्म कृत पाप की अधिकता के कारण ही सिद्धि में देर हुई... पुरश्चरण काल के कुछ नियम -: नित्य कितनी देर तक बैठने की तथा मन्त्र जप की सामर्थ्य है पहले ही इसका ठीक अनुमान लगा लेना चाहिए। एकान्त हो तो बहुत अच्छा है यदि न हो सके तो भी कोई बात नहीं लेकिन मन्त्र जप में कोई बाधा न डाले ये ध्यान रहेे। यदि टीवी आदि पर गाना आदि बजने से भी आपके जप में बाधा पहुंचती है तो इनको बन्द रखना अच्छा होगा। आंवला चूर्ण या रस डालकर नहाए, ब्रह्मचर्य से रहे, जप काल में कितनी माला हो गयी यह ध्यान रखे। मल मूत्र न रोके, इसके लिए बीच बीच में विराम लिया जा सकता है..विराम में परिवार से फोन पर बातचीत की जा सकती है। पुरश्चर्या काल में जहाँ अंधकार न हो(हल्की रोशनी का बल्ब जला रहे) ऐसे कमरे में भूमि पर बिस्तर बिछा कर सोना चाहिए। भोजन में हविष्यान्न खाये अर्थात घी और चीनी/मिश्री/गुड़ युक्त खाना लें और जो खाये पहले भगवान को भोग लगाकर फिर खाये। भगवान को समुद्री नमक, मांस, प्याज लहसुन का खाना नहीं चढ़ता इसलिए वह न खाए, सेंधे नमक का खाना खा सकते हैं.. सम्भव हो तो पुरश्चरण काल में कोदों,चना,गाजर, उड़द, अरहर, बासी खाना भी न खाए। पहले भोजन पर मन्त्र से हल्का जल छिड़के और मन्त्र से 7 बार अभिमंत्रित करके खाये, जल को भी 32 बार अभिमंत्रित करके पीये।
      जय माँ भुवनेश्वरी

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  16. कृपया यन्त्र की आवरण पूजा भी विस्तार से बताए तथा कुछ जगह यन्त्र में बाहरी कमल अष्टदल कहीं षोडश तो कहीं चतुर्विंशती दल है कृपया इस प्रश्न का समाधान करें

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    1. महोदय, प्रामाणिक श्रीभुवनेश्वरी यन्त्र में बीच में एक बिन्दु रहता है उसके बाद होगा षट्कोण जिसके बाहर एक अष्टदल कमल होता है उसके बाद षोडश दल और सबसे बाहर चतुरस्र रहता है. विस्तृत आवरण पूजा तो गुरुगम्य विषय है उसमें मुद्रायें प्रदर्शित की जाती हैं, विभिन्न पात्र स्थापित किये जाते हैं, भूतशुद्धि तत्वशुद्धि अन्तर्याग आदि आदि प्रक्रिया लम्बी है समझना व समझाना भी कठिन है, इतने विधान को लिखें तो एक ग्रंथ ही बन जाएगा. लेकिन इस आवरण पूजा को एक संक्षिप्त रूप में भी प्रस्तुत किया जा सकता है माँ की कृपा रही तो उस पर आलेख लिखूंगा जिसके लिए कृपया प्रतीक्षा करें. जय माँ भुवनेश्वरी

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  17. गुरु जी प्रणाम क्या बिना गुरु के भुवनेश्वरी माता की साधना की जा सकती है और यदि गुरु नहीं है तो मैं गुरु बनाना चाहता हूं मुझे कोई गुरु नहीं मिल रहा है कृपया मार्गदर्शन करें

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    1. महोदय,
      ऐसे ही मनमाने ढंग से ही कोई भी मन्त्र नहीं जपना चाहिए, इसीलिए मन्त्र साधना में गुरु से मन्त्र मिलना आवश्यक है. बिना दीक्षा केवल स्तोत्र पाठ, नाम जप
      कर सकते हैं. आज के समय में भुवनेश्वरी महाविद्या अथवा अन्य मन्त्र की भी 3 मुख्य शंकराचार्यों से दीक्षा लेना शास्त्र सम्मत है-
      1 - गोवर्धन मठ पुरी पीठ के शंकराचार्य श्री निश्चलानन्द सरस्वती जी
      पूरे देश में इनका प्रवास होता है. मठ के फेसबुक पेज पर इसकी जानकारी देदेते हैं.
      2- जामनगर, गुजरात के द्वारका शांकर पीठ में और ज्योतिर्मठ(निकट बद्रीनाथ), उत्तराखंड दोनों में श्री स्वरूपानन्द सरस्वती जी पीठाधीश्वर हैं.
      3- दक्षिण भारत में श्रृंगेरी पीठ के शंकराचार्य जो कि कर्नाटक में स्थित शारदा मठ में हैं.Sri BharatiTirtha ji
      • इनके अलावा भुवनेश्वरी भगवती या त्रिपुरसुन्दरी दीक्षा के लिए उत्तराखंड मेंज्योतिर्मणि पीठ नामक स्थान पर एक बाबाजी हैं, वहाँ के कुछ नियम भी हैं, इनकी साइट पर जाकर पता करना चाहिए.

      • फिर भी यदि दीक्षा सम्बन्धी कोई समस्या हो तो हमारे ईमेल पर हमसे सम्पर्क करें. जय माँ भुवनेश्वरी.

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