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कमला महाविद्या की स्तोत्रात्मक उपासना

पितृ विसर्जन

हालय के अंतिम दिन अर्थात् आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावास्या तिथि को पितृ विसर्जन करके पितरों को वर्ष भर के लिये विदा किया जाता है। पितृ दोष के कारण जीवन में अनेकों बाधाएं आती हैं। पितृ श्राद्ध करने तथा तर्पण करने से पितृ दोष की निवृत्ति होती है। इस महालय में अर्थात पूरे पितृपक्ष के 15 दिनों में जो तर्पण किया जाता है उसका यह अंतिम दिन है। जो इन 15 दिनों में तर्पण कर सके तो अति उत्तम है। लेकिन जो नौकरीपेशा अथवा व्यस्त या असमर्थ लोग पूरे पितृपक्ष भर में तर्पण नहीं कर पाते वे केवल अष्टमी नवमी अथवा अपने अपने पितर की तिथि पर अथवा पितृ विसर्जन के दिन स्थानीय पंडित जी को बुलाकर तर्पण व श्राद्ध उन से करवा लेते हैं। वैसे तो इस दिन श्राद्ध करना चाहिये। वह संभव न हो तो तर्पण करे। यथा संभव दान करें। आपके मृत पूर्वजों को जो जो खाद्य सामग्री अधिक पसंद थी वह आपको याद हो तो उसका दान दे दें या गौ को भी दे सकते हैं। श्राद्ध - तर्पण के दिन व पितृ विसर्जनी अमावस के दिन ब्रह्मचर्य पूर्वक रहें व लहसुन प्याज का सेवन न करें।

इस दिन क्या करें?
सर्वप्रथम तो स्नान आदि कर लें। पितृ विसर्जन के दिन घर में झाडू पोछा अवश्य लगा लेना चाहिये। विशेषकर घर की देहली/ देहलीज / दरवाजों की चौखटों पर अच्छी तरह से पोछा लगायें और वहाँ थोड़ा यव(जौं), तिल, चावल (संभव है तो सफेद फूल भी) डाल दें।
इसके बाद पूजा स्थल में शुद्ध जल लेकर उपस्थित हों दीप - धूप जला कर देव प्रतिमाओं को नित्य का देव स्नान करायें। अक्षत पुष्प से उनकी पूजा करें।  भगवान का चरणामृत अर्थात देव स्नान के बचे थोड़े जल को एक शुद्ध जल भरे पात्र में लें और इसमें तिल अक्षत जौं जल डालकर पुस्तक आदि की सहायता लेकर इस जल से देव, ऋषियों व पितरों का तर्पण करें।

तर्पण करने के बाद दक्षिणाभिमुख होकर अपसव्य होकर  (अंगोछा / जनेऊ दायें कंधे पर हो) अपने पितरों का ध्यान करते हुए हाथ जोड़कर पितृ गायत्री मंत्र का तीन बार उच्चारण करें-
ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च।
नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः॥
(श्राद्ध के आरम्भ मध्य व अवसान में इस मंत्र का तीन बार जप करना चाहिये। इस मंत्र में प्रणव व स्वाहा होने से यह मंत्र यज्ञोपवीत धारण करने वालों द्वारा ही जपा जाये।)

तर्पण में प्रयुक्त इन कुशाओं का अब विसर्जन करना होगा। ये कुशायें सामने रखकर पितृ विसर्जन के निम्न मंत्रों को पढ़ते हुए इन पर तिल अक्षत छोड़ें-

यान्तु पितृगणाः सर्वे यतः स्थानादुपागताः।

सर्व ते हृष्ट-मनसः सर्वान् कामान्‌ ददन्तु मे॥

हाथ जोड़कर प्रार्थना करें-

ये लोका दान-शीलानां ये लोकाः पुण्य-कर्मणाम्‌।

सम्पूर्णान्‌ सर्व-भोगैस्तु तान्‌ व्रजध्वं सु-पुष्कलान्‌॥

इहास्माकं शिवं शान्तिरायुरारोग्य-सम्पदः।

वृद्धि संतान-वर्गस्य जायतामुत्तरोत्तरा॥


श्री विष्णवे नमः, श्री विष्णवे नमः, श्री विष्णवे नमः

श्री साम्ब सदाशिवाय नमः, श्री साम्ब सदाशिवाय नमः, श्री साम्ब सदाशिवाय नमः

सम्भव हो तो पंचबलि दें। पञ्च बलि के व गौ ग्रास देने के मंत्र हमने पहले दे दिये हैं।


अथवा गोग्रास ही दे दें -
गोग्रास विधि
सव्य(अंगोछा / जनेऊ बायें कंधे पर) हो जायें। एक पात्र/पत्ते में पका अन्न - "गौ ग्रास" निकालें। हाथ में जल लेकर इस पात्र के चारों ओर जल से घेरा बनायें।
हाथ में जल चावल तिल जौं लेकर गोग्रास दान हेतु यह संकल्प करें-

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: ॐ तत्सत् श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य श्रीब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्रीश्वेत वाराह-कल्पे वैवस्वत-मन्वन्तरे, अष्टाविंशति-तमे कलियुगे, कलि-प्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे भूप्रदेशे------प्रदेशे ----- नगरे,(.....ग्रामे)..... नाम्नि सम्वत्सरे, सूर्य दक्षिणायनेवर्षा ऋतौ, आश्विन मासे , कृष्ण पक्षे , अमावास्यायां तिथौ, ---(वार का नाम)-वासरे, अद्य (गोत्र का नाम) गोत्रीय (आपका नाम) शर्मा/दास/गुप्त अहं मम पितुः-पितामह एवं प्रपितामहादीनां सहित नाना गोत्राणां समस्त पितृणां अखिल क्षुत्पिपासा निवृत्तिपूर्वकं अक्षय तृप्त्यर्थं इदमन्नं गोभ्यो दास्ये , स्वधा नमः।

अब अंगूठे से अन्न को स्पर्श करके यह मंत्र पढ़े -
ॐ इदमन्नम्। इदं हविः।
ॐ सौरभेय्यः सर्वहिताः पवित्राः पुण्यराशयः।
प्रतिगृह्णंतु मे ग्रासं गावस्त्रैलोक्यमातरः॥
इदं गोभ्यो न मम।
अब यह "गौ-ग्रास" गाय को दे आयें।
नित्य की संध्या करें। संभव हो तो ब्राह्मण को भोजन करा दें। अथवा कच्चा अनाज ही दान कर दें। ब्राह्मण को दक्षिणा दान करें।
जिन कुशाओं व कुश पवित्रियों से पितृपक्ष में तर्पण किया है उनको विसर्जित कर दें, बगीचे की मिट्टी में दबा दें।
अतिरिक्त पवित्री शेष न हों तो आज ही नवरात्रि के लिये पुनः नयी पवित्रियाँ बना लें। घटस्थापन में कलश में भी एक पवित्री डलती है।

श्री विश्वेदेव एवं सभी पितृगणों को प्रणाम है।



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