नोट - यहाँ प्रकाशित साधनाओं, स्तोत्रात्मक उपासनाओं को नियमित रूप से करने से यदि किसी सज्जन को कोई विशेष लाभ हुआ हो तो कृपया हमें सूचित करने का कष्ट करें।

⭐विशेष⭐


९ अप्रैल - "कालयुक्त" नामक हिंदू नवसंवत्सर २०८१ मंगलमय हो!

९ अप्रैल - चैत्र या वासन्तीय नवरात्रों का प्रारम्भ,
कलश स्थापना विधि, कलशस्थापन का मुहूर्त इस लिंक पर जाकर शहर का नाम डालकर देख लें।
वासंतीय नवरात्र-प्रथम दिन शैलपुत्री जी का पूजन
१० अप्रैल - नवरात्रि के दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी जी का आराधन
११ अप्रैल - श्री मत्स्य-अवतार जयन्ती
११ अप्रैल -नवरात्रि के तृतीय दिवस चन्द्रघंटा माँ की आराधना

१२ अप्रैल -नवरात्रि का चतुर्थ दिन - कूष्माण्डा जी का पूजन
१३ अप्रैल -नवरात्र के पंचम दिन स्कन्दमाता जी का पूजन
१४ अप्रैल -नवरात्र के छठे दिन कात्यायनी माँ की पूजा
१५ अप्रैल -नवरात्र के सप्तम दिन कालरात्रि पूजन महासप्तमी
१६ अप्रैल -नवरात्रि में अष्टमी को महागौरी जी की आराधना, अन्नपूर्णा माँ की पूजा
१७ अप्रैल -नवरात्र के नवम दिन सिद्धिदात्री जी की आराधना
भगवान श्री राम जयंती, श्रीराम नवमी, नवमी हवन विधि।
तारा महाविद्या जयंती
⭐वासन्ती नवरात्रपारणा: पारण अर्थात् प्रसाद व अन्न ग्रहण करके व्रत खोलना..जो नवरात्रि में केवल आठ दिन ही व्रत लेते हैं वे तो अष्टमी रात्रि को ही पारण कर ले और जो पूरे नौ दिन उपवास रख सकते हैं वे नवमी (१७ अप्रैल) की रात्रि को व्रत खोलें...
कलश आदि का विसर्जन दशमी तिथि की प्रातः (१८ अप्रैल को) करना चाहिए


आज - कालयुक्त नामक विक्रमी संवत्सर(२०८१), सूर्य उत्तरायण, वसन्त ऋतु, चैत्र मास, शुक्ल पक्ष।
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हिन्दू धर्म

र्म वह है जो सबको एकता की डोर में बाँध देना चाहता है। धर्म भली प्रवृत्तियों को उभारता है और बुरी प्रवृत्तियों का दमन करता है। धर्म विश्व का संरक्षक है।
धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः। धीर्विद्यासत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्‌॥

धर्म की परिभाषा देते हुए भीष्म पितामह महाभारत में कहते हैं—

धारणात् धर्म इत्याहुः धर्मो धारयति प्रजाः।
यः स्यात् धारणसंयुक्तः स धर्म इति निश्चयः।।

अर्थात्—‘जो धारण करता है, एकत्र करता है, उसे ‘‘धर्म’’ कहते हैं। धर्म प्रजा को धारण करता है। जिसमें प्रजा को धारण कर एकसूत्र में बाँध देने की सामर्थ्य है, वह निश्चय ही धर्म है।

धर्म मनुष्य को उसकी स्वाभाविक कमजोरियों पर विजय पा लेने के लिये प्रेरित करता है। धर्म वह सेतु(पुल) है जिससे जीवात्मा द्वारा दुःख-पाप की लहरों के थपेड़ों व मगरमच्छों से क्षुब्ध इस संसार-सागर को पार किया जा सकता है..

हिंदू धर्म वैदिक धर्म है। हिन्दू धर्म 
ही "सनातन धर्म" है।हमारे बहुत से पुरातन ग्रंथों में विशुद्ध धर्म के लिये 'सनातन धर्म' नाम मिलता है। 'सनातन' का अर्थ है - शाश्वत या 'हमेशा बना रहने वाला', अर्थात् जिसका न आदि है न ही अन्त।

हमारा हिंदू धर्म , सनातन धर्म के रूप में सभी धर्मों का मूलाधार है क्योंकि यह सबसे पुरातन धर्म है और सभी धर्म-सिद्धान्तों के सार्वभौम आध्यात्मिक सत्य के विभिन्न पहलुओं का इसमें पहले से ही समावेश कर लिया गया था।

हमारे हिंदू धर्म के पावन प्रतीक  ॐ (ओम्) तथा 卐 (स्वस्तिक) हैं।




हिन्दू कौन है? 

  • "हीनं दूषयति हिंदू" जो सदाचारहीनता (दुर्गुणों, अपवित्रता व पापों) को दूषित समझता है वही हिंदू है।
  • जो वेद आदि हिन्दू धर्मशास्त्रों पर दृढ़ विश्वास रखकर उनको अपना धर्मग्रन्थ मानता है वही हिन्दू है; 
  • और - 'गोषु भक्तिर्भवेद्यस्य प्रणवे च दृढ़ा मतिः। पुनर्जन्मनि विश्वासः स वै हिन्दुरिति स्मृतः॥अर्थात- गौमाता में जिसकी भक्ति हो, प्रणव ॐ) जिसका पूज्य मन्त्र हो, पुनर्जन्म में जिसका विश्वास हो - वही हिंदू है।
  • वर्णाश्रमधर्मानुकूल आचार-विचार के द्वारा जीवन व्यतीत करने वाला ही हिंदू है।
  • 'बृहस्पति-आगम' में तो हिंदुस्थान की सीमा निर्धारित करते हुए इसे भौगोलिक प्रत्याहारज शब्द स्वीकार किया गया है - हिमालयं समारभ्य यावदिन्दुसरोवरम्‌। तं देवनिर्मितं देशं 'हिन्दुस्थानं' प्रचक्षते॥ अर्थात्‌ हिमालय पर्वत से आरम्भ करके इन्दु-सरोवर=कन्याकुमारी अन्तरीप के अन्तिम प्रदेशकी समाप्पिपर्यन्त देवनिर्मित विस्तृत स्थलका नाम 'हि+न्दु=स्थान' है।
  • माधवदिग्विजय नामक ग्रंथ के अनुसार - ओंकारमूलमन्त्राढ्यः पुनर्जन्मदृढाशयः। गोभक्तो भारतगुरु्हिन्दुर्हिसनदूषक:॥ अर्थात्‌ (१) ओंकार को मूलमन्त्र मानने वाला, (२) पुनर्जन्म में पक्की आस्था वाला, (३) गोभक्त, (४) जिसका प्रवर्तक भारतीय हो और (५) हिंसा को निन्द्य मानने वाला 'हिंदू' कहा जाता है।
  • लोकमान्य तिलक ने अपनी पुस्तक में लिखा था- प्रामाण्य बुद्धिर्वेदेषु नियमानामनेकता। उपास्यानामनियमो लक्षणम्‌॥ अर्थात्‌ 'वेदों में प्रामाण्यबुद्धि रखने वाला, नानाविध नियमों का पालक, अनेक प्रकार से ईश्वर की उपासना करनेवाला हिंदू कहलाता है।'
शास्त्रों में वर्णित हमारे हिन्दू धर्म की मान्यताओं का आचरण करना हमारे पापों का शमन करने वाला है, इनमें वर्णित पूजायें, व्रत, दान, साधना आदि करने से हमें भोग-ऐश्वर्य, धन-धान्य, उत्तम स्वास्थ्य तो प्राप्त होता ही है साथ ही इससे हमें परम पवित्रता प्राप्त होती है। हम मोक्ष के मार्ग पर चल पड़ते हैं। सच्चा सनातन धर्मी परमशांति को पाता है।
हर हिंदू में गंगाजल व तुलसी के प्रति अपार श्रद्धा है।
हमारे सनातन धर्म ग्रंथों के अनुसार गंगाजल अति पवित्र बताया गया है। गंगाजी तो साक्षात् पापशमनी देवी ही हैं। गंगाजी केवल नदी ही नहीं बल्कि अन्य पवित्र वस्तुओं में भी व्याप्त हैं। जैसे -
देवीभागवत (११।६। ३६-३७) के अनुसार रुद्राक्ष में देवी गंगा का निवास बताया गया है-
रुद्राक्षं मस्तके धृत्वा शिरः स्नानं करोति यः॥ गंगास्नानफलं तस्य जायते नात्र संशयः।
हमारे हिंदू धर्म में तो तुलसी केवल पौधा मात्र नहीं बल्कि यह तो गंगा जी के समान ही पवित्र देवी है।
नारदपुराण(९।१२५) में लिखा है कि तुलसीदल चाहे सरसों के दाने जितना ही क्यों न हो उससे युक्त जल में गंगाजी की स्थिति हो जाती है-
तुलसीदलसम्मिश्रमपि सर्षपमात्रकम्‌।
गंगाजलं पुनात्येव कुलानामेकविंशतिम्‌॥
तुलसीदल में पुष्कर आदि तीर्थ, गंगादि नदियाँ, वासुदेव आदि देवता वास करते हैं-
पुष्कराद्यानि तीर्थानि गंगाद्याः सरितस्तथा।
वासुदेवादयो देवा वसन्ति तुलसीदले॥(गर्गसंहिता वृन्दावन० १६। १३)

हमारे सनातन धर्म में पतिव्रता नारी का कितना सम्मान है, इसका पता शिवपुराण के इस श्लोक से चलता है-
यथा गंगावगाहेन शरीरं पावनं भवेत्‌।
तथा पतिव्रतां दृष्ट्या सकलं पावनं भवेत्‌॥
अर्थात् पतिव्रता स्त्री के तो दर्शन मात्र से व्यक्ति गंगा स्नान सदृश पवित्र हो जाता है। धर्म पालन करने का फल ऐसा है।
इतना ही नहीं श्राद्ध आदि करने अर्थात् अपने पुरखों, पितरों की सेवा करने में गंगास्नान सदृश पुण्य विद्यमान है, ऐसा पद्मपुराण (भूमिखण्ड अध्याय ६२ के श्लोक ५८ से ७४ तक) में कहा गया है-
पितृणां सेवनात्‌ गंगास्नान - जन्यफलं भवेत्‌।

धर्म के तीस लक्षण

श्रीमद्भागवत पुराण के सप्तम स्कन्ध में श्रीनारद जी ने धर्म के सर्वसाधारणोपयोगी तीस लक्षणों से युक्त सनातन-धर्म की व्याख्या की है -

सत्यं दया तपः शौचं तितिक्षेक्षा शमो दमः।

अहिंसा ब्रह्मचर्यं च त्यागः स्वाध्याय आर्जवम्‌॥

सन्तोषः समदृक्‌ सेवा ग्राम्येहोपरमः शनैः।

नृणां विपर्ययेहेच्छा मौनमात्मविमर्शनम्‌॥

अन्नद्यादेः संविभागो भूतेभ्यश्च यथार्हतः।

तेष्वात्मदेवताबुद्धिः सुतरां नृषु पाण्डव॥

श्रवणं कीर्तनं चास्य स्मरणं महतां गतेः।

सेवेज्याऽवनतिर्दास्यं सख्यमात्मसमर्पणम्‌॥

नृणामयं परो धर्मस्सर्वेषां समुदाहृतः।

त्रिंशल्लक्षणवान्‌ राजन्‌ सर्वात्मा येन तुष्यति।


अर्थात् - १)सत्य - प्राणियों का परम कल्याणकारक सत्य वचन बोलना,

२)दया करना, 

३)तप - जयन्ती आदि व्रतोपवास तथा स्वधर्मपालनमें कष्टसहनरूपी तप, 

४)शौच - कायिक, वाचिक एवं मानस शुद्धता, 

५)तितिक्षा - सहिष्णुता, ६)इक्षा - विवेक,

७)शम - मन:संयम, ८)दम - इन्द्रियों का संयम, ९)अहिंसा-व्रतपरायणता, १०)ब्रह्मचर्यव्रत पालन, ११)स्वत्व-परित्यागपूर्वक दानशीलता,

१२) स्वाधिकारानुकूल जपादि, स्वाध्याय, १३) सरलता,

१४)यथाप्राप्त वस्तुओं ही से सन्तोष करना,

१५)समदर्शी हों, १६) भगवज्जनों की सेवा, 

१७)प्रवृत्त ग्राम्यधर्म से क्रमशः विरति,

१८)निष्काम-भाव से कर्म-फल-त्याग,

१९)व्यर्थ की बकवाद का त्याग अर्थात्‌ यथासम्भव कम बोलना, 

२०)अपने शरीरके अतिरिक्त अन्य प्राणियों में भी आत्मवत्‌ विचार रखना। 

२१)अपने अधीनस्थ अन्नादि पदार्थां को प्राणियों के हितार्थ यथायोग्य विभाग कर उनमें आत्मबुद्धि तथा परमात्मा की व्याप्ति की बुद्धि रखना,

२२)भगवान की नवधा भक्ति करने के लिये भगवत्‌कथा सुनना, २३)भगवत्‌-गुणानुवाद-कीर्तन,

२४)हरि की लीलाओं का स्मरण, २५)भगवान की सेवा करना,

२६)भगवन्मूर्तियों का पूजन,

२७)भगवान की मूर्तियों तथा भगवज्जनों में भगवान की भावना से साष्टाङ्ग दण्डवत्‌ करना,

२८)सदैव विनम्र भाव से रहना,

२९)भगवान के प्रति तथा भगवज्जनों के प्रति दास्यभाव रखना, परमात्मा के प्रति सख्यभाव रखना,

३०)अपना तन, मन और धन भगवच्चरणकमल में अर्पण करना।

ये सब तीस धारण करने योग्य सद्गुण मनुष्यों के लिये परम धर्म हैं और इन सबका यथावत्‌ पालन करने पर सर्वान्तर्यामी भगवान्‌ विष्णु प्रसन्न होते हैं ऐसा श्री नारदजी ने कहा है। सभी सनातनी इन सद्गुणों को धारण करें तो इस संसार में इसी जन्म में परम कल्याण पा सकते हैं और अपना मानव जीवन सफल करने के साथ-साथ परलोक में भी उत्तम गति पा सकते हैं।

हिंदुत्व से संबंधित जानकारी प्रस्तुत करने के लिये नये आलेख लिखकर इस पृष्ठ को सम्पादित करके इसमें उन आलेखों का लिन्क जोड़ दिया जाता रहेगा।

हिंदू धर्म व इससे जुड़ी मान्यताओं का असली महत्व समझने की आज नितान्त आवश्यकता है। मनुस्मति के अध्याय ८ के श्लोक १५ के अनुुुुसार - "धर्मो रक्षति रक्षितः" अर्थात् जो धर्म की रक्षा करते हैं, जो धर्म के मार्ग पर चलते हैं, धर्म भी कवच बनकर सदा उनकी रक्षा करता है... आइये हिंदू धर्म को जानें समझें और हिन्दुत्व की मान्यताओं , परम्पराओं को गर्व से अपनायें..

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