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जुलाई, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

नोट - यहाँ प्रकाशित साधनाओं, स्तोत्रात्मक उपासनाओं को नियमित रूप से करने से यदि किसी सज्जन को कोई विशेष लाभ हुआ हो तो कृपया हमें सूचित करने का कष्ट करें।

⭐विशेष⭐


९ अप्रैल - "कालयुक्त" नामक हिंदू नवसंवत्सर २०८१ मंगलमय हो!

९ अप्रैल - चैत्र या वासन्तीय नवरात्रों का प्रारम्भ,
कलश स्थापना विधि, कलशस्थापन का मुहूर्त इस लिंक पर जाकर शहर का नाम डालकर देख लें।
वासंतीय नवरात्र-प्रथम दिन शैलपुत्री जी का पूजन
१० अप्रैल - नवरात्रि के दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी जी का आराधन
११ अप्रैल - श्री मत्स्य-अवतार जयन्ती
११ अप्रैल -नवरात्रि के तृतीय दिवस चन्द्रघंटा माँ की आराधना

१२ अप्रैल -नवरात्रि का चतुर्थ दिन - कूष्माण्डा जी का पूजन
१३ अप्रैल -नवरात्र के पंचम दिन स्कन्दमाता जी का पूजन
१४ अप्रैल -नवरात्र के छठे दिन कात्यायनी माँ की पूजा
१५ अप्रैल -नवरात्र के सप्तम दिन कालरात्रि पूजन महासप्तमी
१६ अप्रैल -नवरात्रि में अष्टमी को महागौरी जी की आराधना, अन्नपूर्णा माँ की पूजा
१७ अप्रैल -नवरात्र के नवम दिन सिद्धिदात्री जी की आराधना
भगवान श्री राम जयंती, श्रीराम नवमी, नवमी हवन विधि।
तारा महाविद्या जयंती
⭐वासन्ती नवरात्रपारणा: पारण अर्थात् प्रसाद व अन्न ग्रहण करके व्रत खोलना..जो नवरात्रि में केवल आठ दिन ही व्रत लेते हैं वे तो अष्टमी रात्रि को ही पारण कर ले और जो पूरे नौ दिन उपवास रख सकते हैं वे नवमी (१७ अप्रैल) की रात्रि को व्रत खोलें...
कलश आदि का विसर्जन दशमी तिथि की प्रातः (१८ अप्रैल को) करना चाहिए


आज - कालयुक्त नामक विक्रमी संवत्सर(२०८१), सूर्य उत्तरायण, वसन्त ऋतु, चैत्र मास, शुक्ल पक्ष।
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हरिशयनी एकादशी - चातुर्मास का शुभारंभ

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  स मापन  हुआ गुप्त नवरात्रि का और इसके एक दिन पश्चात् यानि आज है हरिशयनी एकादशी । साथ ही चातुर्मास का भी प्रारम्भ होने का यह समय होता है। आइये जानते हैं ' शयनी ' एकादशी का व्रत कैसे किया जाता है।     हमारे हिन्दू धर्म ग्रन्थों में एकादशी तिथि का बहुत महत्व बताया गया है। पुराणों में वर्णन आता है कि एक बार युधिष्ठिर ने भगवान्  श्रीकृष्ण से पूछा- " भगवन् ! आषाढ़ के शुक्ल पक्ष में कौन-सी एकादशी होती है? उसका नाम और विधि क्या है ? यह बतलाने की कृपा करें। "

गुप्त नवरात्रि का महत्व [श्री दुर्गाद्वात्रिंशन्नाममाला]

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आ षाढ़ व माघ मास के शुक्ल पक्ष से गुप्त नवरात्रियाँ प्रारम्भ हो जाती हैं। यूं तो प्रत्येक मास के किसी भी पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर नवमी तिथि तक के समय को नवरात्र   कहा जा सकता है परंतु इनमें से चार ही नवरात्रियां श्रेष्ठ हैं। इस प्रकार हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथों में चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ इन चार हिन्दू महीनों में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तिथि तक का समय बड़े महत्व का बताया गया है । इनमें से चैत्र मास की नवरात्रि को वासंतिक नवरात्रि , आश्विन मास की नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि और आषाढ़ व माघ मास की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि यों की संज्ञा दी गयी है। वासंतिक व शारदीय नवरात्रि तो विश्वप्रसिद्ध हैं पर गुप्त नवरात्रि नाम के ही अनुसार गुप्त हैं अर्थात् बहुत कम लोग इनके विषय में जानकारी रखते हैं। इसके साथ ही दूसरी बात यह ध्यातव्य है कि  देवी के पूजक आराधक चैत्र व आश्विन नवरात्र में तो प्रकट रूप से उपासना करते हैं। अर्थात बड़े ही  धूमधाम से उत्सव मनाते हुए नौ दिन उपवास और चण्डी पाठ विस्तार से करके कन्या पूजन सहित विधि विधान से सभी अनुष्ठान करते हैं। लेकिन गुप्त नवरा