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र्तिक मास में आकाश-दीप दान करना चाहिये। दीप-दान का अर्थ है दीप जलाना। स्कन्द महापुराण में वर्णित कार्तिक मास माहात्म्य के अनुसार पूर्वकाल में राजा धर्मनन्दन ने 'आकाश - दीप - दान' के प्रभाव से श्रेष्ठ विमान पर आरूढ़ हो विष्णुलोक को प्रस्थान किया। आकाश - दीप - दान के समान पितरों का उद्धार करने का कोई और सरल उपाय नहीं है -
आकाशदीप - दानेन पुरा वै धर्मनन्दनः।
विमान - वरमारुह्य विष्णुलोकं ययौ नृपः॥
कार्तिक महीने में प्रतिदिन जब सायंकाल हो जाये तब श्री विष्णु जी के मंदिर में या अपने घर के आंगन में निम्न मंत्रों से दीपदान करना चाहिये -
दामोदराय विश्वाय विश्वरूपधराय च।
नमस्कृत्वा प्रदास्यामि व्योमदीपं हरिप्रियम्॥
मैं विश्व तथा विश्वरूपधारी दामोदर श्री विष्णु भगवान् को नमस्कार करके यह आकाशदीप देता हूँ जो भगवान् को परमप्रिय है।
नमः पितृभ्यः प्रेतेभ्यो नमो धर्माय विष्णवे।
नमो यमाय रुद्राय कांतारपतये नमः॥
जो मनुष्य इस मन्त्र से पितरों के लिये आकाश में दीपदान करते हैं, उनके पितर नरक में हों तो भी उत्तम गति को प्राप्त होते हैं।
दीपक में शुद्ध तिल का तेल लेना चाहिये। क्योंकि कुछ बोतलों में लिखा रहता है कि उसमें कुछ प्रतिशत सोयाबीन तेल की मिलावट है। शुद्ध तिल का तेल महंगा आता है। शुद्ध न मिले तो सरसों तेल का प्रयोग करें। विधान तो यह है कि घर के आगे एक लकड़ी गाड़कर उस पर एक अष्ट दल कमल जैसी आकृति बनाकर उसकी आठों पंखुड़ियों पर निम्न मन्त्रों से क्रमशः एक - एक दीप प्रज्ज्वलित करें-
पश्चिम - १.धर्माय नमः,
वायव्य - २.हराय नमः,
उत्तर - ३.भूम्यै नमः,
ईशान - ४.दामोदराय नमः,
पूर्व - ५.धर्मराजाय नमः,
आग्नेय(दक्षिण पूर्व)- ६.प्रजापतये नमः,
दक्षिण - ७.पितृभ्यो नमः,
नैर्ऋत्य - ८.प्रेतेभ्यो नमः।
यदि अष्टदल कमल न बना सके तो केवल आठ दीप ही जला लें। आठों दीपकों की क्या दिशा रहेगी हमने लिख दिया है। जो इसमें भी असमर्थ हो वह एक ही बड़े दीपक में आठ बत्ती अष्ट दिशाओं में करके उपरोक्त मंत्र पढ़ें। जो कार्तिक मास भर यह न कर पाया हो वह कम से कम देव दीपावली(कार्तिक पूर्णिमा) को तो यह दीपदान कर ही ले।
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