नोट - यहाँ प्रकाशित साधनाओं, स्तोत्रात्मक उपासनाओं को नियमित रूप से करने से यदि किसी सज्जन को कोई विशेष लाभ हुआ हो तो कृपया हमें सूचित करने का कष्ट करें।

⭐विशेष⭐


23 अप्रैल - मंगलवार- श्रीहनुमान जयन्ती
10 मई - श्री परशुराम अवतार जयन्ती
10 मई - अक्षय तृतीया,
⭐10 मई -श्री मातंगी महाविद्या जयन्ती
12 मई - श्री रामानुज जयन्ती , श्री सूरदास जयन्ती, श्री आदि शंकराचार्य जयन्ती
15 मई - श्री बगलामुखी महाविद्या जयन्ती
16 मई - भगवती सीता जी की जयन्ती | श्री जानकी नवमी | श्री सीता नवमी
21 मई-श्री नृसिंह अवतार जयन्ती, श्री नृसिंहचतुर्दशी व्रत,
श्री छिन्नमस्ता महाविद्या जयन्ती, श्री शरभ अवतार जयंती। भगवत्प्रेरणा से यह blog 2013 में इसी दिन वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को बना था।
23 मई - श्री कूर्म अवतार जयन्ती
24 मई -देवर्षि नारद जी की जयन्ती

आज - कालयुक्त नामक विक्रमी संवत्सर(२०८१), सूर्य उत्तरायण, वसन्त ऋतु, चैत्र मास, शुक्ल पक्ष।
यहाँ आप सनातन धर्म से संबंधित किस विषय की जानकारी पढ़ना चाहेंगे? ourhindudharm@gmail.com पर ईमेल भेजकर हमें बतला सकते हैं अथवा यहाँ टिप्पणी करें हम उत्तर देंगे
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भुवनेश्वरी महाविद्या की स्तोत्रात्मक उपासना

गवान अमृतेश्वर शिव की शक्ति भगवती भुवनेश्वरी महाविद्या है।सूर्य, चन्द्र तथा अग्नि रूपी नेत्रों से भगवती हमें निरंतर देख रही है।भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भुवनेश्वरी महाविद्या का प्राकट्य हुआ था। अतः यह तिथि श्री भुवनेश्वरी जयंती तिथि के नाम से सुप्रसिद्ध है। भुवनेश्वरी जयन्ती के दिन भक्तिपूर्वक माँ की आराधना की जानी चाहिए। भुवनेश्वरी भगवती पर जिनकी आस्था है उन्हें अन्य दिनों में भी भगवती भुवनेश्वरी की नियमित रूप से आराधना करनी चाहिए। अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी तिथि को विशेषकर भुवनेश्वरी महाविद्या की  आराधना करे। आज के समय में श्री भुवनेश्वरी मन्त्र साधना हेतु योग्य गुरु मिलना कठिन हो सकता है, इसलिए जब तक दीक्षित होना संभव नहीं हो तो स्तोत्रों का पाठ करना चाहिए, दीक्षित व्यक्ति तो स्तोत्रों का पाठ करते ही हैं। भुवनेश्वरी महाविद्या के स्तोत्र तो बहुत मिलते हैं जैसे खड्गमाला, कवच, हृदय आदि..........कुछ को यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ।
भगवती भुवनेश्वरी के स्तोत्रों के पाठ के लाभ तो फलश्रुति में दिख ही रहे हैं, लेकिन जो बिना अन्य कामना के केवल भगवती भुवनेश्वरी की प्रसन्नता के लिए ही प्रतिदिन आराधना करते हैं उनको कुछ ही महीनों में अनेकानेक लाभ स्वयमेव ही देखने को प्रायः मिलते हैं। इसमें भी प्रातःकाल, मध्याह्न, सायंकाल, अर्धरात्रि इन चार समयों में जब भी समय हो पाठ करे। भुवनेश्वरी महाविद्या के 108 नाम मन्त्र द्वारा शतार्चन पूजन भी सरलता से सम्पन्न किया जा सकता है इसकी विधि प्रस्तुत है -


श्री भुवनेश्वरी शतार्चन पूजा विधि

अपने सामने भुवनेश्वरी महाविद्या का चित्र अथवा यन्त्र रखें, कलर प्रिन्ट निकलवाकर भी रख सकते हैं। इसके अलावा दुर्गा जी की मूर्ति या श्रीयन्त्र पर भी यह पूजन किया जाता है।

संकल्प
श्रीगणपतिर्जयति विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः ओऽम् तत्सदद्य श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य श्रीब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशति-तमे कलियुगे, कलि-प्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे भूप्रदेशे------प्रदेशे ----- नगरे,(......ग्रामे)..... नाम्नि सम्वत्सरे, सूर्य (उत्तरायणे/दक्षिणायने)-----ऋतौ,------मासे --------पक्षे , ----तिथौ, -----वासरे ------गोत्रोत्पन्नो ------(नाम) अहं अद्य श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्री भुवनेश्वरी भगवती प्रीत्यर्थं श्री भुवनेश्वर्याः अष्टोत्तरशत नाम मन्त्रैः यथाशक्ति यजनं कृत्वा स्तोत्रैः स्तुतिं करिष्ये।
ध्यान 
उद्यत्सूर्य-सहस्राभां शशांक-कृत-शेखराम्,
पद्मासनां स्मेरमुखीं सूर्येन्द्वग्नि-त्रिलोचनाम्।
रक्तवस्त्र-धरां पद्म-पाशांकुश-वरान् करैः,
दधतीं भुवनेशानीं ध्यायेहृत्पङ्कजे शिवाम्॥
(उदीयमान सहस्रों सूर्यों की कान्ति वाली, ललाट पर चन्द्र को धारण की हुई, पद्मासना, प्रसन्न मुख वाली, सूर्य-चन्द्र-अग्नि रूपी तीन नेत्रों वाली, लाल-वस्त्रा, चार हाथों में कमल, पाश, अंकुश और वर-मुद्रा धारण करने वाली देवी भुवनेश्वरी को अपने हृदय-कमल पर विराजमान ध्यान करे।)

मानस पूजा - • लं पृथिवी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्रीभुवनेश्वरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (कनिष्ठिका अंगुली से अंगूठे को मिलाकर अधोमुख(नीची) करके भगवान को दिखाए, यह गन्ध मुद्रा है)

हं आकाशतत्त्वात्मकं पुष्पं श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्रीभुवनेश्वरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (अधोमुख तर्जनी व अंगूठा मिलाकर बनी पुष्प मुद्रा दिखाए)

यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्रीभुवनेश्वरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्वमुख(उपर को) तर्जनी व अंगूठे को मिलाकर दिखाए)

रं वह्नि-तत्त्वात्मकं दीपं श्रीअमृतेश्वर शिव सहिता श्री भुवनेश्वरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्व मुख मध्यमा व अंगूठे को दिखाए)

वं अमृत-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्रीभुवनेश्वरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्व मुख अनामिका व अंगूठे को दिखाए)

सौं सर्वतत्त्वात्मकं ताम्बूलादि सर्वोपचाराणि मनसा परिकल्प्य श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्रीभुवनेश्वरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(सभी अंगुलियों को मिलाकर ऊर्ध्वमुखी करते हुए दिखाये)
गुरु वन्दना 
गुरु या शिव जी के विग्रह पर पुष्प व अक्षत अर्पित करे-
श्री दक्षिणामूर्तये विद्महे ध्यानस्थिताय धीमहि तन्नो धीरः प्रचोदयात्। श्री दक्षिणामूर्ति गुरवे नमः, श्रीपादुकां पूजयामि।
नमस्कार करे-
• गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः,
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।
•अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया, चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः।

• अमृतेश्वर शिव पूजा - "श्री अमृतेश्वर शिवाय नमः पादुकां पूजयामि" कहकर शिवजी पर पुष्पों को अर्पित करे।

महागणपति पूजन
गणेश जी को पुष्प या अक्षत अर्पित करे -
• ऐं आत्म तत्व व्यापकाय महा-गणपतये श्री पादुकां पूजयामि नमः।
• ह्रीं विद्या तत्व तत्व व्यापकाय महा-गणपतये श्री पादुकां पूजयामि नमः।
• क्लीं शिव तत्व व्यापकाय महा-गणपतये श्री पादुकां पूजयामि नमः।

विनियोग - अस्य श्री भुवनेश्वरी अष्टोत्तरशत-नामावल्याः शक्तिर्ऋषिः गायत्री छन्दः भुवनेश्वरी श्री भुवनेश्वरी देवता भगवती भुवनेश्वरी प्रीत्यर्थे शतार्चने विनियोगः।
अब देवी भुवनेश्वरी की इस नामावली के प्रत्येक नाम मन्त्र से देवी के विग्रह पर अक्षत या पुष्प अर्पित करता जाय - 
  1. श्री महामायायै नमः।
  2. श्री महाविद्यायै नमः।
  3. श्री महायोगायै नमः।
  4. श्री महोत्कटायै नमः।
  5. श्री माहेश्वर्यै नमः।
  6. श्री कुमार्यै नमः।
  7. श्री ब्रह्माण्यै नमः।
  8. श्री ब्रह्म-रूपिण्यै नमः।
  9. श्री वागीश्वर्यै नमः।
  10. श्री योग-रूपायै नमः।
  11. श्री योगिन्यै नमः।
  12. श्री कोटि-सेवितायै नमः।
  13. श्री जयायै नमः।
  14. श्री विजयायै नमः।
  15. श्री कौमार्यै नमः।
  16. श्री सर्व-मङ्गलायै नमः।
  17. श्री पिङ्गलायै नमः।
  18. श्री विलास्यै नमः।
  19. श्री ज्वालिन्यै नमः।
  20. श्री ज्वाल-रूपिण्यै नमः।
  21. श्री ईश्वर्यै नमः।
  22. श्री क्रूरसंहार्यै नमः।
  23. श्री कुलमार्ग-प्रदायिन्यै नमः।
  24. श्री वैष्णव्यै नमः।
  25. श्री सुभगाकार्यै नमः।
  26. श्री सुकुल्यायै नमः।
  27. श्री कुल-पूजितायै नमः।
  28. श्री वामाङ्गायै नमः।
  29. श्री वामचारायै नमः।
  30. श्री वाम-देव-प्रियायै नमः।
  31. श्री डाकिन्यै नमः।
  32. श्री योगिनी-रूपायै नमः।
  33. श्री भूतेश्यै नमः।
  34. श्री भूत-नायिकायै नमः।
  35. श्री पद्मावत्यै नमः।
  36. श्री पद्म-नेत्रायै नमः।
  37. श्री प्रबुद्धायै नमः।
  38. श्री सरस्वत्यै नमः।
  39. श्री भूचर्यै नमः।
  40. श्री खेचर्यै नमः।
  41. श्री मायायै नमः।
  42. श्री मातङ्ग्यै नमः।
  43. श्री भुवनेश्वर्यै नमः।
  44. श्री कान्तायै नमः।
  45. श्री पतिव्रतायै नमः।
  46. श्री साक्ष्यै नमः।
  47. श्री सुचक्षवे नमः।
  48. श्री कुण्ड-वासिन्यै नमः।
  49. श्री उमायै नमः।
  50. श्री कुमार्यै नमः।
  51. श्री लोकेश्यै नमः।
  52. श्री सुकेश्यै नमः।
  53. श्री पद्म-रागिण्यै नमः।
  54. श्री इन्द्राण्यै नमः। 
  55. श्री ब्रह्म-चण्डाल्यै नमः।
  56. श्री चण्डिकायै नमः।
  57. श्री वायु-वल्लभायै नमः।
  58. श्री सर्व-धातुमयी-मूर्त्यै नमः।
  59. श्री जलरूपायै नमः।
  60. श्री जलोदर्यै नमः।
  61. श्री आकाश्यै नमः।
  62. श्री रणगायै नमः।
  63. श्री नृ-कपाल-विभूषणायै नमः।
  64. श्री नर्मदायै नमः।
  65. श्री मोक्षदायै नमः।
  66. श्री काम-धर्मार्थ-दायिन्यै नमः।
  67. श्री गायत्र्यै नमः।
  68. श्री सावित्र्यै नमः।
  69. श्री त्रिसन्ध्यायै नमः।
  70. श्री तीर्थ-गामिन्यै नमः।
  71. श्री अष्टम्यै नमः।
  72. श्री नवम्यै नमः। 
  73. श्री दशम्यै नमः।
  74. श्री एकादश्यै नमः।
  75. श्री पौर्णमास्यै नमः।
  76. श्री कुहूरूपायै नमः।
  77. श्री तिथिमूर्ति-स्वरूपिण्यै नमः।
  78. श्री सुरारि-नाशकार्यै नमः।
  79. श्री उग्ररूपायै नमः।
  80. श्री वत्सलायै नमः।
  81. श्री अनलायै नमः।
  82. श्री अर्धमात्रायै नमः।
  83. श्री अरुणायै नमः।
  84. श्री पीत-लोचनायै नमः।
  85. श्री लज्जायै नमः।
  86. श्री सरस्वत्यै नमः।
  87. श्री विद्यायै नमः।
  88. श्री भवान्यै नमः।
  89. श्री पाप-नाशिन्यै नमः।
  90. श्री नागपाश-धरायै नमः।
  91. श्री मूर्त्यै नमः।
  92. श्री अगाधायै नमः।
  93. श्री धृत-कुण्डलायै नमः।
  94. श्री क्षतरूप्यै नमः।
  95. श्री क्षयकर्यै नमः।
  96. श्री तेजस्विन्यै नमः।
  97. श्री शुचि-स्मितायै नमः।
  98. श्री अव्यक्तायै नमः।
  99. श्री व्यक्त-लोकायै नमः।
  100. श्री शम्भु-रूपायै नमः।
  101. श्री मनस्विन्यै नमः।
  102. श्री मातङ्ग्यै नमः।
  103. श्री मत्तमातङ्ग्यै नमः।
  104. श्री महादेव-प्रियायै नमः।
  105. श्री दैत्यहन्त्र्यै नमः।
  106. श्री वाराह्यै नमः।
  107. श्री सर्व-शास्त्रमय्यै नमः।
  108. श्री शुभायै नमः।
• पूजन के अलावा, तर्पण के लिए उपरोक्त में प्रत्येक नाम मन्त्र में "तर्पयामि नमः" जोड़कर बोले। तर्पण के लिए एक पात्र में स्वच्छ जल लेकर दूध, शहद, पुष्प डालें और प्रत्येक "तर्पयामि" में आचमनी से इस जल को अर्पित करते जायें। चित्र हो तो उसके सामने एक पात्र रखकर उसमें जल अर्पण करे।
• हवन वैकल्पिक है सामर्थ्य अनुसार करे,इसके लिए प्रत्येक नाम मन्त्र में स्वाहा लगा लें।
शतार्चन के बाद मूल स्तोत्र का पाठ करे -

श्री भुवनेश्वरी-शतनाम स्तोत्रम् 
कैलास-शिखरे रम्ये नाना-रत्नोपशोभिते।
नरनारी-हितार्थाय शिवं पप्रच्छ पार्वती॥१॥
(कैलाश पर्वत की चोटी के सुन्दर स्थल पर विभिन्न रत्नों से शोभायमान भगवती पार्वती ने नर-नारी के हित की इच्छा से शिव जी से पूछा-)

देव्युवाच -
भुवनेशी-महाविद्या-नाम्नामष्टोत्तरं शतम्।
कथयस्व महादेव यद्यहं तव वल्लभा॥२
(देवी ने कहा - हे महादेव यदि मैं आपकी प्रियतमा हूं तो भुवनेश्वरी महाविद्या के 108 नामों को कहिये )

ईश्वर उवाच -
श‍ृणु देवि महाभागे स्तवराजमिदं शुभम्।
सहस्रनाम्नामधिकं सिद्धिदं मोक्ष-हेतुकम्॥३॥
(ईश्वर शिव जी ने कहा - हे महाभाग्यवती देवी इस शुभ स्तवराज को सुनिये जो देवी भुवनेश्वरी के हजार नामों से अधिक सिद्धि देने वाला व मोक्ष का कारण है)

शुचिभिः प्रातरुत्थाय पठितव्यं समाहितैः।
त्रिकालं श्रद्धया युक्तैः सर्वकाम-फलप्रदम्॥४॥
(यह प्रातः उठकर पवित्र होकर निश्चित रूप से पढ़ने योग्य है प्रातः मध्याह्न सायाह्न तीनों कालों श्रद्धापूर्वक सभी कामनाओं में सुफल देने वाला है)

अब जल लेकर यह विनियोग करके भूमि पर छोड़ दे -
अस्य श्रीभुवनेश्वर्यष्टोत्तर-शतनाम-स्तोत्रस्य शक्तिर्ऋषिः गायत्री छन्दः भुवनेश्वरी देवता चतुर्वर्गसाधने जपे विनियोगः।


ह्रीं 
महा-माया महाविद्या महाभोगा महोत्कटा।
माहेश्वरी कुमारी च ब्रह्माणी ब्रह्म-रूपिणी॥५॥

वागीश्वरी योगरूपा योगिनी-कोटि-सेविता।
जया च विजया चैव कौमारी सर्वमङ्गला॥६॥

हिङ्गुला च विलासी च ज्वालिनी ज्वाल-रूपिणी।
ईश्वरी क्रूरसंहारी कुलमार्ग-प्रदायिनी॥७॥

वैष्णवी सुभगाकारा सुकुल्या कुल-पूजिता।
वामाङ्गा वामचारा च वामदेव-प्रिया तथा॥८॥

डाकिनी योगिनी-रूपा भूतेशी भूतनायिका।
पद्मावती पद्मनेत्रा प्रबुद्धा च सरस्वती॥९॥

भूचरी खेचरी माया मातङ्गी भुवनेश्वरी।
कान्ता पतिव्रता साक्षी सुचक्षुः कुण्ड-वासिनी॥१०॥

उमा कुमारी लोकेशी सुकेशी पद्मरागिणी।
इन्द्राणी ब्रह्म चाण्डाली चण्डिका वायु-वल्लभा॥११॥

सर्वधातुमयी-मूर्तिर्जलरूपा जलोदरी।
आकाशी रणगा चैव नृ-कपाल-विभूषणा॥१२॥

नर्मदा मोक्षदा चैव धर्मकामार्थ-दायिनी।
गायत्री चाथ सावित्री त्रिसन्ध्या तीर्थ-गामिनी॥१३॥

अष्टमी नवमी चैव दशम्येकादशी तथा।
पौर्णमासी कुहूरूपा तिथिमूर्ति-स्वरूपिणी॥१४॥

सुरारि-नाशकारी च उग्ररूपा च वत्सला।
अनला अर्धमात्रा च अरुणा पीत-लोचना॥१५॥

लज्जा सरस्वती विद्या भवानी पाप-नाशिनी।
नागपाश-धरा मूर्तिरगाधा धृतकुण्डला॥१६॥

क्षत्ररूपा क्षयकरी तेजस्विनी शुचि-स्मिता।
अव्यक्ता व्यक्तलोका च शम्भु-रूपा मनस्विनी॥१७॥

मातङ्गी मत्तमातङ्गी महादेव-प्रिया सदा।
दैत्यहा चैव वाराही सर्वशास्त्रमयी शुभा॥१८॥

ह्रीं

फलश्रुति
य इदं पठते भक्त्या श‍ृणुयाद्वा समाहितः।
अपुत्रो लभते पुत्रं निर्धनो धनवान् भवेत्॥१९॥
(जो यह स्तोत्र भक्तिपूर्वक भली प्रकार सुनता है या पढ़ता है पुत्रहीन पाठक को पुत्रलाभ होता है तथा निर्धन धनवान हो जाता है)

मूर्खोऽपि लभते शास्त्रं चोरोऽपि लभते गतिम्।
वेदानां पाठको विप्रः क्षत्रियो विजयी भवेत्॥२०॥
वैश्यस्तु धनवान्भूयाच्छूद्रस्तु सुखमेधते।
(मूर्ख भी प्रतिदिन पाठ करे शास्त्रज्ञान पाता है, नियमित पाठकर्ता यदि चोर हो तो भी गति पाता है, पाठकर्ता ब्राह्मण हो तो वेद का पाठ करने की सामर्थ्य पाता है, क्षत्रिय विजयी हो जाता है, वैश्य को धन प्राप्ति होती है, शूद्र को सुख प्राप्त होता है)


अष्टम्याञ्च चतुर्दश्यां नवम्यां चैकचेतसः॥२१॥
ये पठन्ति सदा भक्त्या न ते वै दुःखभागिनः।
(जो सदा अष्टमी, नवमी और चतुर्दशी को यह स्तोत्र भक्ति पूर्वक एकाग्र मन से पढ़ते हैं वे दुख के भागी नहीं होते)

एककालं द्विकालं वा त्रिकालं वा चतुर्थकम्॥२२॥
ये पठन्ति सदा भक्त्या स्वर्गलोके च पूजिताः।
रुद्रं दृष्ट्वा यथा देवाः पन्नगा गरुडं यथा॥
शत्रवः प्रपलायन्ते तस्य वक्त्र-विलोकनात्॥२३॥
(जो सदा भक्तिपूर्वक एक समय, दो समय या तीन समय या फिर चार समय यह स्तोत्र पाठ करते हैं स्वर्गलोक में पूजित होते हैं। जिस प्रकार रौद्ररूप वाले रुद्र को देखकर देवगण तथा गरूड़ को देखकर  पलायन कर जाते हैं वैसे ही पाठकर्ता का मुख देखते ही शत्रु दूर हो जाते हैं)
॥श्रीरुद्रयामले देवी-शङ्कर-संवादे श्री भुवनेश्वर्यष्टोत्तरशत-नाम-स्तोत्रम् शुभमस्तु ह्रीं तत्सत्॥


इसके बाद भगवती भुवनेश्वरी के अन्य स्तोत्र पढ़े-

* श्री भुवनेश्वरी महाविद्या का खड्गमाला स्तोत्र विधान हमने प्रकाशित किया है, इसको पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें।
** श्री भुवनेश्वरी महाविद्या का त्रैलोक्य मंगल कवच भी हमने प्रस्तुत किया है, यहाँ क्लिक करके पढ़ें।

अब हम श्री भुवनेश्वरी महाविद्या की महिमा वर्णन करने वाले श्री भुवनेश्वरी हृदय स्तोत्र को हिन्दी अनुवाद सहित दे रहे हैं। अनुवाद किसी 
पुस्तक पर नहीं मिला स्वयम् लिखने का प्रयास किया है। पूर्णिमा, चतुर्दशी मंगलवार को इसका अवश्य  पाठ करें-

श्री भुवनेश्वरी हृदय स्तोत्र

सर्वप्रथम इस मन्त्र से पुष्प चढा दें -
श्रीगणेश-विष्णु-शिव-दुर्गा-सूर्येभ्यो नमः।  

देव्युवाच
भगवन् ब्रूहि तत्स्तोत्रं सर्वकाम-प्रसाधनम्। यस्य श्रवण-मात्रेण नान्यच्छ्रोतव्य-मिष्यते॥१॥
(देवी ने कहा - हे भगवन्! वह स्तोत्र बताइये जो कि समस्त इच्छाओं को पूरा करने वाला हो, जिसके सुनने मात्र से अन्य कुछ सुनने के लिए शेष न रहे)

 यदि मेऽनुग्रहः कार्यः प्रीतिश्चापि ममोपरि। तदिदं कथय ब्रह्मन् विमलं यन्महीतले॥२॥
 (यदि आपको मुझ पर कृपा करनी है तथा यदि मेरे ऊपर आपकी प्रसन्नता है तो हे ब्रह्मन्! जो संसार में पवित्र (स्तोत्र) है वह कहें)
 
ईश्वर उवाच
श्रृणु देवि प्रवक्ष्यामि सर्वकाम-प्रसाधनम्। हृदयं भुवनेश्वर्याः स्तोत्रमस्ति यशोदयम्॥३॥
(ईश्वर उवाच - हे देवि! सुनो, सभी कामनाओं को पूरा करने वाला भुवनेश्वरी हृदय स्तोत्र कहूंगा जो यश देने वाला है)

विनियोगः - ह्रीं अस्य श्री भुवनेश्वरी-हृदय-स्तोत्र-मन्त्रस्य शक्तिर्ऋषिः गायत्री छन्दः श्रीभुवनेश्वरी देवता हकारो बीजम् ईकारः शक्तिः रेफः कीलकम् सकल-मनोवाञ्छित-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ॥

हृदयादिन्यासः- ह्रीं हृदयाय नमः। 
श्रीं शिरसे स्वाहा।
ऐं शिखायै वषट्। 
ह्रीं कवचाय हुं। 
श्रीं नेत्रत्रयाय वौषट्।
ऐं अस्त्राय फट्। 

करन्यासः-
 ह्रीं अङ्गुष्ठाभ्यां नमः।
श्रीं तर्जनीभ्यां नमः।
 ऐं मध्यमाभ्यां नमः।
 ह्रीं अनामिकाभ्यां नमः।
श्रीं कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
 ऐं करतल-करपृष्ठाभ्यां नमः।

अब पुष्प लेकर इस स्तोत्र का पाठ करे -

ध्यानम् -
ध्यायेद्-ब्रह्मादिकानां कृतजनि-जननीं योगिनीं योगयोनिं देवानां जीवनायोज्ज्वलित-जय-परज्योतिरुग्राङ्ग-धात्रीम्।
(जो ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, ईश्वर चारों देवों की उत्पत्ति करती हैं, माता हैं, योगिनी/योगमाया, परमतत्व से साक्षात्कार रूपी योग कराने में कारणभूता, देवों के लिए विजयरूपी श्रेष्ठ तेजोमय जीवनज्योति, उग्र अंग वाली माता हैं, उन भुवनेश्वरी भगवती का मैं ध्यान करता हूँ)

 शङ्खं चक्रं च बाणं धनुरपि दधतीं दोश्चतुष्काम्बुजातै-र्मायामाद्यां विशिष्टां भवभवभुवनां भूभवा भारभूमिम्॥४॥ 
(उन भुवनेश्वरी महाविद्या का मैं ध्यान करता हूँ जो चारों कर-कमलों में शंख, चक्र, बाण और धनुष को भी धारण करती हैं, माया, आदिशक्ति, विशिष्टा, सभी लोको में श्रेष्ठ से भी श्रेष्ठ, संसार की स्रोत, धरती का भार वहन करने वाली हैं)

यदाज्ञया यो जगदाद्यशेषं बिभर्ति संहन्ति भवस्तदन्ते भजामहे श्रीभुवनेश्वरीं ताम्॥५॥ 
(जिनकी आज्ञा से जो सृष्टि के अनादि अनंत परमात्मा हैं, वे संसार का पालन करते हैं, अन्त में संसार का संहार भी करते हैं, मैं उन भुवनेश्वरी जी का भजन करता हूँ)
 
 जगज्जनानन्द-करीं जयाख्यां यशस्विनीं यन्त्र-सुयज्ञ-योनिम्। जितामितामित्र-कृतप्रपञ्चां भजामहे श्रीभुवनेश्वरीं ताम्॥६॥
 [संसार के लोगों को आनन्द प्रदान करने वाली, विजयरूपा, कीर्तिमती, यन्त्रों व शास्त्रसम्मत यज्ञों की कारणभूता शक्ति, जिन्होंने असीमित शत्रुकृत-प्रपंचों(झमेलों) को पराजित किया है, उन भुवनेश्वरी जी का मैं भजन करता हूँ]
 
हरौ प्रसुप्ते भुवनत्रयान्ते अवातरन्नाभिज-पद्मजन्मा । विधिस्ततोऽन्धे विदधार यत्पदं भजामहे श्रीभुवनेश्वरीं ताम्॥७॥ 
(तीनों लोकों के संहार के पश्चात विष्णु जी व शिव जी के सो जाने पर विष्णु जी की नाभि से उत्पन्न कमल से अवतरित होकर ब्रह्माजी वहां उस अन्धकार में जिनके चरण कमलों का वन्दन करते हैं, मैं उन भुवनेश्वरी जी का भजन करता हूँ)

न विद्यते क्वापि तु जन्म यस्या न वा स्थितिः सान्ततिकीह यस्या। न वा निरोधेऽखिल-कर्म यस्या भजामहे श्रीभुवनेश्वरीं ताम्॥८॥ 
(जिनका कहीं जन्म नहीं होता है या यहाँ जिनकी संततियों की कोई सीमा नहीं है या जिनके समस्त कर्मों में अवरोध नहीं आ सकता मैं उन भुवनेश्वरी जी का भजन करता हूँ)

कटाक्ष-मोक्षाचरणोग्र-वित्ता निवेशितार्णा करुणार्द्रचित्ता। सुभक्तये एति समीप्सितं या भजामहे श्रीभुवनेश्वरीं ताम्॥९॥
(जो तिरछी दृष्टि से मोक्ष, चरणों से विपुल धन प्रदान करने वाली हैं, दया करने के कारण आर्द्र हृदय वाली, उत्तम भक्त को जो इच्छित फल देती हैं मैं उन भुवनेश्वरी जी का भजन करता हूँ)

यतो जगज्जन्म बभूव योनेस्तदेव मध्ये प्रतिपाति या वा। तदत्ति यान्तेऽखिलमुग्र-काली भजामहे श्रीभुवनेश्वरीं ताम्॥१०॥ 
(जिन उत्पादिका शक्ति से सृष्टि का जन्म हुआ अथवा उसी प्रकार सृष्टिकाल में जो सृष्टि का प्रतिपालन(संचालन) करती हैं और प्रचण्ड काली बनकर सम्पूर्ण सृष्टि का अन्त करती हैं मैं उन भुवनेश्वरी जी का भजन करता हूँ)

सुषुप्तिकाले जन-मध्ययन्त्या यया जनः स्वप्नमवैति किञ्चित्। प्रबुद्ध्यते जाग्रति जीव एष भजामहे श्रीभुवनेश्वरीं ताम्॥११॥
(मैं उन भुवनेश्वरी जी का भजन करता हूँ जो गहरी नींद के समय लोगों के मध्य विचरती हैं, जिससे लोग कुछ स्वप्न देखा करते हैं, जब जगते हैं तब यह जीवात्मा जागता है)

दयास्फुरत्कोर-कटाक्ष-लाभान्नैकत्र यस्याः प्रलभन्ति सिद्धाः। कवित्व-मीशित्वमपि स्वतन्त्रा भजामहे श्रीभुवनेश्वरीं ताम्॥१२॥
(जिनकी दया से परिपूर्ण तिरछी दृष्टि पाने के लिए सिद्ध गण एकत्र होकर इच्छानुसार कवित्व, ईश्वरत्व भी प्राप्त करते हैं, मैं उन भुवनेश्वरी जी का भजन करता हूँ)

 लसन् मुखाम्भोरुह-मुत्स्फुरन्तं हृदि प्रणिध्याय दिशि स्फुरन्तः।
यस्याः कृपार्द्रं प्रविकाशयन्ति भजामहे श्रीभुवनेश्वरीं ताम्॥१३॥
(जिनकी कृपा की आर्द्रता से हृदय में सुन्दर मुखकमल स्पन्दित होने की साधना की दिशा को जो प्रकाशित कराती हैं मैं उन भुवनेश्वरी जी का भजन करता हूँ)

यदानुरागानुगतालि-चित्राश्चिरन्तन-प्रेम-परिप्लुताङ्गाः। सुनिर्भयाः सन्ति प्रमुद्य यस्याः भजामहे श्रीभुवनेश्वरीं ताम्॥१४॥
(जिनकी छवि के प्रति भक्ति भाव में अनुगामी हुए भँवरों/भक्तों के पुरातन प्रेम में डूबे अंग प्रत्यंग जिनके प्रसन्न होने से भयमुक्त हो जाते हैं, मैं उन भगवती भुवनेश्वरी जी का भजन करता हूँ)

 हरिर्विरञ्चिर्हर ईशितारः पुरोऽवतिष्ठन्ति प्रपन्नभङ्गाः।
  यस्याः समिच्छन्ति सदानुकूल्यं भजामहे श्रीभुवनेश्वरीं ताम्॥१५॥
(ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, ईश्वर जिनके आगे शरणागत स्थित रहते हैं और सदा जिनकी अनुकूलता बनी रहने की इच्छा करते हैं मैं उन भुवनेश्वरी जी का भजन करता हूँ)

 मनुं यदीयं हरमग्निसंस्थं ततश्च वामश्रुति-चन्द्रसक्तम्। जपन्ति ये स्युर्हि सुवन्दितास्ते भजामहे श्रीभुवनेश्वरीं ताम्॥१६॥
(जिनका मन्त्र हकार,र कार और इसके बाद अं की मात्रा युक्त ईकार है जिसे जो बार बार जपते हैं वो सुन्दर प्रकार से वन्दित होते हैं, मैं उन भुवनेश्वरी जी का भजन करता हूँ)

 प्रसीदतु प्रेम-रसार्द्र-चित्ता सदा हि सा श्रीभुवनेश्वरी मे। कृपा-कटाक्षेण कुबेर-कल्पा भवन्ति यस्याः पदभक्ति-भाजः॥१७॥ 
(प्रेम रस से विह्वल चित्त वाली वह श्री भुवनेश्वरी सदा मुझ पर प्रसन्न हों, जिनके चरणों की भक्ति करने वाले भगवती की कृपादृष्टि के द्वारा कुबेर सदृश हो जाते हैं )
 
फलश्रुति 
मुदा सुपाठ्यं भुवनेश्वरीयं सदा सतां स्तोत्रमिदं सुसेव्यम्। सुखप्रदं स्यात्कलिकल्मषघ्नं सुश‍ृण्वतां सम्पठतां प्रशस्यम्॥१८॥
(भुवनेश्वरी भगवती का यह स्तोत्र प्रसन्नता पूर्वक अच्छी प्रकार से पढ़ने योग्य , सदा सेवन करने योग्य, सुखदायक है, कलि-जन्य पापों का नाशक, भली प्रकार सुनने पढ़ने वालों के लिये प्रशंसनीय है)

 एतत्तु हृदयं स्तोत्रं पठेद्यस्तु समाहितः। भवेत्तस्येष्टदा देवी प्रसन्ना भुवनेश्वरी॥१९॥
 (जो इस भुवनेश्वरी हृदय स्तोत्र को एकाग्रचित्त होकर पढ़ता है उसकी इष्ट देवी भुवनेश्वरी प्रसन्न होकर उसको मनोवांछित फल की प्राप्ति कराने वाली हो जाती है)

 ददाति धनमायुष्यं पुण्यं पुण्यमतिं तथा। नैष्ठिकीं देवभक्तिं च गुरुभक्तिं विशेषतः॥२०॥
(देवी भुवनेश्वरी धन, दीर्घायु, पुण्य, पुण्यप्रद कर्म करने की ओर प्रेरित करने वाली मति, निष्ठा से परिपूर्ण भगवद्-भक्ति तथा विशेषकर गुरुभक्ति प्रदान करती है।)

 पूर्णिमायां चतुर्दश्यां कुजवारे विशेषतः। पठनीयमिदं स्तोत्रं देवसद्मनि यत्नतः॥२१॥
 (पूर्णमासी, चतुर्दशी और विशेष रूप से मंगलवार को भगवान के मंदिर में यह स्तोत्र प्रयत्न पूर्वक पढ़ने योग्य है)

 यत्रकुत्रापि पाठेन स्तोत्रस्यास्य फलं भवेत् । सर्वस्थानेषु देवेश्याः पूतदेहः सदा पठेत्॥२२॥ 
 (जहाँ कहीं भी इस स्तोत्र का पाठ करे इसका फल अवश्य मिलता है, सभी स्थानों पर देवताओं की ईश्वरी के इस स्तोत्र को हमेशा पवित्र होकर पढ़ना चाहिए)

श्री नीलसरस्वती-तन्त्रे भुवनेश्वरीपटले श्रीदेवीश्वरसंवादे श्रीभुवनेश्वरी हृदयस्तोत्रं शुभमस्तु ह्रीं तत्सत्
अब पुष्प अर्पण करके हाथ जोड़कर क्षमा याचना करे-
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि॥
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं भुवनेश्वरी।
यत्पूजितं मया देवि! परिपूर्ण तदस्तु मे॥
एक आचमनी से जल चढ़ाते हुए जप समर्पण करे -
•ह्रीं गुह्याति गुह्य गोप्त्री त्वम्, गृहाणास्मद्कृतं जपं। सिद्धिर्भवतु मे देवि, त्वत्-प्रसादान्महेश्वरी॥
• कृतेन अनेन श्री भुवनेश्वरी स्तोत्र पाठाख्य  नुष्ठानेन श्रीअमृतेश्वर शिवांक  निलया श्रीभुवनेश्वरी देवताः प्रसीदतु सर्वं श्रीभुवनेश्वर्यै अर्पणमस्तु।
शिव शिव शिव विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः शुभमस्तु
भगवती भुवनेश्वरी हम सबका मंगल करे...

टिप्पणियाँ

  1. उत्तर
    1. किसी भी महाविद्या की आराधना करते समय उनके दक्षिण हाथ के पास में उनके शिव को रखकर पूजना चाहिए, दस महाविद्याओं के भैरवों के नाम इस प्रकार हैं -
      1) काली - महाकाल ,
      2) तारा - अक्षोभ्य ,
      3) षोडशी - कामेश्वर/पंचवक्त्र या ललितेश्वर,
      4) भुवनेश्वरी - त्र्यम्बक या महादेव,
      5) त्रिपुरभैरवी - दक्षिणामूर्ति या बटुकभैरव,
      6) छिन्नमस्तिका - कबन्ध या क्रोधभैरव,
      7) धूमावती - कालभैरव,
      8) बगलामुखी - एकवक्त्र महारुद्र या मृत्युंजय,
      9) मातंगी - मातंग या सदाशिव,
      10) कमला - विष्णुरूप सदाशिव या नारायण,,,
      महाविद्या और उनके शिव मूल तत्व में शिव-पार्वती ही हैं स्वरूप भेद से उनका नाम बदल जाता है... इनको प्रायः नाम मन्त्र से ही पूजे जैसे श्री दक्षिणामूर्ति शिवाय नमः पूजयामि.....आदि आदि ....
      जय माता की

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