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श्रा |
वण शुक्ल पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन, संस्कृत दिवस, लव-कुश जयंती के साथ-साथ "भगवती गायत्री जयंती" मनाई जाती है। वेदमाता कहलाने वाली ये भगवती माँ अपने गायक/जपकर्ता का पतन से त्राण कर देती हैं; इसीलिए वो 'गायत्री' कहलाती हैं। जो गायत्री का जप करके शुद्ध हो गया है, वही धर्म-कर्म के लिये योग्य कहलाता है और दान, जप, होम व पूजा सभी कर्मों के लिये वही शुद्ध पात्र है।
पंचमुखी देवी गायत्री
श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन श्रावणी उपाकर्म किया जाता है जिसके अंतर्गत प्रायश्चित संकल्प करके दशविध स्नान के बाद फिर शुद्ध स्नान कर नवीन यज्ञोपवीत का मंत्रों से संस्कार करके उस यज्ञोपवीत का पूजन कर उसे धारण किया जाता है फिर पुराने यज्ञोपवीत का त्याग कर दिया जाता है। फिर गायत्री पूजन करें। तत्पश्चात् यथाशक्ति गायत्री मंत्र जपा जाता है। इसके बाद सप्तर्षि पूजन करके हवन करके ऋषि तर्पण, पितृ तर्पण करते हैं। चूंकि इस दिन गायत्री जयंती है अतः सच्चे मन से वेदजननी माँ गायत्री से संबन्धित स्तोत्रों का पाठ करना, गायत्री मंत्र से हवन, मन ही मन गायत्री मंत्र स्मरण वेदमाता की विशेष कृपा दिलाता है। इसके अलावा प्रति रविवार को पापनाशिनी गायत्री भगवती की विशेष आराधना करनी चाहिए।
श्री गायत्र्यष्टोत्तरशत नाम स्तोत्र के अनुसार - योगनिद्रालीन मधुसूदन श्रीहरि भगवान को मधु-कैटभ का वध करने हेतु प्रेरित करने वाली योगनिद्रारूपिणी देवी गायत्री ही हैं। भगवती महामत्तमातंग-गामिनी मातंगी महाविद्या ही भगवती गायत्री हैं। ये विष्णु जी के चक्र में स्थित हैं। स्तोत्र सदा ही देवियों में एकत्व को दर्शाते हैं। दर्शन शास्त्रों में हाथों का अधिदैव इंद्रदेव को माना गया है, उन इंद्र की पत्नी शची/माहेंद्री में भी भगवती गायत्री ही व्याप्त हैं।
ये ही वैष्णवी भगवती चौर-चार अर्थात् चहल-पहल प्रिया - महालक्ष्मीजी हैं तथा उमा/पार्वती जी, सीता जी, मीनाक्षी देवी भी यही हैं। गायत्री सर्वमंत्राश्रया हैं अर्थात सभी मंत्र भगवती गायत्री का ही आश्रय लेते हैं। गौ, गंगा भी भगवती गायत्री ही हैं। त्रिविक्रम श्री वामन भगवान द्वारा जिसे तीन कदमों में ही नाप लिया गया था वह भूदेवी पृथ्वी भगवती गायत्री ही हैं। सूर्य मण्डल, चंद्र मण्डल, अग्नि मण्डल, वायुमंडल, व्योम (आकाश) सर्वत्र भगवती गायत्री ही व्याप्त हैं।
भगवती गायत्री को तुहिनाचल-वासिनी भी कहा गया है। तुहिनाचल अर्थात् हिमालय पर्वत। वैसे तुहिनाचल, हिमाचल प्रदेश को भी कहते हैं। हिमाचल में मनाली से 6 किमी की दूरी पर एक प्राचीन गायत्री-मंदिर स्थित है, जो लोकप्रिय पुराने मंदिरों में से एक है।
वैसे तो भगवती गायत्री को प्रसन्न करने के लिए अधिकाधिक गायत्री मन्त्र जप ही पर्याप्त है परन्तु हमारे सनातन धर्म ग्रंथों में देवी गायत्री के बहुत से स्तोत्र मिलते हैं समय हो तो इनका भी पाठ करते रहना चाहिए। यहाँ गायत्री कवच दिया जा रहा है नित्य संध्या के मन्त्र जप के पश्चात इसका पाठ करे-
श्री गायत्री कवच
विनियोगः - ॐ अस्य श्रीगायत्री कवचस्य, ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, गायत्री देवता, भूः बीजम्, भुवः शक्तिः, स्वः कीलकम्, गायत्री प्रीत्यर्थं जपे विनियोगः।
ध्यानम् -
पञ्च-वक्त्रां दशभुजां सूर्यकोटि-समप्रभाम् ।
सावित्रीं ब्रह्म वरदां चन्द्रकोटि-सुशीतलाम्॥
त्रिनेत्रां सितवक्त्रां च मुक्ताहार-विराजिताम्।
वराभयाङ्कुश-कशा हेमपात्राक्ष-मालिकाम्॥
शङ्ख-चक्राब्ज-युगलं कराभ्यां दधतीं वराम् ।
सितपङ्कज-संस्थां च हंसारूढां सुख-स्मिताम्॥
(भगवती गायत्री पांच मुख वाली, दस भुजाओं वाली, करोड़ों सूर्यों के समान आभा वाली, सावित्री, ब्रह्म प्राप्ति का वर देने वाली, करोड़ों चन्द्रमाओं के समान शीतल, त्रिनेत्रा, गौर वर्ण के मुख वाली,मोतियों के हार से विभूषित हैं मां गायत्री वरमुद्रा, अभय मुद्रा, पाश, अंकुश, स्वर्ण पात्र, अक्षमाला, शंख, चक्र, कमल धारण करने वाली हैं, श्वेतकमल पर बैठी हुई हैं तथा हंस वाहन पर सुखपूर्वक विराजित हैं)
ध्यात्वैवं मानसाम्भोजे गायत्रीकवचं जपेत् ॥
(इस प्रकार हृदयकमल में ध्यान करके गायत्री कवच पढें)
ब्रह्मोवाच -
ॐ विश्वामित्र महाप्राज्ञ गायत्रीकवचं शृणु।
यस्य विज्ञानमात्रेण त्रैलोक्यं वशयेत्क्षणात्॥१॥
सावित्री मे शिरः पातु शिखायाममृतेश्वरी।
ललाटं ब्रह्मदैवत्या भ्रुवौ मे पातु वैष्णवी॥२॥
कर्णौ मे पातु रुद्राणी सूर्या सावित्रिकाऽम्बिका।
गायत्री वदनं पातु शारदा दशनच्छदौ॥३॥
द्विजान् यज्ञप्रिया पातु रसनायां सरस्वती।
साङ्ख्यायनी नासिकां मे कपोलौ चन्द्रहासिनी॥४॥
चिबुकं वेदगर्भा च कण्ठं पात्वघनाशिनी।
स्तनौ मे पातु इन्द्राणी हृदयं ब्रह्मवादिनी॥५॥
उदरं विश्वभोक्त्री च नाभौ पातु सुरप्रिया।
जघनं नारसिंही च पृष्ठं ब्रह्माण्डधारिणी॥६॥
पार्श्वौ मे पातु पद्माक्षी गुह्यं गोगोप्त्रिकाऽवतु।
ऊर्वोः प्रणव-रूपा च जान्वोः सन्ध्यात्मिकावतु॥७॥
जङ्घयोः पातु अक्षोभ्या गुल्फयोर्ब्रह्मशीर्षका।
सूर्या पदद्वयं पातु चन्द्रा पादाङ्गुलीषु च॥८॥
सर्वाङ्गं वेदजननी पातु मे सर्वदानघा।
इत्येतत्कवचं ब्रह्मन् गायत्र्याः सर्वपावनम्। पुण्यं पवित्रं पापघ्नं सर्वरोग-निवारणम्॥९॥
(यह गायत्री कवच सबको पवित्र करने वाला है, पुण्यदायक, पवित्र, पापनाशक व सभी रोग दूर करता है)
त्रिसन्ध्यं यः पठेद्विद्वान् सर्वान् कामानवाप्नुयात्। सर्वशास्त्रार्थ-तत्वज्ञः स भवेद्वेद-वित्तमः॥१०॥
(इसका प्रातः मध्याह्न व सायंकाल को पाठ करने वाले विद्वान की सभी कामनाओं की पूर्ति होती है, वह सभी शास्त्रों के अर्थ व तत्व को जान लेता है, वेद ज्ञान को भी जानने लगता है)
सर्वयज्ञ-फलं प्राप्य ब्रह्मान्ते समवाप्नुयात्। प्राप्नोति जपमात्रेण पुरुषार्थांश्चतुर्विधान्॥११॥
(वह सभी यज्ञों का फल प्राप्त करके अन्त में ब्रह्म में ही लय हो जाता है, इसका जप करने से जीवन में चारों पुरुषार्थ अर्थात् धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है)
॥श्रीविश्वामित्र संहितोक्तं गायत्रीकवचं शुभमस्तु॥
श्री गायत्र्यष्टोत्तर-शतनाम स्तोत्रम्
नाम उपासना का अपना अलग महत्व है वैसे तो सहस्रनाम स्तोत्र के द्वारा देवी गायत्री की उपासना करना उत्तम है परंतु समयाभाव हो तो अष्टोत्तर-शतनाम स्तोत्र से भी भगवती की उपासना की जा सकती है -
हरिः ॐ
तरुणादित्य-सङ्काशा सहस्र-नयनोज्ज्वला।
विचित्र-माल्याभरणा तुहिनाचल-वासिनी॥१॥
वरदाभय-हस्ताब्जा रेवा-तीर-निवासिनी।
प्रणित्यय-विशेषज्ञा यन्त्राकृत-विराजिता॥२॥
भद्रपाद-प्रिया चैव गोविन्द-पथगामिनी।
देवर्षि-गणसन्तुष्टा वनमाला-विभूषिता॥३॥
स्यन्दनोत्तम-संस्था च धीर-जीमूत-निःस्वना ।
मत्तमातङ्ग-गमना हिरण्य-कमलासना ॥ ४॥
दीनजनोद्धार-निरता योगिनी योगधारिणी।
नट - नाट्यैक-निरता प्रणवाद्यक्षरात्मिका॥५॥
चौरचार क्रियासक्ता दारिद्र्यच्छेद-कारिणी ।
यादवेन्द्र-कुलोद्भूता तुरीय-पदगामिनी॥६॥
गायत्री गोमती गङ्गा गौतमी गरुडासना।
गेयगानप्रिया गौरी गोविन्द-पदपूजिता॥७॥
गन्धर्व-नगरागारा गौरवर्णा गणेश्वरी।
गुणाश्रया गुणवती गह्वरी गण-पूजिता॥८॥
गुणत्रय-समायुक्ता गुणत्रय-विवर्जिता।
गुहावासा गुणाधारा गुह्या गन्धर्व-रूपिणी॥९॥
गार्ग्यप्रिया गुरुपदा गुह्यलिङ्गाङ्ग-धारिणी।
सावित्री सूर्यतनया सुषुम्ना - नाडि-भेदिनी॥१०॥
सुप्रकाशा सुखासीना सुमतिस्सुर-पूजिता।
सुषुप्त्यवस्था सुदती सुन्दरी सागराम्बरा॥११॥
सुधांशुबिम्ब-वदना सुस्तनी सुविलोचना।
सीता सत्त्वाश्रया सन्ध्या सुफला सुविधायिनी॥१२॥
सुभ्रूस्सुवासा सुश्रोणी संसारार्णव-तारिणी।
सामगान-प्रिया साध्वी सर्वाभरण-भूषिता॥१३॥
वैष्णवी विमलाकारा माहेन्द्री मन्त्ररूपिणी।
महालक्ष्मीर्महा-सिद्धिर्महामाया महेश्वरी॥१४॥
मोहिनी मदनाकारा मधुसूदनचोदिता।
मीनाक्षी मधुरावासा नागेन्द्रतनया उमा॥१५॥
त्रिविक्रम-पदाक्रान्ता त्रिसर्वा त्रिविलोचना।
सूर्यमण्डल-मध्यस्था चन्द्रमण्डल-संस्थिता॥१६॥
वह्निमण्डल-मध्यस्था वायुमण्डल-संस्थिता।
व्योममण्डल-मध्यस्था चक्रिणी चक्ररूपिणी॥१७॥
कालचक्र-वितानस्था चन्द्रमण्डल दर्पणा।
ज्योत्स्ना-तपानुलिप्ताङ्गी महामारुत-वीजिता॥१८॥
सर्वमन्त्राश्रया धेनुः पापघ्नी परमेश्वरी।
नमस्तेऽस्तु महालक्ष्मी महासम्पत्ति-दायिनी॥१९॥
नमस्ते करुणामूर्ति नमस्ते भक्तवत्सले।
गायत्र्याः प्रजपेद्यस्तु नाम्नामष्टोत्तरं शतम्॥२०॥
तस्य पुण्यफलं वक्तुं ब्रह्मणोऽपि न शक्यते।
(जो कोई देवी गायत्री के इन 108 नामों का निरंतर पाठ करता है ब्रह्माजी भी उसका पुण्यफल बता सकने में असमर्थ हैं)
प्रातःकाले च मध्याह्ने सायाह्ने वा द्विजोत्तम॥२१॥
ये पठन्तीह लोकेऽस्मिन् सर्वान्कामानवाप्नुयात्।
(प्रातः काल और मध्याह्न या सायंकाल इसका पाठ करने वालों की सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं)
पठनादेव गायत्री नाम्नामष्टोत्तरं शतम्॥२२॥
ब्रह्महत्यादि पापेभ्यो मुच्यते नात्र संशयः।
(गायत्री 108 नाम स्तोत्र के पठन से ब्रह्महत्या आदि पापों से मुक्ति मिल जाती है इसमें संशय नहीं है)
दिने दिने पठेद्यस्तु गायत्री–स्तवमुत्तमम्॥२३॥
स नरो मोक्षमाप्नोति पुनरावृत्ति–वर्जितम्।
(इस उत्तम गायत्री स्तव का प्रतिदिन पाठ करने वाले का पुनर्जन्म नहीं होता ऐसा मोक्ष प्राप्त होता है)
पुत्रप्रद-मपुत्राणां दरिद्राणां धनप्रदम्॥२४॥
रोगिणां रोगशमनं सर्वैश्वर्य-प्रदायकं
बहुनात्र किमुना स्तोत्रं शीघ्रं फलप्रदम्॥२५॥
(यह पुत्रहीन को पुत्र देने वाला, निर्धनों को धन देने वाला है तथा रोगियों के रोग दूर करता है, सभी ऐश्वर्य प्रदान करता है और अधिक क्या कहें यह स्तोत्र शीघ्र फल देता है)
॥श्री गायत्र्यष्टोत्तरशत–नामस्तोत्रं शुभमस्तु ओऽम् तत्सत्॥
वैसे तो जो नित्य संध्या करते हैं जिनका विधिवत उपनयन संस्कार हुआ है उन्हें विनियोग सहित इन स्तोत्रों के पाठ का अधिकार है ही।
लेकिन यदि स्त्री हो या जिनका यज्ञोपवीत संस्कार नहीं हुआ हो या जो जनेऊ नहीं पहनते हों या जो नित्य गायत्री संध्या नहीं करते हों; वे इन दोनों स्तोत्रों का पाठ करना चाहे तो उनको कुछ सावधानी रखनी होगी — ऐसे लोग गायत्री कवच का विनियोग नहीं पढ़े और उपरोक्त दोनों स्तोत्रों के पाठ में ॐ का उच्चारण नहीं करे।
इस प्रकार प्रतिदिन संध्या व श्री गायत्री उपासना में लगे रहने वाले साधक के समस्त पाप दूर करके भगवती गायत्री उपासक के समस्त ताप (शारीरिक/ मानसिक/दैवजनित कष्ट) हर लेती हैं, भगवती गायत्री को हमारा अनेकों बार प्रणाम है।
Mujhe aapke Dale huegayatri kavach se bahut labh mil rha hai mai roj Gayatri mata k 108naam ka path krti hu mujhe isse bahut labh prapt hua hai kabhi kabhi bich me kisi Karan vas path reh jata hai to mai dobara se krti hu pr sath me kavach ka pathbhi dene k liye bahut bahut dhanyavad 😊🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌺🌺🌺🌺
जवाब देंहटाएंशास्त्र कहते हैं कि जनेऊ न पहनने वालों और स्त्रियों को गायत्री मन्त्र का जप तथा ॐ और स्वाहा का उच्चारण नहीं करना चाहिये। लेकिन भगवती की कृपा देखिये छूट दे दी है कि ॐ/ स्वाहा हटाकर स्तोत्र का पाठ करके स्त्रियाँ भी भगवती गायत्री को प्रसन्न तो कर ही सकती हैं। स्तोत्रात्मक उपासना से लाभ ही लाभ हैं। अच्छा लगा आप स्तोत्र पढ़ कर लाभ पा रही हैं, मंगलकामनायें। जय माँ गायत्री।
हटाएंश्रीमान जी प्रणाम🙏
जवाब देंहटाएंश्रेष्ठ मैंने आपके mail address पर एक mail किया है
कृपया निवेदन है कि आप संज्ञान लेवें और उचित मार्गदर्शन प्रदान करें
जय माँ🙏
नमस्कार, व्यस्तता थी, उत्तर शीघ्र दिया जायेगा। जय माता की
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