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⭐विशेष⭐



२० मार्च -आमलकी एकादशी
🔥२४ मार्च -होलिका-दहन, होली
२५ मार्च - धुलण्डी, रंगवाली होली (जानें होली का रहस्य)
🪷२५ मार्च - मान्यता है फाल्गुन पूर्णिमा को श्री महालक्ष्मी समुद्र मंथन से उद्भूत हुई थीं - प्रमुखता से दक्षिणी भारत में श्री लक्ष्मी जी की जयंती - इस अवसर पर श्री महालक्ष्मी जी की उपासना करें

आज - पिंगल नामक विक्रमी संवत्सर(२०८०), सूर्य उत्तरायण, शिशिर ऋतु, फाल्गुन मास, शुक्ल पक्ष।
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तीन लघु कथाएँ - 'विश्वास', 'दरिद्र कौन?' और ''अतिथि के लिए उत्सर्ग"

प्रेरक कथा-१
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॥  विश्वास  
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क आदमी था जो एक नदी के किनारे एक छोटे से घर में रहता था वह बहुत ही धार्मिक प्रवृति का आदमी था, उसे भगवान पर बहुत विश्वास था! एक दिन उस नदी में बाढ़ आ गयी वह आदमी घर समेत बह गया काफी दूर बहने के बाद उसने बचने का प्रयास किया! वह सीधे घर की छत पर चढ़ गया तो देखा पानी काफी भर चुका है! तभी दूर से एक काफी बड़ी नाव में कुछ लोग आये और कहने लगे कि उनके साथ नाव में आ जाये पर वो आदमी कहने लगा कि नहीं मुझे बचाने तो भगवान आयेंगे! ऐसा सुनकर वो नाव वाले वहां से चले गए!
पानी का स्तर बढ़ ही रहा था उस आदमी का घर पूरा डूबने वाला था तभी एक और नाव वाला वहां से आया और उसे कहा कि उसके साथ चल पड़े पर वो आदमी कहने लगा कोई बात नहीं तुम जाओ मुझे बचाने तो भगवान आयेंगे!
तब वो नाव वाला भी वहां से चला गया! अब उस आदमी का पूरा घर डूबने वाला था तभी उसे सामने
एक पेड़ नजर आया उसने पेड़ को पकड़ लिया थोड़ी देर बाद पानी का स्तर और बढ़ गया वह आदमी पेड़ पर बैठ कर भगवान को याद कर रहा था!



तभी एक हैलीकॉप्टर आया और उसमें से एक सीढ़ी उस आदमी कि तरफ फेंक दी और कहा कि उसे पकड़ कर उस पर चढ़ जाये पर उस आदमी ने कहा कि कोई बात नहीं मैं ठीक हूँ!
हैलीकॉप्टर वाले ने फिर कहा कि जल्दी आ जाओ, तो वो आदमी कहने लगा कि तुम जाओ मुझे बचाने तो भगवान आयेंगे! ऐसा सुनकर हैलीकॉप्टर वाला भी वहां से चला गया!
आखिरकार वो आदमी पानी के बढ़ जाने से डूब गया और मर गया। मरने के बाद स्वर्ग में भगवान के सामने पहुँच गया और बड़े गुस्से में भगवान से कहने लगा तुमने मुझे कहा था कि तुम  मुझे हर मुसीबत से बचाओगे पर तुमने मुझे डूबने दिया!
तो भगवान ने कहा कि पहले मैंने तुम्हें बचाने के लिए एक नाव भेजी फिर दूसरी नाव भेजी और बाद में हेलीकॉप्टर भी भेजा इससे ज्यादा तुम और क्या चाहते थे ?
तो मित्रों भगवान किसी न किसी रुप मेँ हमारी मदद अवश्य करते हैं बस अडिग विश्वास होना चाहिए।


प्रेरक कथा-२
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॥  दरिद्र कौन?  
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क बार की बात है। एक संत के पास एक धनवान ने रुपयों की थैली खोलकर उसे स्वीकार करने की प्रार्थना की। संत ने उत्तर दिया-"अत्यंत निर्धन और दरिद्र का धन मैं स्वीकार नहीं करता।" तब उस धनवान व्यक्ति ने उत्तर दिया-"पर मैं तो धनवान हूँ। लाखों रुपये हैं मेरे पास।"
संत ने प्रश्न किया-"ये बताओ धन के और अधिक होने की कामना तुम्हें है या नहीं"
नवान ने संत के सम्मुख सच बोलते हुए कहा-"जी अवश्य है।"
इस पर संत ने कहा- "जिन्हें धन की कामना रहती है, उन्हें दिन-रात धन संचय की ही चिन्ता रहती है। उनमें जरा भी संतोष नहीं होता है, उन्हें धन के लिए नाना अपकर्म करने पड़ते हैं। इसलिए उनके जैसा कोई दरिद्र नहीं।'
इतना सुनकर धनवान को अपनी त्रुटि पता चली और वह धन सहित वापस लौट गया।


प्रेरक कथा-३
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॥  अतिथि के लिए उत्सर्ग  
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मे
वाड़ के गौरव और हिन्दूकुल के सूर्य महाराणा प्रताप अरावली के जंगलों में भटक रहे थे। उनको अकेले ही वन-वन भटकना पड़ता तो भी एक बात थी, किन्तु उनके साथ महारानी, अबोध राजकुमार व छोटी-सी राजकुमारी ये तीनों थे। अकबर जैसे प्रतापी शत्रु की सेना पीछे पड़ी थी। कभी गुफा में तो, कभी वन में, कभी किसी नाले के समीप रात्रि काटनी पड़ती थी। वन के कंदमूल फल भी अलभ्य थे। घास के बीजों की रोटी भी कई - कई दिन पर मिल पाती थी। बच्चे सूखकर कंकाल हो रहे थे।

विपत्ति के इन्हीं दिनों में एक बार महाराणा को परिवार के साथ लगातार कई दिनों तक उपवास करना पड़ा। बड़ी कठिनाई से एक दिन घास की रोटी बना पाये और वह भी केवल एक। महाराणा तथा रानी को तो जल पीकर समय बिता देना था पर बच्चे कैसे रहें? राजकुमार सर्वथा अबोध था। उसे तो कुछ न कुछ भोजन देना ही चाहिए। राजकुमारी भी अभी बालिका थी। आधी-आधी रोटी दोनों बच्चों को उनकी माता ने दे दी। राजकुमार ने अपना भाग तत्काल खा लिया। परंतु राजकुमारी छोटी बच्ची होने पर भी परिस्थिति को समझती थी। छोटा भाई कुछ घंटे बाद भूख से रोएगा तो उसे क्या दिया जाएगा , इसकी चिंता उस बालिका को भी थी। उसने अपनी आधी रोटी पत्थर के नीचे दबाकर सुरक्षित रख ली, यद्यपि उसे कई दिनों से कुछ भी खाने को नहीं मिला था।

महाराणा प्रताप


संयोग से वहाँ वन में भी एक अतिथि महाराणा के पास आ पहुंचे। राणा ने उनको पत्ते बिछाकर वहाँ बैठाया। पैर धोने को जल दिया और इतना करके वे इधर-उधर देखने लगे। आज मेवाड़ के अधीश्वर के पास अतिथि को देने के लिए पीने का पानी व चने के चार दाने भी नहीं थे। किन्तु पुत्री पिता की चिंता समझ गई और अपने भाग की आधी रोटी का टुकड़ा पत्ते पर रखकर ले आई। अतिथि के सम्मुख उसे रखकर बोली-"देव! आप इसे ग्रहण करें। आज हमारे पास आपका सत्कार करने योग्य कुछ नहीं।"


अतिथि ने रोटी खाई, जल पिया और विदा हो गया, किन्तु वह बालिका मूर्छित हो गिर पड़ी। भूख से वह दुर्बल हो चुकी थी। यह मूर्छा उसकी अंतिम मूर्छा बन गयी। धन्य है वह बालिका, अतिथि सत्कार में उसने अपनी आधी रोटी ही नहीं अपितु अपना जीवन उत्सर्ग कर दिया था।

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