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हमारे हिन्दू धर्म ग्रन्थों में एकादशी तिथि का बहुत महत्व बताया गया है। पुराणों में वर्णन आता है कि एक बार युधिष्ठिर ने भगवान् श्रीकृष्ण से पूछा- "भगवन् ! आषाढ़ के शुक्ल पक्ष में कौन-सी एकादशी होती है? उसका नाम और विधि क्या है ? यह बतलाने की कृपा करें।"
भगवान् श्रीकृष्ण बोले- "राजन् ! आषाढ़ शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम 'शयनी' है। मैं उस उत्तम व्रत का वर्णन करता हूँ। वह महान पुण्यमयी, स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करने वाली, सब पापों को हरने वाली है। हरिशयनी एकादशी के दिन मेरा एक स्वरूप राजा बलि के यहाँ रहता है और दूसरा क्षीरसागर में शेषनाग की शय्या पर तब तक शयन करता है जब तक, आगामी कार्तिक की एकादशी नहीं आ जाती; अतः आषाढ़ शुक्ला एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ला एकादशी तक मनुष्य को भलीभाँति धर्म का आचरण करना चाहिए। जो मनुष्य इस व्रत का अनुष्ठान करता है वह परम गति को प्राप्त होता है, अतः यत्नपूर्वक इस एकादशी का व्रत किया जाना चाहिए। एकादशी की रात्रि में जागरण करके शंख, चक्र, गदा धारण करने वाले भगवान् विष्णु की भक्तिपूर्वक पूजा/आराधना/स्तुति करनी चाहिए। ऐसा करने वाले के पुण्य की गणना करने में चतुर्मुख ब्रह्माजी भी असमर्थ हैं। हे राजन् ! जो इस प्रकार भोग-मोक्ष प्रदान करने वाले सर्वपापहारी एकादशी के उत्तम व्रत का पालन करता है, वह चाण्डाल हो तो भी संसार में सदा मेरा प्रिय करने वाला है। जो मनुष्य दीपदान[पवित्र वृक्षों की जड़ों, मंदिरों में दिया जलाना], पलाश के पत्ते पर भोजन करते हुए चौमासा व्यतीत करते हैं, वे मेरे प्रिय हैं। राजन् एकादशी व्रत से ही मनुष्य सभी पातकों से मुक्त हो जाता है; अतः सदा इसका व्रत करना चाहिए।"
भगवान् गोविंद के अनुसार, आषाढ़ शुक्ला 'शयनी' एकादशी व कार्तिक शुक्ला 'बोधिनी' एकादशी के बीच में जो कृष्ण पक्ष वाली एकादशियाँ होती हैं गृहस्थों के लिए वे ही व्रत रखने योग्य हैं-अन्य मासों की कृष्णपक्षीय एकादशी गृहस्थ के रखने योग्य नहीं होती। हाँ शुक्लपक्ष की सभी एकादशियाँ करनी चाहिये।
चातुर्मास का शुभारम्भ
चातुर्मास वह समय है जब न तो घर या मंदिर आदि की प्रतिष्ठा होती है और न ही यज्ञ, विवाह, यज्ञोपवीत व अन्यान्य माङ्गलिक कर्म होते हैं पर इस काल में विष्णुजी की आराधना शुभप्रद होती है। श्रीवामनावतार के समय श्री हरि ने बलि को वर दिया था कि चातुर्मास में श्रीहरि का एक स्वरूप तो क्षीरसागर में शयन करेगा किन्तु दूसरा स्वरूप राजा बलि के द्वार पर पहरा देगा। यूं तो भगवान क्षण भर भी नहीं सोते परंतु लीलारूप में चौमासे में भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं; अतः मनुष्य को चातुर्मास में प्रयत्नपूर्वक भूमि पर शयन करना चाहिए। आषाढ़ शुक्ल द्वादशी से कार्तिक पूर्णिमा के मध्य श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक इन चार मासों का समय चातुर्मास कहलाता है।
आषाढ़ शुक्ल एकादशी को उपवास करके सायंकाल को भक्तिपूर्वक विष्णु जी की शंख, चक्र, गदा व पद्म युक्त प्रतिमा को पंचामृत और शुद्ध जल से स्नान कराकर तकिया युक्त सुंदर वस्त्रादि बिछे हुये पलंग/लकड़ी के पाटे पर विराजमान करें। प्रतिमा का पुरुषसूक्त के सोलह मंत्रों से षोडशोपचार पूजन करें। फिर यह प्रार्थना करें-
सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जगत्सुप्तं भवेदिदम्।
विबुद्धे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्वं चराचरम्॥
'जगन्नाथ! आपके सो जाने पर यह समस्त जगत् सो जाता है और आपके जाग्रत् होने पर यह सम्पूर्ण चराचर जगत् भी जाग्रत् रहता है।'
फिर चातुर्मास्य व्रत के शास्त्रविहित नियम यथाशक्ति ग्रहण करने चाहिये।
श्रावणे वर्जयेच्छाकं दधि भाद्रपदे तथा॥
दुग्धमाश्वयुजि त्याज्यं कार्तिके द्विदलं त्यजेत्।
अर्थात्- सावन माह में साग (अथवा किसी एक सब्जी), भाद्रपद में दही, आश्विन [क्वार] में दूध व कार्तिक मास में दाल(या किसी एक प्रकार की दाल) का त्याग करना चाहिए। जो चातुर्मास में ब्रह्मचर्य का पालन करता है, वह परमगति को प्राप्त होता है। चातुर्मास को धर्म संबंधी चर्चा अधिकाधिक की जानी चाहिए। चातुर्मास के अंतर्गत ही नारद जी को साधु संतों की सेवा का उचित अवसर प्राप्त हुआ था। संत जो भी परस्पर चर्चा करते थे उसे सुनने में नारद जी की रुचि हो गयी थी जिससे उनका सारा कल्मष दूर हुआ और उन्होंने भगवान को प्राप्त कर ही लियाइसके उपरान्त अगले दिन द्वादशी को प्रातः षोडशोपचार द्वारा भगवान् शेषशायी की पूजा करें। यथाशक्ति ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा देकर उसके बाद स्वयं मौन भाव से भोजन करें। इस विधि से यदि हरिशयनी एकादशी व्रत किया जाय तो भगवान् विष्णु की कृपा से मनुष्य भोग-मोक्ष का भागी होता है। श्रीहरि को चातुर्मास पर बारम्बार प्रणाम...
श्री मान जी प्रणाम
जवाब देंहटाएंआप द्वारा प्रस्तुत लेख अत्यंत ज्ञान वर्धक है।
मेरी जिज्ञासा है कि किस पुराण या वेद में चातुर्मास का भगवान के चार महीने सोने का वर्णन आया है।कृपया संदर्फ देने की कृपा करावे।
जय श्री कृष्ण, आपने आलेख पढ़ा इस हेतु धन्यवाद...वेदों में सब ज्ञान निहित है लेकिन आज के समय में समस्त वेदों के मंत्रों का विस्तृत व्याख्याकार या फिर संपूर्ण वेद पुस्तक रुप में व्याख्या सहित मिल पाना दुर्लभ है। पुराण वेदों की सरल व्याख्या हैं संक्षिप्त ही सही लेकिन प्रायः उपलब्ध हो ही जाते हैं इसलिए चातुर्मास के विषय में जानने के लिए पुराण ग्रंथों में देखिए।
हटाएं१* स्कंद पुराण के ब्राह्म खंड में तो चातुर्मास माहात्म्य नाम से ही खंड है इसमें ३०+ अध्याय हैं।
२*पद्म पुराण के उत्तरखंड में अध्याय ६६ देखिए।
३* नारद पुराण के उत्तर भाग के अनुसार मोहिनी को रुक्मांगद ने चातुर्मास का महत्व बताया था।
जय श्रीहरि
धन्यवाद आपका
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