नोट - यहाँ प्रकाशित साधनाओं, स्तोत्रात्मक उपासनाओं को नियमित रूप से करने से यदि किसी सज्जन को कोई विशेष लाभ हुआ हो तो कृपया हमें सूचित करने का कष्ट करें।

⭐विशेष⭐


23 अप्रैल - मंगलवार- श्रीहनुमान जयन्ती
10 मई - श्री परशुराम अवतार जयन्ती
10 मई - अक्षय तृतीया,
⭐10 मई -श्री मातंगी महाविद्या जयन्ती
12 मई - श्री रामानुज जयन्ती , श्री सूरदास जयन्ती, श्री आदि शंकराचार्य जयन्ती
15 मई - श्री बगलामुखी महाविद्या जयन्ती
16 मई - भगवती सीता जी की जयन्ती | श्री जानकी नवमी | श्री सीता नवमी
21 मई-श्री नृसिंह अवतार जयन्ती, श्री नृसिंहचतुर्दशी व्रत,
श्री छिन्नमस्ता महाविद्या जयन्ती, श्री शरभ अवतार जयंती। भगवत्प्रेरणा से यह blog 2013 में इसी दिन वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को बना था।
23 मई - श्री कूर्म अवतार जयन्ती
24 मई -देवर्षि नारद जी की जयन्ती

आज - कालयुक्त नामक विक्रमी संवत्सर(२०८१), सूर्य उत्तरायण, वसन्त ऋतु, चैत्र मास, शुक्ल पक्ष।
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श्री हनुमान जी की स्तोत्रात्मक उपासना

गवान श्री राम के अनन्य भक्त श्री हनुमान जी की हनुमान चालीसा जगप्रसिद्ध ही है।हनुमान जी को प्रसन्न करके अभीष्ट फल पाने की लिए हनुमान चालीसा के अलावा भी कई स्तोत्र हमारे धर्म ग्रंथों में दिये गए हैं। अन्य देवगण तो लीला करके अपने अपने धाम को लौट जाते हैं परंतु हनुमान जी ही ऐसे देव हैं जो अब भी धरती पर विराजमान हैं और साधना से प्रसन्न होकर यदा कदा किसी न किसी रूप में प्रत्यक्ष दर्शन भी दिया करते हैं। हाँ यह अवश्य है कि सभी को प्रत्यक्ष दर्शन मिलना अत्यन्त दुर्लभ है लेकिन हनुमदुपासक के अनायास ही कार्य सिद्ध हो जाया करते हैं।हनुमान जी की दया से भूत-प्रेत बाधा, शत्रु द्वारा किये हुए अभिचार प्रयोग, टोना-टोटका, ग्रह बाधा, संकट, रोग बाधा का तुरंत निवारण होता है, पुत्र पौत्र सम्पत्ति, सिद्धि की प्राप्ति, निरोगता की प्राप्ति तथा श्री राम जी के चरणों अर्थात मोक्ष की भी प्राप्ति होती है।

कब करें हनुमदुपासना?

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी और चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को हनुमान जी की जयन्ती मनाई जाती है। इसके अलावा वैशाख कृष्ण दशमीज्येष्ठ कृष्ण दशमीहर मंगलवार तथा शनिवार को बजरंग बली की आराधना करना विशेष फलप्रद माना जाता है। जो प्रतिदिन हनुमान जी की उपासना करते हैं वे तो धन्य हैं।
वर्ष में दो बार श्री हनुमान जयन्ती मनाने का कारण - वा​ल्मीकि रामायण के अनुसार हनुमान जी का जन्म कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को, मंगलवार के दिन, स्वाति नक्षत्र में, मेष लग्न में हुआ था। अतः मुख्य रूप से श्री हनुमान जयन्ती तिथि वही है।
  लेकिन चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि को हनुमान जी का जन्मोत्सव मनाने के पीछे जो शास्त्रोक्त कथा जुड़ी है इसके अनुसार हनुमान जी बाल्यावस्था से ही तेजस्वी, बुद्धिमान और असीम शक्तियों के धनी थे। जब बालक हनुमान जी को जोर की भूख लगी तो उन्होंने आकाश स्थित सूर्य को ही फल समझ लिया और उसे खाने के लिए आकाश में उड़ चले। उसी दिन राहु ग्रह भी सूर्य को अपना ग्रास बनाने के लिए आया था। राहु सूर्य को ग्रास बनाने ही वाला था, लेकिन तभी हनुमान जी भी सूर्य को पकड़ने के लिए लपके और अपने हाथ से राहु को स्पर्श किया और सूर्य को निगल लिया। हनुमान जी के स्पर्श से ही राहु घबराकर भाग गया। राहु ने इंद्र से शिकायत की कि आपने मुझे अमावास्या के दिन सूर्य और चंद्र को ग्रास बनाकर क्षुधा शांत करने का साधन दिया था, लेकिन आज दूसरे राहु ने सूर्य का ग्रास कर लिया।
ये सुनकर देवराज क्रोधित हो गए और उन्होंने वज्र से हनुमान जी की ठोड़ी पर प्रहार किया। इससे उनकी ठोढ़ी टेढ़ी हो गई और वे अचेत होकर गिर पड़े। हनुमान जी पवन पुत्र हैं। अपने पुत्र का हाल देखकर पवनदेव भी क्रोधित हो गए और उन्होंंने वायु का प्रवाह रोक दिया। इसके ​बाद जन जीवन पर संकट आ गया। तब सभी लोगों ने ब्रह्मा जी से सहायता मांगी। ब्रह्मा जी सबको लेकर वायुदेव के पास गए। वायुदेव अचेत अवस्था में आ चुके अपने पुत्र को गोद में लिए दुखी होकर बैठे थे। तब सभी देवी-देवताओं ने हनुमान जी को दूसरा जीवन दिया और उन्हें अपनी शक्तियां दीं। इंद्र ने हनुमान जी के श​रीर को वज्र के समान कठोर होने का आशीर्वाद दिया। जिस दिन हनुमान जी को दूसरा जीवन मिला, उस दिन को चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि आ चुकी थी, इसलिए हर वर्ष चैत्र पूर्णिमा को भी हनुमान जयंती के तौर पर मनाया जाता है। वज्र का प्रहार हनुमान जी की ठोढ़ी पर हुआ था, ठोढ़ी को हनु भी कहा जाता है। तब से उन्हें हनुमान जी के नाम से जाना जाने लगा।
हनुमानजी की प्रसन्नता के लिये श्रावण के महीने में शनिवार को तेल से रुद्र मंत्रों(अथवा द्वादश नामों से) हनुमान जी का अभिषेक करना चाहिये तेल और सिन्दूर का लेप बनाकर उन्हें समर्पित करना चाहिये। जपाकुसुम की मालाओं से, आक(या धतूर)-की मालाओं से, मन्दारपुष्प की मालाओं से, बटक (बड़े) के नैवेद्य से तथा अन्य उपचारों से भी यथाविधि अपने वित्त-सामर्थ्य के अनुसार श्रद्धा-भक्ति से युक्त होकर अंजनीपुत्र हनुमान जी की पूजा करनी चाहिये।
देवताओं की असीम कृपा पाने के लिए मन्त्र उपासना का अपना एक विशिष्ट महत्व है। आज के समय में हनुमान जी की मन्त्र दीक्षा प्राप्त होना दुर्लभ ही है और समय साध्य भी है लेकिन स्तोत्रों का सहारा लेकर हम घर बैठे हनुमान जी की बड़ी सुगमता से उपासना कर सकते हैं। इसमें हनुमान जी का 108 नामों द्वारा पूजन भी किया जाता है। स्तोत्रं कस्य न तुष्टये? स्तोत्र पाठ उच्च कोटि की साधना है, यह बहुत प्रभावी होती है इसमें संशय नहीं है।


हनुमानजी की पत्नी सुवर्चला 
प्रस्तुत उपासना में 18 उपचार की पूजा में हनुमान जी की पत्नी सुवर्चला का वर्णन हुआ है।
तेलंगाना में, हैदराबाद से 220 कि.मी दूर स्थित खम्मम जिले में हनुमानजी का प्राचीन मंदिर है। यहां हनुमानजी और उनकी पत्नी सुवर्चला की प्रतिमा विराजमान है। 
पाराशर संहिता में वर्णन है कि हनुमानजी ने सूर्यदेव का शिष्यत्व ग्रहण किया था। गुरु सूर्यदेव के पास नौ दिव्य विद्याएं थीं। सूर्यदेव ने इन 9 में से 5 विद्याओं का ज्ञान तो हनुमानजी को दे दिया लेकिन शेष 4 दिव्य विद्याओं का ज्ञान सिर्फ उन्हीं शिष्यों को दिया जा सकता था जो कि विवाहित हों। हनुमानजी तो बाल ब्रह्मचारी थे, इस कारण सूर्य देव उन्हें शेष चार विद्याओं का ज्ञान देने में असमर्थ हो गए। इस समस्या के निराकरण के लिए सूर्य देव ने हनुमानजी को विवाह करने के लिए कहा। पहले तो हनुमानजी विवाह के लिए तैयार नहीं हुए, लेकिन उन्हें शेष 4 विद्याओं का ज्ञान पाना ही था इसलिए अंतत: हनुमानजी ने विवाह के लिए हां कर दी। सूर्य देव के तेज से एक कन्‍या उत्पन्न हुई जिसका नाम सुवर्चला हुआ। सूर्य देव ने हनुमान जी को सुवर्चला से शादी करने को कहा। सूर्य देव ने हनुमानजी से यह भी कहा था कि सुवर्चला से विवाह के बाद भी तुम सदैव बाल ब्रह्मचारी ही रहोगे, क्योंकि विवाह के बाद सुवर्चला पुन: तपस्या में लीन हो जाएगी। हनुमान जी ने सदा अखंड ब्रह्मचर्य का ही निर्वाह किया और  हमेशा ब्रह्मचारी ही कहलाए।
तेलंगाना स्थित मंदिर में हर साल ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की दशमी को हनुमान जी का सुवर्चला के साथ विवाह समारोह आयोजित किया जाता है। इसके लिए यहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। मान्यता है कि जो भी विवाहित दम्पत्ति यहां दर्शन करने आते हैं उनका वैवाहिक जीवन बहुत सुखमय रहता है।

सबसे पहले तो हनुमान जी की आराधना में लगे हुए हनुमदुपासक को नित्य प्रातः उठकर हाथ मुंह धोकर हनुमान जी के आगे इस स्तोत्र को पढ़ना चाहिए-

श्री हनुमत् सुप्रभात स्तोत्रम् 

अमल-कनक-वर्णं प्रज्वलित्पावकाक्षं सरसिज-निभ-वक्त्रं सर्वदा सुप्रसन्नम् रणरचन-सुगात्रं कुण्डलालङ्कृताङ्गं परजय-करवालं रामदूतं नमामि॥
(पवित्र सोने के से रंग वाले, प्रज्वलित अग्नि सदृश नेत्रों वाले, कमल सदृश मुख वाले, सदा सुप्रसन्न रहने वाले, युद्ध हेतु कुशल सुन्दर देह वाले, कुंडल से अलंकृत, दूसरों पर विजयकारी तीखे नाखून युक्त श्रीरामदूत हनुमान जी को मैं नमस्कार करता हूँ)

श्री गणेश विष्णु शिव दुर्गा सूर्येभ्यो नमः। श्री गुरुभ्यो नमः। श्रीसीतारामचन्द्राभ्यां नमः। श्रीहनुमते नमः।

श्रीरामचन्द्र-चरणाम्बुज-मत्त-भृङ्ग श्रीराममन्त्र-जपशील भवाब्धिपोत।
श्रीजानकी-हृदयताप-निवारमूर्ते 
श्री वीर धीर हनुमन् तव सुप्रभातम्॥१॥

श्रीराम-दिव्य-चरितामृतास्वाद-लोल श्रीराम-किङ्कर गुणाकर दीनबन्धो। श्रीराम-भक्त जगदेक-महोग्र-शौर्य 
श्री वीर धीर हनुमन् तव सुप्रभातम्॥२॥

 सुग्रीव-मित्र कपि-शेखर पुण्यमूर्ते 
सुग्रीव-राघव-समागम-दिव्यकीर्ते। 
सुग्रीव-मन्त्रिवर शूर-कुलाग्र-गण्य 
श्री वीर धीर हनुमन् तव सुप्रभातम्॥३॥
 
 भक्तार्ति-भञ्जन दयाकर योगि-वन्द्य
श्रीकेसरी-प्रिय-तनुज सुवर्ण-देह। श्रीभास्करात्मज-मनोऽम्बुज-चञ्चरीक 
श्री वीर धीर हनुमन् तव सुप्रभातम्॥४॥

 श्रीमारुत-प्रियतनुज महा-बलाढ्य मैनाक-वन्दित-पदाम्बुज दण्डितारिन्।
श्री उष्ट्रवाहन सुलक्षण-लक्षिताङ्ग श्री वीर धीर हनुमन् तव सुप्रभातम्॥५॥
   
   पञ्चाननस्य भवभीति-हरस्य रामपादाब्ज-सेवन-परस्य परात्परस्य।
   श्री अञ्जना-प्रियसुतस्य सुविग्रहस्य श्री वीर धीर हनुमन् तव सुप्रभातम्॥६॥
   
   गन्धर्व-यक्ष-भुजगाधिप-किन्नराश्च आदित्य-विश्व-वसु-रुद्र-सुरर्षि-सङ्घाः।
   सङ्कीर्तयन्ति तव दिव्य-सुनाम-पङ्क्तिं श्री वीर धीर हनुमन् तव सुप्रभातम्॥७॥
   
 श्रीगौतम-च्यवन-तुम्बुरु-नारदात्रि मैत्रेय-व्यास-जनकादि - महर्षिसङ्घाः।
 गायन्ति हर्ष-भरितास्तव दिव्य-कीर्तिं श्री वीर धीर हनुमन् तव सुप्रभातम्॥८॥
 
 भृङ्गावली च मकरन्द-रसं पिबेद्यं कूजन्त्युदार-मधुरं चरणायुधाश्च।
 देवालये घन-गभीर-सुशङ्खघोषः श्री वीर धीर हनुमन् तव सुप्रभातम्॥९॥
 
पम्पा-सरोवर-सुपुण्य-पवित्र-तीर्थमादाय हेम-कलशैश्च महर्षि-सङ्घाः।
तिष्ठन्ति त्वच्चरण-पङ्कज-सेवनार्थं श्री वीर धीर हनुमन् तव सुप्रभातम्॥१०॥

श्रीसूर्यपुत्र प्रिय नाथ मनोज्ञमूर्ते वातात्म-जात कपिवीर सुपिङ्गलाक्ष।
सञ्जीवनाय रघुवीर-सुभक्तवर्य श्री वीर धीर हनुमन् तव सुप्रभातम्॥११॥

अब हनुमान जी की स्तोत्रात्मक उपासना  की विधि दी जाती है इसे नहा धोकर पूजा स्थल को भी साफ करके शुरु करना चाहिए।

श्रीहनुमानजी की स्तोत्रात्मक साधना

सामग्री - ⭐अपने सामने श्री हनुमान जी का चित्र अथवा यन्त्र रखें, कलर प्रिन्ट निकलवाकर भी रख सकते हैं। इसके अलावा श्री हनुमान जी की मूर्ति या शिवलिंग/शालग्राम पर भी यह पूजन किया जा सकता है।

⭐श्रीसीता जी व श्रीराम की मूर्ति सामने रखें न हो तो  विष्णुजी व लक्ष्मीजी के मूर्ति/चित्र रखे, नहीं हो तो श्रीराम दरबार का चित्र रखें  यह भी नहीं हो तो एक पात्र में सीता राम लिख दें उसकी ही पूजा करे।

⭐साथ में जल युक्त पात्र, आचमनी, रोली,
⭐चंदन - इसमें कपूर का चूर्ण डालकर घोलें, लाल कुमकुम (रोली) तथा भगवा सिन्दूर,
सिन्दूर-रोली से लाल हुए अक्षत, 
तुलसी पत्र, तुलसीदल व पर्याप्त फूल एकत्रित कर लें- लाल रंग के फूल अवश्य लें,
 ⭐नैवेद्य- पंचामृत-दूध दही घी चीनी शहद मिला लें। मीठी वस्तु- जलेबी या बूंदी या गुड़ व भुना चना, गुड़+नारियल या लड्डू। फल - केला या सेब या संतरा आदि। जलेबी या चूरमा या लड्डू हर मंगलवार को चढ़ाएं।
⭐दीपक (सरसों तेल या तिल तेल या घी का ), धूप।
पुष्प के अभाव में चन्दन मिश्रित अक्षत चढ़ाते हैं।
विशेष (18 उपचार) पूजा के लिए सामग्री (वैकल्पिक) -   लौंग इलायची युक्त पान, आभूषण-माला, पीला वस्त्र, मधुपर्क - दही घी शहद का मिश्रण,  कपूर आरती के लिए। बन सके तो लाल धागे से ११ तुलसी के पत्तों में राम लिखकर एक माला बना लें व चढ़ावें अथवा एक पत्र ही सिर पर चढ़ा दें।

संकल्प

श्रीगणपतिर्जयति विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः ओऽम् तत्सदद्य श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य श्रीब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्रीश्वेतवाराह-कल्पे वैवस्वत-मन्वन्तरे, अष्टाविंशति-तमे कलियुगे, कलि-प्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे भूप्रदेशे------प्रदेशे ----- नगरे (......ग्रामे), ..... नाम्नि सम्वत्सरे, सूर्य (उत्तरायणे/दक्षिणायने)-----ऋतौ,------मासे --------पक्षे , ----तिथौ, -----वासरे ------गोत्रोत्पन्नो ------(नाम) अहं अद्य श्रीपवनसुत श्रीरामदूत श्री हनुमान प्रीत्यर्थं श्री हनुमदष्टोत्तर शत नाम मन्त्रैः यथाशक्ति यजनं कृत्वा नानाविध स्तोत्रैः स्तुतिं करिष्ये।

ध्यान
अतुलित-बल-धामं हेम-शैलाभ-देहं 
दनुज-वन-कृशानुं ज्ञानिना-मग्र-गण्यम्‌। 
सकल-गुण-निधानं वानराणामधीशं 
रघुपति-प्रिय-भक्तं वातजातं नमामि।
अतुल्य बल के धाम, सोने के सुमेरु पर्वत के समान कान्ति युक्त शरीर वाले, दैत्य रूपी वन को विध्वंस करने के लिये आग के समान, ज्ञानियों में अग्रगण्य, सम्पूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी और श्री रघुनाथ जी के प्रिय भक्त तथा पवनपुत्र श्री हनुमान्‌ जी को मैं प्रणाम करता हूं।
मानस पूजा -  अगर 18 उपचार की पूजा नहीं कर रहे हैं तो इन 5 उपचारों में ही चन्दन-रोली-भगवा सिन्दूर, फूल आदि अर्पित कर दें -
चन्दन • लं पृथिवी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीहनुमत्पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (कनिष्ठिका अंगुली से अंगूठे को मिलाकर अधोमुख(नीची) करके भगवान को दिखाए, यह गन्ध मुद्रा है)

फूल • हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीहनुमत्पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (अधोमुख तर्जनी व अंगूठा मिलाकर बनी पुष्प मुद्रा दिखाए)

धूप • यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्रीहनुमत्पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्वमुख(ऊपर को) तर्जनी व अंगूठे को मिलाकर दिखाए)

दीप • रं वह्नि-तत्त्वात्मकं दीपं श्रीहनुमत्पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्व मुख मध्यमा व अंगूठे को दिखाए)

नैवेद्य • वं अमृत-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्रीहनुमत्पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्व मुख अनामिका व अंगूठे को दिखाए)

• सौं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलादि सर्वोपचाराणि मनसा परिकल्प्य श्रीहनुमत्पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(सभी अंगुलियों को मिलाकर ऊर्ध्वमुखी करते हुए दिखाये)

महागणपति पूजन- पुष्प या अक्षत अर्पित करे-
• ऐं आत्म तत्व व्यापकाय महा-गणपतये श्री पादुकां पूजयामि नमः।
• ह्रीं विद्या तत्व तत्व व्यापकाय महा-गणपतये श्री पादुकां पूजयामि नमः।
• क्लीं शिव तत्व व्यापकाय महा-गणपतये श्री पादुकां पूजयामि नमः।

गुरु पूजा - अपने गुरू का पूजन करे गुरु न हों तो पुष्प शिव जी को चढ़ा दे - ह्रीं दक्षिणामूर्तये तुभ्यं वटमूल-निवासिने ध्यानैक निरतांगाय नमः रुद्राय शम्भवे, श्री दक्षिणामूर्ति गुरवे नमः श्रीगुरुपादुकां पूजयामि नमः 
गुरु को नमस्कार करे-
• गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः,
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।
• अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया, चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः।
श्री सीता-राम पूजा -
श्रीराघवं दश-रथात्मज-मप्रमेयं सीतापतिं रघुकुलान्वय-रत्न-दीपम्।
आजानु-बाहुमरविन्द-दलायताक्षं रामं निशाचरविनाश-करं नमामि॥
(श्रीरघुनन्दन, दशरथजी के पुत्र, अप्रमेय, रघुकुल की वंशपरम्परा में रत्नदीपक के समान, आजानुबाहु, कमलपत्र के समान विशाल नेत्रों वाले तथा राक्षसों के विनाशक सीतापति श्रीराम को मैं नमस्कार करता हूँ)
श्रीरामाय नमः ध्यायामि श्रीपादुकां पूजयामि।
कहकर श्रीराम जी को तिलक लगाकर तुलसी व फूल चढ़ाये।

वामाङ्गे रघुनायक-स्य रुचिरे या संस्थिता शोभना या विप्राधिपयान-रम्य-नयना या विप्रपालानना। विद्युत्पुञ्ज-विराजमान-वसना भक्तार्ति-संखण्डना श्रीमद्राघव-पादपद्म-युगल-न्यस्तेक्षणा सावतु॥
(जो सुन्दर सिंहासन पर श्रीरामजी के वामांग में विराजित हैं, जो मृग नेत्र समान  सुन्दर नेत्र वाली, चन्द्रमा के तुल्य मुख वाली, बिजली के समूह की तरह दमकते वस्त्र पहनने वाली, भक्तों की पीड़ा दूर करने वाली हैं, जिनके नेत्र श्रीरामचन्द्रजी के युगल चरण-कमलों में लगे हैं,वे सीताजी हमारी रक्षा करें ।)
श्री सीता देव्यै नमः ध्यायामि श्रीपादुकां पूजयामि।
से श्रीसीता जी को तिलक लगाकर फूल चढ़ाये।
श्रीलक्ष्मणाय नमः पूजयामि। श्रीभरताय नमः पूजयामि। श्रीशत्रुघ्नाय नमः पूजयामि
से श्रीलक्ष्मण-भरत-शत्रुघ्न जी की फूल चढ़ाकर पूजा करे। कुछ देर श्रीराम जय राम जय जय राम का जप करें।

अष्टादशोपचार श्रीहनुमत् - पूजनम्

यह पूजा प्रतिदिन करना आवश्यक नहीं यह 18 उपचार वाली पूजा होली दीपावली जैसे विशेष पर्व, हनुमान जयन्ती या पूर्णिमा को, मंगल या शनिवार को करे।प्रतिदिन की पूजा उपरोक्त पंच उपचार वाली करे।

जो सामग्री नहीं मिल पाए उसकी जगह अक्षत चढ़ाते हुए मनसा परिकल्प्य समर्पयामि नमः बोले।

ध्यानम्
फूल लेकर ध्यान करके चढा दें-
ध्यायेहं कपिश्रेष्ठं चतुरावरणान्वितम्, वामभाग-स्थितां पत्नीं सूर्यपुत्रीं सुवर्चलाम्।
पश्यन्तं स्निग्धया दृष्ट्या स्मितयुक्त-मुखाम्बुजाम्॥
छत्रचामर-संयुक्तं विनताद्यैस्सुसेवितम्। युक्तहार गणोपेतं तत्र कुण्डल-भूषितम्॥
ग्रैवेय-भूषित ग्रीवं कनकाङ्गद-धारिणम्। नानामणि-समुत्कीर्णं किरीटोज्ज्वल-शेखरम्॥
मेखलादाम-संवीतं मणि-नूपुर-शोभितम्। रत्न-कङ्कण-विद्योतं पाणि रक्ताम्बुज-द्वयम्॥
क्वथित स्वर्ण-वर्णाङ्गमुष्ट्र-ध्वज-समन्वितम्। पद्मासने समासीनं पीताम्बर-समन्वितम्॥
चतुर्भुज-धरं शान्तं सर्व-व्यापिन-मीश्वरम्। सर्वदेव परीवारं सर्वाभीष्ट-फलप्रदम्॥ श्रीहनुमते नमः ध्यायामि।

1) आवाहन - आगच्छ हनुमद्देव त्वं सुवर्चलया सह। पूजा-समाप्ति-पर्यन्तं भव सन्निहितो मुदा॥

श्रीसीतासमेतश्रीराम-पादसेवा-धुरन्धराय हनुमते नमः - आवाहयामि।अक्षत चढ़ा दे।

(हनुमानजी की प्रतिष्ठित मूर्ति हो तो यह श्लोक नहीं कहें केवल श्रीहनुमते नमः बोलकर अक्षत चढ़ा दे।) 

 
2) आसन - भीमाग्रज महाप्राज्ञ त्वं ममाभिमुखो भव।श्रीरामसेवक श्रीमन् प्रसीद जगतां पते॥

हे स्वामिन्, स्थिरो भव, वरदो भव, सुमुखो भव, सुप्रसन्नो भव। स्थिरासनं कुरु। 

देव देव जगन्नाथ केसरी- प्रियनन्दन।

रत्नसिंहासनं तुभ्यं ददामि हनुमत्प्रभो॥

श्री सीता-समेत-श्रीराम-पादसेवा-धुरन्धराय हनुमते नमः। नवरत्न-खचित-स्वर्णसिंहासनं समर्पयामि॥आसनार्थ फूल चढ़ा दे।


3) पाद्य - योगि-ध्येयाङ्घ्रि-पद्माय जगतां पतये नमः। पाद्यं मयार्पितं देव गृहाण पुरुषोत्तम॥ श्रीसीता-समेत-श्रीराम-पादसेवा-धुरन्धराय हनुमते नमः।पादयोः पाद्यं समर्पयामि॥आचमनी से चरणों में जल दे।


4) अर्घ्य - लक्ष्मणप्राण-संरक्ष सीताशोक-विनाशन। गृहाणार्घ्यं मया दत्तं अञ्जना-प्रियनन्दन। श्रीसीता-समेत-श्रीराम-पादसेवा-धुरन्धराय हनुमते नमः।हस्तयोः अर्घ्यं समर्पयामि॥ अर्घ्य चढ़ा दे।
  
5)आचमनीय- वालाग्र-सेतुबन्धाय शतानन-वधाय च। तुभ्यमाचमनं दत्तं प्रति-गृह्णीष्व मारुते॥ श्री सीता-समेत-श्रीराम-पादसेवा-धुरन्धराय हनुमते नमः।मुखे आचमनीयं समर्पयामि॥आचमन के लिए जल दे।


6) मधुपर्क -   अर्जुनध्वज-संवास दशानन-मदापह। मधुपर्कं प्रदास्यामि हनुमन् प्रतिगृह्यताम्॥ श्री सीता-समेत-श्रीराम-पादसेवा-धुरन्धराय हनुमते नमः।मधुपर्कं समर्पयामि॥
  
7)शुद्धोदकस्नानंगङ्गादिसर्वतीर्थेभ्यः समानीतैर्नवोदकैः। भवन्तं स्नपयिष्यामि कपिनायक गृह्यताम्॥श्रीसीतासमेत-श्रीराम-पादसेवा-धुरन्धराय हनुमते नमः।शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि॥ स्नान के लिए जल दे।


8)पीला वस्त्र-पीताम्बरमिदं तुभ्यं तप्त-हाटक-सन्निभम्। दास्यामि वानरश्रेष्ठ सङ्गृहाण नमोऽस्तु ते॥ उत्तरीयं तु दास्यामि संसारोत्तार-कारण।गृहाण च मया प्रीत्या दत्तं धत्स्व यथाविधि॥श्री सीता-समेत-श्रीराम-पादसेवा-धुरन्धराय हनुमते नमः।वस्त्रं समर्पयामि।


9) आभूषण - भूषणानि महार्हाणि किरीट-प्रमुखान्यहम्।तुभ्यं दास्यामि सर्वेश गृहाण कपिनायक। श्री सीता-समेत-श्रीराम-पादसेवा-धुरन्धराय हनुमते नमः।आभरणानि समर्पयामि॥
  
10)चन्दन - स्तूरी कुङ्कुमामिश्रं कर्पूरागरु वासितम्।श्रीचन्दनं तु दास्यामि गृह्यतां हनुमत्प्रभो॥ श्रीसीता-समेत-श्रीराम-पादसेवा-धुरन्धराय हनुमते नमः।गन्धं समर्पयामि॥पहले चन्दन लगाकर रोली लगाए तथा भगवा सिन्दूर भी चढ़ा दे।

11) लाल फूल व तुलसीदल - सुगन्धीनि सुरूपाणि वन्यानि विविधानि च।चम्पकादीनि पुष्पाणि कमलान्युत्पलानि च॥ तुलसीदल-बिल्वानि मनसा कल्पितानि च। गृहाण हनुमद्देव प्रणतोऽस्मि पदाम्बुजे॥श्रीसीता-समेत-श्रीराम-पादसेवा-धुरन्धराय हनुमते नमः। पुष्पाणि समर्पयामि॥ तुलसीदल(तथा बेलपत्र) सहित फूल चढ़ाए।

12) अक्षत चढ़ा दें - शालीयानक्षतान् रम्यान् पद्मराग-समप्रभान्। अखण्डान् खण्डित-ध्वान्त स्वीकुरुष्व दयानिधे॥ श्री सीता-समेत-श्रीराम-पादसेवा-धुरन्धराय हनुमते नमः। अक्षतान्समर्पयामि॥

*  हनुमान जी की अङ्गपूजा- श्री हनुमान जी की मूर्ति के अंग में अक्षत आदि से पूजे - 

  • हनुमानजी के पैरों की पूजा करे - श्री हनुमते नमः, मारुतये नमः।पादौ पूजयामि।
  • टखनों की पूजा करेसुग्रीवसखाय नमः।गुल्फौ पूजयामि।
  • जंघा की पूजा करे - अङ्गदमित्राय नमः।जङ्घौ पूजयामि।
  • जंघा की पूजा करे रामदासाय नमः।ऊरू पूजयामि।
  • कमर की पूजा करे - अक्षघ्नाय नमः।कटिं पूजयामि।
  • बालों की पूजा करेलङ्का-दहनाय नमः।वालं पूजयामि।
  • कंधों  की पूजा करेसञ्जीवन-नगाहर्त्रे नमः।स्कन्धौ पूजयामि।
  • छाती की पूजा करे - सौमित्रि-प्राणदात्रे नमः।वक्षःस्थलं पूजयामि।
  • गले की पूजा करेकुण्ठित-दशकण्ठाय नमः।कण्ठं पूजयामि।
  • हाथों की पूजा करे-रामाभिषेक-कारिणे नमः।हस्तौ पूजयामि।
  • मुंह - मन्त्ररचित-रामायणाय नमः।वक्त्रं पूजयामि।
  • होंठ - प्रसन्न-वदनाय नमः।वदनं पूजयामि।
  • आँखें - पिङ्गल-नेत्राय नमः।नेत्रौ पूजयामि।
  • कान - श्रुति-परायणाय नमः।श्रोत्रौ पूजयामि।
  • माथा  - ऊर्ध्वपुण्ड्र-धारिणे नमः।ललाटं पूजयामि।
  • सिर - मणिकण्ठ-मालिकाय नमः।शिरः पूजयामि।
  • पूरे शरीर की पूजा करेसर्वाभीष्ट-प्रदाय नमः।सर्वाण्यङ्गानि पूजयामि।
  
  
13)धूप - कपिलाघृत-संयुक्तः कृष्णागरु-समुद्भवः।मया समर्पितो धूपः हनुमन्! प्रतिगृह्यताम्॥  श्रीसीतासमेतश्रीराम-पादसेवा-धुरन्धराय हनुमते नमः धूपमाघ्रापयामि।धूप दिखाए

 
14)दीप - निरस्ताज्ञान तिमिर तेजोराशे! जगत्पते! दीपं गृहाण देवेश! गोघृताक्तं दशान्वितम्॥श्रीसीतासमेतश्रीराम-पाद-सेवा-धुरन्धराय हनुमते नमः  दीपं दर्शयामि।दीप दिखाए

 
   धूपदीपानन्तरं आचमनीयं समर्पयामि।
  
15) नैवेद्य चढा दें - इदं दिव्यान्नममृतं सूपशाक-फलान्वितम्।साज्यं सदधि सक्षीरं शर्करा-मधु-संयुतम्॥ श्रीसीतासमेत-श्रीराम-पाद-सेवा-धुरन्धराय हनुमते नमः, नैवेद्यं समर्पयामि।
  
समर्पयामि पानीयं मध्येमध्ये सुधोपमम्।सच्चिदानन्दरूपाय सृष्टिस्थित्यन्तहेतवे!॥ श्रीसीतासमेतश्रीरामपाद-सेवा-धुरन्धराय हनुमते नमः, मध्ये मध्ये पानीयं समर्पयामि। उत्तरापोऽशनं समर्पयामि।हस्तौ प्रक्षालयामि, पादौ प्रक्षालयामि।जल चढ़ाए

16) सुपारी सहित पान चढा दे  - पूगीफलै-स्समायुक्तं कर्पूरादि-समन्वितम्। स्वर्ण -वर्ण-दलोपेतं ताम्बूलं गृह्यतां हरे॥श्रीसीता-समेत-श्रीराम-पादसेवा-धुरन्धराय हनुमते नमः तांबूलम् समर्पयामि
 
ताम्बूलान्ते  शुद्धाचमनीयं समर्पयामि।

 
17) कपूर/ घी बत्ती से आरती करे - नीराजनमिदं दिव्यं मङ्गलार्थं कपि प्रभो!।मया समर्पितं तात! गृहाण वरदो भव॥श्रीसीतासमेत-श्रीराम-पादसेवाधुरन्धराय हनुमते नमः, नीराजनं समर्पयामि।
   आरती के बाद आचमन -
  नीराजनानन्तरं आचमनीयं समर्पयामि।
 
तुलसी दल व  पुष्प चढा दे -

मन्दार-पारिजातादि पुष्पाञ्जलिमिमं प्रभो!।स्वर्ण-पुष्प-समाकीर्णमुष्ट्र-ध्वज! गृहाण वै॥श्रीसीतासमेतश्रीराम-पादसेवा-धुरन्धराय हनुमते नमः सुवर्ण-दिव्य-मन्त्रपुष्पं समर्पयामि।
  
18) प्रदक्षिणा व सर्वांग नमस्कार करे - साष्टाङ्गान्पञ्च-सङ्ख्यया दास्यामि कपिनाथाय गृहाणाभीष्ट-दायक॥ श्रीसीतासमेतश्रीराम-पाद-सेवा-धुरन्धराय हनुमते नमः, प्रदक्षिण-नमस्कारान् समर्पयामि।
  
फूल लेकर हाथ जोड़कर प्रार्थना करे - देवदेव! जगन्नाथ! पुराण-पुरुषोत्तम! अनेन पूजाविधिना सुप्रीतो भव सर्वदा॥सुवर्चला-समेतस्त्वं चतुरावरणान्वितः।हंस-तूलिकयोपेते मम हृत्पङ्कजे वस!

फूल चढ़ा दे - सर्वं श्रीहनुमदर्पणमस्तु 


श्री हनुमान शतार्चन - एक-एक नाम मन्त्र पढ़े और श्री हनुमान जी  विग्रह पर लाल पुष्प - तुलसी -  सिन्दूरयुक्त अक्षत चढ़ाते जाए -
  1. आञ्जनेयाय नमः। 
  2. महावीराय नमः।
  3. हनूमते नमः।
  4. मारुतात्मजाय नमः।
  5. तत्त्वज्ञान-प्रदाकाय नमः। 
  6. सीतामुद्रा-प्रदायकाय नमः।
  7. अशोक-वनिकाच्छेत्रे नमः।
  8. सर्व-माया-विभञ्जनाय नमः।
  9. सर्वबन्ध-विमोक्त्रे नमः।
  10. रक्षोविध्वंस-कारकाय नमः।
  11. परविद्या-परिहारकाय नमः।
  12. परशौर्य-विनाशनाय नमः।
  13. परमन्त्र-निराकर्त्रे नमः।
  14. परयन्त्र-प्रभेदकाय नमः।
  15. सर्वग्रह-विनाशिने नमः। 
  16. भीमसेन-सहायकृते नमः। 
  17. सर्वदुःखहराय नमः। 
  18. सर्वलोकचारिणे नमः। 
  19. मनोजवाय नमः। 
  20. पारिजातद्रु-मूलस्थाय नमः।
  21. सर्व-मन्त्र-स्वरूपवते नमः।
  22. सर्व-तन्त्र-स्वरूपिणे नमः।
  23. सर्व-यन्त्रात्मकाय नमः।
  24. कपीश्वराय नमः। 
  25. महाकायाय नमः।
  26. सर्वरोगहराय नमः। 
  27. प्रभवे नमः।
  28. बल-सिद्धिकराय नमः।
  29. सर्वविद्या-सम्पत्प्रदायकाय नमः।
  30. कपिसेना-नायकाय नमः।
  31. भविष्यच्चतुराननाय नमः। 
  32. कुमार-ब्रह्मचारिणे नमः। 
  33. रत्न-कुण्डल-दीप्तिमते नमः। 
  34. सञ्चलद्वाल-सन्नद्ध-लम्बमानाय नमः।शिखोज्ज्वलाय नमः। सञ्चलद्बाल-सन्नद्ध-लम्बमान-शिखोज्वलाय नमः। 
  35. गन्धर्व-विद्या-तत्वज्ञाय नमः। 
  36. महाबल-पराक्रमाय नमः।
  37. कारागृह-विमोक्त्रे नमः।
  38. श्रृङ्खला-बन्ध-मोचकाय नमः।
  39. सागरोत्तारकाय नमः।
  40. प्राज्ञाय नमः।
  41. राम-दूताय नमः।
  42. प्रतापवते नमः।
  43. वानराय नमः।
  44. केसरीसुताय नमः।
  45.  सीता-शोक-निवारणाय नमः। 
  46. अञ्जना-गर्भ-सम्म्भूताय नमः।
  47.   बालार्क-सदृशाननाय नमः।
  48.    विभीषण-प्रियकराय नमः। 
  49.    दशग्रीव-कुलान्तकाय नमः।
  50. लक्ष्मण-प्राणदात्रे नमः।
  51. वज्रकायाय नमः।
  52. महाद्युतये नमः।
  53. चिर-जीविने नमः।
  54. राम-भक्ताय नमः। 
  55. दैत्यकार्य-विघातकाय नमः।  
  56. अक्ष-हन्त्रे नमः।  
  57. काञ्चनाभाय नमः।  
  58. पञ्च-वक्त्राय नमः।  
  59. महा-तपसे नमः। 
  60. लंकिनीभंजनाय नमः।
  61. श्रीमते नमः।
  62. सिंहिका-प्राण-भञ्जनाय नमः। 
  63. गन्धमादन-शैलस्थाय नमः। 
  64. लङ्कापुर विदाहकाय नमः।
  65.  सुग्रीव सचिवाय नमः।
  66. धीराय नमः।
  67. शूराय नमः।
  68. दैत्यकुलान्तकाय नमः।
  69. सुरार्चिताय नमः।
  70. महातेजसे नमः।
  71. रामचूडामणि-प्रदायकाय नमः।
  72. कामरूपिणे नमः।
  73. पिङ्गलाक्षाय नमः।
  74. वार्धिमैनाक पूजिताय नमः।
  75. कवळीकृत-मार्तण्ड-मण्डलाय नमः।
  76. विजितेन्द्रियाय नमः।
  77. रामसुग्रीव-सन्धात्रे नमः।
  78. महारावण-मर्दनाय नमः।
  79. स्फटिकाभाय नमः।
  80. वागधीशाय नमः।
  81. नव-व्याकृति-पण्डिताय नमः। 
  82. चतुर्बाहवे नमः।
  83. दीनबन्धवे नमः। 
  84. महात्मने नमः। मायात्मने नमः।
  85. भक्त-वत्सलाय नमः।
  86. संजीवन-नगाहर्त्रे नमः।
  87. शुचये नमः।
  88. वाग्मिने नमः।
  89. दृढ़व्रताय नमः।
  90. कालनेमि-प्रमथनाय नमः।
  91. हरिमर्कट-मर्कटाय नमः।
  92.  दान्ताय नमः। 
  93.   शान्ताय नमः।
  94. प्रसन्नात्मने नमः। 
  95. शतकण्ठ-मदापहर्त्रे नमः। 
  96. योगिने नमः।
  97.  रामकथा-लोलाय नमः।
  98.   सीतान्वेषण-पण्डिताय नमः। 
  99.   वज्र-दंष्ट्राय नमः।
  100.   वज्र-नखाय नमः। 
  101.   रुद्रवीर्य-समुद्भवाय नमः। 
  102. इन्द्रजित्-प्रहितामोघ-ब्रह्मास्त्र-विनिवारकाय नमः।
  103.   पार्थ-ध्वजाग्र-संवासिने नमः। 
  104.   शरपञ्जर-भेदकाय नमः। 
  105.   दशबाहवे नमः
  106.   लोकपूज्याय नमः।
  107.   जाम्बवत्-प्रीति-वर्धनाय नमः। 
  108. सीतासमेत-श्रीराम-पादसेवा-धुरन्धराय नमः।


फूल अक्षत लेकर मूल स्तोत्र का पाठ करे -


आञ्जनेयो महावीरो हनूमान्मारुतात्मजः। तत्वज्ञान-प्रदायकः सीता-मुद्राप्रदायकः॥१॥

अशोक-वनिकाच्छेत्ता सर्व-माया-विभञ्जनः।
 सर्वबन्ध-विमोक्ता च रक्षोविध्वंस-कारकः॥२॥
परविद्या-परिहारः परशौर्य-विनाशनः। परमन्त्र-निराकर्ता परयन्त्र-प्रभेदकः॥३॥
सर्वग्रह-विनाशी च भीमसेन-सहायकृत्। सर्वदुःख-हरः सर्व-लोकचारी मनोजवः॥४॥
पारिजातद्रु-मूलस्थः सर्वमन्त्र-स्वरूपवान्। सर्वतन्त्र-स्वरूपी च सर्व-यन्त्रात्मकश्च वै॥५॥
कपीश्वरो महाकायः सर्वरोगहरः प्रभुः। बलसि-द्धिकरः सर्वविद्या-सम्पत्प्रदायकः॥६॥
कपिसेना-नायकश्च भविष्यच्चतुराननः। कुमार-ब्रह्मचारी च रत्नकुण्डल-दीप्तिमान्॥७॥
सञ्चलद्बाल-सन्नद्ध-लम्बमान-शिखोज्ज्वलः।
गन्धर्व-विद्या-तत्त्वज्ञो महा-बल-पराक्रमः॥८॥
कारागृह-विमोक्ता च श्रृङ्खला-बन्धमोचकः।
सागरोत्तारकः प्राज्ञः रामदूतः प्रतापवान्॥९॥
वानरः केसरिसुतः सीताशोक-निवारणः। अञ्जनागर्भ-सम्भूतो बालार्क-सदृशाननः॥१०॥
विभीषण-प्रियकरो दशग्रीव-कुलान्तकः। लक्ष्मण-प्राणदाता च वज्रकायो महाद्युतिः॥११॥
चिरजीवी रामभक्तो दैत्यकार्य-विघातकः। अक्षहन्ता काञ्चनाभः पञ्चवक्त्रो महातपाः॥१२॥
लङ्किनी-भञ्जनः श्रीमान् सिंहिका-प्राणभञ्जनः।
गन्धमादन-शैलस्थः लङ्कापुर-विदाहकः॥१३॥
सुग्रीव-सचिवो धीरः शूरो दैत्य-कुलान्तकः। सुरार्चितो महातेजा रामचूडा-मणिप्रदः॥१४॥
कामरूपी पिङ्गलाक्षो वार्धिमैनाक-पूजितः। कवलीकृत-मार्तण्ड-मण्डलो विजितेन्द्रियः॥१५॥
राम-सुग्रीव-सन्धाता महारावण-मर्दनः। स्फटिकाभो वागधीशो नवव्याकृति-पण्डितः॥१६॥
चतुर्बाहुर्दीन-बन्धुर्महात्मा भक्त-वत्सलः। सञ्जीवन-नगाहर्ता शुचिर्वाग्मी दृढव्रतः॥१७॥
कालनेमि-प्रमथनो हरिमर्कट-मर्कटः।
दान्तः शान्तः प्रसन्नात्मा शतकण्ठ-मदापहृत्॥१८॥
योगी रामकथा-लोलः सीतान्वेषण-पण्डितः। वज्रदंष्ट्रो वज्रनखो रुद्रवीर्य-समुद्भवः॥१९॥
इन्द्रजित्प्रहितामोघ-ब्रह्मास्त्र-विनिवारकः। पार्थ-ध्वजाग्र-संवासी शर-पञ्जर-भेदकः॥२०॥
दशबाहु-र्लोकपूज्यो जाम्बवत्प्रीति वर्धनः। सीतासमेत-श्रीराम-पादसेवा-धुरन्धरः॥२१॥
फूल चढ़ा दे।

फलश्रुति 

इत्येवं श्री हनुमतो नाम्नामष्टोत्तरं शतम्॥
यः पठेच्छृणुयान्नित्यं सर्वान् कामानवाप्नुयात्॥२२॥
(इस प्रकार ये श्री हनुमान जी के 108 नाम हैं जो इनको प्रतिदिन पढ़ता सुनता है उसकी सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं)
॥श्रीमदाञ्जनेयाष्टोत्तर-शतनाम-स्तोत्रं शुभमस्तु॥

हनुमान जी के अन्य स्तोत्र

उपरोक्त स्तोत्र के अलावा हनुमान जी के अन्य स्तोत्र भी दे रहे हैं सुविधानुसार इनका भी पाठ करे -

श्रीहनुमत्कवचम् 

इस नारदपुराणोक्त मारुतिकवच में हनुमानजी को प्रत्येक श्लोकों के द्वारा नमस्कार किया गया है और उन्हें राम का बाण कहकर सम्बोधित भी किया है। इस कल्याणकारी मारुतिकवच का जो भी साधक प्रतिदिन ब्राह्ममुहूर्त में पाठ करता है, उसकी समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं-

सनत्कुमार उवाच
कार्तवीर्यस्य कवचं कथितं ते मुनीश्वर। मोह-विध्वंसनं जैत्रं मारुतेः कवचं श्रृणु॥१॥

यस्य सन्धारणात्सद्यः सर्वे नश्यन्त्युपद्रवाः। भूतप्रेतारिजं दुःखं नाशमेति न संशयः॥२॥

  एकदाहं गतो द्रष्टुं रामं रमयतां वरम्। आनन्दवनिका-संस्थं ध्यायन्तं स्वात्मनः पदम्॥३॥
  
 तत्र रामं रमानाथं पूजितं त्रिदशेश्वरैः। नमस्कृत्य तदादिष्टमासनं स्थितवान् पुरः॥४॥
 
   तत्र सर्वं मया वृत्तं रावणस्य वधान्तकम्। पृष्टं प्रोवाच राजेन्द्रः श्रीरामः स्वयमादरात्॥५॥
   
   ततः कथान्ते भगवान्मारुतेः कवचं ददौ। मह्यं तत्ते प्रवक्ष्यामि न प्रकाश्यं हि कुत्रचित्॥६॥
   
  भविष्यदेतन्निर्द्दिष्टं बाल-भावेन नारद। श्रीरामेणाञ्जना-सूनोर्भुक्ति-मुक्ति-प्रदायकम्॥७॥

हनुमान कवचम्
हनुमान् पूर्वतः पातु दक्षिणे पवनात्मजः। 
पातु प्रतीच्यामक्षघ्नः सौम्ये सागर-तारकः॥८॥
ऊर्ध्वं पातु कपिश्रेष्ठः केसरिप्रियनन्दनः। अधस्ताद्विष्णुभक्तस्तु पातु मध्ये च पावनिः॥९॥
लङ्का-विदाहकः पातु सर्वापद्भ्यो निरन्तरम्।
सुग्रीवसचिवः पातु मस्तकं वायुनन्दनः॥१०॥
 भालं पातु महावीरो भ्रुवोर्मध्ये निरन्तरम्।
नेत्रे छायापहारी च पातु नः प्लवगेश्वरः॥११॥
कपोलौ कर्णमूले च पातु श्रीराम-किङ्करः।
नासाग्र-मञ्जना-सूनुः पातु वक्त्रं हरीश्वरः॥१२॥
 पातु कण्ठे तु दैत्यारिः स्कन्धौ पातु सुरारिजित्। भुजौ पातु महातेजाः करौ च चरणायुधः॥१३॥
  नखान्नखायुधः पातु कुक्षौ पातु कपीश्वरः। 
 वक्षो मुद्रापहारी च पातु पार्श्वे भुजायुधः॥१४॥
  लङ्कानिभर्जनः पातु पृष्ठदेशे निरन्तरम्। नाभिं श्रीरामभक्तस्तु कटिं पात्वनिलात्मजः॥१५॥
गुह्यं पातु महाप्राज्ञः सक्थिनी अतिथिप्रियः।
ऊरू च जानुनी पातु लङ्का-प्रासाद-भञ्जनः॥१६॥
जङ्घे पातु कपिश्रेष्ठो गुल्फौ पातु महाबलः। अचलोद्धारकः पातु पादौ भास्कर-सन्निभः॥१७॥
अङ्गानि पातु सत्त्वाढ्यः पातु पादाङ्गुलीः सदा। मुखाङ्गानि महाशूरः पातु रोमाणि चात्मवान्॥१८॥
 दिवारात्रौ त्रिलोकेषु सदा-गतिसुतोऽवतु। 
स्थितं व्रजन्तमासीनं पिबन्तं जक्षतं कपिः॥१९॥
लोकोत्तरगुणः श्रीमान् पातु त्र्यम्बक-सम्भवः। प्रमत्तमप्रमत्तं वा शयानं गहनेऽम्बुनि॥२०॥
स्थलेऽन्तरिक्षे ह्यग्नौ वा पर्वते सागरे द्रुमे। सङ्ग्रामे सङ्कटे घोरे विराड्रूपधरोऽवतु॥२१॥
डाकिनी-शाकिनी-मारी-कालरात्रि-मरीचिकाः। शयानं मां विभुः पातु पिशाचोरग-राक्षसीः॥२२॥
दिव्यदेह-धरो धीमान्सर्व-सत्त्व-भयङ्करः। साधकेन्द्रावनः शश्वत्पातु सर्वत एव माम्॥२३॥
    यद्रूपं भीषणं दृष्ट्वा पलायन्ते भयानकाः। स सर्वरूपः सर्वज्ञः सृष्टिस्थिति-करोऽवतु॥२४॥
   स्वयं ब्रह्मा स्वयं विष्णुः साक्षाद्देवो महेश्वरः। सूर्यमण्डलगः श्रीदः पातु कालत्रयेऽपि माम्॥२५॥
   यस्य शब्दमुपाकर्ण्य दैत्यदानव-राक्षसाः। देवा मनुष्यास्तिर्यञ्चः स्थावरा जङ्गमास्तथा॥२६॥
    सभया भयनिर्मुक्ता भवन्ति स्वकृतानुगाः। यस्यानेककथाः पुण्याः श्रूयन्ते प्रतिकल्पके॥२७॥
   सोऽवतात्साधक-श्रेष्ठं सदा रामपरायणः।
   वैधात्र-धातृ-प्रभृति यत् किञ्चिद् दृश्यतेऽत्यलम्॥२८॥
   विद्धि व्याप्तं यथा कीशरूपेणानञ्जनेन तत्। यो विभुः सोऽहमेषोऽहं स्वीयः स्वयमणुर्बृहत्॥२९॥
   ऋग्यजुःसामरूपश्च प्रणवस्त्रिवृदध्वरः।
   तस्मै स्वस्मै च सर्वस्मै नतोऽस्म्यात्म-समाधिना॥३०॥
   अनेकानन्त-ब्रह्माण्डधृते ब्रह्मस्वरूपिणे। समीरणात्मने तस्मै नतोऽस्म्यात्म-स्वरूपिणे॥३१॥
   नमो हनुमते तस्मै नमो मारुतसूनवे। नमः श्रीरामभक्ताय श्यामाय महते नमः॥३२॥
   नमो वानरवीराय सुग्रीव-सख्यकारिणे।
   लङ्का-विदहनायाथ महासागर-तारिणे॥३३॥
   सीताशोक-विनाशाय राममुद्रा-धराय च। रावणान्त-निदानाय नमः सर्वोत्तरात्मने॥३४॥
   मेघनादमख-ध्वंसकारणाय नमो नमः। अशोकवन-विध्वंस-कारिणे जयदायिने॥३५॥
   वायुपुत्राय वीराय आकाशोदर-गामिने। वनपाल-शिरश्छेत्रे लङ्का-प्रासाद-भञ्जिने॥३६॥
   ज्वलत्काञ्चन-वर्णाय दीर्घ-लाङ्गूल-धारिणे। सौमित्रि-जयदात्रे च रामदूताय ते नमः॥३७॥
   अक्षस्य वधकर्त्रे च ब्रह्मशस्त्र-निवारिणे। लक्ष्मणाङ्ग-महाशक्ति-जातक्षत-विनाशिने॥३८
   रक्षोघ्नाय रिपुघ्नाय भूतघ्नाय नमो नमः। ऋक्षवानर-वीरौघ-प्रासादाय नमो नमः॥३९॥
   परसैन्य-बलघ्नाय शस्त्रास्त्रघ्नाय ते नमः। विषघ्नाय द्विषघ्नाय भयघ्नाय नमो नमः॥४०॥
   महारिपु-भयघ्नाय भक्त-त्राणैककारिणे। परप्रेरित-मन्त्राणां यन्त्राणां स्तम्भकारिणे॥४१॥
  पयःपाषाण-तरण-कारणाय नमो नमः।
  बालार्क-मण्डलग्रास-कारिणे दुःखहारिणे॥४२॥
   नखायुधाय भीमाय दन्तायुध-धराय च। विहङ्गमाय शर्वाय वज्रदेहाय ते नमः॥४३॥
 प्रतिग्राम-स्थितायाथ भूतप्रेत-वधार्थिने। करस्थशैल-शस्त्राय राम-शस्त्राय ते नमः॥४४॥
कौपीन-वाससे तुभ्यं रामभक्ति-रताय च। दक्षिणाशा-भास्कराय सतां चन्द्रोदयात्मने॥४५॥
 कृत्याक्षत-व्यथाघ्नाय सर्व-क्लेशहराय च। स्वाम्याज्ञा-पार्थ-सङ्ग्राम-सख्य-सञ्जय-कारिणे॥४६॥
 भक्तानां दिव्य-वादेषु सङ्ग्रामे जय-कारिणे।
किल्किला-बुबु-काराय घोरशब्द-कराय च॥४७॥
सर्वाग्नि-व्याधि-संस्तम्भ-कारिणे भयहारिणे। सदा वन-फलाहार-सन्तृप्ताय विशेषतः॥४८॥
 महार्णव-शिला-बद्ध-सेतुबन्धाय ते नमः। 

फलश्रुतिः
इत्येतत्कथितं विप्र मारुतेः कवचं शिवम्॥४९॥
यस्मै कस्मै न दातव्यं रक्षणीयं प्रयत्नतः।
(हे विप्र इस प्रकार यह मारुति का कल्याणकारी कवच कहा गया इसे जिस किसी को भी न दे, यह प्रयत्न पूर्वक रक्षा करने योग्य है)

अष्ट-गन्धैर्विलिख्याथ कवचं धारयेत्तु यः॥५०॥
कण्ठे वा दक्षिणे बाहौ जयस्तस्य पदे पदे।
(जो प्राणी इस कवच को अष्टगन्ध से लिखकर अपने गले या अपनी दाहिनी भुजा में धारण करता है। उसे हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है। )

किं पुनर्बहुनोक्तेन साधितं लक्षमादरात्॥५१॥
प्रजप्त-मेतत्कवच-मसाध्यं चापि साधयेत्॥५२॥
(यदि एक लाख बार श्रद्धा एवं भक्ति से इस कवच का पाठ करके इसे सिद्ध कर लिया जाय तो असाध्य कार्य भी सिद्ध हो जाते हैं। इसमें संशय नहीं हैं।)
॥श्रीबृहन्नारदीय-पुराणे पूर्वभागे बृहदुपाख्याने तृतीयपादे श्री हनुमत्कवचं शुभमस्तु॥

श्री हनुमत् स्तवराज स्तोत्रम् 

श्रीपराशर उवाच 
अन्यत्स्तोत्रं प्रवक्ष्यामि श्रृणु मैत्रेय योगिराट्। स्तवराजमिति ख्यातं त्रिषु लोकेषु दुर्लभम्॥शम्भुना चोपदिष्टं च पार्वत्यै हित-काम्यया। सर्व-कामप्रदं नृणां भुक्ति-मुक्ति-फलप्रदम्॥

 विनियोग - अस्य श्रीहनुमत् स्तवराज-स्तोत्र-मन्त्रस्य वशिष्ठ भगवान् ऋषिः। अनुष्टुप्छन्दः, श्रीहनुमान् देवता, ह्रां बीजम्, ह्रीं शक्तिः, ह्रूं कीलकम्, मम श्रीहनुमत्प्रसाद-सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः॥
 
 ऋष्यादिन्यासः -
श्रीवशिष्ठभगवान् ऋषये नमः शिरसि। 
 अनुष्टुप्छन्दसे नमः मुखे। 
 श्रीहनुमान् देवताय नमः हृदि।
  ह्रां बीजाय नमः गुह्ये। 
  ह्रीं शक्तये नमः पादयोः। 
  ह्रूं कीलकाय नमः नाभौ। 
  मम श्रीहनुमत्प्रसाद-सिद्ध्यर्थे पाठे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे॥
  
 करन्यासः -
अञ्जना-सुताय अङ्गुष्ठाभ्यां नमः।
  रुद्र-मूर्तये तर्जनीभ्यां नमः। 
   वायु-पुत्राय मध्यमाभ्यां नमः।
    अग्नि-गर्भाय अनामिकाभ्यां नमः।
    राम-दूताय कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
पञ्चमुख-हनुमते करतल-करपृष्ठाभ्यां नमः।
   षडङ्गन्यासः -
अञ्जना-सुताय हृदयाय नमः।
    रुद्र-मूर्तये शिरसे स्वाहा।  
    वायु-पुत्राय शिखायै वषट्।  
    अग्नि-गर्भाय कवचाय हुम्।  
    राम-दूताय नेत्र-त्रयाय वौषट्।  
    पञ्च-मुख-हनुमते अस्त्राय फट्।

  ध्यानम् 
  उद्यन्मार्तण्ड-कोटि-प्रकट-रुचिकरं चारु वीरासनस्थं मौञ्जी-यज्ञोपवीताभरण-मुरु-शिखा-शोभितं कुण्डलाङ्गम्।
भक्तानामिष्टदं तं प्रणुत मुनिजनं वेदनाद-प्रमोदं ध्यायेद्देवं विधेयं प्लवंग-कुलपतिं गोष्पदी-भूतवार्धिम्॥

  श्रीहनुमान्महावीरो वीरभद्र-वरोत्तमः। वीर-श्शक्तिमतां श्रेष्ठो वीरेश्वर-वरप्रदः॥१॥
 यशस्करः प्रतापाढ्यो सर्वमङ्गल सिद्धिदः। सानन्दमूर्ति-र्गहनो गम्भीर-स्सुरपूजितः॥२॥
 दिव्यकुण्डल-भूषाय दिव्यालङ्कार-शोभिने। पीताम्बरधर-प्राज्ञ नमस्ते ब्रह्मचारिणे॥३॥
 कौपीन-वसनाक्रान्त दिव्य-यज्ञोपवीतिने। 
 कुमाराय प्रसन्नाय नमस्ते मौञ्जीधारिणे॥४॥
 सुभद्रश्शुभ-दाता च सुभगो रामसेवकः। 
 यशःप्रदो महातेजा बलाढ्यो वायु-नन्दनः॥५॥
जितेन्द्रियो महाबाहु-र्वज्रदेहो नखायुधः। सुराध्यक्षो महाधुर्यः पावनः पवनात्मजः॥६॥
 बन्धमोक्ष-करश्शीघ्र-पर्वतोत्पाटनस्तथा। दारिद्र्य-भञ्जनश्श्रेष्ठस्सुख-भोग-प्रदायकः॥७॥
 वायुजातो महातेजाः सूर्यकोटि-समप्रभः। 
 सुप्रभा दीप्तिमुद्भूत दिव्यतेजस्विने नमः॥८॥
 अभयङ्कर-मुद्राय अपमृत्यु-विनाशिने। 
 सङ्ग्रामे जयदात्रे च अविघ्नाय नमो नमः॥९॥
 तत्त्व-ज्ञानामृतानन्द-ब्रह्मज्ञो ज्ञानपारगः। मेघनाद-प्रमोहाय हनुमद्ब्रह्मणे नमः॥१०॥
रुच्याढ्य-दीप्त-बालार्क-दिव्य-रूप-सुशोभितः। प्रसन्नवदन श्रेष्ठ हनुमन् ते नमो नमः॥११॥
दुष्टग्रह-विनाशश्च दैत्यदानव-भञ्जनः। शाकिन्यादि-भूतहन्त्रे नमोऽस्तु श्रीहनूमते॥१२॥
 शाकिन्यादिषु भूतघ्नो महाधैर्य महाशौर्य महावीर्य महाबल।
 अमेय-विक्रमायैव हनुमन् वै नमोऽस्तुते॥१३॥
 दशग्रीव-कृतान्ताय रक्षःकुलविनाशिने। ब्रह्मचर्य-व्रतस्थाय महावीराय ते नमः॥१४॥
 भैरवाय महोग्राय भीम-विक्रमणाय च। सर्वज्वर-विनाशाय कालरूपाय ते नमः॥१५॥
 सुभद्रद सुवर्णाङ्ग सुमङ्गल शुभङ्कर। 
 महाविक्रम सत्वाढ्य दिङ् मण्डल-सुशोभित॥१६॥
पवित्राय कपीन्द्राय नमस्ते पापहारिणे। सुविद्यरामदूताय कपिवीराय ते नमः॥१७॥
तेजस्वी शत्रुहा वीरः वायुजस्सम्प्रभावनः। 
सुन्दरो बलवान् शान्तः आञ्जनेय नमोऽस्तु ते॥१८॥
रामानन्द जयकर जानकी-श्वासद प्रभो। 
विष्णुभक्त महाप्राज्ञ पिङ्गाक्ष विजयप्रद॥१९॥
 राज्यप्रद-स्सुमाङ्गल्यः सुभगो बुद्धिवर्धनः। सर्वसम्पत्ति-दात्रे च दिव्य-तेजस्विने नमः॥२०॥
कल्याण-कीर्तये जय-मङ्गलाय जगत्तृतीयं धवली-कृताय।
तेजस्विने दीप्त-दिवाकराय नमोऽस्तु दीप्ताय हरीश्वराय॥२१॥
 महा-प्रतापाय विवर्धनाय मनोजवायाद्भूत-वर्धनाय। प्रौढ-प्रतापारुण-लोचनाय नमोऽञ्जनानन्द कपीश्वराय॥२२॥
कालाग्नि-दैत्यसंहर्ता सर्वशत्रु-विनाशनः। अचलोद्धारकश्चैव सर्वमङ्गल-कीर्तिदः॥२३॥
बलोत्कटो महाभीमः भैरवोऽमित-विक्रमः। तेजोनिधिः कपिश्रेष्ठः सर्वारिष्टार्ति-दुःखहा॥२४॥
 उदधि-क्रमणश्चैव लङ्कापुर-विदाहकः। 
 सुभुजो द्विभूजो रुद्रः पूर्ण-प्रज्ञोऽनिलात्मजः॥२५॥
 राजवश्य-करश्चैव जनवश्यं तथैव च। 
 सर्ववश्यं सभावश्यं नमस्ते मारुतात्मज॥२६॥
 महा-पराक्रमाक्रान्तः यक्षराक्षस-मर्दनः। सौमित्रि-प्राणदाता च सीताशोक-विनाशनः॥२७॥
 रक्षोघ्नोऽञ्जनासूनुश्च केसरी-प्रियनन्दन। सर्वार्थ-दायको वीरः मल्लवैरि-विनाशनः॥२८॥
 सुमुखाय सुरेशाय शुभदाय शुभात्मने। 
 प्रभावाय सुभावाय नमस्तेऽमित-तेजसे॥
वायुजो वायुपुत्रश्च कपीन्द्रः पवनात्मजः।
वीरश्रेष्ठ महावीर शिवभद्र नमोऽस्तुते॥२९॥

भक्तप्रियाय वीराय वीरभद्राय ते नमः। स्वभक्तजनपालाय भक्तोद्यानविहारिणे॥३०॥

दिव्यमाला-सुभूषाय दिव्य-गन्धानुलेपिने। श्रीप्रसन्नप्रसन्नाय सर्वसिद्धि-प्रदोभव॥३१॥

फलश्रुति 
वातात्मजमिदं स्तोत्रं पवित्रं यः पठेन्नरः। वातसूनोरिदं अचलां श्रियमाप्नोति पुत्रपौत्रादि-वृद्धिदम्॥३२॥
(पवनपुत्र का यह पवित्र स्तोत्र जो पढ़ता है अचल सम्पत्ति, पुत्र पौत्र की वृद्धि को पाता है)

  धनधान्य-समृद्धिं च आरोग्यं पुष्टिवर्धनम्। बन्धमोक्ष-करं शीघ्रं लभते वाञ्छितं फलम्॥३३॥
  (धन धान्य वृद्धि, निरोगता, शान्ति वृद्धि, बन्धनमुक्ति, वांछित फल शीघ्र प्राप्त करता है)
  
 राज्यदं राजसन्मानं सङ्ग्रामे जयवर्धनम्। सुप्रसन्नो हनुमान्मे यशःश्री जयकारकः॥३४॥
(हनुमान जी मुझे राज्य, राजसी मान, संग्राम में विजय, यश, श्री, कीर्ति देने वाले हों)
॥श्रीपराशर-संहितायै पराशर-मैत्रेय-संवादे हनुमत्स्तवराजः शुभमस्तु॥



श्री हनुमत् पंचरत्न स्तोत्रम्

  वीताखिल-विषयेच्छं जातानन्दाश्रु पुलकमत्यच्छम्।
   सीतापति-दूताद्यं वातात्मज-मद्य भावये हृद्यम्॥१॥
(आज मैं श्रीपवनदेव के पुत्र श्रीहनुमानजी की अपने हृदय में भावना करता हूं , जो सभी कामुक इच्छाओं से मुक्त हैं, जो आनन्द के आंसू से युक्त और उत्साह से भरे हुए हैं, जो शुद्धतम और सियावरश्रीराम के दूतों में सबसे पहले हैं।)

  तरुणारुण मुख-कमलं करुणा-रसपूर-पूरितापाङ्गम्।
  सञ्जीवन-माशासे मञ्जुल-महिमान-मञ्जना-भाग्यम्॥२॥
(मैं हनुमानजी का ध्यान करता हूं, जिनका कमल सदृश मुख उगते सूरज की तरह लाल है, जिनकी आंखें दया की भावना से भरी हैं, जो आशाओं को संजीवनी देने वाले हैं, जिनकी सुन्दर महिमा माता अंजना का सौभाग्य है।)
  
शम्बरवैरि-शरातिगमम्बुज-दल-विपुल-लोचनोदारम्।
कम्बु-गलमनिल-दिष्टम् बिम्ब-ज्वलितोष्ठ-मेकमवलम्बे॥३॥
(मैं उन हनुमान जी की शरण का आश्रय लेता हूँ जो काम रूपी शत्रु के बाणों से भी तेज उड़ते हैं, जिनके उदार नेत्र विशाल कमल की पंखुड़ियों की तरह हैं, जिनकी गर्दन चिकनी और शंख सदृश सुगठित है, जो पवन देवता के लिए सौभाग्य हैं, जिनके होंठ बिम्ब के फल समान चमकीले-लाल हैं।)
  
दूरीकृत-सीतार्तिः प्रकटीकृत-रामवैभव-स्फूर्तिः।
दारित-दशमुख-कीर्तिः पुरतो मम भातु हनुमतो मूर्तिः॥४॥
(मेरे सामने हनुमानजी की तेजस्वी मूर्ति आए, जिन्होंने सीताजी के दुःख को दूर किया, जिन्होंने रामजी के पराक्रमी वैभव की महिमा प्रकट की जिन्होंने रावण की प्रतिष्ठा को टुकड़े-टुकड़े कर दिया।)

वानर-निकराध्यक्षं दानवकुल-कुमुद-रविकर-सदृशम्।
दीन-जनावन-दीक्षं पवन तपः पाक-पुञ्ज-मद्राक्षम्॥५॥
(मैं ध्यान में वानरों के नेता हनुमान जी के दर्शन करता हूं, जो दानव के कुल रूपी "रात्रि में खिलने वाले फूलों" के लिए सूर्य की किरणों की तरह (विरोधी) हैं, जो दीन दुखी लोगों की सुरक्षा के लिए समर्पित हैं, जो वायु की कठिन तपस्या की परिणति हैं।) 
  
 एतत्-पवन-सुतस्य स्तोत्रं यः पठति पञ्च-रत्नाख्यम्।
 चिरमिह-निखिलान् भोगान् भुङ्क्त्वा श्रीराम-भक्ति-भाग्-भवति॥६॥
(जो पवनसुत हनुमानजी के 'पंचरत्न' नाम से प्रसिद्ध इस स्तोत्र का पाठ करता है लंबे समय तक इस दुनिया के सुखों का आनंद लेते हुए श्रीरामजी की भक्ति का भागी हो जाता है।)
  ।।श्रीमच्छंकर-भगवतः कृतौ श्री हनुमत् पञ्चरत्नं शुभमस्तु।।
  
  
  

श्री पञ्चमुखी हनुमत् हृदय स्तोत्रम्

विनियोग - जल भूमि पर छोड़ दे -
अस्य श्रीपञ्चवक्त्र हनुमत् हृदयस्तोत्र मन्त्रस्य भगवान् श्रीरामचन्द्र ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीपञ्चवक्त्र हनुमान् देवता, प्रणव बीजम्, रुद्रमूर्तयेति शक्तिः, वह्निजायेति कीलकम्, श्रीपञ्चवक्त्र हनुमद्देवता प्रसाद सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः।

ऋष्यादि न्यास -
श्रीरामचन्द्र ऋषये नमः शिरसि, कहकर सिर को छुए।

 अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, कहकर मुख का स्पर्श करे।
 
 श्रीपञ्चवक्त्र हनुमद्देवताय नमः हृदिः, कहकर हृदयस्थल का स्पर्श।
 
 प्रणव बीजाय नमः गुह्ये, बोलकर नितम्ब का स्पर्श।
 
रुद्रमूर्तयेति शक्तये नमः पादयोः, बोलकर दोनो पैर का स्पर्श।

वह्निजायेति कीलकाय नमः नाभौ, बोलकर नाभि स्पर्श करे।

श्रीपञ्च-वक्त्र हनुमद्देवता प्रसाद-सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगाय नमः अंजलौ, बोलकर हाथ जोड़े।

करन्यास -
  ह्रां अञ्जनासुताय अङ्गुष्ठाभ्यां नमः - बोलकर अंगूठे से का स्पर्श करे।
  ह्रीं रुद्रमूर्तये तर्जनीभ्यां नमः - अंगूठे से तर्जनी का स्पर्श।
  ह्रूं वायुपुत्राय मध्यमाभ्यां नमः - अंगूठे से मध्यमा का स्पर्श।
  ह्रैं अग्निगर्भाय अनामिकाभ्यां नमः - अंगूठे से अनामिका का स्पर्श।
  ह्रौं रामदूताय कनिष्ठिकाभ्यां नमः - अंगूठे से कनिष्ठिका का स्पर्श।
  ह्रः पञ्चवक्त्र-हनुमते करतल-करपृष्ठाभ्यां नमः बोलकर दोनो हथेलियों के अग्र व पृष्ठ भाग का स्पर्श।

हृदयादिन्यास
  ह्रां अञ्जनी-सुताय हृदयाय नमः  - से हृदय का स्पर्श करे।
  ह्रीं रुद्रमूर्तये शिरसे स्वाहा - सिर का स्पर्श।
  ह्रूं वायुपुत्राय शिखायै वषट् - शिखास्थान का स्पर्श।
  ह्रैं अग्निगर्भाय कवचाय हुम् - दायें हाथ से बायें और बायें हाथ से दाहिने कंधे का स्पर्श।
  ह्रौं रामदूताय नेत्रत्रयाय वौषट् - तर्जनी, मध्यमा, अनामिका से अपने त्रिनेत्रों का स्पर्श।
  ह्रः पञ्च-वक्त्र-हनुमते अस्त्राय फट्  - बोलते हुए दाईं तर्जनी व मध्यमा अंगुली को सिर के चारों ओर घुमाकर उनसे बायीं हथेली पर तीन ताली बजाए।

हाथ में फूल लेकर स्तोत्र पढ़े -

ध्यायेद्बाल-दिवाकर-द्युतिनिभं देवारि-दर्पापहं
देवेन्द्र-प्रमुखैः प्रशस्त-यशसं देदीप्यमानं ऋचा॥
सुग्रीवादि-समस्त-वानरयुतं सुव्यक्त-तत्त्वप्रियं
संरक्तारुण-लोचनं पवनजं पीताम्बरा-लङ्कृतम्॥
(बाल सूर्य सी आभा वाले, देवताओं के शत्रुओं के गर्व का अपहरण करने वाले, देवराज इन्द्र से प्रशंसित, यश से प्रकाशमान, सुग्रीव आदि वानरों से युक्त, रक्त सदृश लाल नेत्र वाले, भली प्रकार से व्यक्त किये गये तत्व के प्रेमी, पवनपुत्र पीत वस्त्र से अलंकृत हनुमान जी का मैं ध्यान करता हूँ)

  नमो वायु-पुत्राय पञ्च-वक्त्राय ते नमः।
नमोऽस्तु दीर्घवालाय राक्षसान्त-कराय च॥१॥

वज्रदेह नमस्तुभ्यं शतानन-मदापह!
सीतासन्तोष-करण नमो राघव-किङ्कर॥२॥

सृष्टिप्रवर्तक नमो महास्थित नमो नमः।
कलाकाष्ठ-स्वरूपाय मास-संवत्सरात्मक॥३॥

नमस्ते ब्रह्म-रूपाय शिव-रूपाय ते नमः।
नमो विष्णु-स्वरूपाय सूर्य-रूपाय ते नमः॥४॥

नमो वह्नि-स्वरूपाय नमो गगन-चारिणे।
सर्वरम्भावन-चर अशोक-वन-नाशक॥५॥

नमो कैलास-निलय मलयाचल संश्रय।
नमो रावणनाशाय इन्द्रजिद्वध-कारिणे॥६॥

महादेवात्मक नमो नमो वायुतनूद्भव।
नमः सुग्रीव-सचिव सीतासन्तोष-कारण॥७॥

समुद्रोल्लङ्घन नमो सौमित्रेः प्राणदायक।
महावीर नमस्तुभ्यं दीर्घबाहो नमो नमः॥८॥

दीर्घवाल नमस्तुभ्यं वज्रदेह नमो नमः।
छायाग्रह-हर नमो वरसौम्य-मुखेक्षण॥९॥

सर्वदेव-सुसंसेव्य मुनिसङ्घ-नमस्कृत।
अर्जुनध्वज-संवास कृष्णार्जुन-सुपूजित॥१०॥

धर्मार्थकाम-मोक्षाख्य पुरुषार्थ-प्रवर्तक।
ब्रह्मास्त्रवन्द्य भगवन् आहतासुरनायक॥११॥

भक्तकल्प-महाभुज भूतवेताल-नाशक।
दुष्टग्रह-हरानन्त वासुदेव नमोऽस्तुते॥१२॥

श्रीरामकार्ये चतुर पार्वती-गर्भसम्भव।
नमः पम्पा-वनचर ऋष्यमूक-कृतालय॥१३॥

धान्यमाली-शापहर कालनेमि-निबर्हण।
सुवर्चला-प्राणनाथ रामचन्द्र-परायण॥१४॥

नमो वर्ग-स्वरूपाय वर्णनीय-गुणोदय।
वरिष्ठाय नमस्तुभ्यं वेदरूप नमो नमः।
नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं भूयो भूयो नमाम्यहम्॥१५॥

हनुमान जी को फूल चढ़ा दे।

फलश्रुति 
इति ते कथितं देवि हृदयं श्रीहनूमतः।
सर्व-सम्पत्करं पुण्यं सर्वसौख्य-विवर्धनम्॥१६॥
(हे देवि! इस प्रकार यह श्री हनुमान का सर्व सम्पत्ति को देने वाला सभी सुख बढ़ाने वाला पवित्र हृदय स्तोत्र कहा गया)

दुष्टभूत-ग्रहहरं क्षयापस्मार-नाशनम्॥१७॥
यस्त्वात्म-नियमो भक्त्या वायुसूनोः सुमङ्गलम्।
हृदयं पठते नित्यं स ब्रह्मसदृशो भवेत्॥१८॥
(दुष्ट भूत, ग्रह को हरने वाला, क्षयरोग, अपस्मार/अपस्मृति का नाश करने वाला यह वायुपुत्र का मंगलकारी हृदय स्तोत्र प्रतिदिन जो आत्मसंयम नियम से पढ़ता है वह ब्रह्म जैसा ही हो जाता है)

अजप्तं हृदयं य इमं मन्त्रं जपति मानवः।
स दुःखं शीघ्रमाप्नोति मन्त्रसिद्धिर्न जायते॥१९॥
(इस हृदय को न पढ़कर जो मनुष्य यह(हनुमान जी का) मन्त्र जपता है वह शीघ्र दुख प्राप्त करता है मन्त्र सिद्ध नहीं होता)

सत्यं सत्यं पुनः सत्यं मन्त्रसिद्धि-करं परम्।
इत्थं च कथितं पूर्वं साम्बेन स्व-प्रियां प्रति॥२०॥
(यह सत्य सत्य है फिर कहता हूं सत्य है कि यह हृदय स्तोत्र मन्त्र की परम सिद्धि देने वाला है। इसे पुरातन काल में साम्ब ने अपनी पत्नी को कहा था।)

महर्षि-र्गौतमात्पूर्वं मया प्राप्तमिदं मुने।
तन्मया प्रहितं सर्वं शिष्य-वात्सल्य-कारणात्॥२१॥
(हे मैत्रेय मुने! महर्षि गौतम से यह पहले मुझे प्राप्त हुआ था इसलिए शिष्य वात्सल्य के कारण मैंने वह तुमसे कहा)
॥श्रीपराशर-संहितान्तर्गते श्रीपराशर-मैत्रेय-संवादे श्रीपञ्चवक्त्र-हनुमत् हृदयस्तोत्रं शुभमस्तु॥


अब एक आचमनी से जल चढ़ाते हुए जप समर्पण करे -
• श्री हनुमते नमः, मन्त्र हीनं, क्रिया हीनं, विधि हीनं, देश-काल हीनं, भक्ति हीनं यत् कृतं तत् सर्वं परिपूर्णमस्तु।
•   गुह्याति गुह्य गोप्ता त्वम्, गृहाणास्मद्कृतं जपं। सिद्धिर्भवतु मे देव, त्वत्-प्रसादात्कपीेश्वर॥
• अनेन मया कृतेन श्री हनुमत् शतार्चनेन स्तोत्रपाठाख्य कर्मणा श्री सीताराम सहिताय श्रीसुवर्चला सहिताय श्रीहनुमद्देवता सुप्रसन्नो वरदो भव। सर्वं  श्रीसीतारामार्पणमस्तु।
• सर्वं श्रीशिव-गुरु-परदेवता-परब्रह्मार्पण-मस्तु।
श्री हनुमते नमः श्री सीतारामाभ्यां नमः श्रीविष्णुः विष्णुः विष्णुः हरिस्मरणात् परिपूर्णतास्तु।

इस तरह से यह पूजा सम्पन्न होती है हनुमान जयन्ती पर  श्री हनुमान जी को हमारा अनेकों बार प्रणाम....

टिप्पणियाँ

  1. जय श्रीराम
    मैं हनुमान चालीसा का ही पाठ करता था आज इस अदम्य स्त्रोतात्मक साधना का स्वरुप आपके माध्यम व मार्गदर्शन से प्राप्त हुआ जय हो प्रभुजी ।।
    सादर धन्यवाद

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    उत्तर
    1. नमस्कार महोदय, धन्यवाद! आपने प्रस्तुत आलेख को पढ़ा व समझा। राम जी और हनुमानजी की उपासना के लिए अभी कुछ और स्तोत्र रह गये हैं। भगवान की कृपा रही तो आगे और भी इस तरह की साधनाएं प्रकाशित होंगी।
      जय श्री राम
      जय श्री हनुमान

      हटाएं
    2. जय श्रीराम
      साधुवाद आपको।।
      अगले लेख की प्रतीक्षा में 😇🙏

      हटाएं

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