नोट - यहाँ प्रकाशित साधनाओं, स्तोत्रात्मक उपासनाओं को नियमित रूप से करने से यदि किसी सज्जन को कोई विशेष लाभ हुआ हो तो कृपया हमें सूचित करने का कष्ट करें।

⭐विशेष⭐


23 अप्रैल - मंगलवार- श्रीहनुमान जयन्ती
10 मई - श्री परशुराम अवतार जयन्ती
10 मई - अक्षय तृतीया,
⭐10 मई -श्री मातंगी महाविद्या जयन्ती
12 मई - श्री रामानुज जयन्ती , श्री सूरदास जयन्ती, श्री आदि शंकराचार्य जयन्ती
15 मई - श्री बगलामुखी महाविद्या जयन्ती
16 मई - भगवती सीता जी की जयन्ती | श्री जानकी नवमी | श्री सीता नवमी
21 मई-श्री नृसिंह अवतार जयन्ती, श्री नृसिंहचतुर्दशी व्रत,
श्री छिन्नमस्ता महाविद्या जयन्ती, श्री शरभ अवतार जयंती। भगवत्प्रेरणा से यह blog 2013 में इसी दिन वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को बना था।
23 मई - श्री कूर्म अवतार जयन्ती
24 मई -देवर्षि नारद जी की जयन्ती

आज - कालयुक्त नामक विक्रमी संवत्सर(२०८१), सूर्य उत्तरायण, वसन्त ऋतु, चैत्र मास, शुक्ल पक्ष।
यहाँ आप सनातन धर्म से संबंधित किस विषय की जानकारी पढ़ना चाहेंगे? ourhindudharm@gmail.com पर ईमेल भेजकर हमें बतला सकते हैं अथवा यहाँ टिप्पणी करें हम उत्तर देंगे
↓नीचे जायें↓

कमला महाविद्या की स्तोत्रात्मक उपासना

गवती कमला  दस महाविद्याओं में दसवें स्थान पर आती है। यही श्री हरि की प्रिया महालक्ष्मी हैं। कमला महाविद्या को जगत्प्रसूता कहा गया है। जगत्प्रसूता अर्थात् संसार को उत्पन्न करने वाली। दुर्गासप्तशती के रहस्य में भी कहा गया है कि सृष्टि के आदि में भगवती महालक्ष्मी ही थीं उन्हीं से समस्त देवी देवता तथा संसार उत्पन्न हुआ।दीपावली पर हर सनातनी सुंदर प्रकार से माँ लक्ष्मी की पूजा कर के मनोवांछित फल पाता है। भगवती कमला की कृपा से धन धान्य की कमी नहीं रहती, रोग मुक्ति, कष्टों का अंत, पापों का क्षय व जीवनोपरान्त मोक्ष प्राप्त होता है।
 इनकी मंत्र साधना बहुत शुद्धता के साथ की जाती है। घर व स्वयं की स्वच्छता का ध्यान रखें। हवन आवश्यक रहता है जैसा कि श्री सूक्त की फलश्रुति में लिखा है। श्री सूक्त लक्ष्मी सूक्त आदि वैदिक मंत्र इनकी आराधना में प्रयुक्त होते हैं। देवी कमला के स्तोत्र जो भी पढ़ते हैं सदा लाभान्वित होते हैं। जो हवन न कर सकें, वैदिक मंत्र न पढ़ सकें, जिन्हें इनके मंत्र की दीक्षा नहीं मिली हो उन सामान्य उपासकों को श्री कमला महाविद्या की कृपा प्राप्त करने हेतु स्तोत्रात्मक उपासना ही करनी चाहिये, जो यहाँ प्रस्तुत है। 

देवता की विशेष कृपा प्राप्ति हेतु प्रत्येक प्रातः उठकर स्वच्छ होकर उनके सुप्रभात स्तोत्र को पढ़ना चाहिये। महाविद्या कमला अर्थात् भगवती महालक्ष्मी जी के उपासक निम्न लिखित श्रीमहालक्ष्मी सुप्रभातम् स्तोत्र का नित्य अथवा हर शुक्रवार की प्रातः पाठ करें। फाल्गुन पूर्णिमा को भगवती महालक्ष्मी समुद्र मंथन से उद्भूत हुई थीं अतः इस तिथि को भी इनकी उपासना अवश्य करें। इस स्तोत्र को कार्तिक शुक्ल एकादशी - देवोत्थानी एकादशी से लेकर देव दीपावली - कार्तिक पूर्णिमा तक तो अवश्य पढ़ना चाहिये।

श्रीमहालक्ष्मी सुप्रभात स्तोत्रम्

श्रीलक्ष्मि श्रीमहालक्ष्मि क्षीरसागरकन्यके
उत्तिष्ठ हरिसम्प्रीते भक्तानां भाग्यदायिनि।
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ श्रीलक्ष्मि विष्णुवक्षस्थलालये
उत्तिष्ठ करुणापूर्णे लोकानां शुभदायिनि॥१॥

श्रीपद्ममध्यवसिते वरपद्मनेत्रे
श्रीपद्महस्तचिरपूजितपद्मपादे।
श्रीपद्मजातजननि शुभपद्मवक्त्रे
श्रीलक्ष्मि भक्तवरदे तव सुप्रभातम्॥२॥

जाम्बूनदाभसमकान्तिविराजमाने
तेजोस्वरूपिणि सुवर्णविभूषिताङ्गि।
सौवर्णवस्त्रपरिवेष्टितदिव्यदेहे
श्रीलक्ष्मि भक्तवरदे तव सुप्रभातम्॥३॥

सर्वार्थसिद्धिदे विष्णुमनोऽनुकूले
सम्प्रार्थिताखिलजनावनदिव्यशीले।
दारिद्र्यदुःखभयनाशिनि भक्तपाले
श्रीलक्ष्मि भक्तवरदे तव सुप्रभातम्॥४॥

चन्द्रानुजे कमलकोमलगर्भजाते
चन्द्रार्कवह्निनयने शुभचन्द्रवक्त्रे।
हे चन्द्रिकासमसुशीतलमन्दहासे
श्रीलक्ष्मि भक्तवरदे तव सुप्रभातम्॥५॥

श्रीआदिलक्ष्मि सकलेप्सितदानदक्षे
श्रीभाग्यलक्ष्मि शरणागत दीनपक्षे।
ऐश्वर्यलक्ष्मि चरणार्चितभक्तरक्षिन्
श्रीलक्ष्मि भक्तवरदे तव सुप्रभातम्॥६॥

श्रीधैर्यलक्ष्मि निजभक्तहृदन्तरस्थे
सन्तानलक्ष्मि निजभक्तकुलप्रवृद्धे।
श्रीज्ञानलक्ष्मि सकलागमज्ञानदात्रि
श्रीलक्ष्मि भक्तवरदे तव सुप्रभातम्॥७॥

सौभाग्यदात्रि शरणं गजलक्ष्मि पाहि
दारिद्र्यध्वंसिनि नमो वरलक्ष्मि पाहि।
सत्सौख्यदायिनि नमो धनलक्ष्मि पाहि
श्रीलक्ष्मि भक्तवरदे तव सुप्रभातम्॥८॥

श्रीराज्यलक्ष्मि नृपवेश्मगते सुहासिन्
श्रीयोगलक्ष्मि मुनिमानसपद्मवासिन्।
श्रीधान्यलक्ष्मि सकलावनिक्षेमदात्रि
श्रीलक्ष्मि भक्तवरदे तव सुप्रभातम्॥९॥

श्रीपार्वती त्वमसि श्रीकरि शैवशैले
क्षीरोदधेस्त्वमसि पावनि सिन्धुकन्या।
स्वर्गस्थले त्वमसि कोमले स्वर्गलक्ष्मी
श्रीलक्ष्मि भक्तवरदे तव सुप्रभातम्॥१०॥

गङ्गा त्वमेव जननी तुलसी त्वमेव
कृष्णप्रिया त्वमसि भाण्डिरदिव्यक्षेत्रे।
राजगृहे त्वमसि सुन्दरि राज्यलक्ष्मी
श्रीलक्ष्मि भक्तवरदे तव सुप्रभातम्॥११॥

पद्मावती त्वमसि पद्मवने वरेण्ये
श्रीसुन्दरी त्वमसि श्रीशतश‍ृङ्गक्षेत्रे।
त्वं भूतलेऽसि शुभदायिनि मर्त्यलक्ष्मी
श्रीलक्ष्मि भक्तवरदे तव सुप्रभातम्॥१२॥

चन्द्रा त्वमेव वरचन्दनकाननेषु
देवि कदम्बविपिनेऽसि कदम्बमाला।
त्वं देवि कुन्दवनवासिनि कुन्ददन्ती
श्रीलक्ष्मि भक्तवरदे तव सुप्रभातम्॥१३॥

श्रीविष्णुपत्नि वरदायिनि सिद्धलक्ष्मि
सन्मार्गदर्शिनि शुभङ्करि मोक्षलक्ष्मि।
श्रीदेवदेवि करुणागुणसारमूर्ते
श्रीलक्ष्मि भक्तवरदे तव सुप्रभातम्॥१४॥

अष्टोत्तरार्चनप्रिये सकलेष्टदात्रि
हे विश्वधात्रि सुरसेवितपादपद्मे।
सङ्कष्टनाशिनि सुखङ्करि सुप्रसन्ने
श्रीलक्ष्मि भक्तवरदे तव सुप्रभातम्॥१५॥

आद्यन्तरहिते वरवर्णिनि सर्वसेव्ये
सूक्ष्मातिसूक्ष्मतररूपिणि स्थूलरूपे।
सौन्दर्यलक्ष्मि मधुसूदनमोहनाङ्गि
श्रीलक्ष्मि भक्तवरदे तव सुप्रभातम्॥१६॥

सौख्यप्रदे प्रणतमानसशोकहन्त्रि
अम्बे प्रसीद करुणासुधयाऽऽर्द्रदृष्ट्या।
सौवर्णहारमणिनूपुरशोभिताङ्गि
श्रीलक्ष्मि भक्तवरदे तव सुप्रभातम्॥१७॥

नित्यं पठामि जननि तव नाम स्तोत्रं
नित्यं करोमि तव नामजपं विशुद्धे।
नित्यं श‍ृणोमि भजनं तव लोकमातः
श्रीलक्ष्मि भक्तवरदे तव सुप्रभातम्॥१८॥

माता त्वमेव जननी जनकस्त्वमेव
देवि त्वमेव मम भाग्यनिधिस्त्वमेव।
सद्भाग्यदायिनि त्वमेव शुभप्रदात्री
श्रीलक्ष्मि भक्तवरदे तव सुप्रभातम्॥१९॥

वैकुण्ठधामनिलये कलिकल्मषघ्ने
नाकाधिनाथविनुते अभयप्रदात्रि।
सद्भक्तरक्षणपरे हरिचित्तवासिन्
श्रीलक्ष्मि भक्तवरदे तव सुप्रभातम्॥२०॥

निर्व्याजपूर्णकरुणारससुप्रवाहे
राकेन्दुबिम्बवदने त्रिदशाभिवन्द्ये।
आब्रह्मकीटपरिपोषिणि दानहस्ते
श्रीलक्ष्मि भक्तवरदे तव सुप्रभातम्॥२१॥

लक्ष्मीति पद्मनिलयेति दयापरेति
भाग्यप्रदेति शरणागतवत्सलेति।
ध्यायामि देवि परिपालय मां प्रसन्ने
श्रीलक्ष्मि भक्तवरदे तव सुप्रभातम्॥२२॥

श्रीपद्मनेत्ररमणीवरे नीरजाक्षि
श्रीपद्मनाभदयिते सुरसेव्यमाने।
श्रीपद्मयुग्मधृतनीरजहस्तयुग्मे
श्रीलक्ष्मि भक्तवरदे तव सुप्रभातम्॥२३॥

इत्थं त्वदीयकरुणात्कृतसुप्रभातं
ये मानवाः प्रतिदिनं प्रपठन्ति भक्त्या।
तेषां प्रसन्नहृदये कुरु मङ्गलानि
श्रीलक्ष्मि भक्तवरदे तव सुप्रभातम्॥२४॥

जलधीशसुते जलजाक्षवृते जलजोद्भवसन्नुते दिव्यमते।
जलजान्तरनित्यनिवासरते शरणं शरणं वरलक्ष्मि नमः॥२५॥

प्रणताखिलदेवपदाब्जयुगे भुवनाखिलपोषण श्रीविभवे।
नवपङ्कजहारविराजगले शरणं शरणं गजलक्ष्मि नमः॥२६॥

घनभीकरकष्टविनाशकरि निजभक्तदरिद्रप्रणाशकरि।
ऋणमोचनि पावनि सौख्यकरि शरणं शरणं धनलक्ष्मि नमः॥२७॥

अतिभीकरक्षामविनाशकरि जगदेकशुभङ्करि धान्यप्रदे।
सुखदायिनि श्रीफलदानकरि शरणं शरणं शुभलक्ष्मि नमः॥२८॥

सुरसङ्घशुभङ्करि ज्ञानप्रदे मुनिसङ्घप्रियङ्करि मोक्षप्रदे।
नरसङ्घजयङ्करि भाग्यप्रदे शरणं शरणं जयलक्ष्मि नमः॥२९॥

परिसेवितभक्तकुलोद्धरिणि परिभावितदासजनोद्धरिणि।
मधुसूदनमोहिनि श्रीरमणि शरणं शरणं तव लक्ष्मि नमः॥२८॥

शुभदायिनि वैभवलक्ष्मि नमो वरदायिनि श्रीहरिलक्ष्मि नमः।
सुखदायिनि मङ्गललक्ष्मि नमो शरणं शरणं सततं शरणम्॥२९॥

वरलक्ष्मि नमो धनलक्ष्मि नमो जयलक्ष्मि नमो गजलक्ष्मि नमः।
जय षोडशलक्ष्मि नमोऽस्तु नमो शरणं शरणं सततं शरणम्॥३०॥

नमो आदिलक्ष्मि नमो ज्ञानलक्ष्मि नमो धान्यलक्ष्मि नमो भाग्यलक्ष्मि।
महालक्ष्मि सन्तानलक्ष्मि प्रसीद नमस्ते नमस्ते नमो शान्तलक्ष्मि॥३०॥

नमो सिद्धिलक्ष्मि नमो मोक्षलक्ष्मि नमो योगलक्ष्मि नमो भोगलक्ष्मि।
नमो धैर्यलक्ष्मि नमो वीरलक्ष्मि नमस्ते नमस्ते नमो शान्तलक्ष्मि॥३१॥

अज्ञानिना मया दोषानशेषान्विहितान् रमे।
क्षमस्व त्वं क्षमस्व त्वं अष्टलक्ष्मि नमोऽस्तुते॥३२॥

देवि विष्णुविलासिनि शुभकरि दीनार्तिविच्छेदिनि
सर्वैश्वर्यप्रदायिनि सुखकरि दारिद्र्यविध्वंसिनि।
नानाभूषितभूषणाङ्गि जननि क्षीराब्धिकन्यामणि
देवि भक्तसुपोषिणि वरप्रदे लक्ष्मि सदा पाहि नः॥३३॥माम्
सद्यःप्रफुल्लसरसीरुहपत्रनेत्रे
हारिद्रलेपितसुकोमलश्रीकपोले।
पूर्णेन्दुबिम्बवदने कमलान्तरस्थे
लक्ष्मि त्वदीयचरणौ शरणं प्रपद्ये॥३४॥

भक्तान्तरङ्गगतभावविधे नमस्ते
रक्ताम्बुजातनिलये स्वजनानुरक्ते।
मुक्तावलीसहितभूषणभूषिताङ्गि
लक्ष्मि त्वदीयचरणौ शरणं प्रपद्ये॥३५॥

क्षामादितापहारिणि नवधान्यरूपे
अज्ञानघोरतिमिरापहज्ञानरूपे।
दारिद्र्यदुःखपरिमर्दितभाग्यरूपे
लक्ष्मि त्वदीयचरणौ शरणं प्रपद्ये॥३६॥

चम्पालताभदरहासविराजवक्त्रे
बिम्बाधरेषु कपिकाञ्चितमञ्जुवाणि।
श्रीस्वर्णकुम्भपरिशोभितदिव्यहस्ते
लक्ष्मि त्वत्वदीयचरणौ शरणं प्रपद्ये॥३७॥

स्वर्गापवर्गपदविप्रदे सौम्यभावे
सर्वागमादिविनुते शुभलक्षणाङ्गि।
नित्यार्चिताङ्घ्रियुगले महिमाचरित्रे
लक्ष्मि त्वत्वदीयचरणौ शरणं प्रपद्ये॥३८॥

जाज्ज्वल्यकुण्डलविराजितकर्णयुग्मे
सौवर्णकङ्कणसुशोभितहस्तपद्मे।
मञ्जीरशिञ्जितसुकोमलपावनाङ्घ्रे
लक्ष्मि त्वत्वदीयचरणौ शरणं प्रपद्ये॥३९॥

सर्वापराधशमनि सकलार्थदात्रि
पर्वेन्दुसोदरि सुपर्वगणाभिरक्षिन्।
दुर्वारशोकमयभक्तगणावनेष्टे
लक्ष्मि त्वदीयचरणौ शरणं प्रपद्ये॥४०॥

बीजाक्षरत्रयविराजितमन्त्रयुक्ते
आद्यन्तवर्णमयशोभितशब्दरूपे।
ब्रह्माण्डभाण्डजननि कमलायताक्षि
लक्ष्मि त्वदीयचरणौ शरणं प्रपद्ये॥४१॥

श्रीदेवि बिल्वनिलये जय विश्वमातः
आह्लाददात्रि धनधान्यसुखप्रदात्रि।
श्रीवैष्णवि द्रविणरूपिणि दीर्घवेणि
लक्ष्मि त्वदीयचरणौ शरणं प्रपद्ये॥४२॥

आगच्छ तिष्ठ तव भक्तगणस्य गेहे
सन्तुष्टपूर्णहृदयेन सुखानि देहि।
आरोग्यभाग्यमकलङ्कयशांसि देहि
लक्ष्मि त्वदीयचरणौ शरणं प्रपद्ये॥४३॥

श्रीआदिलक्ष्मि शरणं शरणं प्रपद्ये
श्रीअष्टलक्ष्मि शरणं शरणं प्रपद्ये।
श्रीविष्णुपत्नि शरणं शरणं प्रपद्ये
लक्ष्मि त्वदीयचरणौ शरणं प्रपद्ये॥४४॥

मङ्गलं करुणापूर्णे मङ्गलं भाग्यदायिनि।
मङ्गलं श्रीमहालक्ष्मि मङ्गलं शुभमङ्गलम्॥४५॥

अष्टकष्टहरे देवि अष्टभाग्यविवर्धिनि।
मङ्गलं श्रीमहालक्ष्मि मङ्गलं शुभमङ्गलम्॥४६॥

क्षीरोदधिसमुद्भूते विष्णुवक्षस्थलालये।
मङ्गलं श्रीमहालक्ष्मि मङ्गलं शुभमङ्गलम्॥४७॥

धनलक्ष्मि धान्यलक्ष्मि विद्यालक्ष्मि यशस्करि।
मङ्गलं श्रीमहालक्ष्मि मङ्गलं शुभमङ्गलम्॥४८॥

सिद्धलक्ष्मि मोक्षलक्ष्मि जयलक्ष्मि शुभङ्करि।
मङ्गलं श्रीमहालक्ष्मि मङ्गलं शुभमङ्गलम्॥४९॥

सन्तानलक्ष्मि श्रीलक्ष्मि गजलक्ष्मि हरिप्रिये।
मङ्गलं श्रीमहालक्ष्मि मङ्गलं शुभमङ्गलम्॥५०॥

दारिद्र्यनाशिनि देवि कोल्हापुरनिवासिनि।
मङ्गलं श्रीमहालक्ष्मि मङ्गलं शुभमङ्गलम्॥५१॥

वरलक्ष्मि धैर्यलक्ष्मि श्रीषोडशभाग्यङ्करि।
मङ्गलं श्रीमहालक्ष्मि मङ्गलं शुभमङ्गलम्॥५२॥

मङ्गलं मङ्गलं नित्यं मङ्गलं जयमङ्गलम्।
मङ्गलं श्रीमहालक्ष्मि मङ्गलं शुभमङ्गलम्॥५३॥

॥श्रीमहालक्ष्मीसुप्रभात स्तोत्रम् शुभमस्तु॥


यहाँ प्रस्तुत स्तोत्रात्मक उपासना में हमने श्री कमला महाविद्या का शतनाम स्तोत्र, कमला स्तोत्र व खड्ग माला स्तोत्र दिया है। श्री कमला खड्गमाला मंत्र या स्तोत्र पर चिन्तन करें तो कई बातें स्पष्ट होती हैं कुछ बातें यहाँ बतलाने का प्रयास करता हूँ। श्री कमला खड्ग माला से भगवती के स्वरूप को समझने में सहायता मिलती है। इसमें भगवती कमला को श्रीकमला यन्त्र के आवरण देवताओं में व्याप्त बतलाया है। इसमें भगवती कमला को कुरण्टकमयि  कहकर संबोधित किया गया है, कुरंटक वज्रदन्ती नामक औषधि है जिसको स्त्रीलिंग में कुरण्टिका भी कहते हैं। वज्रदन्ती औषधि दन्तमंजन को बनाने में प्रयुक्त होती है, दातुन करते समय महालक्ष्मी का स्मरण करने की विधि शास्त्रों में मिलती है। वज्र का संबंध इन्द्र से है, इन्द्र भगवती लक्ष्मी के कृपापात्र रहे हैं।
इसी तरह कमला खड्गमाला में भगवती महालक्ष्मी को पंच तत्व मय , नव ग्रह मय, गुरु मण्डल  मय, सर्व सिद्धि मय बताया गया है। कमला खड्गमाला में प्रत्येक आवरण का एक नाम है उस के नाम के अनुसार ही उसका फल है। अतएव यह कमला खड्गमाला स्तोत्र भक्ति पूर्वक उपासना करने वालों के लिये मंगल कारी, धनप्रद, शक्ति प्रद, संक्षोभण कारक, सौभाग्य प्रद, मनोकामना पूर्ण करने वाला, रोग नाशक आनंद प्रद, शाप नाशक, त्रैलोक्य मोहक है

कमला महाविद्या की स्तोत्रात्मक उपासना

कब करें उपासना- वैसे तो भगवती कमला की आराधना कभी भी कर सकते हैं। शुभ पर्वों पर जैसे - नवरात्रि, होली, अक्षय तृतीया, आश्विन पूर्णिमा = शरद पूर्णिमा, रमा एकादशी, धन-त्रयोदशी, फाल्गुन की पूर्णिमा, दीपावली में तो विशेषतः यह उपासना करें।  उपरोक्त अवसरों के अलावा पंचमी, एकादशी, द्वादशी पूर्णिमा, अमावास्या , संक्रान्ति, गुरुवार या शुक्रवार के दिन महाविद्या कमला की उपासना के लिये शुभ हैं। साधना के लिये तीव्र इच्छा हो तो अन्य किसी दिन या प्रतिदिन भी यह उपासना कर सकते हैं। इनकी आराधना प्रातः, सायं, रात्रि तीनों समय में हो सकती है। 

सामग्री - अपने सामने कमला महाविद्या का चित्र अथवा यन्त्र रखें, कलर प्रिन्ट निकलवाकर भी रख सकते हैं। इसके अलावा लक्ष्मी जी की मूर्ति या श्री यन्त्र पर भी यह पूजन किया जाता है। पूजा में यह ध्यान रखें कि लक्ष्मी जी की साक्षात् मूर्ति उपलब्ध हो तो फिर वहाँ यन्त्र नहीं रखा जाता है। लेकिन यदि लक्ष्मी जी की मूर्ति और श्रीकमला यन्त्र दोनों साथ रखे हैं तो दोनों की पूजा करनी होगी। पूजा के समय मूर्ति को जो अर्पित करें वही यन्त्र को भी अर्पित करें।
* विष्णु प्रतिमा या चित्र
*शिव प्रतिमा/चित्र ( गुरु पूजन के लिये)
* साथ में जल युक्त पात्र, आचमनी, रोली, चंदन- पाउडर हो तो अच्छा, अक्षत, फूल, नैवेद्य, दीपक (तेल या घी का ), धूप।
*पुष्प के अभाव में चन्दन मिश्रित अक्षत चढ़ाते हैं। चावल टूटे हुए नहीं हों।
*सफेद या लाल फूल, गेंदा, गुलदाउदी, कमल, कनेर का फूल हो तो उत्तम। कमलगट्टा( पूजा की दुकान पर मिलेगा) अर्पित करे।

संकल्प
श्री गणपतिर्जयति विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः ओऽम् तत्सदद्य श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य श्रीब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्रीश्वेतवाराह-कल्पे वैवस्वत-मन्वन्तरे, अष्टाविंशति-तमे कलियुगे, कलि-प्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे पुण्यभूप्रदेशे------प्रदेशे ----- नगरे (......ग्रामे), ..... नाम्नि सम्वत्सरेसूर्य (उत्तरायणे/दक्षिणायने)-----ऋतौ,------मासे --------पक्षे , ----तिथौ, -----वासरे ------गोत्रोत्पन्नो ------(नाम) अहं अद्य श्री हरि नारायण सहिता श्री कमला महाविद्या प्रीत्यर्थं, स्थिर लक्ष्मी प्राप्त्यर्थं श्री महालक्ष्मी कमला महाविद्या अष्टोत्तरशत नाम मन्त्रैः यथाशक्ति यजनं कृत्वा श्रीकमला-खड्गमाला आदि स्तोत्रैः स्तुतिं करिष्ये।

ध्यान – १

अक्षस्रक्‌परशुं गदेषुकुलिशं पद्मं धनुष्कुण्डिकां
दण्डं शक्तिमसिं च चर्म जलजं घण्टां सुराभाजनम्।
शूलं पाशसुदर्शने च दधतीं हस्तैः प्रसन्नाननां
सेवे सैरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थिताम्॥

अर्थात् मैं कमल के आसन पर बैठी हुई प्रसन्न मुख वाली महिषासुरमर्दिनी भगवती महालक्ष्मी का भजन करता हूँ, जो अपने हाथों में अक्षमाला, फरसा, गदा, बाण, वज्र, पद्म, धनुष, कुण्डिका, दण्ड, शक्ति, खड्ग, ढ़ाल, शंख, घंटा, मधुपात्र, शूल, पाश और चक्र धारण करती हैं ।(दुर्गा सप्तशती से)



ध्यान — २
श्वेतचम्पक-वर्णाभां शतचन्द्र - समप्रभाम्।
वह्निशुद्धां - शुकाधानां रत्नभूषण - भूषिताम्॥
ईषद्धास्य—प्रसन्नास्यां भक्तानुग्रह -कारिकाम्।
सहस्रदल—पद्मस्थां स्वस्थां च सुमनोहराम्॥ 
शान्तां च श्रीहरेः कान्तां,
तां भजेज्जगतां प्रसूम्॥(ब्रह्मवैवर्त्त पुराण के गणपतिखण्ड में)

अर्थात्  जिनके शरीर की आभा श्वेत चन्द्रमाओं के समान है, जो अग्नि में तपाकर शुद्ध की हुई साड़ी को धारण करती हैं तथा रत्ननिर्मित आभूषणों से विभूषित हैं, जो भक्तों पर अनुग्रह करने वाली, स्वस्थ और अत्यन्त मनोहर हैं, सहस्रदल कमल जिनका आसन है, जो परम शान्त तथा श्रीहरि विष्णु की प्रियतमा पत्नी हैं, उन जगज्जननी श्रीकमला महालक्ष्मी भगवती का भजन करना चाहिये।

मानस पूजा -  लं पृथिवी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्री हरि नारायण सहिता श्री महालक्ष्मी कमला महाविद्या पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (कनिष्ठिका अंगुली से अंगूठे को मिलाकर अधोमुख(नीची) करके भगवान को दिखाए, यह गन्ध मुद्रा है)

• हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्री हरि नारायण सहिता श्री महालक्ष्मी कमला महाविद्या पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (अधोमुख तर्जनी व अंगूठा मिलाकर बनी पुष्प मुद्रा दिखाए)

• यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्री हरि नारायण सहिता श्री महालक्ष्मी कमला महाविद्या पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्वमुख(ऊपर को) तर्जनी व अंगूठे को मिलाकर दिखाए)

• रं वह्नि-तत्त्वात्मकं दीपं श्री हरि नारायण सहिता श्री महालक्ष्मी कमला महाविद्या पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्व मुख मध्यमा व अंगूठे को दिखाए)

• वं अमृत-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्रीहरि नारायण सहिता श्री महालक्ष्मी कमला महाविद्या पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्व मुख अनामिका व अंगूठे को दिखाए)

• सौं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलादि सर्वोपचाराणि मनसा परिकल्प्य श्री हरि नारायण सहिता श्री महालक्ष्मी कमला परदेवता श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(सभी अंगुलियों को मिलाकर ऊर्ध्वमुखी करते हुए दिखाये)
उपरोक्त मुद्राओं को समझने के लिये यहाँ क्लिक करें।

महागणपति पूजन- पुष्प या अक्षत अर्पित करे-
• ऐं आत्म तत्व व्यापकाय महा-गणपतये श्री पादुकां पूजयामि नमः।
• ह्रीं विद्या तत्व व्यापकाय महा-गणपतये श्री पादुकां पूजयामि नमः।
• क्लीं शिव तत्व व्यापकाय महा-गणपतये श्री पादुकां पूजयामि नमः।

गुरु पूजा - अपने गुरू का पूजन करे गुरु न हों तो पुष्प शिव जी को चढ़ा दे - श्री दक्षिणामूर्तये तुभ्यं वटमूल-निवासिने ध्यानैक निरतांगाय नमः रुद्राय शम्भवे, श्री दक्षिणामूर्ति गुरवे नमः श्रीगुरुपादुकां पूजयामि नमः 
गुरु को नमस्कार करे-
• गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः,
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।
• अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया, चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः।

श्री हरि विष्णु पूजा - ध्यान करके फूल विष्णु जी को चढा दें -

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं।

विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्।

लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यान-गम्यं।

वन्दे विष्णुं भव—भय—हरं सर्व-लोकैकनाथम्॥

(जिनकी आकृति अतिशय शांत है, जो शेषनाग की शैया पर शयन किए हुए हैं, जिनकी नाभि में कमल है, जो ‍देवताओं के भी ईश्वर और संपूर्ण जगत के आधार हैं, जो आकाश के सदृश सर्वत्र व्याप्त हैं, नीले बादल के समान जिनका वर्ण है, अतिशय सुंदर जिनके संपूर्ण अंग हैं, जो योगियों द्वारा ध्यान करके प्राप्त किए जाते हैं, जो संपूर्ण लोकों के स्वामी हैं, जो जन्म-मरण रूप भय का नाश करने वाले हैं, ऐसे लक्ष्मीपति, कमलनेत्र भगवान श्रीविष्णु को मैं प्रणाम करता हूँ।)

 श्री हरि नारायणाय नमः। 
नमोऽस्तु अनंताय सहस्र मूर्तये, सहस्र पादाक्षि शिरोरु बाहवे।
सहस्र नाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्र-कोटीयुग धारिणे नम:।
अच्युताय नमः। अनन्ताय नमः। गोविंदाय नमः। श्री विष्णु पादुकां पूजयामि नमः।



श्री कमला शतार्चन विधि - एक-एक फूल या अक्षत प्रत्येक नाम मंत्र पढ़ते हुए अर्पित करते जायें-

 श्रीकमलाष्टोत्तरशत नामावली

  1. श्रीमहामायायै नमः।
  2. श्रीमहालक्ष्म्यै नमः।
  3. श्रीमहावाण्यै नमः।
  4. श्रीमहेश्वर्यै नमः।
  5. श्रीमहादेव्यै नमः।
  6. श्रीमहारात्र्यै नमः।
  7. श्रीमहिषासुरमर्दिन्यै नमः।
  8. श्रीकालरात्र्यै नमः।
  9. श्रीकुहवै नमः।
  10. श्रीपूर्णायै नमः। 
  11. आनन्दायै नमः।
  12. श्रीआद्यायै नमः।
  13. श्रीभद्रिकायै नमः।
  14. श्रीनिशायै नमः।
  15. श्रीजयायै नमः।
  16. श्रीरिक्तायै नमः।
  17. श्रीमहाशक्त्यै नमः।
  18. श्रीदेवमात्रे नमः।
  19. श्रीकृशोदर्यै नमः।
  20. श्रीशच्यै नमः। 
  21. श्रीइन्द्राण्यै नमः।
  22. श्रीशक्रनुतायै नमः।
  23. श्रीशङ्कर-प्रियवल्लभायै नमः।
  24. श्रीमहावराह-जनन्यै नमः।
  25. श्रीमदनोन्मथिन्यै नमः।
  26. श्रीमह्यै नमः।
  27. श्रीवैकुण्ठनाथ-रमण्यै नमः।
  28. श्रीविष्णुवक्षस्थल-स्थितायै नमः।
  29. श्रीविश्वेश्वर्यै नमः।
  30. श्रीविश्वमात्रे नमः।
  31. श्रीवरदायै नमः।
  32. श्रीअभयदायै नमः।
  33. श्रीशिवायै नमः।
  34. श्रीशूलिन्यै नमः।
  35. श्रीचक्रिण्यै नमः।
  36. श्रीपद्मायै नमः।
  37. श्रीपाशिन्यै नमः।
  38. श्रीशङ्ख-धारिण्यै नमः।
  39. श्रीगदिन्यै नमः।
  40. श्रीमुण्डमालिन्यै नमः। 
  41. श्रीकमलायै नमः।
  42. श्रीकरुणालयायै नमः।
  43. श्रीपद्माक्ष-धारिण्यै नमः।
  44. श्रीअम्बायै नमः।
  45. श्रीमहाविष्णु-प्रियङ्कर्यै नमः।
  46. श्रीगोलोकनाथ-रमण्यै नमः।
  47. श्रीगोलोकेश्वर-पूजितायै नमः।
  48. श्रीगयायै नमः।
  49. श्रीगङ्गायै नमः।
  50. श्रीयमुनायै नमः। 
  51. श्रीगोमत्यै नमः।
  52. श्रीगरुडासनायै नमः।
  53. श्रीगण्डक्यै नमः।
  54. श्रीसरय्वै नमः।
  55. श्रीताप्यै नमः।
  56. श्रीरेवायै नमः।
  57. श्रीपयस्विन्यै नमः।
  58. श्रीनर्मदायै नमः।
  59. श्रीकावेर्यै नमः।
  60. श्रीकेदार-स्थल-वासिन्यै नमः।
  61. श्रीकिशोर्यै नमः।
  62. श्रीकेशवनुतायै नमः।
  63. श्रीमहेन्द्र-परिवन्दितायै नमः।
  64. श्रीब्रह्मादिदेव-निर्माण-कारिण्यै नमः।
  65. श्रीदेवपूजितायै नमः।
  66. श्रीकोटिब्रह्माण्ड-मध्यस्थायै नमः।
  67. श्रीकोटि-ब्रह्माण्डकारिण्यै नमः।
  68. श्रीश्रुतिरूपायै नमः।
  69. श्रीश्रुतिकर्य्यै नमः।
  70. श्रीश्रुतिस्मृति-परायणायै नमः। 
  71. श्रीइन्दिरायै नमः।
  72. श्रीसिन्धुतनयायै नमः।
  73. श्रीमातङ्ग्यै नमः।
  74. श्रीलोकमातृकायै नमः।
  75. श्रीत्रिलोकजनन्यै नमः।
  76. श्रीतन्त्रायै नमः।
  77. श्रीतन्त्रमन्त्र-स्वरूपिण्यै नमः।
  78. श्रीतरुण्यै नमः।
  79. श्रीतमोहन्त्र्यै नमः।
  80. श्रीमङ्गलायै नमः।
  81. श्रीमङ्गलायनायै नमः।
  82. श्रीमधुकैटभ-मथिन्यै नमः।
  83. श्रीशुम्भासुरविनाशिन्यै नमः।
  84. श्रीनिशुम्भादिहरायै नमः।
  85. श्रीमात्रे नमः।
  86. श्रीहरि-शंकर-पूजितायै नमः।
  87. श्रीसर्वदेवमय्यै नमः।
  88. श्रीसर्वायै नमः।
  89. श्रीशरणागत-पालिन्यै नमः।
  90. श्रीशरण्यायै नमः।
  91. श्रीशम्भु-वनितायै नमः।
  92. श्रीसिन्धुतीर-निवासिन्यै नमः।
  93. श्रीगन्धर्व-गान-रसिकायै नमः।
  94. श्रीगीतायै नमः।
  95. श्रीगोविन्द-वल्लभायै नमः।
  96. श्रीत्रैलोक्य-पालिन्यै नमः।
  97. श्री तत्त्वरूपिण्यै नमः।
  98. श्री तारुण्यपूरितायै नमः।
  99. श्रीचन्द्रावल्यै नमः।
  100. श्रीचन्द्रमुख्यै नमः। 
  101. श्रीचन्द्रिकायै नमः।
  102. श्रीचन्द्रपूजितायै नमः।
  103. श्रीचन्द्रायै नमः।
  104. श्रीशशाङ्क-भगिन्यै नमः।
  105. श्रीगीतवाद्य-परायणायै नमः।
  106. श्रीसृष्टिरूपायै नमः।
  107. श्रीसृष्टिकर्यै नमः।
  108. श्रीसृष्टिसंहार-कारिण्यै नमः। 

इसके बाद मूल कमला अष्टोत्तर शत नाम स्तोत्र का पाठ करें -
श्रीशिव उवाच
शतमष्टोत्तरं नाम्नां कमलाया वरानने।
प्रवक्ष्याम्यतिगुह्यं हि न कदापि प्रकाशयेत्॥१॥
(शिव जी ने कहा - हे सुन्दर मुख वाली! कमला के गुप्त 108 नामों को कहता हूं जिस किसी को कभी भी इसका प्रकाशन न करे।)
महामाया महा-लक्ष्मीर्महा-वाणी महेश्वरी।
महादेवी महा-रात्रिर्महिषासुर-मर्दिनी॥२॥

कालरात्रिः कुहूः पूर्णा नन्दाऽऽद्या भद्रिका निशा।
जया रिक्ता महाशक्ति-र्देवमाता कृशोदरी॥३॥

शचीन्द्राणी शक्रनुता शङ्कर-प्रिय-वल्लभा।
महावराह - जननी मदनोन्मथिनी मही॥४॥

वैकुण्ठनाथ-रमणी विष्णुवक्षःस्थल-स्थिता।
विश्वेश्वरी विश्वमाता वरदाऽभयदा शिवा॥५॥

शूलिनी चक्रिणी मा च पाशिनी शङ्ख-धारिणी।
गदिनी मुण्डमाला च कमला करुणालया॥६॥

पद्माक्ष-धारिणी ह्यम्बा महाविष्णु-प्रियङ्करी।
गोलोकनाथ-रमणी गोलोकेश्वर-पूजिता॥७॥

गया गङ्गा च यमुना गोमती गरुडासना।
गण्डकी सरयूस्तापी रेवा चैव पयस्विनी॥८॥

नर्मदा चैव कावेरी केदारस्थल-वासिनी।
किशोरी केशवनुता महेन्द्र-परिवन्दिता॥९॥

ब्रह्मादिदेव-निर्माण-कारिणी वेदपूजिता।
कोटिब्रह्माण्ड—मध्यस्था कोटिब्रह्माण्ड—कारिणी॥१०॥

श्रुतिरूपा श्रुतिकरी श्रुतिस्मृति -परायणा।
इन्दिरा सिन्धुतनया मातङ्गी लोकमातृका॥११॥

त्रिलोकजननी तन्त्रा तन्त्रमन्त्र-स्वरूपिणी।
तरुणी च तमोहन्त्री मङ्गला मङ्गलायना॥१२॥

मधुकैटभ-मथनी शुम्भासुर-विनाशिनी।
निशुम्भादि हरा माता हरिशङ्कर-पूजिता॥१३॥

सर्वदेवमयी सर्वा शरणागत-पालिनी।
शरण्या शम्भुवनिता सिन्धुतीर-निवासिनी॥१४॥

गन्धर्वगान-रसिका गीता गोविन्द-वल्लभा।
त्रैलोक्य-पालिनी तत्त्वरूपा तारुण्य-पूरिता॥१५॥

चन्द्रावली चन्द्रमुखी चन्द्रिका चन्द्रपूजिता।
चन्द्रा शशाङ्क-भगिनी गीतवाद्य-परायणा॥१६॥

सृष्टिरूपा सृष्टिकरी सृष्टिसंहार-कारिणी।

फलश्रुति
इति ते कथितं देवि रमा-नाम-शताष्टकम्॥१७॥
(इस प्रकार ये महालक्ष्मी के 108 नाम कहे गये।)
त्रिसन्ध्यं प्रयतो भूत्वा पठेदेतत्समाहितः।
यं यं कामयते कामं तं तं प्राप्नोत्यसंशयः॥१८॥
(इस स्तोत्र को पवित्र होकर तीनों संध्याओं में अर्थात् प्रातः मध्याह्न व सायं काल में एकाग्र चित्त से पढ़े तो जो जो कामना करता है वह वह प्राप्त होता है इसमें संशय नहीं। )

इमं स्तवं यः पठतीह मर्त्यो वैकुण्ठपत्न्याः परमादरेण।
धनाधिपाद्यैः परिवन्दितः स्यात् प्रयास्यति श्री-पदमन्तकाले॥१९॥
(विष्णु जी की पत्नी के इस स्तव को पृथ्वी लोक में जो अति आदर पूर्वक पढ़ता है वह धन के स्वामियों द्वारा वन्दित होता है अन्तकाल में श्री लक्ष्मी जी के चरणों की सन्निधि पाता है।)

॥श्रीकमलाष्टोत्तर-शतनाम-स्तोत्रं शुभमस्तु॥

श्री कमला स्तोत्रम् (विष्णुपुराणोक्त)

प्रणव-रूपिणी देवि विशुद्ध-सत्त्व-रूपिणी।
देवानां जननी त्वं हि प्रसन्ना भव सुन्दरि॥१॥

(हे देवी लक्ष्मी! आप प्रणव स्वरूपिणी हैं, आप विशुद्ध सत्त्वगुण-रूपिणी और देवताओं की माता हैं। हे सुंदरी! आप हम पर प्रसन्न हों।)

तन्मात्रंचैव भूतानि तव वक्षस्थलं स्मृतम्।
त्वमेव वेदगम्या तु प्रसन्ना भव सुंदरि॥२॥

(हे सुंदरी! पंचभूत और पंचतन्मात्रा आपके वक्षस्थल हैं,केवल वेद द्वारा ही आपको जाना जाता है।आप मुझ पर कृपा करें।)

देवदानव-गन्धर्व-यक्ष-राक्षस-किन्नरः।
स्तूयसे त्वं सदा लक्ष्मि प्रसन्ना भव सुन्दरि॥३॥

(हे देवी लक्ष्मी! देव, दानव, गंधर्व, यक्ष, राक्षस और किन्नर सदा आपकी स्तुति करते हैं। आप हम पर प्रसन्न हों।)

लोकातीता द्वैतातीता समस्तभूतवेष्टिता।
विद्वज्जनकीर्त्तिता च प्रसन्ना भव सुंदरि॥४॥

(हे जननी! आप संसार और द्वैत से परे और समस्त प्राणियों से घिरी हुई हैं। विद्वान लोग सदा आपका गुण-कीर्तन करते हैं। हे सुंदरी! आप मुझ पर प्रसन्न हों।)

परिपूर्णा सदा लक्ष्मी त्रात्री तु शरणार्थिषु।
विश्वाद्या विश्वकर्त्री च प्रसन्ना भव सुन्दरि॥५॥

(हे देवी लक्ष्मी! आप परिपूर्ण हो, शरणागतों की रक्षा करने वाली, विश्व की आदि और रचना करने वाली हैं। हे सुन्दरी! आप मुझ पर प्रसन्न होइये।) 

ब्रह्मरूपा च सावित्री त्वद्दीप्त्या भासते जगत्।
विश्वरूपा वरेण्या च प्रसन्ना भव सुंदरि॥६॥

(आप ब्रह्मरूपिणी, सावित्री हैं। आपके प्रकाश से ही संसार प्रकाशित होता है, आप विश्वरूपा और ध्यान करने योग्य हैं।
हे सुंदरी! आप मुझ पर कृपा करें।)

क्षित्यप्तेजो - मरूद्व्योम पंचभूत-स्वरूपिणी।
बन्धादेः कारणं त्वं हि प्रसन्ना भव सुंदरि॥७॥

(हे देवि! भूमि, जल, तेज, वायु और आकाश ये पंचभूत आपके ही स्वरूप हैं आप पृथ्वी की गंध, जल का रस, तेज का रूप, वायु का स्पर्श हो और आकाश का शब्द आप ही हो, इन पंचभूतों के गुण प्रपंचों का कारण आप ही हैं, आपके प्रभाव से ही ये गुण-समूह प्रकाशित होते हैं। आप हम पर प्रसन्न हों।)

महेशे त्वं हेमवती कमला केशवेऽपि च।
ब्रह्मणः प्रेयसी त्वं हि प्रसन्ना भव सुंदरि॥८॥

(हे देवी! आप श्रीमहेश की प्रिया हेमवती - श्रीपार्वती हैं। आप श्रीकेशव की प्रिया श्रीकमला और श्रीब्रह्मा की प्रेयसी श्री ब्रह्माणी हैं, आप हम पर प्रसन्न हों।)

चंडी दुर्गा कालिका च कौशिकी सिद्धिरूपिणी।
योगिनी योगगम्या च प्रसन्ना भव सुन्दरि॥९॥

(हे चंडिका! दुर्गा, कालिका, कौशिकी, सिद्धिरूपिणी और  योग द्वारा प्राप्त होने वाली योगिनी, हे सुन्दरी! आप हम पर प्रसन्न हों।)

बाल्ये च बालिका त्वं हि यौवने युवतीति च।
स्थविरे वृद्धरूपा च प्रसन्ना भव सुन्दरि॥१०॥

(हे देवि! आप बाल्यकाल में बालिका यौवनकाल में युवती और वार्द्धक्य में वृद्धारूप से प्रकाशित होती हो। हे स्त्रीशक्तिरूपिणी सुन्दरि! आप हमारे प्रति प्रसन्न हों।)

गुणमयी गुणातीता आद्या विद्या सनातनी।
महत्तत्त्वादि-संयुक्ता प्रसन्ना भव सुन्दरि॥११॥

(हे गुणमयी, गुणों से परे, आदि, विद्या, सनातनी और महत्तत्त्वादि से संयुक्त हे सुंदरी! हम पर प्रसन्न हों।)

तपस्विनी तपः सिद्धि स्वर्गसिद्धिस्तदर्थिषु।
चिन्मयी प्रकृतिस्त्वं तु प्रसन्ना भव सुंदरि॥१२॥

(हे जननि ! आप तपस्वियों की तप:सिद्धि स्वर्गाकांक्षियों की स्वर्गसिद्धि हो, आप ही आनन्दस्वरूप हो और आप ही मूलप्रकृति हो, हे सुन्दरि ! आप हमारे प्रति प्रसन्न हों।)

त्वमादिर्जगतां देवि त्वमेव स्थितिकारणम्।
त्वमन्ते निधनस्थानं स्वेच्छाचारा त्वमेवहि॥१३॥

(हे देवि! आप संसार की आदि हो, स्थिति का एकमात्र कारण हो। देह के अंत में जीवगण आपके ही निकट जाते हैं।आप स्वेच्छा से विचरण करती हैं। आप हम पर प्रसन्न हों।)

चराचराणां भूतानां बहिरन्तस्त्वमेव हि।
व्याप्य-व्याकरूपेण त्वं भासि भक्तवत्सले॥१४॥

(हे भक्तवत्सले! आप चराचर जीवगणों के बाहर और भीतर दोनों स्थलों में विराजमान रहती हैं, आप ही व्याप्त और व्यापक रूप से प्रकाशित होती हो, आपको नमस्कार है।)

त्वन्मायया हृतज्ञाना नष्टात्मनो विचेतसः।
गतागतं प्रपद्यन्ते पापपुण्य-वशात्सदा॥१५॥

(जीव आपकी माया से ही अज्ञानी और चेतनारहित होकर पाप व पुण्य कर्मों के कारण बारम्बार इस संसार में आवागमन करते हैं।)

तावन्सत्यं जगद्भाति शुक्तिकारजतं यथा।
यावन्न ज्ञायते ज्ञानं चेतसा नान्वगामिनी॥१६॥

(जैसे सीपी में अज्ञानतावश चाँदी का भ्रम हो जाता है और फिर उसके स्वरूप का ज्ञान होने पर वह भ्रम दूर हो जाता है, वैसे ही जबतक ज्ञानमय चित्त में तुम्हारा स्वरूप नहीं जाना जाता है तब तक ही यह जगत्‌ सत्य-सा भासित होता है, परन्तु तुम्हारे स्वरूप का ज्ञान हो जाने से इस सारे संसार के मिथ्याभूत होने का ज्ञान हो जाता है।)

त्वज्ज्ञानात्तु सदा युक्तः पुत्रदारगृहादिषु।
रमन्ते विषयान्सर्वानन्ते दुखप्रदान् ध्रुवम्॥१७॥

(मनुष्य आपके ज्ञान से पृथक रहते हुए जगत् को ही सत्य मानकर पुत्र पत्नी घर आदि अनन्त दुखप्रद विषयों में ही लगे रहते हैं।)

त्वदाज्ञया तु देवेशि गगने सूर्यमण्डलम्।
चन्द्रश्च भ्रमते नित्यं प्रसन्ना भव सुन्दरि॥१८॥

(हे देवेश्वरी! आपकी आज्ञा से ही आकाश में सौरमण्डल में चंद्रमा आकाश मण्डल में नित्य भ्रमण करता है। आप हम पर प्रसन्न हों।)

ब्रह्मेशविष्णु-जननी ब्रह्माख्या ब्रह्मसंश्रया।
व्यक्ताव्यक्त च देवेशि प्रसन्ना भव सुन्दरि॥१९॥

[हे देवेश्वरी! हे ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर की जननी! हे ब्रह्म कहलाने वालीं और ब्रह्म को सहारा देने वाली! व्यक्त(प्रगट) और अव्यक्त(गुप्त) रूपिणी हे सुन्दरी! आप हम पर प्रसन्न हों।]

अचला सर्वगा त्वं हि मायातीता महेश्वरि।
शिवात्मा शाश्वता नित्या प्रसन्ना भव सुन्दरि॥२०॥
(हे अचला! सर्वगामिनी! आप ही  माया से परे, महेश्वरी, शिवात्मा, शाश्वत और नित्य हो। हे सुन्दरी! आप हम पर प्रसन्न हों।)

सर्वकायनियन्त्री च सर्वभूतेश्वरी।
अनन्ता निष्कला त्वं हि प्रसन्ना भवसुन्दरि॥२१॥

(हे सबकी देह को नियंत्रित(रक्षा) करने वाली! सम्पूर्ण जीवों की ईश्वरी! अनन्त और कलारहित हे सुन्दरी! आप हम पर प्रसन्न हों।)

सर्वेश्वरी सर्ववन्द्या अचिन्त्या परमात्मिका।
भुक्तिमुक्तिप्रदा त्वं हि प्रसन्ना भव सुन्दरि॥२२॥

(हे सर्वेश्वरी! सभी के द्वारा वन्दित देवी!कल्पनातीत, परमात्मिका! तुम भुक्ति और मुक्ति देने वाली हो। हे सुंदरि! हम पर प्रसन्न हों।)

ब्रह्माणी ब्रह्मलोके त्वं वैकुण्ठे सर्वमंगला।
इंद्राणी अमरावत्यामम्बिका वरूणालये॥२३॥

(हे देवी तुम ब्रह्मलोक में ब्रह्माणी, वैकुण्ठ में सर्वमंगला हो! अमरावती में इंद्राणी और वरूणालय में अम्बिका-स्वरूपिणी हो! आपको नमस्कार है।)

यमालये कालरूपा कुबेर-भवने शुभा।
महानन्दाग्निकोणे च प्रसन्ना भव सुन्दरि॥२४॥

(हे यमलोक में स्थित मृत्युरूपिणी, कुबेर के भवन में शुभदायिनी और अग्निकोण में स्थित महानन्दा-स्वरूपिणी, हे सुन्दरी! आप हम पर प्रसन्न हों।)

नैर्ऋत्यां रक्तदन्ता त्वं वायव्यां मृगवाहिनी।
पाताले वैष्णवीरूपा प्रसन्ना भव सुन्दरि॥२५॥

(हे देवी! आप नैर्ऋत्य दिशा में रक्तदन्ता, वायव्य दिशा में मृगवाहिनी और पाताल में वैष्णवी रूप से विराजमान रहती हैं। हे सुंदरी!आप हम पर प्रसन्न हों।)

सुरसा त्वं मणिद्वीपे ऐशान्यां शूलधारिणी।
भद्रकाली च लंकायां प्रसन्ना भव सुन्दरि॥२६॥

(आप मणिद्वीप में सुरसा, उत्तर-पूर्व में शूलधारिणी और लंकापुरी में भद्रकाली रूप में स्थित रहती हैं। हे सुंदरी! आप हम पर प्रसन्न हों।)

रामेश्वरी सेतुबन्धे सिंहले देवमोहिनी।
विमला त्वं च श्रीक्षेत्रे प्रसन्ना भव सुन्दरि॥२७॥

[हे सुन्दरी देवी! आप सेतुबन्ध में रामेश्वरी, सिंहलद्वीप में देवमोहिनी और श्रीक्षेत्र(पुरुषोत्तम क्षेत्र-जगन्नाथपुरी) में विमला नाम से स्थित रहती हैं। हे सुंदरी!आप हम पर प्रसन्न हों।]

कालिका त्वं कालिघट्टे कामाख्या नीलपर्वते।
विरजा ओड्रदेशे त्वं प्रसन्ना भव सुंदरि॥२८॥
(हे सुंदर देवी! आप कालीघाट पर कालिका, नीलपर्वत पर कामाख्या और औड्र देश में विरजारूप में विराजमान रहती हैं।हे सुंदरी! आप हम पर प्रसन्न हों)

वाराणस्यामन्नपूर्णा अयोध्यायां महेश्वरी।
गयासुरी गयाधाम्नि प्रसन्ना भव सुंदरि॥२९॥

(हे देवी! आप वाराणसी क्षेत्र में अन्नपूर्णा, अयोध्या नगरी में माहेश्वरी और गयाधाम में गयासुरी रूप से विराजमान रहती हैं। हे सुंदरी! आप हम पर प्रसन्न हों।)

भद्रकाली कुरुक्षेत्रे त्वं च कात्यायनी व्रजे।
माहामाया द्वारकायां प्रसन्ना भव सुन्दरि॥३०॥

(हे देवी! आप कुरूक्षेत्र में भद्रकाली, ब्रज-धाम में कात्यायनी और द्वारकापुरी में महामाया रूप में विराजमान रहती हैं। हे देवी! आप हम पर प्रसन्न हों।)

क्षुधा त्वं सर्वजीवानां वेला च सागरस्य हि।
महेश्वरी मथुरायां च प्रसन्ना भव सुन्दरि॥३१॥
(हे देवी! आप सम्पूर्ण जीवों में क्षुधारूपिणी हैं, आप मथुरानगरी में महेश्वरी रूप में विराजमान रहती हैं। हे देवी! आप हम पर प्रसन्न हों।)

रामस्य जानकी त्वं च शिवस्य मनमोहिनी।
दक्षस्य दुहिता चैव प्रसन्ना भव सुन्दरि॥३२॥

(हे देवी! आप श्रीराम की श्रीजानकी और श्रीशिव को मोहने वाली दक्ष की पुत्री हैं। हे देवी! आप हम पर प्रसन्न हों।)

विष्णुभक्तिप्रदां त्वं च कंसासुरविनाशिनी।
रावणनाशिनीं चैव प्रसन्ना भव सुन्दरि॥३३॥

(आप विष्णु जी की भक्ति देने वाली, कंस असुर का विनाश करने वाली और रावण का नाश करने वाली हैं। हे सुंदरी! आप हम पर प्रसन्न हों।)

फलश्रुति
लक्ष्मीस्तोत्रमिदं पुण्यं यः पठेद्भक्ति संयुतः।
सर्वज्वर-भयं नश्येत्सर्वव्याधि निवारणम्॥३४॥

( जो प्राणी भक्ति सहित इस पवित्र लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करता है, उसे किसी प्रकार का ज्वर का भय नहीं रहता है, सभी व्याधियाँ दूर होती हैं।)

इदं स्तोत्रं महापुण्य-मापदुद्धार -कारणम्।
त्रिसंध्य-मेकसन्ध्यं वा यः पठेत्सततं नरः॥३५॥

मुच्यते सर्वपापेभ्यो तथा तु सर्व-संकटात्।
मुच्यते नात्र सन्देहो भुवि स्वर्गे रसातले॥३६॥

(यह स्तोत्र परम पवित्र और विपत्ति का नाशक है। जो प्राणी तीनों संध्याओं में अथवा केवल एक बार ही इसका प्रतिदिन पाठ करता हैवह सभी पापों से छूट जाता है। स्वर्ग, मर्त्य, पाताल आदि में कहीं भी उसको किसी प्रकार का संकट नहीं होता, इसमें संदेह नहीं।)

समस्तं च तथा चैकं यः पठेद्भक्तित्परः।
स सर्वदुष्करं तीर्त्वा लभते परमां गतिम्॥३७॥

(जो प्राणी भक्तियुक्त चित्त से सम्पूर्ण स्तोत्र अथवा इसका एक श्लोक भी पढ़ता है, वह कष्ट से छूटकर श्रेष्ठ गति को प्राप्त करता है।)

सुखदं मोक्षदं स्तोत्रं यः पठेद्भक्तिसंयुक्तः।
स तु कोटितीर्थफलं प्राप्नोति नात्र संशयः॥३८॥
(जो भक्तियुक्त होकर सुख और मोक्ष के देने वाले इस लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करता है, उसको करोड़ तीर्थों के भ्रमण का फल प्राप्त होता है, इसमें संदेह नहीं है।)

एका देवी तु कमला यस्मिंस्तुष्टा भवेत्सदा।
तस्याऽसाध्यं तु देवेशि नास्ति किंचिज्जगत् त्रये॥३९॥
(हे देवेश्वरी! जिस भक्त से एकमात्र कमला  प्रसन्न हों, उसको तीनों लोकों में कुछ भी असंभव नहीं है।)

पठनादपि स्तोत्रस्य किं न सिद्धयति भूतले।
तस्मात्स्तोत्र-वरं प्रोक्तं सत्यं सत्यं हि पार्वति॥४०॥
(इस स्तोत्र को पढ़ने मात्र से भी पृथ्वी पर क्या कुछ नहीं सुलभ हो सकता!  इस कारण से यह श्रेष्ठ स्तोत्र मैंने तुम्हें कहा हे पार्वती! यह सत्य है।)
॥श्रीकमला स्तोत्रं शुभमस्तु॥

श्रीकमलात्मिका खड्ग माला स्तोत्र

जिस प्रकार श्रीविद्या खड्गमाला स्तोत्र है उसी प्रकार यह भी प्राप्त होता है। श्री विद्या खड्गमाला के ही सदृश इसका भी फल समझे। इसका पाठ करना शीघ्र कृपा दिलाने वाला व कल्याणकारी है। देवी लक्ष्मी के विग्रह के आगे इसका पाठ करने से श्री लक्ष्मी यंत्र की आराधना स्वतः हो जाती है।

श्री कमला खड्गमाला स्तोत्र का तीनों समय(सुबह, मध्याह्न, शाम) एक-एक पाठ प्रतिदिन करे। ऐसा एक महीने तक करने से "श्री कमला/महालक्ष्मी मंत्र के मासिक पुरश्चरण" के समान ही फल होता है।

विनियोग -हाथ में जल लेकर कहें-

अस्य श्रीकमलात्मिका खड्गमाला स्तोत्र महामन्त्रस्य भृगुदक्षब्रह्म ऋषयः, नानाछन्दांसि, श्रीकमलात्मिका देवता, श्रीं बीजं, ऐं शक्तिः, ह्रीं कीलकम्, श्री कमलात्मिका महालक्ष्मी भगवती प्रीति द्वारा अखण्ड ऐश्वर्य आयुरारोग्य प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगः॥
भूमि पर जल छोड़ें। पुष्प लेकर ध्यान करे-

श्रीकमलात्मिका ध्यानम्

कान्त्या काञ्चनसन्निभा हिमगिरि-प्रख्यैश्चतुर्भिर्गजैः
  हस्तोत्क्षिप्त-हिरण्मयामृत—घटैरासिंच्यमाना श्रियम्।
बिभ्राणा वरमब्जयुग्ममभयं हस्तैः किरीटोज्ज्वलां
   क्षौमाबद्ध नितम्बबिम्बललितां वन्देऽरविन्दस्थिताम्॥
(जो स्वर्ण जैसी कान्ति से कान्तिमान हैं, जो हिमालय सदृश श्वेत वर्ण के चार हाथियों की सूंड द्वारा पकड़े सोने के घड़ों से निकले अमृत द्वारा सिंचित होने वाली, धन की अधिष्ठात्री देवी श्री हैं, जो दो हाथों में कमल पुष्प और  दो हाथों में अभय मुद्रा, वर मुद्रा धारण करती हैं, जो मस्तक पर चमचमाता हुआ मुकुट तथा कमर में रेशमी वस्त्र(साड़ी) बांधे हुई हैं, ऐसी कमल पर विराजमान सुंदर, कमला महाविद्या की मैं वन्दना करता हूँ।)
पुष्प चढ़ायें।

मानस पूजा -  लं पृथिवी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्री अनन्त विष्णु सहिता श्री महालक्ष्मी कमला महाविद्या पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (कनिष्ठिका अंगुली से अंगूठे को मिलाकर अधोमुख(नीची) करके भगवान को दिखाए, यह गन्ध मुद्रा है)

• हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्री अनन्त विष्णु सहिता श्री महालक्ष्मी कमला महाविद्या पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (अधोमुख तर्जनी व अंगूठा मिलाकर बनी पुष्प मुद्रा दिखाए)

• यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्री अनन्त विष्णु सहिता श्री महालक्ष्मी कमला महाविद्या पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्वमुख(ऊपर को) तर्जनी व अंगूठे को मिलाकर दिखाए)

• रं वह्नि-तत्त्वात्मकं दीपं श्री अनन्त विष्णु सहिता श्री महालक्ष्मी कमला महाविद्या पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्व मुख मध्यमा व अंगूठे को दिखाए)

• वं अमृत-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्री अनन्त विष्णु सहिता श्री महालक्ष्मी कमला महाविद्या पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्व मुख अनामिका व अंगूठे को दिखाए)

• सौं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलादि सर्वोपचाराणि मनसा परिकल्प्य श्री अनन्त विष्णु सहिता श्री महालक्ष्मी कमला परदेवता श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(सभी अंगुलियों को मिलाकर ऊर्ध्वमुखी करते हुए दिखाये)


श्रीकमलात्मिका खड्गमाला

श्रीमहालक्ष्म्यै कमलात्मिकायै भगवत्यै नमः।
ऐं ह्रीं श्रीं
वासुदेवमयि, सङ्कर्षणमयि, प्रद्युम्नमयि, अनिरुद्धमयि, श्रीधरमयि, हृषीकेशमयि, वैकुण्ठमयि, विश्वरूपमयि, प्रथमावरणरूपिणि सर्वमाङ्गल्यप्रद-चक्रस्वामिनि अनन्तसमेत श्रीकमलात्मिका॥१॥

सलिलमयि, गुग्गुलमयि, कुरण्टकमयि, शङ्खनिधिमयि, वसुधामयि, पद्मनिधिमयि, वसुमतिमयि, जह्नुसुतामयि, सूर्यसुतामयि, द्वितीयावरणरूपिणि सर्वधनप्रद-चक्रस्वामिनि अनन्तसमेत श्रीकमलात्मिका॥२॥

बलाकमयि, विमलामयी, कमलामयि, वनमालिकामयि, विभीषिकामयि, मालिकामयि, शाङ्करीमयि, वसुमालिकामयि तृतीयावरणरूपिणि सर्वशक्तिप्रद-चक्रस्वामिनि अनन्तसमेत श्रीकमलात्मिका॥३॥

भारतीमयि, पार्वतीमयि, चान्द्रीमयि, शचीमयि, दमकमयि, उमामयि, श्रीमयि, सरस्वतीमयि, दुर्गामयि, धरणीमयि, गायत्रीमयि, देवीमयि, उषामयि, चतुर्थावरणरूपिणि सर्वसिद्धिप्रद-चक्रस्वामिनि अनन्तसमेत श्रीकमलात्मिका॥४॥

अनुराग महालक्ष्मी बाणमयि, संवाद महालक्ष्मी बाणमयि, विजया महालक्ष्मी बाणमयि, वल्लभा महालक्ष्मी बाणमयि, मदा महालक्ष्मी बाणमयि, हर्षा महालक्ष्मी बाणमयि, बला महालक्ष्मी बाणमयि, तेजा महालक्ष्मी बाणमयि, पञ्चमावरण-रूपिणि सर्वसंक्षोभण-चक्रस्वामिनि अनन्तसमेत श्रीकमलात्मिका॥५॥

ब्राह्मीमयि, माहेश्वरीमयि, कौमारीमयि, वैष्णवीमयि, वाराहीमयि, इन्द्राणीमयि, चामुण्डामयि, महालक्ष्मीमयि, षष्ठावरणरूपिणि सर्वसौभाग्य-दायक-चक्रस्वामिनि अनन्तसमेत श्रीकमलात्मिका॥६॥

ऐरावतमयि, पुण्डरीकमयि, वामनमयि, कुमुदमयि, अञ्जनमयि, पुष्पदन्तमयि, सार्वभौममयि, सुप्रतीकमयि, सप्तमावरण-रूपिणि सर्वाशा-परिपूरक-चक्रस्वामिनि अनन्तसमेत श्रीकमलात्मिका॥७॥

सूर्यमयि, सोममयि, भौममयि, बुधमयि, बृहस्पतिमयि, शुक्रमयि,शनैश्चरमयि, राहुमयि, केतुमयि, अष्टमावरण-रूपिणि सर्वरोगहर-चक्रस्वामिनि अनन्तसमेत श्रीकमलात्मिका॥८॥

लं पृथ्वीमयि, रं अग्निमयि, हं आकाशमयि, वं उदक् - मयि, यं वायुमयि नवमावरण-रूपिणि सर्वानन्दमय-चक्रस्वामिनि अनन्तसमेत श्रीकमलात्मिका॥९॥

निवृत्ति-मयि, प्रतिष्ठामयि, विद्यामयि, शान्तिमयि, दशमावरण-रूपिणि सर्वशापहर-चक्रस्वामिनि अनन्तसमेत श्रीकमलात्मिका॥१०॥

गायत्रीसहित ब्रह्ममयि, सावित्रीसहित विष्णुमयि, सरस्वतीसहित रुद्रमयि, लक्ष्मी सहित कुबेरमयि, रतिसहित काममयि, पुष्टिसहित विघ्नराजमयि, शङ्खनिधिसहित वसुधामयि, पद्मनिधिसहित वसुमतिमयि, गायत्र्यादिसहित कमलात्मिका, दिव्यौघ-गुरुरूपिणि सिद्धौघ-गुरुरूपिणि मानवौघगुरुरूपिणि, श्रीगुरुरूपिणि, परमगुरुरूपिणि परमेष्ठिगुरुरूपिणि, परापरगुरुरूपिणि, अणिमासिद्धे,
लघिमासिद्धे, महिमासिद्धे, ईशित्वसिद्धे, वशित्वसिद्धे, प्राकाम्यसिद्धे, भुक्तिसिद्धे, इच्छासिद्धे, प्राप्तिसिद्धे, सर्वकामसिद्धे, एकादशावरण-रूपिणि सर्वार्थसाधक-चक्रस्वामिनि अनन्तसमेत श्रीकमलात्मिका॥११॥

वराभयमयि, वटुकमयि, योगिनीमयि, क्षेत्रपालमयि, गणपतिमयि, अष्टवसुमयि, द्वादशादित्यमयि, एकादशरुद्रमयि, सर्वभूतमयि, श्रुति-स्मृति-धृति-श्रद्धा-मेधामयि, वज्रसहित इन्द्रमयि,
शक्तिसहित अग्निमयि, दण्डसहित यममयि, खड्गसहित निर्ऋतिमयि, पाशसहित वरुणमयि, अङ्कुशसहित वायुमयि, गदासहित सोममयि, शूलसहित ईशानमयि, पद्मसहित ब्रह्ममयि, चक्रसहित अनन्तमयि, द्वादशावरण-रूपिणि त्रैलोक्यमोहन-चक्रस्वामिनि अनन्तसमेत सदाशिव-भैरवसेवित श्रीकमलात्मिका नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमः॥१२॥
श्रीं ह्रीं ऐं
॥श्रीकमलात्मिका खड्गमालास्तोत्रं शुभमस्तु॥

विनियोग -हाथ में जल लेकर कहें-

अस्य श्रीकमलात्मिका खड्गमाला स्तोत्र महामन्त्रस्य भृगुदक्षब्रह्म ऋषयः, नानाछन्दांसि, श्रीकमलात्मिका देवता, श्रीं बीजं, ऐं शक्तिः, ह्रीं कीलकम्, श्री कमलात्मिका महालक्ष्मी भगवती प्रीति द्वारा अखण्ड ऐश्वर्यं आयुरारोग्य प्राप्त्यर्थे अनेन स्तोत्र पाठ जप समर्पणे  विनियोगः॥
भूमि पर जल छोड़ें। पुष्प लेकर ध्यान करे-

श्रीकमलात्मिका ध्यानम्

कान्त्या काञ्चनसन्निभा हिमगिरि-प्रख्यैश्चतुर्भिर्गजैः
  हस्तोत्क्षिप्त-हिरण्मयामृत—घटैरासिंच्यमाना श्रियम्।
बिभ्राणा वरमब्जयुग्ममभयं हस्तैः किरीटोज्ज्वलां
   क्षौमाबद्ध नितम्बबिम्बललितां वन्देऽरविन्दस्थिताम्॥
(जो स्वर्ण जैसी कान्ति से कान्तिमान हैं, जो हिमालय सदृश श्वेत वर्ण के चार हाथियों की सूंड द्वारा पकड़े सोने के घड़ों से निकले अमृत द्वारा सिंचित होने वाली, धन की अधिष्ठात्री देवी श्री हैं, जो ऊपर के दो हाथों में कमल पुष्प और नीचे के दो हाथों में अभय मुद्रा वर मुद्रा धारण करती हैं, जो मस्तक पर चमचमाता हुआ मुकुट तथा कमर में रेशमी वस्त्र(साड़ी) बांधे हुई हैं, ऐसी कमल पर विराजमान सुंदर, कमला महाविद्या की मैं वन्दना करता हूँ।) पुष्प चढ़ायें।
मानस पूजा -  लं पृथिवी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्री अनन्त विष्णु सहिता श्री महालक्ष्मी कमला महाविद्या पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (कनिष्ठिका अंगुली से अंगूठे को मिलाकर अधोमुख(नीची) करके भगवान को दिखाए, यह गन्ध मुद्रा है)

• हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्री अनन्त विष्णु सहिता श्री महालक्ष्मी कमला महाविद्या पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (अधोमुख तर्जनी व अंगूठा मिलाकर बनी पुष्प मुद्रा दिखाए)

• यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्री अनन्त विष्णु सहिता श्री महालक्ष्मी कमला महाविद्या पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्वमुख(ऊपर को) तर्जनी व अंगूठे को मिलाकर दिखाए)

• रं वह्नि-तत्त्वात्मकं दीपं श्री अनन्त विष्णु सहिता श्री महालक्ष्मी कमला महाविद्या पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्व मुख मध्यमा व अंगूठे को दिखाए)

• वं अमृत-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्री अनन्त विष्णु सहिता श्री महालक्ष्मी कमला महाविद्या पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्व मुख अनामिका व अंगूठे को दिखाए)

• सौं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलादि सर्वोपचाराणि मनसा परिकल्प्य श्री अनन्त विष्णु सहिता श्री महालक्ष्मी कमला परदेवता श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(सभी अंगुलियों को मिलाकर ऊर्ध्वमुखी करते हुए दिखाये)
उपरोक्त मुद्राओं को समझने के लिये यहाँ क्लिक करें।

अब एक आचमनी से जल चढ़ाते हुए जप समर्पण करे -
*मन्त्र हीनं, क्रिया हीनं, विधि हीनं, देश-काल हीनं, भक्ति हीनं यत् कृतं तत् सर्वं परिपूर्णमस्तु।
•  गुह्याति गुह्य गोप्त्री त्वम्, गृहाणास्मद्कृतं जपं।
सिद्धिर्भवतु मे देवि, त्वत्-प्रसादान्महेश्वरी॥
• अनेन मया कृतेन अनेन स्तोत्रपाठाख्य कर्मणा श्री अनन्त विष्णु सहिता श्री कमला महाविद्या देवता सुप्रसन्ना वरदा भवतु।
• सर्वं श्रीशिव-गुरु-परदेवता-परब्रह्मार्पण-मस्तु।
नमस्कार पूर्वक प्रार्थना करे-
शिव प्रसादेन विना न बुद्धिः। शिव प्रसादेन विना न युक्तिः।
शिव प्रसादेन विना न सिद्धिः। शिव प्रसादेन विना न मुक्तिः।
न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं।
शिव शासनतः शिव शासनतः शिव शासनतः। गुरुकृपा हि केवलं।

अपने आसन के नीचे भूमि पर थोड़ा जल छिड़कें और भूमि के उस जल को अपने माथे पर लगायें। कहे -
* यस्य स्मृत्या च  नामोक्त्या तपोयज्ञ क्रियादिषु न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम्।
* श्रीविष्णुः श्रीविष्णुः श्रीविष्णुः। हरिस्मरणात् परिपूर्णतास्तु।

इस प्रकार भगवती कमला की स्तोत्रात्मक उपासना सम्पन्न होती है। श्री कमला महाविद्या को अनेकों प्रणाम हैं, माँ हम सबका मंगल करें।

अन्य आलेख -

टिप्पणियाँ

  1. जय हो।।
    बहुत सुन्दर
    इसी तरह माँ काली के कवच व खड्गमाला ह्रदयम भी एक साथ डालने की कृपा 😇🙏🙏

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

कृपया टिप्पणी करने के बाद कुछ समय प्रतीक्षा करें प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है। अंतर्जाल (इन्टरनेट) पर उपलब्ध संस्कृत में लिखी गयी अधिकतर सामग्री शुद्ध नहीं मिलती क्योंकि लिखने में उचित ध्यान नहीं दिया जाता यदि दिया जाता हो तो भी टाइपिंग में त्रुटि या फोंट्स की कमी रह ही जाती है। संस्कृत में गलत पाठ होने से अर्थ भी विपरीत हो जाता है। अतः पूरा प्रयास किया गया है कि पोस्ट सहित संस्कृत में दिये गए स्तोत्रादि शुद्ध रूप में लिखे जायें ताकि इनके पाठ से लाभ हो। इसके लिए बार-बार पढ़कर, पूरा समय देकर स्तोत्रादि की माननीय पुस्तकों द्वारा पूर्णतः शुद्ध रूप में लिखा गया है; यदि फिर भी कोई त्रुटि मिले तो सुधार हेतु टिप्पणी के माध्यम से अवश्य अवगत कराएं। इस पर आपकी प्रतिक्रिया व सुझाव अपेक्षित हैं, पर ऐसी टिप्पणियों को ही प्रकाशित किया जा सकेगा जो शालीन हों व अभद्र न हों।

लोकप्रिय पोस्ट