नोट - यहाँ प्रकाशित साधनाओं, स्तोत्रात्मक उपासनाओं को नियमित रूप से करने से यदि किसी सज्जन को कोई विशेष लाभ हुआ हो तो कृपया हमें सूचित करने का कष्ट करें।
⭐विशेष⭐
⭐23 अप्रैल - मंगलवार- श्रीहनुमान जयन्ती
⭐10 मई - श्री परशुराम अवतार जयन्ती
⭐10 मई - अक्षय तृतीया,
⭐10 मई -श्री मातंगी महाविद्या जयन्ती
12 मई - श्री रामानुज जयन्ती , श्री सूरदास जयन्ती, श्री आदि शंकराचार्य जयन्ती
⭐ 15 मई - श्री बगलामुखी महाविद्या जयन्ती
⭐16 मई - भगवती सीता जी की जयन्ती | श्री जानकी नवमी | श्री सीता नवमी
⭐21 मई-श्री नृसिंह अवतार जयन्ती, श्री नृसिंहचतुर्दशी व्रत,
श्री छिन्नमस्ता महाविद्या जयन्ती, श्री शरभ अवतार जयंती। भगवत्प्रेरणा से यह blog 2013 में इसी दिन वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को बना था।
⭐ 23 मई - श्री कूर्म अवतार जयन्ती
⭐24 मई -देवर्षि नारद जी की जयन्ती
आज - कालयुक्त नामक विक्रमी संवत्सर(२०८१), सूर्य उत्तरायण, वसन्त ऋतु, चैत्र मास, शुक्ल पक्ष।
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हिन्दू धर्म
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ध
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धारणात् धर्म इत्याहुः धर्मो धारयति प्रजाः।
यः स्यात् धारणसंयुक्तः स धर्म इति निश्चयः।।
अर्थात्—‘जो धारण करता है, एकत्र करता है, उसे ‘‘धर्म’’ कहते हैं। धर्म प्रजा को धारण करता है। जिसमें प्रजा को धारण कर एकसूत्र में बाँध देने की सामर्थ्य है, वह निश्चय ही धर्म है।’
धर्म मनुष्य को उसकी स्वाभाविक कमजोरियों पर विजय पा लेने के लिये प्रेरित करता है। धर्म वह सेतु(पुल) है जिससे जीवात्मा द्वारा दुःख-पाप की लहरों के थपेड़ों व मगरमच्छों से क्षुब्ध इस संसार-सागर को पार किया जा सकता है..
हिंदू धर्म वैदिक धर्म है। हिन्दू धर्म ही "सनातन धर्म" है।हमारे बहुत से पुरातन ग्रंथों में विशुद्ध धर्म के लिये 'सनातन धर्म' नाम मिलता है। 'सनातन' का अर्थ है - शाश्वत या 'हमेशा बना रहने वाला', अर्थात् जिसका न आदि है न ही अन्त।
हमारा हिंदू धर्म , सनातन धर्म के रूप में सभी धर्मों का मूलाधार है क्योंकि यह सबसे पुरातन धर्म है और सभी धर्म-सिद्धान्तों के सार्वभौम आध्यात्मिक सत्य के विभिन्न पहलुओं का इसमें पहले से ही समावेश कर लिया गया था।
हमारे हिंदू धर्म के पावन प्रतीक ॐ (ओम्) तथा 卐 (स्वस्तिक) हैं।
- "हीनं दूषयति हिंदू" जो सदाचारहीनता (दुर्गुणों, अपवित्रता व पापों) को दूषित समझता है वही हिंदू है।
- जो वेद आदि हिन्दू धर्मशास्त्रों पर दृढ़ विश्वास रखकर उनको अपना धर्मग्रन्थ मानता है वही हिन्दू है;
- और - 'गोषु भक्तिर्भवेद्यस्य प्रणवे च दृढ़ा मतिः। पुनर्जन्मनि विश्वासः स वै हिन्दुरिति स्मृतः॥' अर्थात- गौमाता में जिसकी भक्ति हो, प्रणव ॐ) जिसका पूज्य मन्त्र हो, पुनर्जन्म में जिसका विश्वास हो - वही हिंदू है।
- वर्णाश्रमधर्मानुकूल आचार-विचार के द्वारा जीवन व्यतीत करने वाला ही हिंदू है।
- 'बृहस्पति-आगम' में तो हिंदुस्थान की सीमा निर्धारित करते हुए इसे भौगोलिक प्रत्याहारज शब्द स्वीकार किया गया है - हिमालयं समारभ्य यावदिन्दुसरोवरम्। तं देवनिर्मितं देशं 'हिन्दुस्थानं' प्रचक्षते॥ अर्थात् हिमालय पर्वत से आरम्भ करके इन्दु-सरोवर=कन्याकुमारी अन्तरीप के अन्तिम प्रदेशकी समाप्पिपर्यन्त देवनिर्मित विस्तृत स्थलका नाम 'हि+न्दु=स्थान' है।
- माधवदिग्विजय नामक ग्रंथ के अनुसार - ओंकारमूलमन्त्राढ्यः पुनर्जन्मदृढाशयः। गोभक्तो भारतगुरु्हिन्दुर्हिसनदूषक:॥ अर्थात् (१) ओंकार को मूलमन्त्र मानने वाला, (२) पुनर्जन्म में पक्की आस्था वाला, (३) गोभक्त, (४) जिसका प्रवर्तक भारतीय हो और (५) हिंसा को निन्द्य मानने वाला 'हिंदू' कहा जाता है।
- लोकमान्य तिलक ने अपनी पुस्तक में लिखा था- प्रामाण्य बुद्धिर्वेदेषु नियमानामनेकता। उपास्यानामनियमो लक्षणम्॥ अर्थात् 'वेदों में प्रामाण्यबुद्धि रखने वाला, नानाविध नियमों का पालक, अनेक प्रकार से ईश्वर की उपासना करनेवाला हिंदू कहलाता है।'
श्रीमद्भागवत पुराण के सप्तम स्कन्ध में श्रीनारद जी ने धर्म के सर्वसाधारणोपयोगी तीस लक्षणों से युक्त सनातन-धर्म की व्याख्या की है -
सत्यं दया तपः शौचं तितिक्षेक्षा शमो दमः।
अहिंसा ब्रह्मचर्यं च त्यागः स्वाध्याय आर्जवम्॥
सन्तोषः समदृक् सेवा ग्राम्येहोपरमः शनैः।
नृणां विपर्ययेहेच्छा मौनमात्मविमर्शनम्॥
अन्नद्यादेः संविभागो भूतेभ्यश्च यथार्हतः।
तेष्वात्मदेवताबुद्धिः सुतरां नृषु पाण्डव॥
श्रवणं कीर्तनं चास्य स्मरणं महतां गतेः।
सेवेज्याऽवनतिर्दास्यं सख्यमात्मसमर्पणम्॥
नृणामयं परो धर्मस्सर्वेषां समुदाहृतः।
त्रिंशल्लक्षणवान् राजन् सर्वात्मा येन तुष्यति।
अर्थात् - १)सत्य - प्राणियों का परम कल्याणकारक सत्य वचन बोलना,
२)दया करना,
३)तप - जयन्ती आदि व्रतोपवास तथा स्वधर्मपालनमें कष्टसहनरूपी तप,
४)शौच - कायिक, वाचिक एवं मानस शुद्धता,
५)तितिक्षा - सहिष्णुता, ६)इक्षा - विवेक,
७)शम - मन:संयम, ८)दम - इन्द्रियों का संयम, ९)अहिंसा-व्रतपरायणता, १०)ब्रह्मचर्यव्रत पालन, ११)स्वत्व-परित्यागपूर्वक दानशीलता,
१२) स्वाधिकारानुकूल जपादि, स्वाध्याय, १३) सरलता,
१४)यथाप्राप्त वस्तुओं ही से सन्तोष करना,
१५)समदर्शी हों, १६) भगवज्जनों की सेवा,
१७)प्रवृत्त ग्राम्यधर्म से क्रमशः विरति,
१८)निष्काम-भाव से कर्म-फल-त्याग,
१९)व्यर्थ की बकवाद का त्याग अर्थात् यथासम्भव कम बोलना,
२०)अपने शरीरके अतिरिक्त अन्य प्राणियों में भी आत्मवत् विचार रखना।
२१)अपने अधीनस्थ अन्नादि पदार्थां को प्राणियों के हितार्थ यथायोग्य विभाग कर उनमें आत्मबुद्धि तथा परमात्मा की व्याप्ति की बुद्धि रखना,
२२)भगवान की नवधा भक्ति करने के लिये भगवत्कथा सुनना, २३)भगवत्-गुणानुवाद-कीर्तन,
२४)हरि की लीलाओं का स्मरण, २५)भगवान की सेवा करना,
२६)भगवन्मूर्तियों का पूजन,
२७)भगवान की मूर्तियों तथा भगवज्जनों में भगवान की भावना से साष्टाङ्ग दण्डवत् करना,
२८)सदैव विनम्र भाव से रहना,
२९)भगवान के प्रति तथा भगवज्जनों के प्रति दास्यभाव रखना, परमात्मा के प्रति सख्यभाव रखना,
३०)अपना तन, मन और धन भगवच्चरणकमल में अर्पण करना।
ये सब तीस धारण करने योग्य सद्गुण मनुष्यों के लिये परम धर्म हैं और इन सबका यथावत् पालन करने पर सर्वान्तर्यामी भगवान् विष्णु प्रसन्न होते हैं ऐसा श्री नारदजी ने कहा है। सभी सनातनी इन सद्गुणों को धारण करें तो इस संसार में इसी जन्म में परम कल्याण पा सकते हैं और अपना मानव जीवन सफल करने के साथ-साथ परलोक में भी उत्तम गति पा सकते हैं।
हिंदू धर्म व इससे जुड़ी मान्यताओं का असली महत्व समझने की आज नितान्त आवश्यकता है। मनुस्मति के अध्याय ८ के श्लोक १५ के अनुुुुसार - "धर्मो रक्षति रक्षितः" अर्थात् जो धर्म की रक्षा करते हैं, जो धर्म के मार्ग पर चलते हैं, धर्म भी कवच बनकर सदा उनकी रक्षा करता है... आइये हिंदू धर्म को जानें समझें और हिन्दुत्व की मान्यताओं , परम्पराओं को गर्व से अपनायें..
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