श्री शाकम्भरी साधना
श्री शाकम्भरी स्तोत्रात्मक साधना यहाँ प्रस्तुत है। इसके अंतर्गत मां शाकंभरी के चार प्रमुख स्तोत्र यहाँ प्रस्तुत हैं। श्रद्धालु साधक माँ शाकम्भरी भगवती के चित्र का प्रिन्ट आउट निकाल सकते हैं या फिर दुर्गा जी की मूर्ति चित्र या दुर्गा यन्त्र या श्री यन्त्र के आगे इन चारों स्तोत्रों का शाकंभरी नवरात्रि को(पौष शुक्ल अष्टमी से पौष पूर्णिमा तक) और विशेष रूप से शाकंभरी जयन्ती (पौष शुक्ल पूर्णिमा) पर सुबह शाम पाठ कर माँ की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। यदि कोई साधक शाकम्भरी नवरात्रि में तीनों समय अर्थात् सुबह, दोपहर और सायंकाल में इन स्तोत्रों को पढ़ ले तो अति उत्तम फल प्राप्त होता है... इसमें कवच आदि स्तोत्रों के पाठ और 108 नामों से पूजन होता है। कवच पाठ से साधक की रक्षा होती है और इसके साथ अन्य स्तोत्र भी पढ़ने से पापमुक्ति, आपत्ति से मुक्ति, यश, आरोग्य, विद्या, धन सम्पदा आदि शुभ फलों की प्राप्ति होती है। यदि किसी साधक के पास पर्याप्त समय हो और उसे कोई मनोकामना सिद्ध करनी है तो वह नीचे दिए गए शाकम्भरी कवच का कुल 1000 बार पाठ करे अर्थात 100 दिन तक 10 बार पाठ प्रतिदिन करे, या केवल 10 दिन तक 100 बार पाठ प्रतिदिन करे।
(1) श्री शाकम्भरी-पञ्चकम्
श्रीवल्लभ-सोदरी श्रितजन-श्चिद्दायिनी श्रीमती श्री-कण्ठार्ध-शरीरगा श्रुति-लसन्माणिक्य-ताटङ्कका ।
श्रीचक्रान्तर-वासिनी श्रुतिशिरः सिद्धान्त-मार्ग-प्रिया
श्रीवाणी गिरिजात्मिका भगवती शाकम्भरी पातु माम् ॥ १॥
शान्ता शारद-चन्द्र-सुन्दरमुखी शाल्यन्न-भोज्य-प्रिया
शाकैः पालित-विष्टपा शत-दृशा शाकोल्लसद्-विग्रहा।
श्यामाङ्गी शरणागतार्ति-शमनी शक्रादिभिः शंसिता शङ्कर्यष्ट-फलप्रदा भगवती शाकम्भरी पातु माम्॥२॥
कञ्जाक्षी कलशी भवादिविनुता कात्यायनी कामदा कल्याणी कमलालया करकृतां भोजासि-खेटाभया।
कादंवासव-मोदिनी कुच-लसत्काश्मीरजा-लेपना कस्तूरी-तिलकाञ्चिता भगवती शाकम्भरी पातु माम् ॥ ३॥
भक्तानन्दविधायिनी भवभयप्रध्वंसिनी भैरवी भर्मालङ्कृति-भासुरा भुवनभीकृद् दुर्गदर्पापहा । भूभृन्नायकनन्दिनी भुवनसूर्भास्यत्परः कोटिभा
भौमानन्द विहारिणी भगवती शाकम्भरी पातु माम् ॥ ४॥
रीताम्नाय-शिखासु रक्तदशना राजीवपत्रेक्षणा
राकाराज-करावदात-हसिता राकेन्दु-बिम्बस्थिता।
रुद्राणी रजनीकरार्भक-लसन्मौली रजोरुपिणी
रक्षः शिक्षणदीक्षिता भगवती शाकम्भरी पातु माम्॥५॥
श्लोकानामिह पञ्चकं पठति यः स्तोत्रात्मकं शर्मदं सर्वापत्तिविनाशकं प्रतिदिनं भक्त्या त्रिसन्ध्यं नरः।
आयुःपूर्ण-मपारमर्थ-ममलां कीर्ति प्रजामक्षयां शाकम्भर्यनुकम्पया स लभते विद्यां च विश्वार्थकाम्॥६॥
(जो यह शाकंभरी पंचक स्तोत्र प्रतिदिन तीन संध्याओं में पाठ करता है उसे माँ शाकम्भरी की अनुकम्पा से दीर्घायु, अपार धन, कीर्ति, सन्तान,विद्या की प्राप्ति होती है)
॥श्रीमच्छङ्कराचार्य-विरचितं शाकम्भरी पञ्चकं शुभमस्तु ओऽम् तत्सत्॥
(2) श्री शाकम्भरी कवचम्
शक्र उवाच -
शाकम्भर्यास्तु कवचं सर्वरक्षाकरं नृणाम् ।
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे कथय षण्मुख ॥ १॥
(इन्द्र बोले - हे छः मुख वाले कार्तिकेय जी मुझे सब प्रकार से रक्षा करने वाले शाकंभरी देवी के उस कवच को कहें जो किसी को भी नहीं कहा गया हो)
स्कन्द उवाच -
शक्र शाकम्भरीदेव्याः कवचं सिद्धिदायकम् ।
कथयामि महाभाग श्रुणु सर्वशुभावहम् ॥ २॥
(स्कन्द बोले - हे महाभाग्यवान् इन्द्र! मैं शाकंभरी देवी के उस सिद्धि दायक शुभ कवच को कहता हूं सुनो)
विनियोग - अस्य श्री शाकम्भरी कवचस्य स्कन्द ऋषिः । शाकम्भरी देवता । अनुष्टुप्छन्दः । चतुर्विधपुरुषार्थसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ॥
ध्यानम् -
शूलं खड्गं च डमरुं दधानामभयप्रदम्। सिंहासनस्थां ध्यायामि देवी शाकम्भरीमहम् ॥ ३॥
(मैं सिंह के आसन पर विराजित शूल,खड्ग,डमरू व अभय मुद्रा धारण करने वाली आठ हाथों वाली शाकंभरी देवी का ध्यान करता हूँ)
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भगवती शाकम्भरी |
कवचम् -
शाकम्भरी शिरः पातु नेत्रे मे रक्तदन्तिका ।
कर्णो रमे नन्दजः पातु नासिकां पातु पार्वती ॥ ४॥
ओष्ठौ पातु महाकाली महालक्ष्मीश्च मे मुखम् ।
महासरस्वती जिह्वां चामुण्डाऽवतु मे रदाम् ॥ ५॥
कालकण्ठसती कण्ठं भद्रकाली करद्वयम् ।
हृदयं पातु कौमारी कुक्षिं मे पातु वैष्णवी ॥ ६॥
नाभिं मेऽवतु वाराही ब्राह्मी पार्श्वे ममावतु ।
पृष्ठं मे नारसिंही च योगीशा पातु मे कटिम् ॥ ७॥
ऊरु मे पातु वामोरुर्जानुनी जगदम्बिका।
जङ्घे मे चण्डिकां पातु पादौ मे पातु शाम्भवी॥८॥
शिरःप्रभृति पादान्तं पातु मां सर्वमङ्गला।
रात्रौ पातु दिवा पातु त्रिसन्ध्यं पातु मां शिवा॥९॥
गच्छन्तं पातु तिष्ठन्तं शयानं पातु शूलिनी।
राजद्वारे च कान्तारे खड्गिनी पातु मां पथि॥१०॥
सङ्ग्रामे सङ्कटे वादे नद्युत्तारे महावने।
भ्रामणेनात्मशूलस्य पातु मां परमेश्वरी ॥ ११॥
गृहं पातु कुटुम्बं मे पशुक्षेत्रधनादिकम्।
योगक्षैमं च सततं पातु मे बनशङ्करी ॥ १२॥
इतीदं कवचं पुण्यं शाकम्भर्याः प्रकीर्तितम् ।
यस्त्रि-सन्ध्यं पठेच्छक्र सर्वापद्भिः स मुच्यते॥१३॥
(हे इन्द्र इस शाकम्भरी देवी के शुभदायक कवच का जो कोई भी तीन संध्याओं अर्थात् सुबह , दोपहर और शाम को पाठ करता है उसको सभी आपदाओं से मुक्ति मिल जाती हैै)
तुष्टिं पुष्टिं तथारोग्यं सन्ततिं सम्पदं च शम् ।
शत्रुक्षयं समाप्नोति कवचस्यास्य पाठतः ॥ १४॥
(पाठकर्ता को संतोष, शान्ति,बल,आरोग्यता, सम्पत्ति की प्राप्ति होती है तथा उसके शत्रुओं का नाश होता है)
शाकिनी-डाकिनी-भूत बालग्रह-महाग्रहाः ।
नश्यन्ति दर्शनात्त्रस्ताः कवचं पठतस्त्विदम्॥१५॥
(शाकिनी, डाकिनी , भूतप्रेत और बाधाकारक बालग्रह, महाग्रह कवच पाठकर्ता के दर्शन से ही त्रस्त हो जाते हैं)
सर्वत्र जयमाप्नोति धनलाभं च पुष्कलम्।
विद्यां वाक्पटुतां चापि शाकम्भर्याः प्रसादतः॥१६॥
(देवी शाकम्भरी के प्रसाद से पाठकर्ता को सर्वत्र विजय मिलती है धन लाभ होता है, विद्या, बोलने में कुशलता की भी प्राप्ति होती है)
आवर्तनसहस्रेण कवचस्यास्य वासव ।
यद्यत्कामयतेऽभीष्टं तत्सर्वं प्राप्नुयाद् ध्रुवम् ॥ १७॥
(इसका हजार बार पाठ करने से उस समय जैसी अभीष्ट कामना की गई हो वह प्राप्त होता है )
॥ श्री स्कन्दपुराणे स्कन्दप्रोक्तं शाकम्भरी कवचं शुभमस्तु ओऽम् तत्सत् ॥
(3)शाकम्भरी अष्टोत्तरशत-नामावलिः
अब देवी शाकम्भरी के 108 नाम प्रस्तुत हैं। अर्चन करने के लिए एक पात्र में पुष्प कुमकुम चन्दन जल अक्षत तिल डालकर आचमनी से उस जल को प्रत्येक नाम मन्त्र पढ़ते हुए देवी दुर्गा की प्रतिमा या यन्त्र पर अर्पित करते जाएं। दुर्गा जी के चित्र में फूल अक्षत चढ़ाकर भी अर्चन कर सकते हैं, कोई चाहे तो इन नाम मन्त्रों में अन्त में स्वाहा लगाकर हवन भी कर सकता है। पूजन हवन सम्भव न हो तो इन नामों को पढ़ते हुए नमस्कार ही कर ले... ध्यान रहे कि यदि पूजा कर रहे हों तो अर्चने विनियोगः कहें और यदि केवल नाम मन्त्रों का हाथ जोड़कर पाठ करना है तो पारायणे विनियोगः कहें -
हाथ में जल लेकर बोले "अस्य श्री शाकम्भरी अष्टोत्तर शतनामावलि महामन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप्छन्दः, शाकम्भरी देवता , सौः बीजम् , क्लीं शक्तिः , ह्रीं कीलकम् , श्री शाकम्भरी प्रसाद सिद्धयर्थे श्री शाकम्भर्यष्टोत्तरशत-नाममन्त्र पारायणे (अर्चने) विनियोगः।"
श्रीशाकम्भरी ध्यानम् -
शान्ता शारदचन्द्र-सुन्दर-मुखी शाल्यन्नभोज्य-प्रिया
शाकैः पालितविष्टपा शतदृशा शाकोल्लसद्विग्रहा।
श्यामाङ्गी शरणागतार्ति-शमनी शक्रादिभिः शंसिता
शङ्कर्यष्ट-फलप्रदा भगवती शाकम्भरी पातु माम्॥
श्रीशाकम्भरी माँ की पंच उपचार पूजा -
ॐ शाकम्भर्यै नमः लं गन्धं समर्पयामि
ॐ शाकम्भर्यै नमः हं पुष्पं समर्पयामि
ॐ शाकम्भर्यै नमः यं धूपम् आघ्रापयामि
ॐ शाकम्भर्यै नमः रं दीपम् दर्शयामि
ॐ शाकम्भर्यै नमः वं नैवेद्यं निवेदयामि
ॐ शाकम्भर्यै नमः सौं सर्वोपचाराणि मनसापरिकल्प्य समर्पयामि
अब इन 108 नाम मन्त्रों द्वारा देवी की पूजा करे या हाथ जोड़कर पाठ करे -
ॐ शाकम्भर्यै नमः । महालक्ष्म्यै नमः। महाकाल्यै नमः। महाकान्त्यै नमः। महासरस्वत्यै नमः। महागौर्यै नमः। महादेव्यै नमः। भक्तानुग्रहकारिण्यै नमः। स्वप्रकाशात्मरूपिण्यै नमः। महामायायै नमः। माहेश्वर्यै नमः। वागीश्वर्यै नमः। जगद्धात्र्यै नमः। कालरात्र्यै नमः। त्रिलोकेश्वर्यै नमः। भद्रकाल्यै नमः। कराल्यै नमः। पार्वत्यै नमः। त्रिलोचनायै नमः। सिद्धलक्ष्म्यै नमः ॥ २०
ॐ क्रियालक्ष्म्यै नमः । मोक्षप्रदायिन्यै नमः। अरूपायै नमः। बहुरूपायै नमः। स्वरूपायै नमः। विरूपायै नमः। पञ्चभूतात्मिकायै नमः। देव्यै नमः। देवमूर्त्यै नमः। सुरेश्वर्यै नमः। दारिद्र्यध्वंसिन्यै नमः। वीणापुस्तकधारिण्यै नमः। सर्वशक्त्यै नमः। त्रिशक्त्यै नमः। ब्रह्मविष्णुशिवात्मिकायै नमः। अष्टाङ्गयोगिन्यै नमः। हंसगामिन्यै नमः। नवदुर्गायै नमः। अष्टभैरवात्मिकायै नमः। गङ्गायै नमः॥ ४०
ॐ वेण्यै नमः । सर्वशस्त्र-धारिण्यै नमः। समुद्र-वसनायै नमः। ब्रह्माण्ड-मेखलायै नमः। अवस्थात्रय-निर्मुक्तायै नमः। गुणत्रय-विवर्जितायै नमः। योगध्यानैक-संन्यस्तायै नमः। योगध्यानैक-रूपिण्यै नमः। वेदत्रय-रूपिण्यै नमः। वेदान्तज्ञान-रूपिण्यै नमः। पद्मावत्यै नमः। विशालाक्ष्यै नमः। नाग-यज्ञोपवीतिन्यै नमः। सूर्यचन्द्र-स्वरूपिण्यै नमः। ग्रहनक्षत्ररूपिण्यै नमः। वेदिकायै नमः। वेदरूपिण्यै नमः। हिरण्य-गर्भायै नमः। कैवल्यपद-दायिन्यै नमः। सूर्यमण्डल-संस्थितायै नमः ॥ ६०
ॐ सोममण्डल-मध्यस्थायै नमः । वायुमण्डल-संस्थितायै नमः। वह्निमण्डल-मध्यस्थायै नमः। शक्तिमण्डल-संस्थितायै नमः। चित्रिकायै नमः। चक्रमार्ग-प्रदायिन्यै नमः। सर्वसिद्धान्त-मार्गस्थायै नमः। षड्वर्ग-वर्णवर्जितायै नमः। एकाक्षरप्रणव-युक्तायै नमः। प्रत्यक्ष-मातृकायै नमः। दुर्गायै नमः। कलाविद्यायै नमः। चित्रसेनायै नमः। चिरन्तनायै नमः। शब्द-ब्रह्मात्मिकायै नमः। अनन्तायै नमः। ब्राह्म्यै नमः। ब्रह्मसनातनायै नमः। चिन्तामण्यै नमः। उषादेव्यै नमः ॥ ८०
ॐ विद्यामूर्ति-सरस्वत्यै नमः । त्रैलोक्य-मोहिन्यै नमः। विद्यादायै नमः। सर्वाद्यायै नमः। सर्वरक्षाकर्त्र्यै नमः। ब्रह्मस्थापित-रूपायै नमः। कैवल्यज्ञान-गोचरायै नमः। करुणा-कारिण्यै नमः। वारुण्यै नमः। धात्र्यै नमः। मधुकैटभमर्दिन्यै नमः। अचिन्त्य-लक्षणायै नमः। गोप्त्र्यै नमः। सदाभक्ताघ-नाशिन्यै नमः। परमेश्वर्यै नमः। महारवायै नमः। महाशान्त्यै नमः। सिद्धलक्ष्म्यै नमः। सद्योजात-वामदेवाघोर-तत्पुरुषेशान-रूपिण्यै नमः। नागेश-तनयायै नमः॥ १००
ॐ सुमङ्गल्यै नमः । योगिन्यै नमः। योगदायिन्यै नमः। सर्वदेवादि-वन्दितायै नमः। विष्णुमोहिन्यै नमः। शिवमोहिन्यै नमः। ब्रह्ममोहिन्यै नमः। श्रीवनशङ्कर्यै नमः ॥ १०८
॥ श्री शाकम्भरी अष्टोत्तरशत-नामावलिः शुभमस्तु ओऽम् तत्सत् ॥
अब निम्नलिखित स्तोत्र से स्तुति करे -
(4) श्री शाकम्भर्यष्टकम्
शक्तिः शाम्भव-विश्वरूप-महिमा माङ्गल्य-मुक्तामणि-
र्घण्टा शूलमसिं लिपिं च दधतीं दक्षैश्चतुर्भिः करैः ।
वामैर्बाहुभि-रर्घ्य-शेषभरितं पात्रं च शीर्षं तथा
चक्रं खेटक-मन्धकारि-दयिता त्रैलोक्य-माता शिवा॥१॥
देवी दिव्यसरोज-पादयुगले मञ्जुक्वणन्नूपुरा
सिंहारूढ-कलेवरा भगवती व्याघ्राम्बरा-वेष्टिता ।
वैडूर्यादि-महार्घरत्न-विलसन्नक्षत्र-मालोज्ज्वला
वाग्देवी विषमेक्षणा शशिमुखी त्रैलोक्यमाता शिवा ॥ २॥
ब्रह्माणी च कपालिनी सुयुवती रौद्री त्रिशूलान्विता
नाना दैत्यनिबर्हिणी नृशरणा शङ्खासि-खेटायुधा ।
भेरीशङ्ख मृदङ्ग घोषमुदिता शूलिप्रिया चेश्वरी
माणिक्याढ्य-किरीट-कान्तवदना त्रैलोक्यमाता शिवा ॥ ३॥
वन्दे देवि भवार्ति-भञ्जनकरी भक्तप्रिया मोहिनी
मायामोह-मदान्धकार-शमनी मत्प्राण-सञ्जीवनी।
यन्त्रं मन्त्रजपौ तपो भगवती माता पिता भ्रातृका
विद्या बुद्धिधृती गतिश्च सकलत्रैलोक्य-माता शिवा॥४॥
श्रीमातस्त्रिपुरे त्वमब्जनिलया स्वर्गादिलोकान्तरे
पाताले जलवाहिनी त्रिपथगा लोकत्रये शङ्करी।
त्वं चाराधक-भाग्यसम्पद्विनी श्रीमूर्ध्नि लिङ्गाङ्किता
त्वां वन्दे भवभीति-भञ्जनकरीं त्रैलोक्यमातः शिवे ॥ ५॥
श्रीदुर्गे भगिनीं त्रिलोकजननीं कल्पान्तरे डाकिनीं
वीणापुस्तकधारिणीं गुणमणिं कस्तूरिकालेपनीम्।
नानारत्नविभूषणां त्रिनयनां दिव्याम्बरावेष्टितां
वन्दे त्वां भवभीति-भञ्जनकरीं त्रैलोक्यमातः शिवे ॥ ६॥
नैरृत्यां दिशि पत्रतीर्थममलं मूर्तित्रये वासिनीं
साम्मुख्या च हरिद्रतीर्थमनघं वाप्यां च तैलोदकम्।
गङ्गादित्रयसङ्गमे सकुतुकं पीतोदके पावने
त्वां वन्दे भवभीति-भञ्जनकरीं त्रैलोक्यमातः शिवे ॥ ७॥
द्वारे तिष्ठति वक्रतुण्डगणपः क्षेत्रस्य पालस्ततः
शक्रेड्या च सरस्वती वहति सा भक्तिप्रिया वाहिनी ।
मध्ये श्रीतिलकाभिधं तव वनं शाकम्भरी चिन्मयी
त्वां वन्दे भवभीति-भञ्जनकरीं त्रैलोक्यमातः शिवे ॥ ८॥
शाकम्भर्यष्टकमिदं यः पठेत्प्रयतः पुमान्।
स सर्वपाप-विनिर्मुक्तः सायुज्यं पदमाप्नुयात्॥९॥
(शाकम्भरी अष्टक के पाठ से भक्त के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसको 'सायुज्य मुक्ति' प्राप्त होती है)
॥श्रीमच्छङ्कराचार्य-विरचितं शाकम्भर्यष्टकं शुभमस्तु ओऽम् तत्सत्॥
जय श्री राम
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