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कल्प शब्द 'व्रत' का ही दूसरा नाम है। मन को उचित दिशा प्रदान करके दृढ़ बनाने के विधि-विधान का शुभ संकल्प ही व्रत है। भारतीय संस्कृति के अंतर्गत हमारे ऋषि-मुनियों ने धार्मिक व्रतों के अनुपालन का आदेश दिया है ताकि मानवमात्र व्रतों के पालन से अनेक प्रकार के रोगों से मुक्त होकर स्वस्थ जीवन-यापन करते हुए भगवत्प्राप्ति का सहज सुलभ साधन कर सके। सभी व्रतों का विधान अलग होते हुए भी ध्येय सबका समान ही है। मन पर नियन्त्रण और शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक स्वास्थ्य की प्राप्ति व्रत का प्रतिफल है। मन सभी क्रियाक्रलापों का आधार है और संकल्प-विकल्प का उद्गम स्थान भी।
व्रत के विधान के अनुसार लंघन या स्वल्पाहार से आँतों का अवशिष्ट मल निष्कासित होता है। फलस्वरूप आँतें अधिक सक्रिय हो जाती हैं जो स्वास्थ्य का आधार है। व्रत के परिणाम स्वरूप जीवात्मा में परमात्मिक ऐश्वर्य प्रकट होने लगते हैं। आत्मा परमात्मा की निकटता की ओर आगे बढ़ती है। व्रत में शुद्ध-सात्विक आहार लिया जाता है जिससे मन शुद्ध होता है, सत्त्व की शुद्धि होती है। सत्त्व की शुद्धि से अखण्ड भगवत्स्मृति बनी रहती है और यही ध्रुवास्मृति सभी ग्रन्थियों के विमोचन में हेतु बनती है-
"आहारशुद्धौ सत्त्वशुद्धि: सत्त्वशुद्धौ ध्रुवा स्मृति: स्मृतिलम्भे सर्वग्रन्थीनां विप्रमोक्षः।'
(छान्दोग्योपनिषद ७।२६।२)
व्रत इस शुद्धिक्रम की पहली सीढ़ी है। आत्मशुद्धि के लिये व्रतों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है । ऋषि-मुनियों के विचार हैं कि यदि महीने में मात्र दोनों एकादशियो का व्रत विधि-विधान से किया जाय तो मनुष्य की प्रकृति पूर्णतयाः शुद्ध एवं सात्विक हो जाती है। काम्पिल्य नगर के राजा वीरबाहु के पूछने पर उन्हें महर्षि भारद्वाज ने एकादशी व्रत का विधान बतलाया था। संक्षेप में वह यहाँ प्रस्तुत है-
(१) जो मनुष्य एकादशी व्रत करना चाहे वह दशमी शुद्धचित्त हो दिन के आठवें भाग में सूर्य का प्रकाश रहने पर भोजन करे, रात्रि मेँ भोजन न करे।
(२) दशमी को कांस्य के बर्तन में भोजन, उड़द, मसूर, चना, कोदो, साग, शहद, दूसरे का अन्न, दो बार भोजन और अब्रह्मचर्य- इनको त्याग दे। मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मन और इन्द्रियों को वश में करते हुए देवपूजन के बाद जल से अर्घ्य देते हुए प्रार्थना करे- 'कमल के समान नेत्रों वाले भगवान् अच्युत! मैं एकादशी को निराहार रहकर दूसरे दिन भोजन करूंगा, मेरे आप ही रक्षक हैं।' ऐसी प्रार्थना करें। रात्रि मेँ 'ॐ नमो नारायणाय' मन्त्र का जप करे।
(३) एकादशी के दिन बार-बार जलपान, हिंसा, अपवित्रता, असत्य भाषण, पान चबाना, दातुन करना, दिन मेँ सोना, ब्रह्मचर्य खण्डित करना, जुआ खेलना, रात में सोना और पतित मनुष्यों से वार्तालाप - जैसी व्रत खण्डित करने वाली ग्यारह क्रियाओं का सर्वथा त्याग करे।
(४) स्नान-पूजन आदि नित्यकर्म से निवृत होकर भगवान् से प्रार्थना करे- 'हे केशव! आज आपकी प्रसन्नता के लिये दिन और रात में संयम-नियम का मेरे द्वारा पालन हो। मेरी सोयी हुई इंद्रियों के द्वारा कोई विकलता, काम वासना या भोजन की इच्छा उत्पन्न हो जाय या मेरे दाँतों में पहले से अन्न सटा हुआ हो तो हे पुरुषोत्तम! आप इन सब बातों को क्षमा करें।'
(५) एकादशी की रात्रि में जागरण कर एकादशी-कथा का श्रवण करना चाहिये। आलस्य त्यागकर प्रसन्नतापूर्वक उत्साहसहित षोडशोपचार से भगवान का पूजन, प्रदक्षिणा, नमस्कार करे। रात्रि के प्रत्येक पहर मेँ आरती करे। गीत, वाद्य तथा नृत्य के साथ जागरण कर 'गीता' और 'विष्णुसहस्रनाम' का पाठ करे।
(६) दशमी और एकादशी को त्यागी हुई क्रियाओं सहित, द्वादशी को शरीर में तेल भी न मले।
(७) द्वादशी को शुद्धचित्त होकर भगवान् से प्रार्थना करे- 'हे गरुडध्वज! आज सब पापों का नाश करने वाली पुण्यमयी पवित्र द्वादशी तिथि मेरे लिये प्राप्त हुई है, इसमें मैं पारण करूंगा। आप प्रसन्न होइये।' कात्यायनस्मृति के अनुसार-
प्रात: स्नात्वा हरिं पूज्य उपवासं समर्पयेत्।
पारणं तु तत: कुर्याद् व्रतसिद्ध्यै हरिं स्मरन्॥
अर्थात् पारण के दिन प्रातःकाल स्नान तथा हरिपूजन के अनन्तर हरि को उपवास-समर्पण करना होता है। उसके बाद हाथ में जल लेकर पारण-मन्त्र पढ़ते हुए व्रत की पारणा करनी चाहिये। यही एकादशी का पारण कहलाता है। पारण-मन्त्र इस प्रकार है-
अज्ञान-तिमिरान्धस्य व्रतेनानेन केशव।
प्रसीद सुमुखो नाथ ज्ञानदृष्टिप्रदो भव॥
(८) तदनन्तर ब्राह्मणों को यथाशक्ति भोजन कराकर स्वयं भोजन करे।
(९) इस प्रकार वर्षपर्यन्त एकादशी का व्रत करता रहे। वर्ष की चौबीस एकादशियों के नाम और विधान मेँ थोड़ा अन्तर अवश्य है। जैसे आमलकी एकादशी को आँवले की पूजा होती है और देवशयनी को जलशायी विष्णु भगवान् की। परंतु सामान्य विधि समान है। अब एकादशी उद्यापन की संक्षिप्त विधि यहाँ प्रस्तुत है- (विस्तृत विधि के लिए यहाँ क्लिक करें|)
एकादशी के उद्यापन का विधान
(१)एकादशी व्रत करते करते एक वर्ष पूरा होने पर एकादशी व्रत का उद्यापन करे। मुख्य रूप से मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष में इसका उद्यापन किया जाता है ।
एकादशी उद्यापन में एकादशी को पूजा, व्रत, जागरण होता है और द्वादशी को हवन, ब्राह्मण भोज और दान किया जाता है।
एकादशी उद्यापन में एकादशी को पूजा, व्रत, जागरण होता है और द्वादशी को हवन, ब्राह्मण भोज और दान किया जाता है।
(२) यजमान एकादशी को प्रातःकाल स्नान, संध्या आदि से शुद्ध होकर श्रद्धा एवं इंद्रियसंयम सहित आचार्य बुलाकर पूजन करे।
(३) आचार्य को चाहिये कि यजमान से उद्यापन का संकल्प करवाकर उत्तम रंगों(या रंगीन फूल/दालों) द्वारा अष्टदल कमल से संयुक्त सर्वतोभद्रमण्डल बनाये या केवल अष्टदल कमल ही बना ले।
(४) यथासंभव पञ्चरत्न से युक्त चन्दन, कर्पूर और अगरु की सुगन्ध से वासित जलपूर्ण कलश को सर्वतोभद्रमण्डल/अष्टदल के उपर स्थापित करे। फिर पञ्चपल्लव एवं काले, सफेद या लाल कपड़े से वेष्टित कर उसके ऊपर ताँबे/स्टील/मिट्टी का पूर्णपात्र(कटोरा) रखे। उस कलश को पुष्पमाला से भी वेष्टित करे। कलश स्थित पूर्णपात्र पर श्रीलक्ष्मी-नारायण मूर्ति की स्थापना करे।
(५) फिर “ॐ गणेश विष्णु शिव दुर्गा सूर्येभ्यो नमः” कहकर इन पांच देवों को गंध-पुष्प का समर्पण करे।
(६) सर्वतोभद्रमण्डल/अष्टदल कमल की प्रत्येक पंखुड़ी में बारह महीनों के अधिपतियों की स्थापना करके उनका पूजन करना चाहिये ।
ॐ चैत्राधिपति पुरुषोत्तम-विष्णुभ्यां नमः॥
ॐ वैशाखाधिपति अधोक्षज-मधुसूदनाभ्यां नमः॥
ॐ ज्येष्ठाधिपति नारसिंह-त्रिविक्रमाभ्यां नमः॥
ॐ आषाढ़ाधिपति अच्युत-वामनाभ्यां नमः॥
ॐ श्रावणाधिपति जनार्दन-श्रीधराभ्यां नमः॥
ॐ भाद्रपदाधिपति उपेन्द्र-हृषीकेशाभ्यां नमः॥
ॐ आश्विनाधिपति हरि-पद्मनाभाभ्यां नमः॥
ॐ कार्तिकाधिपति श्रीकृष्ण-दामोदराभ्यां नमः॥
ॐ मार्गशीर्षाधिपति संकर्षण-केशवाभ्यां नमः॥
ॐ पौषाधिपति वासुदेव-नारायणाभ्यां नमः॥
ॐ माघाधिपति प्रद्युम्न-माधवाभ्यां नमः॥
ॐ फाल्गुनाधिपति अनिरुद्ध-गोविन्दाभ्यां नमः॥
ॐ चैत्राधिपति पुरुषोत्तम-विष्णुभ्यां नमः॥
ॐ वैशाखाधिपति अधोक्षज-मधुसूदनाभ्यां नमः॥
ॐ ज्येष्ठाधिपति नारसिंह-त्रिविक्रमाभ्यां नमः॥
ॐ आषाढ़ाधिपति अच्युत-वामनाभ्यां नमः॥
ॐ श्रावणाधिपति जनार्दन-श्रीधराभ्यां नमः॥
ॐ भाद्रपदाधिपति उपेन्द्र-हृषीकेशाभ्यां नमः॥
ॐ आश्विनाधिपति हरि-पद्मनाभाभ्यां नमः॥
ॐ कार्तिकाधिपति श्रीकृष्ण-दामोदराभ्यां नमः॥
ॐ मार्गशीर्षाधिपति संकर्षण-केशवाभ्यां नमः॥
ॐ पौषाधिपति वासुदेव-नारायणाभ्यां नमः॥
ॐ माघाधिपति प्रद्युम्न-माधवाभ्यां नमः॥
ॐ फाल्गुनाधिपति अनिरुद्ध-गोविन्दाभ्यां नमः॥
(७) मण्डल के निकट शुभ शङ्ख की स्थापना करे और कहे- 'हे पाञ्चजन्य! आप पहले समुद्र से उत्पन्न हुए, फिर भगवान विष्णु ने अपने हाथों मेँ आपको धारण किया, सम्पूर्ण देवताओं ने आपके रूप को सँवारा है। आपको नमस्कार है।'
त्वं पुरा सागरोत्पन्नो विष्णुना विधृतः करे। नमितः सर्वदेवैश्च पांचजन्य नमोऽस्तु ते । ॐ पांचजन्याय विद्महे । पावमानाय धीमहि । तन्नः शंखः प्रचोदयात् । शंखदेवताभ्यो नमः । सकलपूजार्थे गंधपुष्पं तुलसीपत्रं च समर्पयामि । कहकर शंख को चन्दन – पुष्प - तुलसीपत्र अर्पित करे।
त्वं पुरा सागरोत्पन्नो विष्णुना विधृतः करे। नमितः सर्वदेवैश्च पांचजन्य नमोऽस्तु ते । ॐ पांचजन्याय विद्महे । पावमानाय धीमहि । तन्नः शंखः प्रचोदयात् । शंखदेवताभ्यो नमः । सकलपूजार्थे गंधपुष्पं तुलसीपत्रं च समर्पयामि । कहकर शंख को चन्दन – पुष्प - तुलसीपत्र अर्पित करे।
(८)फिर भगवान विष्णु की प्रतिमा की यदि प्रतिष्ठा नहीं हुई है तो करे| सर्वप्रथम गणेश जी व लक्ष्मी जी की पूजा करके विष्णु भगवान का ध्यान करे –
शांताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशम्।
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्।।
लक्ष्मीकान्तं-कमलनयनं योगिभिर्ध्यान-गम्यम्।
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैक-नाथम्।।
(जो शान्त स्वभाव लिए हुए, शेषनाग पर विराजित हैं, जिनकी नाभि में कमल का पुष्प विद्यमान है। जो सम्पूर्ण विश्व के आधार, आकाश के सदृश, शुभ
अंगों वाले हैं, जिनका रंग घने बादलों की तरह हैं| जो माँ लक्ष्मी के स्वामी हैं, जिनके नयन कमल के समान हैं, जिनका सभी योगीजन निःस्वार्थ भाव से ध्यान करते हैं ऐसे भगवान विष्णु जी का मैं ध्यान करता हूँ जो भवभय को हरने वाले और समस्त विश्व के नाथ हैं)
सोलह उपचारों = ध्यानं/आवाहनं, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, अलंकार, गन्ध(चन्दन), पुष्प-पुष्पमाला व तुलसी, धूप, दीप, नैवेद्य, अक्षत(जौं तिल), ताम्बूल(पान) तथा दक्षिणा द्वारा विधिपूर्वक विष्णु पूजन करे। विष्णु जी की चार प्रदक्षिणा(परिक्रमा) करके उन्हें साष्टांग प्रणाम करे।
ये सभी उपचार विष्णो रराटमसि विष्णोः, श्नप्त्रेस्थो विष्णोः स्यूरसि विष्णोर् - ध्रुवोऽसि, वैष्णवमसि विष्णवे त्वा। इस मन्त्र से या "पुरुष सूक्त" से या फिर ॥श्री विष्णवे नमः॥ मंत्र से एक-एक करके प्रत्येक उपचार समर्पित करे(जैसे- श्री विष्णवे नमः पुष्पं समर्पयामि)| फिर विष्णुजी का कोई स्तोत्र व भजन गाकर स्तुति करके विष्णुजी की आरती करे। अब आचार्य (पंडित जी) को दक्षिणा देकर नमस्कार करके विदा करे। व्रत रखकर भजन, नृत्य, मन्त्र जप, स्तोत्र पाठ आदि करते हुए यथासंभव रात्रि जागरण करे|
शांताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशम्।
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्।।
लक्ष्मीकान्तं-कमलनयनं योगिभिर्ध्यान-गम्यम्।
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैक-नाथम्।।
(जो शान्त स्वभाव लिए हुए, शेषनाग पर विराजित हैं, जिनकी नाभि में कमल का पुष्प विद्यमान है। जो सम्पूर्ण विश्व के आधार, आकाश के सदृश, शुभ
अंगों वाले हैं, जिनका रंग घने बादलों की तरह हैं| जो माँ लक्ष्मी के स्वामी हैं, जिनके नयन कमल के समान हैं, जिनका सभी योगीजन निःस्वार्थ भाव से ध्यान करते हैं ऐसे भगवान विष्णु जी का मैं ध्यान करता हूँ जो भवभय को हरने वाले और समस्त विश्व के नाथ हैं)
सोलह उपचारों = ध्यानं/आवाहनं, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, अलंकार, गन्ध(चन्दन), पुष्प-पुष्पमाला व तुलसी, धूप, दीप, नैवेद्य, अक्षत(जौं तिल), ताम्बूल(पान) तथा दक्षिणा द्वारा विधिपूर्वक विष्णु पूजन करे। विष्णु जी की चार प्रदक्षिणा(परिक्रमा) करके उन्हें साष्टांग प्रणाम करे।
ये सभी उपचार विष्णो रराटमसि विष्णोः, श्नप्त्रेस्थो विष्णोः स्यूरसि विष्णोर् - ध्रुवोऽसि, वैष्णवमसि विष्णवे त्वा। इस मन्त्र से या "पुरुष सूक्त" से या फिर ॥श्री विष्णवे नमः॥ मंत्र से एक-एक करके प्रत्येक उपचार समर्पित करे(जैसे- श्री विष्णवे नमः पुष्पं समर्पयामि)| फिर विष्णुजी का कोई स्तोत्र व भजन गाकर स्तुति करके विष्णुजी की आरती करे। अब आचार्य (पंडित जी) को दक्षिणा देकर नमस्कार करके विदा करे। व्रत रखकर भजन, नृत्य, मन्त्र जप, स्तोत्र पाठ आदि करते हुए यथासंभव रात्रि जागरण करे|
(९) द्वादशी के दिन सुबह स्नान आदि करके होम की तैयारी करके प्रसाद बनवाकर उद्यापन मेँ बारह या चौबीस विद्वान् ब्राह्मणों और पत्नी सहित आचार्य को आमन्त्रित करना चाहिये। तदुपरान्त ब्राह्मणों और आचार्य को स्वस्ति वाचन के वैदिक मन्त्रों का जप करना चाहिये।
(१०) श्री गणेश, शिवजी, दुर्गाजी, सूर्य देव तथा भगवान् विष्णु का भक्तिपूर्वक ध्यान करके गन्ध, पुष्प अर्पित करें तथा स्तुति करे।
(११) सर्वतोभद्रमण्डल के निकट संकल्पपूर्वक वेदोक्त मन्त्रों से हवन करे। कुंड पर हवन करे या हवन के लिये चौकोर बालू बिछाकर वेदी(स्थन्डिल) बनाये और उसके चारों ओर फूल रखे। अब स्थन्डिल पर आम की छोटी लकड़ियां रखकर हवन-दान का संकल्प करे
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: श्रीमद्भगवतो, महापुरुषस्य, विष्णोराज्ञया,
प्रवर्तमानस्य, अद्य ब्रह्मणोsह्नि द्वितीय परार्धे,
श्रीश्वेतवाराहकल्पे, वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे,
कलिप्रथमचरणे, भरतवर्षे, जम्बुद्वीपे, भरतखण्डे, भारतवर्षे, ___(संवत्सर
का नाम)_____ नामसंवत्सरे, ___(उत्तरायण/दक्षिणायन)___ अयने, __(ऋतु का
नाम)____ऋतौ, __मार्गशीर्ष___ मासे, __शुक्ल___ पक्षे, __(तिथि का नाम)___तिथौ, __(वार का नाम)__वासरे, __(नक्षत्रका नाम)__नक्षत्रे,
__(तिथि का नाम)___ शुभपुण्यतिथौ __(गोत्र का नाम)_ गोत्रीय __(अपना
नाम)__ अहं अद्य श्री नारायण प्रीत्यर्थम् एकादशी व्रतोद्यापनस्य सांगता सिद्धयर्थे होमं-दानम् च करिष्ये एवं ब्राह्मणान् भोजयिष्ये।
प्रवर्तमानस्य, अद्य ब्रह्मणोsह्नि द्वितीय परार्धे,
श्रीश्वेतवाराहकल्पे, वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे,
कलिप्रथमचरणे, भरतवर्षे, जम्बुद्वीपे, भरतखण्डे, भारतवर्षे, ___(संवत्सर
का नाम)_____ नामसंवत्सरे, ___(उत्तरायण/दक्षिणायन)___ अयने, __(ऋतु का
नाम)____ऋतौ, __मार्गशीर्ष___ मासे, __शुक्ल___ पक्षे, __(तिथि का नाम)___तिथौ, __(वार का नाम)__वासरे, __(नक्षत्रका नाम)__नक्षत्रे,
__(तिथि का नाम)___ शुभपुण्यतिथौ __(गोत्र का नाम)_ गोत्रीय __(अपना
नाम)__ अहं अद्य श्री नारायण प्रीत्यर्थम् एकादशी व्रतोद्यापनस्य सांगता सिद्धयर्थे होमं-दानम् च करिष्ये एवं ब्राह्मणान् भोजयिष्ये।
(१२) स्थन्डिल या ताम्र कुण्ड के पांच संस्कार करे - तीन कुशों से स्थन्डिल को दक्षिण से उत्तर की ओर झाड़कर कुशों को ईशान दिशा में फेंक दें। गोमूत्र छिड़क दे या गोबर और जल से लीप दे।कुशमूल से स्थन्डिल के पश्चिमी हिस्से पर लगभग दस अंगुल लंबी तीन रेखाएं दक्षिण से प्रारम्भ कर उत्तर की ओर बनाएं। दाहिने हाथ की अनामिका और अंगूठे से उन तीन रेखाओं की थोड़ी मिट्टी निकालकर बाएं हाथ में तीन बार रखकर फिर वो मिट्टी दाहिने हाथ में रख लें। फिर मिट्टी को उत्तर की ओर फेंक दें। इसके बाद थोड़ा जल कुंड पर छिड़क दें। तब स्थंडिल पर अग्निस्थापन करे -
कर्पूर सहित एक रुई की बत्ती जलाकर अग्नि का ध्यान करे- ॐ चत्वारि श्रृंगा त्रयो अस्य पादा द्वे शीर्षे सप्त हस्तासो अस्य। त्रिधा बद्धो वृषभो रोरवीति महो देवो मर्त्याम् आविवेशः॥
(सभी कामनाओं को सिद्ध करने वाले अग्नि देव ब्रह्म रूपी शब्द कर रहे हैं। उनके चार सींग, तीन पैर, दो मस्तक और सात हाथ हैं। तीन स्थानों में बंधे हुए ऐसे भारी देव हमारे समक्ष उपस्थित हैं।)
अब इस जलती हुई कर्पूरयुक्त बत्ती को उन लकडियों में इस तरह रखे कि उसकी अग्नि लकड़ियों को जलाए, कुछ कपूर भी डाल दें।(सूखी लकडियाँ व कपूर प्रचुर मात्रा में लेकर रखे और हवन के दौरान अग्नि बुझने न दें)
फिर अग्नि का आवाहन करे-
ॐ मुखं यः सर्वदेवानां हव्यभुक् कव्यभुक् तथा। पितृणां च नमस्तुभ्यं विष्णवे पावकात्मने।।
रक्त-माल्याम्बर-धरं रक्त-पद्मासन-स्थितम्। रौद्रवागीश्वरीरुपं वह्नि-मावाहयाम्यहम्।।
ॐ पावकाग्नये नमः आवाहयामि, प्रतिष्ठापयामि, पूजयामि च। से अक्षत-पुष्प अग्नि में चढ़ाएँ।
अब एक पात्र में इच्छित मात्रा में(लगभग 200ग्राम) घी लेकर जिसके पास स्रुव है वो उससे करे| स्रुव नहीं है तो घृतपात्र में आम का एक पत्ता डाल कर, प्रज्ज्वलित अग्नि पर दक्षिणावर्त(घड़ी की सुई की दिशा में) तीन बार घुमाकर वेदी के समीप रख दें। आम्रपल्लव से ही थोड़ा-थोड़ा घी लेकर निम्न मन्त्रोच्चारण पूर्वक अग्नि में आहुति डालें। हवनकर्ता के मन्त्रोच्चारण के बाद हवन में उपस्थित लोग भी एक साथ स्वाहा बोलते जायें।
ॐ प्रजापतये स्वाहा, इदं प्रजापतये न मम(यह पहला वाला मन्त्र मन में ही कहना है)
ॐ भूः स्वाहा, इदं अग्नये न मम।
ॐ भुवः स्वाहा, इदं वायवे न मम।
ॐ स्वः स्वाहा, इदं सूर्याय न मम।
ॐ सोमाय स्वाहा, इदं सोमाय न मम।
ॐ अग्नये स्वाहा, इदं अग्नये न मम।
ॐ गणपत्यादि पञ्चलोकपालेभ्यो नमः स्वाहा।
ॐ इन्द्रादि दशदिक्पालेभ्यो नमः स्वाहा।
ॐ गौर्यादि-षोडशमातृकाभ्यो नमः स्वाहा।
ॐ चतुःषष्टि-योगिनीभ्यो नमः स्वाहा।
ॐ सर्वेभ्योदेवेभ्यो नमः स्वाहा।
अब ॐ अग्नये नमः स्वाहा। मंत्र से वेदी पर थोड़ा जल गिरा दे। (ध्यान रहे आग पर जल न गिराएँ)
अब विष्णु मंत्र (ॐ नमो नारायणाय स्वाहा) से ही थोड़ी घृतयुक्त पायस (खीर) की अग्नि में आहुति दे दे। अब सम्भव हो तो 8, 28 या 108 पलाश/आम की समिधाएँ घी मेँ डुबोकर हवन करे जो अंगूठे के सिरे से तर्जनी के सिरे तक लम्बाई की हों- ॐ विष्णो रराटमसि विष्णोः, श्नप्त्रेस्थो विष्णोः स्यूरसि विष्णो-ध्रुवोऽसि, वैष्णवमसि विष्णवे त्वा स्वाहा। इससे या "स्वाहायुक्त पुरुष सूक्त" से या फिर ॥श्री विष्णवे नमः स्वाहा॥ से हवन करे|
कर्पूर सहित एक रुई की बत्ती जलाकर अग्नि का ध्यान करे- ॐ चत्वारि श्रृंगा त्रयो अस्य पादा द्वे शीर्षे सप्त हस्तासो अस्य। त्रिधा बद्धो वृषभो रोरवीति महो देवो मर्त्याम् आविवेशः॥
(सभी कामनाओं को सिद्ध करने वाले अग्नि देव ब्रह्म रूपी शब्द कर रहे हैं। उनके चार सींग, तीन पैर, दो मस्तक और सात हाथ हैं। तीन स्थानों में बंधे हुए ऐसे भारी देव हमारे समक्ष उपस्थित हैं।)
अब इस जलती हुई कर्पूरयुक्त बत्ती को उन लकडियों में इस तरह रखे कि उसकी अग्नि लकड़ियों को जलाए, कुछ कपूर भी डाल दें।(सूखी लकडियाँ व कपूर प्रचुर मात्रा में लेकर रखे और हवन के दौरान अग्नि बुझने न दें)
फिर अग्नि का आवाहन करे-
ॐ मुखं यः सर्वदेवानां हव्यभुक् कव्यभुक् तथा। पितृणां च नमस्तुभ्यं विष्णवे पावकात्मने।।
रक्त-माल्याम्बर-धरं रक्त-पद्मासन-स्थितम्। रौद्रवागीश्वरीरुपं वह्नि-मावाहयाम्यहम्।।
ॐ पावकाग्नये नमः आवाहयामि, प्रतिष्ठापयामि, पूजयामि च। से अक्षत-पुष्प अग्नि में चढ़ाएँ।
अब एक पात्र में इच्छित मात्रा में(लगभग 200ग्राम) घी लेकर जिसके पास स्रुव है वो उससे करे| स्रुव नहीं है तो घृतपात्र में आम का एक पत्ता डाल कर, प्रज्ज्वलित अग्नि पर दक्षिणावर्त(घड़ी की सुई की दिशा में) तीन बार घुमाकर वेदी के समीप रख दें। आम्रपल्लव से ही थोड़ा-थोड़ा घी लेकर निम्न मन्त्रोच्चारण पूर्वक अग्नि में आहुति डालें। हवनकर्ता के मन्त्रोच्चारण के बाद हवन में उपस्थित लोग भी एक साथ स्वाहा बोलते जायें।
ॐ प्रजापतये स्वाहा, इदं प्रजापतये न मम(यह पहला वाला मन्त्र मन में ही कहना है)
ॐ भूः स्वाहा, इदं अग्नये न मम।
ॐ भुवः स्वाहा, इदं वायवे न मम।
ॐ स्वः स्वाहा, इदं सूर्याय न मम।
ॐ सोमाय स्वाहा, इदं सोमाय न मम।
ॐ अग्नये स्वाहा, इदं अग्नये न मम।
ॐ गणपत्यादि पञ्चलोकपालेभ्यो नमः स्वाहा।
ॐ इन्द्रादि दशदिक्पालेभ्यो नमः स्वाहा।
ॐ गौर्यादि-षोडशमातृकाभ्यो नमः स्वाहा।
ॐ चतुःषष्टि-योगिनीभ्यो नमः स्वाहा।
ॐ सर्वेभ्योदेवेभ्यो नमः स्वाहा।
अब ॐ अग्नये नमः स्वाहा। मंत्र से वेदी पर थोड़ा जल गिरा दे। (ध्यान रहे आग पर जल न गिराएँ)
अब विष्णु मंत्र (ॐ नमो नारायणाय स्वाहा) से ही थोड़ी घृतयुक्त पायस (खीर) की अग्नि में आहुति दे दे। अब सम्भव हो तो 8, 28 या 108 पलाश/आम की समिधाएँ घी मेँ डुबोकर हवन करे जो अंगूठे के सिरे से तर्जनी के सिरे तक लम्बाई की हों- ॐ विष्णो रराटमसि विष्णोः, श्नप्त्रेस्थो विष्णोः स्यूरसि विष्णो-ध्रुवोऽसि, वैष्णवमसि विष्णवे त्वा स्वाहा। इससे या "स्वाहायुक्त पुरुष सूक्त" से या फिर ॥श्री विष्णवे नमः स्वाहा॥ से हवन करे|
(१३) इसके बाद ॐ नमो नारायणाय स्वाहा से तिल (इसके साथ हवन सामग्री का पैकेट ले सकते हैं, उसमें पवित्र समिधाएं चूर्ण रूप में मिली होती हैं यह बाजार में इसी नाम से मिलता है) से (कम से कम 11) आहुतियां दी जानी चाहिये। हवन सामग्री को अनामिका, मध्यमा व अंगूठे से पकड़ कर अग्नि में छोड़ें।
(१४) उपरोक्त वैष्णव होम के बाद ग्रहयज्ञ[नवग्रहों के मंत्रों द्वारा हवन] करे, इसमें भी समिधा(या हवन सामग्री पैकेट का चूर्ण), चरू(खीर) और तिल द्वारा होम होना चाहिये। वैसे तो हर ग्रह का विस्तृत मंत्र है पर इस मंत्र से भी ग्रहयज्ञ हो जाएगा -
"ॐ ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च गुरुश्च शुक्रः शनि राहु केतवः सर्वे ग्रहाः शांतिकराः भवन्तु स्वाहा॥" अब ॐ नमो नारायणाय से वेदी व नारायण को पुष्प अर्पित करके माथे पर यज्ञ की राख़ का तिलक करे।
"ॐ ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च गुरुश्च शुक्रः शनि राहु केतवः सर्वे ग्रहाः शांतिकराः भवन्तु स्वाहा॥" अब ॐ नमो नारायणाय से वेदी व नारायण को पुष्प अर्पित करके माथे पर यज्ञ की राख़ का तिलक करे।
(१५) यदि पंडितजी न आ सकने से या किसी अन्य कारण से कोई व्यक्ति हवन न कर सके तो निम्न संकल्प करके हवन न कर पाने के प्रायश्चित स्वरूप निष्क्रय(सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा) को सामने रखकर हाथ में जल - पुष्प - अक्षत लेकर संकल्प कहे -
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: श्रीमद्भगवतो, महापुरुषस्य, विष्णोराज्ञया,
प्रवर्तमानस्य, अद्य ब्रह्मणोsह्नि द्वितीय परार्धे,
श्रीश्वेतवाराहकल्पे, वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे,
कलिप्रथमचरणे, भरतवर्षे, जम्बुद्वीपे, भरतखण्डे, भारतवर्षे, ___(संवत्सर
का नाम)_____ नामसंवत्सरे, ___(उत्तरायण/दक्षिणायन)___ अयने, __(ऋतु का
नाम)____ऋतौ, __मार्गशीर्ष___ मासे, __शुक्ल___ पक्षे, __(तिथि का नाम)___तिथौ, __(वार का नाम)__वासरे, __(नक्षत्रका नाम)__नक्षत्रे,
__(तिथि का नाम)___ शुभपुण्यतिथौ __(गोत्र का नाम)_ गोत्रीय __(अपना
नाम)__ अहं अद्य श्री नारायण प्रीत्यर्थम् एकादशी व्रतोद्यापनस्य सांगता सिद्धयर्थे एकादशी उद्यापनस्य होमाभावे इमां दक्षिणां ब्राह्मणाय दास्ये अनेन दानेन एकादशी उद्यापनस्य परिपूर्णता भवतु। यह बोलकर जल भूमि पर छोड़ कर पुष्प अक्षत दक्षिणा पर छोड़ दे और दक्षिणा(सम्भव हो तो साथ में तिल, घी, दुग्ध, चावल भी) किसी ब्राह्मण या साधु या पंडितजी को दे आइये।
प्रवर्तमानस्य, अद्य ब्रह्मणोsह्नि द्वितीय परार्धे,
श्रीश्वेतवाराहकल्पे, वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे,
कलिप्रथमचरणे, भरतवर्षे, जम्बुद्वीपे, भरतखण्डे, भारतवर्षे, ___(संवत्सर
का नाम)_____ नामसंवत्सरे, ___(उत्तरायण/दक्षिणायन)___ अयने, __(ऋतु का
नाम)____ऋतौ, __मार्गशीर्ष___ मासे, __शुक्ल___ पक्षे, __(तिथि का नाम)___तिथौ, __(वार का नाम)__वासरे, __(नक्षत्रका नाम)__नक्षत्रे,
__(तिथि का नाम)___ शुभपुण्यतिथौ __(गोत्र का नाम)_ गोत्रीय __(अपना
नाम)__ अहं अद्य श्री नारायण प्रीत्यर्थम् एकादशी व्रतोद्यापनस्य सांगता सिद्धयर्थे एकादशी उद्यापनस्य होमाभावे इमां दक्षिणां ब्राह्मणाय दास्ये अनेन दानेन एकादशी उद्यापनस्य परिपूर्णता भवतु। यह बोलकर जल भूमि पर छोड़ कर पुष्प अक्षत दक्षिणा पर छोड़ दे और दक्षिणा(सम्भव हो तो साथ में तिल, घी, दुग्ध, चावल भी) किसी ब्राह्मण या साधु या पंडितजी को दे आइये।
(१६) फिर क्षमा प्रार्थना करे-
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां जनार्दन।
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां जनार्दन।
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर। यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे।।
फिर शांति पाठ करे-
ॐ द्यौः शान्ति-रन्तरिक्ष गं शान्तिः| पृथिवी शान्तिरापः शान्ति-रौषधयः शान्तिः || वनस्पतयः शान्तिः विश्वेदेवाः शान्तिः-ब्रह्मः शान्तिः| सर्वं शान्तिः सा मा शान्तिरेधि || ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः |
फिर शांति पाठ करे-
ॐ द्यौः शान्ति-रन्तरिक्ष गं शान्तिः| पृथिवी शान्तिरापः शान्ति-रौषधयः शान्तिः || वनस्पतयः शान्तिः विश्वेदेवाः शान्तिः-ब्रह्मः शान्तिः| सर्वं शान्तिः सा मा शान्तिरेधि || ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः |
यत्कृतम् सर्वं श्री हरि अर्पणमस्तु
श्री विष्णुः विष्णुः विष्णुः||
फिर कहे-
यान्तु देवगणा: सर्वे पूजामादाय मामकीम्। इष्टकामसमृद्धयर्थं पुनरागमनाय च॥ कहकर ब्राह्मणों एवं आचार्य को उत्त्तम सात्विक भोजन कराए| फिर दक्षिणा और दान दें जिसमें अन्न, मिठाई, फल, वस्त्र, रुपए, जल भरे कलश(तांबे या मिट्टी) का यथाशक्ति दान किया जाय।
यान्तु देवगणा: सर्वे पूजामादाय मामकीम्। इष्टकामसमृद्धयर्थं पुनरागमनाय च॥ कहकर ब्राह्मणों एवं आचार्य को उत्त्तम सात्विक भोजन कराए| फिर दक्षिणा और दान दें जिसमें अन्न, मिठाई, फल, वस्त्र, रुपए, जल भरे कलश(तांबे या मिट्टी) का यथाशक्ति दान किया जाय।
इस प्रकार एकादशी व्रत का विधान बतलाया गया है। इस अखण्ड एकादशी व्रत को करने से मनुष्य की सौ पीढ़ियों का उद्धार हो जाता है। मान्यता है कि जागरण की रात्रि में जागरण करते समय नृत्य करने से भगवान् स्वयं भक्त के साथ नृत्य करते हैं। ऐसे भक्तवत्सल श्रीहरि नारायण को हमारा बारम्बार प्रणाम.....
एकदशी का udhaypan किस दिन होता ह एकदशी को या द्वादशी को कृपया हमें बातये जल्दी से
जवाब देंहटाएंजय श्री कृष्ण महोदय.... द्वादशी के दिन उद्यापन किया जाता है... टिप्पणी करने के लिए धन्यवाद
हटाएं..जय श्री राम...
shirmaan, Ekadshi ka vart kab se suru karna karna chahiye. main abhi ekadshi ka vart nahi rkhta hun.to main kon si ekadshi se vart rkhan suru kar skta hua karpa btane ka kasht kare . Jai shree Ram.
जवाब देंहटाएंमहोदय एकादशी का व्रत मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से आरंभ किया जाना सर्वोत्तम माना जाता है। इस बार 18 दिसंबर 2018 को यह तिथि पड़ रही है।
जवाब देंहटाएंइसके अलावा किसी भी शुक्ल पक्ष की एकादशी से ही इस व्रत का प्रारम्भ होना चाहिए।
जय श्री राम
Mujhe ekadashi udyapan kab karna chahiye
जवाब देंहटाएंउद्यापन करने से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है... एकादशी व्रतों का उद्यापन 24 एकादशी व्रत पूरे होने पर किया जाता है... शास्त्रीय परंपरा के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी से एकादशी व्रत प्रारम्भ किये जाते हैं और प्रत्येक महीने दो - दो एकादशी व्रत रखने से एक साल में 24 व्रत सम्पन्न हो जाते हैं... और 24 वें व्रत के बाद मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी को उद्यापन किया जाता है... इसीलिये आपको 24 एकादशी व्रत रखकर ही एकादशी उद्यापन करना चाहिए... जय श्री राम
हटाएंआदरणीय एकादशी उद्यापन विधि एक पुस्तक में 26 वायन देने का उल्लेख है। कृपया जानकारी देने की कृपा करें कि वायन का क्या मतलब होता है? वायन है क्या चीज???
हटाएंमहोदय, मूल ग्रंथ में व्रत करके ब्राह्मण को भोजन कराएं लिखा जाता है परंतु व्रत कथा की पुस्तकों में वायन जिमाना(खिलाना) शब्द लिखा जाता है । वायन से अभिप्राय पक्वान्न(पका अन्न/पकवान) देने से है जैसे पुए, पूरी, हलवा, मोदक, खीर आदि... उत्तम तो है कि ब्राह्मणों को घर बुलाकर खिलाए... पर ऐसा न हो सके तो पक्वान्न को थैले आदि में रखकर उनके घर के लिए भी दान दे सकते हैं या ब्राह्मण के घर जाकर स्वयम् ही दे आयें।
हटाएं26 वायन से अर्थ है कि 26 ब्राह्मणों को खिलाए..
इस व्रत में वायन की 26 संख्या इसलिए है क्योंकि कुल 26 एकादशी तिथि होती हैं। साल भर में 24 एकादशी तिथि होती हैं (कृष्ण पक्ष में 12+शुक्ल पक्ष की 12एकादशी तिथियां) और जो बाकी की दो रह गयी वो हैं अधिक मास की शुक्ल-कृष्ण एकादशी तिथियां...अधिक मास को पुरुषोत्तम मास कहते हैं...ये अधिक मास कभी कभार ही पड़ता है पंचांग में देख लेना चाहिए अगर किसी वर्ष में अधिक महीना है और आप उस अधिक-मास में व्रत रखते हैं तो तभी ये 2 वायन दे अन्यथा न दे... जितने व्रत आप लेते हो उतने ही ब्राह्मणों को खिलाए ऐसा नियम है। यदि 24 ब्राह्मण न मिल पाएं तो 12ब्राह्मणों को दो प्रकार के पकवान दे दे या 6 ब्राह्मणों को चार प्रकार के पकवान या 1 ब्राह्मण ही को 24 प्रकार के पकवान दे दे... 24 प्रकार के पकवान की सूची के लिए इस लिंक पर जाइये -एकादशी उद्यापन...
जय श्री हरि
kya Amlaki ekadashi udhyapan kar sakte hain- 17 march 2019 ko.. koi kah raha hai ki holiashtika ki vajah se udhyapan nahi hoga..pls confirm
जवाब देंहटाएंनमस्कार जी होलाष्टक का समय शुभ नहीं समझा जाता अतः होलाष्टक में विवाह,नामकरण, उद्यापन आदि शुभ मांगलिक कार्य नहीं करते हैं... वैसे भी 24 एकादशी व्रत पूरे होने पर ही उद्यापन किया जाता है..इसलिए ध्यान रहे कि उद्यापन के लिए 24 एकादशी व्रत पूरे होने पर उस द्वादशी तिथि के दिन का चयन करें जिस दिन होलाष्टक, ग्रहण, खरमास (मलमास/अधिक मास) आदि अशुभ समय न हो...
हटाएंजय श्री कृष्ण
Ekadashi ka udyapan chetar aur besak main karna chahiye ya nahi
जवाब देंहटाएंचैत्र कृष्ण पक्ष को एकादशी का उद्यापन नहीं करना चाहिए..लेकिन चैत्र शुक्ल द्वादशी तथा वैशाख कृष्ण द्वादशी और वैशाख शुक्ल द्वादशी को एकादशी का उद्यापन किया जा सकता है...
हटाएंजय श्री राम
kya 13june 2019 nirjla ekadshi ko ekadashi k vrat ka udayapan kar skte hai eska samaan vistaar se btayege jo pandit ji ko dena hota hai
जवाब देंहटाएंनमस्कार जी हाँ ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी को उद्यापन किया जा सकता है...उद्यापन के अंतर्गत एकादशी को व्रत पूजा तथा द्वादशी को हवन, ब्राह्मण भोजन करवाना, दान का कर्म होता है... दान में कलश, पकवान/नैवेद्य, मिठाई, फल, वस्त्र, गौ या गौ की मूर्ति, दक्षिणा सहित जितनी सामर्थ्य हो उसके अनुसार देना चाहिए. और उनसे कहे कि इस उद्यापन से मेरा व्रत पूरा हो जाए..
हटाएंलेकिन ध्यान रहे कि आषाढ़ मास हरिशयनी एकादशी से लेकर कार्तिक देवप्रबोधन एकादशी तक उद्यापन नहीं किया जा सकता है क्योंकि इस समय देवगण सोये होते हैं देवताओं के प्रबोध समय में ही उद्यापन करते हैं...
उद्यापन की विस्तृत विधि मैं एक आलेख लिखकर बतलाउंगा...इसको कार्तिक मास देवप्रबोधिनी एकादशी के बाद तक ही प्रकाशित कर सकूंगा क्योंकि उसके बाद ही अब उद्यापन कार्य होंगे.. जय श्री राम
Jai Shri ram.sir Kya ekadashi ke sath sath somvar ke vart kar sakte he Jo ki phale se rhte he. Or ye ekadashi ka vart kab se suru karna jyada acha hoga
जवाब देंहटाएंजी हाँ एकादशी के दिन यदि श्रावण सोमवार या अन्य कोई व्रत भी पड़ जाए तो लिया जा सकता है... एक साथ दोनों व्रत हो जाएंगे... लेकिन हाथ में जल लेकर दोनों व्रत का संकल्प ले लेना अच्छा रहेगा...
हटाएंशास्त्रों के अनुसार एकादशी व्रत मार्गशीर्ष (अगहन) महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी से प्रारम्भ करना चाहिए.. जय श्री कृष्ण
Sir maine Janmashthmi se vrt krna shuru kiya h kriya bataye ki mujhe udayapan kb krna chahiye Or eski vidhi kya h
जवाब देंहटाएंउद्यापन से व्रत का उत्तम फल मिलता है... शास्त्रों के अनुसार श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत का उद्यापन उसी दिन अर्थात "भाद्रपद कृष्ण अष्टमी" के दिन ही किया जाता है... उसकी विधि भी उपरोक्त एकादशी उद्यापन की तरह ही है... इसे लिखने में समय लगेगा अतः कुछ दिन बाद उसकी विधि यहाँ प्रकाशित करूंगा... कृपया थोड़ा प्रतीक्षा करें.. सुझाव के लिए धन्यवाद..
हटाएंजय श्री कृष्ण
Maine ekadashi ka vrt Janmashthmi ke bad se shuru kiya h mai ekadashi ka udayapan krna chahti hu mujhe esa eska udayapan kb or kese krna chahiye
जवाब देंहटाएंKumari Mukku जी 8 नवंबर 2019 तक चातुर्मास रहेगा इस समय में विष्णु भगवान योगनिद्रा में लीन रहते हैं इसलिए एकादशी व्रत का उद्यापन इस समय नहीं किया जाता है... लेकिन चातुर्मास के बाद यानि 23 नवम्बर 2019(मार्गशीर्ष कृष्ण द्वादशी) को या फिर 7 दिसम्बर 2019 (मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी) को आप एकादशी का उद्यापन कर सकती हैं.... उपर के लेख में मैने एकादशी उद्यापन की संक्षिप्त विधि प्रस्तुत की है नवम्बर महीने में विस्तार से इसकी विधि प्रस्तुत कर दी जाएगी.... जय श्री राम
हटाएंTb tk mujhe vrt continue rkhne h ?
हटाएंजी हाँ.. जय श्री कृष्ण
हटाएंKya mai ekadshi vrt ka udhdhyapan 8 nov ki ekadshi ko kr skti hu kya
जवाब देंहटाएंजी हाँ 8 nov 2019 को देवोत्थानी एकादशी है अतः उद्यापन किया जा सकता है क्योंकि उस दिन भगवान विष्णु जी योगनिद्रा से जग चुके होंगे और उस दिन से मांगलिक कार्य शुरु हो जाते हैं... एकादशी को व्रत रखते हुए विष्णु जी की पूजा करें और द्वादशी को हवन दान करें...
हटाएंजय श्री राम
Kya mai 9 nov ko ekadhashi ka udayapan kr skti hu
जवाब देंहटाएंजी हाँ 8 nov 2019 को व्रत तथा विष्णु पूजन करें और 9 को हवन दान करें
हटाएं8 nov ko dev uthni ekadhadhi h kya us din ya uske agle din udayapan kiya ja skta h
जवाब देंहटाएंजी हाँ पहले भी बताया था आपको कि उद्यापन के अंतर्गत एकादशी को पूजा करके द्वादशी को हवन दान करें
हटाएंNAMASKAR JI WE ARE DOING EKADASHI FROM LAST MANY YEARS BUT DONT KNOW ABOUT UDYAPAN SO PLEASE GUIDE US WHAT WE DO AND WHAT IS THE BEST TIME AND SYSTEM FOR UDYAPAN.
जवाब देंहटाएंनमस्कार जी बिल्कुल एक आलेख लिखकर एकादशी उद्यापन की विस्तृत विधि बताने का प्रयास करूंगा ... पर उसमें थोड़ा समय लग जाएगा कृपया प्रतीक्षा करें...
हटाएंजय श्री राम
22 nov ko ekadhshi udhyapan kiya ja skta h kya? Ya fir uske agle din?
जवाब देंहटाएं22 nov 2019 को एकादशी है और 23 nov को द्वादशी... एकादशी उद्यापन में हमेशा एकादशी को व्रत पूजा (और यथासम्भव रात्रि जागरण) करके द्वादशी के दिन हवन तथा दान किया जाता है...जय श्री राम
हटाएंKya 11 novmber ko udyapan kar sakte hai purnima bhi hai
जवाब देंहटाएंजी नहीं...ध्यान रखें कि एकादशी का उद्यापन एकादशी को व्रत लेकर विष्णु पूजा करते हुए द्वादशी को हवन करके दान देकर ही सम्पन्न किया जाता है जय श्री कृष्ण
हटाएंudyapan m brahman ji ko jode se ya single bhojan krwana chahiye please bataye
जवाब देंहटाएंजी शास्त्रों के अनुसार तो 12 विवाहित ब्राह्मणों को उनकी पत्नीसहित भोजन करवाने को कहा गया है (यानि 12पुरुष + 12स्त्री = कुल 24 लोग हो गए)
हटाएंलेकिन अगर किसी को 12 विवाहित जोड़े नहीं मिल पाते हैं .... तो किन्हीं भी 12 या 24 लोगों को बुलाकर भोजन करवाया जा सकता है। जय श्री राम
Mai 7 shanivaar ka vrt krna shuru kiya h
जवाब देंहटाएंAbhi 3 shanivaar pure ho gye h
Kl chautha shanivaar h
Kya mahmaahi ke samay vrt kr skte h ya fir agla vrt kre
जी माहवारी के दिनों में व्रत रखा जा सकता है.... लेकिन ध्यान रहे कि माहवारी के दिनों में मंदिर या देव-प्रतिमा को छूना,दान करना मना है...इसलिए माहवारी में स्त्री भगवान की मूर्ति-पूजा नहीं कर सकती अतः उन दिनों पूजा किसी और व्यक्ति से करवा लेनी चाहिए....
हटाएंएकादशी व्रत के बारे में आपके द्वारा प्रदत्त जानकारी प्रशंसनीय होने के साथ-साथ शेयर करने योग्य हैं। एकादशी व्रत के महत्व की जानकारी सभी को होनी चाहिए। आपकी इस पहल के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंगरीब व्यक्ति एकादशी का उद्यापन कैसे करे ?
जवाब देंहटाएंव्रत का फल धन पर नहीं व्रती की श्रद्धा पर निर्भर करता है. एकादशी माहात्म्य के अनुसार निर्धन व्यक्ति फूटी कौडी भी चढा दे तो धनवान व्यक्ति के द्वारा चढ़ाई सहस्र स्वर्ण मुद्रा के समान ही उसका फल है... जितनी सामर्थ्य हो उसके अंतर्गत दान करे..परंतु व्यक्ति के पास पर्याप्त धन है तो वह कंजूसी नहीं करे... निर्धन व्यक्ति भी उद्यापन कर सके इसके लिए निम्न सुझाव सामने रखता हूं-
हटाएं• व्रत-पूजा-भजनकीर्तन-जागरण यह तो निर्धन हो या सेठ कोई भी कर सकता है.. कम धन के कारण पंडित जी को न बुला सके तो कोई बात नहीं स्वयम् फूल आदि से जैसी सामर्थ्य हो वैसी पूजा कर ले..स्वच्छ जल से मूर्ति को स्नान कराए तुलसी फूल रोली आदि से पूजे आटा/सूजी व चीनी भूनकर प्रसाद बनाकर भोग लगाकर आरती करे... विष्णु, राधेकृष्ण या सीताराम का नाम कम से कम 100 बार जपेे...कम से कम रात्रि 12 बजे तक जागरण करे..ये सब एकादशी कोकरे
• हवन : निर्धन व्यक्ति द्वादशी को हवन की जगह भगवान के विष्णु या राधेकृष्ण या सीताराम नाम का कम से कम 1000 बार तो जप अवश्य करे और सामर्थ्य के अनुसार हो सके मंदिर में घी,तिल या फिर फल, रुपया दान करे: एक हाथ में दान में दी जाने वाली वस्तु और दूसरे हाथ में जल लेकर "हरि ओऽम् तत्सदद्य ..संवत्सरे..मासे...पक्षे..द्वादशी तिथौ...वासरे..एकादशी उद्यापनान्तर्गते हवन स्थाने इदं वस्तूनि दानमहम् करिष्ये" संकल्प बोलकर जल छोड़ दे फिर जाकर दान करे.
• ब्राह्मण भोजन : सामर्थ्य अनुसार कम से कम 1 ब्राह्मण को तो अवश्य भोजन करा दे या प्रसाद, फल ही खाने को देदे... इसका संकल्प यह होगा : हरि ओऽम् तत्सदद्य ..संवत्सरे..मासे...पक्षे..द्वादशी तिथौ...वासरे..एकादशी उद्यापनान्तर्गते ब्राह्मण भोजनार्थे इदं भोज्य वस्तूनि दानमहम् करिष्ये
• दान : "हरि ओऽम् तत्सदद्य ..संवत्सरे..मासे...पक्षे..द्वादशी तिथौ...(वार)वासरे....एकादशी उद्यापनान्तर्गते एकादशी व्रतस्य सांगता सिद्ध्यर्थे .....(नाम)अहम्....इदं वस्तूनि दानम् करिष्ये" संकल्प बोलकर एक बार फिर अलग से फल,प्रसाद या रुपया सामर्थ्य अनुसार किसी को दान करे.. इस प्रकार व्रत अवश्य ही पूर्णता प्राप्त करेगा...
जय श्री कृष्ण
2 जून 2020 को एकादशी का उद्यापन कर सकते है क्योंकि इस मास ग्रहण लगना बताया जा रहा है।
जवाब देंहटाएंचूंकि ग्रहण केवल अमावस्या और पूर्णिमा को ही संभव है इसलिए एकादशी के उद्यापन में ग्रहण बाधा नहीं बन सकता है...
हटाएंश्रीमान २०२०में एकादशी व्रत के उद्यापन के लिए कितने दिन है तथा तिथि क्या है
जवाब देंहटाएंदेखिए एकादशी उद्यापन में एकादशी तिथि को विष्णु जी की पूजा करनी है और द्वादशी को हवन दान ब्राह्मण भोजन..इस हिसाब से पंचांग में देखकर अपने अनुकूल तिथि चुन लें...बस इतना ध्यान रहे कि ग्रहण, चातुर्मास(हरिशयनी एकादशी से देवोत्थानी एकादशी तक), मलमास(अधिक मास) में एकादशी उद्यापन नहीं किया जाता है...
हटाएं3 July se savan ka mahina shuru ho kya h
जवाब देंहटाएंKya mai somvaar ke vrt krna shuru kr skti hu
Ye mera pahla savan ka somvaar ka vrt hoga
Esse pahle Maine nhi kiya
Or kya mai 3 july se continue 16 somvaar ke vrt kr skti hu
3 जुलाई को नहीं ....क्योंकि 6जुलाई 2020 से श्रावण मास प्रारम्भ हो रहा है उस दिन श्रावण का प्रथम सोमवार भी है
हटाएं6 जुलाई से ही व्रत शुरू कर सकती हैं..
Kya ek baar udyapan ke kuch samay baad phir se ekadshi vrat shuru kar sakte h?
जवाब देंहटाएंजी हाँ..
हटाएंMere ghr mai maine mandir apne bedroom me hi rkha tha
जवाब देंहटाएंAb mai uski sthapna holl me krna chahti hu
Kya aaj ke din mai mandir ki sthapna kr skti hu kya. .. Ya fir kl karu
Kl se mai somvaar ke vrt shuru kr rahi hu
कल सोमवार 6 जुलाई को स्थापना कीजिए शुभ रहेगा ... उत्तम दिन है..
हटाएंसूचना : इस पोस्ट पर कमेंट्स की संख्या अधिक होने से पेज बडा हो गया है...अतः इस आलेख पर कमेंट्स बन्द कर रहा हूं.. कृपया दूसरी पोस्ट्स पर कमेंट्स करें धन्यवाद.. जय श्री कृष्ण...🙏
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