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र्तिक कृष्ण अमावास्या को दीपावली की अद्भुत वेला में श्रीमहालक्ष्मी एवं भगवान गणेश की नूतन प्रतिमाओं का प्रतिष्ठापूर्वक विशेष पूजन किया जाता है। कुछ भक्तजन इस दिन 'कमला जयंती' पर महालक्ष्मी जी के लिए व्रत भी रखते हैं। महालक्ष्मी पूजन के लिये किसी चौकी अथवा कपड़े के पवित्र आसन पर गणेश जी के दाहिने भाग मेँ माता महालक्ष्मी को स्थापित करना चाहिये। पूजन के दिन घर को स्वच्छ कर पूजन-स्थान को भी पवित्र कर लेना चाहिये एवं स्वयं भी पवित्र होकर श्रद्धा-भक्तिपूर्वक सायंकाल इनका पूजन करना चाहिये। मूर्तिमयी श्रीमहालक्ष्मीजी के पास ही किसी पवित्र पात्र मेँ केसरयुक्त चन्दन से अष्टदल कमल बनाकर उस पर द्रव्य-लक्ष्मी (रुपयों) - को भी स्थापित करके एक साथ ही दोनों की पूजा करनी चाहिये। पूजन करने वाले को चाहिये कि वह पूजन के लिये पूजाघर में सामग्री लेकर जल्दी (सायं पांच बजे के आसपास कोई शुभ मुहूर्त हो तो उसी समय) उपस्थित हो क्योंकि लक्ष्मीपूजन आदि के बाद दीपमालिका पूजन करके ही घर के प्रत्येक कोने में दीप सजाने होते हैं, इस दिन शाम को अंधेरा होते ही घर व घर के चारों ओर प्रकाश की सुंदर व्यवस्था हो जाय तो उत्तम रहता है।
दीपावली पूजन विधि
सावधानी - एक बात का ध्यान रखें कि जिन ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य पुरुषों का यज्ञोपवीत संस्कार(जनेऊ) हो चुका है केवल वे ही वैदिक मंत्र तथा प्रभाव(ॐ) का उच्चारण करें। बाकी के स्त्री शूद्र तथा अनुपनीत व्रात्य वैदिक मंत्र तथा प्रणव का उच्चारण न करें वे ॐ को औं बोलें। सुविधा के लिये यहाँ नीचे वैदिक मंत्र जहाँ पर हैं हमने वहाँ हरे रंग से लिखा है और वेदमंत्र है करके संकेत कर दिया है।
सर्वप्रथम पूर्वाभिमुख अथवा उत्तराभिमुख हो आचमन, पवित्री-धारण, मार्जन-प्राणायाम कर अपने ऊपर तथा पूजा-सामग्री पर निम्न मन्त्र पढ़कर जल छिड़के-
यदि मूर्ति की जगह चित्र हो तो प्रतिष्ठा न करे उसमें आगे आवाहन किया जायेगा।
आभूषण-
"रत्न-कङ्कण-वैदूर्य-मुक्ताहारादिकानि च।
सुप्रसन्नेन मनसा दत्तानि स्वीकुरुष्व भो।।
क्षुत्पिपासामलां जयेष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् । अभूतिमसमृद्धिं च सर्वा निर्णुद मे गृहात्।(वेदमंत्र)
लक्ष्मी मां की अंग पूजा - निम्नांकित मंत्रों को पढ़कर कुंकुम से रंगे अक्षत और पुष्पों को प्रतिमा के संबंधित अंग में अर्पण करे -
ॐ चपलायै नमः, पादौ पूजयामि। से लक्ष्मी मां की मूर्ति के पैरों का पूजन करे,
ॐ चंचलायै नमः, जानुनी पूजयामि। से घुटनों का पूजन करे,
ॐ कमलायै नमः, कटिं पूजयामि। से कमर का पूजन करे,
ॐ कात्यायन्यै नमः, नाभिं पूजयामि। से नाभि का पूजन करे,
पेट का पूजन- ॐ जगन्मात्रे नमः, जठरं पूजयामि।
छाती का पूजन- ॐ विश्ववल्लभायै नमः, वक्षः स्थलम् पूजयामि।
हाथों का पूजन- ॐ कमलवासिन्यै नमः, हस्तौ पूजयामि।
मुख का पूजन- ॐ पद्माननायै नमः, मुखं पूजयामि।
मां के तीनों नेत्रों का पूजन- ॐ कमलपत्राक्ष्यै नमः, नेत्रत्रयं पूजयामि।
लक्ष्मी जी के सिर का पूजन- ॐ श्रियै नमः, शिरः पूजयामि।
लक्ष्मी मां के समस्त अंगों का पूजन- ॐ महालक्ष्म्यै नमः, सर्वांगं पूजयामि।
इसके पश्चात् घड़ी की सुई की तरह पूर्व, आग्नेय कोण, दक्षिण, नैर्ऋत्य, पश्चिम, वायव्य, उत्तर, ईशान दिशा में निम्न आठ सिद्धियों का पूजन करें।
तिजोरी अथवा रुपए रखे जाने वाले संदूक आदि को स्वस्तिकादि से अलंकृत कर उसमें निधिपति कुबेर का आवाहन करें-
किसी भी व्रत-पर्व अथवा त्यौहार में पूजन सामग्री पहले से ही एकत्रित करके पूजास्थल पर रख लेना चाहिए। अन्यथा पूजनकाल में वांछित वस्तु ना मिलने से क्षोभ उत्पन्न होता है और पूजा खण्डित रह जाती है व उसका वैसा फल नहीं मिलता, जैसा मिलना चाहिए। अतः यहाँ संभावित सामग्रियों की सूची दी गई है-
ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
य: समरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:॥
तदनन्तर जल-अक्षतादि लेकर पूजा का संकल्प करे-
संकल्प- ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: अद्य शरदर्तौ मासानां उत्तमे मासे कार्तिकमासे कृष्णपक्षे पुण्यायाममावास्यायां तिथौ ..(वार का नाम).. वासरे, .गोत्रोत्पन्न: ..(नाम).. ...(गोत्र का नाम)..(शर्मा/वर्मा/गुप्त).. अहं श्रुतिस्मृति पुराणोक्त-फलावाप्ति-कामनया ज्ञाताज्ञात-कायिक-वाचिक-मानसिक-सकलपाप निवृत्ति पूर्वकं स्थिरलक्ष्मी प्राप्तये श्रीमहालक्ष्मी-प्रीत्यर्थ श्री महालक्ष्मीपूजनं कुबेरादीनां च पूजनं करिष्ये। तदङ्गत्वेन गौरी-गणपत्यादि पूजनं च करिष्ये।
-ऐसा कहकर संकल्पका जल आदि छोड़ दे।
पूजन से पूर्व यदि नूतन प्रतिमा हो तो उसकी निम्न रीति से प्राण-प्रतिष्ठा कर ले-
प्रतिष्ठा- बायें हाथ में अक्षत लेकर निम्नलिखित मंत्रों को पढ़ते हुए दाहिने हाथ से उन अक्षतों को प्रतिमा पर छोड़ता जाय-
वैदिक मंत्र - ॐ मनोजूतिर्जुषता-माज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञ-मिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ ङ्म् समिमं दधातु। विश्वे देवास इह मादयन्तामो३म्प्रतिष्ठ॥(वेदमंत्र)
पौराणिक मंत्र - ॐ अस्यै प्राणा: प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा: क्षरन्तु च। अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन॥ मूर्ति को दाहिने हाथ से स्पर्श करके कहे- श्रीविष्णुपत्नी श्री महालक्ष्मीमावाहयामि स्थापयामि प्रतिष्ठापयामि नमः।
यदि मूर्ति की जगह चित्र हो तो प्रतिष्ठा न करे उसमें आगे आवाहन किया जायेगा।
इस प्रकार मूर्ति की प्रतिष्ठा कर सर्वप्रथम 'ॐ गणेशाम्बिकाभ्यां नमः' से गंधाक्षत द्वारा भगवान् गणेश व दुर्गा मां का पूजन करे। गणपतिजी की मूर्ति न हो तो एक पूगीफल (सुपारी) पर प्रतिष्ठा मंत्र पढ़कर गणेश जी की प्रतिष्ठा करके पूजन करे। तदनन्तर एक जल से भरा कलश स्थापित कर 'ॐ उदकुंभाय नमः' से कलश का पूजन करे।
एक पात्र रखकर उसमें १६ मातृकाओं की भावना करके 'ॐ गौर्यादिषोडश-मातृकाभ्यो नमः' से षोडशमातृकाओं का पूजन करे।
तब नवग्रह पूजा के लिए अलग पात्र में नवग्रहों की भावना कर उनको
'ॐ ब्रह्मामुरारिस्त्रिपुरान्त-कारी, भानुः शशी भूमि-सुतोबुधश्च। गुरुश्च शुक्रः शनि राहु केतवः, सर्वे ग्रहाः शान्ति-करा भवन्तु॥'
मंत्र से पूजे।
उपरोक्त मंत्रों द्वारा पंचोपचार पूजन इस तरह किया जाना चाहिए-
(संबन्धित मंत्र बोलें फिर पूजा का मंत्र जैसे- ॐ गणेशाम्बिकाभ्यां नमः ॐ लं पृथिव्यात्मकं गंधम् समर्पयामि या ॐ षोडशमातृकाभ्यो नमः ॐ रं वह्न्यात्मकं दीपम् दर्शयामि..... आदि।)
१- ॐ लं पृथिव्यात्मकं गंधम् समर्पयामि। (गंध/चन्दन का तिलक लगाएँ)
२- ॐ हं आकाशात्मकं पुष्पम् समर्पयामि। (फूल चढ़ाएँ)
३- ॐ यं वाय्वात्मकं धूपम् आघ्रापयामि। (धूप दिखाएँ)
४- ॐ रं वह्न्यात्मकं दीपम् दर्शयामि। (दीप दिखाएँ)
५- ॐ वं अमृतात्मकं नैवेद्यम् निवेदयामि। (नैवेद्य चढ़ाएँ)
६- ॐ सौं सर्वात्मकं सर्वोपचाराणि मनसा परिकल्प्य समर्पयामि। (दक्षिणा व पुष्पांजलि दें)
तत्पश्चात् प्रधान पूजा में नीचे बतलाए मन्त्रों द्वारा भगवती महालक्ष्मी का षोडशोपचार पूजन करे। समयाभाव में मात्र 'ॐ महालक्ष्म्यै नम:' - इस नाममन्त्र से भी १६ उपचारों द्वारा पूजा की जा सकती है, किन्तु नीचे के सभी मंत्र भी पढ़े तो उत्तम है।
सर्वप्रथम पुष्प लेकर महालक्ष्मीजी का ध्यान करे-
या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी,
गंभीरावर्त-नाभिस्तनभर-नमिता शुभ्रवस्त्रोत्तरीया।
या लक्ष्मीर्दिव्य-रूपैर्मणिगण-खचितै: स्नापिता हेमकुम्भै:,
सा नित्य पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमांगल्ययुक्ता।।
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह॥(वेदमंत्र)
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि।।
(यदि प्रतिष्ठित मूर्ति की जगह चित्र हो तो) आवाहन हेतु मंत्र-
सर्वलोकस्य जननीं सर्वसौख्य-प्रदायिनीम्।
सर्वदेव-मयीमीशां देवीमावाहयाम्यहम्।।
आगच्छ देव-देवेशि! तेजोमयी महालक्ष्मि!
क्रियमाणां मया पूजां, गृहाण सुर-वन्दिते!
ॐ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनप-गामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम्।(वेदमंत्र)
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। महालक्ष्मीमावहयामि, आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि। (आवाहन हेतु पुष्प अर्पित करें।) ध्यान रहे कि प्रतिष्ठित मूर्ति में आवाहन नहीं होता, यदि प्रतिष्ठित मूर्ति हो तो उपरोक्त आवाहन मंत्रों को नहीं बोलना चाहिये केवल "ॐ तां म ----" से "---- महालक्ष्म्यै नम:।"तक ही पढ़ें और पुष्प अर्पित करें।
आसन हेतु मंत्र-
तप्तकांचन-वर्णाभं मुक्तामणि-विराजितम्।
अमलं कमलं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनाद-प्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुप ह्वये श्रीर्मादेवी जुषताम्।(वेदमंत्र)
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। आसनं समर्पयामि। (आसन हेतु पुष्प अर्पित करें।)
पाद्य हेतु मंत्र-
गंगादि-तीर्थसम्भूतं गन्धपुष्पादि-भिर्युतम्।
पाद्यं ददाम्यहं देवि गृहाणाशु नमोऽस्तु ते॥
ॐ कां सोस्मितां हिरण्य-प्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वयेश्रियम्॥(वेदमंत्र)
श्रीमहालक्ष्म्यै नम:। पाद्यं समर्पयामि।
(पुष्प द्वारा चन्दन युक्त जल अर्पित करे)
अर्घ्य हेतु मंत्र-
अष्टगन्ध-समायुक्तं स्वर्णपात्र-प्रपूरितम्।
अर्घ्यं गृहाण मद्दत्तं महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥
ॐ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्।
तां पद्मनीमीं शरणं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे॥(वेदमंत्र)
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। हस्तयोरर्घ्यं समर्पयामि।(अर्घ्य समर्पित करे)
आचमन हेतु मंत्र-
सर्वलोकस्य या शक्तिर्ब्रह्म-विष्ण्वादिभि: स्तुता।
ददाम्याचमनं तस्यै महालक्ष्म्यै मनोहरम्॥
ॐ आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पति-स्तव वृक्षोऽथ बिल्व:।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मी:॥(वेदमंत्र)
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। आचमनीयं जलं समर्पयामि।(आचमन के लिए जल दे)
स्नान हेतु मंत्र-
मन्दाकिन्या: समानीतै-र्हेमाम्भो-रुहवासितै:।
स्नानं कुरुष्व देवेशि सलिलैश्च सुगन्धिभि:॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। स्नानं समर्पयामि। (स्नान के लिए जल चढ़ाएँ)
स्नान के पश्चात 'ॐ महालक्ष्म्यै नम:,स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि' उच्चारण कर आचमन हेतु जल चढ़ायें।
पंचामृत स्नान-
पयो दधि घृतम् चैव मधुशर्करयान्वितम्।
पञ्चामृतं मयानीतं स्नानार्थंप्रतिगृह्यताम्॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। पंचामृत स्नानं समर्पयामि।
(पंचामृत से स्नान कराएँ।)
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि। (शुद्ध जल से स्नान कराएँ)
[[इसके बाद यहाँ श्रीसूक्त द्वारा महालक्ष्मी जी का अभिषेक भी किया जा सकता है। जो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य पुरुष हैं जिनका यज्ञोपवीत संस्कार हो गया है वह तो श्रीसूक्त से करें बाकी स्त्री शूद्र या अनुपनीत व्रात्य हैं वे कनकधारा, अष्टोत्तरशत या अन्य किसी स्तोत्र से माँ लक्ष्मी की प्रतिमा का अभिषेक करें]]
गंधोदक स्नान-
मलयाचल-सम्भूतम् चन्दनागरु संभवम्।
चंदनं देवदेवेशि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। गंधोदक स्नानं समर्पयामि। (चन्दन मिश्रित जल से स्नान कराए)
शुद्धोदक स्नानं-
मंदाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम्।
तदिदं कल्पितं तुभ्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि।
आचमन- शुद्धोदकस्नान के पश्चात ॐ महालक्ष्म्यै नम: कहकर आचमनीय जल चढ़ायें।
वस्त्र हेतु मंत्र-
दिव्याम्बरं नूतनं हि क्षौमं त्वतिमनोहरम्।
दीयमानं मया देवि गृहाण जगदम्बिके॥
ॐ उपैतु मां देवसख: कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे॥(वेदमंत्र)
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। वस्त्रं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि।
वस्त्र व आचमन के लिए जल दे।
आभूषण-
"रत्न-कङ्कण-वैदूर्य-मुक्ताहारादिकानि च।
सुप्रसन्नेन मनसा दत्तानि स्वीकुरुष्व भो।।
क्षुत्पिपासामलां जयेष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् । अभूतिमसमृद्धिं च सर्वा निर्णुद मे गृहात्।(वेदमंत्र)
"ॐ महालक्ष्म्यै नमः, आभूषणं समर्पयामि।"
यह कहकर सुहागपिटारी से चूड़ी आदि आभूषण निकालें व मां लक्ष्मी को चढ़ाएं।
गन्ध-
श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम् ।
विलेपनं सुरश्रेष्ठे चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप ह्वये श्रियम्॥(वेदमंत्र)
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, गन्धं समर्पयामि।
(केसर मिश्रित चन्दन अर्पित करें।)
रक्त चंदन हेतु मंत्र-
रक्तचन्दन-संमिश्रं पारिजात-समुद्भवम्।
मया दत्तं महालक्ष्मी चन्दनं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। रक्तचन्दनं समर्पयामि।
सिंदूर हेतु मंत्र-
सिंदूर रक्तवर्णं च सिन्दूरतिलकप्रिये।
भक्त्या दत्तं मया देवि सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ सिन्धोरिव प्राध्वने शूघनासो वात प्रमिय: पतयन्ति यह्वा:।
घृतस्य धारा अरुषो न वाजी काष्ठा भिन्द-न्नूर्मिभि: पिन्वमान:॥(वेदमंत्र)
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। सिंदूरं समर्पयामि।
कुंकुम हेतु मंत्र-
कुंकुमम् कामदं दिव्यं कुंकुमं कामरूपिणम्।
अखण्डकाम-सौभाग्यं कुंकुमं प्रतिगृह्यताम्।
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। कुंकुमं समर्पयामि।
पुष्पसार (इत्र) हेतु मंत्र-
तैलानि च सुगंधीनि द्रव्याणि विविधानि च।
मया दत्तानि लेपार्थं गृहाण परमेश्वरि।
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। पुष्पसारं समर्पयामि। (इत्र या गुलाब जल या चमेली आदि का सुगंधित तेल चढ़ा दें)
अक्षत हेतु मंत्र-
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठे कुकुंमाक्ताः सुशोभिता:।
मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरि।।
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। अक्षतान् समर्पयामि।
पुष्प एवं पुष्पमाला अर्पित हेतु मंत्र-
माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो।
मयानीतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ मनस: काममाकूतिं वाच: सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्री: श्रयतां यश:।(वेदमंत्र)
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। पुष्पं पुष्पमालां च समर्पयामि।
दूर्वा अर्पित करने हेतु मंत्र-
विष्ण्वादि-सर्वदेवानां प्रियां सर्व-सुशोभनाम्।
क्षीरसागर-सम्भूते दूर्वां स्वीकुरू सर्वदा।।
काण्डात्काण्डात् प्ररोहन्ती परुष: परुषस्परि।
एवा नो दूर्वे प्रतनु सहस्रेण शतेन च।(वेदमंत्र)
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। दूर्वाकुंरान् समर्पयामि।
लक्ष्मी मां की अंग पूजा - निम्नांकित मंत्रों को पढ़कर कुंकुम से रंगे अक्षत और पुष्पों को प्रतिमा के संबंधित अंग में अर्पण करे -
ॐ चपलायै नमः, पादौ पूजयामि। से लक्ष्मी मां की मूर्ति के पैरों का पूजन करे,
ॐ चंचलायै नमः, जानुनी पूजयामि। से घुटनों का पूजन करे,
ॐ कमलायै नमः, कटिं पूजयामि। से कमर का पूजन करे,
ॐ कात्यायन्यै नमः, नाभिं पूजयामि। से नाभि का पूजन करे,
पेट का पूजन- ॐ जगन्मात्रे नमः, जठरं पूजयामि।
छाती का पूजन- ॐ विश्ववल्लभायै नमः, वक्षः स्थलम् पूजयामि।
हाथों का पूजन- ॐ कमलवासिन्यै नमः, हस्तौ पूजयामि।
मुख का पूजन- ॐ पद्माननायै नमः, मुखं पूजयामि।
मां के तीनों नेत्रों का पूजन- ॐ कमलपत्राक्ष्यै नमः, नेत्रत्रयं पूजयामि।
लक्ष्मी जी के सिर का पूजन- ॐ श्रियै नमः, शिरः पूजयामि।
लक्ष्मी मां के समस्त अंगों का पूजन- ॐ महालक्ष्म्यै नमः, सर्वांगं पूजयामि।
इसके पश्चात् घड़ी की सुई की तरह पूर्व, आग्नेय कोण, दक्षिण, नैर्ऋत्य, पश्चिम, वायव्य, उत्तर, ईशान दिशा में निम्न आठ सिद्धियों का पूजन करें।
अष्टसिद्धिपूजन -
पूर्व दिशा में :- 'ॐ अणिम्ने नमः'
आग्नेय कोण(दक्षिण-पूर्व दिशा) में :- 'ॐ महिम्ने नमः'
दक्षिण दिशा में :- 'ॐ गरिम्णे नमः'
नैर्ऋत्य कोण(दक्षिण-पश्चिम) में :- 'ॐ लघिम्ने नमः'
पश्चिम दिशा में :- 'ॐ प्राप्त्यै नमः'
वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम) में :- 'ॐ प्रकाम्यै नमः'
उत्तर दिशा में :- 'ॐ ईशितायै नमः'
ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में :- 'ॐ वशितायै नमः'
अष्टलक्ष्मी पूजन -
इसके बाद पूर्व दिशा से शुरू कर मां की मूर्ति के चारों ओर आठों दिशाओं में अष्ट-लक्ष्मियों का पूजन करें।
पूर्व दिशा में :- 'ॐ आद्यलक्ष्म्यै नमः'
आग्नेय कोण में :- 'ॐ विद्यालक्ष्म्यै नमः'
दक्षिण दिशा में :- 'ॐ सौभाग्यलक्ष्म्यै नमः'
नैऋत्य कोण में :- 'ॐ अमृतलक्ष्म्यै नमः'
पश्चिम दिशा में :- 'ॐ कामलक्ष्म्यै नमः'
वायव्य कोण में :- 'ॐ सत्यलक्ष्म्यै नमः'
उत्तर दिशा में :- 'ॐ भोगलक्ष्म्यै नमः'
ईशान कोण में :- 'ॐ योगलक्ष्म्यै नमः'
पूर्व दिशा में :- 'ॐ अणिम्ने नमः'
आग्नेय कोण(दक्षिण-पूर्व दिशा) में :- 'ॐ महिम्ने नमः'
दक्षिण दिशा में :- 'ॐ गरिम्णे नमः'
नैर्ऋत्य कोण(दक्षिण-पश्चिम) में :- 'ॐ लघिम्ने नमः'
पश्चिम दिशा में :- 'ॐ प्राप्त्यै नमः'
वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम) में :- 'ॐ प्रकाम्यै नमः'
उत्तर दिशा में :- 'ॐ ईशितायै नमः'
ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में :- 'ॐ वशितायै नमः'
अष्टलक्ष्मी पूजन -
इसके बाद पूर्व दिशा से शुरू कर मां की मूर्ति के चारों ओर आठों दिशाओं में अष्ट-लक्ष्मियों का पूजन करें।
पूर्व दिशा में :- 'ॐ आद्यलक्ष्म्यै नमः'
आग्नेय कोण में :- 'ॐ विद्यालक्ष्म्यै नमः'
दक्षिण दिशा में :- 'ॐ सौभाग्यलक्ष्म्यै नमः'
नैऋत्य कोण में :- 'ॐ अमृतलक्ष्म्यै नमः'
पश्चिम दिशा में :- 'ॐ कामलक्ष्म्यै नमः'
वायव्य कोण में :- 'ॐ सत्यलक्ष्म्यै नमः'
उत्तर दिशा में :- 'ॐ भोगलक्ष्म्यै नमः'
ईशान कोण में :- 'ॐ योगलक्ष्म्यै नमः'
धूप - वनस्पति-रसोत्पन्नो गन्धाढ्यः सुमनोहरः। आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम्।
ॐ कर्दमेन प्रजा भूता मयि सम्भव कर्दम। श्रियं वासे मे कुले मातरः पद्ममालिनीम्॥(वेदमंत्र)
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। धूपम् आघ्रापयामि।
(धूप दिखाएँ)
दीप- आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टि पिंगलां पद्ममालिनीम्। चन्द्रा हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातेवेदो म आ वह।(वेदमंत्र)
ॐ कर्पास-वर्ति-संयुक्तं घृतयुक्तं मनोहरम्। तमो-नाशकरं दीपं गृहाण परमेश्वरि॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:। दीपम् दर्शयामि। (दीप दर्शाएँ) हस्त प्रक्षालन करें।
नैवेद्य-आर्द्रा यः करिणीं यष्टि सुवर्णां हेममालिनीम्। सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह।(वेदमंत्र)
नैवेद्यं गृह्यतां देवि भक्ष्य-भोज्य-समन्वितम्। षड्रसैरन्वितं दिव्यं लक्ष्मि देवि नमोऽस्तुते॥ ॐ महालक्ष्म्यै नम:। नैवेद्यम् निवेदयामि। नैवेद्य के लिए माँ लक्ष्मी को मखाने, बताशे, नारियल से बने पदार्थ, सिंघाड़ा, खीर, मिठाई आदि प्रस्तुत किया जाता है।
आचमन - देवी को आचमन के लिये कपूर चूर्ण मिश्रित जल दें- शीतलं निर्मलं तोयं कर्पूरेण सुवासितम्। आचम्यतामिदं देवि! प्रसीद त्वं महेश्वरि॥ नैवेद्यान्ते आचमनं समर्पयामि॥
ऋतुफल- फल चढ़ावें- इदं फलं मयाऽनीतं सरसं च निवेदितम्। गृहाण परमेशानि प्रसीद प्रणमाम्यहम्॥ अखण्ड ऋतुफलं समर्पयामि।
पान-सुपारी- लौंग इलायची सहित पान चढ़ावें - ॐ तां मा वह जातवेदो लक्ष्मी-मनपगामिनीम्। यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम्॥(वेदमंत्र)
एला-लवंग-कर्पूर-नाग-पत्रादिभिर्युतम्। पूगीफलेन संयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम्॥ ताम्बूल पूगीफलं समर्पयामि।
दक्षिणा- ॐहिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे-भूतस्य जातः पतिरेक आसीत। स दाधार पृथिवीं द्यामुते मां कस्मै देवाय हविषा विधेम॥(वेदमंत्र)
हिरण्यगर्भ-गर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः। अनन्त-पुण्य-फलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे॥ श्री महालक्ष्म्यै नमः, दक्षिणां समर्पयामि। दक्षिणा चढ़ावे।
प्रार्थना- विधिपूर्वक श्रीमहालक्ष्मी पूजन करने के अनन्तर हाथ जोड़कर प्रार्थना करे-
सुरासुरेन्द्रादि-किरीट-मौक्तिकै-र्युक्तं सदा यत्तव पादपङ्कजम्।
परावरं पातु वरं सुमङ्गलं नमामि भवत्याखिल-कामसिद्धये॥
भवानि त्वं महालक्ष्मीः सर्वकाम-प्रदायिनी।
सुपूजिता लेना स्यान्महालक्ष्मि नमोsस्तुते॥
नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये।
या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात् त्वदर्चनात्॥
'ॐ महालक्ष्म्यै नम:, प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान्
समर्पयामि।' प्रार्थना करते हुए नमस्कार करे।
समर्पण- पूजन के अन्त में 'कृतेनानेनपूजनेन भगवती महालक्ष्मी देवी प्रीयताम्, न मम।' यह बोलकर समस्त पूजन-कर्म भगवती महालक्ष्मी को
समर्पित करे तथा जल गिराये।
भगवती महालक्ष्मी के यथालब्धोपचार-पूजन के अनन्तर महालक्ष्मी पूजन के अङ्गरूप, देहलीविनायक, मसिपात्र, लेखनी, सरस्वती, कुबेर, तुला-मान तथा दीपकों की पूजा की जाती है। सर्वप्रथम देहलीविनायक की पूजा की जाती है-
देहलीविनायक-पूजा
घर में, व्यापारिक प्रतिष्ठानादि मेँ दीवारों पर 'ॐ श्रीगणेशाय नम:', 'स्वस्तिक-चिह्न', 'शुभ-लाभ' आदि माङ्गलिक एवं कल्याणकर शब्द सिदूरादि से लिखे जाते हैं। इन्हीं शब्दों पर 'ॐ देहलीविनायकाय नम:' इस नाममन्त्र द्वारा गन्ध-पुष्पादि से पूजन करे।
श्रीमहाकाली (दावात) पूजन
स्याहीयुक्त दावात को भगवती महालक्ष्मी के सामने पुष्प तथा अक्षतपुञ्ज में रखकर उसमें सिन्दूर से स्वस्तिक बना दे तथा मौली लपेट दे। 'ॐ श्रीमहाकाल्यै नम:' इस नाममन्त्र से गन्ध-पुष्पादि पंचोपचारों से दावात में भगवती महाकाली का पूजन करके अंत में इस प्रकार प्रार्थनापूर्वक उन्हें प्रणाम करे-
कालिके त्वं जगन्मातर्मसिरुपेण वर्तसे।
उत्पन्ना त्वं च लोकानां व्यवहार प्रसिद्धये॥
या कालिका रोगहरा सुवन्द्या
भक्तै: समस्तैर्व्यवहारदक्षे:।
जनैर्जनानां भयहारिणी च
सा लोकमाता मम सौख्यदास्तु।।
लेखनी पूजन- लेखनी (कलम) पर मौली बाँधकर सामने रख ले और-
लेखनी निर्मिता पूर्वं ब्रह्मणा परमेष्ठिना।
लोकानां च हितार्थाय तस्मात्तां पूजयाम्यहम्॥
'ॐ लेखनीस्थायै देव्यै नम:' इस नाममन्त्र द्वारा गन्ध-पुष्पाक्षत आदि से
पूजन कर इस प्रकार प्रार्थना करे-
शास्त्राणां व्यवहाराणां विद्यानामाप्नुयाद्यत:।
अतस्त्वां पूजयिष्यामि मम हस्ते स्थिरा भव।
सरस्वती (पञ्जिका-बहीखाता) पूजन
बही, बसना तथा थैली में रोली या केसरयुक्त चंदन से स्वस्तिक का चिह्न बनाएं एवं थैली में पांच हल्दी की गांठें, धनिया, कमलगट्टा, अक्षत, दूर्वा और द्रव्य रखकर उसमें सरस्वती का पूजन करें। सर्वप्रथम सरस्वती का ध्यान इस प्रकार करें-
या कुन्देन्दु-तुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता या वीणावरदण्ड-मण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत-शंकरप्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा॥
ॐ वीणापुस्तकधारिण्यै श्रीसरस्वत्यै नम:
- इस नाममंत्र से गंधादि उपचारों द्वारा पूजन करें।
कुबेर पूजन
तिजोरी अथवा रुपए रखे जाने वाले संदूक आदि को स्वस्तिकादि से अलंकृत कर उसमें निधिपति कुबेर का आवाहन करें-
आवाहयामि देव त्वामिहायाहि कृपां कुरु।
कोशं वर्द्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर॥
कोशं वर्द्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर॥
आवाहन के बाद 'ॐ कुबेराय नम:' इस नाममंत्र से गंध, पुष्प आदि से पूजन कर अंत में इस प्रकार प्रार्थना करे-
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।
भगवन् त्वत्प्रसादेन धनधान्यादिसम्पद:॥
भगवन् त्वत्प्रसादेन धनधान्यादिसम्पद:॥
- इस प्रकार प्रार्थना कर पूर्व पूजित हल्दी, धनिया, कमलगट्टा, द्रव्य, दूर्वादि से युक्त थैली को तिजोरी मे रखें।
तुला-मान (तराजू-बाँट) पूजन- सिंदूर से तराजू पर स्वस्तिक बना लें। मौली लपेटकर तुला देवता का इस प्रकार ध्यान करें-
नमस्ते सर्वदेवानां शक्तित्वे सत्यमाश्रिता। साक्षीभूता जगद्धात्री निर्मिता विश्वयोनिना।।
ध्यान के बाद 'ॐ तुलाधिष्ठातृदेवतायै नम:' - इस नाममंत्र से गंधाक्षतादि उपचारों द्वारा पूजन कर नमस्कार करें।
दीपमालिका (दीपक) पूजन
किसी पात्र में ग्यारह, इक्कीस या उससे अधिक दीपकों को प्रज्वलित कर महालक्ष्मी के समीप रखकर उस दीपज्योति का 'ॐ दीपावल्यै नम:' इस नाममंत्र से गंधादि उपचारों द्वारा पूजन कर इस प्रकार प्रार्थना करें-
त्वं ज्योतिस्त्वं रविश्चन्द्रो विद्युदग्निश्च तारका:। सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपावल्यै नमो नम:॥
दीपमालिकाओं का पूजन कर संतरा, ईख, धान का लावा(खील) इत्यादि पदार्थ चढ़ाएं। धान का लावा(खील) गणेश, महालक्ष्मी तथा अन्य सभी देवी-देवताओं को भी अर्पित करें। अंत में अन्य सभी दीपकों को प्रज्वलित कर उनसे संपूर्ण गृह को अलङ्कृत करें।
प्रधान आरती
इस प्रकार भगवती महालक्ष्मी तथा उनके सभी अङ्ग-प्रत्यङ्ग एवं उपाङ्गों का पूजन कर लेने के अनन्तर प्रधान आरती करनी चाहिये। इसके लिये एक थाली मेँ स्वस्तिक आदि माङ्गलिक चिह्न बनाकर अक्षत तथा पुष्पों के आसन पर किसी दीपक आदि में घृतयुक्त बत्ती प्रज्वलित करे। एक पृथक् पात्र में कर्पूर भी प्रज्ज्वलित कर वह पात्र भी थाली मेँ यथास्थान रख ले, आरती-थाल का जल से प्रोक्षण कर ले। पुन: आसन पर खडे होकर अन्य परिवारिक जनों के साथ घण्टानादपूर्वक लक्ष्मी जी की आरती गाते हुए साङ्ग महालक्ष्मीजी की मङ्गल आरती करे-
श्रीलक्ष्मी जी की आरती
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता
तुम को निसि दिन सेवत, मैयाजी को निसि दिन सेवत
हर विष्णू-धाता .
ॐ जय लक्ष्मी माता ...
उमा रमा ब्रह्माणी, तुम ही जग माता
ओ मैया तुम ही जग माता .
सूर्य चन्द्र माँ ध्यावत, नारद ऋषि गाता
ॐ जय लक्ष्मी माता ..
दुर्गा रूप निरन्जनि, सुख सम्पति दाता
ओ मैया सुख सम्पति दाता .
जो कोई तुम को ध्यावत, ऋद्धि सिद्धि धन पाता
ॐ जय लक्ष्मी माता ..
तुम पाताल निवासिनि, तुम ही शुभ दाता
ओ मैया तुम ही शुभ दाता .
कर्म प्रभाव प्रकाशिनि, भव निधि की दाता
ॐ जय लक्ष्मी माता ..
जिस घर तुम रहती तहँ सब सद्गुण आता
ओ मैया सब सद्गुण आता .
सब संभव हो जाता, मन नहीं घबराता
ॐ जय लक्ष्मी माता ..
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता
ओ मैया वस्त्र न कोई पाता .
ख़ान पान का वैभव, सब तुम से आता
ॐ जय लक्ष्मी माता ..
शुभ गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि जाता
ओ मैया क्षीरोदधि जाता .
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता
ॐ जय लक्ष्मी माता ..
महा लक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता
ओ मैया जो कोई जन गाता .
उर आनंद समाता, पाप उतर जाता
ॐ जय लक्ष्मी माता ..
मन्त्र-पुष्पाञ्जलि- दोनों हाथो में कमल आदि के पुष्प लेकर हाथ जोड़कर
निम्न मन्त्र का पाठ करे-
ॐ या श्री: स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी:
पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धि:।
श्रद्धा सतां कुलजन प्रभवस्य लज्जा
तां त्वां नता: स्म परिपालय देवि विश्वम्॥
ॐ श्रीमहालक्ष्म्यै नम:, मन्त्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि। -ऐसा कहकर हाथ में
लिये फूल महालक्ष्मीजी पर चढा दे।
प्रदक्षिणा कर साष्टाङ्ग प्रणाम करे, पुन: हाथ जोड़कर क्षमा-प्रार्थना करे-
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे॥
सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुक-गन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्॥
पुनः प्रणाम करके 'ॐ अनेन यथाशक्त्यर्चनेन श्रीमहालक्ष्मीः प्रसीदतु' यह कहकर जल छोड़ दे। ब्राह्मण एवं गुरुजनों को प्रणाम कर चरणामृत तथा प्रसाद का वितरण करे।
विसर्जन- पूजन के अन्त में अक्षत लेकर गणेश एवं महालक्ष्मी की नूतन प्रतिमाओं को छोड़कर अन्य सभी आवाहित, प्रतिष्ठित एवं पूजित देवताओं को अक्षत छोड़ते हुए निम्न मन्त्र से विसर्जित करे-
यान्तु देवगणा: सर्वे पूजामादाय मामकीम्।
इष्टकाम-समृद्ध्यर्थ पुनरागमनाय च॥
यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञ क्रियादिषु नूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतं।
अपराधसहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया। दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि ॥
सरसिज निलये सरोजहस्ते धवलतरां-शुकगन्ध-माल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवन भूतिकरि प्रसीद मह्यम्॥
ॐ अनेन यथाशक्ति पूजनेन भगवती महालक्ष्मीप्रसीदतु।
श्री विष्णवे नमः। श्री विष्णवे नमः। श्री विष्णवे नमः।
किसी भी व्रत-पर्व अथवा त्यौहार में पूजन सामग्री पहले से ही एकत्रित करके पूजास्थल पर रख लेना चाहिए। अन्यथा पूजनकाल में वांछित वस्तु ना मिलने से क्षोभ उत्पन्न होता है और पूजा खण्डित रह जाती है व उसका वैसा फल नहीं मिलता, जैसा मिलना चाहिए। अतः यहाँ संभावित सामग्रियों की सूची दी गई है-
दीपावली पूजन सामग्री
- कलश में गङ्गा जल या पवित्र जल।
- आचमनी सहित तांबे का पञ्चपात्र।
- लाल चन्दन, सफेद चंदन, सिन्दूर, रोली, केशर।
- चंदन घिसने का पत्थर।
- छोटी कटोरियाँ और तश्तरियाँ।
- अक्षत(बिना टूटे चावल), जौ(यव) और तिल।
- अगरबत्ती,धूपबत्ती।
- धूप-दानी, धूप पात्र(जिसमें अंगार रखकर धूप सामग्री छोड़कर सुगंधित धूप-दान किया जा सके)
- घृत या तैल में भिगोकर जलाने के लिए बत्तियाँ।
- कपूर।
- पंचामृत के लिए- घी व दूध, दही, चीनी, शहद।
- तैल।
- दीप- दीपावली के लिए 11 या 21 दीप और एक बड़ा स्थापित करने के लिए और दूसरा छोटा सामान्य आरती के लिए।
- नैवेद्य- नारियल या नारियल के व्यंजन, बताशे, सूखे मेवे, धान का लावा-खील, गन्ना, सिंघाड़ा, मिठाई, फल, खीर आदि।
- सरस्वती पूजन में थैली के लिए- पांच हल्दी की गांठें, धनिया व कमलगट्टा।
- पूगीफल(सुपारी), लौंग-इलायची, पान।
- फुटकर सिक्के, कम से कम 2 रुपए के।
- लेखनी व दावात पूजा के लिए - स्याही की दावात व अनार की या अन्य लकड़ी की कलम(न मिल पाए तो पेन ले सकते हैं)।
- मौली(कलावा या लाल धागा) , भगवान के आसन के लिए कपड़ा।
- दूब और फूल।
- सुहागपिटारी (मैया की पूजा के लिये बिंदी, चूंड़ी आदि से युक्त पैकेट; यह किराने की दुकान पर आसानी से मिल जाया करती है)।
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