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कमला महाविद्या की स्तोत्रात्मक उपासना

स्त्री के अखण्ड सुहाग का प्रतिमान है 'करवाचौथ'

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रतीय हिन्दू स्त्रियों के लिये करवाचौथ का व्रत अखण्ड सुहाग को देने वाला माना जाता है । विवाहित स्त्रियाँ इस दिन अपने पति की दीर्घ आयु एवं स्वास्थ्य की मङ्गल-कामना करके रजनीश अर्थात् चन्द्रमा  को अर्घ्य अर्पित  कर व्रत पूर्ण करती हैं। स्त्रियों में इस दिन के प्रति इतना अधिक श्रद्धाभाव होता है कि वे कई दिन पूर्व से ही इस व्रत की तैयारी प्रारम्भ कर देती हैं। यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चन्द्रोदयव्यापिनी चतुर्थी को किया जाता है, यदि यह दो दिन चन्द्रोदयव्यापिनी हो या दोनों ही दिन न हो तो पूर्वविद्धा लेनी चाहिये। करकचतुर्थी को ही 'करवाचौथ' भी कहा जाता है


पाण्डवों के निवास के समय जब अर्जुन तप करने इन्द्रनील पर्वत की ओर चले गये तो बहुत दिनों तक उनके वापस न लौटने पर द्रौपदी को चिन्ता हुई । श्रीकृष्ण ने आकर द्रौपदी की चिन्ता दूर करते हुए करवाचौथ का व्रत बतलाया


     करवाचौथ का त्योहार भारतीय सँस्कृति के उस पवित्र बन्धन का प्रतीक है जो पति-पत्नी के बीच होता है। भारतीय संस्कृति में पति को परमेश्वर की संज्ञा दी गयी है। करवाचौथ पति और पत्नी दोनो के लिये एक-दूसरे के प्रति अपार प्रेम, त्याग एवं उत्सर्ग की चेतना लेकर आता है। इस दिन स्त्रियाँ पूर्ण सुहागिन का रूप धारण कर, वस्त्राभूषण पहनकर भगवान चंद्र से अपने अखण्ड सुहाग की प्रार्थना करती हैं


वीरावती ने जाकर इन्द्राणी से प्रार्थना की कि उसके पति के ठीक होने का उपाय बतायें। इन्द्राणी ने कहा कि तेरे पति की यह दशा तेरी ओर से रखे गये करवाचौथ व्रत के खण्डित हो जाने के कारण हुई है। यदि तू करवाचौथ का व्रत पूर्ण विधि-विधान से बिना खण्डित किये करेगी तो तेरा पति ठीक हो जायगा। और ऐसा ही हुआ


   स्त्रियाँ श्रृंगार करके ईश्वर के समक्ष दिनभर के व्रत के बाद यह प्रण भी लेती हैं कि वे मन, वचन एवं कर्म से पति के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना रखेंगी ।

करवाचौथ पति और पत्नी दोनो के लिये एक-दूसरे के प्रति अपार प्रेम, त्याग एवं उत्सर्ग की चेतना लेकर आता है।
     कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चौथ को केवल चन्द्र देवता की ही पूजा नहीं होती, बल्कि श्री शिव-पार्वती जी, गणेश जी और स्वामी कार्तिकेय को भी पूजा जाता हैशिव-पार्वती जी की पूजा का विधान इस हेतु किया जाता है कि जिस प्रकार शैलपुत्री पार्वती जी ने घोर तपस्या करके भगवान् शंकर को प्राप्त कर अखण्ड सौभाग्य प्राप्त किया उसी तरह उन्हें भी अखंड सौभाग्य मिले। वैसे भी गौरी-पूज़न का कुँआरी कन्याओं और विवाहित स्त्रियों के लिये विशेष माहात्म्य है।

     इस संदर्भ में एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार पाण्डवों के निवास के समय जब अर्जुन तप करने इन्द्रनील पर्वत की ओर चले गये तो बहुत दिनों तक उनके वापस न लौटने पर द्रौपदी को चिन्ता हुई । श्रीकृष्ण ने आकर द्रौपदी की चिन्ता दूर करते हुए करवाचौथ का व्रत बतलाया तथा इस सम्बन्ध में जो कथा शिवजी ने पार्वती को सुनायी थी, वह भी सुनायी-

कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चौथ को केवल चन्द्र देवता की ही पूजा नहीं होती, बल्कि शिव-पार्वती और स्वामी कार्तिकेय को भी पूजा जाता है।

करवा चौथ की कथा

      इन्द्रप्रस्थ नगरी में वेदशर्मा नामक एक विद्वान ब्राह्मण के सात पुत्र तथा एक पुत्री थी जिसका नाम वीरावती था। उसका विवाह सुदर्शन नामक एक ब्राह्मण के साथ हुआ। ब्राह्मण के सभी पुत्र विवाहित थे। एक बार करवाचौथ के अवसर पर वीरावती की भाभियों ने तो पूर्ण विधि से व्रत किया, किंतु वीरावती सारा दिन निर्जल रहकर भूख न सह सकी तथा निढाल होकर बैठ गयी। भाइयों की चिन्ता पर भाभियों ने बताया कि वीरावती भूख से पीड़ित है। करवाचौथ का व्रत चन्द्रमा देखकर ही खोलेगी । यह सुनकर भाइयों ने बाहर खेतों में जाकर आग जलायी तथा ऊपर कपड़ा तानकर चन्द्रमा-जैसा दृश्य बना दिया, फिर जाकर बहन से कहा कि चाँद निकल आया है, अर्घ्य दे दो । यह सुनकर वीरावती ने अर्घ्य देकर खाना खा लिया । नकली चन्द्रमा को अर्घ्य देने से उसका व्रत खण्डित हो गया तथा उसका पति अचानक बीमार पड़ गया । वह ठीक न हो सका। संयोग से एक बार इन्द्र की पत्नी इंद्राणी करवाचौथ का व्रत करने पृथ्वी पर आयी। इसका पता लगने पर वीरावती ने जाकर इन्द्राणी से प्रार्थना की कि उसके पति के ठीक होने का उपाय बतायें। इन्द्राणी ने कहा कि तेरे पति की यह दशा तेरी ओर से रखे गये करवाचौथ व्रत के खण्डित हो जाने के कारण हुई है। यदि तू करवाचौथ का व्रत पूर्ण विधि-विधान से बिना खण्डित किये करेगी तो तेरा पति ठीक हो जायगा। और ऐसा ही हुआ, वीरावती ने करवाचौथ का व्रत पूर्ण विधि से किया फलस्वरूप उसका पति बिलकुल ठीक हो गया। 
     तब से करवाचौथ का व्रत प्रचलित हुआ। करकचतुर्थी के अवसर पर भगवान गणेशजी, कार्तिकेयजी, श्रीशिव-पार्वतीजी एवं चन्द्र देव को हमारा प्रणाम....


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