नोट - यहाँ प्रकाशित साधनाओं, स्तोत्रात्मक उपासनाओं को नियमित रूप से करने से यदि किसी सज्जन को कोई विशेष लाभ हुआ हो तो कृपया हमें सूचित करने का कष्ट करें।

⭐विशेष⭐


23 अप्रैल - मंगलवार- श्रीहनुमान जयन्ती
10 मई - श्री परशुराम अवतार जयन्ती
10 मई - अक्षय तृतीया,
⭐10 मई -श्री मातंगी महाविद्या जयन्ती
12 मई - श्री रामानुज जयन्ती , श्री सूरदास जयन्ती, श्री आदि शंकराचार्य जयन्ती
15 मई - श्री बगलामुखी महाविद्या जयन्ती
16 मई - भगवती सीता जी की जयन्ती | श्री जानकी नवमी | श्री सीता नवमी
21 मई-श्री नृसिंह अवतार जयन्ती, श्री नृसिंहचतुर्दशी व्रत,
श्री छिन्नमस्ता महाविद्या जयन्ती, श्री शरभ अवतार जयंती। भगवत्प्रेरणा से यह blog 2013 में इसी दिन वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को बना था।
23 मई - श्री कूर्म अवतार जयन्ती
24 मई -देवर्षि नारद जी की जयन्ती

आज - कालयुक्त नामक विक्रमी संवत्सर(२०८१), सूर्य उत्तरायण, वसन्त ऋतु, चैत्र मास, शुक्ल पक्ष।
यहाँ आप सनातन धर्म से संबंधित किस विषय की जानकारी पढ़ना चाहेंगे? ourhindudharm@gmail.com पर ईमेल भेजकर हमें बतला सकते हैं अथवा यहाँ टिप्पणी करें हम उत्तर देंगे
↓नीचे जायें↓

षोडशी महाविद्या हैं भुक्ति-मुक्ति-दायिनी [श्रीललितापञ्चरत्नम्]

मा
हेश्वरी शक्ति स्वरुपिणी षोडशी महाविद्या सबसे मनोहर श्रीविग्रह वाली सिद्ध देवी हैं। महाविद्याओं में भगवती षोडशी का चौथा स्थान है। षोडशी महाविद्या को श्रीविद्या भी कहा जाता है। षोडशी महाविद्या के ललिता, त्रिपुरा, राज-राजेश्वरी, महात्रिपुरसुन्दरी, बालापञ्चदशी आदि अनेक नाम हैं। लक्ष्मी, सरस्वती, ब्रह्माणी - तीनों लोकों की सम्पत्ति एवं शोभा का ही नाम श्री है। 'त्रिपुरा' शब्द का अर्थ बताते हुए-'शक्तिमहिम्न स्तोत्र' में कहा गया है-'तिसृभ्यो मूर्तिभ्यः पुरातनत्वात् त्रिपुरा।’ अर्थात् जो ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश- इन तीनों से पुरातन हो वही त्रिपुरा हैं। 'त्रिपुरार्णव' ग्रन्थ में कहा गया है-
नाडीत्रयं तु त्रिपुरा सुषुम्ना पिङ्गला त्विडा।
मनो बुद्धिस्तथा चित्तं पुरत्रयमुदाहृतम्।
तत्र तत्र वसत्येषा तस्मात् तु त्रिपुरा मता।।
अर्थात् 'सुषुम्ना, पिंगला और इडा - ये तीनों नाडियां हैं और मन, बुद्धि एवं चित्त - ये तीन पुर हैं। इनमें रहने के कारण इनका नाम त्रिपुरा है।'
प्रातर्वदामि ललिते तव पुण्यनाम कामेश्वरीति कमलेति महेश्वरीति। श्रीशाम्भवीति जगतां जननी परेति वाग्देवतेति वचसा त्रिपुरेश्वरीति॥५॥  हे ललिते! मैं तेरे पुण्यनाम कामेश्वरी, कमला, महेश्वरी, शाम्भवी, जगज्जननी, परा, वाग्देवी तथा त्रिपुरेश्वरी आदि का प्रातःकाल अपनी वाणी द्वारा उच्चारण करता हूँ।
     सोलह अक्षरों के मन्त्रवाली ललिता देवी की अङ्गकान्ति उदीयमान सूर्यमण्डल की आभा की भांति है। षोडशी माता की चार भुजाएं तीन नेत्र हैं। ये शान्तमुद्रा में लेटे हुए सदाशिव पर स्थित कमल के आसन पर आसीन हैं। भगवती षोडशी के चारों हाथों में क्रमश: पाश, अङ्कुश, धनुष और बाण सुशोभित हैं। वर देने के लिये सदा-सर्वदा तत्पर भगवती षोडशी का श्रीविग्रह सौम्य और हृदय दया से आपूरित है। 

     प्रशान्त हिरण्यगर्भ ही शिव हैं और उन्हीं की शक्ति षोडशी जी हैं। तन्त्रशास्त्रों में महाविद्या षोडशी देवी को पञ्चवक्त्रा अर्थात् पाँच मुखों वाली बताया गया है। चारों दिशाओं में चार मुख और एक ऊपर की ओर मुख होने से इन्हें पञ्चवक्त्रा कहा जाता है। देवी के पाँचों मुख तत्पुरुष, सद्योजात, वामदेव अघोर और ईशान शिव के पाँचों रूपों के प्रतीक हैं। पाँचों दिशाओं के रंग क्रमशः हरित, रक्त, धूम्र, नील और पीत होने से ये मुख भी इन्हीं रंगों के हैं। देवी षोडशी के दस हाथों में क्रमशः अभय, टंक, शूल, वज्र, पाश, खड्ग, अङ्कुश, घण्टा, नाग और अग्नि हैं। षोडश कलाएँ पूर्णरूप से विकसित होने के कारण ये महाविद्या षोडशी कहलाती हैं।
श्रीचक्रवासिनी षोडशी महाविद्या सर्वत्र व्याप्त हैं। संसार के समस्त मन्त्र-तन्त्र इनकी ही आराधना किया करते  हैं। वेद भी इन महात्रिपुरसुन्दरी मां का वर्णन कर सकने में असमर्थ हैं। भक्तों को ललिता महाविद्या प्रसन्न होकर सब कुछ दे देती हैं अभीष्ट तो सीमित अर्थवाच्य है।

    त्रिपुरारहस्य में वर्णन है कि त्रिपुराम्बा ललिता भगवती ने भण्डासुर नामक असुर का वध किया था। ललिता मां को आद्याशक्ति माना जाता है। अन्य विद्याएँ भोग या मोक्ष में से एक ही देती हैं परंतु भगवती महात्रिपुरसुंदरी ललिता महाविद्या अपने उपासक को भुक्ति और मुक्ति दोनों प्रदान करती हैं। इन आद्याशक्ति षोडशी महाविद्या के स्थूल, सूक्ष्म, पर तथा तुरीय चार रूप हैं।

     एक बार पराम्बा पार्वतीजी ने भगवान् शिव से पूछा- "भगवन्! आपके द्वारा प्रकाशित तन्त्रशास्त्र की साधना से जीव के आधि-व्याधि, शोक-संताप, दीनता-हीनता तो दूर हो जायेंगे किन्तु गर्भवास और मरण के असह्य दुःख की निवृति तो इससे नहीं होगी। कृपा करके इस दुःख से निवृत्ति और मोक्षपद की प्राप्ति का कोई उपाय बताइये।"

     परम कल्याणमयी पराम्बा के अनुरोध पर भगवान् शंकर ने षोडशी श्रीविद्यासाधना-प्रणाली को प्रकट किया। भगवान् शङ्कराचार्य ने भी श्रीविद्या के रूप में इन्हीं षोडशी देवी की उपासना की थी। इसीलिये आज भी सभी शाङ्करपीठों में भगवती षोडशी राजराजेश्वरी त्रिपुरसुन्दरी की श्रीयन्त्र के रूप में आराधना करने की परम्परा चली आ रही है।
श्रीषोडशीत्रिपुरसुन्दरी ध्यान- बालार्क-मण्डलाभासां चतुर्बाहु त्रिलोचनाम्। पाशाङ्कुश-वराभीतीर्धारयन्तीं शिवां भजे॥ अर्थात् जो उदयकाल के सूर्यमण्डल के समान कान्ति धारण करने वाली हैं, जिनकी चार भुजाएं, तीन नेत्र हैं तथा जो अपने हाथों में पाश, अङ्कुश, वर एवं अभय मुद्रा धारण किये रहती हैं, उन शिवादेवी का मैं ध्यान करता हूँ।

  भैरवयामल तथा शक्तिलहरी में षोडशी मां की उपासना का विस्तृत परिचय मिलता है। दुर्वासा ऋषि श्रीविद्याके परमाराधक हुए हैं। षोडशी महाविद्या की उपासना श्रीचक्र में होती है। श्रीयन्त्र को यन्त्रराज की संज्ञा दी गई है इसमें दसों महाविद्याओं का अर्चन सम्पन्न हो जाता है। यदि पूजा के लिए कोई विग्रह उपलब्ध न हो तो मान्यता है कि शालग्राम, पारद शिवलिंग और श्रीयन्त्र इन तीनों में से कोई एक विग्रह भी उपलब्ध हो तो उसमें ही समस्त देवी-देवताओं की आराधना सम्पन्न की जा सकती है
      इस लोक में श्रीविद्या का सामान्य ज्ञान रखने वाले कुछ साधक तो सुलभ हैं परंतु विशेष ज्ञाता अत्यन्त दुर्लभ हैं। कारण, श्रीविद्या रहस्यमयी गुप्तविद्या है, इसका मंत्रोपदेश गुरु-परम्परा द्वारा योग्य साधकों को ही दिया जाता है। भगवती की आराधना खाली दिखावे के लिये नहीं होनी चाहिये। उत्तम तो यही है कि जिनके पास पर्याप्त समय हो, विश्वास हो, श्रद्धा हो, जो नित्य इसका जप आदि कर सकने में सक्षम हों वे ही योग्य गुरु से श्रीविद्या के मन्त्र की दीक्षा लें और नित्य जपादि करें। हालांकि योग्य गुरु न मिलने पर आगमोक्त "मन्त्र ग्रहण विधि" का आश्रय लेकर भी साधक स्वयमेव दीक्षित हो सकता है परन्तु मार्गदर्शन तो गुरु ही करता है। इस श्रीविद्या का प्रकाशन हर किसी के समक्ष नहीं करना चाहिये। सामान्य आराधकों को स्तोत्रों के पाठ से ही भगवती की आराधना करनी चाहिये।
    श्रीविद्योपासक दुर्गुणों का  सर्वथा त्याग करे, श्रीविद्या की आराधना में सुपात्र बनना अति आवश्यक है। गुणवानों की निरन्तर निन्दा करने वाले, इंद्रियों का दासत्व, आर्जवशून्य(जिसमें सीधेपन का अभाव हो,कुटिल), नित्य स्त्रीप्रसंग करने वाले, उद्दण्ड, मन-वाणी-कर्म से गुरूभक्तिहीनता आदि दोषों से युक्त व्यक्ति से श्रीविद्या की सदा रक्षा करनी चाहिये। 'षोडशिकार्णव' में कहा गया है- "पराये गुरु के शिष्यों, नास्तिकों को, सुनने की अनिच्छा वालों को एवं अर्थ का अनर्थ ढाने वालों को यह विद्या कभी नहीं देनी चाहिये। अन्यथा उपदेष्टा गुरु शिष्य के पापों से लिप्त हो जाता है।" ध्यान की महिमा मन्त्र जप से भी अधिक बतलाई गई है। आद्याशक्ति श्रीविद्या के ये तीन प्रकार के मुख्य स्वरूप हैं- श्री बाला त्रिपुरसुन्दरीश्री षोडशी त्रिपुरसुन्दरी और श्री ललिता त्रिपुरसुन्दरी। इनके ध्यान प्रस्तुत हैं-


ध्यान
भगवती श्रीबाला-त्रिपुर-सुन्दरी के शरीर की आभा अरुणोदय काल के सूर्यं-बिम्ब के जैसी रक्त-वर्ण की है। उस आभा की किरणों से सभी दिशाएँ एवं अन्तरिक्ष लाल रङ्ग से रँगे हुए हैं। चार कर-कमलों में जप-माला, पुस्तक, अभय और वर-मुद्राएँ हैं। पूर्ण खिले हुए रक्त-कमल के पुष्प पर विराजमान हैं। ऐसी श्रीबाला जगत् का नित्य कल्याण करने वाली हैं। वे मेरे हदय में निवास करें।
श्रीबालात्रिपुरसुन्दरी
अरुणकिरण-जालै रञ्जितासावकाशा । 
विधृतजप-वटीका पुस्तकाभीति-हस्ता ॥ 
इतरकर-वराढ्या फुल्ल-कह्लार-संस्था ।
निवसतु हृदि बाला नित्य कल्याणरूपा ॥
अर्थात् भगवती श्रीबाला-त्रिपुर-सुन्दरी के शरीर की आभा अरुणोदय काल के सूर्यं-बिम्ब के जैसी रक्त-वर्ण की है। उस आभा की किरणों से सभी दिशाएँ एवं अन्तरिक्ष लाल रङ्ग से रँगे हुए हैं। चार कर-कमलों में जप-माला, पुस्तक, अभय और वर-मुद्राएँ हैं। पूर्ण खिले हुए रक्त-कमल के पुष्प पर विराजमान हैं। ऐसी श्रीबाला जगत् का नित्य कल्याण करने वाली हैं। वे मेरे हदय में निवास करें।
श्रीषोडशीत्रिपुरसुन्दरी
बालार्क-मण्डलाभासां चतुर्बाहु त्रिलोचनाम्।
पाशाङ्कुश-वराभीतीर्धारयन्तीं शिवां भजे॥
अर्थात् जो उदयकाल के सूर्यमण्डल के समान कान्ति धारण करने वाली हैंजिनकी चार भुजाएं, तीन नेत्र हैं तथा जो अपने हाथों में पाश, अङ्कुशवर एवं अभय मुद्रा धारण किये रहती हैं, उन शिवादेवी का मैं ध्यान करता हूँ। 
ध्यायेत्पद्मासनस्थां विकसितवदनां पद्मपत्रायताक्षीं।

हेमाभां पीतवस्त्रां करकलित-लसद्धेमपद्मां वराङ्गीम्॥

सर्वालङ्कारयुक्तां सततमभयदां भक्तनम्रां भवानीं।

श्रीविद्यां शान्तमूर्तिं सकलसुरनुतां सर्वसम्पत्प्रदात्रीम्॥
अर्थात् कमल के आसन पर विराजमान, प्रसन्न मुखमण्डल वाली, कमल-दल के सदृश विशाल नेत्रों वाली, स्वर्ण के समान आभा वाली, पीतवर्ण के वस्त्र धारण करने वाली, अपने कोमल हाथ में स्वर्णिम कमल धारण करने वाली, सुन्दर शरीरावायव से सुशोभित, सभी प्रकार के आभूषणों से अलङ्कृत, निरन्तर अभय प्रदान करने वाली, भक्तों के प्रति कोमल स्वभाव वाली, शान्त मूर्ति, सभी देवताओं से नमस्कृत तथा सम्पूर्ण सम्पदा प्रदान करने वाली भवानी श्रीविद्या का ध्यान करना चाहिये।

    श्रीविद्या की विस्तृत पूजा के विधि-विधान बहुत समयसाध्य हैं, अतः खड्गमाला, अष्टोत्तरशत नाम, सहस्रनाम आदि स्तोत्रों के द्वारा भी श्री ललिता महाविद्या की आराधना की जाती है। तन्त्र ग्रन्थों में षोडशी महाविद्या के प्रातः स्मरण, शतनाम, सहस्रनाम, मानस पूजन, कवच, हृदय, खड्गमाला आदि बहुत से उत्तम स्तोत्र मिलते हैं जिनके माध्यम से भगवती षोडशी की स्तोत्रात्मक स्तुति उत्तम प्रकार से की जाती है। आद्य शंकराचार्य जी द्वारा रचित 'सौंदर्य लहरी' नामक स्तोत्र सौ श्लोकों का है।

     श्रीविद्या के सामान्य आराधकों को भगवती के विविध स्तोत्रों का सहारा ले लेना चाहिये धर्मग्रन्थों में भगवती महात्रिपुरसुन्दरी के विविध स्तोत्रों का विशाल संग्रह प्राप्त होता है। यहां भगवती ललिताम्बा का प्रातः स्मरण स्तोत्र प्रस्तुत है, शङ्कराचार्यजी के द्वारा रचित इस स्तोत्र को ललितापंचक स्तोत्र अथवा ललिता पञ्चरत्न स्तोत्र भी कहा जाता है-

श्रीललितापञ्चरत्नम्

प्रात: स्मरामि ललिता-वदनारविन्दं
विम्बाधरं पृथुल-मौक्तिक-शोभिनासम्।
आकर्णदीर्घनयनं मणिकुण्डलाढ्यं
मन्दस्मितं मृगमदोज्ज्वलभालदेशम्॥१॥

प्रातःकाल ललितादेवी के उस मनोहर मुखकमल का स्मरण करता हूँ, जिनके बिम्बसमान रक्तवर्ण अधर, विशाल मौक्तिक(मोती के बुलाक) से सुशोभित नासिका और कर्णपर्यन्त फैले हुए विस्तीर्ण नयन हैं जो मणिमय कुण्डल और मन्द मुसकान से युक्त हैं तथा जिनका ललाट कस्तूरिकातिलक से सुशोभित है।

प्रातर्भजामि ललिताभुजकल्पवल्लीं
रक्ताङ्गुलीय-लसदङ्गुलि-पल्लवाढ्याम्।
माणिक्यहेम-वलयाङ्गद-शोभमानां
पुण्ड्रेक्षुचाप-कुसुमेषु-सृणीदधानाम्॥२॥

मैं श्रीललिता देवी की भुजारूपिणी  कल्पलता का प्रातःकाल स्मरण करता हूँ जो लाल अँगूठी से सुशोभित सुकोमल अंगुलिरूप पल्लवों वाली तथा रत्नखचित सुवर्णकंकण और अंगदादि से भूषित है एवं जिन्होंने पुण्ड्र-ईंख के धनुष, पुष्पमय बाण और अंकुश धारण किये हैं।

प्रातर्नमामि ललिताचरणारविन्दं
भक्तेष्टदाननिरतं भवसिन्धुपोतम्।
पद्मासनादि-सुरनायकपूजनीयं
पद्माङ्कुश-ध्वज-सुदर्शन-लाञ्च्छनाढ्यम्॥३॥

मैं श्रीललितादेवी के चरणकमलों को, जो भक्तों को अभीष्ट फल देने वाले और संसारसागर के लिये सुदृढ़ जहाजरूप हैं तथा कमलासन श्रीब्रह्माजी आदि देवेश्वरों से पूजित और पद्म, अंकुश, ध्वज एवं सुदर्शनादि मंगलमय चिह्नों से युक्त हैं, प्रातःकाल नमस्कार करता हूँ।

प्रात: स्तुवे परशिवां ललितां भवानीं
त्रय्यन्त-वेद्यविभवां करुणानवद्याम्।
विश्वस्य सृष्टिविलयस्थिति-हेतुभूतां
विद्येश्वरीं निगम-वाङ्मनसातिदूराम्॥४॥

मैं प्रातःकाल परमकल्याणरूपिणी श्रीललिता भवानी की स्तुति करता हूँ जिनका वैभव वेदान्तवेद्य है, जो करुणामयी होने से शुद्धस्वरूपा हैं, विश्व की उत्पत्ति, स्थिति और लय की मुख्य हेतु हैं, विद्याकी अधिष्ठात्री देवी हैं तथा वेद, वाणी और मन की गति से अति दूर हैं।

प्रातर्वदामि ललिते तव पुण्यनाम
कामेश्वरीति कमलेति महेश्वरीति।
श्रीशाम्भवीति जगतां जननी परेति
वाग्देवतेति वचसा त्रिपुरेश्वरीति॥५॥

हे ललिते! मैं तेरे पुण्यनाम कामेश्वरी, कमला, महेश्वरी, शाम्भवी, जगज्जननी, परा, वाग्देवी तथा त्रिपुरेश्वरी आदि का प्रातःकाल अपनी वाणी द्वारा उच्चारण करता हूँ।

य: श्लोकपञ्चकमिदं ललिताम्बिकाया:
सौभाग्यदं सुललितं पठति प्रभाते।
तस्मै ददाति ललिता झटिति प्रसन्ना
विद्यां श्रियं विमल-सौख्यमनन्तकीर्तिम्॥६॥

माता ललिता के अति सौभाग्यप्रद और सुललित इन पाँच श्लोकों को जो पुरुष प्रातःकाल पढ़ता है उसे शीघ्र ही प्रसन्न होकर ललितादेवी विद्या, धन, निर्मल सुख और अनन्त कीर्ति देती हैं।

श्रीमच्छङ्कराचार्यकृतं श्रीललितापञ्चरत्नम् ॐ तत्सत्

    भगवान् आद्य शङ्कराचार्य ने सौन्दर्यलहरी में ललिताम्बा षोडशी श्रीविद्या की स्तुति करते हुए कहा है कि "अमृत के समुद्र में एक मणि का द्वीप है, जिसमें कल्पवृक्षों की बारी(वाटिका) है, नवरत्नों के नौ परकोटे हैं उस वन में चिन्तामणि से निर्मित महल में ब्रह्ममय सिंहासन है जिसमें पञ्चकृत्य के देवता ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र और ईश्वर आसन के पाये हैं और सदाशिव फलक हैं। सदाशिव की नाभि से निर्गत कमल पर विराजमान भगवती षोडशी त्रिपुरसुन्दरी का जो ध्यान करते हैं वे धन्य हैं। भगवती ललिता के प्रभाव से उन्हें भोग और मोक्ष दोनों सहज ही उपलब्ध हो जाते हैं।"
षोडशी महाविद्या की उपासना श्रीचक्र में होती है। श्रीयन्त्र को यन्त्रराज की संज्ञा दी गई है इसमें दसों महाविद्याओं का अर्चन सम्पन्न हो जाता है। यदि पूजा के लिए कोई विग्रह उपलब्ध न हो तो मान्यता है कि शालग्राम, पारद शिवलिंग और श्रीयन्त्र इन तीनों में से कोई एक विग्रह भी उपलब्ध हो तो उसमें ही समस्त देवी-देवताओं की आराधना सम्पन्न की जा सकती है।
     जो षोडशी माता का आश्रय ग्रहण कर लेते हैं उनमें और ईश्वर में कोई भेद नहीं रह जाता है। वस्तुत: ललिताम्बा भगवती षोडशी की महिमा अवर्णनीय है। श्रीचक्रवासिनी षोडशी महाविद्या सर्वत्र व्याप्त हैं। संसार के समस्त मन्त्र-तन्त्र इनकी ही आराधना किया करते  हैं। वेद भी इन महात्रिपुरसुन्दरी मां का वर्णन कर सकने में असमर्थ हैं। भक्तों को ललिता महाविद्या प्रसन्न होकर सब कुछ दे देती हैं , 'अभीष्ट' तो सीमित अर्थवाच्य शब्द है। भगवती षोडशी की कृपा का एक कण भी अभीष्ट से अधिक प्रदान करने में समर्थ है।

     आद्याशक्ति भगवती षोडशी महाविद्या की जयंती तिथि - माघ मास की पूर्णिमा तिथि को जगज्जननी ललिता माता की विशेष आराधना की जाती है। भगवती षोडशी महात्रिपुरसुन्दरी के श्री चरणों में हमारा अनन्त बार प्रणाम है....

यह भी पढें -
🌷षोडशी महाविद्या की स्तोत्रात्मक उपासना।

टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही अनोखी जानकारी दी है आपने
    आपका बहुत बहुत धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद महोदय कि आपने इस आलेख को पढा.. जी ऐसी ही हैं हमारी मां भगवती, वो दुर्गम्या हैं लेकिन इनके विषय में जो भी जानने को मिलता है वह अनूठा व हृदय को अच्छा लगने वाला होता है.. परम दयालु माता षोडशी हम सबका मंगल करें..

      हटाएं
    2. me shree vidya sadhak hu,, mata ne mujhe sab kuch diya hai...mata param kalyan kari , bhala karnewali, sarv dukho se mukt karne wali hai..

      jai ho mata lalita ki

      हटाएं
    3. श्री त्रिपुर सुन्दरी माँ की आराधना करने का सौभाग्य बिरलों को ही मिलता है... बस प्रतिदिन साधना करते जाइये परम दयालु श्रीमाता सब भक्तों का ध्यान रखती हैं....टिप्पणी के लिए धन्यवाद...जय माँ ललितांबिका...

      हटाएं
    4. हम आपके आभारी है आपने जगत जननी माँ जगदम्बा के बारे में इतना सुंदर वर्णित किया है। जय माँ षोडशी माता की🌹🙏🌹🌹🙏🌹

      हटाएं
  2. बहुत सुंदर आलेख,,,सुंदर जानकारी,,,इस विद्या के योग्य गुरु कंहा मिलेंगे क्रपया जानकारी देने की कृपा करे,,,,

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर


    1. नमस्कार महोदय आपने लेख पढ़ा धन्यवाद... वैसे तो योग्य गुरु ऐसे हों जिनसे आप समय समय पर मिल सकें या फोन आदि पर बात कर सकें...ताकि साधना में समस्या आने पर शिष्य को उचित समाधान मिल सके इसलिए आपके घर के आसपास स्थित श्रीललिता मंदिर में कोई ऐसा विद्वान साधक हो तो उत्तम है.. लेकिन ऐसा व्यक्ति न मिल सके तो आज के समय में इंटरनेट के कारण श्रीविद्या के जानकार योग्य गुरु का नाम-पता मिलना कठिन नहीं है... हाँ यह बहुत सम्भव है कि कुछ ऐसे भी योग्य गुरु हों जो इंटरनेट पर अपना नाम आदि नहीं देते...वहीं कुछ साधना के नाम पर ठग भी सकते हैं उनसे सतर्क रहें.
      गूगल मैप पर सर्च करके आप अपने निकट स्थित त्रिपुर सुंदरी या ललिता देवी मंदिर का पता कर सकते हैं...एक बार योग्य गुरु का पता मालूम हो जाने पर फिर गूगल मैप आदि से उस जगह का review देखो वह जगह आपके स्थान से कितनी दूरी पर है यात्रा और वहां रहने की व्यवस्था आदि भी आपको देखना होगा. उनका फोन नंबर या फेसबुक पेज / id ढूंढकर पहले उनसे फोन/मैसेज द्वारा समय आदि जानकारी पूछ लेना चाहिए.. शंकराचार्य विभिन्न स्थान पर भ्रमण करते रहते हैं. वे किस स्थान पर जाएंगे अपने फेसबुक पन्नों पर बता देते हैं..इसके अलावा जहाँ तक मैने समझा है उसके अनुसार कुछ सुझाव बताता हूं :
      1)सर्वोत्तम तो यह है कि यदि "शंकराचार्य जी" जैसे गुरु हों क्योंकि इनका शिष्य बनने वाला सनातन परम्परा से सीधे सीधे जुड़ जाता है.. श्री विद्या रत्नाकर जैसे ग्रंथ लिखने वाले श्रीकरपात्री जी महाराज के शिष्य हैं गोवर्धन मठ के शंकराचार्य श्री निश्चलानन्द सरस्वती जी...शुद्ध हिन्दी बोलते हैं मठ द्वारा संचालित इनका Govardhan math नाम से यूट्यूब चैनल भी है सनातन धर्म संबंधी बहुत अच्छी बातें बतलाते हैं. यह मठ उड़ीसा राज्य के "पुरी" में स्थित है govardhanpeeth.org पर देखें इनके फेसबुक पेज भी मिल जाएंगे
      2) अगर दक्षिण भारत में हैं तो वहां से नजदीक का क्षेत्र ठीक रहेगा - तमिलनाडु राज्य में स्थित रामेश्वरम, यहाँ है श्रृंगेरी मठ यहाँ के शंकराचार्य हैं श्री भारती तीर्थ जी, यहाँ भी सम्पर्क करके दीक्षा ली जा सकती है
      3) गुजरात राज्य के द्वारका धाम स्थित शारदा (कालिका) मठ के और उत्तराखंड राज्य के चमोली में स्थित जोशीमठ(ज्योतिर्मठ) इन दोनों पीठ के शंकराचार्य हैं श्रीस्वरुपानन्द सरस्वती जी.. इनके भी फेसबुक पर पेज हैं इनसे सम्पर्क करके उचित जानकारी लेकर आप दीक्षा ले सकते हैं
      4) वाराणसी में स्थित श्रीविद्यासाधना पीठ भी अच्छी संस्था है.. जब मैं बद्रीनाथ जी के धाम गया था मंदिर के परिसर में भी इनका केन्द्र भी दिखा था.
      5)उत्तराखंड मणिकूट पर्वत पर स्थित श्री ज्योतिर्मणि पीठ में भी दीक्षा की अच्छी व्यवस्था है.. इनकी साइट है shripeeth.in पहले इसमें लिखी श्रीविद्या से जुड़ी प्रत्येक बात को अच्छी तरह से पढ़ समझ लें.
      जय माँ ललिताम्बा

      हटाएं
  3. Bhai koi hum pe bhi kripa karo maa sodhsi tripura sundri ki pooja diksha de do my email is singhnistha422@gmail.com

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर


    1. नमस्कार महोदय, ऐसे नहीं... श्री विद्या दीक्षा लेनी है तो किसी अन्य झमेले में न फंसकर सनातन शंकराचार्य परम्परा से जुड़ें... ये शंकराचार्य विभिन्न स्थान पर भ्रमण करते रहते हैं. वे किस दिनांक को किस स्थान पर जाएंगे अपने फेसबुक पन्नों पर बता देते हैं..वह जगह आपके स्थान से कितनी दूरी पर है यात्रा और वहां रहने की खर्च,व्यवस्था आदि भी आपको देखना होगा. उनका फोन नंबर या फेसबुक पेज / id ढूंढकर पहले उनसे फोन/मैसेज द्वारा समय रहना आदि सब जानकारी बिना संकोच के अच्छे से पूछ लेना चाहिए..
      1) यदि "शंकराचार्य जी" जैसे गुरु हों तो इनका शिष्य बनने वाला शुद्ध सनातन श्री विद्या परम्परा से सीधे सीधे जुड़ जाता है.. गोवर्धन मठ के शंकराचार्य श्री निश्चलानन्द सरस्वती जीे कोई भी तथ्य शुद्ध हिन्दी बोलकर सरल भाषा में समझा देते हैं..मठ द्वारा संचालित इनका Govardhan math नाम से यूट्यूब चैनल भी है सनातन धर्म संबंधी बहुत अच्छी बातें बतलाते हैं. यह मठ उड़ीसा राज्य के "पुरी" में स्थित है, इनकी साइट govardhanpeeth.org देखें govardhan math के नाम से इनके फेसबुक पेज भी मिल जाएंगे
      2) अगर दक्षिण भारत में हैं तो वहां से नजदीक का क्षेत्र ठीक रहेगा - तमिलनाडु राज्य में स्थित रामेश्वरम, यहाँ है श्रृंगेरी मठ यहाँ के शंकराचार्य हैं श्री भारती तीर्थ जी, यहाँ भी सम्पर्क करके दीक्षा ली जा सकती है इनका भी फेसबुक व youtube चैनल है
      3) गुजरात राज्य के द्वारका धाम स्थित शारदा (कालिका) मठ के और उत्तराखंड राज्य के चमोली में स्थित जोशीमठ(ज्योतिर्मठ) इन दोनों पीठ के शंकराचार्य हैं श्रीस्वरुपानन्द सरस्वती जी.. इनके भी फेसबुक पर पेज हैं इनसे सम्पर्क करके उचित जानकारी लेकर आप दीक्षा ले सकते हैं..
      जय माँ ललिता

      हटाएं
  4. क्या खड्गमाला बिना दीक्षा के पढ़ना उचित हैं।।
    अगर हाँ तो उसके पाठ की विधि बतायें।।
    जयतु माँ राजराजेश्वरी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. नमस्कार महोदय, जी हाँ बिना दीक्षा के भी श्री देवी खड्गमाला अथवा श्री विद्या खड्गमाला स्तोत्र को पढ़ सकते हैं क्योंकि नाम जप और स्तोत्रों का पाठ करने से साधक को वंचित नहीं रखा गया है। हालांकि खड्गमाला अपने आप में एक वृहद माला मन्त्र है लेकिन यह स्तुतिपरक होने से एक स्तोत्र भी है...बल्कि इसे तो स्तोत्रों में रत्न सदृश होने से स्तोत्ररत्न भी कहा जाता है। इसलिए बिना दीक्षा भी इसका पाठ कर सकते हैं इसकी "शुद्ध" पाठविधि शीघ्र ही प्रकाशित की जाएगी। पर इसे लिखने में समय लग ही जाएगा सो कृपया थोड़ी प्रतीक्षा करें...
      जय माँ ललिता

      हटाएं
  5. उत्तर
    1. व्यस्तता के कारण whatsapp पर संभव नहीं हो पाएगा ... ईमेल द्वारा ही सम्पर्क करें ... आपके सवाल के अनुसार उत्तर देने में कुछ विलंब हो सकता है लेकिन उत्तर अवश्य दिया जाएगा
      .धन्यवाद ..जय माँ ललिता

      हटाएं

एक टिप्पणी भेजें

कृपया टिप्पणी करने के बाद कुछ समय प्रतीक्षा करें प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है। अंतर्जाल (इन्टरनेट) पर उपलब्ध संस्कृत में लिखी गयी अधिकतर सामग्री शुद्ध नहीं मिलती क्योंकि लिखने में उचित ध्यान नहीं दिया जाता यदि दिया जाता हो तो भी टाइपिंग में त्रुटि या फोंट्स की कमी रह ही जाती है। संस्कृत में गलत पाठ होने से अर्थ भी विपरीत हो जाता है। अतः पूरा प्रयास किया गया है कि पोस्ट सहित संस्कृत में दिये गए स्तोत्रादि शुद्ध रूप में लिखे जायें ताकि इनके पाठ से लाभ हो। इसके लिए बार-बार पढ़कर, पूरा समय देकर स्तोत्रादि की माननीय पुस्तकों द्वारा पूर्णतः शुद्ध रूप में लिखा गया है; यदि फिर भी कोई त्रुटि मिले तो सुधार हेतु टिप्पणी के माध्यम से अवश्य अवगत कराएं। इस पर आपकी प्रतिक्रिया व सुझाव अपेक्षित हैं, पर ऐसी टिप्पणियों को ही प्रकाशित किया जा सकेगा जो शालीन हों व अभद्र न हों।

लोकप्रिय पोस्ट