ध्यानम्
हाथ में पुष्प लेकर ध्यान करे -
अरुणां करुणा तरङ्गिताक्षीं धृत-पाशाङ्कुश पुष्प-बाण-चापाम्। अणिमादि-भिरावृतां मयूखै-रहमित्येव विभावये भवानीम्॥१॥
(जो रक्त वर्ण वाली हैं, जिनकी आंखों में करुणा तरंगित हो रही है, जिन्होंने पाश, अंकुश, धनुष और पुष्पमय बाण धारण किया हुआ है, जो अणिमा आदि रूपी लाल रश्मियों से घिरी हुई हैं, ऐसी भवानी भगवती त्रिपुरसुन्दरी का मैं ध्यान करता हूँ)
अति-मधुर-चाप-हस्तामपरिमित-मोद-मान-सौभाग्याम्।
अरुणामतिशय-करुणामभिनव-कुल-सुन्दरीं वन्दे॥२॥
(अत्यन्त मीठे गन्ने से बने धनुष को हाथ में धारण करने वाली असीमित प्रसन्नतामयी, सौभाग्य देने वाली, रक्त वर्णा, अतिशय करुणा से परिपूर्ण भगवती षोडशी त्रिपुरसुन्दरी की मैं वन्दना करता हूँ)
आरक्ताभां त्रिनेत्रां मणि-मुकुट-वतीं रत्न-ताटङ्क-रम्यां,
हस्ताम्भोजैः स-पाशाङ्कुश-मदनधनुः सायकै-र्विस्फुरन्तीम्।
आपीनोत्तुङ्ग-वक्षोरुह-युग-विलुठत्तार-हारोज्ज्वलाङ्गीं,
ध्याये-दाम्भोरुहस्था-मरुण-सुवसना-मीश्वरी-मीश्वराणाम्॥३॥
(जो लाल रंग की आभा वाली तीन नेत्रों वाली हैं, जिन्होंने मणिमय मुकुट और रत्नमय कुंडलों को धारण किया हुआ है, हाथों में पाश, अंकुश, कामदेव के धनुष व पुष्पमय बाणों को धारण किया है, जिनके वक्षस्थल पर चमकता हुआ सुंदर हार शोभा पा रहा है, जो सुन्दर लाल वस्त्र धारण करके लाल कमल पर बैठी हुई हैं, जो ईश्वरों की ईश्वरी हैं,मैं उन भगवती त्रिपुरसुन्दरी देवी का ध्यान करता हूंं)
तादृशं खड्ग-माप्नोति येन हस्त-स्थितेन वै
अष्टादश-महाद्वीप-सम्राट् - भोक्ता-भविष्यति॥४॥
(हे राजराजेश्वरी ललिताम्बा आपके भक्त को ज्ञान रूपी ऐसा खड्ग प्राप्त होता है जिससे वह 18 महाद्वीपों का शासक भोक्ता हो जाता है)
मानस पूजा -
• लं पृथिवी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीशिव-कामेश्वरांक-निलया श्रीकामेश्वरी ललिता-श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (कनिष्ठिका अंगुली से अंगूठे को मिलाकर अधोमुख(नीची) करके भगवान को दिखाए, यह गन्ध मुद्रा है)
• हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीशिव-कामेश्वरांक-निलया श्रीकामेश्वरी ललिता-श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (अधोमुख तर्जनी व अंगूठा मिलाकर बनी पुष्प मुद्रा दिखाए)
• यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्रीशिव-कामेश्वरांक-निलया श्रीकामेश्वरी ललिता-श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्वमुख(उपर को) तर्जनी व अंगूठे को मिलाकर दिखाए)
• रं वह्नि-तत्त्वात्मकं दीपं श्रीशिव-कामेश्वरांक-निलया श्रीकामेश्वरी ललिता-श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्व मुख मध्यमा व अंगूठे को दिखाए)
• वं अमृत-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्रीशिव-कामेश्वरांक-निलया श्रीकामेश्वरी ललिता-श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्व मुख अनामिका व अंगूठे को दिखाए)
• सौं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलादि सर्वोपचाराणि मनसा परिकल्प्य श्रीशिव-कामेश्वरांक-निलया श्रीकामेश्वरी ललिता-श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(सभी अंगुलियों को मिलाकर ऊर्ध्वमुखी करते हुए दिखाये)
श्रीगुरु वन्दना
गुरु या शिव जी के विग्रह पर पुष्प/अक्षत अर्पित करे-
• श्री दक्षिणामूर्तये विद्महे ध्यान-स्थिताय धीमहि तन्नो धीरः प्रचोदयात्। श्रीदक्षिणामूर्ति गुरवे नमः, श्री पादुकां पूजयामि।
नमस्कार करे-
• गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः,
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।
• अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया, चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः।
महागणपति पूजन
पुष्प या अक्षत अर्पित करे -
• ऐं आत्म तत्व व्यापकाय महा-गणपतये श्री पादुकां पूजयामि नमः।
• ह्रीं विद्या तत्व तत्व व्यापकाय महा-गणपतये श्री पादुकां पूजयामि नमः।
• श्रीं शिव तत्व व्यापकाय महा-गणपतये श्री पादुकां पूजयामि नमः।
श्री शुद्धशक्ति खड्गमाला पारायण
(कोष्ठक में स्तोत्र समझने के लिए विवरण दिया गया है उसका पाठ नहीं करना है, केवल लाल रंग से लिखे मुख्य स्तोत्र को शुद्धता के साथ सावधानी से आराम से पाठ करते चले जाएं-)
श्री पार्वत्युवाच
भगवन! देव–देवेश! सर्वज्ञ! करुणानिधे! शुद्ध-शक्ति महामन्त्रं ब्रूहि मे सकलेष्टदम्॥१॥
(पार्वती जी ने कहा-"हे भगवन! देवों के देव, सब कुछ जानने वाले, दयानिधि, सभी कामनाओं को देने वाले शुद्ध शक्ति महामंत्र को मुझे बताएं")
श्री ईश्वर उवाच
श्रृणु देवि! प्रवक्ष्यामि यन्मां त्वं परिपृच्छसि। यस्य स्मरण-मात्रेण चक्र-पूजा-फलं लभेत्॥
(ईश्वर शिवजी ने कहा- "हे देवि! तुम मुझसे जो पूछ रही हो वह सुनो इसके स्मरण मात्र से श्री यंत्र की पूजा का फल मिलता है")
ऐं ह्रीं श्रीं नमस्त्रिपुर-सुन्दरि!
(श्रीयन्त्रस्थ न्यास देवता)
हृदय-देवि, शिरो-देवि, शिखा-देवि, कवच-देवि, नेत्र-देव्यस्त्र-देवि!
(16 नित्याकला देवियां)
कामेश्वरि, भगमालिनि, नित्यक्लिन्ने, भेरुण्डे, वह्नि-वासिनि, महा-वज्रेश्वरि, शिवादूति, त्वरिते, कुलसुन्दरि, नित्ये, नीलपताके, विजये, सर्वमङ्गले, ज्वाला-मालिनि, चित्रे, महानित्ये!
(श्रीयन्त्रस्थ दिव्यौघ गुरु)
परमेश्वर-परमेश्वरि, मित्रेश-मयि, षष्ठीश-मय्युड्डीश-मयि, चर्यानाथ-मयि, लोपामुद्रा-मय्यगस्त्य-मयि!
(सिद्धौघ गुरु)
कालतापन-मयि, धर्माचार्य-मयि, मुक्त-केशीश्वर-मयि, दीपकलानाथ-मयि!
(सुमानवौघ गुरु)
विष्णुदेव-मयि, प्रभाकर-देव-मयि, तेजोदेव-मयि, मनोज-देवमयि, कल्याणदेव-मयि, रत्नदेव-मयि, वासुदेव-मयि, श्रीरामानन्द-मयि!
(श्रीयन्त्र के भूपुर की शक्तियां)
अणिमा-सिद्धे, गरिमा-सिद्धे, लघिमा-सिद्धे, महिमा-सिद्धे, ईशित्व-सिद्धे, वशित्व-सिद्धे, प्राकाम्य-सिद्धे, भुक्ति-सिद्धे, इच्छा-सिद्धे, प्राप्ति-सिद्धे, सर्वकाम-सिद्धे, ब्राह्मि, माहेश्वरि, कौमारि, वैष्णवि, वाराहि, माहेन्द्रि, चामुण्डे, महालक्ष्मि, सर्व-सङ्क्षोभिणि, सर्व-विद्राविणि, सर्वाकर्षिणि, सर्व-वशङ्करि, सर्वोन्मादिनि, सर्व-महाङ्कुशे, सर्व-खेचरि, सर्व-बीजे, सर्व-योने, सर्व-त्रिखण्डे, त्रैलोक्य-मोहन चक्र-स्वामिनि, प्रकट-योगिनि!
(श्री यन्त्र के षोडशदल की देवियां)
कामाकर्षिणि, बुद्ध्या-कर्षिण्यहं-कारा-कर्षिणि, शब्दाकर्षिणि, स्पर्शाकर्षिणि, रूपाकर्षिणि, रसाकर्षिणि, गन्धाकर्षिणि, चित्ताकर्षिणि, धैर्याकर्षिणि, स्मृत्याकर्षिणि, नामाकर्षिणि, बीजाकर्षिणि, आत्माकर्षिणि, अमृताकर्षिणि, शरीराकर्षिणि, सर्वाशा-परिपूरक-चक्र-स्वामिनि !
(अष्टदल)
गुप्त-योगिन्यनङ्ग-कुसुमेऽनङ्ग-मेखलेऽनङ्ग-मदनेऽनङ्ग-मदनातुरेऽनङ्ग-रेखेऽनङ्ग-वेगिन्यनङ्गाङ्कुशेऽनङ्ग-मालिनि, सर्व-संक्षोभण-चक्र-स्वामिनि, गुप्ततर-योगिनि!
(चतुर्दशार)
सर्व-संक्षोभिणि, सर्वविद्राविणि, सर्वाकर्षिणि, सर्वाह्लादिनि, सर्वसम्मोहिनि, सर्वस्तम्भिनि, सर्व-जृम्भिणि, सर्व-वशङ्करि, सर्वरञ्जिनि, सर्वोन्मादिनि, सर्वार्थसाधिनि, सर्वसम्पत्ति-पूरिणि, सर्वमन्त्र-मयि, सर्वद्वन्द्व-क्षयङ्करि, सर्वसौभाग्य-दायक-चक्रस्वामिनि, सम्प्रदाय-योगिनि!
(बहिर्दशार)
सर्वसिद्धिप्रदे, सर्वसम्पत्प्रदे, सर्वप्रियङ्करि,
सर्वमङ्गल-कारिणि, सर्वकामप्रदे, सर्वदुःखविमोचिनि, सर्वमृत्यु-प्रशमनि, सर्वविघ्न-निवारिणि, सर्वाङ्ग-सुन्दरि, सर्वसौभाग्य-दायिनि, सर्वार्थ-साधक-चक्र-स्वामिनि, कुलोत्तीर्ण-योगिनि!
(अन्तर्दशार)
सर्वज्ञे, सर्वशक्ते, सर्वैश्वर्य-प्रदे, सर्वज्ञानमयि,
सर्वव्याधि-विनाशिनि, सर्वाधार-स्वरूपे, सर्वपापहरे, सर्वानन्दमयि, सर्वरक्षा-स्वरूपिणि, सर्वेप्सित-प्रदे, सर्वरक्षाकर-चक्रस्वामिनि, निगर्भ-योगिनि!
(अष्टार)
वशिनि, कामेश्वरि, मोदिनि, विमलेऽरुणे, जयिनि, सर्वेश्वरि, कौलिनि, सर्वरोगहर-चक्रस्वामिनि, रहस्ययोगिनि!
(त्रिकोण चक्र)
बाणिनि, चापिनि, पाशिन्यंकुशिनि, महाकामेश्वरि, महावज्रेश्वरि, महा-भगमालिनि, महाश्रीसुन्दरि, सर्वसिद्धिप्रद-चक्र-स्वामिन्यति-रहस्य-योगिनि!
(बिन्दु पर स्थित देवता)
श्री श्रीमहा-भट्टारिके, सर्वानन्दमय-चक्र-स्वामिनि, परापर-रहस्य-योगिनि!
(9 चक्रेश्वरी)
त्रिपुरे, त्रिपुरेशि, त्रिपुरसुंदरि, त्रिपुर-वासिनि,
त्रिपुराश्री-स्त्रिपुर-मालिनि, त्रिपुरा-सिद्धे, त्रिपुराम्ब, महात्रिपुरसुन्दरि!
(श्रीदेवी राजराजेश्वरी-त्रिपुरसुंदरी के लिए विशेषण)
महा-महेश्वरि, महामहा-राज्ञि, महामहा-शक्ते, महामहागुप्ते, महामहा-ज्ञप्ते, महा-महानन्दे, महामहा-स्पन्दे, महामहा-शये, महामहा-श्रीचक्रनगर-साम्राज्ञि! नमस्ते नमस्ते नमस्ते! स्वाहा (नमः)
श्रीं ह्रीं ऐं
(फलश्रुति)
एषा विद्या महासिद्धि-दायिनी स्मृतिमात्रतः।
अग्नि-वात-महाक्षोभे राज-राष्ट्रस्य विप्लवे॥
(यह विद्या स्मरण मात्र से महान् सिद्धि देती है, अग्नि-वायु द्वारा डाँवाडोल होने पर, राज्य या देश में आपदा आने पर माला मन्त्र स्मरण करे..)
लुण्ठने तस्कर-भये सङ्ग्रामे सलिल-प्लवे।
समुद्रयान-विक्षोभे भूतप्रेतादिजे भये॥
(लूट-खसोट व लुटेरे से उत्पन्न भय में युद्ध में, बाढ़ में, समुद्री जहाज आदि में हलचल होने पर, भूतप्रेतादि का भय होने पर माला मन्त्र का स्मरण करे....)
अपस्मार-ज्वर-व्याधि-मृत्यून्मादादिजे भये।
डाकिनी पूतना-यक्षरक्षः-कूष्माण्डजे भये॥
[अपस्मार, ज्वर, शारीरिक व्याधि, मृत्यु भय, उन्माद भय, डाकिनी,पूतना, यक्ष, राक्षस कूष्मांड भय होने पर माला मन्त्र पढ़े...]
मित्रभेदे ग्रहभये व्यसने चाभिचारिके।
अन्येष्वपि च दोषेषु मालामन्त्रं स्मरेद् बुधः॥
(दोस्ती टूटने पर, ग्रह की विषमता से उत्पन्न बाधा में, व्यसन मुक्ति के लिए, अभिचार(टोना-टोटका)प्रतीत होने पर और अन्य भी दोष होने पर विद्वान व्यक्ति मालामन्त्र का स्मरण करे)
सर्वोपद्रव-निर्मुक्तः सर्वव्याधि विवर्जितः।
सर्वदा पूर्ण हृदयः साक्षाच्छिवमयो-भवेत्॥
(इसका नियमित रूप से तल्लीनता के साथ पाठ करने से पाठकर्ता सभी उपद्रवों से मुक्त रहता है, सभी व्याधियाँ दूर हो जाती हैं, हमेशा पूर्णता का अनुभव होने से वह साक्षात् शिव के समान हो जाता है)
आपत्काले नित्यपूजां विस्तारात्कर्तुमक्षमः।
एकावर्तन-मात्रेण चक्र-पूजाफलं लभेत्॥
(आपत्ति के समय में यदि विस्तार पूर्वक नित्यपूजा न कर सके तो इस स्तोत्र के एक बार पाठ करने से श्री यन्त्र की पूजा का फल प्राप्त होता है)
नवावरण-देवीनां ललिताया महौजसः।
एकत्र गणना-रूपो यन्त्रमन्त्रार्थ-गोचरः॥
(इससे भगवती ललिता के महान तेज में श्री चक्र के नौ आवरणों की देवियों की सम्मिलित रूप से गणना होने से यन्त्र व मन्त्र का अर्थ (सब ललितामय है) भी दृष्टिगोचर होता है)
ललिताया महेशान्या माला विद्या महीयसी।
अणिमादि-गुणैश्वर्यैः रञ्जनी पाप-भञ्जनी॥
(भगवती महेश्वरी श्रीललिता की यह माला विद्या अणिमा आदि गुणों तथा ऐश्वर्यों से युक्त पापनाशिनी है)
तत्तदावरण-स्थायि देवता-वृन्द-मन्त्रजम्।
मालामन्त्रो महादेव्याः सर्व कार्यार्थ सिद्धिदः॥
(श्रीयन्त्र के प्रत्येक आवरण में स्थित देवतागणों के नाममन्त्रों से युक्त महादेवी का मालामन्त्र सभी कार्यों में सफलता दिलाता है)
इदं स्तोत्रं महादेव्याः सर्वलोकविमोहनम्।
सर्व सौख्य प्रदं नृणां सर्व सौभाग्यदायकम्॥
(महादेवी का यह स्तोत्र सबको मोहित करने वाला है सभी प्रकार के सुख - सौभाग्य देने वाला है)
॥श्री वामकेश्वर-तन्त्रे उमा-महेश्वर-संवादे
देवी-खड्गमाला-स्तोत्र-रत्नं शुभमस्तु ओऽम् तत्सत्॥
पुष्पांजलि- इस मन्त्र से फूल चढ़ाए- ऐं ह्रीं श्रीं समस्त प्रकट गुप्त-गुप्ततर संप्रदाय कुल-कौल-निगर्भ रहस्याति-रहस्य योगिनि श्रीविद्या राजराजेश्वरी श्रीपादुकां पूजयामि नमः।
अब जप समर्पण की प्रक्रिया करे -
विनियोग- अस्य श्रीशुद्धशक्ति-माला-महामन्त्रस्य, उपस्थेन्द्रियाधिष्ठायि वरुणादित्य ऋषिः देवी गायत्री छन्दः सात्विक 'क'कार-भट्टारक-पीठस्थित श्री महा-कामेश्वराङ्क-निलया महा-कामेश्वरी श्री ललिता भट्टारिका देवता, ऐं वाग्भव बीजं, सौः शक्तिकूट शक्तिः, क्लीं कामराज कीलकं श्री ललिता महा-त्रिपुरसुन्दरी प्रसाद-सिद्ध्यर्थे श्रीशुद्धशक्ति-माला-महामन्त्रस्य जप समर्पणे विनियोगः।
ऋष्यादिन्यास: - • उपस्थेन्द्रियाधिष्ठायिने वरुणादित्य ऋषये नमः शिरसि (सिर का स्पर्श करे)
• देवी गायत्री छन्दसे नमः मुखे (मुख स्पर्श करे)
• सात्विक 'क'कार-भट्टारक-पीठस्थित श्री महा- कामेश्वराङ्क-निलया महा-कामेश्वरी श्री ललिता भट्टारिका देवतायै नमः हृदिः (हृदय का स्पर्श)
• ऐं वाग्भव बीजाय नमः गुह्ये (गुह्य स्थल का स्पर्श)
• सौः शक्तिकूट शक्तये नमः पादयोः (पैरों का स्पर्श करे)
• क्लीं कामराज कीलकाय नमः नाभौ (नाभि स्पर्श करे)
• श्री ललिता महा-त्रिपुरसुन्दरी प्रसाद-सिद्ध्यर्थे श्रीशुद्धशक्ति-माला-महामन्त्रस्य जप समर्पणे विनियोगाय नमः सर्वांगे (सभी अंग छुए)
षडङ्गन्यासः - (१) ‘ह्रां हृदयाय नमः’
(२) ‘ह्रीं शिरसे स्वाहा’
(३) ‘ह्रूं शिखायै वषट्’
(४) ‘ह्रैं कवचाय हुम्’
(५) ‘ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्’
(६) ‘ह्रः अस्त्राय फट्’
करन्यासः - (१) ‘ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः’
(२) ‘ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः’
(३) ‘ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः’
(४) ‘ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः’
(५) ‘ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः’
(६) ‘ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः’
ध्यान
आरक्ताभां त्रिनेत्रां मणिमुकुट-वतीं रत्न-ताटङ्क-रम्यां
हस्ताम्भोजैः स-पाशाङ्कुश-मदनधनुः सायकै-र्विस्फुरन्तीम् ।
आपीनोत्तुङ्ग-वक्षोरुह-युग-विलुठत्तार-हारोज्ज्वलाङ्गीं
ध्याये-दाम्भोरुहस्था-मरुण-सुवसना-मीश्वरी-मीश्वराणाम्॥
(जो लाल रंग की आभा वाली तीन नेत्रों वाली हैं, जिन्होंने मणिमय मुकुट और रत्नमय कुंडलों को धारण किया हुआ है, हाथों में पाश, अंकुश, कामदेव के धनुष व पुष्पमय बाणों को धारण किया है, जिनके वक्षस्थल पर चमकता हुआ सुंदर हार शोभा पा रहा है, जो सुन्दर लाल वस्त्र धारण करके लाल कमल पर बैठी हुई हैं, जो ईश्वरों की ईश्वरी हैं,मैं उन भगवती त्रिपुरसुन्दरी देवी का ध्यान करता हूंं)
तादृशं खड्गमाप्नोति येन हस्तस्थितेन वै
अष्टादश-महाद्वीप-सम्राट् - भोक्ता-भविष्यति॥
(हे राजराजेश्वरी ललिताम्बा आपके भक्त को ज्ञान रूपी ऐसा खड्ग प्राप्त होता है जिससे वह 18 महाद्वीपों का शासक भोक्ता हो जाता है)
मानस पूजा
• लं पृथिवी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीशिव-कामेश्वरांक-निलया श्रीकामेश्वरी ललिता-श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (कनिष्ठिका से अंगूठे को मिलाकर अधोमुख(नीची) करके भगवान को दिखाए, यह गन्ध मुद्रा है)
• हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीशिव-कामेश्वरांक-निलया श्रीकामेश्वरी ललिता-श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (अधोमुख तर्जनी व अंगूठा मिलाकर बनी पुष्प मुद्रा दिखाए)
• यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्रीशिव-कामेश्वरांक-निलया श्रीकामेश्वरी ललिता-श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्वमुख(ऊपर को) तर्जनी व अंगूठे को मिलाकर दिखाए)
• रं वह्नि-तत्त्वात्मकं दीपं श्रीशिव-कामेश्वरांक-निलया श्रीकामेश्वरी ललिता-श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्व मुख मध्यमा व अंगूठे को दिखाए)
• वं अमृत-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्रीशिव-कामेश्वरांक-निलया श्रीकामेश्वरी ललिता-श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्व मुख अनामिका व अंगूठे को दिखाए)
• सौं सर्वतत्त्वात्मकं ताम्बूलादि सर्वोपचाराणि मनसा परिकल्प्य श्रीशिव-कामेश्वरांक-निलया श्रीकामेश्वरी ललिता-श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(सभी अंगुलियों को मिलाकर ऊर्ध्वमुखी करते हुए दिखाये)
एक आचमनी से जल चढ़ाते हुए जप समर्पण करे -
• ॐ गुह्याति गुह्य गोप्त्री त्वम्, गृहाणास्मद्कृतं जपं। सिद्धिर्भवतु मे देवि, त्वत्-प्रसादान्महेश्वरी॥
• मया कृतेन श्रीशुद्धशक्ति-सम्बुद्ध्यन्त माला मन्त्र जपानुष्ठानं श्रीशिव-कामेश्वरांक निलया श्रीकामेश्वरी ललिता-राजराजेश्वरी श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी देवतायै अर्पणमस्तु।
• अनेन मया कृतेन श्रीशुद्धशक्ति सम्बुद्ध्यन्त माला मन्त्र जपेन श्री शिव-कामेश्वरांक निलया श्रीकामेश्वरी ललिता-राजराजेश्वरी श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी देवता सुप्रसन्ना वरदा भवतु।
• सर्वं श्री सद्गुरु-परदेवता-परब्रह्मार्पण-मस्तु।
वैदिक शान्ति पाठ
जिनका यज्ञोपवीत संस्कार हो चुका है केवल वे ही इस वैदिक शान्ति पाठ मन्त्र का तीन बार पाठ करे -
ओऽम् शान्ता पृथिवी शिवमन्तरिक्षं द्यौर्नो देवा अभयं नो अस्तु। शिवा दिशः प्रदिश उद्दिशो नः आपो विश्वतः परिपान्तु सर्वतः। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।(वेदमन्त्र)
(पृथ्वी हमारे लिए शांति दायिनी हो। अंतरिक्ष और दिव्याकाश कल्याणकारी हों। देवगण अभय देने वाले हों, दिशाएं विदिशाएं और ऊर्ध्व दिशाएं मंगलमय हों और जल राशियां(सागर) हमारे चारों ओर से हमारीे रक्षा करें, शान्ति,शान्ति, शान्ति हो)
{*हिन्दी अनुवाद कोई भी पढ़ सकता है}
सौभाग्याष्टोत्तरशत नाम स्तोत्र
हाथ में पुष्प लेकर स्तोत्र का पाठ करे-
ध्यायेत् पद्मासनस्थां विकसित-वदनां पद्म-पत्रायताक्षीं
हेमाभां पीत-वस्त्रां कर-कलित-लसद्धेम-पद्मां वराङ्गीम्।
सर्वालङ्कार-युक्तां सततमभयदां भक्त-नम्रां भवानीं
श्रीविद्यां शान्त-मूर्तिं सकल-सुरनुतां सर्वसम्पत् प्रदात्रीम्॥
(कमल के आसन पर बैठी हुई , प्रसन्न मुख वाली, कमलदल सदृश विशाल नेत्रों वाली, स्वर्णिम आभा वाली, पीले वस्त्र पहनने वाली. कोमल हाथ में सोने का कमल धारण करने वाली, सुन्दर, सभी आभूषणों से अलंकृत, निरंतर अभय देने वाली, भक्तों के प्रति कोमल स्वभाव वाली, शान्त, सभी देवों से नमस्कृत व सम्पूर्ण सम्पदा प्रदान करने वाली भवानी श्रीविद्या का ध्यान करना चाहिए)
ऐं ह्रीं श्रीं ॐ कामेश्वरी कामशक्तिः काम-सौभाग्य-दायिनी।
काम-रूपा काम-कला कामिनी कमलाऽसना॥१॥
कमला कल्पनाहीना कमनीया-कलावती।
पद्मपा भारती-सेव्या कल्पिताऽशेष-संस्थितिः॥२॥
अनुत्तराऽनघाऽनन्ताऽद्भुत - रूपाऽनलोद्भवा।
अति-लोक-चरित्राऽति-सुन्दर्यति-शुभप्रदा॥३॥
विश्वाद्या चाति-विस्ताराऽर्चन-तुष्टाऽमित-प्रभा।
एक-रूपैक-वीरैक-नाथैकान्ताऽर्चन-प्रिया॥४॥
एकैक-भावतुष्टैक-रसैकान्त-जनप्रिया।
एध-मान-प्रभावैधद्भक्त-पातक-नाशिनी॥५॥
एला-मोद-मुखैनोऽद्रि-शक्रायुध-समस्थितिः।
ईहा-शून्येप्सितेशादि-सेव्येशान-वराङ्गना॥६॥
ईश्वराऽऽज्ञापिकेकार-भाव्येप्सित-फलप्रदा।
ईशानेति-हरेक्षेषदरुणाक्षीश्वरेश्वरी॥७॥
ललिता ललना-रूपा लयहीना लसत्तनुः।
लयसर्वा लयक्षोणिर्लयकर्त्री लयात्मिका॥८॥
लघिमा लघुमध्याऽऽढ्या ललमाना लघुद्रुता।
हयाऽऽरूढा हताऽमित्रा हरकान्ता हरिस्तुता॥९॥
हयग्रीवेष्टदा हाला-प्रिया हर्ष-समुद्धता।
हर्षणा हल्लकाभाङ्गी हस्त्यन्तैश्वर्य-दायिनी॥१०॥
हल-हस्ताऽर्चित-पदा हविर्दान-प्रसादिनी।
रामा-रामाऽर्चिता राज्ञी रम्या रव-मयी रतिः॥११॥
रक्षिणी-रमणी-राका रमणी-मण्डल-प्रिया।
रक्षिताऽखिल-लोकेशा रक्षोगण-निषूदिनी॥१२॥
अम्बान्त-कारिण्यम्भोज-प्रियाऽन्तक-भयङ्करी ।
अम्बु-रूपाऽम्बुज-कराऽम्बुज-जात-वर-प्रदा॥१३॥
अन्तःपूजा-प्रियाऽन्तःस्वरूपिण्यन्तर्वचो-मयी।
अन्तकाऽराति-वामाङ्क-स्थिताऽन्तः सुख-रूपिणी॥१४॥
सर्वज्ञा सर्वगा सारा समा सम-सुखा सती।
सन्ततिः सन्तता सोमा सर्वा साङ्ख्या सनातनी ॐ॥१५॥
देवी को फूल अर्पित करें।
सौभाग्याऽष्टोत्तर-शतनाम-स्तोत्रं मनोहरम्।
यस्त्रिसन्ध्यं पठेन्नित्यं न तस्य भुवि दुर्लभम्॥१६॥
(जो प्रतिदिन इस मनोहर सौभाग्याष्टोत्तर-शत-नाम स्तोत्र को तीन संध्याओं में पढ़ता है उसके लिए संसार में कुछ भी दुर्लभ नहीं है)
आगमोक्त शान्ति स्तोत्र
भक्तिपूर्वक श्री विद्या खड्गमाला को यथासम्भव समझते हुए प्रतिदिन नियमित पारायण(पाठ) करने से उत्पन्न तेज को सँभालना कठिन होने से साधक का कभी-कभी मन व्याकुल हो सकता है ऐसे में शान्ति स्तोत्र भी खड्गमाला स्तोत्र के बाद पढ़ना चाहिए, हालांकि ऊपर वैदिक शान्ति पाठ श्लोक भी दिया है लेकिन वेदोक्त मन्त्र होने से वह केवल उनके लिए है जिनका उपनयन संस्कार हो चुका है।
जिनका यज्ञोपवीत नहीं हुआ हो वे तथा अन्य सभी लोगों को भी नीचे दिये गये आगमोक्त शान्ति स्तोत्र को पढ़ना चाहिए, इसके पाठ में सबको अधिकार है। खड्गमाला स्तोत्र के पारायण में कोई न्यूनता-आधिक्यता दोष की शान्ति के लिए प्रस्तुत शान्ति स्तोत्र के पाठ से उस दोष का शमन हो जाता है-
श्री भैरव उवाच-
जय देवि जगद्धात्रि! जय पापौघ-हारिणि!
जय दुःख-प्रशमनि शान्तिर्भव ममार्चने॥१॥
श्रीबाले परमेशानि! जय कल्पान्त-कारिणि!
जय सर्व-विपत्तिघ्ने शान्तिर्भव ममार्चने॥२॥
जय बिन्दुनाद-रूपे जय कल्याण-कारिणि!
जय घोरे च शत्रुघ्ने शान्तिर्भव ममार्चने॥३॥
मुण्डमाले विशालाक्षि! स्वर्णवर्णे चतुर्भुजे।
महा-पद्म-वनान्तस्थे शान्तिर्भव ममार्चने॥४॥
जगद्योनि महायोनि निर्णयातीत-रूपिणि!
परा-प्रासाद-गृहिणि शान्तिर्भव ममार्चने॥५॥
इन्दु-चूड-युते चाक्षहस्ते श्रीपरमेश्वरि!
रुद्रसंस्थे महामाये शान्तिर्भव ममार्चने॥६॥
सूक्ष्मे स्थूले विश्वरूपे जय सङ्कट-तारिणि!
यज्ञ-रूपे जाप्य-रूपे शान्तिर्भव ममार्चने॥७॥
दूती-प्रिये द्रव्य-प्रिये शिवे पञ्चाङ्कुश-प्रिये!
भक्तिभाव-प्रिये भद्रे शान्तिर्भव ममार्चने॥८॥
भाव-प्रिये लास-प्रिये कारणानन्द-विग्रहे!
श्मशानस्य देवमूले शान्तिर्भव ममार्चने॥९॥
ज्ञानाज्ञानात्मिके चाद्ये भीति-निर्मूलनक्षमे!
वीरवन्द्ये सिद्धिदात्रि शान्तिर्भव ममार्चने॥१०॥
स्मर-चन्दन-सुप्रीते शोणितार्णव-संस्थिते!
सर्वसौख्य-प्रदे शुद्धे शान्तिर्भव ममार्चने॥११॥
कापालिनि कलाधारे कोमलाङ्गि कुलेश्वरि!
कुलमार्ग-रते सिद्धे शान्तिर्भव ममार्चने ॥१२॥
॥चिन्तामणि-तन्त्रोक्तं शान्तिस्तोत्रं शुभमस्तु॥
इसके अलावा एक दूसरा शान्ति स्तोत्र भी दिया जा रहा है सभी साधक इच्छानुसार इसका भी पाठ कर सकते हैं-
रुद्रयामलोक्तं शान्ति स्तोत्रम्
जयन्तु मातरः सर्वा, जयन्तु योगिनी-गणाः।
जयन्तु सिद्ध डाकिन्यो, जयन्तु गुरवः सदा॥१॥
जयन्तु साधकाः सर्वे, विशुद्धाः कौलिकाश्च ये
समयाचार सम्पन्नाः, जयन्तु पूजकाः नराः॥२॥
अणिमाद्याश्च सिद्धाश्च, नन्दन्तु भैरवादयः।
नन्दन्तु देवताः सर्वे, सिद्ध-विद्या-धरादयः॥३॥
ये चाम्नाय-विशुद्धाश्च, मन्त्रिणः शुद्ध-बुद्धयः।
सर्वदानन्द हृदयः नन्दन्तु कुल-पालकाः॥४॥
नन्दन्तु अणिमा सिद्धा, नन्दन्तु कुल साधकाः।
इन्द्राद्या देवताः सर्वे तृप्यन्तु वास्तु-देवताः॥५॥
सूर्य चन्द्रादयो देवाः, तृप्यन्तु मम-भक्तितः।
नक्षत्राणि ग्रहा योगाः करणाः राशयश्च ये॥६॥
तृप्यन्तु पितरः सर्वे मासाः संवत्सरादयः।
खेचरा भूचराश्चैव तृप्यन्तु मम भक्तितः॥७॥
अन्तरिक्ष-चरा ये च ये चान्ये देव-योनयः।
सर्वे ते सुखिनो यान्तु सर्पा नद्याश्च पक्षिणः॥८॥
पशवः स्थावराश्चैव पर्वताः कन्दराः गुहाः।
ऋषयो ब्राह्मणाः सर्वे शान्तिं कुर्वन्तु मे सदा॥९॥
तीर्थानि बहु प्रसिद्धा ये, चान्ये पुण्य-भूमयः।
वृद्धाः पतिव्रता यास्ताः शान्तिं कुर्वन्तु मे सदा॥१०॥
शिवं सर्वत्र मे चास्तु पुत्र-दारा-धनादिषु।
राजानः सुखिनः सन्तु मित्राः नन्दन्तु मे सदा॥११॥
साधका सुखिनः सन्तु शिवं तिष्ठन्तु सर्वदा।
शुभा मे वन्दिताः सन्तु मित्रा तिष्ठन्तु पूजकाः ॥१२॥
।।श्री रुद्रयामलोक्तं शान्ति स्तोत्रं शुभमस्तु।।
इस प्रकार यह श्री शुद्ध शक्ति खड्गमाला स्तोत्र पाठ का विधान सम्पन्न होता है। कोई बात समझ न आए तो हमें ईमेल पर पूछ लें। नवरात्रि, गुप्तनवरात्रि, दीपावली, होलिका दहन की रात्रि, संक्रान्ति, पंचमी, अष्टमी, पूर्णिमा, चतुर्दशी, अमावास्या एवं शुक्रवार को भगवती ललिताम्बा की आराधना अवश्य करनी चाहिए। आशा है आप उपरोक्त प्रकार से भगवती राजराजेश्वरी त्रिपुरसुन्दरी की स्तोत्रात्मक आराधना करेंगे। भगवती षोडशी त्रिपुरसुन्दरी की आराधना सर्वसिद्धि दायिनी है। श्रीषोडशी सहस्रनाम स्तोत्र के कतिपय नामों से इनकी आराधना का माहात्म्य स्पष्ट होता है - 'सर्व-सम्पत्-प्रतिष्ठात्री', 'सर्वमङ्गल-कारिणी', 'सर्वाह्लादन-कारिणी', 'सर्व-सम्मोहिनी देवी ','सर्व-स्तम्भन-कारिणी', 'सर्व-सम्पत्ति-दायिनी', 'सर्व-मन्त्रमयी', 'सर्व-द्वन्द्व-क्षयंकरी', 'सर्व-सिद्धिप्रदा', 'सर्व-दुःख-विमोचिनी', 'सर्व-सौभाग्य-दायिनी', 'सर्वैश्वर्य-फलप्रदा', 'सर्व-व्याधि-विनाशिनी', 'सर्व-पापहरा', 'सर्व-लक्ष्मीमयी-विद्या', 'सर्वेप्सित-फलप्रदा' 'सर्वारिष्ट-प्रशमनी'।
भगवती राजराजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी हम सबका मंगल करें यही प्रार्थना करते हुए श्रीमहाकामेश्वरांक निलया भगवती श्रीमहाकामेश्वरी के चरणों में हमारा बार बार प्रणाम।
सर्वप्रथम आपका बहुत बहुत आभार जो आपने ये लेख प्रकाशित किया।।
जवाब देंहटाएंमाँ राजराजेश्वरी त्रिपुरसुन्दरी की कृपा से आपके माध्यम से हमें प्राप्त हुआ।।
प्रश्न ये है कि जो आपने सँकल्प लिखा है तो ये प्रतिदिन करना है या केवल प्रथम दिन ही करना है।। सादरप्रणाम
नमस्कार, महोदय धन्यवाद कि आपने यह लेख पढ़ा...जी हाँ सुबह शाम तथा प्रतिदिन जब भी आप इसका पाठ करेंगे तो संकल्प भी करना होगा... उसी से विधि पूर्ण होती है ... संकल्प से कार्य की सिद्धि होती है इसीलिए कहते हैं व्रत पूजा संध्या आदि में संकल्प जरूर करना चाहिए ... जय माँ त्रिपुरसुन्दरी
हटाएंबहुत बहुत धन्यवाद मार्गदर्शन के लिये प्रणाम 🙏😊 जय माँ राजराजेश्वरी
हटाएंकृपया नवम महाविद्या
जवाब देंहटाएंमाँ मातँगी के ह्रदय स्त्रोत
कवच के पाठ की सविधि विस्तार से बताने की कृपा करें ।।
जैसे खड्गमाला के पूरे पाठ के बारे में बताया आपने 😇🙏🙏
आपके सुझाव को नोट कर लिया है लेकिन इसे लिखने में कुछ समय लग ही जाएगा कृपया धैर्यपूर्वक प्रतीक्षाकरें.
हटाएंजय माँ ललिता
बहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंमैं प्रतीक्षा कर रहा हूँ।। 🙏🙏
जय माँ
जी में श्रीविद्या का दिक्षित नहीं हु फिर भी खड्गमाला का पाठ कर सकता हूं? और खड्गमाला स्तोत्र मुजे लिए मुझे कौनसे ग्रंथ में पर्याप्त होगा?
जवाब देंहटाएंजी हाँ खड्गमाला मन्त्र एक स्तोत्र भी है तो इसका पाठ अदीक्षित भी कर सकते हैं क्योंकि भगवत्प्रीत्यर्थ स्तोत्र पाठ करने से किसी को वंचित नहीं रखा गया है.. लेकिन साफ-साफ कहा गया है जिनका जनेऊ संस्कार न हुआ हो उन्हें वेदमन्त्र व ॐ का प्रयोग नहीं करना चाहिए...दुष्प्रभाव से बचने के लिए इतनी सावधानी रखनी चाहिए... यह श्रीविद्या खड्गमाला स्तोत्र संकेत रूप में वामकेश्वर तंत्र में मिलता है जो कि दुर्लभ ग्रंथ है
हटाएंKya koe bhi khadgmala stotram kar sakta hai jase normal house wife
हटाएंजी हां, लेकिन स्त्री को पाठ में ॐ और स्वाहा नहीं बोलना होगा इस बात का ध्यान रहे। अशुद्धि (मासिक धर्म/नातक/सूतक) के दिनों में पाठ न करे।
हटाएंप्रणाम आचार्य वर हमारी ए जिज्ञासा है कि स्तोत्र पाठ करने के बाद हवन भी करना है
जवाब देंहटाएंजी नहीं इसमें पाठ करना ही पर्याप्त है...
हटाएंवैसे भी तन्त्र ग्रंथों के अनुसार अदीक्षित, बिना जनेऊ धारण किये व्यक्ति द्वारा ओऽम् और स्वाहा युक्त मन्त्र का या वेद मंत्र का अनुष्ठान और हवन नहीं किये जाते हैं..
हाँ यदि किसी जनेऊ संस्कार रहित व्यक्ति को साधनाओं में हवनादि कराना ही हो तो किसी यज्ञोपवीत धारी जानकार व्यक्ति से करवाया जा सकता है...उन्हें उचित दक्षिणा देदेनी चाहिए..
जय माँ ललिताम्बा
मैंने राम मंत्र की दीक्षा ले रख्खी तो भी श्री विद्या की
जवाब देंहटाएंदीक्षा लेना आवश्यक है
महोदय किसी भी मन्त्र की साधना करनी हो तो उसकी दीक्षा लेनी ही पड़ती है, इसलिए श्रीविद्या के मन्त्र अनुष्ठान के लिए भी योग्य गुरु से श्री विद्या की दीक्षा लेनी पड़ती है... लेकिन स्तोत्र पाठ करने से किसी को भी वंचित नहीं रखा गया है इसलिए अदीक्षित भी स्तोत्र पढ़ ही सकते हैं...
हटाएंअतः यदि राम जी के मन्त्र की दीक्षा ली है तो आपको उनका ही प्रतिदिन मन्त्र जप आदि करना चाहिए...
लेकिन साथ में यदि श्री विद्या मन्त्र भी प्रतिदिन नियम से जपना हो तो पहले उसकी भी दीक्षा ले लें...
जय श्री राम
Thanks, mera bhi yahi question tha
हटाएंNamaste mujhe Adhyatam ki aur Aaur badna hai
जवाब देंहटाएंMarg darshan kre 🙏
ईमेल पर सम्पर्क करें..कोई भी प्रश्न पूछें व मार्गदर्शन पायें..
हटाएंजय माँ ललिताम्बा
Kripiya chinnamasta,tara maa,kali maa,baglamukhi bhairavi,matangi,bhuvneshwari,dhumavati,kamla, ke baare me bhi bataye.
जवाब देंहटाएंइस blog पर दसों महाविद्याओं के बारे में लिखा जा चुका है कृपया इस लिंक पर जायें 10 महाविद्या
हटाएंजय माँ ललिताम्बा
Mahodaya
जवाब देंहटाएंStriyaan kis Prakar path Karen kripaya bataiye 🙏🙏🙏
स्त्री और जिनका यज्ञोपवीत/उपनयन नहीं हुआ है उनको पाठ के दौरान ॐ और स्वाहा तथा वेदमन्त्र नहीं बोलना होगा। ॐ की जगह ह्रीं या औं बोला जा सकता है।सुविधा के लिए हम प्रायः बता देते हैं कि कौन सा वेदमन्त्र है...
हटाएंस्त्री साधिका वैदिक शान्ति पाठ नहीं पढ़े। लेकिन आगमोक्त शान्ति पाठ को स्त्रियां भी पढ़ सकती हैं.
जय माँ ललिताम्बा
साथ ही जानकारी जोड़ना चाहूंगा कि बड़ा स्तोत्रात्मक मन्त्र होने से शुद्धि का ध्यान रखना जरूरी है, प्रतिदिन नहाकर साफ वस्त्र पहनकर पाठ करे.
हटाएंअशुद्धि के दिनों इसका पाठ न ही करे तो अच्छा है, परिवार में किसी सम्बन्धी की मृत्यु के कारण सूतक के दिनों में या किसी का जन्म हो अर्थात् नातक में भी न पढ़े.
स्त्री रजस्वला से अशुद्ध होने पर पाठ न करे.5वे दिन से पाठ करना शुरु कर सकती हैं .
aapka bhi bahut hi abhar aapne kathin bisy ko sarl tarike sajha diya hi puna abhar apko sadar parnam
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