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गवती मातंगी की दस महाविद्याओं में नवें स्थान पर परिगणना की जाती है। अक्षय तृतीया अर्थात् वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मातंगी महाविद्या की प्रादुर्भाव तिथि कही गयी है। नवरात्रि के अवसर पर भी मातंगी भगवती की उपासना की जाती है। श्यामला, राजश्यामला, राजमातंगी, मातंगिनी, इन्हीं के नाम हैं। ये ही श्री ललिताम्बिका की मन्त्रिणी नामक शक्ति हैं। श्रीविद्या की उपासना में इनका भी मंत्र ग्रहण किया जाता है। अतएव श्रीविद्या उपासक भी इनकी आराधना करके पूर्णता पाते हैं। भगवती मातंगी आराधक के सारे विघ्न, उपद्रव, बाधाएं नष्ट कर देती हैं। भगवती मातंगी अपने भक्त को सुन्दर आकर्षक वाणी, विद्या तथा प्रचुर धन प्रदान करती हैं, देवी की कृपा से दुर्योग भी सुयोग में बदल जाता है। देवी मातंगी का आराधक सहज ही मोक्ष भी पा जाता है। देवी मातंगी को सुगन्धित पुष्प और खीर अर्पित करें। मेरु तंत्र के अनुसार महाविद्या मातङ्गी की प्रीति के लिये प्रत्येक मंगलवार को उनका पूजन करना चाहिये; तत्पश्चात् एक, तीन, पाँच अथवा सात कुमारियों को स्वादिष्ट भक्ष्यभोज्य एवं मनोहारी पेय पदार्थ प्रदान कर उन्हें सन्तुष्ट करना चाहिये। वहीं पर आगे लिखा है कि विद्वान् साधक को मातंगी महाविद्या की प्रसन्नता के लिये मंगलवार को चावल के आटे से पाँच दीपक बनाकर उन्हें घृत से पूरित करके जलाना चाहिये।
*भगवती मातंगी पर कुछ महत्वपूर्ण जानकारी हमने पहले आलेख में दी है।मातंगी भगवती के कृपा प्रसाद से धन प्राप्ति होने की संभावनाएं निर्मित होने लगती हैं। जो लोग नवरात्रि पर क्रम से प्रतिपदा से दशमी तक प्रति दिवस एक एक महाविद्या की पूजनात्मक/स्तोत्रात्मक उपासना करते हैं वे नवमी पर इनकी ही उपासना करते हैं। मातंगी महाविद्या की विशेष मन्त्र साधना करने के लिए किसी योग्य गुरु से मातंगी महाविद्या के मन्त्र की दीक्षा लेकर ही इनकी मन्त्रात्मक उपासना में प्रवृत्त होना चाहिए। आज के समय में सबको महाविद्या के दीक्षागुरु मिल ही जाए ऐसा होना दुर्लभ ही है। सनातन परम्परा में स्तोत्र पाठ द्वारा भगवत्स्तुति करने से किसी को भी वंचित नहीं रखा गया है। इसलिए मन्त्र दीक्षा प्राप्त न हो सके तो मातंगी महाविद्या की स्तोत्रात्मक उपासना की जानी चाहिए...
श्रीमातंगी महाविद्या की शतार्चन विधि
स्तोत्रात्मक उपासना के अंतर्गत भगवान की पूजा में शतार्चन, सहस्रार्चन का विशेष महत्व है। नाम जप से सभी कुछ प्राप्त होता है। शतार्चन द्वारा सरलता से आराधना हो जाती है। शतार्चन अपने आप में एक सरल साधना है। श्री मातंगी शतार्चन की विधि हम यहाँ दे रहे हैं। आशा है पाठकगण लाभ उठाएंगे-
पूजा विधि- अपने सामने मातंगी महाविद्या का चित्र अथवा यन्त्र रखें, कलर प्रिन्ट निकलवाकर भी रख सकते हैं। इसके अलावा दुर्गा जी की मूर्ति या श्रीयन्त्र पर भी यह पूजन किया जाता है।
संकल्प
श्रीगणपतिर्जयति विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः ओऽम् तत्सदद्य श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य श्रीब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशति-तमे कलियुगे, कलि-प्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे भूप्रदेशे------प्रदेशे ----- नगरे,(......ग्रामे)..... नाम्नि सम्वत्सरे, सूर्य (उत्तरायणे/दक्षिणायने)-----ऋतौ,------मासे --------पक्षे , ----तिथौ, -----वासरे ------गोत्रोत्पन्नो ------(नाम) अहं अद्य श्री मातंगी भगवती प्रीत्यर्थं श्रीमातंगी अष्टोत्तरशत नाम मन्त्रैः यथाशक्ति यजनं कृत्वा स्तोत्रैः स्तुतिं करिष्ये।
ध्यान
श्यामांगीं शशि-शेखरां त्रिनयनां रत्न-सिंहासन-स्थिताम्।
वेदैर्बाहु-दण्डैरसि-खेटक पाशांकुश-वराम्। श्री मातंगेश्वर शिव सहित श्री मातंगी परदेवतायै नमः ध्यानार्थे पुष्पं समर्पयामि।
(रत्नमय सिंहासन पर बैठी, श्याम वर्ण वाली, चन्द्र को मस्तक पर धारण करने वाली, त्रिनेत्रा, चार हाथों में दंड, खेट, पाश, अंकुश धारण करने वाली श्री मातंगी श्रेष्ठदेवी को नमस्कार है!)
पन्चोपचार पूजा -
1• तिलक लगाए- लं पृथिवी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्री मातंगेश्वर शिव सहित श्रीमातंगी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (कनिष्ठिका अंगुली से अंगूठे को मिलाकर अधोमुख(नीची) करके भगवान को दिखाए, यह गन्ध मुद्रा है)
2• पुष्प चढ़ाए - हं आकाशतत्त्वात्मकं पुष्पं श्री मातंगेश्वर शिव सहित श्रीमातंगी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (अधोमुख तर्जनी व अंगूठा मिलाकर बनी पुष्प मुद्रा दिखाए)
3• धूप दिखाए- यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्री मातंगेश्वर शिव सहित श्रीमातंगी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्वमुख(उपर को) तर्जनी व अंगूठे को मिलाकर दिखाए)
4• दीप जलाए - रं वह्नि-तत्त्वात्मकं दीपं श्री मातंगेश्वर शिव सहित श्रीमातंगी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्व मुख मध्यमा व अंगूठे को दिखाए)
5• नैवेद्य अर्पित करे - वं अमृत-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्री मातंगेश्वर शिव सहित श्रीमातंगी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(ऊर्ध्व मुख अनामिका व अंगूठे को दिखाए)
6• अक्षत फूल चढ़ाकर मन से सभी उपचार अर्पित होने की भावना करे- सौं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलादि सर्वोपचाराणि मनसा परिकल्प्य श्री मातंगेश्वर शिव सहित श्रीमातंगी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।(सभी अंगुलियों को मिलाकर ऊर्ध्वमुखी करते हुए दिखाये)
गुरु वन्दना
गुरु या शिव जी के विग्रह पर पुष्प व अक्षत अर्पित करे-
• श्री दक्षिणामूर्तये विद्महे ध्यानस्थिताय धीमहि तन्नो धीरः प्रचोदयात्। श्री दक्षिणामूर्ति गुरवे नमः, श्रीपादुकां पूजयामि।
नमस्कार करे-
• गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः,
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।
• अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया, चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः।
महागणपति पूजन
गणेश जी को पुष्प या अक्षत अर्पित करे -
• ऐं आत्म तत्व व्यापकाय महा-गणपतये श्री पादुकां पूजयामि नमः।
• ह्रीं विद्या तत्व तत्व व्यापकाय महा-गणपतये श्री पादुकां पूजयामि नमः।
• क्लीं शिव तत्व व्यापकाय महा-गणपतये श्री पादुकां पूजयामि नमः।
अब शिव जी को फूल चढ़ा दे -
श्री मातंगेश्वर शिवाय नमः श्रीपादुकां पूजयामि।
विनियोग - अस्य श्री मातंगी अष्टोत्तरशत-नामावल्याः भगवान् मतङ्ग ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्री मातंगी देवता, भगवती मातंगी प्रीत्यर्थे शतार्चने विनियोगः
पहले इन मन्त्रों से अक्षत अर्पित करे -
श्री रत्यै नमः, श्री प्रीत्यै नमः, श्री मनोभवायै नमः,
श्री क्रियायै नमः, श्रीशुद्धायै नमः, श्री अनंगकुसुमायै नमः,
श्रीअनंग-मदनायै नमः, श्री मदनालसायै नमः
अब इस मन्त्र से पुष्प चढा दे -
सांगायै सपरिवारायै सर्वशक्ति युक्तायै परदेवतायै श्रीमातंगेश्वर शिवसहिता श्रीमातंगिन्यै नमो नमः।
अब शतार्चन करे -
1. श्रीमहामत्त-मातङ्गिन्यै नमः।
2. श्रीसिद्धि-रूपायै नमः।
3. श्रीयोगिन्यै नमः।
4. श्रीभद्र-काल्यै नमः।
5. श्रीरमायै नमः।
6. श्रीभवान्यै नमः।
7. श्रीभव-प्रीतिदायै नमः।
8. श्रीभूति-युक्तायै नमः।
9. श्रीभवाराधितायै नमः।
10. श्रीभूति-सम्पत्तिकर्यै नमः।
11. श्रीजनाधीश-मात्रे नमः।
12. श्रीधनागार-दृष्ट्यै नमः।
13. श्रीधनेशार्चितायै नमः।
14. श्रीधीवरायै नमः।
15. श्री धीवराङ्ग्यै नमः।
16. श्रीप्रकृष्टायै नमः।
17. श्री प्रभा-रूपिण्यै नमः।
18. श्री काम-रूपायै नमः।
19. श्रीप्रहृष्टायै नमः।
20. श्रीमहा-कीर्तिदायै नमः।
21. श्री कर्णनाल्यै नमः।
22. श्रीकाल्यै नमः।
23. श्रीभगाघोर-रूपायै नमः।
24. श्रीभगाङ्ग्यै नमः।
25. श्रीभगावाह्यै नमः।
26. श्रीभग-प्रीतिदायै नमः।
27. श्रीभीम-रूपायै नमः।
28. श्रीभवानी-महाकौशिक्यै नमः।
29. श्रीकोश-पूर्णायै नमः।
30. श्रीकिशोर्यै नमः।
31.श्रीकिशोर-प्रियानन्द-ईहायै नमः।
32. श्रीमहा-कारणायै नमः।
33. श्रीकारणायै नमः।
34. श्री कर्मशीलायै नमः।
35. श्रीकपाल्यै नमः।
36. श्रीप्रसिद्धायै नमः।
37.श्रीमहासिद्ध-खण्डायै नमः।
38. श्री मकार-प्रियायै नमः।
39. श्री मान-रूपायै नमः।
40. श्रीमहेश्यै नमः।
41. श्रीमहोल्लासिन्यै नमः।
42.श्रीलास्य-लीला-लयाङ्ग्यै नमः।
43. श्रीक्षमायै नमः।
44. श्रीक्षेम-शीलायै नमः।
45. श्रीक्षपा-कारिण्यै नमः।
46. श्री अक्षयप्रीतिदा-भूतियुक्ता-भवान्यै नमः।
47. श्रीभवाराधिता-भूति-सत्यात्मिकायै नमः।
48. श्री प्रभोद्भासितायै नमः।
49. श्रीभानु-भास्वत्करायै नमः।
50. श्रीचलत्कुण्डलायै नमः।
51. श्रीकामिनी-कान्तयुक्तायै नमः।
52. श्रीकपालाऽचलायै नमः।
53.श्रीकालकोद्धारिण्यै नमः।
54. श्री कदम्ब-प्रियायै नमः।
55. श्रीकोटर्यै नमः।
56.श्रीकोट-देहायै नमः।
57. श्री क्रमायै नमः।
58. श्री कीर्तिदायै नमः।
59. श्री कर्णरूपायै नमः।
60. श्रीकाक्ष्म्यै नमः।
61. श्रीक्षमांग्यै नमः।
62. श्री क्षयप्रेम-रूपायै नमः।
63. श्रीक्षपायै नमः।
64. श्री क्षयाक्षायै नमः।
65. श्री क्षयाह्वायै नमः।
66. श्री क्षय-प्रान्तरायै नमः।
67. श्रीक्षवत्-कामिन्यै नमः।
68. श्री क्षारिण्यै नमः।
69. श्रीक्षीर-पूषायै नमः।
70. श्रीशिवाङ्ग्यै नमः।
71. श्रीशाकम्भर्यै नमः।
72. श्रीशाक-देहायै नमः।
73.श्रीमहाशाक-यज्ञायै नमः।
74. श्री फल-प्राशकायै नमः।
75.श्रीशकाह्वा-शकाख्या-शकायै नमः।
76. श्री शकाक्षान्तरोषायै नमः।
77. श्रीसुरोषायै नमः।
78. श्रीसुरेखायै नमः।
79.श्रीमहाशेष-यज्ञोपवीत-प्रियायै नमः।
80.श्रीजयन्ती-जया-जाग्रती-योग्यरूपायै नमः।
81. श्रीजयाङ्गायै नमः।
82. श्रीजप-ध्यान-सन्तुष्ट-संज्ञायै नमः।
83.श्रीजय-प्राणरूपायै नमः।
84. श्रीजय-स्वर्णदेहायै नमः।
85. श्रीजय-ज्वालिन्यै नमः।
86. श्रीयामिन्यै नमः।
87. श्रीयाम्य-रूपायै नमः।
88. श्रीजगन्मातृ-रूपायै नमः।
89. श्रीजगद्रक्षणायै नमः।
90. श्रीस्वधा-वौषडन्तायै नमः।
91. श्रीविलम्बाविलम्बायै नमः।
92. श्रीषडङ्गायै नमः।
93. श्रीमहालम्ब-रूपाऽसि-हस्ताऽऽपदा-हारिण्यै नमः।
94. श्रीमहा-मङ्गलायै नमः।
95.श्रीमङ्गलप्रेम-कीर्त्यै नमः।
96.श्री निशुम्भ-क्षिदायै नमः।
97.श्री शुम्भ-दर्पत्वहायै नमः।
98. आनन्द-बीजादि-स्वरूपायै नमः।
99. श्री मुक्ति-स्वरूपायै नमः।
100. श्री चण्ड-मुण्डापदायै नमः।
101. श्रीमुख्य-चण्डायै नमः।
102. श्री प्रचण्डाऽप्रचण्डायै नमः।
103. श्रीमहाचण्ड-वेगायै नमः।
104. श्रीचलच्चामरायै नमः।
105.श्रीचामरा-चन्द्र-कीर्त्यै नमः।
106. श्रीसु-चामीकरायै नमः।
107.श्रीचित्र-भूषोज्ज्वलाङ्ग्यै नमः।
108. श्री सु-सङ्गीत-गीतायै नमः।
।।श्रीमातंग्यष्टोत्तर-शत-नामावली शुभमस्तु।।
समर्पण - इस श्लोक द्वारा देवी के विग्रह पर दाहिने हाथ से जल अर्पण कर दें - अनेन शतार्चनेन परदेवता श्री मातंगी भगवती प्रीयताम्, न मम्।
अधिक समय हो तो उपरोक्त पूजन के बाद तर्पण व हवन भी किया जा सकता है-
• तर्पण के लिए उपरोक्त में प्रत्येक नाम मन्त्र में "तर्पयामि नमः" जोड़कर बोले। तर्पण के लिए एक पात्र में स्वच्छ जल लेकर दूध, शहद, पुष्प डालें और प्रत्येक "तर्पयामि" में आचमनी से इस जल को अर्पित करते जायें। यदि चित्र हो तो उसके सामने एक पात्र रखकर उसमें जल अर्पण करे।
• हवन वैकल्पिक है. जो जनेऊ पहनते हों नित्य गायत्री जपते हों वही करें, इसके लिए प्रत्येक नाम मन्त्र में स्वाहा लगा लें।
इसके बाद हाथ जोड़कर श्री मातंगी अष्टोत्तरशत नाम स्तोत्र को पढ़े- (1 या 3 या 11पाठ करे)
श्री मातंगी शतनाम स्तोत्रम्
श्री भैरव्युवाच -
भगवञ्छ्रोतु-मिच्छामि मातङ्ग्याः शतनामकम्।
यद्गुह्यं सर्वतन्त्रेषु केनापि न प्रकाशितम्॥१॥
(श्री भैरवी ने कहा - हे भगवन् मैं मातंगी (अष्टोत्तर)शतनाम स्तोत्र सुनना चाहती हूं जो कि सभी तन्त्रो में गुह्य है किसी ने प्रकाशित नहीं किया है)
भैरव उवाच -
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि रहस्याति-रहस्यकम्।
नाख्येयं यत्र कुत्रापि पठनीयं परात्परम्॥२॥
(भैरव जी ने कहा - हे देवि सुनो रहस्य से भी अति रहस्यमय स्तोत्र कहता हूं जो जहाँ कहीं भी कहने योग्य नहीं है और पढ़ने योग्य व श्रेष्ठतम है)
यस्यैक-वार-पठनात्सर्वे विघ्ना उपद्रवाः।
नश्यन्ति तत्क्षणाद्देवि वह्निना तूलराशि-वत्॥३॥
(इसके एक बार पढ़ने मात्र से सभी विघ्न व उपद्रव उसी प्रकार तत्क्षण नष्ट हो जाते हैं जैसे अग्नि में रुई जल जाती है)
प्रसन्ना जायते देवी मातङ्गी चास्य पाठतः।
सहस्रनाम-पठने यत्फलं परि-कीर्तितम्।
तत्कोटि-गुणितं देवी-नामाष्ट-शतकं शुभम्॥४॥
(और इसके पाठ से मातंगी देवी प्रसन्न हो जाती हैं, मातंगी सहस्रनाम के पाठ का जो प्रसिद्ध फल होता है उससे करोड़ गुना अधिक फल इन शुभ 108 नामों के भक्तिपूर्वक पाठ करने से प्राप्त होता है)
विनियोग-(हाथ में जल लेकर भूमि पर छोड़ दें) - अस्य श्रीमातङ्गी-शतनाम-स्तोत्रस्य भगवान् मतङ्ग ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः भगवती मातङ्गी देवता श्री मातङ्गीप्रीतये जपे विनियोगः।
स्तोत्रम्
महामत्त-मातङ्गिनी सिद्धिरूपा तथा योगिनी भद्रकाली रमा च।
भवानी भवप्रीतिदा भूतियुक्ता भवाराधिता भूति-सम्पत्करी च॥१॥
धनाधीश-माता धनागार-दृष्टिर्धनेशार्चिता धीरवापी-वराङ्गी।
प्रकृष्टा-प्रभारूपिणी कामरूपा-प्रहृष्टा महा-कीर्तिदा कर्णनाली॥२॥
कराली भगा घोर-रूपा भगाङ्गी भगाह्वा भगप्रीतिदा भीमरूपा।
भवानी महाकौशिकी कोशपूर्णा किशोरी-किशोरप्रिया-नन्द ईहा॥३॥
महाकारणा-कारणा कर्मशीला कपाली प्रसिद्धा महासिद्ध-खण्डा।
मकारप्रिया मानरूपा महेशी महोल्लासिनी-लास्यलीला-लयाङ्गी॥४॥
क्षमा-क्षेमशीला क्षपा-कारिणी चाक्षय-प्रीतिदा भूतियुक्ता भवानी।
भवाराधिता भूति-सत्यात्मिका च प्रभोद्भासिता भानु-भास्वत्करा च॥५॥
धराधीश-माता धरागार-दृष्टिर्धरेशार्चिता धीवरा-धीवराङ्गी।
प्रकृष्टप्रभा-रूपिणी प्राणरूपा-प्रकृष्ट-स्वरूपा स्वरूपप्रिया च॥६॥
चलत्कुण्डला कामिनी कान्ति-युक्ता कपालाचला कालकोद्धारिणी च।
कदम्बप्रिया कोटरी-कोटदेहा क्रमा कीर्तिदा कर्णरूपा च काक्ष्मीः॥७॥
क्षमाङ्गी क्षयप्रेमरूपा क्षपा च क्षयाक्षा क्षयाह्वा क्षयप्रान्तरा च।
क्षवत्कामिनी क्षारिणी क्षीरपूर्णा शिवाङ्गी च शाकम्भरी शाकदेहा॥८॥
महाशाक-यज्ञा फल-प्राशका च शकाह्वा शकाह्वा-शकाख्या शका च।
शकाक्षान्तरोषा सुरोषा सुरेखा महाशेष-यज्ञोपवीत-प्रिया च॥९॥
जयन्ती जया जाग्रती-योग्यरूपा जयाङ्गा जपध्यान-सन्तुष्ट-संज्ञा।
जय-प्राणरूपा जय-स्वर्णदेहा जय-ज्वालिनी यामिनी याम्यरूपा॥१०॥
जगन्मातृ-रूपा जगद्रक्षणा च स्वधा-वौषडन्ता विलम्बा-विलम्बा।
षडङ्गा महालम्ब-रूपासिहस्ता पदाहारिणी-हारिणी हारिणी च॥११॥
महामङ्गला मङ्गल-प्रेम-कीर्तिर्निशुम्भच्छिदा शुम्भदर्पत्वहा च।
तथाऽऽनन्द-बीजादि-मुक्तस्वरूपा तथा चण्डमुण्डापदा-मुख्यचण्डा॥१२॥
प्रचण्डाप्रचण्डा महा-चण्डवेगा चलच्चामरा चामरा-चन्द्रकीर्तिः।
सुचामीकरा-चित्र-भूषोज्ज्वलाङ्गी सुसङ्गीत-गीतं च पायादपायात्॥१३॥
फलश्रुति
इति ते कथितं देवि नाम्नामष्टोत्तरं शतम्।
गोप्यञ्च सर्वतन्त्रेषु गोपनीयञ्च सर्वदा॥१४॥
(इस प्रकार हे देवि! ये अष्टोत्तरशत नाम कहे गये, ये सभी तन्त्रों में गोपनीय रहे हैं इन्हें गुप्त रखे)
एतस्य सतताभ्यासात्-साक्षाद्देवो महेश्वरः।
त्रिसन्ध्यञ्च महा-भक्त्या पठनीयं सुखोदयम्॥१५॥
(इसका निरंतर पाठ करने से पाठक साक्षात शिवमय हो जाता है, यह सुखप्रद स्तोत्र तीनों संध्याओं में भक्तिपूर्वक पाठ करने योग्य है)
न तस्य दुष्करं किञ्चिज्जायते स्पर्शतः क्षणात्।
स्वकृतं यत्तदेवाप्तं तस्मादावर्तयेत्सदा॥१६॥
(इसके पाठकर्ता को किसी भी प्रकार का अहित नहीं स्पर्श कर सकता, सदा पाठ करना चाहिए)
सदैव सन्निधौ तस्य देवी वसति सादरम्।
अयोगा ये तवैवाग्रे सुयोगाश्च भवन्ति वै॥१७॥
[उसके आस पास आदरपूर्वक देवी(अदृश्य रूप में) वास करती है, उसके दुर्योग भी सुयोग में बदल जाते हैं]
त एवमित्र-भूताश्च भवन्ति तत्प्रसादतः।
विषाणि नोपसर्पन्ति व्याधयो न स्पृशन्ति तान्॥१८॥
(भगवती के प्रसाद से सब मित्र हो जाते हैं, विष बाधा नहीं होती, व्याधियां स्पर्श नहीं करती हैं)
लूता-विस्फोटकास्सर्वे शमं यान्ति च तत्क्षणात्।
जरापलित-निर्मुक्तः कल्पजीवी भवेन्नरः॥१९॥
(लूता, विस्फोटक जैसे सभी रोगोंका शमन उसी क्षण हो जाता है, पाठकर्ता को वृद्धावस्था से मुक्त दीर्घायु प्राप्त होती है)
अपि किं बहुनोक्तेन सान्निध्यं फलमाप्नुयात्।
यावन्मया पुरा प्रोक्तं फलं साहस्र-नामकम्।
तत्सर्वं लभते मर्त्यो महामाया-प्रसादतः॥२०॥
(और अधिक क्या कहूं पाठकर्ता को भगवती मातंगी की सन्निधि का फल प्राप्त होता है , जो मैने पहले मातंगी सहस्रनाम स्तोत्र का फल बतलाया वह सब महामाया के प्रसाद से मर्त्यलोक में ही प्राप्त हो जाता है)
॥श्रीरुद्र-यामलोक्तं मातङ्गी-शतनाम-स्तोत्रं शुभमस्तु॥
स्तोत्र पाठ समर्पण - दाहिने हाथ में जल लेकर देवी को अर्पण करे- अनेन अष्टोत्तरशतनामाख्य स्तोत्र पाठेन श्री मातंगी परदेवता प्रीयताम्, न मम्।
इसके बाद भगवती मातंगी के निम्न स्तोत्रों का पाठ करते जाए-
श्री मातङ्गी त्रैलोक्य मंगल कवचम्
श्री देव्युवाच
साधु साधु महादेव कथयस्व सुरेश्वर।
मातङ्गी-कवचन्दिव्यं सर्वसिद्धि-करन्नृणाम्॥१॥
(देवी ने कहा - हे महादेव! आपको साधुवाद, हे सुरेश्वर! मनुष्यों को सभी सिद्धियों को देने वाले मातंगी कवच को कहिये)
श्री ईश्वर उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि मातङ्गीकवचं शुभम्।
गोपनीयं महादेवि मौनी जापं समाचरेत्॥२॥
(ईश्वर बोले - हे देवि! सुनो, शुभ मातङ्गीकवच को कहता हूँ, हे महादेवि! यह गोपनीय है इसका मौन रहकर जप किया जाय)
विनियोग- (हाथ में जल लेकर भूमि पर छोड़ें) अस्य श्रीमातङ्गी-कवचस्य दक्षिणामूर्तिर्ऋषिः विराट् छन्दो मातङ्गी देवता मातंगी भगवती प्रीतिद्वारा चतुर्वर्गसिद्धये पाठे विनियोगः॥
अब श्री मातंगी कवच का पाठ करें -
शिरो मातङ्गिनी पातु भुवनेशी तु चक्षुषी।
तोडला कर्ण-युगलं त्रिपुरा वदनं मम॥३॥
पातु कण्ठे महामाया हृदि माहेश्वरी तथा।
त्रिपुष्पा पार्श्वयोः पातु गुदे कामेश्वरी मम॥४॥
ऊरुद्वये तथा चण्डी जङ्घयोश्च हरप्रिया।
महामाया पादयुग्मे सर्वाङ्गेषु कुलेश्वरी॥५॥
अङ्गम्प्रत्यङ्गकञ्चैव सदा रक्षतु वैष्णवी।
ब्रह्मरन्ध्रे सदा रक्षेन्मातङ्गी नाम संस्थिता॥६॥
ललाटे रक्षयेन्नित्यं महा-पिशाचिनीति च।
नेत्राभ्यां सुमुखी रक्षेद्देवी रक्षतु नासिकाम्॥७॥
महापिशाचिनी पायान्मुखे रक्षतु सर्वदा।
लज्जा रक्षतु मां दन्ते चोष्ठौ संमार्जनीकरी॥८॥
चिबुके कण्ठदेशे तु चकारत्रितयम्पुनः।
सविसर्गं महादेवी हृदयम्पातु सर्वदा॥९॥
नाभिं रक्षतु मा लोला कालिकावतु लोचने।
उदरे पातु चामुण्डा लिङ्गे कात्यायनी तथा॥१०॥
उग्रतारा गुदे पातु पादौ रक्षतु चाम्बिका।
भुजौ रक्षतु शर्वाणी हृदयञ्चण्ड-भूषणा॥११॥
जिह्वायां मातृका रक्षेत्पूर्वे रक्षतु पुष्टिका।
विजया दक्षिणे पातु मेधा रक्षतु वारुणे॥१२॥
नैर्ऋत्यां सुदया रक्षेद्वायव्याम्पातु लक्ष्मणा।
ऐशान्यां रक्षयेद्देवी मातङ्गी शुभकारिणी॥१३॥
रक्षेत्सुरेशा चाग्नेये बगला पातु चोत्तरे।
ऊर्ध्वम्पातु महादेवी देवानां हितकारिणी॥१४॥
पाताले पातु मां नित्यं वशिनी विश्व-रूपिणी।
प्रणवञ्च ततो माया कामबीजञ्च कूर्च्चकम्॥१५॥
मातङ्गिनी ङेयुतास्त्रँ वह्नि-जायावधिर्मनुः।
सार्द्धैकादश-वर्णा सा सर्वत्र पातु मां सदा॥१६॥
इति ते कथितन्देवि गुह्याद्गुह्य-तरम्परम्। त्रैलोक्य-मङ्गलन्नाम कवचन्देव-दुर्लभम्॥१७॥
(देवि! इस प्रकार यह गुप्त से भी परम गुप्त देवों को भी दुर्लभ यह त्रैलोक्य मंगल नाम का कवच कहा गया)
य इदम्प्रपठेन्नित्यं जायते सम्पदालयम्।
परमैश्वर्यमतुलम् प्राप्नुयान्नात्र संशयः॥१८॥
(जो इसको नित्य पढ़ता है सम्पत्तिवान होता है, अतुल्य परम ऐश्वर्य उसे प्राप्त होता है इसमें संशय नहीं है)
गुरुमभ्यर्च्च्य विधिवत् कवचम्प्रपठेद्यदि।
ऐश्वर्यं सु-कवित्वञ्च वाक्सिद्धिं लभते ध्रुवम्॥१९॥
(विधिवत् गुरु पूजा करके यदि यह कवच पढ़ता है तो पाठकर्ता को ऐश्वर्य, सुन्दर कविता रचने वाली, वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है....)
नित्यं तस्य तु मातङ्गी महिला मङ्गलञ्चरेत्।
ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च ये देवाः सुर-सत्तमाः॥२०॥
(....प्रतिदिन भगवती मातंगी उसका मंगल करती हैं, ब्रह्मा,विष्णु,रुद्र आदि उत्तम देवगण....)
ब्रह्मराक्षसवेताला ग्रहाद्या भूत-जातयः।
तन्दृष्ट्वा साधकन्देवि लज्जायुक्ता भवन्ति ते॥२१॥
(... ब्रह्मराक्षस, वेताल्, ग्रह आदि भूत गण ये सब उस भक्तिमान साधक को देखकर लज्जित हो जाते हैं)
कवचं धारयेद्यस्तु सर्वसिद्धिं लभेद् ध्रुवम्।
राजानोऽपि च दासत्वं षट्कर्माणि च साधयेत्॥२२॥
सिद्धो भवति सर्वत्र किमन्यैर्बहु भाषितैः।
(इस कवच को जो धारण करता है सर्व सिद्धियां प्राप्त होती हैं, राजा भी उसके दास हो जाते हैं,उससे षट्कर्म सधता है, और अधिक क्या कहा जाय सर्वत्र सिद्ध हो जाता है)
इदं कवचमज्ञात्वा मातङ्गीँ यो भजेन्नरः॥२३॥
अल्पायुर्निर्द्धनो मूर्खो भवत्येव न संशयः।
(इस कवच को बिना जाने मातंगी भगवती को जो नर भजता है अल्पायु, निर्धन, मूर्ख ही हो जाता है इसमें संदेह नहीं)
गुरौ भक्तिः सदा कार्या कवचे च दृढा मतिः,
तस्मै मातङ्गिनी देवी सर्व-सिद्धिम्प्रयच्छति॥२४॥
(ध्यान रहे कि पाठकर्ता सदा गुरु की भक्ति करे, और इस कवच में दृढ़ विश्वास हो तभी मातङ्गिनी देवी सभी सिद्धि प्रदान करती हैं)
॥नन्द्यावर्ते उत्तरखण्डे त्वरित-फल-दायिनी मातङ्गी-कवचं शुभमस्तु॥
स्तोत्र पाठ समर्पण - दाहिने हाथ में जल लेकर देवी को अर्पित करे- अनेन त्वरित-फल-दायिनी मातंगी त्रैलोक्य मंगल कवचाख्य स्तोत्र पाठेन श्री मातंगी परदेवता प्रीयताम् , न मम्।
श्री मातङ्गी हृदय स्तोत्रम्
एकदा कौतुकाविष्टा भैरवं भूतसेवितम्।
भैरवी परिपप्रच्छ सर्वभूतहिते रता॥१॥
(एक बार उत्सुकतावश भगवती भैरवी ने प्राणियों द्वारा सेवित जनकल्याणकारी भैरव जी से पूछा)
श्री भैरव्युवाच
भगवन्सर्व-धर्मज्ञ भूत-वात्सल्य-भावन।
अहं तु वेत्तुमिच्छामि सर्व-भूतोपकारम्॥२॥
(श्रीभैरवी जी ने कहा, हे सभी धर्मों के ज्ञाता, सभी प्राणियों पर दया करने वाले भगवन्! मैं सभी प्राणियों पर उपकार करने वाला साधन जानना चाहती हूं)
केन मन्त्रेण जप्तेन स्तोत्रेण पठितेन च।
सर्वथा श्रेयसां प्राप्तिर्भूतानां भूतिमिच्छताम्॥ ३॥
(किस मन्त्र के जपने और स्तोत्र के पढ़ने से वैभव के इच्छुकों को सभी श्रेयों की प्राप्ति होती है)
श्री भैरव उवाच
शृणु देवि तव स्नेहात्प्रायो गोप्यमपि प्रिये।
कथयिष्यामि तत्सर्वं सुखसम्पत्करं शुभम्॥४॥
(श्री भैरव जी ने कहा - हे देवि सुनो तुम्हारे स्नेह के कारण गोपनीय होने पर भी हे प्रिये मैं सभी सुख सम्पति देने वाले शुभ स्तोत्र को कहता हूं )
पठतां शृण्वतां नित्यं सर्वसम्पत्ति-दायकम्।
विद्यैश्वर्य-सुखावाप्ति-मङ्गलप्रद-मुत्तमम्॥५॥
(यह प्रतिदिन पढ़ने सुनने से सभी सम्पत्तियों , विद्या, ऐश्वर्य, सुख को देने वाला मंगलमय, उत्तम स्तोत्र है)
मातंग्या हृदयं स्तोत्र दुःखदारिद्र्य-भञ्जनम्।
मङ्गलं मङ्गलानां च ह्यस्ति सर्व-सुखप्रदम्॥ ६॥
(भगवती मातंगी का हृदय स्तोत्र दुख, दरिद्रता दूर करने वाला, मंगलों का भी मंगल करने व सभी सुख देने वाला है)
विनियोग(विनियोग पढ़कर भूमि पर जल छोड़ें)
ॐ अस्य श्रीमातङ्गी-हृदय-स्तोत्र-मन्त्रस्य दक्षिणामूर्तिर्ऋषिः,
विराट् छन्दः, मातङ्गी देवता, ह्रीं बीजं, हूं शक्तिः, क्लीं कीलकं, सर्व-वाञ्छितार्थ-सिद्धये पाठे विनियोगः॥
ऋष्यादिन्यास (सम्बन्धित अंग का स्पर्श करे)
श्री दक्षिणामूर्तिर्ऋषये नमः शिरसि।
विराट्-छन्दसे नमः मुखे।
श्रीमातङ्गी-देवतायै नमः हृदि।
ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये।
हूं शक्तये नमः पादयोः।
क्लीं कीलकाय नमः नाभौ।
भगवती मातंगी प्रीतिद्वारा सर्व-वाञ्छितार्थ सिद्धये स्तोत्र पाठे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे।
हृदयादि-षडङ्गन्यास
ह्रीं हृदयाय नमः।
क्लीं शिरसे स्वाहा।
हूं शिखायै वषट्।
ह्रीं नेत्रत्रयाय वौषट्।
क्लीं कवचाय हुम्।
हूं अस्त्राय फट्।
करन्यास
ह्रीं अङ्गुष्ठाभ्यां नमः।
क्लीं तर्जनीभ्यां नमः।
हूं मध्यमाभ्यां नमः।
ह्रीं अनामिकाभ्यां नमः।
क्लीं कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
हूं करतल-करपृष्ठाभ्यां नमः।
अब हाथों में फूल लेकर यह स्तोत्र पढ़े-
ध्यान
ॐ श्यामां शुभ्रांशु-भालां त्रि-कमल-नयनां रत्न-सिंहासनस्थां
भक्ताभीष्ट-प्रदात्रीं सुर-निकरकरा-सेव्य-कञ्जांघ्रि-युग्माम्।
(जो श्यामवर्ण की हैं,मस्तक पर चन्द्र को धारण करने वाली,तीन कमल सदृश नेत्रों वाली, रत्नमय सिंहासन पर विराजित हैं, भक्तों को अभीष्ट फल देने वाली हैं, देव समूहों द्वारा जिनके दोनों चरण कमल सेवित होते हैं)
नीलाम्भोजांशु-कान्तिं निशिचर-निकरारण्य-दावाग्निरूपां
पाशं खड्गं चतुर्भिर्वर-कमलकरैः खेटकं चाङ्कुशं च
मातङ्गीमावहन्ती-मभिमत-फलदां मोदिनीं चिन्तयामि॥७॥
(नीलकमल पुष्प सदृश कान्ति वाली, निशाचर समूह के लिये दावाग्नि के समान, चारों करकमलों में पाश, खड्ग, ढाल, अंकुश धारण करने वाली, मनोवांछित फलप्रदा, प्रसन्नवदना भगवती मातंगी का मैं चिन्तन करता हूँ)
नमस्ते मातंग्यै मृदु-मुदित-तन्वै तनुमतां
पर-श्रेयोदायै कमल-चरण-ध्यान-मनसाम्।
सदा संसेव्यायै सदसि विबुधैर्दिव्य-धिषणैर्दयार्द्रायै देव्यै दुरित-दलनोद्दण्ड-मनसे॥८॥
परं मातस्ते यो जपति मनुमव्यग्र-हृदयः
कवित्वं कल्पानां कलयति सुकल्पः प्रतिपदम्।
अपि प्रायो रम्यामृतमय-पदा तस्य ललिता
नटीमन्या वाणी नटति रसनायां चपलिता॥९॥
तव ध्यायन्तो ये वपुरनु-जपन्ति प्रवलितं
सदा मन्त्रं मातर्नहि भवति तेषां परिभवः।
कदम्बानां मालाः शिरसि तव युञ्जन्ति सदये
भवन्ति प्रायस्ते युवति-जनयूथ-स्ववशगाः॥१०॥
सरोजैः साहस्रैः सरसिज-पदद्वन्द्वमपि ये
सहस्रं नामोक्त्वा तदपि तव ङेऽन्तं मनुमितम्।
पृथङ्नाम्नां तेनायुत-कलितमर्चन्ति खलु ते
सदा देवव्रात-प्रणमित-पदाम्भोज-युगलाः॥११॥
तव प्रीत्यै मातर्द्ददति बलिमाधाय बलिना
समत्स्यं मांसं वा सुरुचि-रसितं राज-रुचितम्।
सुपुण्या ये स्वान्तस्तव-चरण-मोदैक-रसिका
अहो भाग्यं तेषां त्रिभुवनमलं वश्यमखिलम्॥१२॥
लसल्लोल-श्रोत्राभरण-किरणक्रान्ति-कलितं
मित-स्मित्यापन्न-प्रतिभितममन्नं विकरितम्।
मुखाम्भोजं मातस्तव परिलुठद्भ्रू-मधुकरं
रमा ये ध्यायन्ति त्यजति न हि तेषां सुभवनम्॥१३॥
परः श्रीमातंग्या जयति हृदयाख्यः सुमनसाम्-
अयं सेव्यः सुद्योऽभिमत-फलदश्वाति-ललितः।
(श्रेष्ठ देवी भगवती श्री मातंगी की जय जय कार करने वाला यह हृदय नाम से प्रसिद्ध स्तोत्र सुन्दर मनवालों द्वारा पूजित मनचाहा फल देने वाला और अति मनोहर है।)
नरा ये शृण्वन्ति स्तवमपि पठन्तीममनिशं
न तेषां दुःप्राप्यं जगति यदलभ्यं दिविषदाम्॥१४॥
(जो व्यक्ति ये स्तोत्र सुनते हैं, इसे दिन-रात पढ़ते भी हैं, उनको संसार में वह दुष्प्राप्य नहीं है जो स्वर्ग का सुख भोगने वालों के लिए भी दुर्लभ है)
धनार्थी धनमाप्नोति दारार्थी सुन्दरीं प्रियाम्।
सुतार्थी लभते पुत्रं स्तवस्यास्य प्रकीर्त्तनात्॥१५॥
(इस स्तोत्र के नियमित कीर्तन से धनार्थी को धन मिलता है, अविवाहित को सुन्दर पत्नी, पुत्र के इच्छुक को पुत्रलाभ होता है)
विद्यार्थी लभते विद्यां विविधां विभव-प्रदाम्।
जयार्थी पठनादस्य जयं प्राप्नोति निश्चितम्॥१६॥
(विद्यार्थी को विभिन्न ऐश्वर्य प्रद विद्याओं का लाभ होता है, विजय के इच्छुक को निश्चित ही विजय प्राप्ति होती है)
नष्टराज्यो लभेद्राज्यं सर्व-सम्पत्-समाश्रितम्।
कुबेरसम-सम्पत्तिः स भवेधृदयं पठन्॥१७॥
(जो यह हृदय स्तोत्र पढ़ता है यदि राज्य खो दिया हो उसे सभी सम्पदाओं से युक्त राज्य प्राप्त होता है, कुबेर समान सम्पत्ति प्राप्त होती है)
किमत्र बहुनोक्तेन यद्यदिच्छति मानवः।
मातङ्गी हृदय-स्तोत्र-पाठात्-तत्सर्वमाप्नुयात्॥१८॥
(और अधिक क्या कहें मनुष्य जो जो इच्छा करता है मातंगी हृदय स्तोत्र के पाठ से वह सब प्राप्त होता है)
॥श्रीदक्षिणामूर्ति-संहितायां श्रीमातङ्गी-हृदय-स्तोत्रं शुभमस्तु ओऽम् तत्सत्॥
स्तोत्र पाठ समर्पण - फूल चढ़ाकर दाहिने हाथ में जल लेकर देवी को अर्पित करे- अनेन हृदयाख्य स्तोत्र पाठेन श्री मातंगी परदेवता प्रीयताम् , न मम्।
मातंगी स्तोत्रम्
ईश्वर उवाच -
आराध्य मातश्चरणाम्बुजे ते ब्रह्मादयो विस्तृत-कीर्तिमापुः।
अन्ये परं वा विभवं मुनीन्द्राः परां श्रियं भक्तिभरेण चान्ये॥१॥
(ईश्वर ने कहा - हे माते! ब्रह्मादि देवों ने आपके चरण कमलों की आराधना करके विख्यात यशलाभ प्राप्त किया। अन्य श्रेष्ठ मुनिगणों ने परमा मन्त्रशक्ति को और दूसरे लोगों ने भी तुम्हारी भक्ति के प्रभाव से अपार ऐश्वर्य को प्राप्त किया)
नमामि देवीं नव-चन्द्र-मौलेर्मातङ्गिनीं चन्द्र-कलावतंसाम्।
आम्नाय-वाग्भिः-प्रतिपादितार्थं प्रबोधयन्तीं प्रियमादरेण॥२॥
(जो वेदवाक्यों द्वारा प्रमाणित अर्थ को आदरपूर्वक अपने प्रिय भक्तों को बताकर प्रबुद्ध करती हैं, चन्द्रकला युक्त मस्तक वाली, मस्तक पर नवीन चन्द्रमा धारण करने वाले शिवजी की कामिनी, उन मातंगिनी देवी को नमस्कार है।)
विनम्र-देवासुर-मौलि-रत्नैर्विराजितन्ते चरणारविन्दम्।
अकृत्रिमाणा-वचसा-विशुक्लम्पदाम्पदं शिक्षित-नूपुराभ्याम्,
भजन्ति ये देवि महीपतीनां व्रजन्ति ते सम्पदमादरेण॥३॥
(हे देवि आपके ये चरण कमल, प्रणाम करते हुए देवासुरों के मुकुट-रत्नों से सदैव सुशोभित रहते हैं, राजाओं के अकृत्रिम स्तुतिवाक्य रूपी कुशल नूपुरों के द्वारा शुभ्र हो रहे आपके चरणों को जो भजते हैं वो ऐश्वर्य को सम्मानपूर्वक प्राप्त करते हैं।)
मातंगिनीनां गमने भवत्याः शिञ्जीर-मञ्जीरमिदं भजे ते
मातस्त्वदीयं चरणारविन्द-मकृत्रिमाणां वचनं विशुद्धम्॥४॥
(गजगामिनी सुन्दर स्त्री के समान चलते समय आपके चरण कमलों के नूपुरों की जो मधुर ध्वनि होती है उसकी मैं वन्दना करता हूँ, उसके प्रभाव से भक्तों के मुख से विशुद्ध वचन ही निकलते हैं)
पादात्पदं शिञ्जित-नूपुराभ्यां कृतार्थयन्तीं पदवीं पदाभ्याम्
आस्फाल-यन्तीं कल-वल्लकीन्ताम् मातङ्गिनीं सद्धृदयान्धिनोमि॥५॥
(एक पद के बाद दूसरा पग रखते समय दोनों चरणकमलों के नूपुरों की ध्वनि से आप जब पथ को कृतार्थ करती हैं तब आप सुन्दर वीणावादन करती प्रतीत होती हैं, उन्हीं सहृदया मातंगिनी आपकी मैं वंदना करता हूँ)
लीलांशुकाबद्ध-नितम्ब-विम्बाम् तालीदलेनार्पित-कर्णभूषाम्।
माध्वी-मदोद्घूर्णित-नेत्र-पद्माम्
घनस्तनीं शम्भु-वधूं नमामि॥६॥
(जिनकी कमर विलासपूर्ण पट्ट वस्त्र से सुशोभित है, ताड़पत्र के आभूषण कानों में धारण किये हैं, माध्वी मद्यपान के मद से जिनके नेत्र कमल चंचल हैं, उन विशाल वक्षस्थल वाली शिवपत्नी को नमस्कार है।)
तडिल्लता-कान्तमलक्ष्य-भूषम् चिरेण लक्ष्यं नवलोम-राज्या।
स्मरामि भक्त्या जगतामधीशे बलि-त्रयाढ्यान्तव मध्यमम्ब॥७॥
[हे अम्बे! आपकी कटि(कमर) विद्युल्लता के समान तेजयुक्त व इतनी सूक्ष्म है कि आभूषणों तक तो नहीं दिखाई देती, केवल कृष्णवर्ण रोमपंक्ति की सहायता से ही विलम्ब से आपकी त्रिबली दिख पाती है, हे जगदीश्वरी! आपकी कमर पर सज्जित तीनों वल्लियों(रेखाओं) का मैं भक्ति पूर्वक स्मरण करता हूँ।]
नीलोत्पलानां श्रियमावहन्तीम् कान्त्या कटाक्षैः कमलाकराणाम् ।
कदम्ब-मालाञ्चित-केशपाशां मतङ्ग-कन्यां हृदि भावयामि॥८॥
(जो अपने शरीर की आभा से नीलकमलों की छटा का बोध कराती हैं, जिनकी कृपादृष्टि भौरों की शोभा प्रस्तुत करती हैं। जिनके केशपाश कदम्ब की पुष्पमाला से शोभित हैं उन मतंग कन्या का मैं हृदय में ध्यान करता हूं।)
ध्यायेयमारक्त-कपोल-बिम्बाम् बिम्बाधरन्यस्त-ललाम-रम्यम् आलोल-नीलालक-मायताक्षम् मन्दस्मितन्ते वदनं महेशि॥९॥
(हे महेशि! आपके कपोल रक्त वर्ण के हैं, होंठ रमणीय रत्नों के समान हैं, सुन्दर केशों की अलकें मुख के चारों ओर चंचलता पूर्वक झूल रही हैं,मुख पर मंद मुस्कान है, आपके ऐसे मुख कमल का मैं ध्यान करता हूं।)
स्तुत्यानया शङ्कर-धर्मपत्नीम् मातङ्गिनीं-वागधि-देवतां
ताम् स्तुवन्ति ये भक्तियुता मनुष्याः
परां श्रियन्नित्य-मुपाश्रयन्ति, परत्र कैलासतले वसन्ति॥१०॥
(जो मनुष्य भक्तियुक्त होकर शंकरजी की धर्मपत्नी, वाणी की अधिष्ठात्री भगवती मातंगिनी की इस स्तव द्वारा स्तुति करते हैं वे निरंतर श्रेष्ठ ऐश्वर्य प्राप्त करके अंत में कैलास में वास करते हैं)
उद्यद्भानु-मरीचि-वीचि-विलसद्वासो वसानां परां
गौरीं सञ्गति-पानकर्पर-करामानन्द-कन्दोद्भवाम् ।
( उदीयमान सूर्य किरणों की चमक के समान श्रेष्ठ वस्त्र पहनी हुईं, गौरी, हाथों में कपाल रूपी पानपात्र धारण करने वाली, आनंद की जड़ से उत्पन्न...)
गुञ्जाहार-चलद्विहार-हृदयामापीन-तुङ्गस्तनीं
मत्तस्मेर-मुखीं नमामि सुमुखीं शवासनांसेदुषीम्॥११॥
[....हृदय में गुंजा का हार पहनकर विचरण करने वाली, उन्नतवक्षा(पालनकर्त्री), आनंदपूर्ण प्रसन्न मुख वाली, सुन्दर मुख वाली, शव रूपी आसन पर स्थित भगवती मातंगी को नमस्कार है ]
।।श्री मातंगी स्तोत्रम् शुभमस्तु ओऽम् तत्सत्।।
अब पुष्प अर्पित करें...
क्षमा प्रार्थना - हाथ जोड़कर बोले - मन्त्रहीनं, क्रियाहीनं, भक्तिहीनं सुरेश्वरी, यत्पूजितम् महादेवी प्रसीद परमेश्वरी।
स्तोत्र पाठ समर्पण - दाहिने हाथ में जल लेकर देवी को अर्पित करे- अनेन श्रीमातंगीस्तोत्र पाठेन श्री मातंगी परदेवता प्रीयताम्, न मम्,
गुह्यातिगुह्य गोप्त्री त्वम् गृहाणास्मद्कृतं जपम्, सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादान् महेश्वरी।
इस प्रकार से यह सरल किंतु प्रभावी मातंगी स्तोत्रात्मक उपासना सम्पन्न होती है। मंगलमयी मातंगी भगवती हम सबका मंगल करें....
Very nice thank you for sharing नरक चतुर्दशी मराठी माहिती व शुभेच्छा संदेश वाचा !
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा लगा पढ़कर। बहुत ही उपयोगी है यह। हिंदू धर्म हमेशा से ही अच्छा रहा है और रहेगा।
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