नोट - यहाँ प्रकाशित साधनाओं, स्तोत्रात्मक उपासनाओं को नियमित रूप से करने से यदि किसी सज्जन को कोई विशेष लाभ हुआ हो तो कृपया हमें सूचित करने का कष्ट करें।

⭐विशेष⭐


23 अप्रैल - मंगलवार- श्रीहनुमान जयन्ती
10 मई - श्री परशुराम अवतार जयन्ती
10 मई - अक्षय तृतीया,
⭐10 मई -श्री मातंगी महाविद्या जयन्ती
12 मई - श्री रामानुज जयन्ती , श्री सूरदास जयन्ती, श्री आदि शंकराचार्य जयन्ती
15 मई - श्री बगलामुखी महाविद्या जयन्ती
16 मई - भगवती सीता जी की जयन्ती | श्री जानकी नवमी | श्री सीता नवमी
21 मई-श्री नृसिंह अवतार जयन्ती, श्री नृसिंहचतुर्दशी व्रत,
श्री छिन्नमस्ता महाविद्या जयन्ती, श्री शरभ अवतार जयंती। भगवत्प्रेरणा से यह blog 2013 में इसी दिन वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को बना था।
23 मई - श्री कूर्म अवतार जयन्ती
24 मई -देवर्षि नारद जी की जयन्ती

आज - कालयुक्त नामक विक्रमी संवत्सर(२०८१), सूर्य उत्तरायण, वसन्त ऋतु, चैत्र मास, शुक्ल पक्ष।
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छिन्नमस्ता महाविद्या हैं वज्र वैरोचनीया व शिवभाव-प्रदा

गवती आद्याशक्ति से उत्पन्न दस महाविद्याओं में अनेक गूढ़ रहस्य छिपे हुए हैं। इन्हीं में से एक हैं भगवती छिन्नमस्ता, जिनकी जयंती वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को बतलाई गई है। माँ छिन्नमस्ता का स्वरूप अत्यन्त ही गोपनीय है। जिसको कोई अधिकारी साधक ही जान सकता है। परिवर्तनशील जगत् का अधिपति कबन्ध को बतलाया गया है और उसकी शक्ति ही भगवती छिन्नमस्ता कहलाती हैं। विश्व में वृद्धि-ह्रास तो सदैव होता ही रहता है। जब ह्रास  की मात्रा कम और विकास की मात्रा अधिक होती है तब भुवनेश्वरी माँ का प्राकट्य होता है। इसके विपरीत जब निर्गम अधिक और आगम कम होता है तब छिन्नमस्ता माँ का प्राधान्य होता है।
धर्म ग्रन्थों में ऐसा विधान बतलाया गया है कि आधी रात अर्थात् चतुर्थ संध्याकाल में छिन्नमस्ता माँ की उपासना से साधक को सरस्वती सिद्ध हो जाती हैं। शत्रुविजय, समूह-स्तम्भन, राज्य-प्राप्ति और दुर्लभ मोक्ष-प्राप्ति के लिये छिन्नमस्ता माँ की उपासना अमोघ है।

      महाविद्याओं में इनका तीसरा स्थान है। इनके प्रादुर्भाव की कथा इस प्रकार है- एक बार भगवती भवानी अपनी सहचरी जया और विजया के साथ मन्दाकिनी में स्नान करने के लिये गयीं। स्नानोपरान्त कामाग्नि से पीड़ित होकर वे कृष्णवर्ण की हो गयीं। उस समय क्षुधार्त भी हो जाने उनकी सहचरियों ने देवी से कुछ भोजन करने के लिये माँगा। देवी ने उनको कुछ समय प्रतीक्षा करने के लिये कहा। थोडी देर प्रतीक्षा करने के बाद सहचरियों ने जब पुन: भोजन के लिये निवेदन किया, तब देवी ने उनसे कुछ देर और प्रतीक्षा करने के लिये कहा। इस पर सहचरियों ने देवी से विनम्र स्वर में कहा कि "माता तो अपने शिशुओं को भूख लगने पर अविलम्ब भक्ष्य-भोज्य प्रदान करती है क्योंकि वह दयामयी होती है, आप हमारी उपेक्षा क्यों कर रही हैं?" 
अपनी सहचरियों के मधुर वचन सुनकर कृपामयी देवी ने अपने खड्ग से अपना ही सिर काट दिया। कटा हुआ सिर देवी के बाएँ हाथ में आ गिरा और उनके कबन्ध से रक्त की तीन धाराएँ प्रवाहित हुईं। उन्होंने दोनों धाराओं को अपनी दोनों सहचरियों की ओर प्रवाहित कर दिया, जिसे पीती हुईं दोनों प्रसन्न होने लगीं और तीसरी धारा को देवी स्वयं पान करने लगीं। तभी से देवी छिन्नमस्ता के नाम से प्रसिद्ध हुईं। कहीं पर जया और विजया का अन्य नाम डाकिनी और वर्णिनी भी दिया गया है।

झारखंड राज्य की राजधानी रांची से लगभग 80 किलोमीटर दूरी पर रजरप्पा में श्री छिन्नमस्ता महाविद्या  का मंदिर स्थित है
रजरप्पा - छिन्नमस्ता शक्तिपीठ

भारत के झारखंड राज्य की राजधानी रांची से लगभग अस्सी किलोमीटर की दूरी पर रजरप्पा में श्री छिन्नमस्ता महाविद्या का मंदिर स्थित है। यहां श्री छिन्नमस्तिका महाविद्या की सुंदर प्रतिमा स्थित है।
     धर्म ग्रन्थों में ऐसा विधान बतलाया गया है कि आधी रात अर्थात् चतुर्थ संध्याकाल में छिन्नमस्ता माँ की उपासना से साधक को सरस्वती सिद्ध हो जाती हैं। शत्रुविजय, समूह-स्तम्भन, राज्य-प्राप्ति और दुर्लभ मोक्ष-प्राप्ति के लिये छिन्नमस्तिका माँ की उपासना अमोघ है।

हिमाचल प्रदेश के ऊना नामक जिले में भगवती छिन्नमस्ता का शक्तिपीठ चिन्तपूरणी नाम से सुप्रसिद्ध है। मनोकामना पूर्ण करने वाली होने से इनका - चिन्त्यपूरणी या चिंतपूरणी नाम हो गया।
चिन्तपूर्णी शक्तिपीठ - हिमाचल

हिमाचल प्रदेश के ऊना नामक जिले में भगवती छिन्नमस्ता का शक्तिपीठ चिन्तपूरणी नाम से सुप्रसिद्ध है। मनोकामना पूर्ण करने वाली होने से इनका - चिन्त्यपूरणी या चिंतपूरणी नाम हो गया।

  छिन्नमस्ताजी का आध्यात्मिक स्वरूप अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। छिन्न यज्ञशीर्ष की प्रतीक ये देवी श्वेतकमल-पीठ पर खड़ी हैं। दिशाएँ ही इनके वस्त्र हैं। इनकी नाभि में योनिचक्र है। कृष्ण (तम) और रक्त (रज) गुणों की देवियों इनकी सहचरियाँ हैं। अपना शीश काटकर भी जीवित हैं। यह अपने-आप में पूर्ण अन्तर्मुखी साधना का संकेत है।



     विद्वानों ने उपरोक्त कथा में सिद्धि की चरम सीमा का निर्देश माना है। योगशास्त्र में तीन ग्रन्थियाँ बतायी गयी हैं जिनके भेदन के बाद योगी को पूर्ण सिद्धि प्राप्त होती है। इन्हें ब्रह्मग्रन्थि, विष्णुग्रन्थि तथा रुद्रग्रन्थि कहा गया है। मूलाधार में ब्रह्मग्रन्थि, मणिपूर में विष्णुग्रन्थि तथा आज्ञाचक्र में रुद्रग्रन्थि का स्थान है। इन तीनों ग्रन्थियों के भेदन से ही अद्वैतानन्द व पूर्णानन्दमयी मुक्ति की प्राप्ति होती है। योगियों का ऐसा अनुभव है कि मणिपूर चक्र के नीचे की नाडियों में ही काम और रति का मूल स्थान है उसी पर छिन्ना महाशक्ति आरूढ हैं इसका ऊर्ध्व प्रवाह होने पर रुद्रग्रन्थि का भेदन होता है।

केवल ब्रह्म ग्रंथि व विष्णु ग्रन्थियों का भेदन होने पर भी यदि साधक के अन्दर रहे हुए अहङ्कार का पूर्ण रूप से अभाव नहीं होता तो पुनः संसार में उसे आना पड़ता है। क्षुद्र हन्ता का विलय तो पराहन्ता में रुद्र-ग्रन्थि का भेदन होने पर ही होता है। महाशक्ति कुण्डलिनी चित्रा, वज्रा और ब्रह्म-नाड़ी के साथ आज्ञाचक्र को भेद कर वज्रा नाड़ी में से प्रवाह करती है, तब यह कार्य सम्पन्न होता है; इसे ही कपाल-भेदन भी कहते हैं। इसके पश्चात्‌ ही शिव की समस्त सिद्धियाँ योगी को प्राप्त होती हैं तथा सोम-सूर्यात्मक समस्त जगत्‌ का पोषण भी उससे होता है। इस मार्ग में "काम" सबसे बड़ी बाधा होता है, इसका उल्लेख भी उपरोक्त कथा में किया गया है।

श्रीभैरवतन्त्र में कहा गया है कि इनकी आराधना से साधक जीवभाव से मुक्त होकर शिवभाव को प्राप्त कर लेता है। वज्र वैरोचनीया छिन्नमस्ता माँ को हमारा अनेकों बार प्रणाम.....

     छिन्नमस्तिका माँ का वज्र वैरोचनी नाम शाक्तों, बौद्धों तथा जैनों में समान रूपसे प्रचलित है। देवी की दोनों सहचरियाँ रजोगुण तथा तमोगुण की प्रतीक हैं, देवी जिस कमल पर बैठी हैं वह विश्वप्रपञ्च का प्रतीक है और कामरति, चिदानन्द की स्थूलवृत्ति है। 
महषि याज्ञवल्क्य, भगवान्‌ परशुराम आदि दिव्य महापुरुष भगवती छिन्नमस्ता के साधक रहे हैं। महर्षि याज्ञवल्क्य ने राजा जनक की सभा में शाकल्य का मूर्धापात इसी शक्ति द्वारा किया था। श्री भगवान्‌ परशुराम ने अपने पिता की आज्ञा से अपनी माता का शिरश्छेद किया था। उनकी माता श्री रेणुका के सती होने से श्री छिन्नमस्ता देवी के तेज ने श्री रेणुका जी में प्रवेश किया। अतः श्री रेणुका जी का भी साधन-पूजन किया जाता है, इनके स्तोत्र भी प्राप्त होते हैं। बृहदारण्यक उपनिषद में वर्णित मधु-विद्या, अश्व-शिर वाले दध्यङ्थर्वण ऋषि से जिसका उपदेश दिया गया है, वह यही है। श्री मत्स्येन्द्रनाथ, श्री गोरखनाथ आदि महासिद्ध इसी महाशक्ति के आराधक थे।
छिन्नमस्ता का स्वरूप अत्यन्त ही गोपनीय है। जिसको कोई अधिकारी साधक ही जान सकता है। परिवर्तनशील जगत् का अधिपति कबन्ध को बतलाया गया है और उसकी शक्ति ही भगवती छिन्नमस्ता कहलाती हैं।

छिन्नमस्तिका महाविद्या की साधना उग्र कही गयी है। अतः योग्य गुरु से इनके मन्त्र की दीक्षा पाकर मन्त्र जप करे। अदीक्षित व्यक्ति को भक्ति मार्ग से भगवती छिन्नमस्ता के अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का पाठ करते हुए इनकी आराधना करनी चाहिए। मन्त्रात्मक उपासकों के लिए देवी छिन्नमस्ता का सरल तांत्रिक गायत्री मन्त्र प्रस्तुत है। 
इसमें स्त्री, शूद्र व जिनका यज्ञोपवीत संस्कार नहीं हुआ है वे ॐ का उच्चारण न करें, वे ॐ रहित मंत्रों का प्रयोग करें।
जिन ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य पुरुषों का जनेऊ संस्कार हो गया वे गायत्री मंत्र के बाद इसे जप सकते हैं।
तन्त्र ग्रंथों में इसका विनियोग नहीं मिलता है अतः केवल न्यास करके इसका जप करें-

श्री छिन्नमस्ता गायत्री मन्त्र 

।। ॐ वैरोचन्यै विद्महे छिन्नमस्तायै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् ।।
(हम वैरोचन(अग्नि) द्वारा उपास्य देवी को जानते हैं और उन छिन्नमस्ता देवी का ही ध्यान करते हैं, वे देवी हमें अपने ज्ञान ध्यान में प्रवृत्त करें)

न्यास : करन्यास -

'ॐ वैरोचन्यै अङ्गुष्ठाभ्यां नमः’—ऐसा कहकर दोनों हाथों के अङ्गुष्ठों का परस्पर स्पर्श करे।

'ॐ विद्महे तर्जनीभ्यां नमः’—ऐसा कहकर दोनों हाथों की तर्जनी अङ्गुलियोंका परस्पर स्पर्श करे। 

'ॐ छिन्नमस्तायै मध्यमाभ्यां नमः’—ऐसा कहकर दोनों हाथों की मध्यमा अङ्गुलियोंका परस्पर स्पर्श करे। 

'ॐ धीमहि अनामिकाभ्यां नमः’—ऐसा कहकर दोनों हाथों की अनामिका अङ्गुलियों का परस्पर स्पर्श करे। 

'ॐ तन्नो देवी कनिष्ठिकाभ्यां नमः’—ऐसा कहकर दोनों हाथों की कनिष्ठिका अङ्गुलियों का परस्पर स्पर्श करे। 

'ॐ प्रचोदयात् करतल-करपृष्ठाभ्यां नमः’—ऐसा कहकर दोनों हाथों की हथेलियों और उनके पृष्ठभागों का स्पर्श करे। 

हृदयादि न्यास - 

'ॐ वैरोचन्यै हृदयाय नमः’—ऐसा कहकर दाहिने हाथकी पाँचों अङ्गुलियोंसे हृदयका स्पर्श करे।

'ॐ विद्महे नमः शिरसि’—ऐसा कहकर दाहिने हाथकी पाँचों अङ्गुलियोंसे मस्तकका स्पर्श करे।

'ॐ छिन्नमस्तायै नमः शिखायां’—ऐसा कहकर दाहिने हाथकी पाँचों अङ्गुलियोंसे शिखा स्थान का स्पर्श करे।

'ॐ धीमहि कवचाय हुम्’—ऐसा कहकर दाहिने हाथकी पाँचों अङ्गुलियोंसे बायें कंधेका और बायें हाथकी पाँचों अङ्गुलियोंसे दाहिने कंधेका स्पर्श करे।

'ॐ तन्नो देवी नेत्रत्रयाय वौषट्’—ऐसा कहकर दाहिने हाथकी पाँचों अङ्गुलियोंके अग्रभागसे दोनों नेत्रोंका तथा ललाटके मध्यभागका अर्थात् वहाँ गुप्तरूपसे स्थित रहनेवाले ज्ञाननेत्र का स्पर्श करे।

'ॐ प्रचोदयात् अस्त्राय फट्’—ऐसा कहकर दाहिने हाथ को सिर के ऊपर से उलटा अर्थात् बायीं तरफ से पीछे की ओर ले जाकर दाहिनी तरफ से आगे की ओर ले आये तथा तर्जनी और मध्यमा अङ्गुलियों से बायें हाथ की हथेली पर ताली बजाये।

एकाक्षर, त्र्यक्षर, चतुरक्षर, पचाक्षर, षडक्षर, त्रयोदश, चतुर्दश, पञ्चदश, षोडशाक्षर आदि इनके मंत्र शास्त्रों में मिलते हैं। क्रम-पूर्वक योग्य गुरु से दीक्षा लेकर ही इनकी विशेष मंत्र साधना करें।

     बृहदारण्यक की अश्वशिर-विद्या, शाक्तों की हयग्रीव विद्या तथा गाणपत्यों के छिन्नशीर्ष गणपति का रहस्य भी छिन्नमस्ता माँ से ही सम्बन्धित है। 
अर्थ-काम की सिद्धि के लिये असुर भी साधना करते थे। हिरण्यकशिपु, वैरोचन आदि ने भी देवी छिन्नमस्ता की साधना की थी। इसीलिये इन्हें वज्र वैरोचनीया भी कहा गया है। वज्र वैरोचनीया नाम होने का दूसरा कारण भी है- वैरोचन अग्नि को कहते हैं। अग्नि के स्थान मणिपूर में श्री छिन्नमस्ता महाविद्या का ध्यान किया जाता है और वज्रानाड़ी में इनका प्रवाह होने से इन्हें वज्रवैरोचनीया कहते हैं।
वैरोचनीं कर्म-फलेषु जुष्टाम्‌। इस देवी अथर्वशीर्ष के इस मंत्र में भी यही बात कही गई है क्योंकि कर्म फल अग्नि द्वारा ही प्राप्त होता है।

श्रीभैरवतन्त्र में कहा गया है कि इनकी आराधना से साधक जीवभाव से मुक्त होकर शिवभाव को प्राप्त कर लेता है। 'हमारा हिन्दू धर्म' ब्लॉग का प्रथम वर्ष पूर्ण होने पर वज्र वैरोचनीया छिन्नमस्ता माँ को हमारा अनेकों बार प्रणाम.....

टिप्पणियाँ

  1. महोदय जी आप से एक बात और पूछना है। कि माँ का मैंने फोटो देखा है तो माता किसी के उपर खड़ी है तो वें कौन है

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    उत्तर
    1. जी... हमारे सनातन ग्रन्थों में वर्णित ध्यान के आधार पर ही चित्र बनाए जाते हैं...
      छिन्नमस्ता महाविद्या के जो ध्यान मन्त्र प्राप्त होते हैं उनके अनुसार 'आलिंगन करते रति व काम' के ऊपर खड़ी हुई हैं मां छिन्नमस्तिका जो कि काम पर विजय प्राप्ति का प्रतीक है...और जैसा कि हम जानते हैं माँ ने मस्तक को भी शरीर से अलग कर दिया है अर्थात चित्तवृत्ति निरोध होने से काम अब बाधा नहीं डाल सकता और ब्रह्मचर्य है तो योग मार्ग प्रशस्त होगा ही...छिन्नमस्तिका महाविद्या की कृपा से ही योगशक्तियाँ प्राप्त होती है.. गूढ़ रहस्य यह है कि कुंडलिनी योग के अनुसार मणिपुर(नाभि) चक्र के नीचे की नाड़ियो में ही काम और रति का निवास स्थान है तथा मणिपुर पर देवी छिन्नमस्ता आरूढ़ हैं तथा इससे ऊपर की ओर कुंडलिनी शक्ति का प्रवाह होने पर ही रुद्रग्रंथि का भेदन होता है जिससे योग द्वारा आध्यात्मिक उन्नति होने का मार्ग प्रशस्त होता है...टिप्पणी के लिए धन्यवाद...
      माँ छिन्नमस्ता महाविद्या हम सबका कल्याण करें..
      जय माँ छिन्नमस्तिका

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  2. ॐ श्रीं ह्लीं ह्लीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचिनिये ह्लीं ह्लीं फट स्वाहा। कृपया बताएं कि ये मंत्र सही है या गलत । माँ के कई मन्त्र बताये गये है । उपरोक्त मन्त्र के बारे में बताएं ।

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    उत्तर
    1. श्रीमान् यह मन्त्र गलत है क्योंकि "ह्लीं" बीज बगलामुखी जी के मन्त्रों में प्रयुक्त होता है...
      इससे मिलता जुलता जो छिन्नमस्तिका मन्त्र "मंत्र महार्णव" ग्रंथ में दिया गया है वो यह है :
      ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं ऐं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा।
      टिप्पणी में अपनी सीमा होती है...इस मन्त्र के विनियोग न्यास आदि भी हैं... उनको जानना हो अथवा हिन्दू धर्म से जुड़ी कोई भी जानकारी चाहिए तो हमारे ईमेल पते Ourhindudharm@outlook.in पर ईमेल भेज सकते हैं वहां उत्तर दे दिया जाएगा...
      इस सप्तदशाक्षर (सत्रह अक्षरों वाले) मन्त्र के अलावा अन्य छिन्नमस्तिका जी के मन्त्रों का भी वर्णन तन्त्र ग्रंथों में मिलता है.. जय माँ छिन्नमस्तिका...

      हटाएं
  3. यहाँ ह्ली नही "ह्रीं" होता है फिर भी बिना योग्य गुरु के कोई अर्थ नहीं है

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    उत्तर
    1. जी हाँ योग्य गुरु के मार्गदर्शन में मंत्र जाप करना ही उत्तम है.. अब जैसे बगलामुखी जी के बीज मन्त्र को ही ले लीजिये "नये साधक" ह्रीं, ह्लीं या ह्ल्रीं बीज में भ्रमित हो जाते है... योग्य गुरु बता सकता है कि परम्परा के अनुसार कहाँ पर ह्रीं होगा और ह्लीं या ह्ल्रीं कौन सा बीजमन्त्र ग्रहण करना उचित है ..

      हटाएं
  4. आदरणीय,
    माँ छिन्नमस्ता गायत्री मंत्र का शुद्ध उच्चारण ज्ञान कहाँ से प्राप्त किया जा सकता है।
    यदि यह संभव न हो सके, तो कृपया शुद्ध मंत्र
    ही उपलब्ध कराने का कष्ट करें।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. महोदय मन्त्र का शुद्ध उच्चारण तो योग्य गुरु ही प्रत्यक्ष रूप में बतला सकता है... बीज मन्त्र उच्चारण में कठिन लग सकते हैं परंतु गायत्री मन्त्र उच्चारण करने में सरल होता है... प्रत्येक मन्त्र का एक निश्चित छन्द होता है...छन्द अर्थात् एक विशेष लय... कुछ लोगों ने छन्दों को यूट्यूब में भी गाकर बतलाया है वहाँ सर्च कर सकते हैं..
      माता छिन्नमस्ता का गायत्री मन्त्र "मन्त्र महार्णव" नामक ग्रंथ में प्राप्त होता है... यह मन्त्र न्यास सहित ऊपर लिख दिया गया है..
      जय माँ छिन्नमस्तिका

      हटाएं
  5. आदरणीय,
    मंत्र को लेकर एक भ्रम उत्पन्न हुआ है, वजह है गूगल में मंत्र को अलग-अलग तरीके से लिखा जाना....यथा;
    ॐ वैरोचन्यै च विद्महे
    छिन्नमस्तायै धीमहि
    तन्नो देवी प्रचोदयात् ।।
    इस मंत्र में वैरोचन्यै शब्द के पश्चात च आएगा, अथवा नहीं.....
    यद्यपि आपने इस मंत्र को ऊपर उल्लेखित किया है...जिसमें च शब्द नहीं जुड़ा है.....
    टंकण की त्रुटिवश अगर कहीं कोई अनजाने में चूक हो गई हो, तो कहीं अर्थ का अनर्थ न हो जाए..... लिहाज़ा पुनः मार्गदर्शन करने का अनुरोध है....विश्वास है, आप मेरी मूढ़ता को नजरअंदाज कर मेरी शंका का समाधान करेंगे...
    कष्ट हेतु क्षमा सहित....
    सादर,

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर

    1. नमस्कार महोदय... टंकण त्रुटि नहीं है.. आपके अनुरोध पर मैने इस मन्त्र के बारे में मेरे पास उपलब्ध ग्रंथों पुनः देखा... लेकिन शुद्ध उच्चारण वही है जो ऊपर हमने लिखा है... एक पुस्तक मन्त्रकोश में तो साफ साफ लिखा है कि उस मन्त्र में च लिखना अशुद्ध है अर्थात् च अक्षर इस मन्त्र में नहीं आएगा... असल में पुरश्चर्यार्णव नाम के ग्रंथ में यह मन्त्र संस्कृत गद्य में लिखा है मैं आपको उसका हिन्दी अर्थ बताता हूं
      "पहले वैरोचन्यै विद्महे कहो च(और) छिन्नमस्तायै कहो च(और फिर) धीमहि तन्नो देवी पद बोलो उसके बाद प्रचोदयात् जोड़ना चाहिए".....
      अर्थात् केवल मन्त्र बताने के लिये च अक्षर दो जगह दिया है उसी से यह भ्रम हुआ होगा कि च भी है परंतु इस मन्त्र में च नहीं आएगा..
      निश्चिंत रहें इस ब्लाग के माध्यम से हमारा प्रामाणिक जानकारी देने का ही प्रयास रहेगा...
      अच्छा लगा कि आप सतर्क हैं कि मन्त्र जप में कोई त्रुटि न हो... आपकी उपासना सफल हो शुभकामनाएं... 🙏 जय माँ छिन्नमस्ता...

      हटाएं
  6. आपकी सहृदयता के लिए हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।
    माँ छिन्नमस्ता सभी सनातनधर्मियों को तृप्त करें, इस मंगलकामना के साथ,
    पुनः आभार,
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  7. आदरणीय,
    आपने मेरे अनुरोध पर माँ छिन्नमस्ता काली गायत्री का शुद्ध मंत्र उपलब्ध कराकर विस्तृत जानकारी प्रदान की थी...आज पुनः एक मार्गदर्शन की अपेक्षा कर रहा हूँ.....
    विषय है, माँ काली गायत्री मंत्र।

    कालिकायै च विद्महे,
    स्मशानवासिन्यै धीमहि,
    तन्नो अघोरा प्रचोदयात् ।।

    - मंत्र, बिना ॐ के शुरू है।
    - कालिकायै शब्द के पश्चात च शब्द है।
    - कई जगह पर मंत्र में तन्नो शब्द के बाद घोरा व कहीं अघोरा शब्द मिलता है....क्या सही है ?
    गूगल में लंबे अर्से तक सर्च करने के बाद संतुष्ट होने की जगह भ्रमित हो गया हूँ।
    एक बार पुनः मार्गदर्शन के अनुरोध
    के साथ,
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. महोदय, आपके प्रश्न करने पर मैने मन्त्र शास्त्र की माननीय पुस्तकों में देखा उनके अनुसार आपके जवाब देने का प्रयास करता हूँ:

      1. महोदय काली गायत्री में ॐ अवश्य लगेगा क्योंकि प्रत्येक मन्त्र में लगाने से उस मन्त्र का प्रभाव बढ़ जाता है...
      लेकिन ॐ के विषय में शास्त्रों में कहा जाता है कि महिलाओं और जनेऊ न पहनने वालों को इसका उच्चारण करना नहीं चाहिए क्योंकि ॐ में अपार तेज है जिसे जनेऊ द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है... कुछ विद्वान कहते हैं कि महिला यदि ॐ का लम्बे समय तक उच्चारण करती हैं तो gyno(गर्भाशय) सम्बन्धी समस्या होने से गर्भ धारण करने में समस्या आ सकती है..
      इसीलिए ॐ का प्रयोग जिनका उपनयन(जनेऊ) संस्कार हो गया है वे कर सकते हैं... परंतु जिनका उपनयन नहीं हुआ वे ॐ न लगाएं ऐसा शास्त्र कहते हैं...

      2. च अक्षर यहाँ भी नहीं आएगा

      3. वास्तव में ग्रंथ में शुद्ध रूप "तन्नोऽघोरा" लिखा हुआ है तन्नो शब्द के बाद ऽ चिह्न आया है फिर घोरा लिखा गया है... ये "ऽ" प्लुत स्वर का चिह्न है अर्थात् तन्नो की ओ की मात्रा को थोडा लम्बा खींचना होगा...
      परंतु कुछ लोगों ने ऽ की जगह अ लिख दिया है तो अ बोलना व्याकरण के अनुसार गलत उच्चारण हो जाएगा...वैसे कुछ जगह पर तन्नोघोरा भी लिखा हुआ है तो यह भी शुद्ध ही है... इसलिए जब तन्नोऽघोरा बोलते हो तो घोरा व अघोरा दोनो का उच्चारण हो जाता है.. परन्तु अ नहीं आएगा...
      यह तन्नोऽघोरा शब्द माँ के घोरा/अघोरा दो रूप बतला रहा है... माँ काली का स्वरूप अपने भक्तों के लिए अघोर है अघोर अर्थात् जो भयानक न हो, लेकिन भक्त के शत्रु व दुष्ट जनों के लिए घोर(भय देने वाला) है...

      अतः काली गायत्री का शुद्ध मन्त्र इस प्रकार रहेगा :

      ॐ कालिकायै विद्महे, श्मशानवासिन्यै धीमहि,
      तन्नोऽघोरा प्रचोदयात् ।।
      (तन्नो घोरा भी बोल सकते हैं)

      जय महाकाली 🙏

      हटाएं
    2. आदरणीय,
      मार्गदर्शन हेतु हृदय से आभारी हूँ।
      सच कहूँ, तो यह सौभाग्य की बात है, कि आज आप जैसे उदार व ज्ञानी गुरु अभी भी मौजूद हैं....
      और दुर्भाग्य यह है, कि अत्यंत दुर्लभ हैं....
      यह माँ काली की अनुकंपा है, कि
      उन्होंने मुझे ज्ञान के लिए आपसे भेंट करा दी।
      अत्यंत सरल व शास्त्र-सम्मत तरीके से मंत्र ज्ञान हेतु पुनः आभार....
      सादर,

      हटाएं
  8. बिना गुरु ज्ञान संभव नहीं। आजकल इंटरनेट पर महाविद्या पर बहुत कुछ मिल जाता है पर भ्रम निवारण हेतु समर्पण के साथ योग्य मार्गदर्शन आवश्यक है।
    अनिल श्रीवास्तव, SAY 2 U Media group, Delhi

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    उत्तर
    1. सत्य कहा आपने... योग्य गुरु के सान्निध्य में ही साधना करना उचित है...जय माँ छिन्नमस्ता...

      हटाएं
  9. ‘श्रीं ह्नीं ऎं वज्र वैरोचानियै ह्नीं फट स्वाहा’ ye mantra sahi he mahoday

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी यह गलत है.. ऐसा कोई मन्त्र नहीं है...
      जय माँ छिन्नमस्ता

      हटाएं
  10. ऊँ ह्रीं श्रीं ऊँ ह्रीं क्लीं ऐं हूं फट् छिन्नमस्तायै स्वाहा।। महामाई के इस मंत्र पर प्रकाश डालिए।।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. इसका रहस्य कुछ विस्तृत व हर किसी से न कहने योग्य है कृपया ईमेल के माध्यम से संपर्क करें। जय मां छिन्नमस्ता

      हटाएं
    2. Himanshu ji, जवाब देने के लिए आपका आभार। कृपा करके आप अपना email id दीजिए। मेरा email id: siddharth.pt.asr@gmail.com है।

      हटाएं
  11. माँ छिन्नमस्ता के गायत्री मन्त्र जप का कितना जप व लाभ व सही विधि से अवगत कराये , शत्रु से परेशान एक गृहस्थ व सामान्य पूजा पाठ करने वाले व्यक्ति के लिये शत्रुओं से छुटकारा पाने के लिये और विकास के आप छिन्नमस्ता माँ के किस मन्त्र जप की सलाह देगे व विधि सहित बताने की कृपा करे बड़ी कृपा होगी 🙏

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