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कमला महाविद्या की स्तोत्रात्मक उपासना

'श्री नृसिंह-छिन्नमस्ता-शरभ जयंती' से 'हमारा हिन्दू धर्म व इससे जुड़ी मान्यताएँ' ब्लॉग का शुभारंभ

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त्रों नमस्कार, सर्वप्रथम तो "श्रीनृसिंह-छिन्नमस्ता-शरभ जयंती" की आप सभी को ढेरों शुभकामनाएं। भगवत्कृपा से प्रेरणा हुई कि एक धार्मिक ब्लॉग की शुरुआत करूँ सो आज श्रीनृसिंह-छिन्नमस्ता-शरभ जयंती के शुभ अवसर से शुरुआत कर रहा हूँ "हमारा हिन्दू धर्म व इससे जुड़ी मान्यताएँ" की।  साथ ही फेसबुक पर भी एक पेज भी बनाया जो इसी ब्लॉग के नाम से ही है- हमारा हिन्दू धर्म व इससे जुड़ी मान्यताएँ  कृपया फेसबुक पर भी हमसे जुड़ें और ट्विटरइंस्टाग्राम पर भी जुड़ें

भगवान_नृसिंहजी
भगवान नृसिंह

वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को भगवान नृसिंह जी ने अवतार लेकर भक्त प्रह्लाद की हिरण्यकशिपु से रक्षा की थी इस माध्यम से भगवान विष्णु जी ने हम सभी को संदेश दिया कि बुराई का अंत होकर ही रहता है... भक्त प्रह्लाद से हिरण्यकशिपु नामक उस दानव ने हर वस्तु को इंगित कर पूछा था "क्या यहाँ हैं? तेरे विष्णु क्या वहाँ हैं?" गरम खंभे से बंधे प्रह्लाद कहते, "हाँ हर जगह हैं, नारायण तो कण-कण में बसते हैं" तो वह उसी वस्तु को छिन्न-भिन्न कर विष्णु जी को वहाँ न पा अट्टहास करता हुआ कहता, "अरे कहाँ हैं यहाँ?" ऐसा करते-करते खम्भे तक पहुंचा ही था कि खंभा फाड़ कर स्वयं प्रकट हो गए नृसिंह जी और किया अंत हिरण्यकशिपु का।


छिन्नमस्ता_महाविद्या
भगवती छिन्नमस्ता महाविद्या


इसी के साथ ही आज दसों महाविद्याओं में से एक छिन्नमस्ता जी की जयंती भी है। ये ही चिंतपूरणी मंदिर में विराजने वाली माँ हैं जो पार्वती जी का ही एक रूप है। अपनी सखियों जया और विजया के अनुरोध पर  कि 'एक माँ तो संतान की क्षुधा शांत करने के लिए कुछ भी कर सकती है आप कुछ नहीं करेंगी?' उनकी क्षुधा शांत करने हेतु एक क्षण भी लगाए बिना माँ छिन्नमस्ता ने अपना मस्तक काट डाला -- फिर तीन रक्त धाराएं उनके मस्तक से निकलीं। एक रक्तधारा जया, दूसरी विजया तो तीसरी रक्तधारा माँ के हाथ में स्थित उनका मस्तक पीने लगा -- ऐसी लीला है माँ की। तुरीय संध्याकाल में [अर्द्धरात्रि] इन्हीं मां छिन्नमस्ता जी की उपासना से तो साधक को ऐसी कल्पवृक्ष के समान सरस्वती सिद्ध हो जाती है कि इच्छित वस्तु क्षण भर में उपलब्ध हो जाय।     
        कितने दयालु हैं भगवान - कोई उनके भक्त को कुछ भी कष्ट दे तो वे कष्ट देने वालों पर कुपित होकर भक्त का कल्याण करने हेतु स्वयं उपस्थित हो जाते हैं; पर भक्त भी सच्चा होना चाहिए। इसी कारण अनन्य भक्त प्रह्लाद को भयंकर कष्ट दिये जाने से नृसिंह जी का जो  क्रोध हिरण्यकशिपु के वध के बाद भी शांत न हो पाया था, उसको शांत करने हेतु शिवजी द्वारा शरभ जी के रूप में अर्धरात्रि में अवतार हुआ था। ये सभी अवतार नास्तिकता त्याग आस्तिकता को अपनाने की हमें प्रेरणा देते हैं। जयन्ती पर श्रीनृसिंहजी, भगवती छिन्नमस्ताजी एवं श्रीशरभजी के श्रीचरणों में हमारा बारम्बार प्रणाम।


Lord_Sharabha
भगवान
शरभजी
मेरा तो यह मानना है कि अगर आप यह पोस्ट पढ़ रहे हैं तो हिन्दू धर्म के प्रति अत्यंत श्रद्धावान हैं, क्योंकि आजकल देख रहा हूँ कि किस तरह से धर्म की हानि हो रही है और ढकोसला या दक़ियानूसी या "old fashioned" कह कर नास्तिकजन उपेक्षा कर रहे हैं धार्मिक क्रिया कलापों की और वहीं कुछ कुतर्कशास्त्री व नास्तिक लोग बिना सोचे समझे हिन्दू धर्म व देवी देवताओं के विरोध में भ्रमपूर्ण बातें अंतर्जाल [इंटरनेट] पर लिख देते हैं, जो आस्तिक व भोले-भाले लोगों तक पहुँच उन्हें भी अधार्मिक बना देती है जो कि अत्यंत दुःखद है। अतएव इसी से आहत होकर हिन्दू धर्म के प्रचार - प्रसार के उद्देश्य से यह ब्लॉग बनाया है - जो कुछ भी बन पड़े आप सभी से साझा करने हेतु। इस कलिकाल में  आवश्यकता इस बात की है कि शास्त्रोचित सनातनी मान्यताओं को हेय दृष्टि से न देखा जाए।  हम सनातनी हैं प्रेम होली रंगोंका प्रतीक होली मनाते हैं, दीपावली मनाते हैं। अपनी हिन्दू संस्कृति पर गर्व करें। 

साथ ही अनुरोध करता हूँ कि हिन्दू धर्म में-ईश्वर में अपनी आस्था अपना विश्वास सदैव बनाए रखियेगा व कभी इसे डिगने न दीजियेगा। मुझे विश्वास है कि इस ब्लॉग पर जो भी जानकारी दी जाएगी वह आपके लिये भक्तिवर्द्धक-ज्ञानवर्द्धक सिद्ध होगी। बस अनुरोध है आप ज्ञानपिपासुओं से कि आप पधारते रहिएगा इस ब्लॉग पर नियमित रूप से....
आशा है आपको मेरा यह प्रयास पसंद आया होगा। 'परमपिता परमेश्वर आप सभी का कल्याण करें' भगवान से यही प्रार्थना है, नमस्कार।




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