- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
माँ
|
दुर्गा की नव शक्तियों में दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी जी का है जिनका नवरात्र के द्वितीय दिन अर्चन किया जाता है। हिंदू धर्मग्रन्थों के अनुसार ब्रह्मचारिणी में 'ब्रह्म' शब्द का अर्थ तपस्या है। ब्रहमचारिणी अर्थात् तप की चारिणी-तप का आचरण करने वाली। कहा भी है- वेदस्तत्त्वं तपो ब्रह्म - वेद, तत्त्व और तप 'ब्रह्म' शब्द के ही अर्थ हैं। ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य है। इनके दाहिने हाथ में जप की माला और बायें हाथ में कमण्डलु रहता है। अपने पूर्वजन्म में जब ये हिमालय के घर पुत्री के रूप में उत्पन्न हुई थीं तब नारद के उपदेश से इन्होंने भगवान् शङ्करजी को पति-रूप में प्राप्त करने के लिये अत्यन्त कठिन तपस्या की थी। इसी दुष्कर तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी के नाम से अभिहित किया गया।
एक हजार वर्ष उन्होंने केवल फल-मूल खाकर व्यतीत किये थे। सौ वर्षों तक केवल शाक निर्वाह किया था। कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखते हुए खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के भयानक कष्ट सहे। इस कठिन तपश्चर्या के बाद तीन हजार वर्षों तक केवल जमीन पर टूटकर गिरे हुए बेलपत्रों को खाकर वह अहर्निश भगवान् शिवजी की आराधना करती रहीं। इसके बाद उन्होंने सूखे बेलपत्रों को खाना भी छोड़ दिया। कई हजार वर्षों तक वह निर्जल और निराहार तपस्या करती रहीं। पत्तों (पर्ण) को भी खाना छोड़ देने के कारण उनका एक नाम 'अपर्णा' भी पड़ गया।
कई हजार वर्षों की इस कठिन तपस्या के कारण ब्रह्मचारिणी देवी का वह पूर्वजन्म का शरीर एकदम क्षीण हो गया। वह अत्यन्त कृशकाय हो गयी थीं। उनकी यह दशा देखकर उनकी माता मेना अत्यन्त दुःखित हो उठीं। उन्होंने उन्हें उस कठिन तपस्या से विरत करने के लिये आवाज दी-"उ मा, अरे! नहीं, ओ! नहीं!" तब से देवी ब्रह्मचारिणी का पूर्वजन्म का एक नाम 'उमा' भी पड़ गया था।
उनकी इस तपस्या से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ब्रह्मचारिणी देवी की इस तपस्या को अभूतपूर्व बतलाते हुए उनकी सराहना करने लगे। अन्त में पितामह ब्रह्मा जी ने आकाशवाणी के द्वारा उन्हें संबोधित करते हुए प्रसन्न स्वरों में कहा-"हे देवि! आज तक किसी ने भी ऐसी कठोर तपस्या नहीं की थी। ऐसी तपस्या तुम्हीं से सम्भव थी। तुम्हारे इस अलौकिक कृत्य की चतुर्दिक सराहना हो रही है। तुम्हारी मनोकामना सर्वतोभावेन परिपूर्ण होगी। भगवान् चन्द्रमौलि शिवजी तुम्हें पतिरूप में प्राप्त होंगे। अब तुम तपस्या से विरत होकर घर लौट जाओ। शीघ्र ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं।"
माँ दुर्गाजी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्त फल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्त्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता है। माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन 'स्वाधिष्ठान' चक्र में स्थित होता है। इस चक्र में अवस्थित चित्त वाला योगी ब्रह्मचारिणी जी की कृपा व भक्ति सहज ही प्राप्त कर लेता है।
नवरात्रि के द्वितीय दिन ब्रह्मचारिणी जी का इस ध्यानमन्त्र द्वारा अर्चन करें-
दधाना कर पद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
अर्थात्
जो दोनों करकमलों में अक्षमाला व कमण्डलु धारण करती हैं, वे सर्वश्रेष्ठा ब्रह्मचारिणी दुर्गा देवी मुझ पर प्रसन्न हों।
देवी माँ का यह ध्यान, मन्त्र-स्वरूप है, नवरात्र के दूसरे दिन इसका 11 या 21 या 28 या 108 बार या निरन्तर मानस जप करें।
नवरात्र के दूसरे दिन अर्थात् द्वितीया तिथि को ब्रह्मचारिणी दुर्गा माँ को चीनी का नैवेद्य अर्पित करना चाहिये और पूजन के पश्चात इसको ब्राह्मण को दे दें, मान्यता है कि इससे व्यक्ति की आयु में वृद्धि होती है।
कुछ विद्वान साधकजन महाविद्या क्रम से आज द्वितीया तिथि को तारा महाविद्या की आराधना करते हैं। आज माँ जगदम्बा को बाल बाँधने-गूँथने वाले रेशमी सूत, फीते आदि समर्पित किए जाते हैं। जीवन में प्रत्येक कार्य को दत्तचित होकर पूर्ण करने की प्रेरणा देने वाली माँ ब्रह्मचारिणी के श्रीचरणों में हम सबका अनेकों बार प्रणाम.....
देवी माँ का यह ध्यान, मन्त्र-स्वरूप है, नवरात्र के दूसरे दिन इसका 11 या 21 या 28 या 108 बार या निरन्तर मानस जप करें।
नवरात्र के दूसरे दिन अर्थात् द्वितीया तिथि को ब्रह्मचारिणी दुर्गा माँ को चीनी का नैवेद्य अर्पित करना चाहिये और पूजन के पश्चात इसको ब्राह्मण को दे दें, मान्यता है कि इससे व्यक्ति की आयु में वृद्धि होती है।
कुछ विद्वान साधकजन महाविद्या क्रम से आज द्वितीया तिथि को तारा महाविद्या की आराधना करते हैं। आज माँ जगदम्बा को बाल बाँधने-गूँथने वाले रेशमी सूत, फीते आदि समर्पित किए जाते हैं। जीवन में प्रत्येक कार्य को दत्तचित होकर पूर्ण करने की प्रेरणा देने वाली माँ ब्रह्मचारिणी के श्रीचरणों में हम सबका अनेकों बार प्रणाम.....
॥नवरात्रि द्वितीय दिनस्य आर्या पूजाविधिः॥
ध्यानम्
विद्युद्दाम-समप्रभां मृगपति-स्कन्धस्थितां भीषणाम्
कन्याभिः करवाल-खेट-विलसत् हस्ताभिरा-सेविताम्।
हस्तैश्चक्र-गदाऽसि-शङ्ख विशिखांश्चापं गुणं तर्जनीम्
बिभ्राणा-मनलात्मिकां शशिधरां दुर्गां त्रिनेत्रां भजे॥
आर्या दुर्गा नामावली
अक्षत पुष्प चढ़ा दें -
1. श्री आर्यायै नमः।
2. कात्यायन्यै नमः।
3. गौर्यै नमः।
4. कुमार्यै नमः।
5. विन्ध्यवासिन्यै नमः।
6. वागीश्वर्यै नमः।
7. महादेव्यै नमः।
8. काल्यै नमः।
9. कङ्कालधारिण्यै नमः।
10. घोणसाभरणायै नमः।
11. उग्रायै नमः।
12. स्थूलजङ्घायै नमः।
13. महेश्वर्यै नमः।
14. खट्वाङ्गधारिण्यै नमः।
15. चण्ड्यै नमः।
16. भीषणायै नमः।
17. महिषान्तकायै नमः।
18. रक्षिण्यै नमः।
19. रमण्यै नमः।
20. राज्ञ्यै नमः।
21. रजन्यै नमः।
22. शोषिण्यै नमः।
23. रत्यै नमः।
24. गभस्तिन्यै नमः।
25. गन्धिन्यै नमः।
26. दुर्गायै नमः।
27. गान्धार्यै नमः।
28. कलहप्रियायै नमः।
29. विकराल्यै नमः।
30. महाकाल्यै नमः।
31. भद्रकाल्यै नमः।
32. तरङ्गिण्यै नमः।
33. मालिन्यै नमः।
34. दाहिन्यै नमः।
35. कृष्णायै नमः।
36. छेदिन्यै नमः।
37. भेदिन्यै नमः।
38. अग्रण्यै नमः।
39. ग्रामण्यै नमः।
40. निद्रायै नमः।
41. विमानिन्यै नमः।
42. शीघ्रगामिन्यै नमः।
43. चण्डवेगायै नमः।
44. महानादायै नमः।
45. वज्रिण्यै नमः।
46. भद्रायै नमः।
47. प्रजेश्वर्यै नमः।
48. कराल्यै नमः।
49. भैरव्यै नमः।
50. रौद्र्यै नमः।
51. अट्टहासिन्यै नमः।
52. कपालिन्यै नमः।
53. चामुण्डायै नमः।
54. रक्तचामुण्डायै नमः।
55. अघोरायै नमः।
56. घोररूपिण्यै नमः।
57. विरूपायै नमः।
58. महारूपायै नमः।
59. स्वरूपायै नमः।
60. सुप्रतेजस्विन्यै नमः।
61. अजायै नमः।
62. विजयायै नमः।
63. चित्रायै नमः।
64. अजितायै नमः।
65. अपराजितायै नमः।
66. धरण्यै नमः।
67. धात्र्यै नमः।
68. पवमान्यै नमः।
69. वसुन्धरायै नमः।
70. सुवर्णायै नमः।
71. रक्ताक्ष्यै नमः।
72. कपर्दिन्यै नमः।
73. सिंहवाहिन्यै नमः।
74. कद्रवे नमः।
75. विजितायै नमः।
76. सत्यवाण्यै नमः।
77. अरुन्धत्यै नमः।
78. कौशिक्यै नमः।
79. महालक्ष्म्यै नमः।
80. विद्यायै नमः।
81. मेधायै नमः।
82. सरस्वत्यै नमः।
83. मेधायै नमः।
84. त्र्यम्बकायै नमः।
85. त्रिसन्ख्यायै नमः।
86. त्रिमूर्त्यै नमः।
87. त्रिपुरान्तकायै नमः।
88. ब्राह्म्यै नमः।
89. नारसिंह्यै नमः।
90. वाराह्यै नमः।
91. इन्द्राण्यै नमः।
92. वेदमातृकायै नमः।
93. पार्वत्यै नमः।
94. तामस्यै नमः।
95. सिद्धायै नमः।
96. गुह्यायै नमः।
97. इज्यायै नमः।
98. उषायै नमः।
99. उमायै नमः।
100. अम्बिकायै नमः।
101. भ्रामर्यै नमः।
102. वीरायै नमः।
103. हाहा-हुङ्कार -नादिन्यै नमः।
104. नारायण्यै नमः।
105. विश्वरूपायै नमः।
106. मेरुमन्दिरवासिन्यै नमः।
107. शरणागत -दीनार्त -परित्राण -परायणायै नमः।
108. आर्यादुर्गायै नमः।
आर्या दुर्गा भगवती को नवरात्रि के द्वितीय दिवस पर अनेकों बार प्रणाम।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
कृपया टिप्पणी करने के बाद कुछ समय प्रतीक्षा करें प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है। अंतर्जाल (इन्टरनेट) पर उपलब्ध संस्कृत में लिखी गयी अधिकतर सामग्री शुद्ध नहीं मिलती क्योंकि लिखने में उचित ध्यान नहीं दिया जाता यदि दिया जाता हो तो भी टाइपिंग में त्रुटि या फोंट्स की कमी रह ही जाती है। संस्कृत में गलत पाठ होने से अर्थ भी विपरीत हो जाता है। अतः पूरा प्रयास किया गया है कि पोस्ट सहित संस्कृत में दिये गए स्तोत्रादि शुद्ध रूप में लिखे जायें ताकि इनके पाठ से लाभ हो। इसके लिए बार-बार पढ़कर, पूरा समय देकर स्तोत्रादि की माननीय पुस्तकों द्वारा पूर्णतः शुद्ध रूप में लिखा गया है; यदि फिर भी कोई त्रुटि मिले तो सुधार हेतु टिप्पणी के माध्यम से अवश्य अवगत कराएं। इस पर आपकी प्रतिक्रिया व सुझाव अपेक्षित हैं, पर ऐसी टिप्पणियों को ही प्रकाशित किया जा सकेगा जो शालीन हों व अभद्र न हों।