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लरात्रि माँ दुर्गाजी की सातवीं शक्ति हैं जो नवरात्र की सप्तमी तिथि को पूजी जाती हैं। हिंदू धर्म-ग्रन्थों के अनुसार माता कालरात्रि के शरीर का रंग घने अन्धकार की तरह एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र ब्रह्माण्ड के सदृश गोल हैं। कालरात्रि जी से विद्युत के समान चमकीली किरणें निःसृत होती रहती हैं। इनकी नासिका के श्वास-प्रश्वास से अग्नि की भयङ्कर ज्वालाएँ निकलती रहती हैं। माँ कालरात्रि का वाहन गर्दभ है। कालरात्रि माँ के ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा सभी को वर प्रदान करती है। दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे वाले हाथ में हाथ में खड्ग (कटार) है-
दुर्गापूजा के सातवें दिन इन्हीं माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन 'सहस्रार' चक्र में स्थित रहता है। उसके लिये ब्रह्माण्ड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। इस चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णतः माँ कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है। उनके साक्षात्कार से मिलने वाले पुण्य का वह भागी हो जाता है। उसके समस्त पापों-विघ्नों का नाश हो जाता है।उसे अक्षय पुण्य लोकों की प्राप्ति होती है।
माँ कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं। दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरणमात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते हैं। ये ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं। इनके उपासक अग्नि-भय, जल-भय, रात्रि-भय आदि कभी भी नहीं होते। इनकी कृपा से भक्त सर्वथा भय-मुक्त हो जाता है
कुछ विद्वान साधकजन महाविद्या क्रम से नवरात्र की सप्तमी को धूमावती माँ की आराधना करते हैं। आज माँ जगदम्बा की ग्रहमध्य-पूजा की जाती है, अर्थात माँ के चारों ओर नौ ग्रहों का आवाहन पूजन करते हैं फिर नौ ग्रहों के मध्य स्थित भगवती दुर्गा माँ का पूजन किया जाता है।
नवरात्र के सातवें दिन अर्थात् सप्तमी तिथि को कालरात्रि दुर्गा माँ को गुड़ का नैवेद्य अर्पित करना चाहिये और पूजन के पश्चात इसका ब्राह्मण को दान करें; मान्यता है कि ऐसा करने से उपासक को संभावित शोक से मुक्ति मिलने के साथ ही उपासक पर आकस्मिक रुप से आने वाले संकट भी कम होते हैं।
माँ कालरात्रि के स्वरूप-विग्रह को अपने हृदय में अवस्थित करके मनुष्य को एकनिष्ठ भाव से माँ कालरात्रि की उपासना करनी चाहिये। यम, नियम, संयम का उसे पूर्ण पालन करना चाहिये। मन, वचन, काया की पवित्रता रखनी चाहिये। कालरात्रि माता को शुभङ्करी देवी भी कहते हैं। कालरात्रि माँ की उपासना से होने वाले शुभों की गणना नहीं की जा सकती। हमें निरन्तर माँ कालरात्रि का स्मरण, ध्यान और पूजन करना चाहिये। काल की भी रात्रि अर्थात काल-विनाशिनी, कालिका-रूपिणी माँ कालरात्रि को हमारा अनन्त बार प्रणाम...
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त-शरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोह-लताकण्टक-भूषणा।
वर्धनमूर्ध-ध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
अर्थात् एक वेणी (बालों की चोटी) वाली, जपाकुसुम (अड़हुल) के फूल की तरह लाल कर्ण वाली, उपासक की कामनाओं को पूर्ण करने वाली, गर्दभ पर सवारी करने वाली, लंबे होठों वाली, कर्णिका के फूलों की भांति कानों से युक्त, तैल से युक्त शरीर वाली, अपने बाएं पैर में चमकने वाली लौह लता धारण करने वाली, कांटों की तरह आभूषण पहनने वाली, बड़े ध्वज वाली और भयंकर लगने वाली कालरात्रि मां हमारी रक्षा करें।
माँ कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यन्त भयानक है, परन्तु ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं। इसी कारण इनका एक नाम 'शुभङ्करी' भी है। माँ से संतान को भय कैसा? माँ तो सदा अपनी संतान से स्नेह ही करती है। अतः इनसे भक्तों को किसी प्रकार भी भयभीत अथवा आतङ्कित होने की आवश्यकता नहीं है। माँ कालरात्रि का ध्यान-मन्त्र इस प्रकार है-
करालरूपा कालाब्ज-समानाकृति-विग्रहा।
कालरात्रिः शुभं दद्याद्देवी चण्डाट्टहासिनी॥
अर्थात्
जिनका रूप विकराल है, जिनकी आकृति और विग्रह कृष्ण कमल-सदृश है तथा जो भयानक अट्टहास करने वाली हैं, वे कालरात्रि देवी दुर्गा मङ्गल प्रदान करें।
कालरात्रि देवी माँ का यह ध्यान, मन्त्र-स्वरूप है, नवरात्रि के सातवें दिन इसका 11 या 21 या 28 या 108 बार या निरन्तर मानस जप करें।
कालरात्रि देवी माँ का यह ध्यान, मन्त्र-स्वरूप है, नवरात्रि के सातवें दिन इसका 11 या 21 या 28 या 108 बार या निरन्तर मानस जप करें।
माँ कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं। दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरणमात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते हैं। ये ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं। इनके उपासक अग्नि-भय, जल-भय, रात्रि-भय आदि कभी भी नहीं होते। इनकी कृपा से भक्त सर्वथा भय-मुक्त हो जाता है
कुछ विद्वान साधकजन महाविद्या क्रम से नवरात्र की सप्तमी को धूमावती माँ की आराधना करते हैं। आज माँ जगदम्बा की ग्रहमध्य-पूजा की जाती है, अर्थात माँ के चारों ओर नौ ग्रहों का आवाहन पूजन करते हैं फिर नौ ग्रहों के मध्य स्थित भगवती दुर्गा माँ का पूजन किया जाता है।
नवरात्र के सातवें दिन अर्थात् सप्तमी तिथि को कालरात्रि दुर्गा माँ को गुड़ का नैवेद्य अर्पित करना चाहिये और पूजन के पश्चात इसका ब्राह्मण को दान करें; मान्यता है कि ऐसा करने से उपासक को संभावित शोक से मुक्ति मिलने के साथ ही उपासक पर आकस्मिक रुप से आने वाले संकट भी कम होते हैं।
माँ कालरात्रि के स्वरूप-विग्रह को अपने हृदय में अवस्थित करके मनुष्य को एकनिष्ठ भाव से माँ कालरात्रि की उपासना करनी चाहिये। यम, नियम, संयम का उसे पूर्ण पालन करना चाहिये। मन, वचन, काया की पवित्रता रखनी चाहिये। कालरात्रि माता को शुभङ्करी देवी भी कहते हैं। कालरात्रि माँ की उपासना से होने वाले शुभों की गणना नहीं की जा सकती। हमें निरन्तर माँ कालरात्रि का स्मरण, ध्यान और पूजन करना चाहिये। काल की भी रात्रि अर्थात काल-विनाशिनी, कालिका-रूपिणी माँ कालरात्रि को हमारा अनन्त बार प्रणाम...
॥नवरात्रि सप्तम दिवसस्य चण्डिका पूजाविधिः॥
नवरात्र के सातवें दिन माँ चण्डिका की पूजा करें। दुर्गा जी के विग्रह पर निम्नलिखित ध्यान पढ़कर पुष्प चढ़ाएं -
ध्यानम्
शशलाञ्छन - संयुक्तां त्रिनेत्रां
वरचक्राभय - शङ्ख - शूलपाणिम्।
असि-खेटक-धारिणीं महेशीं त्रिपुराराति-वधूं शिवां
स्मरामि॥
॥महाचण्डी नामावलिः॥
एक-एक नाम मन्त्र पढ़ते हुए देवी के विग्रह पर अक्षत पुष्प चढ़ाते जायें -
1. श्री चण्डिकायै नमः।
2. मङ्गलायै नमः।
3. सुशीलायै नमः।
4. परमार्थ-प्रबोधिन्यै नमः।
5. दक्षिणायै नमः।
6. दक्षिणामूर्त्यै नमः।
7. सुदक्षिणायै नमः।
8. हविःप्रियायै नमः।
9. योगिन्यै नमः।
10. योगाङ्गायै नमः।
11. धनुःशालिन्यै नमः।
12. योगपीठ-धरायै नमः।
13. मुक्तायै नमः।
14. मुक्तानां-परमा-गत्यै नमः।
15. नारसिंह्यै नमः।
16. सुजन्मिन्यै नमः।
17. मोक्ष-दायिन्यै नमः।
18. दूत्यै नमः।
19. साक्षिण्यै नमः।
20. दक्षायै नमः।
21. दक्षिणायै नमः।
22. सुदक्षायै नमः।
23. कोटि-रूपिण्यै नमः।
24. क्रतु-स्वरूपिण्यै नमः।
25. कात्यायन्यै नमः।
26. स्वस्थायै नमः।
27. कविप्रियायै नमः।
28. सत्यग्रामायै नमः।
29. बहिःस्थितायै नमः।
30. काव्यशक्त्यै नमः।
31. काव्यप्रदायै नमः।
32. मेनापुत्र्यै नमः।
33. सत्यायै नमः।
34. परित्रातायै नमः।
35. मैनाक-भगिन्यै नमः।
36. सौदामिन्यै नमः।
37. सदामायायै नमः।
38. सुभगायै नमः।
39. कृत्तिकायै नमः।
40. काल-शायिन्यै नमः।
41. रक्तबीजवधायै नमः।
42. दृप्तायै नमः।
43. सन्ततायै नमः।
44. बीजसन्तत्यै नमः।
45. जगज्जीवायै नमः।
46. जगद्बीजायै नमः।
47. जगत्त्रय-हितैषिण्यै नमः।
48. स्वामिकरायै नमः।
49. चन्द्रिकायै नमः।
50. चन्द्रायै नमः।
51. साक्षात्स्वरूपिण्यै नमः।
52. षोडश-कलायै नमः।
53. एकपादायै नमः।
54. अनुबन्धायै नमः।
55. यक्षिण्यै नमः।
56. धनदार्चितायै नमः।
57. चित्रिण्यै नमः।
58. चित्रमायायै नमः।
59. विचित्रायै नमः।
60. भुवनेश्वर्यै नमः।
61. चामुण्डायै नमः।
62. मुण्ड-हस्तायै नमः।
63. चण्डमुण्डवधायै नमः।
64. उद्धतायै नमः।
65. अष्टम्यै नमः।
66. एकादश्यै नमः।
67. पूर्णायै नमः।
68. नवम्यै नमः।
69. चतुर्दश्यै नमः।
70. अमावास्यायै नमः।
71. कलश-हस्तायै नमः।
72. पूर्णकुम्भ-धरायै नमः।
73. धरित्र्यै नमः।
74. अभिरामायै नमः।
75. भैरव्यै नमः।
76. गम्भीरायै नमः।
77. भीमायै नमः।
78. त्रिपुरभैरव्यै नमः।
79. महचण्डायै नमः।
80. महामुद्रायै नमः।
81. महाभैरव-पूजितायै नमः।
82. अस्थिमाला-धारिण्यै नमः।
83. कराल-दर्शनायै नमः।
84. कराल्यै नमः।
85. घोर-घर्घर-नादिन्यै नमः।
86. रक्तदन्त्यै नमः।
87. ऊर्ध्व-केशायै नमः।
88. बन्धूक-कुसुमायै नमः।
89. अक्षतायै नमः।
90. कदम्बायै नमः।
91. पलाशायै नमः।
92. कुङ्कुम-प्रियायै नमः।
93. कान्त्यै नमः।
94. बहु-सुवर्णायै नमः।
95. मातङ्ग्यै नमः।
96. वरारोहायै नमः।
97. मत्तमातङ्ग-गामिन्यै नमः।
98. हंसगतायै नमः।
99. हंसिन्यै नमः।
100. हंसोज्वलायै नमः।
101. शङ्ख-चक्राङ्कित-करायै नमः।
102. कुमार्यै नमः।
103. कुटिलालकायै नमः।
104. मृगेन्द्र-वाहिन्यै नमः।
105. देव्यै नमः।
106. दुर्गायै नमः।
107. वर्धिन्यै नमः।
108. श्रीमहालक्ष्म्यै नमः॥
माँ चंडिका को हमारा अनन्त बार प्रणाम...
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