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रम वात्सल्यमयी माँ दुर्गाजी के चौथे स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है। अपनी मन्द हलकी हँसी द्वारा अण्ड अर्थात् ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, चारों ओर अन्धकार ही अन्धकार परिव्याप्त था, तब इन्हीं देवी ने अपने 'ईषत्' हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी। अतः कूष्माण्डा माता सृष्टि की आदि स्वरूपा आदि शक्ति हैं। कूष्माण्डा माँ के पूर्व ब्रह्माण्ड का अस्तित्व था ही नहीं। हमारे हिंदू धर्म-ग्रंथों में कहा भी गया है - "कुत्सितः ऊष्मा कूष्मा" अर्थात् कुत्सित ऊष्मा [त्रिविध ताप/कष्ट] से कूष्मा शब्द बना। हिन्दू धर्मग्रन्थों में माता कूष्माण्डा के विषय में कहा गया है कि -
"त्रिविधतापयुत: संसार: स अण्डेमांसपेश्यामुदररुपायां यस्या: सा कूष्माण्डा।"
अर्थात् त्रिविध तापयुक्त [पहला कष्ट/ताप है आध्यात्मिक ताप जो शारीरिक व मानसिक दो तरह का होता है, दूसरा कष्ट है भौतिक पदार्थों/जीव-जंतुओं के कारण मनुष्य को होने वाला आधिभौतिक ताप और तीसरा आधिदैविक ताप जो बाह्य कारण से उत्पन्न दु:ख हो जैसे भूकम्प,बाढ़ सूखे आदि से उत्पन्न कष्ट] संसार जिनके उदर में स्थित है, वे भगवती कूष्माण्डा कहलाती हैं।
"त्रिविधतापयुत: संसार: स अण्डेमांसपेश्यामुदररुपायां यस्या: सा कूष्माण्डा।"
अर्थात् त्रिविध तापयुक्त [पहला कष्ट/ताप है आध्यात्मिक ताप जो शारीरिक व मानसिक दो तरह का होता है, दूसरा कष्ट है भौतिक पदार्थों/जीव-जंतुओं के कारण मनुष्य को होने वाला आधिभौतिक ताप और तीसरा आधिदैविक ताप जो बाह्य कारण से उत्पन्न दु:ख हो जैसे भूकम्प,बाढ़ सूखे आदि से उत्पन्न कष्ट] संसार जिनके उदर में स्थित है, वे भगवती कूष्माण्डा कहलाती हैं।
इनका निवास सूर्यमण्डल के भीतर के लोक में है। सूर्यलोक में निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। इनके शरीर की कान्ति और प्रभा भी सूर्य के ही समान देदीप्यमान और भास्वर है। इनके तेज की तुलना सूर्य से की जा सकती है। अन्य कोई भी देवी-देवता माँ कूष्माण्डा के तेज और प्रभाव की समता नहीं कर सकते। माता कूष्माण्डा के तेज और प्रकाश से दसों दिशाएँ प्रकाशित हो रही हैं। ब्रह्माण्ड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया है।
कूष्माण्डा माँ भगवती की आठ भुजाएँ हैं अतः ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डलु, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है। संस्कृत भाषा में कूष्माण्ड, कुम्हड़े(पेठा/सीताफल) के फल को कहा जाता है। बलियों में कुम्हड़े की बलि इन्हें सर्वाधिक प्रिय है। इस कारण से भी ये कूष्माण्डा कही जाती हैं। इनका ध्यान इस प्रकार है-
सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च।
दधानाहस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
अर्थात्
रुधिर से परिप्लुत व सुरा से परिपूर्ण कलश को दोनों करकमलों में धारण करने वाली कूष्माण्डा दुर्गा मेरे लिए शुभदायिनी हों।
नवरात्र-पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है। नवरात्रि के चतुर्थ दिन साधक का मन 'अनाहत' चक्र में अवस्थित रहता है। अतः इस दिन साधक को अत्यन्त पवित्र और अचञ्चल मन से कूष्माण्डा देवी के रूप को ध्यान में रखकर पूजा-उपासना के कारी में लगना चाहिये। माँ कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक विनष्ट हो जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। माँ कूष्माण्डा अत्यल्प सेवा और भक्ति से भी प्रसन्न होने वाली हैं। यदि मनुष्य सच्चे हृदय से इनका शरणागत बन जाय तो फिर उसे अत्यन्त सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो सकती है।
कुछ विद्वान साधकजन महाविद्या क्रम से नवरात्र की चतुर्थी को षोडशी माँ की आराधना करते हैं। आज माँ जगदम्बा को मधुपर्क, तिलक और नेत्राञ्जन समर्पित किए जाते हैं। नवरात्र के चौथे दिन अर्थात् चतुर्थी तिथि को कूष्माण्डा दुर्गा माँ को अपूप(पुए/मालपुए) का नैवेद्य अर्पित करना चाहिये और पूजन के पश्चात इसका ब्राह्मण को दान करें, मान्यता है कि ऐसा करने से उपासक की बुद्धि का विकास होता है और निर्णय करने की क्षमता में वृद्धि हो जाती है। साथ ही कूष्माण्डा माँ को बादाम व पेठे की मिठाई भी अर्पित करनी चाहिए।
हमें चाहिये कि हम शास्त्रों-पुराणों में वर्णित विधि-विधान के अनुसार माँ दुर्गा कि उपासना और भक्ति के मार्ग पर अहर्निश अग्रसर हों। माँ के भक्ति-मार्ग पर कुछ ही कदम आगे बढ़ने पर भक्त साधक को उनकी कृपा का सूक्ष्म अनुभव होने लगता है। यह दुःख-स्वरूप संसार उसके लिये अत्यन्त सुखद और सुगम बन जाता है। माँ की उपासना मनुष्य को सहज भाव से भवसागर से पार उतारने के लिये सर्वाधिक सुगम और श्रेयस्कर मार्ग है। माँ कूष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधियों-व्याधियों से सर्वथा विमुक्त करके उसे सुख समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाने वाली है। अतः अपनी लौकिक-परलौकिक उन्नति चाहने वालों को इनकी उपासना में सदैव तत्पर रहना चाहिये। माँ कूष्माण्डा को हमारा अनेकों बार प्रणाम.....
हमें चाहिये कि हम शास्त्रों-पुराणों में वर्णित विधि-विधान के अनुसार माँ दुर्गा कि उपासना और भक्ति के मार्ग पर अहर्निश अग्रसर हों। माँ के भक्ति-मार्ग पर कुछ ही कदम आगे बढ़ने पर भक्त साधक को उनकी कृपा का सूक्ष्म अनुभव होने लगता है। यह दुःख-स्वरूप संसार उसके लिये अत्यन्त सुखद और सुगम बन जाता है। माँ की उपासना मनुष्य को सहज भाव से भवसागर से पार उतारने के लिये सर्वाधिक सुगम और श्रेयस्कर मार्ग है। माँ कूष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधियों-व्याधियों से सर्वथा विमुक्त करके उसे सुख समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाने वाली है। अतः अपनी लौकिक-परलौकिक उन्नति चाहने वालों को इनकी उपासना में सदैव तत्पर रहना चाहिये। माँ कूष्माण्डा को हमारा अनेकों बार प्रणाम.....
॥नवरात्र के चतुर्थ दिवस कुमारी पूजाविधिः॥
ध्यानम्
गिरिराज-कुमारिकां भवानीं शरणागत-पालनैकदक्षाम्।
वरदाभय-चक्रशङ्ख-हस्तां वरदात्रीं भजतां स्मरामि नित्यम्॥
॥श्री कुमार्याः नामावलिः॥
अक्षत पुष्प चढ़ाते जाय -
1. श्री कौमार्यै नमः।
2. सत्यमार्गप्रबोधिन्यै नमः।
3. कम्बुग्रीवायै नमः।
4. वसुमत्यै नमः।
5. छत्रच्छायायै नमः।
6. कृतालयायै नमः।
7. कुण्डलिन्यै नमः।
8. जगद्धात्र्यै नमः।
9. जगद्गर्भायै नमः।
10. भुजङ्गायै नमः।
11. कालशायिन्यै नमः।
12. प्रोल्लसायै नमः।
13. सप्तपद्मायै नमः।
14. नाभिनालायै नमः।
15. मृणालिन्यै नमः।
16. मूलाधारायै नमः।
17. अनिलाधारायै नमः।
18. वह्निकुण्डल-कृतालयायै नमः।
19. वायुकुण्डल-सुखासनायै नमः।
20. निराधारायै नमः।
21. निराश्रयायै नमः।
22. बलीन्द्रसमुच्चयायै नमः।
23. षड्रसस्वादुलोलुपायै नमः।
24. श्वासोच्छ्वास-गतायै नमः।
25. जीवायै नमः।
26. ग्राहिण्यै नमः।
27. वह्निसंश्रयायै नमः।
28. तपस्विन्यै नमः।
29. तपस्सिद्धायै नमः।
30. तापसायै नमः।
31. तपोनिष्ठायै नमः।
32. तपोयुक्तायै नमः।
33. तपस्सिद्धिदायिन्यै नमः।
34. सप्तधातुमय्यै नमः।
35. सुमूर्त्यै नमः।
36. सप्तायै नमः।
37. अनन्तरनाडिकायै नमः।
38. देहपुष्ट्यै नमः।
39. मनस्तुष्ट्यै नमः।
40. रत्नतुष्ट्यै नमः।
41. मदोद्धतायै नमः।
42. दशमध्यै नमः।
43. वैद्यमात्रे नमः।
44. द्रवशक्त्यै नमः।
45. प्रभाविन्यै नमः।
46. वैद्यविद्यायै नमः।
47. चिकित्सायै नमः।
48. सुपथ्यायै नमः।
49. रोगनाशिन्यै नमः।
50. मृगयात्रायै नमः।
51. मृगमाम्सायै नमः।
52. मृगपद्यायै नमः।
53. सुलोचनायै नमः।
54. व्याघ्रचर्मायै नमः।
55. बन्धुरूपायै नमः।
56. बहुरूपायै नमः।
57. मदोत्कटायै नमः।
58. बन्धिन्यै नमः।
59. बन्धुस्तुतिकरायै नमः।
60. बन्धायै नमः।
61. बन्धविमोचिन्यै नमः।
62. श्रीबलायै नमः।
63. कलभायै नमः।
64. विद्युल्लतायै नमः।
65. दृढविमोचिन्यै नमः।
66. अम्बिकायै नमः।
67. बालिकायै नमः।
68. अम्बरायै नमः।
69. मुख्यायै नमः।
70. साधुजनार्चितायै नमः।
71. कालिन्यै नमः।
72. कुलविद्यायै नमः।
73. सु-कलायै नमः।
74. कुल-पूजितायै नमः।
75. कुलचक्रप्रभायै नमः।
76. भ्रान्त्यै नमः।
77. भ्रमनाशिन्यै नमः।
78. वार्तालिन्यै नमः।
79. सुवृष्ट्यै नमः।
80. भिक्षुकायै नमः।
81. सस्यवर्धिन्यै नमः।
82. अकारायै नमः।
83. इकारायै नमः।
84. उकारायै नमः।
85. एकारायै नमः।
86. हुङ्कारायै नमः।
87. बीजरूपायै नमः।
88. क्लींकारायै नमः।
89. अम्बरधारिण्यै नमः।
90. सर्वाक्षरमयिशक्त्यै नमः।
91. राक्षसार्णवमालिन्यै नमः।
92. सिन्दूरवर्णायै नमः।
93. अरुणवर्णायै नमः।
94. सिन्दूरतिलकप्रियायै नमः।
95. वश्यायै नमः।
96. वश्यबीजायै नमः।
97. लोकवश्यविधायिन्यै नमः।
98. नृपवश्यायै नमः।
99. नृपसेव्यायै नमः।
100. नृपवश्यकरप्रियायै नमः।
101. महिषीनृपमाम्सायै नमः।
102. नृपज्ञायै नमः।
103. नृपनन्दिन्यै नमः।
104. नृपधर्मविद्यायै नमः।
105. धनधान्यविवर्धिन्यै नमः।
106. चतुर्वर्णमयिशक्त्यै नमः।
107. चतुर्वर्णैः-सुपूजितायै नमः।
108. सर्ववर्णमयायै नमः॥
नवरात्रि के चतुर्थ दिन माँ कुमारी को हमारा अनेकों बार प्रणाम.....
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