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वरात्रों के प्रथम दिन दुर्गाजी के पहले स्वरूप में भगवती 'शैलपुत्री' की आराधना की जाती है। हिंदू धर्मग्रन्थों के अनुसार पर्वतराज हिमालय के वहाँ पुत्री के रूप में उत्पन्न होने से ही ये देवी 'शैलपुत्री' के नाम से जानी जाती हैं। वृषभ पर सवार इन माताजी के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। अपने पूर्वजन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं। तब इनका नाम 'सती' था। इनका विवाह भगवान् शङ्करजी से हुआ था। एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। इसमें उन्होंने सारे देवताओं को अपना-अपना यज्ञ-भाग प्राप्त करने के लिये निमन्त्रित किया। किन्तु शङ्करजी को उन्होंने उस यज्ञ में नहीं निमन्त्रित किया। सती ने जब यह सुना कि उनके पिताश्री एक अत्यन्त विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तब वहाँ जाने के लिये उनका मन विकल हो उठा। अपनी यह इच्छा उन्होंने शङ्करजी को बतलायी। सारी बातों पर विचार करके शिवजी ने कहा-"प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे रुष्ट हैं। अपने यज्ञ में उन्होंने सभी देवताओं को निमन्त्रित किया है। उनके यज्ञ-भाग भी उन्हें समर्पित किये किये हैं, किन्तु हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया है। कोई सूचना तक नहीं भेजी है। ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहाँ जाना किसी प्रकार भी श्रेयस्कर नहीं होगा।" शङ्करजी के इस उपदेश से सती का प्रबोध नहीं हुआ। पिता का यज्ञ देखने, वहाँ जाकर माता और बहनों से मिलने की उनकी व्यग्रता किसी भी तरह कम नहीं हुई। उनका प्रबल आग्रह देखकर शिवजी ने उन्हें वहाँ जाने की अनुमति दे दी।
सती ने पिता के घर पहुँचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर व प्रेम के साथ बात-चीत नहीं कर रहा है। सारे लोग मुँह फेरे हुए हैं। केवल उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया। बहन की बातों में व्यंग्य एवं उपहास के भाव भरे थे। परिजनों के इस दुःखद व्यवहार से उनके मन को बहुत क्लेश पहुँचा। उन्होंने यह भी देखा कि वहाँ चतुर्दिक भगवान् भोलेनाथ के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है। दक्ष ने उनके प्रति अपमानजनक वचन भी कहे। यह सब देखकर सती का हृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से सन्तप्त हो उठा। उन्होंने सोचा भगवान् शिवजी की बात न मान, यहाँ आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है।
सती ने पिता के घर पहुँचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर व प्रेम के साथ बात-चीत नहीं कर रहा है। सारे लोग मुँह फेरे हुए हैं। केवल उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया। बहन की बातों में व्यंग्य एवं उपहास के भाव भरे थे। परिजनों के इस दुःखद व्यवहार से उनके मन को बहुत क्लेश पहुँचा। उन्होंने यह भी देखा कि वहाँ चतुर्दिक भगवान् भोलेनाथ के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है। दक्ष ने उनके प्रति अपमानजनक वचन भी कहे। यह सब देखकर सती का हृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से सन्तप्त हो उठा। उन्होंने सोचा भगवान् शिवजी की बात न मान, यहाँ आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है।
सती अपने पति भगवान् शङ्करजी के इस अपमान को सह न सकीं और उन्होंने अपने उस स्वरूप को तत्क्षण वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया। वज्रपात के समान इस दारुण-दुःखद घटना घटना को सुनकर शङ्करजी ने क्रुद्ध होकर अपने वीरभद्र, काली आदि गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस करा दिया।
सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म करके अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वह 'शैलपुत्री' के नाम से विख्यात हुईं। पार्वती, हैमवती भी इन्हीं माताजी के नाम हैं। उपनिषद की एक कथा के अनुसार इन्हीं ने हैमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व-भंजन किया था।
'शैलपुत्री' माँ का विवाह भी शङ्करजी से ही हुआ। माँ पार्वती जी ने तप से शैलपुत्रीजी से लेकर सिद्धिदात्रीजी होने तक की नौ स्वरूपों की आध्यात्मिक यात्रा करके शङ्करजी को पाया था। पूर्वजन्म की भाँति इस जन्म में भी वह शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। नवदुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्त्व और शक्तियाँ अनन्त हैं। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। नवरात्र के इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को "मूलाधार" चक्र में स्थित करते हैं। यहीं से उनकी योगसाधना का प्रारम्भ होता है। माँ शैलपुत्री का ध्यान इस प्रकार है-
वन्दे वाञ्च्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
अर्थात्
मैं मनोवाञ्छित लाभ के लिए मस्तक पर अर्धचन्द्र धारण करने वाली, वृष पर आरूढ़ होने वाली, शूलधारिणी, यशस्विनी शैलपुत्री दुर्गाजी की वन्दना करता हूँ।
मूलाधाररूपिणी माँ शैलपुत्री का यह ध्यान, मन्त्र स्वरूप ही है इसका अधिकाधिक(11,21,28,108 बार या निरन्तर मन में) जप करना शुभ फलों को देने वाला है।
नवरात्र के पहले दिन अर्थात् प्रतिपदा तिथि को शैलपुत्री दुर्गा माँ को गाय के शुद्ध घी का नैवेद्य अर्पित करना चाहिये, मान्यता है कि इससे आरोग्य की प्राप्ति होती है। कुछ विद्वान साधकजन महाविद्या क्रम से आज प्रतिपदा को काली महाविद्या की आराधना करते हैं। आज माँ जगदंबा को केशसंस्कारक द्रव्य आँवला, सुगंधित तैल आदि केश प्रसाधन संभार समर्पित किए जाते हैं। शैलपुत्री भगवती को नवरात्रि के प्रथम दिवस पर अनेकों बार प्रणाम।
नवरात्र के पहले दिन अर्थात् प्रतिपदा तिथि को शैलपुत्री दुर्गा माँ को गाय के शुद्ध घी का नैवेद्य अर्पित करना चाहिये, मान्यता है कि इससे आरोग्य की प्राप्ति होती है। कुछ विद्वान साधकजन महाविद्या क्रम से आज प्रतिपदा को काली महाविद्या की आराधना करते हैं। आज माँ जगदंबा को केशसंस्कारक द्रव्य आँवला, सुगंधित तैल आदि केश प्रसाधन संभार समर्पित किए जाते हैं। शैलपुत्री भगवती को नवरात्रि के प्रथम दिवस पर अनेकों बार प्रणाम।
नवरात्र में विशेष पूजा
दुर्गा त्वार्या भगवती कुमारी अम्बिका तथा।
महिषोन्मर्दिनी चैव चण्डिका च सरस्वती।
वागीश्वरीति क्रमशः प्रोक्तास्तद्दिन- देवताः॥
अर्थात नवरात्र में प्रतिपदा तिथि से लेकर नवमी तिथि तक ये नौ देवियां क्रमशः पूजनी चाहिए—
१.दुर्गा, २. आर्या, ३. भगवती, ४.कुमारी, ५.अम्बिका, ६.महिषोन्मर्दिनी, ७.चण्डिका, ८.सरस्वती, ९.वागीश्वरी।
अतः प्रतिपदा को दुर्गा रूप की आराधना करे -
नवरात्र प्रथम दिवस - महादुर्गा पूजाविधि
इस नव दिन की पूजन साधना में प्रतिपदा से लेकर नवमी इन नौ दिनों तक प्रत्येक दिन एक विशिष्ट अष्टोत्तर शत नामावली से पूजन किया जाता है। दुर्गा जी की मूर्ति या चित्र पर फूल या कुंकुम - चंदन युक्त अक्षतों को अर्पित करते हुए पूजा करते जाये -
श्री दुर्गाऽष्टोत्तरशत - नामावलिः
अस्य श्री दुर्गाऽष्टोत्तरशतनाम महामन्त्रस्य नारद ऋषिः गायत्री छन्दः श्री दुर्गा देवता परमेश्वरीति बीजं कृष्णानुजेति शक्तिः शाङ्करीति कीलकं दुर्गाप्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः॥
ध्यानम्
प्रकाशमध्य-स्थित-चित्स्वरूपां वराभय संदधतीं त्रिनेत्राम्।
सिन्दूर - वर्णामति-कोमलाङ्गीं मायामयीं तत्वमयीं नमामि॥
एक एक अक्षत पुष्प चढ़ा दें -
1. श्री दुर्गायै नमः।
2. दारिद्र्यशमन्यै नमः।
3. दुरितघ्न्यै नमः।
4. लक्ष्म्यै नमः।
5. लज्जायै नमः।
6. महाविद्यायै नमः।
7. श्रद्धायै नमः।
8. पुष्ट्यै नमः।
9. स्वधायै नमः।
10. ध्रुवायै नमः।
11. महारात्र्यै नमः।
12. महामायायै नमः।
13. मेधायै नमः।
14. मात्रे नमः।
15. सरस्वत्यै नमः।
16. शिवायै नमः।
17. शशिधरायै नमः।
18. शान्तायै नमः।
19. शाम्भव्यै नमः।
20. भूतिदायिन्यै नमः।
21. तामस्यै नमः।
22. नियतायै नमः।
23. नार्यै नमः।
24. काल्यै नमः।
25. नारायण्यै नमः।
26. कलायै नमः।
27. ब्राह्म्यै नमः।
28. वीणाधरायै नमः।
29. वाण्यै नमः।
30. शारदायै नमः।
31. हंसवाहिन्यै नमः।
32. त्रिशूलिन्यै नमः।
33. त्रिनेत्रायै नमः।
34. ईशानायै नमः।
35. त्रय्यै नमः।
36. त्रयतमायै नमः।
37. शुभायै नमः।
38. शङ्खिन्यै नमः।
39. चक्रिण्यै नमः।
40. घोरायै नमः।
41. कराल्यै नमः।
42. मालिन्यै नमः।
43. मत्यै नमः।
44. माहेश्वर्यै नमः।
45. महेष्वासायै नमः।
46. महिषघ्न्यै नमः।
47. मधुव्रतायै नमः।
48. मयूरवाहिन्यै नमः।
49. नीलायै नमः।
50. भारत्यै नमः।
51. भास्वराम्बरायै नमः।
52. पीताम्बरधरायै नमः।
53. पीतायै नमः।
54. कौमार्यै नमः।
55. पीनस्तन्यै नमः।
56. रजन्यै नमः।
57. राधिन्यै नमः।
58. रक्तायै नमः।
59. गदिन्यै नमः।
60. घण्टिन्यै नमः।
61. प्रभायै नमः।
62. शुम्भघ्न्यै नमः।
63. सुभगायै नमः।
64. सुभ्रुवे नमः।
65. निशुम्भप्राणहारिण्यै नमः।
66. कामाक्ष्यै नमः।
67. कामुकायै नमः।
68. कन्यायै नमः।
69. रक्तबीजनिपातिन्यै नमः।
70. सहस्रवदनायै नमः।
71. सन्ध्यायै नमः।
72. साक्षिण्यै नमः।
73. शाङ्कर्यै नमः।
74. द्युतये नमः।
75. भार्गव्यै नमः।
76. वारुण्यै नमः।
77. विद्यायै नमः।
78. धरायै नमः।
79. धरासुरार्चितायै नमः।
80. गायत्र्यै नमः।
81. गायक्यै नमः।
82. गङ्गायै नमः।
83. दुर्गायै नमः।
84. गीतघनस्वनायै नमः।
85. छन्दोमयायै नमः।
86. मह्यै नमः।
87. छायायै नमः।
88. चार्वाङ्ग्यै नमः।
89. चन्दनप्रियायै नमः।
90. जनन्यै नमः।
91. जाह्नव्यै नमः।
92. जातायै नमः।
93. शान्ङ्कर्यै नमः।
94. हतराक्षसायै नमः।
95. वल्लर्यै नमः।
96. वल्लभायै नमः।
97. वल्ल्यै नमः।
98. वल्ल्यलङ्कृतायै नम।
99. मध्यमायै नमः।
100. हरीतक्यै नमः।
101. हयारूढायै नमः।
102. भूत्यै नमः।
103. हरिहरप्रियायै नमः।
104. वज्रहस्तायै नमः।
105. वरारोहायै नमः।
106. सर्वसिद्ध्यै नमः।
107. वरप्रदायै नमः।
108. श्री दुर्गादेव्यै नमः।
शैलपुत्री भगवती को नवरात्रि के प्रथम दिवस पर अनेकों बार प्रणाम।
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