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कमला महाविद्या की स्तोत्रात्मक उपासना

महागौरी जी की महिमा - नवरात्र का आठवां दिन महाष्टमी

हागौरी माँ दुर्गाजी की आठवीं शक्ति हैं। हिंदू धर्म-ग्रन्थों के अनुसार माता महागौरी का वर्ण पूर्णतः गौर है। महागौरी माता की इस गौरता की उपमा शङ्ख, चन्द्र और कुन्द के फूल से दी गयी है। 'अष्टवर्षा भवेद् गौरी' के अनुसार  महागौरी भगवती की आयु सर्वदा आठ वर्ष की ही मानी गयी है। महागौरी जी के समस्त वस्त्र एवं आभूषण भी श्वेत हैं। देवी महागौरी की चार भुजाएँ हैं। महागौरी माँ का वाहन वृषभ है। महागौरी जी के ऊपर के दाहिने हाथ में अभय-मुद्रा और नीचे के बायें हाथ में वर-मुद्रा है। महागौरी माता की मुद्रा अत्यन्त शान्त है।
श्वेतवृषेसमारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचि:। महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥ अर्थात् जो श्वेत वृष पर आरूढ़ होती हैं, श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, सदा पवित्र रहती हैं तथा महादेव जी को आनन्द प्रदान करती हैं, वे महागौरी दुर्गा मङ्गल प्रदान करें।
     'नारद पाञ्चरात्र' में वर्णन है कि अपने पार्वती रूप में इन्होंने भगवान् शिव को  पति-रूप में प्राप्त करने के लिये बड़ी कठोर तपस्या की थी। इनकी प्रतिज्ञा थी कि 'व्रियेઽहं वरदं शम्भुं नान्यं देवं महेश्वरात्।' गोस्वामी तुलसीदास जी के अनुसार भी इन्होंने भगवान् शिव के वरण के लिये कठोर संकल्प लिया था-
जन्म कोटि लगि रगर हमारी।
बरउँ संभु न त रहउँ कुँआरी॥

माँ महागौरी का ध्यान-स्मरण, पूजन-आराधन भक्तों के लिये सर्वविध कल्याणकारी है। हमें सदैव इनका ध्यान करना चाहिये। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। मन को अनन्य भाव से एकनिष्ठ कर मनुष्य को सदैव इनके ही पादारविन्दों का ध्यान करना चाहिये।

     इस कठोर तपस्या के कारण पार्वती जी का शरीर एकदम काला पड़ गया। पार्वती देवी की तपस्या से प्रसन्न और सन्तुष्ट होकर जब भगवान् शिव ने इनके शरीर को गङ्गाजी के पवित्र जल से मलकर धोया तब वह विद्युत प्रभा के समान अत्यन्त कान्तिमान-गौर-हो उठा। तभी से इनका नाम महागौरी पड़ा। माता महागौरी जी का ध्यान-मन्त्र इस प्रकार है-
श्वेतवृषेसमारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचि:।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥
अर्थात्
जो श्वेत वृष पर आरूढ़ होती हैं, श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, सदा पवित्र रहती हैं तथा महादेव जी को आनन्द प्रदान करती हैं, वे महागौरी दुर्गा मङ्गल प्रदान करें।
महागौरी देवी माँ का यह ध्यान, मन्त्र-स्वरूप है, नवरात्र के आठवें दिन इसका 11 या 21 या 28 या 108 बार या निरन्तर मानस जप करें।

माँ महागौरी की इस गौरता की उपमा शङ्ख, चन्द्र और कुन्द के फूल से दी गयी है। 'अष्टवर्षा भवेद् गौरी' के अनुसार  इनकी आयु सर्वदा आठ वर्ष ही मानी गयी है।पुराणों में इनकी महिमा का प्रचुर आख्यान किया गया है। ये मनुष्य की वृतियों को सत् की ओर प्रेरित करके असत् का विनाश करती हैं। हमें प्रपत्तिभाव से सदैव इनका शरणागत बनना चाहिये।

     दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी माँ की उपासना का विधान है। इनकी शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों के सभी कल्मष धुल जाते हैं। उसके पूर्वसंचित पाप भी विनष्ट हो जाते हैं। भविष्य में पाप-संताप, दैन्य-दुःख उसके पास कभी नहीं आते। वह सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है।

माता महागौरी जी ने अपने पार्वती रूप में भगवान् शिव को  पति-रूप में प्राप्त करने के लिये बड़ी कठोर तपस्या की थी। इनकी शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों के सभी कल्मष धुल जाते हैं। उसके पूर्वसंचित पाप भी विनष्ट हो जाते हैं। भविष्य में पाप-संताप, दैन्य-दुःख उसके पास कभी नहीं आते।

    कुछ विद्वान साधकजन महाविद्या क्रम से नवरात्र की अष्टमी को वगलामुखी माँ की आराधना करते हैं। आज माँ जगदम्बा उपवासपूर्वक पूजन किया जाता है     नवरात्र के आठवें दिन अर्थात् अष्टमी तिथि को महागौरी दुर्गा माँ को नारियल का नैवेद्य अर्पित करना चाहिये और पूजन के पश्चात नारियल के इस प्रसाद का ब्राह्मण को दान करें। मान्यता है कि इससे संतान सम्बंधी परेशानियों से छुटकारा मिलता  है।
     माँ महागौरी का ध्यान-स्मरण, पूजन-आराधन भक्तों के लिये सर्वविध कल्याणकारी है। हमें सदैव इनका ध्यान करना चाहिये। महागौरी जगदम्बा की कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। मन को अनन्य भाव से एकनिष्ठ कर मनुष्य को सदैव इनके ही पादारविन्दों का ध्यान करना चाहिये। पुराणों में महागौरी जी की महिमा के प्रचुर आख्यान मिलते हैं। महागौरी माता मनुष्य की वृत्तियों को सत् की ओर प्रेरित करके असत् का विनाश करती हैं। हमें प्रपन्नभाव से सदैव इन देवी माँ का शरणागत बनना चाहिये। माता महागौरी जी के श्री चरणों में हमारा बारम्बार प्रणाम.....

॥नवरात्र्यां अष्टम दिनस्य सरस्वतीपूजा
विधिः॥

नवरात्र के आठवें दिन सरस्वतीजी की पूजा करे। इसके लिये पहले अपने दाहिने हाथ में जल लेकर यह विनियोग करे-  अस्य श्री मातृकासरस्वती महामन्त्रस्य शब्द ऋषिः लिपिगायत्री छन्दः श्री मातृका सरस्वती देवता श्रीसरस्वती प्रसाद सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगःजल  छोड़ दे।

ध्यानम् - ध्यान पढ़कर देवी के विग्रह या चित्र पर फूल चढ़ावें -
पञ्चाषद्वर्ण-भेदैर्विहित-वदन-दोष्पाद-हृत्कुक्षि-वक्ष-देशां,
भास्वत्कपर्दा-कलित-शशि-कलामिन्दु-कुन्दावदाताम्।
अक्षस्रक्कुम्भ-चिन्ता-लिखित-वरकरां त्रीक्षणां - पद्मसंस्थां
अच्छा-कल्पामतुच्छ-स्तनजघन-परां भारतीं तां नमामि॥

मन्त्रः - अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋृं लृं ॡं एं ऐं ओं औं अं अः कं खं गं घं ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं ळं क्षं
इस मंत्र का 11 या 28 या 51 या 108 बार जप करे। ऋृं का उच्चारण रीं और ॡं का ल्रीं है। इसी तरह ळं = ल्लं।

श्री सरस्वती नामावलि
एक-एक नाम मन्त्र पढ़कर सरस्वती या दुर्गा देवी के विग्रह पर अक्षत/ फूल चढ़ाते जाय -
1. श्री सरस्वत्यै नमः।
2. भगवत्यै नमः।
3. कुरुक्षेत्र-वासिन्यै नमः।
4. अवन्तिकायै नमः।
5. काश्यै नमः।
6. मधुरायै नमः।
7. स्वरमयायै नमः।
8. अयोध्यायै नमः।
9. द्वारकायै नमः।
10. त्रिमेधायै नमः।
11. कोशस्थायै नमः।
12. कोशवासिन्यै नमः।
13. कौशिक्यै नमः।
14. शुभवार्तायै नमः।
15. कौशाम्बरायै नमः।
16. कोशवर्धिन्यै नमः।
17. पद्मकोशायै नमः।
18. कुसुमावासायै नमः।
19. कुसुम-प्रियायै नमः।
20. तरलायै नमः।
21. वर्तुलायै नमः।
22. कोटिरूपायै नमः।
23. कोटिस्थायै नमः।
24. कोराश्रयायै नमः।
25. स्वायम्भव्यै नमः।
26. सुरूपायै नमः।
27. स्मृतिरूपायै नमः।
28. रूपवर्धनायै नमः।
29. तेजस्विन्यै नमः।
30. सुभिक्षायै नमः।
31. बलायै नमः।
32. बलदायिन्यै नमः।
33. महाकौशिक्यै नमः।
34. महागर्तायै नमः।
35. बुद्धिदायै नमः।
36. सदात्मिकायै नमः।
37. महाग्रहहरायै नमः।
38. सौम्यायै नमः।
39. विशोकायै नमः।
40. शोकनाशिन्यै नमः।
41. सात्विकायै नमः।
42. सत्य-संस्थापिकायै नमः।
43. राजस्यै नमः।
44. रजोवृत्तायै नमः।
45. तामस्यै नमः।
46. तमोयुक्तायै नमः।
47. गुणत्रय-विभागिन्यै नमः।
48. अव्यक्तायै नमः।
49. व्यक्तरूपायै नमः।
50. वेदवेद्यायै नमः।
51. शाम्भव्यै नमः।
52. कालरूपिण्यै नमः।
53. शङ्करकल्पायै नमः।
54. महासङ्कल्प-सन्तत्यै नमः।
55. सर्वलोकमय-शक्त्यै नमः।
56. सर्वश्रवण-गोचरायै नमः।
57. सार्वज्ञवत्यै नमः।
58. वाञ्छित-फलदायिन्यै नमः।
59. सर्वतत्व-प्रबोधिन्यै नमः।
60. जाग्रतायै नमः।
61. सुषुप्तायै नमः।
62. स्वप्नावस्थायै नमः।
63. चतुर्युगायै नमः।
64. चत्वरायै नमः।
65. मन्दायै नमः।
66. मन्दगत्यै नमः।
67. मदिरा-मोद-मोदिन्यै नमः।
68. पानप्रियायै नमः।
69. पानपात्रधरायै नमः।
70. पान-दान-करोद्यतायै नमः।
71. विद्युद्वर्णायै नमः।
72. अरुणनेत्रायै नमः।
73. किञ्चिद्व्यक्तायै नमः।
74. भाषिण्यै नमः।
75. आशापूरिण्यै नमः।
76. दीक्षायै नमः।
77. दक्षायै नमः।
78. जनपूजितायै नमः।
79. नागवल्ल्यै नमः।
80. नागकर्णिकायै नमः।
81. भगिन्यै नमः।
82. भोगिन्यै नमः।
83. भोगवल्लभायै नमः।
84. सर्वशास्त्रमयायै नमः।
85. विद्यायै नमः।
86. स्मृत्यै नमः।
87. धर्मवादिन्यै नमः।
88. श्रुतिस्मृतिधरायै नमः।
89. ज्येष्ठायै नमः।
90. श्रेष्ठायै नमः।
91. पातालवासिन्यै नमः।
92. मीमाम्सायै नमः।
93. तर्कविद्यायै नमः।
94. सुभक्त्यै नमः।
95. भक्तवत्सलायै नमः।
96. सुनाभायै नमः।
97. यातनालिप्तायै नमः।
98. गम्भीर-भारवर्जितायै नमः।
99. नागपाशधरायै नमः।
100. सुमूर्त्यै नमः।
101. अगाधायै नमः।
102. नागकुण्डलायै नमः।
103. सुचक्रायै नमः।
104. चक्रमध्य-स्थितायै नमः।
105. चक्रकोण-निवासिन्यै नमः।
106. जलदेवतायै नमः।
107. महामार्यै नमः।
108. श्री सरस्वत्यै नमः॥

नवरात्रि के आठवे दिन माँ सरस्वती को हमारा अनेकों बार  प्रणाम हो...


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