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वसागर से तारने वाली, परम दयालु, कष्टहारिणी, कृपाकारिणी श्री दुर्गा जी की नवरात्रि में शुक्ल प्रतिपदा के दिन, अष्टमी को महापूजा में, जहाँ अष्टमी-नवमी तिथि मिलते हैं अर्थात् सन्धिपूजा में, प्रत्येक मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को दुर्गा जी की उत्तम प्रकार से पूजा करनी चाहिये।
अतएव नवरात्र या अन्य दिनों में भी जो श्री दुर्गा की शास्त्रोक्त पूजा की जाती है उसका विधान यहाँ प्रामाणिक व शुद्ध रूप में प्रस्तुत है।
अतएव नवरात्र या अन्य दिनों में भी जो श्री दुर्गा की शास्त्रोक्त पूजा की जाती है उसका विधान यहाँ प्रामाणिक व शुद्ध रूप में प्रस्तुत है।
भगवती दुर्गा जी की पूजा करने के लिए आसन पर पूर्वमुखी होकर बैठ जाय।
जल से प्रोक्षण करे -
अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा। यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः।।
शिखा बाँधे। तिलक लगाकर आचमन करे -
श्री केशवाय नमः। श्री नारायणाय नमः। श्री माधवाय नमः। आचमन के बाद अँगूठे के मूल भागसे होठों को दो बार पोंछकर 'श्री हृषीकेशाय नमः' बोलकर हाथ धो ले। 3 बार प्राणायाम करे।
पहले नवरात्रि में कलश स्थापना कर लें इसकी विधि के लिए यहां क्लिक करें। हाथ में जल-फूल लेकर संकल्प करे-
श्री विष्णवे नमः। श्री विष्णवे नमः। श्री विष्णवे नमः। श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वत-मन्वन्तरे अष्टाविंशति-तमे कलियुगे कलि-प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भरतखंडे भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशे ....(शहर/गांव आदि का नाम बोले).....नगरे/ग्रामे/क्षेत्रे ....(संवत्सर का नाम).....नाम्नि विक्रम संवत्सरे ..........मासे शुक्ल-पक्षे प्रतिपदा तिथौ ....(वार का नाम....वासरे ...(प्रातः/ सायं)...काले .......गोत्रः ...(आपका नाम)...शर्मा/ वर्मा/ गुप्तः अहं ममोपात्त-दुरित-क्षयद्वारा श्रीपरमेश्वर प्रीत्यर्थं यथा-लब्धोपचारैः श्री जगज्जननी दुर्गा भगवत्याः यजनं-करिष्ये।
ध्यान- हाथ में फूल अक्षत लेकर अञ्जलि बांधकर दुर्गाजी का ध्यान करे-सिंहस्था शशि-शेखरा मरकत-प्रख्यै-श्चतुर्भि-र्भुजैः शङ्खं चक्र-धनुः-शरांश्च दधती नेत्रैस्त्रिभिः शोभिता। आमुक्ताङ्गद-हार-कड्कण-रणत्काञ्चीरणन्नूपुरा दुर्गा दुर्गति-हारिणी भवतु नो रत्नोल्लसत्कुण्डला॥ ध्यानार्थे अक्षतपुष्पाणि समर्पयामि श्रीजगदम्बायै श्रीदुर्गादेव्यै नमः।(जो सिंह की पीठ पर विराजमान हैं, जिनके मस्तक पर चन्द्रमा का मुकुट है, जो मरकतमणि के समान कान्ति वाली अपनी चार भुजाओं में शंख, चक्र, धनुष और बाण धारण करती हैं, तीन नेत्रोंसे सुशोभित हैं, जिनके भिन्न-भिन्न अंग बाँधे हुए बाजूबंद, हार, कंकण, खनखनाती हुई करधनी और रुनझुन करते हुए नूपुरों से विभूषित हैं तथा जिनके कानों में रत्नजटित कुण्डल झिलमिलाते रहते हैं, वे भगवती दुर्गा हमारी दुर्गति दूर करने वाली हों।)
(यदि प्राण प्रतिष्ठित प्रतिमा हो तो आवाहन नहीं करना है।)
आवाहन-आगच्छ त्वं महादेवि! स्थाने चात्र स्थिरा भव। यावत् पूजां करिष्यामि तावत् त्वं सन्निधौ भव॥ श्रीजगदम्बायै दुगदिव्यै नमः। श्री दुर्गादेवी आवाहनार्थे पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि। (पुष्पाञ्जलि समर्पण करे।)
ध्यातव्य - यदि कोई उपचार सामग्री उपलब्ध न हो तो ... मनसा परिकल्प्य समर्पयामि कहें और चावल चढ़ा दें। जैसे ..आभूषणानि मनसा परिकल्प्य समर्पयामि, ..बिल्वपत्रान् परिकल्प्य समर्पयामि।.... इत्यादि।
आसन-अनेक-रत्न-संयुक्तं नाना-मणि-गणान्वितम्।
इदं हेममयं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम्॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। आसनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि।
(रत्नमय आसन या फूल समर्पित करे।)
पाद्य- गङ्गादि-सर्वतीर्थेभ्य आनीतं तोयमुत्तमम्।
पाद्यार्थं ते प्रदास्यामि गृहाण परमेश्वरि॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। पादयोः पाद्यं समर्पयामि।
(जल चढ़ाये।)
अर्घ्य- गन्ध-पुष्पाक्षतैर्युक्तमर्घ्यं सम्पादितं मया।
गृहाण त्वं महादेवि प्रसन्ना भव सर्वदा॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः।
हस्तयोः अर्घ्यं समर्पयामि।
(चन्दन, पुष्प, अक्षतसे युक्त अर्घ्य दे।)
आचमन- कर्पूरेण सुगन्धेन वासितं स्वादु शीतलम्।
तोयमाचमनीयार्थं गृहाण परमेश्वरि॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। आचमनं समर्पयामि।(कर्पूर से सुवासित शीतल जल चढ़ाये।)
स्नान-मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपाप-हरं शुभम्।
तदिदं कल्पितं देवि! स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। स्नानार्थं जलं समर्पयामि।
(गङ्गा-जल चढ़ाये।)
स्नानाङ्ग-आचमन- स्नानान्ते पुनराचमनीयं जलं समर्पयामि।
(आचमनके लिये जल दे।)
दुग्धस्नान- कामधेनु-समुत्पन्नं सर्वेषां जीवनं परम्।
पावनं यज्ञ-हेतुश्च पयः स्नानार्थमपितम्॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। दुग्धस्नानं समर्पयामि। (गो-दुग्ध से स्नान कराये।)
दधिस्नान-पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम्।
दध्यानीतं मया देवि! स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
श्रीजगदम्बायै दुगादेव्यै नमः । दधिस्नानं समर्पयामि। (गोदधि से स्नान कराये।)
घृतस्नान- नवनीत-समुत्पन्नं सर्व-संतोष-कारकम्।
घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। घृतस्नानं समर्पयामि। (गोघृत से स्नान कराये।)
मधुस्नान- पुष्परेणु-समुत्पन्नं सुस्वादु मधुरं मधु।
तेजःपुष्टि- समायुक्तं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
श्रीजगदम्बायै दुगादिव्यै नमः। मधुस्नानं समर्पयामि। (मधु से स्नान कराये।)
शर्करास्नान- इक्षु-सार-समुद्भूतां शर्करां पुष्टिदां शुभाम्।
मलापहारिकां दिव्यां स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
श्रीजगदम्बाये दुर्गादेव्यै नम:। शर्करा-स्नानं समर्पयामि ।
(शक्कर से स्नान कराये।)
पञ्चामृतस्नान- पयो दधि घृतं चैव मधु च शर्करान्वितम्।
पञ्चामृतं मयाऽऽनीतं स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम्॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। पञ्चामृत-स्नानं समर्पयामि।
(अन्य पात्र में पृथक् दूध, दही, घी, चीनी, शहद से निर्मित पञ्चामृत से स्नान कराये।)
गन्धोदकस्नान- मलयाचल-सम्भूतं चन्दनागरु-मिश्रितम्।
सलिलं देव-देवेशि शुद्धस्नानाय गृह्यताम्॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। गन्धोदक-स्नानं समर्पयामि।
(मलयचन्दन और अगरु से मिश्रित जल चढ़ाये।)
श्री दुर्गा अभिषेक-
यदि मूर्ति है तो इस श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्र से अभिषेक किया जा सकता है-
दुर्गा शिवा महालक्ष्मी-र्महागौरी च चण्डिका।
सर्वज्ञा सर्वलोकेशा सर्वकर्म-फलप्रदा॥१॥
सर्वतीर्थमया पुण्या देवयोनि-रयोनिजा।
भूमिजा निर्गुणा चैवाधार-शक्तिरनीश्वरा॥२॥
निर्गुणा निरहङ्कारा सर्वगर्व-विमर्दिनी।
सर्वलोकप्रिया वाणी सर्व-विद्याधिदेवता॥३॥
पार्वती देवमाता च वनीशा विन्ध्यवासिनी।
तेजोवती महामाता कोटिसूर्य-समप्रभा॥४॥
देवता वह्निरूपा च सदौजा वर्ण-रूपिणी।
गुणाश्रया गुणमयी गुणत्रय-विवर्जिता॥५॥
कर्मज्ञानप्रदा कान्ता सर्वसंहार-कारिणी ।
धर्मज्ञाना धर्मनिष्ठा सर्वकर्म-विवर्जिता॥६॥
कामाक्षा कामसंहन्त्री कामक्रोध-विवर्जिता।
शाङ्करी शाम्भवी शान्ता चन्द्रसूर्याग्नि-लोचना॥७॥
सुजया जयभूमिष्ठा जाह्नवी जनपूजिता।
शास्त्रा शास्त्रमया नित्या शुभा चन्द्रार्धमस्तका॥८॥
भारती भ्रामरी कल्पा कराली कृष्णपिङ्गला।
ब्राह्मी नारायणी रौद्रा चन्द्रामृत-परिश्रुता॥९॥
ज्येष्ठेन्दिरा महामाया जगत्सृष्ट्यादि-कारिणी।
ब्रह्माण्ड-कोटि-संस्थाना कामिनी कमलालया॥१०॥
कात्यायनी कलातीता कालसंहार-कारिणी।
योगिनिष्ठा योगिगम्या योगिध्येया तपस्विनी॥११॥
ज्ञानरूपा निराकारा भक्ताभीष्ट-फलप्रदा।
भूतात्मिका भूतमाता भूतेशा भूतधारिणी॥१२॥
स्वधानारी-मध्यगता षडाधारादि-वर्तिनी।
मोहिता शुभदा शुभ्रा सूक्ष्मा मात्रा निरालसा॥१३॥
निम्नगा नील-सङ्काशा नित्यानन्दा हरा परा।
सर्वज्ञान-प्रदाऽनन्ता सत्या दुर्लभ-रूपिणी।
सरस्वती सर्वगता सर्वाभीष्ट-प्रदायिनी॥१४॥
शुद्धोदकस्नान- शुद्धं यत् सलिलं दिव्यं गङ्गाजल-समं स्मृतम्।
समर्पितं मया भक्त्या स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि। (शुद्ध जलसे स्नान कराये।)
आचमन- शुद्धोदक-स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि। (आचमनके लिये जल दे।)
वस्त्र- पट्टयुग्मं मया दत्तं कञ्चुकेन समन्वितम्। परिधेहि कृपां कृत्वा मातर्दुर्गार्ति-नाशिनि॥ श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। वस्त्रोपवस्त्रं कञ्चुकीयं च समर्षयामि। (धौतवस्त्र, उपवस्त्र और कञ्चुकी निवेदित करे।) वस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि। (आचमन के लिये जल दे।)
सौभाग्यसूत्र- सौभाग्यसूत्रं वरदे सुवर्ण-मणि-संयुतम्। कण्ठे बध्नामि देवेशि सौभाग्यं देहि मे सदा॥ श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। सौभाग्यसूत्रं समर्पयामि। (सौभाग्यसूत्र चढ़ाये।)
चन्दन- श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्। विलेपनं सुरश्रेष्ठे चन्दनं प्रतिगृह्यताम्॥ श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। चन्दनं समर्पयामि। (मलयचन्दन लगाये।)
हरिद्राचूर्ण- हरिद्रा-रञ्जिते देवि! सुख-सौभाग्य-दायिनि। तस्मात् त्वां पूजयाम्यत्र सुखं शान्तिं प्रयच्छ मे॥ श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। हरिद्रां समर्पयामि। (हल्दीका चूर्ण चढ़ाये।)
कुङ्कुम- कुङ्कुमं कामदं दिव्यं कामिनी-काम-सम्भवम्। कुङ्कुमेनार्चिता देवी कुङ्कुमं प्रतिगृह्यताम्॥ श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। कुङ्कुमं समर्पयामि। (कुङ्कुम चढ़ाये।)
सिन्दूर- सिन्दूरमरुणा-भासं जपाकुसुम-सन्निभम्। अर्पितं ते मया भक्त्या प्रसीद परमेश्वरि॥ श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः । सिन्दूरं समर्पयामि। (सिन्दूर चढ़ाये।)
कज्जल(काजल)- चक्षुर्भ्यां कज्जलं रम्यं सुभगे शान्ति-कारकम्। कर्पूर-ज्योति-समुत्पन्नं गृहाण परमेश्वरि॥ श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। कज्जलं समर्पयामि। (काजल चढ़ाये।)
दूर्वाङ्कुर- तृणकान्त-मणिप्रख्य-हरिताभिः सुजातिभिः। दूर्वाभिराभिर्भवतीं पूजयामि महेश्वरि॥ श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। दूर्वाङ्कुरान् समर्पयामि। (दूब चढ़ाये।)
बिल्वपत्र—त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम्। त्रिजन्म-पाप-संहारं न्रिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥ श्रीजगदम्बायै दुगदिव्यै नमः। बिल्वपत्रं समर्पयामि। (बिल्वपत्र चढ़ाये।)
आभूषण- हार-कङ्कण-केयूर-मेखला-कुण्डलादिभिः। रत्नाढ्यं हीरकोपेतं भूषणं प्रतिगृह्यताम्॥ श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। आभूषणानि समर्पयामि। (आभूषण चढाये।)
पुष्पमाला- माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि भक्तितः। मयाहृतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम्॥ श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। पुष्पमालां समर्पयामि। (पुष्प एवं पुष्पमाला चढाये ।)
नाना-परिमल-द्रव्य- अबीरं च गुलालं च हरिद्रादिसमन्वितम्। नाना-परिमलद्रव्यं गृहाण परमेश्वरि॥ श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। नाना-परिमल-द्रव्याणि समर्पयामि। (अबीर, गुलाल, हल्दीका चूर्ण चढ़ाये।)
सौभाग्यपेटिका- हरिद्रां कुङ्कुमं चैव सिन्दूरादि-समन्विताम्। सौभाग्य-पेटिकामेतां गृहाण परमेश्वरि॥ श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। सौभाग्य-पेटिकां समर्पयामि। (सौभाग्यपेटिका समर्पण करे |)
धूप- वनस्पति-रसोद्भूतो गन्धाढ्यो गन्ध उत्तमः। आघ्रेयः सर्व-देवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्याताम्॥ श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। धूपमाघ्रापयामि। ( धूप दिखाये।)
दीप- साज्यं च वर्ति-संयुक्तं वह्निना योजितं मया। दीपं गृहाण देवेशि त्रैलोक्य-तिमिरापहम्॥ श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। दीपं दर्शयामि। (घी की बत्ती दिखाये, हाथ धो ले।)
नैवेद्य- शर्करा-खण्ड-खाद्यानि दधि-क्षीर-घृतानि च। आहारार्थं भक्ष्यभोज्यं नेवेद्यं प्रति-गृह्यताम्॥ श्रीजगदम्बायै दुगादेव्यै नमः। नैवेद्यं निवेदयामि। (नैवेद्य निवेदित करे, देवी भोजन ग्रहण कर रही हैं ऐसी भावना करे।)
आचमनीय आदि- नैवेद्यान्ते ध्यानमाचमनीयं जलमुत्तरापोऽशनं हस्त-प्रक्षालनार्थ मुख-प्रक्षालनार्थ च जलं समर्पयामि। (आचमनीसे जल दे।)
ऋतुफल- इदं फलं मया देवि स्थापितं पुरतस्तव। तेन मे सफला-वाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि॥ श्री जगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। ऋतुफलानि समर्पयामि। (फल समर्पण करे।)
ताम्बूल- पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्ली-दलैर्युतम्। एला-लवङ्ग-संयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम्॥ श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। ताम्बूलं समर्पयामि। (इलायची, लौंग, सुपारी के साथ पान निवेदित करे)
दक्षिणा- दक्षिणां हेम-सहितां यथा-शक्ति-समर्पिताम्। अनन्त-फल-दामेनां गृहाण परमेश्वरि॥ श्रीजगदम्बायै दुरगादेव्यै नमः। दक्षिणां समर्पयामि। (दक्षिणा चढ़ाये।)
आरती- कदली-गर्भ-सम्भूतं कर्पूरं तु प्रदीपितम्। आरातिकमहं कुर्वे पश्य मां वरदा भव॥ श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। कर्पूरारार्तिक्यं समर्पयामि। (कपूर की आरती करे।)
श्रीअम्बा जी की आरती
जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामागौरी। तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव जी॥१॥ जय अम्बे०
माँग सिंदूर विराजत टीको मृगमदको। उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रबदन नीको॥२॥ जय अम्बे०
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै। रक्त-पुष्प गल माला कण्ठन-पर साजै॥३॥ जय अम्बे०
केहरि वाहन राजत, खड्ग खपर धारी। सुर-नर-मुनि-जन सेवत, तिनके दुखहारी॥ ४॥ जय अम्बे०
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती। कोटिक चंद्र दिवाकर सम राजत ज्योती॥५॥ जय अम्बे०
शुम्भ निशुम्भ विदारे, महिषासुर-घाती। धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती॥६॥ जय अम्बे०
चण्ड मुण्ड संहारे, शोणितबीज हरे। मधु-केटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥७॥ जय अम्बे०
ब्रह्माणी, रुद्राणी तुम कमला रानी। आगम-निगम बखानी, तुम शिव-पटरानी॥८॥ जय अम्बे०
चौसठ योगिनि गावत, नृत्य करत भेरूँ। बाजत ताल मृदंगा औ बाजत डमरू॥९॥ जय अम्बे०
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता। भक्तन की दुख हरता सुख सम्पति करता॥ १०॥ जय अम्बे०
भुजा चार अति शोभित, वर-मुद्रा धारी। मनवांछित फल पावत सेवत नर-नारी॥११॥ जय अम्बे०
कंचन थाल विराजत अगर कपुर बाती। (श्री)मालकेतु में राजत कोटिरतन ज्योती ॥ १२॥ जय अम्बे०
(श्री) अम्बेजी की आरति जो कोइ नर गावे। कहत शिवानंद स्वामी, सुख सम्पति पावै॥१३॥ जय अम्बे०
प्रदक्षिणा- यानि कानि च पापानि जन्मान्तर-कृतानि च। तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे॥ श्रीजगदम्बायै दुगादिव्यै नमः। प्रदक्षिणां समर्पयामि। (प्रदक्षिणा करे।)
मन्त्रपुष्पाञ्लि— श्रद्धया सिक्त्या भक्त्या हार्दप्रेम्णा समर्पिता। मन्त्र-पुष्पाञ्जलिश्चायं कृपया प्रतिगृह्यताम्॥
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। मन्त्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि। (पुष्पाञ्जलि समपित करे।)
नमस्कार- या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। नमस्कारान् समर्पयामि। (नमस्कार करे, इसके बाद चरणोदक सिर पर चढ़ाये।)
क्षमा-याचना- मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि। यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे॥ श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नमः। क्षमा-याचनां समर्पयामि ।
(क्षमा-याचना करे।)
अर्पण- सर्वं श्री ब्रह्मार्पणमस्तु । विष्णवे नमः, विष्णवे नमः, विष्णवे नमः।
देवी को जल अर्पण कर दे।
इस प्रकार से श्री दुर्गा जी की पूजा सम्पन्न होती है... ये प्रत्येक उपचार जो हम देवी जी को चढ़ा रहे हैं इन सबका भी अपना-अपना विशिष्ट फल होता है। बस हमने सच्चे हृदय से अपनी श्रद्धा भगवती के लिए अर्पित करनी है वे हमारा सर्वविध कल्याण ही करेंगी।
नवरात्र में विशेष पूजा
विशेष पूजा के अंतर्गत नवरात्र में प्रतिपदा से नवमी तक क्रम से दसों महाविद्याओं के १०८ नाम स्तोत्र पढ़ें। जिनके पास पूजन के लिये समय हो वो १०८ नामों से पुष्प अक्षत देवी जी को चढ़ावें। श्री शैलपुत्री से श्री सिद्धिदात्री तक की नौ देवियों की क्रम से प्रतिदिन की तिथि के अनुसार उनके ध्यान मंत्रों द्वारा पूजा व ध्यान मंत्र का जप करें। शैलपुत्री जी आदि के अलावा दुर्गा जी के अन्य नौ विशिष्ट रूप भी हैं -
दुर्गा त्वार्या भगवती कुमारी अम्बिका तथा।
महिषोन्मर्दिनी चैव चण्डिका च सरस्वती।
वागीश्वरीति क्रमशः प्रोक्तास्तद्दिन- देवताः॥
उपरोक्त श्लोकों के अनुसार, नवरात्र में प्रतिपदा तिथि से लेकर नवमी तिथि तक नौ देवियां क्रमशः पूजनी चाहिए, उन के १०८ नामों के लिंक प्रस्तुत हैं—
ये नौ श्री दुर्गा जी के ही रूप हैं। विविध स्वरूपों की आराधना करने से उस-उस स्वरूप द्वारा विशिष्ट फलों की प्राप्ति उपासक को होती है।
नवरात्र में साप्ताहिक सप्तशती पारायण विधि
कौन सा कार्य है जो भगवती की कृपा से नहीं हो सकता है! इसीलिए श्री दुर्गा सप्तशती का नवरात्रि में पारायण किया जाता है। वैसे तो उत्तम यह है कि नवरात्रि में प्रतिदिन श्री दुर्गा सप्तशती के 13 अध्याय पढें। किन्हीं को तो इसका इतना अच्छा अभ्यास हो गया है कि 1 घंटे में ही पूर्ण लेते हैं। यह संभव न हो तो नौ दिनों में से किसी एक दिन(विशेषकर अष्टमी को) १३ अध्याय पढ़ लें। यह भी ना हो तो केवल मध्यमचरित का पाठ कर लेना चाहिये। परन्तु एक दिन में इतने अध्याय पढ़ना यदि संभव न हो सके तो कई विद्वान श्री दुर्गा -सप्तशती का साप्ताहिक पारायण भी किया करते हैं।
इसमें प्रतिदिन कवच, अर्गला, कीलक और तीन रहस्य (प्राधानिक, वैकृतिक व मूर्तिरहस्य) पढ़ना चाहिये। ये सप्तशती के छः अनिवार्य अंग हैं अन्य भले ही न करे। प्रारम्भ में कवच, अर्गला, कीलक पढ़ें फिर सप्तशती के अध्याय उसके बाद रहस्य-त्रय पढें। सिद्धकुंजिका स्तोत्र भी पढ़ लेना चाहिये। जो नवार्णमंत्र में दीक्षित नहीं हैं उनके लिए इसमें नवार्ण मंत्र पढ़ना आवश्यक नहीं है।
इस साप्ताहिक पारायण का संकल्प निम्न प्रकार से करें -
श्री विष्णवे नमः। श्री विष्णवे नमः। श्री विष्णवे नमः। श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वत-मन्वन्तरे अष्टाविंशति-तमे कलियुगे कलि-प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भरतखंडे भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशे ....(शहर/गांव आदि का नाम बोले).....नगरे/ग्रामे/क्षेत्रे ....(संवत्सर का नाम).....नाम्नि विक्रम संवत्सरे ..........मासे शुक्ल-पक्षे प्रतिपदा तिथौ ....(वार का नाम....वासरे ...(प्रातः/ सायं)...काले .......गोत्रः ...(आपका नाम)...शर्मा/ वर्मा/ गुप्तः अहं ममोपात्त-दुरित-क्षयद्वारा श्रीदुर्गा परमेश्वरी प्रीत्यर्थं श्री दुर्गासप्तशती स्तोत्रस्य साप्ताहिक पारायणं करिष्ये।
इन सात दिनों में पाठ का क्रम क्या रहेगा समझ लें-1. प्रथम दिन → प्रथम अध्याय पढ़ें
2. द्वितीय दिन → २ अध्याय
(द्वितीय व तृतीय अध्याय पढ़ें)
3. तृतीय दिन → १ अध्याय
(चतुर्थ अध्याय पढ़ें)
4. चतुर्थ दिन → ४ अध्याय
(पंचम, षष्ठ, सप्तम, अष्टम अध्याय)
5. पंचम दिन →२ अध्याय
(नवम व दशम अध्याय पढ़ें)
6. षष्ठ दिन → १ अध्याय
(एकादश अध्याय पढ़ें)
7. सप्तम दिन → २ अध्याय
(द्वादश और त्रयोदश अध्याय पढें)
जिनसे संस्कृत में नहीं हो सकता है वे हिंदी अनुवाद ही पढ़ लें। इस प्रकार से हर हिंदू को चाहिए कि वे भगवती दुर्गा की आराधना करके सभी दुःखों से मुक्ति पाएं और पारलौकिक उन्नति प्राप्त करें।
भगवती दुर्गा को हमारा अनेकों बार प्रणाम है।


अति सुंदर
जवाब देंहटाएंसाधुवाद
Thanks for that
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