- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
का
|
र्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी 'नरक चतुर्दशी' कहलाती है। सनत्कुमार संहिता के अनुसार इसे पूर्वविद्धा लेना चाहिये। इस दिन अरुणोदय से पूर्व प्रत्यूषकाल में स्नान करने से मनुष्य को यमलोक का दर्शन नहीं करना पड़ता। यद्यपि कार्तिकमास में तेल नहीं लगाना चाहिये, फिर भी इस तिथिविशेष को शरीर में तेल लगाकर स्नान करना चाहिये। जो व्यक्ति इस दिन सूर्योदय के बाद स्नान करता है, उसके शुभ कार्यों का नाश हो जाता है। स्नान से पूर्व शरीर पर अपामार्ग/चिरचिटा का प्रोक्षण करना चाहिये। निम्न मन्त्र पढ़कर अपामार्ग को अथवा लौकी को मस्तक पर घुमाकर नहाने से नरक का भय नहीं रहता-
सीतालोष्ठसमायुक्तं सकण्टकदलान्वितम् ।
हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाणःपुनः पुनः ॥
स्नान के बाद शुद्ध वस्त्र पहनकर, तिलक लगाकर दक्षिणाभिमुख होकर निम्न नाममन्त्रों से प्रत्येक नाम से तिलयुक्त तीन-तीन जलाञ्जलि दी जानी चाहिये। यह यम-तर्पण कहलाता है। इससे वर्ष भर के पाप नष्ट हो जाते हैं।
'ॐ यमाय नमः','ॐ धर्मराजाय नमः','ॐ मृत्यवे नमः',
'ॐ अन्तकाय नमः','ॐ वैवस्वताय नमः','ॐ कालाय नमः',
'ॐ सर्वभूतक्षयाय नमः','ॐ औदुम्बराय नमः','ॐ दध्नाय नमः',
'ॐ नीलाय नमः','ॐ परमेष्ठिने नमः','ॐ वृकोदराय नमः',
'ॐ चित्राय नमः', 'ॐ चित्रगुप्ताय नमः'।
इस दिन देवताओं का पूजन करके सायंकाल को दीपदान करना चाहिये। मन्दिरों, गुप्तगृहों, रसोई, स्नानघर, देववृक्षों के नीचे, सभाभवन, नदियों के किनारे, चहारदीवारी, बगीचे, बावली, गली-कूचे, गोशाला आदि प्रत्येक स्थान पर दीपक जलाना चाहिये। यमराज के उद्देश्य से त्रयोदशी से अमावास्या तक दीप जलाने चाहिये।
हिन्दू धर्मग्रन्थों में कथा है कि भगवान श्री हरि ने वामनावतार में सम्पूर्ण पृथ्वी नाप ली थी। तब बलि के दान-भक्ति से प्रसन्न हो वामन भगवान ने उनसे वर मांगने को कहा। उस समय बलि ने प्रार्थना की कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी सहित इन तीन दिनों में मेरे राज्य [उस समय सम्पूर्ण पृथ्वी लोक में बलि का ही अधिपत्य था जिसे उन्होंने भगवान को दान कर दिया] का जो भी व्यक्ति यमराज के उद्देश्य से दीपदान करे, उसे यम-यातना न हो और इन तीन दिनों में दीपावली मनाने वाले के घर को लक्ष्मीजी कभी न छोड़ें। भगवान ने कहा- "एवमस्तु! जो मनुष्य इन तीन दिनों में दीपोत्सव करेगा, उसे छोडकर मेरी प्रिया लक्ष्मी कहीं नहीं जायेंगी।"
नरक चतुर्दशी/नरकहरा/नरक चौदस पर भगवान लक्ष्मी-नारायण को एवं यमदेव को कोटि-कोटि नमन........।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
कृपया टिप्पणी करने के बाद कुछ समय प्रतीक्षा करें प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है। अंतर्जाल (इन्टरनेट) पर उपलब्ध संस्कृत में लिखी गयी अधिकतर सामग्री शुद्ध नहीं मिलती क्योंकि लिखने में उचित ध्यान नहीं दिया जाता यदि दिया जाता हो तो भी टाइपिंग में त्रुटि या फोंट्स की कमी रह ही जाती है। संस्कृत में गलत पाठ होने से अर्थ भी विपरीत हो जाता है। अतः पूरा प्रयास किया गया है कि पोस्ट सहित संस्कृत में दिये गए स्तोत्रादि शुद्ध रूप में लिखे जायें ताकि इनके पाठ से लाभ हो। इसके लिए बार-बार पढ़कर, पूरा समय देकर स्तोत्रादि की माननीय पुस्तकों द्वारा पूर्णतः शुद्ध रूप में लिखा गया है; यदि फिर भी कोई त्रुटि मिले तो सुधार हेतु टिप्पणी के माध्यम से अवश्य अवगत कराएं। इस पर आपकी प्रतिक्रिया व सुझाव अपेक्षित हैं, पर ऐसी टिप्पणियों को ही प्रकाशित किया जा सकेगा जो शालीन हों व अभद्र न हों।