नोट - यहाँ प्रकाशित साधनाओं, स्तोत्रात्मक उपासनाओं को नियमित रूप से करने से यदि किसी सज्जन को कोई विशेष लाभ हुआ हो तो कृपया हमें सूचित करने का कष्ट करें।
⭐विशेष⭐
⭐23 अप्रैल - मंगलवार- श्रीहनुमान जयन्ती
⭐10 मई - श्री परशुराम अवतार जयन्ती
⭐10 मई - अक्षय तृतीया,
⭐10 मई -श्री मातंगी महाविद्या जयन्ती
12 मई - श्री रामानुज जयन्ती , श्री सूरदास जयन्ती, श्री आदि शंकराचार्य जयन्ती
⭐ 15 मई - श्री बगलामुखी महाविद्या जयन्ती
⭐16 मई - भगवती सीता जी की जयन्ती | श्री जानकी नवमी | श्री सीता नवमी
⭐21 मई-श्री नृसिंह अवतार जयन्ती, श्री नृसिंहचतुर्दशी व्रत,
श्री छिन्नमस्ता महाविद्या जयन्ती, श्री शरभ अवतार जयंती। भगवत्प्रेरणा से यह blog 2013 में इसी दिन वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को बना था।
⭐ 23 मई - श्री कूर्म अवतार जयन्ती
⭐24 मई -देवर्षि नारद जी की जयन्ती
आज - कालयुक्त नामक विक्रमी संवत्सर(२०८१), सूर्य उत्तरायण, वसन्त ऋतु, चैत्र मास, शुक्ल पक्ष।
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महाकाली महिमा तथा काली एकाक्षरी मन्त्र पुरश्चरण
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भगवती काली के विभिन्न नामों का कारण -
सभी प्राणियों को अपने में समेट लेने के कारण शिव जी का महाकाल नाम है, उन महाकाल को भी अपने में समेट लेने के कारण कालिका देवी का आद्याकाली नाम है। परबह्म की नित्य क्रियाशक्ति का नाम काली है। निष्क्रिय परब्रह्म का सक्रिय रूप ही देवी काली हैं। विश्व के रूप में प्रकट होने वाली क्रिया शक्ति ही काली महाविद्या है। कालिका माँ ही समस्त तत्वों का कारण रूप हैं, ये देवी ही ईश्वर तत्व हैं, भगवती काली ही भगवान शिव का शरीर हैं। बाहर की ओर उन्मुख होते हुए भी यह अपने ऊपर ही स्थित हैं। भगवान शिव और उन पर स्थित उनकी क्रिया शक्ति भगवती काली एक ही तत्व के ही दो नाम हैं। सबका आरम्भ रूप होने से और सबको अपने में समेट लेने के कारण इनका आद्याकाली नाम है। ये अकथनीय होने के कारण काली कहलाती हैं। साकार होने पर भी निराकार होने के कारण इनका काली नाम है। भगवती काली ही कर्ता, हर्ता और पालन करने वाली हैं। निर्वाण तन्त्र के अनुसार दक्षिण दिशा का स्वामी यम, काली नाम सुनकर भाग जाता है। काली महाविद्या का नाम लेने वाले अर्थात् कालिका उपासक को यम नरक नहीं ले जा सकता है, इसी कारण इन भगवती का नाम दक्षिणाकाली है। श्री दक्षिणामूर्ति भैरव द्वारा देवी काली की सर्वप्रथम आराधना की गयी इस कारण इनका नाम दक्षिणाकाली विख्यात हुआ। शक्तिसंगम तन्त्र के अनुसार "वरदानेषु चतुरा तेनेयं दक्षिणा स्मृता।" अर्थात् वरदान देने में भगवती बड़ी चतुर हैं इसलिए दक्षिणा कहलाती हैं।
॥काली काली महाकाली कालिके परमेश्वरी सर्वानन्द करे देवि नारायणि नमोस्तुते॥
यहाँ विचार करें तो देवी काली के घोरा या अघोरा दोनो शब्द प्रयुक्त हो सकते हैं। अघोरा अर्थात् जो भयानक रूप वाली न हों। देवी मां दुष्ट जनों को भयानक रूप प्रदर्शित करके भय देने वाली हैं परन्तु भक्त के लिए तो माँ के समान होने से देवी काली का कोई भी रूप सौम्य ही है। यह ध्यान रहे कि उपरोक्त मन्त्र में तन्नोऽघोरा में ऽ चिह्न प्लुत स्वर के उच्चारण के लिए प्रयुक्त हुआ है। अर्थात् तन्नो में ओ की मात्रा को थोड़ा लम्बा खींचना होगा फिर घोरा बोले। जैसे ओऽम् का उच्चारण होता है। केवल तन्नोघोरा बोलना भी मान्य है, परन्तु मुख्यतः अघोरा की ओर ही संकेत किया गया है।
एकाक्षरी कालिका मन्त्र पुरश्चरण विधि
सामग्री : शिव मूर्ति चित्र या शिवलिंग, गणेश मूर्ति या चित्र, कालिका मूर्ति/चित्र/यन्त्र, रुद्राक्ष माला, रोली-चन्दन, जल, फूल, धूप-दिया, फल-नैवेद्य ।(1) आचमन, पवित्रीकरण, आसन शुद्धि करे। जिसका गुरु हो वो गुरु पूजन करे। जिसका गुरु नहीं हो वह अपने सामने रखे शिवलिंग या शिव मूर्ति/चित्र को श्रीदक्षिणामूर्ति शिवजी जानकर और अपना गुरु मानकर पूजा करे -
श्री दक्षिणामूर्ति गुरू ध्यान :- मौन-व्याख्या-प्रकटित परब्रह्म-तत्त्वं युवानं, वर्षिष्ठान्ते-वसदृषि-गणै-रावृतं ब्रह्मनिष्ठैः ।
आचार्येन्द्रं करकलित - चिन्मुद्रमानन्दरूपं , स्वात्मारामं मुदितवदनं श्रीदक्षिणामूर्ति-मीडे ॥
(ब्रह्मनिष्ठ ऋषियों से घिरे युवा गुरु मौन रह कर ब्रह्म ज्ञान प्रदान कर रहे हैं । अपने हाथ की ज्ञान मुद्रा द्वारा उपदेश करते हुए ऐसे आनन्दरूप गुरुओं के गुरु दक्षिणामूर्ति जी को मैं प्रणाम करता हूं ।)
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया । चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
अब गुरु पूजा करे - महादेवाय हुं श्री दक्षिणामूर्ति गुरवे नमः, क्रीं लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं अनुकल्पयामि । चन्दन चढा दे
महादेवाय हुं, श्री दक्षिणामूर्ति गुरवे नमः, क्रीं हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं अनुकल्पयामि। फूल चढा दे
महादेवाय हुं, श्री दक्षिणामूर्ति गुरवे नमः, क्रीं यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं अनुकल्पयामि। धूप जला दे
महादेवाय हुं श्री दक्षिणामूर्ति गुरवे नमः, क्रीं रं वह्नयात्मकं दीपं अनुकल्पयामि । दीप दिखा दे
महादेवाय हुं श्री दक्षिणामूर्ति गुरवे नमः, क्रीं वं अमृत-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं अनुकल्पयामि। नैवेद्य चढा दे
महादेवाय हुं, श्री दक्षिणामूर्ति गुरवे नमः॥ क्रीं सं सर्व-तत्त्वात्मकं सर्वोपचारं मनसा परिकल्प्य समर्पयामि। फूल चढा दे
नमस्कार करके गुरु से श्रीकालिका जप-पूजन की आज्ञा देने की प्रार्थना करें -
अनेकजन्म-संप्राप्त कर्मबन्ध-विदाहिने। आत्मज्ञान-प्रदानेन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
स्मित-धवल-विकसिताननाब्जं श्रुति-सुलभं वृषभाधिरूढ-गात्रम्। सितजलज-सुशोभित-देहकान्तिं सततमहं दक्षिणामूर्तिमीडे ,
त्रिभुवन-गुरुमागमैक-प्रमाणं त्रिजगत्कारण-सूत्रयोग-मायम्। रविशत-भास्वरमीहित-प्रधानं सततमहं दक्षिणामूर्तिमीडे ।
अखण्ड-मण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् । तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ,
निरवधि-सुखमिष्ट-दातारमीड्यं नतजन-मनस्ताप-भेदैक-दक्षम्। भव-विपिन-दवाग्नि-नामधेयं सततमहं दक्षिणामूर्तिमीडे ।
महादेवाय हुं श्रीगुरो दक्षिणामूर्ते भक्तानुग्रह-कारक। अनुज्ञां देहि भगवन् श्रीकालिका-जपार्चनस्य मे॥
अब गुरु मन्त्र 11 बार जपे : महादेवाय हुं श्री दक्षिणामूर्ति शिव गुरवे नमः॥
(2) गणेशजी की मूर्ति/चित्र पर फूल चढाकर ध्यान करे= विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय, लम्बोदराय सकलाय जगत् हिताय। नागाननाय श्रुतियज्ञभूषिताय, गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते ॥ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।
लम्बोदर नमस्तुभ्यं सततं मोदकप्रियं। निर्विघ्न कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।
गं गणेशाय नमः हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं अनुकल्पयामि । फूल चढ़ाए
गं गणेशाय नमः यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं अनुकल्पयामि। धूप जलाए
गं गणेशाय नमः रं वह्नयात्मकं दीपं अनुकल्पयामि। दीप दिखाए
गं गणेशाय नमः वं जल-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं अनुकल्पयामि। (फल / बताशा आदि नैवेद्य में रखे )
गं गणेशाय नमः शं शक्त्यात्मकं सर्वोपचारं अनुकल्पयामि। फूल चढ़ाए।
अब गणेश जी को नमस्कार करे :
सर्व-विघ्नविनाशनाय सर्व-कल्याण-हेतवे, पार्वती-प्रियपुत्राय श्रीगणेशाय नमो नम: ।। गजानन-म्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारु-भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर-पादपंकजम्।
(3) अब हाथ में फूल लेकर बोले - ॐ भैरवाय नमः, अतितीक्ष्ण महाकाय कल्पांत दहनोपम, भैरवाय नमस्तुभ्यं अनुज्ञां दातुमर्हसि।
फूल शिवजी को चढा दे। अब इष्टदेवी काली माँ का चित्र/मूर्ति/यन्त्र सामने रखकर उनको प्रणाम करे :-
काली महाकाली कालिके परमेश्वरी। सर्वानन्दकरे देवी नारायणि नमोऽस्तुते।।
(4) साधना के प्रथम दिन पुरश्चरण का यह संकल्प करे :
(5) अब “क्रीं” मन्त्र से प्राणायाम करे = मन में 4 बार क्रीं जपकर नाक से श्वास अंदर को ले, अब 16 बार मन्त्र जपने तक श्वास को भीतर रोके रखे इसके बाद 8 बार जपते हुए श्वास बाहर निकाले। ये प्राणायाम कुल तीन बार करना है।
(6)अब भूतशुद्धि(शरीर स्थित पंचतत्वों की शुद्धि) करे अर्थात "ॐ हौं" मन्त्र का 11 बार जप करे।
(7) दृष्टिसेतु : नासाग्र अथवा भ्रूमध्य में दृष्टि रखते हुए १० बार ॐ का जप करे। प्रणव के अनाधिकारी औं मन्त्र का १० बार जप करे।
(8) मन्त्र शिखा : श्वास को भीतर लेकर कल्पना करे कि अपने मूलाधार में स्थित कुलकुण्डलिनी शक्ति क्रीं मन्त्र की शिखा है, यह सहस्रार में जा रही है फिर इसको कल्पना द्वारा सहस्रार से वापस मूलाधार में ले आये। इस तरह से कई दिन अभ्यास करते करते सुषुम्ना पथ पर विद्युत की तरह दीर्घाकार तेज प्रतीत होगा।
(9) मन्त्र चैतन्य : "गुरुदेव, मन्त्र, काली माँ और अन्तरात्मा सब एक ही हैं" यह सोचे फिर “ईं क्रीं ईं” मन्त्र को 11 बार जपे।
(10) माँ काली का कवच पढ़े -
श्रृणु वक्ष्यामि विप्रेन्द्र कवचं परमाद्भुतम्।
नारायणेन यद् दत्तं कृपया शूलिने पुरा॥
त्रिपुरस्य वधे घोरे शिवस्य विजयाय च।
तदेव शूलिना दत्तं पुरा दुर्वाससे मुने॥
दुर्वाससा च यद् दत्तं सुचन्द्राय महात्मने।
अतिगुह्यतरं तत्त्वं सर्वमन्त्रौघविग्रहम्॥
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहा मे पातु मस्तकम्।
क्लीं कपालं सदा पातु ह्रीं ह्रीं ह्रीमिति लोचने॥
ॐ ह्रीं त्रिलोचने स्वाहा नासिकां मे सदावतु।
क्लीं कालिके रक्ष रक्ष स्वाहा दन्तान् सदावतु॥
ह्रीं भद्रकालिके स्वाहा पातुमेऽधरयुग्मकम्।
ॐ ह्रीं ह्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहा कण्ठं सदावतु॥
ॐ ह्रीं कालिकायै स्वाहा कर्णयुग्मं सदावतु।
ॐ क्रीं क्रीं क्लीं काल्यै स्वाहा स्कन्धं पातुसदा मम॥
ॐ क्रीं भद्रकाल्यै स्वाहा मम वक्ष: सदावतु।
ॐ क्रीं कालिकायै स्वाहा मम नाभिं सदावतु॥
ॐ ह्रीं कालिकायै स्वाहा मम पृष्ठं सदावतु।
रक्तबीजविनाशिन्यै स्वाहा हस्तौ सदावतु॥
ॐ ह्रीं क्लीं मुण्डमालिन्यै स्वाहा पादौ सदावतु।
ॐ ह्रीं चामुण्डायै स्वाहा सर्वाङ्गं मे सदावतु॥
प्राच्यां पातु महाकाली चाग्नेय्यां रक्तदन्तिका।
दक्षिणे पातु चामुण्डा नैर्ऋत्यां पातु कालिका॥
श्यामा च वारुणे पातु वायव्यां पातु चण्डिका।
उत्तरे विकटास्या चा-प्यैशान्यां साट्टहासिनी॥
पातूर्ध्वं लोलजिह्वा मायाऽऽद्या पात्वध: सदा।
जले स्थले चान्तरिक्षे पातु विश्वप्रसू: सदा॥
इति ते कथितं वत्स-सर्वमन्त्रौघ-विग्रहम्।
सर्वेषां कवचानां च सारभूतं परात्परम्॥
सप्तद्वीपेश्वरो राजा सुचन्द्रोऽस्य प्रसादत:।
कवचस्य प्रसादेन मान्धाता पृथिवीपति:॥
प्रचेता लोमेशश्चैव यत: सिद्धो बभूव हि।
यतो हि योगिनां श्रेष्ठ: सौभरि: पिप्पलायन:॥
यदि स्यात् सिद्धकवच: सर्वसिद्धीश्वरो भवेत्।
महादानानि सर्वाणि तपांसि च व्रतानि च॥
निश्चितं कवचस्यास्य कलां नार्हन्ति षोडशीम्॥
इदं कवचमज्ञात्वा भजेत् कालीं जगत्प्रसूम्।
शतलक्षंप्रजप्तोऽपि न मन्त्र: सिद्धिदायक:॥
श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे तृतीये गणपतिखण्डे नारद-नारायण-संवादे भद्रकालीकवचम् शुभमस्तु॥
(11) कुल्लुका : “क्रीं हूं स्त्रीं फट्” मन्त्र को अपने शिखा स्थान पर स्पर्श करके 10 बार जपे।
(12) सेतु : ब्राह्मण क्षत्रिय का सेतु-"ॐ" है। वैश्य का सेतु -" फट्" मन्त्र है। शूद्र का सेतु "ह्रीं है। सेतु मन्त्र को ह्रदय में हाथ रखकर 10 बार जपे।
(13) महासेतु : “क्रीं” मन्त्र को गले में हाथ रखकर 10 बार जपे।
(14) मुखशोधन : “क्रीं क्रीं क्रीं ॐ ॐ ॐ क्रीं क्रीं क्रीं” 7 बार बोलकर जपे ।
(15) अब मंत्रार्थ की क्रिया करे अर्थात देवी काली का शरीर और मन्त्र अभिन्न है यह चिंतन करें।
(16) निर्वाण : “अं क्रीं ॐ ऐं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋृं लृं लॄं एं ऐं ओं औं अं अः कं खं गं घं ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं ॐ” – १ बार नाभि को छूकर जपे ।
(17) प्राणयोग -“ह्रीं क्रीं ह्रीं” – ७ बार ह्रदय में जपे।
(18) दीपनी -“ॐ क्रीं ॐ” – ७ बार हृदय में जपे।
(19) निंद्रा भंग -“ईं क्रीं ईं” मन्त्र को हृदय में हाथ रखकर १० बार जपे ।
(20) अशौचभंग:- “ॐ क्रीं ॐ” – ७ बार ह्रदय में जपे।
(21) विनियोग : - आचमनी में थोड़ा जल लेकर बोले - ॐ अस्य श्री काली एकाक्षरी मन्त्रस्य भैरव ऋषिः गायत्री छन्द: श्री दक्षिणाकालिका देवता, कं बीजं ईं शक्ति: रं कीलकम् श्रीदक्षिणाकालिका देवी प्रीतये चतुर्वर्ग सिद्धयर्थे जपे विनियोग:
बोलकर जल छोड़ दे अब न्यास करे, मन्त्र बोलकर सम्बन्धित अंग को छुए :
ऋष्यादिन्यास -
(22) करन्यास : क्रां अंगुष्ठाभ्यां नम:। क्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा। क्रूं मध्यमाभ्यां वषट्। क्रैं अनामिकाभ्यां हूं। क्रौं कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्। क्र: करतल-करपृष्ठाभ्याम् फट्।
(23) हृदयादि न्यास : क्रां हृदयाय नम:। क्रीं शिरसे स्वाहा। क्रूं शिखायै वषट्। क्रैं कवचाय हुम्। क्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्। क्र: अस्त्राय फट्।
(24) व्यापक न्यास:- “क्रीं” मन्त्र से 3 बार सिर से लेकर पैर तक पूरे शरीर के अंगों में स्पर्श करे
(25) अब हाथ जोड़कर माँ काली का ध्यान करे =
शवारुढ़ां महाभीमां घोरदंष्ट्रां वरप्रदाम्। हास्य युक्तां त्रिनेत्रां च कपाल कर्तृकाकराम्।
मुक्त केशी ललज्जिह्वां पिबंती रुधिरं मुहु:। चतुर्बाहुयुतां देवीं वराभयकरां स्मरेत्॥
(शव पर खड़ी महाविशालकाय भयानक दिखने वाली, वरदान देने वाली, तीन नेत्र वाली माँ जोर जोर से हंस रही हैं और उनके हाथ में कपाल (नरमुंड ) है | उनके बाल बिखरे हुए और जीभ बाहर निकालकर रुधिर पी रही हैं | चार हाथों वाली माँ का हम स्मरण करते हैं जो भक्तों को वरदान और अभयदान देने वाली हैं|)
(26) माँ काली का पूजन= 🌹
⭐ॐ क्रीं कालिकायै नमः लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं कालिका देवी प्रीतये समर्पयामि । तिलक लगाए
⭐ॐ क्रीं कालिकायै नमः हं आकाश-तत्वात्मकं पुष्पं कालिका देवी प्रीतये समर्पयामि। फूल चढ़ाये
⭐ ॐ क्रीं कालिकायै नमः यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं कालिका देवी प्रीतये आघ्रापयामि। धूप दिखाए
⭐ ॐ क्रीं कालिकायै नमः रं वह्नितत्वात्मकं दीपं कालिका देवी प्रीतये दर्शयामि। दीप दिखाए
⭐ ॐ क्रीं कालिकायै नमः वं जल-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं कालिका देवी प्रीतये निवेदयामि। माँ को उत्तम नैवेद्य अर्पित करे
⭐ ॐ क्रीं कालिकायै नमः सं सर्व-तत्त्वात्मकं सर्वोपचाराणि मनसा परिकल्प्य कालिका देवी प्रीतये समर्पयामि। फूल चढा दे
(27)इसके उपरान्त योनि मुद्रा द्वारा क्रीं नमः बोलकर प्रणाम करना चाहिए।
(28) उत्कीलन : देवता की गायत्री १० बार जपे।
“कालिकायै विद्महे श्मशानवासिन्यै धीमहि तन्नोघोरा प्रचोदयात्।”
(29) जप:- यह मन्त्र एक लाख बार जप करने से सिद्ध होता है अर्थात कुल 1000 मालाएं जप करनी हैं
• सुझाव - 40 माला हर दिन जपे यानि 20 माला दिन में और 20 माला रात को जपे। वैसे अक्सर देखा जाता है कि रात के जप में नींद आने लगती है अतः जिसे जल्दी नींद आ जाती है वह दिन में व सायं संध्या में ही सावधानी से जप पूरा कर ले। 20 माला में 36 मिनट लग सकते हैं। इस तरह 4000 बार जप प्रतिदिन हो जाएगा। ऐसा 25 दिनों तक करना है तो (25दिन*40माला=1000 माला) एक लाख जप पूरा हो जाएगा|
(30) पुन: कुल्लुका, सेतु, महासेतु, आशौचभंग का जप :-
🔅सेतु = ब्राह्मण, क्षत्रिय का सेतु-"ॐ" है। वैश्य का सेतु -" फट्" मन्त्र है। शूद्र का सेतु "ह्रीं है। सेतु मन्त्र को ह्रदय में हाथ रखकर 10 बार जपे।
🔅अशौचभंग= “ॐ क्रीं ॐ” – ७ बार हृदय में जपे
🔅क्रीं से प्राणायाम करे = मन में ४ बार क्रीं जपकर नाक से श्वास अंदर को ले, अब १६ बार मन्त्र जपने तक श्वास को भीतर रोके रखे इसके बाद ८ बार जपते हुए श्वास बाहर निकाले।
(31) जपसमर्पण = एक आचमनी जल लेकर निम्न मंत्र पढ़कर सारा मन्त्र जपकर्म देवी के बायें हाथ में अर्पित कर दें -
ॐ गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् । सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्वरि ॥ सर्वं श्री महाकाल्यै अर्पणमस्तु्।
(32) क्षमायाचना
अपराधसहस्राणि क्रियंतेऽहर्निशं मया ।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि ॥१॥
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् ।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि ॥२॥
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि ।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे ॥३॥
शक्राय नमः शक्राय नमः शक्राय नमः - बोलकर आसन के नीचे जल छिड़के और माथे पर लगाए फिर बोले - श्री विष्णवे नमः विष्णवे नमः विष्णवे नमः।
(33) पुरश्चर्या के अन्य अंग : जप तो उपरोक्त प्रकार से कर ले| जिस दिन सारा जप पूर्ण हो जाए "क्रीं कालीं नारिकेल बलिं समर्पयामि नमः" बोलकर काली माँ को नारियल तोड़कर सात्विक बलि के रूप में दे। इसके बाद हवन, तर्पण, मार्जन, ब्राह्मण भोजन भी करे -
सुझाव : ⭐ हवन : "क्रीं स्वाहा" मन्त्र से अग्नि में कुल दस हजार बार हवन घी द्वारा करने को कहा गया है। आहुति की बड़ी संख्या होने से, पुरश्चरण के साथ-साथ 25 दिनों तक हर दिन 400 बार आहुति दे।
⭐ तर्पण : कुल 1000 बार तर्पण करना होगा। तत्वमुद्रा अंगूठे व अनामिका को मिलाने से बनती है. बायें हाथ में तत्वमुद्रा से आचमनी पकड़कर "क्रीं नमः कालिकां तर्पयामि स्वाहा" बोलकर रोली-चन्दन-दूध-चीनी-फूल-तिल मिश्रित पानी(सम्भव हो तो गंगाजल) से कुल एक हजार बार कालिका देवी का देवतीर्थ से होते हुए तर्पण (जल अर्पण) करें। देवतीर्थ दाहिनी हथेली के अग्रभाग में होता है। यानि पुरश्चरण के साथ साथ 25 दिनों तक हर दिन 40 बार तर्पण करें|
⭐मार्जन : "क्रीं कालिका देवीं अभिषिंचामि नमः" बोलकर दूर्वा या कुश द्वारा कुल 100 बार मार्जन(अपने मस्तक पर जल छिड़कना) करना है।
⭐ब्राह्मण भोजन : 10 व्यक्तियों को भोजन कराए व दक्षिणा दें, ये ब्राह्मण हों। प्रत्यक्ष भोजन न खिला सके तो २० लोगों के पेट भरने योग्य बिना पका चावल व दाल दान कर दें। यह भी न हो तो 40 लोगों के पेट भरने योग्य भोजन जितने रुपये में आ सकता है उतने रुपयों का दान दें। इसके साथ १ या अधिक सुहागिन औरत को भी भोजन या दक्षिणा दें। छोटी कन्याओं को तो अवश्य खिलाए, दक्षिणा भी देदे।
देवी महाकाली भूत-प्रेत, जादू-टोना, ग्रहों आदि के कारण उपजी हर प्रकार की बाधाएँ हर लेती हैं। अतः शिशु जैसा बनकर भक्ति भाव एवं सच्चे हृदय से काली माँ का ध्यान करते हुए माँ के मंत्रों का मानसिक जप करते रहना चाहिये। काली सहस्रनाम का सावधानीपूर्वक सच्चे हृदय से किया गया पाठ तुरन्त फल देने वाला होता है। इसके अलावा माँ काली के अष्टोत्तरशतनाम, अष्टक, कवच, हृदय आदि बहुत से सुंदर स्तोत्र हैं जिनका महाकाली की प्रीति हेतु पाठ किया जाना उत्तम है।
कज्जल के पहाड़ के समान, दिग्वसना, मुक्तकुन्तला, शव पर आरूढ़, मुण्डमालाधारिणी भगवती काली का प्रत्यक्ष दर्शन साधक को कृतार्थ कर देता है। तान्त्रिक-मार्ग में यद्यपि काली की उपासना दीक्षागम्य है, तथापि अनन्य शरणागति द्वारा इनकी कृपा किसी को भी प्राप्त हो सकती है। मूर्ति, मन्त्र, स्तोत्र अथवा गुरु द्वारा उपदिष्ट किसी भी आधार पर भक्तिभाव से, मन्त्र-जप, पूजा, होम पूर्वक पुरश्चरण करने से भगवती काली प्रसन्न हो जाती हैं। जिनकी प्रसन्नता से साधक को सहज ही सम्पूर्ण अभीष्टों की प्राप्ति हो जाती है ऐसी भक्तवत्सला भगवती माँ महाकाली को काली जयंती पर अनंत बार प्रणाम।
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आपको कोटि कोटि धन्यवाद
जवाब देंहटाएंपूर्व दिशा की ओर मुह करे तो उत्तम है.. उत्तर या ईशान(उत्तर पूर्व) दिशा की ओर भी मुख कर सकते हैं...
जवाब देंहटाएं1. साधना में एक तो मुख्य दिया होगा तेल का जो जलता रहे और दीपं दर्शयामि के समय दूसरा अलग आरती का दिया होगा जिसमें घी की बत्ती रखकर आरती करनी है
जवाब देंहटाएंसाधना के पहले दिन गुरु गणेश जी व काली माँ तीनों को अलग अलग धूप लगाए बाद के दिनों में एक धूप से ही तीनों की पूजा कर सकते हैं
2. गुरु कृपा से ही मन्त्र जप सफल होता है इसलिए जिनको सद्गुरु न मिल सके उन्हें शिव जी के दक्षिणामूर्ति रूप को गुरु मानकर उनकी पूजा करनी चाहिए.. चाहें तो दक्षिणामूर्ति शिव जी का चित्र गूगलसर्च पर डाउनलोड करके उसका कलर प्रिन्ट निकलवा सकते हैं.. या फिर शिव जी की मूर्ति या नर्मदेश्वर/पारद शिवलिंग को दक्षिणामूर्ति शिव मानकर पूजे..
और गणेश जी तो प्रथम पूज्य विघ्नहर्ता और काली माँ के पुत्र हैं इनकी उपेक्षा ठीक नहीं..इसलिए साधनाकाल में गुरु, गणेश जी व काली माँ की पंचोपचार पूजा रोज ही करनी है.. जय महाकाली
iska purn anushthan 12 lakh ya 32 lakh ya 1 lakh ya 1*4 lakh
जवाब देंहटाएंएकाक्षरी की जप संख्या एक लाख कही गयी है ... एक ग्रंथ में तीन लाख भी लिखा है...
हटाएंसुझाव : पहले एक लाख का पुरश्चरण पूरा कीजिये... अच्छे परिणाम देखें तो इसी तरह 3 या 4 बार पुरश्चरण कीजिए
जय माँ काली
प्रणाम आचार्य जी मुझे असाध्य रोगों ने जीत लिया है आत्महत्या करने का मन करता है एक रोग खत्म नहीं होता कि दूसरा रोग लग जाता है जीने की इच्छा बिल्कुल खत्म हो गई है ऐसा लगता है कि अब जीवन में कुछ बचा ही नहीं है मुझे प्लीज कोई उपाय बताइए कोई ऐसा मार्ग बताइए जिससे मेरे सारिक मानसिक कष्टों और रोगों का निवारण हो सके मैं बहुत परेशान हूं अपनी शारीरिक कष्टों रोगों से ऐसी रोग लगते हैं जिनका कोई इलाज डॉक्टर के पास नहीं होता मैं बहुत परेशान हो गया हूं प्लीज मुझ पर कृपा कीजिए अब पूजा पाठ करने का भी मन नहीं करता सब चीज से विश्वास उठ गया है चाह करके भी मैं पूजा-पाठ नहीं कर पाता हूं और मेरे से कोई काम भी नहीं होता है मेरी उम्र मात्र 23 साल है प्लीज कोई ऐसा उपाय बताइए कि जिससे फिर से जीने की चाहत पर ना हो और मेरे समस्त शारीरिक मानसिक रोग और कष्ट जड़ से नष्ट हो जाए और मैं पूर्ण आनंद और उल्लास और उत्साह के साथ जी सकूं कृपया मार्गदर्शन कीजिए महाराज जय माता दी उत्तर जरूर दीजिएगा मुझे आपके उत्तर का इंतजार रहेगा
हटाएंजय श्री कृष्ण,
हटाएंदेखिये सबके जीवन में कितने सारे दुख हैं, रोग हैं, समस्याएं हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम परिस्थितियों से भागें। हम तो संसार में पिछले जन्मों का कर्मफल भोगने आए हैं। मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य कर्म करते हुए धर्म पालन करते हुए भगवान की प्राप्ति करना है। इसीलिए पहले तो आत्महत्या का विचार त्याग देना ही ठीक है। अभी २३ की ही आयु है क्या कुछ नहीं कर सकते हो। जीवन का कुछ उद्देश्य बनाइए। पूजा आराधना में मन लगे उसके लिए आपको उचित दिशानिर्देश की आवश्यकता है। भगवान पर विश्वास रखिए। धर्म मनुष्य की स्वाभाविक कमजोरियों पर विजय पाने में सहायता करता है अच्छे गुणों को उभारता है। भगवान की आराधना और धर्म पालन आपको एक नई दिशा देगा उससे जीवन पर सकारात्मक प्रभाव जरूर पड़ेगा।
कहने को बहुत कुछ है पर यहां इससे अधिक वार्तालाप करने से पेज बड़ा हो जाएगा।
अतः कृपया हमसे ourhindudharm@outlook.in पर ईमेल भेजकर सम्पर्क कीजिए वहां विस्तार से बात होगी।
जय महाकाली
Namskar achrya ji ......is anusthan mai 1lakh ka jaap hoga tho isme galti bhul chuk ke liye extra jaap bhai krna hai is mantar ka kya achrya ji?
जवाब देंहटाएंजी नहीं, अतिरिक्त जप की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि हम पुरश्चरण में 1 माला मन्त्र जप कर रहे हैं तो 100 ही जप गिना जाता है, 8 बार अतिरिक्त जप भूल चूक के लिए होता है...
हटाएंउपरोक्त साधना में 25 दिनों तक 40 माला हर दिन जपना है.. इस तरह कुल 1000 माला मन्त्र जप होगा - 1000x108 = 108,000 अर्थात् 8000 जप अतिरिक्त हो ही जाता है ...वही जप भूल चूक के लिए पर्याप्त है..
जय महाकाली
प्रणिपाद पूज्य��
जवाब देंहटाएंक्या नवरात्रि में 4 लाख जप का संकल्प लेकर प्रतिदिन 500 माला कर सकते ? मैं एक घण्टे में 100 माला जप कर सकता और अगर दशांश हवन करने का सामर्थ्य ना हो तो क्या शतांश हवन कर सकते ? और अगर सिर्फ कन्या भोजन कराएं और ब्राह्मण देवता को अलग से उनके घर समुचित अनाज दक्षिणा आदि दे आवे तो क्या अनुष्ठान संपन्न माना जायेगा ?
पूज्य मैं विगत 30 वर्षों से ककरादी सहस्रनाम और काली के काम्य बीज (क्रीं) स्वाहा के साथ साधना कर रहा चमत्कार एवं अनुभूति तो प्रत्येक क्षण महसूस होता लेकिन माँ प्रत्यक्ष नही होती
कृपया singhnaveen@mail.com पर आप मुझे उत्तर दें या नम्बर दें आपसे मुझे इस विषय पर कुछ ज्ञान प्राप्त करना है मुझे लग रहा आपसे मुझे कुछ विशेष प्राप्त होने वाला है��
दण्डवत प्रणाम आपको☺️
हटाएंनमस्कार महोदय , इस बीज मन्त्र के पुरश्चरण में जप संख्या 1 लाख ही कही गयी है... इसमें एक प्रकार और बताया जाता है कि चाहे तो सुबह का एक लाख वाला पुरश्चरण अलग करे और रात्रि का एक लाख पुरश्चरण अलग से करे... ऐसा दो लाख वाला पुरश्चरण किया जा सकता है.. समय अधिक दे सकते हैं तो मन्त्र जप आराम आराम से करे स्पष्ट करे लेकिन विधान से अलग अधिक जपना उचित नहीं है... और दूसरी बात यह कि एक लाख के पुरश्चरण में हवन दशांश ही करना चाहिए तभी शास्त्र सम्मत फल मिलेगा अपने मन की नहीं कर सकते.. अन्यथा एक ही विकल्प बचता है कि (दशांश हवन का दोगुना) 10000x2=20000 बार अधिक जप(200माला) करे...
यही बात ब्राह्मण भोज या कन्या भोज के लिए भी है एक लाख के पुरश्चरण में कुल 10 लोगों को भोजन कराना होगा इसमें कन्या या ब्राह्मण कोई भी हों.. इनकी संख्या 10 ही हो.. यह सरल है पर अगर नहीं करा सकते तो 10x 2=20 बार जप करे.... और रही बात प्रत्यक्ष होने की तो साधक की योग्यता और श्रद्धा, निश्छलता के अनुसार देवी मां स्वयम् ही कृपा करती हैं हम मन्त्र जप की संख्या में उन्हें नहीं बांध सकते बस उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास भर ही कर सकते हैं... हमारे ईमेल पर भी प्रश्न पूछ सकते हैं....
जय माँ काली
जय मां माहाकाली नमोस्तुते नमोस्तुते नमोस्तुते।आपको प्रणाम जी।
हटाएंप्रणाम श्री राधे श्याम इस मंत्र को पुरुष चरण करने के पश्चात प्रतिदिन जब पर और यदि अगर स्थान परिवर्तन हो तो कोई संकट उपस्थित नहीं होगा या होगा बताने की कृपा करें
जवाब देंहटाएं
हटाएंनमस्कार, पुरश्चरण में जप की संख्या हर दिन एक जैसी ही रहनी चाहिए कम ज्यादा नहीं हो.. और स्थान परिवर्तन से भी कुछ संकट नहीं होगा यदि उस स्थान पर भी उतना ही जप कर रहे हैं जितना पहले करते थे .. लेकिन प्रयास यही रहे कि साधना काल में स्थान परिवर्तित न करना पड़े और जब आपके पास पर्याप्त समय हो तभी पुरश्चर्या शुरु करें..
जय माँ काली
kripya ... maa kali ki ek aur anusthan vidhi batie navratri ke liye 2021 ke plz
जवाब देंहटाएंविप्रवर प्रणाम🙏🏻
जवाब देंहटाएंआपसे प्रार्थना है कि आप प्रदोष व्रत,
गुरुवार व्रत एवं मंगलवार या हो सके तो सप्तवार व्रतों के पूर्ण विधि, नियम, व कथा जनहित हेतु प्रकाशित कर देवें.
आपका मुझ प्रार्थी पर एवं जनजन पर विशेष अनुग्रह होगा
नमस्कार
जय माँ🙏🏻
नमस्कार जी, बहुत अच्छा सुझाव दिया है आपने... सच कहूं तो आप लोगों द्वारा दिये गए बहुत सुझाव हो गये हैं सबको नोट कर लिया है... पर देखिए 2018 से नया आलेख लिखने का समय ही नहीं मिल पाया है... लेकिन अब पूरा प्रयास रहेगा कि कुछ नया अवश्य लिखू आगे भगवान की इच्छा... जय माँ काली
हटाएंविप्रवर
जवाब देंहटाएंयह आपका ही अथक व सुन्दर प्रयास है जिसके माध्यम से हम जन भक्ति पूजा अनुष्ठान सम्बंधी ज्ञान सरल व सुस्पष्ट शब्दों में प्राप्त कर अपने जीवन में कल्याण का पथ प्रशस्त कर लेते हैं
आपका कोटि धन्यवाद
जयमां भगवती महाकाली🙏🏻
धन्यवाद माँ के शुद्ध जपविधि बताने के लिए
जवाब देंहटाएंआदरणीय को मेरा प्रणाम सहस्त्रनाम का पुरुष चरण में कितने पाठ में होगा कृपया मार्गदर्शन करें
जवाब देंहटाएंश्री काली सहस्रनाम के या किसी भी स्तोत्र के पुरश्चरण के लिए स्तोत्र के कुल 10000 पाठ करने होंगे. नामावली द्वारा हवन दस हजार का दशांश यानि 1000 बार करें. हवन न कर सके तो 2000 या 4000 पाठ करे. सहस्रनाम की 100 आवृति पूर्वक 100बार तर्पण करे. 10 ब्राह्मण व 9 कन्याओं को खिला दें. इस सबमें समय बहुत लग जाएगा.
हटाएंजय माँ काली
नमस्कार आदरणीय एकाक्षर मंत्र के पुरश्चरण मे जो जप के पहले और अंत मे सेतु,महासेतु,निर्वाण,प्राणयोग इ.जो नियम है वो सिर्फ पुरश्चरण के लिए है या नित्य जप के लिए भी है..?कृपया मार्गदर्शन करे
जवाब देंहटाएंनमस्कार, संकल्प विनियोग न्यास सेतु महासेतु आदि ये सब मंत्र के अंग हैं मंत्र की चाभी की तरह हैं अतः जपविधि के अंतर्गत आते हैं। पुरश्चरण में तो आवश्यक है ही। नित्य जप हो तो भी इनका प्रयोग करना ही चाहिए। कभी अति शीघ्रता हो तो नित्य जाप में इसे किसी दिन छोड़ भी सकते हैं। अगर जनेऊ नहीं पहनते हों तो तो नित्यजप में ॐ वाले मंत्रों को छोड़ ही दें। यदि मंत्र देने वाले गुरु से संपर्क में हैं तो उनकी आज्ञा के अनुसार ही करे।
हटाएंजय महाकाली।
प्रणाम आदरणीय,
जवाब देंहटाएंमेरा उपनयन संस्कार नही हुआ है और नाही मेरे कोई गुरू है तो क्या मै माता काली क्रीं का नित्य जाप और आपने बताए वैसे पुरश्चरण कर सकता हु.....मेरा मार्गदर्शन करे
वैसे नियम तो यह है कि पहले मंत्र की दीक्षा लेते हैं फिर ही उसका पुरश्चरण करते हैं।
हटाएंजिनका उपनयन हुआ होता है वे तो गायत्री मंत्र जपते ही हैं तो एकाक्षर बीज जप सकते हैं।
लेकिन जिनका उपनयन न हुआ हो उनको एक तो यह सावधानी रखनी होगी कि उपरोक्त विधि में ॐ और स्वाहा नहीं बोलना होगा। उनको हवन भी नहीं करना चाहिए हवन की जगह "मंत्र जप संख्या" का दोगुना मंत्र जप करना होगा।
दूसरी बात दीक्षा की है पहले तो प्रयास करे कि आस पास ही योग्य गुरु मिल जाए। अन्यथा चार प्रमुख शंकराचार्य मठ हैं - गुजरात - द्वारका में शारदा पीठ, उत्तराखंड में ज्योतिर्मठ, उड़ीसा में पुरी, कर्नाटक में श्रृंगेरी पीठ है। इन मठों में जहां सुविधा लगती हो वहां जाएं। वहां शंकराचार्य जी या मठ के ही किसी अन्य व्यक्ति से काली जी के किसी मंत्र की दीक्षा ले, वहां से तो योग्यता देखकर अधिक अक्षर के मंत्र भी मिल जाएंगे। कोशिश करने पर भी अगर कहीं कोई गुरु मिलना संभव ही न हो तो उसके लिए शिव जी को गुरु मानकर साधना करने की अलग विधि है पर उसे गुप्त रखना चाहिए। उसके लिए कृपया ईमेल पर संपर्क करें। जय मां काली।
श्री काली सहस्रनाम स्तोत्र का शुद्ध पाठ हमने हाल ही में विधि पूर्वक प्रकाशित किया हुआ है। इसको हमने खूब समय देकर ग्रंथों से मिलाकर शुद्ध किया है। पाठ करें और लाभ उठायें, लिंक यह रहा-
जवाब देंहटाएंश्री ककारादि काली सहस्रनाम स्तोत्रम्
जय माँ काली
सदर प्रणाम
जवाब देंहटाएंमहोदय मैं, ककारादि सहस्त्रनाम की नही बल्कि श्री महाकालिसहस्त्रनाम की बात कर रहा था जो कि "ॐ शमशान कालिका काली भद्रकाली कपालिनी से शुरू होता है।" यदि संभव हो तो मदद कीजिये।vipinchauhan2110@gmail
Uttarkashi
हरिओम
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