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कमला महाविद्या की स्तोत्रात्मक उपासना

श्री कल्कि अवतार-धारी भगवान की अधर्मनाशक आराधना


हि
न्दू धर्मग्रंथों के अनुसार, सतयुग, द्वापर, त्रेतायुग बीतने के बाद यह वर्तमान युग कलियुग है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा कहे गए कथन के अनुसार- जब जब धर्म की हानि होने लगती है और अधर्म आगे बढ़ने लगता है, तब तब श्रीहरि स्वयं की सृष्टि करते हैं, अर्थात् भगवान् अवतार ग्रहण करते हैं। साधु-सज्जनों की रक्षा एवं दुष्टों के विनाश और धर्म की पुनःस्थापना के लिए श्रीकृष्ण विभिन्न युगों में अवतरित होते हैं और आगे भी होते रहेंगे-
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्‌॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्‌।
धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे॥
     कल्कि पुराण में वर्णन है कि चौथे चरण में कलियुग जब अपनी चरम सीमा तक पहुँच जाएगा, तब अपराध-पाप-अनाचार अत्यन्त बढ़ जायेंगे; अधर्म-लूटपाट-हत्या तो सामान्य बात हो जायेगी यहाँ तक कि लोग ईश्वर-सत्कर्म-धर्म सब भूल जायेंगे। तब भगवान श्रीहरि अपने अंतिम अवतार कल्कि रूप में अवतरित होंगे। भगवान कल्कि कलियुग को मिटाकर सतयुग की स्थापना करेंगे, श्री कल्कि भगवान ही ऐसे अवतार हैं जिनकी पूजा-आराधना उनके आविर्भाव से कई वर्षों पूर्व से ही की जाती आ रही है।
भगवान कल्कि कलियुग को मिटाकर सतयुग की स्थापना करेंगे, श्री कल्कि भगवान ही ऐसे अवतार हैं जिनकी पूजा-आराधना उनके आविर्भाव से कई वर्षों पूर्व से ही की जाती आ रही है।भगवान् कल्कि दस्युवध मेँ सदा तत्पर रहेंगे। वे जिन-जिन देशों पर विजय प्राप्त करेंगे, उन-उन देशो में काले मृगचर्म, शक्ति, त्रिशूल तथा अन्य अस्त्र-शस्त्रों की स्थापना करेंगे।
  कल्कि पुराण में बताया गया है कि सम्भल नामक गाँव में विष्णुयशा की पत्नी सुमति के गर्भ से भगवान कल्कि अवतार लेंगे, इससे कुछ लोग मानते हैं कि उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के संभल गाँव में अवतार होगा अतः वहां कल्कि भगवान का एक भव्य मंदिर बनाया गया है। पर यह भी हो सकता है कि कालांतर में कोई सम्भल नाम का कोई दूसरा गाँव अस्तित्व में आ जाए। अन्य कुछ जगहों पर भी कल्कि भगवान के मंदिर हैं जहां तलवार धारण किए हुए और अश्व देवदत्त पर सवार कल्कि जी की आराधना होती है।
     भगवान विष्णु के दस प्रमुख अवतारों में प्रभु का दसवां अवतार कल्कि अवतार के रूप में होता है। महाभारत, कल्कि पुराण, श्रीमद्भागवत तथा अन्य पुराणों में इस विषय में बतलाया गया है। कलि के अन्तसमय में श्रावण शुक्ल षष्ठी को सम्भल-ग्राम में विष्णुयशा ब्राह्मण के यहाँ भगवान् कल्कि का प्रादुर्भाव होगा। अभी कलि के पाँच हजार वर्ष से कुछ ही अधिक वर्ष बीते हैं। इस अवतार के होने में लाखों वर्ष अभी शेष हैं। उस समय श्रुतियों का लोप हो चुकेगा। मानव सदाचारहीनअल्पकायअल्पसत्वअत्यन्त अल्पायु होंगे।

भगवान् परशुराम स्वयं भगवान् कल्कि को वेदों का उपदेश करेंगे। भगवान् शिव उन्हें शस्त्रास्त्र की शिक्षा देंगे। शंकरजी से अश्व एवं खड्ग प्राप्त करके भगवान् पृथ्वी के समस्त आसुरी वृत्ति के प्राणियों का वध कर डालेंगे। भगवान के पृथ्वी पर होने के कारण नूतन संतति शुद्ध भावापन्न तथा सबल होगी। इस प्रकार सत्ययुग प्रतिष्ठित होगा।
चराचर-गुरोर्विष्णोरीश्वर-स्याखिलात्मन:।
धर्मत्राणाय साधूनां जन्म कर्मापनुत्तये॥
(श्रीमद्भा० १२ । २ । १७)
सर्वव्यापक भगवान् विष्णु सर्वशक्तिमान् हैं। वे सर्वस्वरूप होने पर भी चराचर जगत् के सच्चे शिक्षक-सद्गुरु हैं। वे साधु-सज्जन पुरुषों के धर्म की रक्षा के लियेउनके कर्म का बन्धन काटकर उन्हें जन्म-मृत्यु के चक्र से छुड़ाने के लिये अवतार ग्रहण करते हैं।
 मङ्गलमय भगवान् कल्कि के अङ्गराग को स्पर्श कर बहने वाली वायु ग्राम, नगर, जनपद एवं देश की सारी प्रजा के मन में पवित्रता के भाव भर देगी। उनमें सहज सात्विकता उदित हो जायगी। फिर उनकी संतति पूर्ववत् हृष्ट-पुष्ट, दीर्घायु एवं धर्मपरायण होने लगेगी। इस प्रकार सर्वभूतात्मा सर्वेश्वर भगवान् कल्कि के अवतरित होने पर पृथ्वी पर पुन: सत्ययुग प्रतिष्ठित होगा।
अभी तो कलि का प्रथम चरण ही चल रहा है। कलि के पाँच सहस्र से कुछ ही अधिक वर्ष बीते हैं। इतने दिनों में मानव जाति का कितना मानसिक ह्रास एवं नैतिक पतन हो गया हैयह सर्वविदित है। यह स्थिति उत्तरोत्तर ढ़ती जागी। ज्यों-ज्यों कलियुग के अधिकाधिक वर्ष बीतते जायेंगेत्यों-त्यों धर्म, सत्यवित्रताक्षमादयाआयु, ल और स्मरणशक्ति - इन सबका उत्तरोत्तर लोप होता जाएगा। व्यावहारिक सत्य और ईमानदारी समाप्त हो  जाएँगेछल-कपट-पटु व्यक्ति ही व्यहारकुशल समझा जायगा। अर्थहीन व्यक्ति ही असाधु माने जायेंगे। "मेरे समान श्रेष्ठ दानी, श्रेष्ठ व्रती, श्रेष्ठ मन्त्र जापक, धनवान, बुद्धिवान कौन है" यही सोच दम्भ कहलाती है जो मनुष्य को पाप के दलदल में धकेलकर पुण्य क्षय कर देती है, घोर दाम्भिक और पाखण्डी ही सत्पुरुष समझे जायेंगे। धर्मतीर्थमाता-पिता और गुरुजन उपेक्षित और तिरस्कृत होंगे। मनुष्य-जीन का सर्वश्रेष्ठ पुरुषार्थ होगा-उदर-भरण। धर्म का सेवन यश के लिये किया जायगा। ब्राह्मणक्षत्रियवैश्य और शूद्र में जो शक्तिसम्पन्न होगाही शासन करेगा(चाहे वह शासन के योग्य हो या नहीं)। घोर कलियुग आने पर उस समय के नीच राजा अत्यन्त दुष्ट एवं निष्ठुर होंगे। लोभी तो वे इतने होंगे कि उनमें और लुटेरों में कोई अन्तर नहीं रह जायेगा। उनसे भयभीत होकर प्रजा वनों और पर्वतों में छिपकर तरह-तरह के शाककंद-मूमांसफल-फूल और बीज-गुठली आदि से अपनी क्षुधा मिटायेंगेमय पर वृष्टि नहीं होगीवृक्ष फल नहीं देंगे। भयानक सूखा, भयानक सर्दी और भयानक गर्मी पड़ेगी। तब भी शासक कर पर कर ही लगाते जायेंगे। 
प्राणिमात्र धर्म की मर्यादा को त्यागकर स्वच्छन्द मार्ग का अनुसरण करेंगे। मनुष्यों की रमायु बीस र्ष की हो जायेगी

कलि के प्रभाव से प्राणियों के रीर छोटे-छोटेक्षीण और रोगग्रस्त होने लगेंगे। वेदमार्ग प्राय: मिट जायगा। राजा-महाराजा डाकू-लुटेरों के समान हो जायेंगे। वानप्रस्थी, संन्यासी आदि विरक्त-जीवन व्यतीत करने वाले गृहस्थी की भाँति जीवन व्यतीत करने लगेंगे। मनुष्यों का स्वभाव  गधों-जैसा दुस्सहकेवल गृहस्थी का भार ढोने वाला हो जायगा। लोग विषयी हो जायेंगे। धर्म-कर्म का लेश भी नहीं रहेगा। लोग एक-दूसरे को लूटेंगे और मारेंगे। मनुष्य जपरहितनास्तिक और चोर होंगे।
पुत्रः पितृवधं कृत्वा पिता पुत्रधं तथा
निरुद्वेगो बृहद्वादी न निन्दामुपलप्स्यते॥
म्लेच्छीभूतं जगत् सर्वं भविष्यति न संशय:।
स्तो हस्तं परिमुषेद् युगान्ते मुपस्थिते॥
(महाभारत, वन॰ १९०।२८,३८)
पुत्र पिता का और पिता पुत्र का वध करके भी उद्विग्न नहीं होंगे। अपनी प्रशंसा के लिये लोग बड़ी-बड़ी बातें बनायेंगेकिंतु समाज में उनकी निन्दा नहीं होगी। उस समय सारा जगत् म्लेच्छ हो जायगा-इसमें संशय नहीं। एक हाथ दूसरे हाथ को लूटेगा-सगा भाई भी भाई के धन को हड़प लेगा।

कलियुग में अधर्म बढ़ेगाधर्म विदा हो जायगा। स्त्रियाँ अपने पतियों की सेवा छोड़ देंगी। वे कठोर स्वभाव वाली और सदा कटुवादिनी होंगी। वे पति की आज्ञा में नहीं रहेंगी।
पति को माँगने पर भी कहीं अन्न-जल या हरने के लिये स्थान नहीं मिलेगा। सर्वत्र पाप-पीड़ादुःख-दारिद्र्य, क्लेश-अनीतिअनाचार और हाहाकार व्याप्त हो जायेंगे। कलियुग के मनुष्य वेदादिरुपी धर्म के क्षय के कारण, उच्छृङ्खल, स्वेच्छाचारी, मदोन्मत्त, पापकर्म में लिप्त, कामुक, लोभी, क्रूर, निष्ठुर, अप्रियभाषी और धूर्त हो जायेंगे।
प्रत्येक चतुर्युगी/पर्याय(चार युगों का एक चक्र) में कलियुग का समापन करने के लिए व जगत के कल्याण के लिए श्रीब्रह्मा-विष्णु-शिवात्मिका व श्रीमहासरस्वती-महालक्ष्मी-महाकाली स्वरूपिणी दुर्गा माँ ही भगवान श्रीकल्कि के अवतार रूप में प्रादुर्भूत होती हैं।

उस समय सम्भलग्राम में विष्णुयशा नामक एक अत्यन्त पवित्रसदाचारी एवं श्रेष्ठ ब्राह्मण होंगे। वे सरल एवं उदार होंगे। वे श्रीभगवान् के अत्यन्त अनुरागी भक्त होंगे। उन अत्यन्त भाग्यशाली ब्राह्मण विष्णुयशा के यहाँ समस्त सद्गुणों के एकमात्र आश्रय, निखिल सृष्टि के सर्जकपालक एवं संहारक परब्रह्म परमेश्वर भगवान् कल्कि के रूप में अवतरित होंगे। श्री कल्कि जी के रोम-रोम से अद्भुत तेजोमयी किरणें छिटकती रहेंगी। वे महान् बुद्धि एवं पराक्रम से सम्पन्न, महात्मासदाचारी तथा सम्पूर्ण प्रजा के शुभैषी होंगे।

मनसा तस्य सर्वाणि वाहनान्यायुधानि च॥
उपस्थास्यन्ति योधाश्च शस्त्राणि कचानि च।
 धर्मविजयी राजा चक्रर्ती भविष्यति॥
स चेमं संकुलं लोकं प्रसादमुपनेष्यति।
त्थितो ब्राह्मणो दीप्त: क्षयान्तकृदुदाररधी: ।।
(महा०वन० १९०।९४-९६)
(विष्णुयशा के बालक के) चिन्तन करते ही उसके पास इच्छानुसार वाहनअस्त्र-शस्त्रयोद्धा और कवच उपस्थित हो जायेंगे। वह धर्मवियी चक्रर्ती राजा होगा। वह उदारबुद्धितेजस्वी ब्राह्मण दुःख से व्याप्त हुए इस जगत् को आनन्द प्रदान करेगा। कलियुग का अंत करने के लिये ही उसका प्रादुर्भाव होगा।

भगवान् शंकर स्वयं कल्कि-भगवान् को शस्त्रास्त्र की शिक्षा देंगे और भगवान् परशुराम उनके वेदोपदेष्टा होंगे।

भगवान कल्कि देवदत्त नामक शीघ्रगामी अश्व पर आरूढ़ होकर राजा के वेष में छिपकर रहने वाले, पृथ्वी में सर्वत्र फैले हुए स्युओँ एवं नीच स्वभाव वाले संपूर्ण म्लेच्छों का संहार कर डालेंगे। वे परम पुण्यमय भगवान् कल्कि भूमण्डल के सम्पूर्ण पातकियोंदुराचारियों एवं दुष्टों का विनाश कर अश्वमेध नामक महान् यज्ञ करेंगे और उस यज्ञ में सम्पूर्ण पृथ्वी ब्राह्मणों को दान में दे देंगे।

श्री कल्कि भगवान सर्वदेवमय व सर्ववेदमय हैं। श्री कल्कि जी का अवतार कलियुग व सतयुग के संधिकाल में होगा। यह अवतार 64 कलाओं से युक्त होगा। भगवान श्री कल्कि निष्कलंक अवतार हैं। उनकी माता का नाम सुमति होगा। उनके भाई उनसे बड़े व क्रमश: सुमन्तप्राज्ञ और कवि नाम के होंगे। स्वयं याज्ञवल्क्य जी उनके पुरोहित और भगवान परशुराम उनके गुरू होंगे। श्रीकल्कि जी के पुत्र होंगे - जयविजयमेघमाल तथा बलाहक भगवान का स्वरूप (सगुण रूप) परम दिव्य एवम् ज्योतिर्मय होता है। भगवान श्री कल्कि के स्वरूप की कल्पना उनके परम अनुग्रह से ही की जा सकती है। भगवान श्री कल्कि अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड नायक हैं। शक्ति-पुरूषोत्तम भगवान श्री कल्कि अद्वितीय हैं। भगवान श्री कल्कि दुग्ध वर्ण के देवदत्त नामक श्वेत अश्व पर सवार हैं। श्री कल्कि भगवान का रंग गोरा हैपरन्तु क्रोध में काला भी हो जाता है। भगवान ने पीले वस्त्र धारण किये हैं। प्रभु के हृदय पर श्रीवत्स का चिह्न अंकित है। गले में कौस्तुभ मणि सुशोभित है। भगवान पूर्वाभिमुख हैं व अश्व दक्षिणाभिमुख है। भगवान श्री कल्कि की दो पत्नियाँ होंगी - लक्ष्मी रूपी पद्मा और वैष्णवी शक्ति रूपी रमा। ये लक्ष्मी व रमा स्वरूपिणी शक्तियां आद्याशक्ति श्रीमहालक्ष्मी स्वरूपा शक्तियाँ होने से एक ही हैं पर द्विधा प्रतीत होती हैं। भगवान श्री कल्कि के वामांग में लक्ष्मी (पद्मा) और दाएं भाग में वैष्णवी (रमा) विराजमान हैं। पद्मा भगवान की स्वरूपा शक्ति हैं और रमा भगवान की संहारिणी शक्ति हैं। समस्त सृष्टि भगवान कल्कि के विराट स्वरूप की परिधि में है। भगवान के शरीर से परम दिव्य गं उत्पन्न होती है जिसके प्रभाव से संसार का वातावरण पावन हो जाता है।


भगवान् कल्कि स्युध मेँ सदा तत्पर रहेंगे। वे जिन-जिन देशों पर विजय प्राप्त करेंगे, उन-उन देशो में काले मृगचर्मक्तित्रिशूल तथा अन्य अस्त्र-शस्त्रों की स्थापना करेंगे। वहाँ उत्तमोत्तम ब्राह्मण उनका श्रद्धा-भक्तिपूर्ण स्तवन करेंगे और प्रभु कल्कि उन ब्राह्मणों का यथोचित सत्कार करेंगे।

वीरव कल्किभगवान के करकमलों से पृथ्वी के म्पूर्ण स्युओँ का विनाश और अधर्म का नाश हो जायेगा। फिर स्वाभाविक ही धर्म का उत्थान प्रारम्भ होगा।

स्थापयित्वा च मर्यादा: स्वयम्भुविहिता: शुभा:।
वनं पुण्ययशःकर्मा रमणीयं प्रवेक्ष्यति॥
त्तच्छीमनुवर्त्स्यन्ति मनुष्या लोकवासिनः
(हाभारत, न० १९१।२-३)
उनका यश तथा कर्म-सभी परम पावन होंगे। वे ब्रह्माजी की चलायी हुई मङ्गलमयी मर्यादाओं की स्थापना करके (तपस्या के लिये) रमणीय वन में प्रवेश करेंगे। फिर इस जगत् के निवासी मनुष्य उनके शील-स्वभाव का अनुकरण करेंगे। मङ्गलमय भगवान् कल्कि के अङ्गराग को स्पर्श र बहने वाली वायु ग्रामनगरजनपद एवं देश की सारी प्रजा के मन में पवित्रता के भाव भर देगी। उनमें हज सात्विकता उदित हो जायगी। फिर उनकी संतति पूर्ववत् हृष्ट-पुष्टदीर्घायु एवं धर्मपरायण होने लगेगी। इस प्रकार र्वभूतात्मा सर्वेश्वर भगवान् कल्कि के अवतरित होने पर पृथ्वी पर पुन: सत्ययुग प्रतिष्ठित होगा

भ्रमपूर्ण कलियुगी बातों से रहें सावधान
कलियुग के बारे में मूर्खों द्वारा कई भ्रमोत्पादक बातें भी कही जाने लगी हैं, जिन पर बिलकुल भी विश्वास नहीं करना चाहिए। कोई स्वयं को अवतार बताते हुए कह रहा है कलियुग में भगवान ने अवतार ले लिया है और कोई किसी की भी फोटो (कहीं कहीं तो सॉफ्टवेयर से एडिट करके भी) दिखा देते हैं कि इनकी पूजा करो। कोई भगवान का छद्म वेष धारण कर स्वयं को अवतार बताता है। कोई कहते हैं कलियुग तो आकर चला भी गया है और कुछ लोग कुतर्क करके हिन्दू धर्म पर आक्षेप करते हैं;परंतु ये कुतर्कपूर्णभ्रामक, हिन्दू-परंपरा-विरोधी व मनगढ़ंत बातें फैलाने वाले लोग हैं, जिनके जाल में नहीं फंसना चाहिए।

कलियुग का प्रामाणिक वर्णन

हमारे हिन्दू धर्मग्रन्थों में कलयुग के विषय में जो प्रामाणिक वर्णन है उसके अनुसार कलियुग की आयु कुल ,३२,००० वर्ष की है जिनमें से(दिनांक २२ मार्च २०२३ तक)  ,१२३ वर्ष बीत चुके हैं। अतः अभी भी कलियुग की बहुत आयु शेष है। वर्तमान में (दिनांक २२ मार्च २०२३ से) लियुग संवत् ५१२४ रहा है। 
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को नये विक्रम संवत्सर के साथ ही नया कलियुग संवत्सर(वर्ष) प्रारम्भ होता है।
कलियुग संवत के साथ ही शक संवत का वर्ष भी बदलता है।
कलियुग संवत के विषय में सबसे प्राचीन संकेत आर्यभट्ट द्वारा दिया गया है।आर्यभट्ट के अनुसार जब वे 23 वर्ष के थे तब कलियुग के 3600 वर्ष व्यतीत हो चुके थे अर्थात वे 476 ई. में पैदा हुए थे। शक संवत का आरंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को कलियुग के 3179 वर्ष बीत जाने पर हुआ था। 
3600 में से 3179 घटाकर 421 आता है इसमें 476जोड़ने से 897 आया, अर्थात् 897ई. में शक संवत प्रारम्भ हुआ था

अंग्रेजी कैलेंडर से शक संवत 78 वर्ष पीछे है, 2023 - 78 = 1945 इस प्रकार,
वर्तमान में(नव संवत्सर 22 मार्च 2023 से)  शक संवत 1945 चल रहा है। कलियुग की उपरोक्त संख्या(3179) और शक संवत संख्या(1945) को जोड़ें तो योग 5124 बैठता है यह वर्तमान कलियुग संवत संख्या है। इस प्रकार कलियुग के आरंभ होने से छह माह पूर्व मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्दशी  को महाभारत युद्ध आरंभ हुआ। जो 18 दिन तक चला। उस समय भगवान श्रीकृष्ण की आयु 83 वर्ष थी। भगवान श्री कृष्ण ने 119 वर्ष की उम्र में भूलोक त्यागा था, कहते हैं तभी से कलियुग प्रारम्भ हो गया था।
क्या घोर कलियुग आ गया है?
मान्यता है कि प्रत्येक युग के चार चरण होते हैं। कलियुग के भी चार चरण हैं। कलियुग का एक चरण १,०८,००० वर्ष का होता है। कलियुग के प्रथम रण में कलि मिश्रित सतयुग अभी चल रहा है। दूसरे चरण में कलि मिश्रित त्रेता, तीसरे रण में कलि मिश्रित द्वापर तथा चतुर्थ रण में कलि मिश्रित कलियुग का समागम होगा।

इस प्रकार चौथे चरण में घोर लियुग का स्वरूप देखने में आयेगा। सब लोग पशुवत् आचरण करते दिखाई पड़ेंगे और र्म से च्युत होकर नष्ट हो जायेंगे। 
महानिर्वाण तंत्र के प्रथम उल्लास में इसका विशद वर्णन है -
नीचसंसर्ग-निरता-पर-वित्तापहारकाः। परनिन्दा-परद्रोह-परिवादपराः खलाः।(कलियुग में लोग नीचों का साथ करने वाले, पराये धन का अपहरण करने वाले, परनिन्दा में लिप्त, परद्रोही, विवाद परायण एवं दुष्ट होंगे।)
कलियुग के लोग इन्द्रिय सुख के लिये अत्यधिक मद्यपान करके मद से उन्मत्त होकर हित-अहित के ज्ञान से शून्य होंगे। कलि दोष से ग्रसित, दीन भाव को प्राप्त हुए द्विजादि को पवित्र-अपवित्र का विचार नहीं होगा।  मदोन्मत्त जन अपने बड़े एवं गुरुजनों से वाद-विवाद करेंगे। कुछ मौन रहेंगे, कुछ मृतप्राय होंगे। कुछ अनुचित एवं क्रूरकर्म करने वाले एवं धर्म मार्ग के विलोपक होंगे। 
इस पर देवी ने कहा - "हे प्रभो! आपने प्राणियों के हितार्थ जिन कार्यों का उपदेश किया है, वह कलियुग में विपरीत हो जायेंगे। कौन व्यक्ति योग का अभ्यास करेगा? कौन न्यासादि करेगा? कौन स्तोत्र पाठ करेगा? कौन व्यक्ति यन्त्राधार में पूजा करेगा और कौन व्यक्ति पुरश्चरण करेगा? हे जगत्पते! युगधर्म के प्रभाव से मनुष्य लोग स्वभावतः बड़े-दुराचारी एवं सदा पाप करने वाले होंगे।"
कुछ लोग बहुत वाद-विवाद करके अन्य को तुच्छातितुच्छ बताकर केवल अपने ही मत को स्थापित करने वाले होंगे। धर्म-कर्म भी गोपनीयता के कारण लुप्त हो जायेगा। इस कारण सभी भौतिकता मे डूबे रहेंगे और आध्यात्मिक चेतना किसी में न रहेगी। जिससे प्रामाणिक ज्ञान का अभाव हो जायेगा। घोर कलि के वातावरण के प्रभाव से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में तमान्ध छा जायेगा। तब प्तशती के अनुसार- निशामयं तदुत्पत्तिं के आधार पर कल्कि अवतार लेकर मां पुनः विलुप्त र्म के प्रकाश को लाकर तमान्ध को दूर करेंगी। परंतु वह समय अभी बहुत दूर है।

 क्योंकि घोर कलियुग का स्वरूप व लक्षण वर्णित करते हुए रामायण में गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं-

    सो कलिकाल कठिन उरगारी।
        पाप परायन स नर नारी॥
दोहा- कलिमल ग्रसे धर्म स सुप्त भए सद्ग्रन्थ।
दंभिन्ह निज मति कल्पि करि प्रगट किए बहु पंथ॥
    बरन धर्म नहिं श्र चारी।
        श्रुति विरोध रत सब नर नारी॥
    सब नर काम लोभ र क्रोधी
        देव विप्र श्रुति सन्त विरोधी॥
    कलि बारहिं बार दुका परै ।
        बिनु अन्न दुखी सब लोग मरै॥
    कलिकाल विहाल किए मनुजा
        हिं मानत कौ अनुजा-तनुजा॥

 क्या श्री कल्कि अवतार हो चुका है?
भविष्य में आधुनिकता का इतना बोलबाला होगा कि मनुष्य की परम आयु मात्र बीस वर्ष रह जायेगी। अभी तो कलियुग का यह प्रथम चरण ही चल रहा है शास्त्रों में वर्णित कलियुग की वीभत्सता के लक्षणों को देखते हुए यह तो त है कि अभी घोर कलियुग नहीं आया है।  कलियुग का चतुर्थ चरण आना शेष है, अत: अभी श्री कल्कि जी का अवतार नहीं हुआ है।

कलियुग में दुःखों से छूटने का उपाय
कलियुग के वित्तिकाल में त्राण के लिए मात्र एक ही कर्म सब शास्त्र बतलाते हैं "भगवान के नामों का संकीर्तन"। मंत्रों में भगवान के विभिन्न नाम छिपे होते हैं अतः यही नाम-जप या मन्त्र-जप करना अर्थात् आगम शास्त्र का अवलम्बन करना ही ऐसे समय में रक्षक होता है। शंकराचार्य जी ने प्रपंचसार में बताया है कलियुग में आगम में ताए हुए धर्मानुकूल मार्ग पर चलने से ही अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।

महा-निर्वा तन्त्र कहता है कलियुग में आगम(तन्त्र) में कथित मन्त्र ही शीघ्र फलदायक हैं -
सत्यं सत्यं पुनः सत्यं सत्यं मयोच्यते। विना ह्यागममार्गेण कलौ नास्ति गतिः प्रिये॥ - हे प्रिये ! मैं सत्य-सत्य पुनः सत्य कहता हूँ। कलियुग में आगम द्वारा निर्दिष्ट मार्ग के अतिरिक्त अन्य कोई गति नहीं है
कलौ तन्त्रोदिता मन्त्राः सिद्धास्तूर्ण-फलप्रदाः।
शस्ताः कर्म्मसु सर्वेषु जप-यज्ञ-क्रियादिषु।
(कलियुग में तन्त्र ग्रंथोक्त मन्त्र सिद्ध एवं शीघ्र सिद्धिप्रदायक हैं। जप, यज्ञ क्रियादि में एवं समस्त कर्मों में वे प्रशस्त हैं।)
तुलसीदास जी द्वारा रामायण में भी लिखा गया है-
कृ जुग त्रेता द्वापर पूजा मख अरु जो
जो गति होइ सो कलिहरि नाते पावहिं लो
कलियुग के प्राबल्य के कारण जगत् विपत्ति और पापों से व्याप्त होता है ऐसे समय में लोक कल्याणार्थ भगवान के नाम-जप का अवलंबन करना चाहिए।

हमारे हिन्दू धर्मग्रन्थों के अनुसार श्रीविष्णु भगवान के श्रीकल्कि अवतार की जयन्ती श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में सायाह्न व्यापिनी षष्ठी तिथि को होती है। मतान्तर से मार्गशीर्ष शुक्ला तृतीया के सायाह्नकाल को भी श्री कल्कि जी का प्रादुर्भाव होने की बात कही जाती है।


श्रीकल्कि भगवान की पंचोपचार पूजा

श्रीकल्कि जयन्ती के दिन आराधक को चाहिए कि वह स्वच्छ होकर सायंकाल को पूजागृह में उपस्थित हो। दुर्गाजी का विग्रहश्रीयंत्र, पारद शिवलिंग, भगवान नारायण का विग्रह/मूर्ति/चित्र या शालग्राम (इनमें जो कुछ उपलब्ध हो) अपने सामने रखे। उसमें श्रीकल्कि भगवान के उपस्थित होने की भावना करके निम्न संक्षिप्त विधि से श्रीकल्कि भगवान का पूजन करे-
आचमन, पवित्रीकरण, शिखाबंधन, प्राणायाम करके श्री कल्कि जी के पूजन का संकल्प करे।
श्रीगणेश-विष्णु-शिव-दुर्गा-सूर्येभ्यो नमः से पंचदेवों को नमस्कार कर पुष्पार्पण करे।
ऐं स्त्रौं कलि-दर्पघ्न्यै नमः व ऐं वैं कलि-कल्मष-नाशिन्यै नमः मंत्र से दुर्गा माँ को नमस्कार कर पुष्प अर्पित करे। तब श्री कल्कि भगवान का ध्यान करे-
म्लेच्छनिवहनिधने कलयसि करवालम्। धूमकेतुमिव किमपि करालम्॥  केशव धृतकल्किशरीर जय जगदीश हरे॥३॥   (अर्थात् जो म्लेच्छसमूह का [भूमण्डल की शान्ति भंग करने वालों का] नाश करने के लिये धूमकेतु के समान अत्यंत भयंकर तलवार चलाते हैं, ऐसे कल्किरूपधारी आप जगत्पति भगवान् केशव की जय हो।)
भगवान कल्कि का ध्यान
ध्याये नील-हयारूढ़ंश्वेतोष्णीष-विराजितम्।
महा-मुद्राढ्य-हस्तं चकौस्तुभोद्दाम-कण्ठकम्॥
मर्दयन्तं म्लेच्छ-गणंक्रोध-पूरित-लोचनम्।
अन्तर्हितैर्देव-मुनि-गन्धर्वै-संस्तुतं हरिम्॥१॥
(अर्थात् नीले घोड़े पर सवारश्वेत मुकुट(पगड़ी) से देदीप्यमान 'महा-मुद्राअर्थात्  भ्रू-मध्य की ओर देखने की मुद्रा में मुट्ठी बाँधे हुए हाथों की विशेष मुद्रावाले और कौस्तुभ-मणि के समान विशाल एवं चमकीली गर्दन वाले कल्कि-अवतार भगवान् विष्णु का मैं ध्यान करता हूँ। जो क्रोध-पूर्ण आंखों से दुष्ट लोगों पर प्रहार करने में तल्लीन हैं और सर्वकल्याण हेतु जिनकी गुप्तरूप से देव-मुनि-गन्धर्व स्तुति कर रहे हैं।)

कल्पावसाने निखिलैः खुरैः स्वैःसङ्घट्टयामास निमेष-मात्रात्।
यस्तेजसा निर्दहतीति भीमोविश्वात्मकं तं तुरगं भजामः॥२॥
(अर्थात् युगों की समाप्ति परजिन्होंने अपने खुरों के तीक्ष्ण प्रहार से सम्पूर्ण विश्व को विदीर्ण कर दिया ओर जिनके तेज से विश्व जल उठामैं उन तीव्र-गामी अश्वों अर्थात् तीक्ष्ण मन-विचार वाले कल्कि-अवतार भगवान् विष्णु को प्रणाम करता हूँ।)

म्लेच्छ-निवहनिधने कलयसि करवालम्।
धूमकेतुमिव किमपि करालम्॥
केशव धृतकल्किशरीर जय जगदीश हरे॥३॥

(अर्थात् जो म्लेच्छसमूह का [भूमण्डल की शान्ति भंग करने वालों का] नाश करने के लिये धूमकेतु के समान अत्यंत भयंकर तलवार चलाते हैं, ऐसे कल्किरूपधारी आप जगत्पति भगवान् केशव की जय हो।)
ॐ श्रीकल्कि अवताराय नम: ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि॥
(यह कहकर भगवान को पुष्प अर्पित करे)

 कं कल्किने नमः श्रीकल्कि अवताराय नम:॥ लं पृथिव्यात्मकं गन्धं श्रीकल्किने समर्पयामि नमः।
(यह कहकर भगवान को चन्दन का तिलक करे)

कं कल्किने नमः श्री कल्कि अवताराय नम:॥ हं आकाशात्मकं पुष्पं श्रीकल्किने समर्पयामि नमः।
(यह कहकर भगवान को पुष्प अर्पित करे)

कं कल्किने नमः श्री कल्कि अवताराय नम:॥ यं वाय्वात्मकं धूपं श्रीकल्किने आघ्रापयामि नमः।
(यह कहकर धूप जलाकर वातावरण सुगंधित करते हुए धूप द्वारा भगवान की आरती करे)

कं कल्किने नमः श्रीकल्कि अवताराय नम:॥ रं वह्न्यात्मकं दीपं श्रीकल्किने दर्शयामि नमः।
(यह कहकर भगवान की दीप से आरती करे)

कं कल्किने नमः श्रीकल्कि अवताराय नम:॥
वं अमृतात्मकं नैवेद्यं श्रीकल्किने निवेदयामि नमः।
(यह कहकर भगवान को उत्तम नैवेद्य अर्पित करे)

कं कल्किने नमः श्रीकल्कि अवताराय नम:॥
सं सर्वात्मकं सर्वोपचाराणि श्रीकल्किने समर्पयामि नमः।
(यह कहकर भगवान को पुष्पार्पण करके प्रदक्षिणा आदि समस्त उपचार समर्पित करने की भावना करे)


श्रीकल्कि अवतार’ नाम मन्त्र की साधना विधि 
भगवती श्री दुर्गा से उद्भूत विश्व के संरक्षक भगवान विष्णु का दसवाँ अवतार 'श्रीकल्कि-अवतारहै इनकी प्रसन्नता पाने के लिए षडक्षर-श्रीकल्कि”-नाम-मन्त्र-साधना की जा सकती है जिसका उत्तम माहात्म्य है। भगवती दुर्गा से उद्भूत श्री-कल्कि-विग्रह भगवान् विष्णु के नाम मन्त्रजप से कलियुग में पापियोंदुष्टों के कपटपूर्ण कार्यों एवं आतङ्क से रक्षा होती है।
करन्यास
कं अंगुष्ठाभ्यां नमः।
कं तर्जनीभ्यां स्वाहा।
ल्किं मध्यमाभ्यां वषट्।
नं अनामिकाभ्या हुम्।
नं कनिष्ठाभ्यां वषट्। 
मं करतल-कर-पृष्ठाभ्यां फट्।

षडङ्गन्यास

कं हृदयाय नमः।
कं शिरसे स्वाहा।
ल्किं शिखायै वषट्
नं कवचाय हुम्।
नं नेत्रत्रयाय वौषट्।
मं अस्त्राय फट्।

ध्यान
ध्याये नील-हयारूढ़ं, श्वेतोष्णीष-विराजितम्।
महा-मुद्राढ्य-हस्तं च, कौस्तुभोद्दाम-कण्ठकम्॥
मर्दयन्तं म्लेच्छ-गणं, क्रोध-पूरित-लोचनम्।
अन्तर्हितैर्देव-मुनि-गन्धर्वै-संस्तुतं हरिम्॥

अर्थात् नीले घोड़े पर सवारश्वेत मुकुट से देदीप्यमान 'महा-मुद्राअर्थात्  भ्रू-मध्य की ओर देखने की मुद्रा में मुट्ठी बाँधे हुए हाथों की विशेष मुद्रावाले और कौस्तुभ-मणि के समान विशाल एवं चमकीली गर्दन वाले कल्कि-अवतार भगवान् विष्णु का मैं ध्यान करता हूँ। जो क्रोध-पूर्ण आंखों से दुष्ट लोगों पर प्रहार करने में तल्लीन हैं और सर्वकल्याण हेतु जिनकी गुप्तरूप से देव-मुनि-गन्धर्व स्तुति कर रहे हैं।
श्रीकल्कि भगवान की मानस पूजा-
  • लं पृथिव्यात्मकं गन्धं श्रीकल्किने मनसापरिकल्प्य समर्पयामि नमः।
  • हं आकाशात्मकं पुष्पं श्रीकल्किने मनसापरिकल्प्य समर्पयामि नमः।
  • यं वाय्वात्मकं धूपं श्रीकल्किने मनसापरिकल्प्य आघ्रापयामि नमः ।
  • रं वह्न्यात्मकं दीपं श्रीकल्किने मनसापरिकल्प्य दर्शयामि नमः।
  • वं अमृतात्मकं नैवेद्यं श्रीकल्किने मनसापरिकल्प्य निवेदयामि नमः।
  • सं सर्वात्मकं सर्वोपचाराणि श्रीकल्किने मनसापरिकल्प्य समर्पयामि नमः।
श्रीकल्कि भगवान का मन्त्र
॥ कं कल्किने नम: ॥ (६ अक्षर)
श्री कल्कि भगवान सर्वदेवमय व सर्ववेदमय हैं। श्री कल्कि जी का अवतार कलियुग व सतयुग के संधिकाल में होगा। यह अवतार 64 कलाओं से युक्त होगा। भगवान श्री कल्कि निष्कलंक अवतार हैं।

निष्काम(कामना रहित) भाव से श्री कल्कि अवतार जयन्ती तिथि को या एकादशी या गुरूवार या फिर अन्य 
किसी दिन घर के मन्दिर में पांच, दस या 15-20 मिनट भगवान के सामने श्रीकल्कि भगवान के उपरोक्त षडक्षर मन्त्र का अधिकाधिक मानस जप करना चाहिए। यदि सकाम भाव से जप करे तो माला द्वारा किया जाना चाहिये और उसका हवन, तर्पण, मार्जन आदि करके पुरश्चरण करना चाहिए। जितने मंत्र के अक्षर होते हैं उतने लाख जप होना चाहिये अर्थात् छः लाख जप करें। शीघ्रता में 60 हजार जप करके भी लघु पुरश्चरण हो सकता है।

विशेष- 'ऐं स्त्रौं कलि-दर्पघ्न्यै नमः''ऐं वैं कलि-कल्मष-नाशिन्यै नमः' इस प्रकार भगवती दुर्गा का स्मरण करते हुए भगवान् कल्कि के नाम-मन्त्र का  जप करने से जप में विशेष सफलता प्राप्त होती है। प्रत्येक चतुर्युगी/पर्याय(चार युगों का एक चक्र) में कलियुग का समापन करने के लिए व जगत के कल्याण के लिए श्रीब्रह्मा-विष्णु-शिवात्मिका व श्रीमहासरस्वती-महालक्ष्मी-महाकाली स्वरूपिणी दुर्गा माँ ही भगवान श्रीकल्कि के अवतार रूप में प्रादुर्भूत होती हैं। श्रीहरि नारायण के अधर्मनाशक अवतार श्री कल्कि भगवान को कल्कि जयन्ती पर” हमारा अनेकों बार प्रणाम....


टिप्पणियाँ

  1. उत्तर
    1. सही कहा आपने इन्दु जी, घोर कलियुग आने में लंबा समय शेष है पर कलियुग के कुलक्षण अभी से प्रकट होने लगे हैं। आपने आलेख को पढ़ा, धन्यवाद..
      ॐ श्रीकल्कि अवताराय नम:।

      हटाएं
  2. Par itna lamba samaya orr Dukh itne bade
    Jo abhi se shuru hogaye hai !
    Toh fir In dukho kaa kya ilaaj hai
    ?
    Maine suna hai mahatma buddh vishnu ji k avtar nahi hai !!
    Toh abhi 9th avtar baaki hai ?

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. नमस्कार महोदय आपके पहले सवाल का जवाब तो यह है कि...तुलसीदास जी कहते हैं कलजुग केवल नाम आधारा.. यूं तो आज के समय में दुख से छुटकारा पाना बडा कठिन है..परन्तु शास्त्र कहते हैं कि संसार के दुखों से छूटने का एक ही उपाय है वो है भगवान के नाम का हर समय स्मरण करना...
      जैसा कि मैने ऊपर भी लिखा है जिसके पास समय है जो कर सकने में समर्थ हो उसे तो तन्त्र ग्रंथों में बतलाये गये किसी भी देवी देवता के सिद्ध मन्त्र का विधिपूर्वक जप करना चाहिए...पर साधारण मनुष्य तो चाहे जो भी कार्य कर रहे हों अपने मन में इष्ट मन्त्र का या आराध्य देव का नाम स्मरण करता रहे. तो भी उसे दुख से छुटकारा पाना सम्भव हो जाता है..

      और दूसरा श्रीबौद्ध अवतार के बारे में कई विद्वानों द्वारा प्रमाण के आधार पर ऐसा कहा जाता है कि बुद्ध दो हुए थे.. एक विष्णु जी के अवतार भगवान बुद्ध और दूसरे गौतमबुद्ध थे... लगभग 5000 साल पहले भगवान बुद्ध ने जहाँ तपस्या की संयोग से उसके बहुत समय बाद गौतम बुद्ध ने भी वहां तप किया तो यह संदेह पैदा हुआ.... तो इसके अनुसार भी सिद्ध यही होता है कि विष्णु जी ने पहले ही भगवान बुद्ध के रूप में अवतार ले लिया था.. इसलिए भगवान बुद्ध विष्णु जी के ही अवतार हैं यह सत्य है... और जैसा कि मैने उपर भी लिखा है कि श्री हरि जी के 10 प्रमुख अवतारों में 9 अवतार पहले ही प्रकट हो चुके हैं.... नवां अवतार भगवान बुद्ध का अवतार था और अब घोर कलयुग में केवल कल्कि अवतार ही होना बाकी है...
      कल्कि अवतार धारी श्री हरि की जय...

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