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गवान श्रीराम की जयंती तिथि श्रीरामनवमी सारे जगत के लिये सौभाग्य का दिन है; क्योंकि अखिल विश्वपति सच्चिदानन्दघन श्रीभगवान् इसी दिन दुर्दान्त रावण के अत्याचार से पीड़ित पृथ्वी को सुखी करने और सनातन धर्म की मर्यादा को स्थापित करने के लिये श्रीरामचन्द्रजी के रूपमें प्रकट हुए थे। श्री राम सबके हैं, सबमें हैं, सबके साथ सदा संयुक्त हैं और सर्वमय हैं। जो कोई भी जीव उनकी आदर्श मर्यादा-लीला-उनके पुण्यचरित्र का श्रद्धापूर्वक गान, श्रवण और अनुकरण करता है, वह पवित्रहृदय होकर परम सुख को प्राप्त कर सकता है। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को 'श्रीरामनवमी' का व्रत होता है।
रामनवमी व्रत मध्याह्नव्यापिनी दशमीविद्धा नवमी को करना चाहिये।
अगस्त्यसंहिता में कहा गया है कि यदि चैत्र शुक्ल नवमी पुनर्वसु नक्षत्र से युक्त हो और वही मध्याह्न के समय भी रहे तो महान पुण्य देने वाली होती है। लेकिन अष्टमीविद्धा नवमी तिथि विष्णुभक्तों को छोड़ देनी चाहिये; वे नवमी में व्रत व दशमी को पारणा करें। पुनर्वसु नक्षत्र से संयुक्त नवमी तिथि सब कामनाओं को पूर्ण करने वाली है। जो रामनवमीका व्रत करता है, उसकी अनेक जन्मार्जित पापराशि भस्मीभूत हो जाती है और उसे भगवान् विष्णुजी का परमपद प्राप्त होता है।
श्रीरामनवमीव्रत से भुक्ति एवं मुक्ति दोनों ही की सिद्धि हो जाती है। इस उत्तम व्रत को करके वह सर्वत्र पूज्य होता है। श्रीरामनवमीके दिन प्रातःकाल नित्यकर्मं से निवृत्त होकर हाथ में जल पुष्प लेकर ऐसा संकल्प कर लें-
'श्रीगणपतिर्जयति विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्य श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य श्रीब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्रीश्वेतवाराह-कल्पे वैवस्वत-मन्वन्तरे, अष्टाविंशति-तमे कलियुगे, कलि-प्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे भूप्रदेशे------प्रदेशे ----- नगरे (......ग्रामे), ..... नाम्नि सम्वत्सरे, सूर्य उत्तरायणे वसन्त ऋतौ, चैत्र मासे शुक्ल पक्षे , नवम्यां तिथौ, -----वासरे ------गोत्रोत्पन्नो ------(नाम) अहं अद्य परिकर सहित एवं श्रीसीता सहित श्रीरामचंद्र प्रीत्यर्थं सकलपाप-क्षयकामोsहं श्रीरामनवमी व्रतं करिष्ये।' अर्थात् 'सब पापों के क्षय की कामना से मैं श्रीराम की प्रसन्नता के लिये श्रीरामनवमी व्रत करूंगा।'
अब अपने घर के उत्तर भाग में या पूजा स्थल में ही एक चार द्वार वाला सुन्दर मण्डप बना ले। जो यह न कर सके लकडी की चौकी ही लगा ले। चौकी चार हाथ के विस्तार की हो तो अच्छा है।
* चौकी में मध्य में श्रीराम-सीता जी की मूर्ति या चित्र की स्थापना होनी चाहिये। राम-सीता जी की मूर्ति न हो तो श्री विष्णु-लक्ष्मी जी की मूर्ति भी रख सकते हैं।
* सीताराम जी के पूर्व में शङ्ख, चक्र की आकृति बनाए तथा श्री हनुमान् जी की स्थापना करे;
* दक्षिण दिशा पर बाण, शार्ङ्गचाप(धनुष) की आकृति बनाए तथा श्रीगरुड़ जी की मूर्ति रखे नहीं हो तो गरूड़ आकृति बनी घंटी को ही रख दे,
* इसी तरह पश्चिमद्वार पर गदा, खड्ग की आकृति बनाए और श्री अङ्गद जी को रखे।
* उत्तरद्वार पर पद्म(कमल), स्वस्तिक की आकृति बनाए और श्री नील जी की स्थापना करे।
उपरोक्त में जिसकी मूर्ति न हो तो उस उस जगह पर प्रतीक के रूप में एक एक सुपारी या एक एक फूल या अक्षत का छोटा ढेर बना दें। हनुमान, गरूड़, अंगद, नील की जगह पर उनका नाम भी लिख सकते हैं।
सम्भव हो तो सुन्दर वितान एवं सुन्दर तोरण भी लगाए।
अब पुष्प अक्षत से परिकर पूजा करे -
* पूर्वद्वार स्थिताय - श्री शङ्खाय नमः पूजयामि, श्री चक्राय नमः पूजयामि, श्री हनुमते नमः पूजयामि
* दक्षिणद्वार स्थिताय - श्री बाणाय नमः पूजयामि, श्रीशार्ङ्गचापाय नमः पूजयामि, श्री गरुड़ाय नमः पूजयामि
* पश्चिमद्वार स्थिताय - श्री गदायै नमः पूजयामि, श्रीखड्गाय नमः पूजयामि, श्री अङ्गदाय नमः पूजयामि
* उत्तरद्वार स्थिताय - श्री पद्माय नमः पूजयामि, श्री स्वस्तिकाय नमः पूजयामि, श्री नीलाय नमः पूजयामि
अब मण्डपके मध्य में परिकरों सहित भगवान् श्रीसीताराम को प्रतिष्ठित कर विविध उपचारों से यथाविधि पूजन करे।
श्री राम ध्यानम्
ध्यायेदाजानु-बाहुं धृत-शर-धनुषं बद्ध-पद्मासन-स्थम्।
पीतं वासो वसानं नवकमल-दलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्।
वामांकारुढ़ सीता-मुख-कमलमिलल्लोचनं नीरदाभं।
नानालंकार-दीप्तं दधतमुरु-जटामण्डलं रामचन्द्रम्॥
अर्थात् जो धनुष - बाण धारण किए हुए हैं, बद्ध पद्मासनस्थ हैं और पीले वस्त्र पहने हुए हैं, जिनके आलोकित नेत्र नूतन कमल दल के समान स्पर्धा करते हैं, जो नेत्र बाईं ओर स्थित सीताजी के मुख कमल से मिले हुए हैं, उन आजानुबाहु, मेघ के समान श्याम, विभिन्न अलंकारों से विभूषित तथा जटाधारी श्रीराम का मैं ध्यान करता हूँ।
श्री राम का पंचोपचार-पूजन
'परिकरसहिताय श्रीसीतारामचन्द्राय नमो नमः लं पृथिव्यात्मकं गंधम् समर्पयामि।' से भगवान को तिलक लगाएँ।
'परिकरसहिताय श्रीसीतारामचन्द्राय नमो नमः हं आकाशात्मकं पुष्पम् समर्पयामि।' से भगवान को पुष्प चढ़ाएँ।
'परिकरसहिताय श्रीसीतारामचन्द्राय नमो नमः यं वाय्वात्मकं धूपम् समर्पयामि।' बोलकर भगवान के लिए धूप आघ्रापित करें।
'परिकरसहिताय श्रीसीतारामचन्द्राय नमो नमः रं वह्न्यात्मकं दीपम् दर्शयामि।' से घी का दीप जलाकर भगवान को दीप दिखाएँ।
'परिकरसहिताय श्रीसीतारामचन्द्राय नमो नमः वं अमृतात्मकम् नैवेद्यम् निवेदयामि।' से भगवान को पँजीरी-फल आदि का नैवेद्य निवेदित करें।
'परिकरसहिताय श्रीसीतारामचन्द्राय नमो नमः सौं सर्वात्मकम् सर्वोपचाराणि मनसापरिकल्प्य समर्पयामि।' से भगवान को यथालब्ध उपचारों द्वारा अर्चित करने की भावना करें।
तदनन्तर निम्न मन्त्र से भगवान् की आरती करनी चाहिये-
मङ्गलार्थं महीपाल नीराजनमिदं हरे।
संगृहाण जगन्नाथ रामचन्द्र नमोsस्तुते।।
परिकरसहिताय श्रीसीतारामचन्द्राय कर्पूरारार्तिक्यं समर्पयामि।
"हे पृथिवीपालक भगवान् श्रीरामचन्द्र! सर्वविध मङ्गल की प्रार्थना के साथ यह आरती निवेदित है। हे जगन्नाथ! इसे आप स्वीकार करें। आपको प्रणाम है।"
उपर्युक्त श्लोक पढ़कर किसी शुद्ध पात्र में कपूर तथा (एक या पाँच अथवा ग्यारह) घी की बत्ती जलाकर परिकरसहित भगवान् श्रीसीतारामजी की आरती उतारनी चाहिये और समवेत स्वर में निम्नलिखित आरती का गायन करना चाहिये-
आरती कीजै श्रीरघुबरकी, सत चित आनँद शिव सुंदरकी,
आरती कीजै श्रीरघुबरकी, सत चित आनँद शिव सुंदरकी।।
दशरथ-तनय कौसिला-नन्दन सुर-मुनि-रक्षक दैत्य-निकन्दन,
अनुगत-भक्त भक्त-उर-चन्दन, मर्यादा-पुरुषोत्तम वरकी।।
आरती कीजै श्रीरघुबरकी, सत चित आनँद शिव सुंदरकी।।
निर्गुन सगुन, अरूप-रूपनिधि, सकल लोक-वन्दित विभिन्न विधि,
हरण शोक-भय, दायक सब सिधि, मायारहित दिव्य नरवर की।।
आरती कीजै श्रीरघुबरकी, सत चित आनँद शिव सुंदर की।।
जानकिपति सुराधिपति जगपति, अखिल लोक पालक त्रिलोक-गति,
विश्ववन्द्य अनवद्य अमित-मति, एकमात्र गति सचराचर की।।
आरती कीजै श्रीरघुबरकी, सत चित आनँद शिव सुंदर की।।
शरणागत-वत्सलव्रतधारी, भक्त-कल्पतरु-वर असुरारी,
नाम लेत जग पावनकारी, वानर-सखा दीन-दुख-हरकी।।
आरती कीजै श्रीरघुबरकी, सत चित आनँद शिव सुंदर की।।
पुष्पाञ्जलि, प्रदक्षिणा व प्रणाम
नमो देवाधिदेवाय रघुनाथाय शार्ङ्गिणे।
चिन्मयानन्तरूपाय सीतायाः पतये नम:॥
परिकरसहिताय श्रीसीतारामचन्द्राय नमो नमः पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि।
"देवों के देव, शार्ङ्गधनुर्धर, चिन्मय, अनन्त रूप धारण करने वाले, सीतापति भगवान् श्रीरघुनाथजी को बारम्बार प्रणाम है।"
पुष्पार्पण करके निम्नलिखित श्लोक पढ़ते हुए प्रदक्षिणा करनी चाहिये-
यानि कानि च पापानि ब्रह्महत्यादिकानि च।
तानि तानि प्राणश्यन्ति प्रदक्षिण पदे पदे॥
'ब्रह्महत्या आदि जितने भी पाप हैं, वे सभी (भगवान की) प्रदक्षिणा के पद-पद पर नि:शेष हो जाते हैं।'
प्रदक्षिणा करके भगवान् श्रीसीताराम को प्रणाम करना चाहिये एवं उनकी प्रसन्नता प्राप्ति के लिये कातर-याचना करनी चाहिये।
मन्दिरों में भी भगवान् को पञ्चामृतस्नान, यथाविधि पूजन तथा पँजीरी और फल का भोग लगाकर मध्याह्न काल में (बारह बजे) विशेष आरती एवं पुष्पाञ्जलि आदि करने की परम्परा है। आरती केअनन्तर भक्तों को पञ्चामृत, पँजीरी का प्रसाद दिया जाता है। राम जी के आगे बैठकर कुछ समय मन्त्र जाप करें संकीर्तन करें ।
श्रीराम के मन्त्र
⭐'हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे॥'
⭐'राम' [द्वयाक्षर मंत्र]
⭐'रामाय नमः' [पंचाक्षर मंत्र]
⭐'सीताराम' [चतुरक्षर मंत्र]
कल्मषों के नाश व श्रीरामजी की प्रीति हेतु दैनिक कार्य करते हुए भी इन मंत्रों का अधिकाधिक मानस जप दिन-भर करना चाहिए।
मुमुक्षुजनों को चाहिये कि आत्मकल्याण के लिये सदा श्रीरामनवमी व्रत करें। श्रीरामनवमी व्रत करने वाला सभी पापों से मुक्त होकर सनातन ब्रह्म भगवान् श्रीसीतारामजी को प्राप्त कर लेता है ।
श्रीरामनवमी के दिन भगवान् श्रीरामचन्द्र जी की प्रतिमा के दान का अत्यधिक माहात्म्य श्रीअगस्त्यसंहिता में बताया गया है। प्रतिमा स्वर्ण या पाषाण अथवा काष्ठ की हो सकती है। ताम्रपत्र या स्वर्णपत्र पर भगवांन श्रीसीताराम जी का चित्र या रेखाचित्र अंकित करके भी उस चित्रपत्र का दान किया जा सकता है। आज श्रीरामचन्द्र जी की प्रीति हेतु रामरक्षा स्तोत्र, श्रीराम अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र आदि का पाठ किया जाना अति मंगलकारी है। जिन पापनाशक श्रीराम ने शबरी के जूठे बेर भी प्रेम से ग्रहण कर लिए, शिला बनी हुई अहिल्या को चरण स्पर्शमात्र से ही शापमुक्त कर दिया, परशुरामजी का क्रोध जिनके दर्शन करने मात्र से ही शान्त हो गया था, जिनका नाम जप करने मात्र से ही मनुष्य के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं, ऐसे मुक्तिदाता श्री सीताराम जी के श्री चरणारविन्दों में हमारा बारम्बार प्रणाम....
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