सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

कमला महाविद्या की स्तोत्रात्मक उपासना

कलश स्थापना या घटस्थापन की विधि

नातन धर्मावलम्बियों के घर में कोई भी छोटी बड़ी विशेष पूजा हो चाहे दीपावली पूजन हो या नवरात्रि पूजन अथवा विवाह आदि शुभ अवसरों पर कलश की स्थापना आवश्यक मानी गयी है। केवल नवरात्र में कलश के नीचे एक बड़े पात्र में मिट्टी भरकर ज्वारे बोये जाते हैं जबकि अन्य अवसरों पर सप्तधान्य नहीं बोया जाता परन्तु जरा सी मिट्टी और जौ प्रतीक रूप में कलश के नीचे रखा जा सकता है। कलश स्थापना का एक निश्चित शास्त्रोक्त विधान है जो यहाँ प्रस्तुत है-                     


कलश स्थापन हेतु सामग्री
पूजन से पहले जांच लें कि क्या समस्त सामग्री की व्यवस्था हो गई है :
⭐सोने / तांबे / मिट्टी का एक कलश (ध्यान रहे कलश इतना छोटा भी न हो कि नारियल रखते ही गिर जाए)
मौली (पूजा का लाल धागा, कलावा)
⭐एक लकडी का चौका या पाटा जिस पर मिट्टी भरा पात्र और कलश रखेंगे।
(नवरात्रि हेतु) एक पात्र जिस पर मिट्टी रखकर ज्वारे बोने हैं, चाहे तो यहां टोकरी पर अखबार बिछा कर प्रयोग करें अन्यथा मिठाई आदि का डिब्बा भी लिया जा सकता है। ⭐साफ जगह की साधारण मिट्टी जिससे बड़े कंकर हटा लिये गये हैं।
⭐सप्तधान्य - सात तरह के साबुत अनाज : तिल, धान, उड़द, मूंग, गेहूं, चना, जौं इनकेे अलावा सांवा, कँगुनी, बाजरा, मसूर,मक्का अथवा अभाव हो तो केवल जौं,चावल या गेहूं भी चलेगा 
⭐कलश में भरने के लिये साफ ताजा पानी और गंगाजल (यदि हो तो)
सर्वौषधि - (मुरामांसी, जटामांसी, वच, कुठ, बावची, शिलाजीत, हल्दी, दारुहल्दी, सौंठ, सफेद चंदन, चम्पक, आंवला और मुस्ता/नागरमोथाये सारी औषधि न मिलें तो उपरोक्त में जो मिल जाए जैसे 'हल्दी' या फिर "सर्वौषधीनां(शतौषधीनां) दुष्प्राप्तौ क्षिपेदेकां शतावरीम्" के अनुसार  'शतावर' चूर्ण लेलें।
पंचपल्लव- 5 पत्ते: पीपल, गूलर, अशोक, आम, वट(बरगद), पाकड़ के या फिर केवल पीपल / आम के पत्ते
कलश के अंदर डालने के लिए सप्तमृत्तिका - सात जगह की मिट्टी : गोशाला, अश्वशाला, गजशाला, चीटी की बांबी, तालाब, नदीसंगम और राजद्वार की सात-मिट्टियां न मिल पाएं तो जो मिलें या थोड़ी (आधी चम्मच जितनी) तुलसी की मिट्टी ले लें।
पञ्चरत्न - चाँदी, सोना, हीरा, माणिक्य, मोती, पद्मराग, नीलम, वैदूर्य(विल्लौर), मूंगा, रुद्राक्ष इनमें से कोई पांच या इनमें से जो मिले।

अभावे सर्वरत्नानां हेम सर्वत्र योजयेत्।(आदित्यपुराण,भविष्य महापुराण)

पंचरत्नों के अभाव में स्वर्ण प्रयोग करें। स्वर्ण का भी अभाव हो तो पिघला शुद्ध घी(थोड़ा-सा) डालना चाहिये-

सुवर्णस्याप्यभावे तु आज्यं ज्ञेयं विचक्षणैः॥(निर्णयसिन्धु,अपरार्क)

⭐पंचामृत - एक पात्र में दूध दही घी चीनी शहद मिला लें,
⭐पंचगव्य - एक पात्र में दूध दही घी गोबर गोमूत्र मिला लें।
⭐कलश ढकने के लिए कोई मिट्टी का ढक्कन या फिर कटोरा (पूर्ण पात्र) जिस पर नारियल अटक सके, इस पूर्णपात्र को भरने के लिए तथा पूजा के लिए साबुत चावल 
⭐दूर्वा,  कुश, 2 साबुत सुपारी और सिक्के
⭐पानी वाला (जटा वाला) नारियल ⭐लाल कपड़े के दो टुकड़े (या दो चुनरी), सिंदूर
⭐पान का पत्ता 1, इलायची, लौंग, कपूर, रोली, चन्दन, फूल
⭐इत्र या सुगन्धित तेल, धूप, दीप, नैवेद्य (प्रसाद/मिठाई) 


कलश स्थापना की शास्त्रीय विधि 

सावधानी - जिनका यज्ञोपवीत संस्कार नहीं हुआ है अर्थात् जो जनेऊ नहीं पहनते हैं तथा स्त्रियां इस विधि में ॐ न बोले और वेदमन्त्र न बोले। वे ॐ का उच्चारण औं करें। कौन सा वेदमन्त्र है हमने लिख दिया है। हिन्दी अर्थ सब पढ़ सकते हैं। पौराणिक मन्त्र सब पढ़ सकते हैं।

1.) कलश लें और इस पर रोली से स्वस्तिक का चिह्न बनाकर उस कलश के गले में मौली (पूजा का लाल धागा) बाँधकर कलश को एक ओर रख लें।

2.) कलश स्थापित करने के लिए चौकी / पाटे पर कुङ्कुम या रोली से अष्टदल कमल बनाकर  मिट्टी युक्त बड़ा पात्र/डिब्बा रखें और निम्न मन्त्र से पात्र पर स्थित मिट्टी (भूमि) का स्पर्श करें -

वेदमन्त्र - ॐ भूरसि भूमि-रस्यदिति-रसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धर्त्री , पृथिवीं यच्छ पृथिवीं दृ ङं ह पृथिवीं मा हि ङं सी:॥ ॐ महीद्यौः पृथिवी च न इमं यज्ञं मिमिक्षताम् पिपृतान्नो भरीमभिः॥
पौराणिक मन्त्र - सर्वेषामाश्रया भूमिर्वराहेण समुद्धृता अनंत-सस्यदात्री या तां नमामि वसुंधराम्॥ 
(जो सबकी आश्रय भूमि हैं, जिनका भगवान वराह ने उद्धार किया, अनंत फसलों को देने वाली वसुंधरा- पृथ्वी को नमस्कार करता हूँ।)
आगमोक्त मन्त्र - वह्निमण्डलाय धर्मप्रद दश-कलात्मने कलश-पात्राधाराय नमः।

3.) निम्न मन्त्र पढ़कर कलश के नीचे सप्तधान्य या जौ बिखेर दें -
वेदमन्त्र - ॐ धान्यमसि धिनुहि देवान् प्राणाय त्वो दानाय त्वा व्यानाय त्वा। दीर्घामनु प्रसिति-मायुषे धां देवो वः सविता हिरण्यपाणिः प्रति गृभ्णा-त्वच्छिद्रेण पाणिना चक्षुषे त्वा महीनां पयोऽसि।।  ओषधयः समवदन्त सोमेन सहराज्ञा। यस्मै कृणोति ब्राह्मणस्तं राजन् पारयामसि ॥
पौराणिक मन्त्र - यासामाप्यायकः सोमो राजायाः शोभनाः स्मृताः, ओषध्यः प्रक्षिपाम्यत्र तां अद्य कलशार्चने॥ 

4.) अब भूमि(मिट्टी भरे बड़े पात्र/डिब्बे) के ऊपर वह मौली बंधा हुआ कलश स्थापित करें -
वेदमन्त्र - ॐ आ जिघ्र कलशं मह्या त्वा विशन्-त्विन्दवः। पुनरूर्जा निवर्त्तस्व सा नः सहस्त्रं धुक्ष्वोरुधारा पयस्वती पुनर्मा-विशताद्रयिः ॥
[हे महिमामयी गौ! आप इस कलश (यज्ञ से उत्पन्न पोषण युक्त मण्डल) को सूँघिये (वायु के माध्यम से ग्रहण करें), इसके सोमादि पोषक  तत्त्व आपके अन्दर प्रविष्ट हों। उस ऊर्जा को पुनः सहस्रों पोषक धाराओं द्वारा हमें प्रदान करें। हमें पयस्वती (दुग्ध, गौओं के पोषक-प्रवाहों) एवं ऐश्वर्य आदि की पुनः - पुनः प्राप्ति हो]
पौराणिक -  कलशं स्थापयामि कहें।
आगमोक्त मन्त्र -  अर्कमण्डलाय अर्थप्रद द्वादश-कलात्मने कलश-पात्राय नमः।

5.) अब उस कलश में जल/गंगाजल भरें -
वेदमन्त्र - ॐ वरुणस्यो-त्तम्भन-मसि वरुणस्य स्कम्भ सर्जनीस्थो । वरुणस्य ऋत सदन्यसि वरुणस्य ऋत सदनमसि वरुणस्य ऋत-सदन-मासीद।
[हे काष्ठ उपकरण! आप वरुण रूपी सोम की उन्नति करने वाले हों। हे शम्ये! आप वरुण देव की गति को स्थिर करें। (उदुम्बर काष्ठ निर्मित हे आसन्दे!) आप यज्ञ में वरुण (रूपी बँधे हुए सोम) के आसन स्वरूप हैं। आसन्दी पर बिछे हुए हे कृष्णाजिन्! आप वरुण रूपी सोम के यज्ञ- स्थान हैं। वस्त्र में बँधे हुए वरुण (रूपी सोम!) के आसन स्वरूप इस कृष्णाजिन् पर सुखपूर्वक आसन ग्रहण करें।]
पौराणिक मन्त्र -गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वति । कावेरि नर्मदे सिंधो कुंभेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु॥१॥
आपस्त्वमसि देवेश! ज्योतिषां-पतिरव्यय! भूतानां जीवनोपायः कलशे पूरयाम्यहम् ॥२॥
आगमोक्त मन्त्र - चन्द्रमण्डलाय कामप्रद षोडश-कलात्मने कलश-पात्राऽमृताय नमः।

6.) अनामिका अंगुलि (रिंग फिंगर) से कलश के जल में चन्दन डाले-
वेदमन्त्र - ॐ त्वां गन्धर्वा अखनँ-स्त्वा-मिन्द्रस्त्वां बृहस्पति:। त्वामोषधे सोमो राजा विद्वान् यक्ष्मादमुच्य
[हे ओषधे! गन्धर्वों (औषधीय गुणों को पहचानने वालों) ने आपका खनन किया, इन्द्रदेव और श्रीबृहस्पतिदेव (परम वैभव सम्पन्न और वेदवेत्ता विद्वान देवों) ने आपका खनन किया, तब ओषधिपति सोम ने आपकी उपयोगिता को जानकर क्षय रोग को दूर किया।]

 पौराणिक मन्त्र -मलयाचलसंभूतं घनसारं मनोहरं, हृदयानन्दनं दिव्यं चन्दनं प्रक्षिपाम्यहं॥

7.) कलश जल में सर्वोषधि या शतावर चूर्ण या हल्दी छोड़ दें -
वेदमन्त्र - ॐ या ओषधीः पूर्वा जाता देवभ्यस्त्रि युगं पुरा। मनै नु बभ्रूणामह शतं धामानि सप्त च॥
पौराणिक मन्त्र -कुष्ठं मांसी हरिद्रे द्वे मुरा शैलेयचंदने, वचा चंपकमुस्तौ च सर्वौषध्यो दश स्मृताः

8.) कलश में दूर्वा या दूब छोडें -
वेदमन्त्र - ॐ काण्डात्काण्डात्प्र-रोहन्ती परुषः परुषस्परि। एवा नो दूर्वे प्र तनु सहस्रेण शतेन च॥
पौराणिक मन्त्र - त्वं दूर्वेऽमृतजन्मासि वंदितासि सुरैरपि। सौभाग्य-संततिकरी सर्वकार्येषु शोभना॥

9.) कलश पर पञ्चपल्लव -
निम्न मन्त्र से पांच पत्ते कलश में डालें , डंठलें अंदर को रखें-
वेदमन्त्र - ॐ अश्वत्थे वो निषदनं पर्णे वो वसतिष्कृता। गोभाज इत्किलासथ यत्सनवथ पूरुषम्॥
पौराणिक मन्त्र - उदुंबर-वटाश्वत्थचूतन्यग्रोध-पल्लवाः पंचभंगा इति ख्याताः सर्वकर्मसु शोभनाः॥१॥
(उदुम्बर- गूलर, वट, पीपल, आम, शमी पाँच पत्ते सभी कर्मों में शोभित होने के लिये प्रसिद्ध हैं।)
यज्ञीयवृक्ष-सम्भूतान् पल्लवान् सरसान् शुभाम्। अलङ्काराय पञ्चैतान् कलशे संक्षिपाम्यहम्॥२॥

10.) कलश में पवित्री (कुशा छोड़ें) -
वेदमन्त्र - ॐ पवित्रे स्थो वैष्णव्यौ सवितुर्वः प्रसव उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभि:। तस्य ते पवित्रपते पवित्र पूतस्य यत्काम: पुने तच्छकेयम्॥
पौराणिक - पवित्रीं समर्पयामि कहें।

11.) कलश में थोड़ी सप्तमृतिका छोडें-
वेदमन्त्र - ॐ स्योना पृथिवि नो भवानृक्षरा निवेशनी। यच्छा नः शर्म सप्रथा:
पौराणिक मन्त्र -गजाश्वरथ्या-वल्मीक-संगमादूध्र-गोकुलात्। चत्वरान् मृदमानीय कुंभेऽस्मिन् प्रक्षिपाम्यहम् 


12. कलश में सप्तधान्य/जौं-तिल छोडें-
वेदमन्त्र - ॐ ओषधयः समवदन्त सोमेन सह राज्ञा यस्मै कृणोति ब्राह्मणस्त राजन्पारयामसि॥
पौराणिक मन्त्र - यवगोधूमधान्यानि तिलाः कंगुश्च मुद्गगकाः। श्यामाकं चणकं चैव सप्तधान्याः क्षिपाम्यहम्॥१॥
यवोऽसि धान्यराजस्त्वं सर्वोत्पत्तिकरः शुभः। प्राणिनां जीवनोपायः कलशाधः क्षिपाम्यहम्॥२॥

13.) कलश में पञ्चरत्न -
वेदमन्त्र - ॐ परि वाजपति: कवि-रग्निर्हव्या-न्यक्रमीत्। दधद्रत्नानि दाशुषे। 
 पौराणिक मन्त्र -कनकं कुलिशं नीलं पद्मरागं च मौक्तिकम् एतानि पंचरत्नानि कुंभेऽस्मिन् प्रक्षिपाम्यहम्
(पञ्चरत्न डालें, न हों तो कोई एक रत्न या सोना या रुद्राक्ष ही डाल दें। वह भी न हो तो "पंचरत्नानि मनसा परिकल्प्य समर्पयामि" कहकर सिक्के या अक्षत चढ़ा दें)
उपलब्ध हो तो पंचगव्य व पंचामृत भी डाले-
14.अ.* 
 पंचामृत - दूध दही घी चीनी शहद 
पौराणिक मन्त्र -  गव्यं क्षीरं दधि तथा घृतं मधु च शर्करा एतत्पंचामृतं शस्तं कुंभेऽस्मिन् प्रक्षिपाम्यहं॥

14. आ. * पंचगव्य - गोमूत्र गोबर दूध दही घी 
पौराणिक मन्त्र - गोमूत्रं गोमयं क्षीरं दधि सर्पिर्यथाक्रमम् एतानि पंच गव्यानि कुंभेऽस्मिन् प्रक्षिपाम्यहम्

15.) कलश में पूगी फल -
वेदमन्त्र - ॐ या फलिनिर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणी । बृहस्पति : प्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्व ङं ह स:॥
पौराणिक मन्त्र- फलेन फलितं सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम् कलशे प्रक्षिपामीदं सर्वकर्मफलप्रदम्

16.) कलश में दक्षिणा( द्रव्य /सिक्के) -
पौराणिक मन्त्र-हिरण्य गर्भ गर्भस्थं हेम बीज विभावसो। अनन्त पुण्य फलदमतः शांति प्रयच्छ मे॥
वेदमन्त्र - ॐ हिरण्यगर्भः समवर्त्तताग्रे भूतस्य जात: पतिरेक आसीत्। स दाधार पृथिवीं द्यामु ते मां कस्मै देवाय हविषा विधेम॥
कलश में द्रव्य छोडें।

17.) कलश पर वस्त्र/चुनरी-
निम्नलिखित मंत्र को पढकर कलश को वस्त्र से अलंकृत करें-
वेदमन्त्र - ॐ सुजातो ज्योतिषा सह शर्म वरूथमाऽसदत्स्व:। वासो अग्ने विश्वरूपं सं व्ययस्व विभावसो॥
(हे अग्निदेव! आप तेजयुक्त ज्वालाओं से विधिवत् प्रज्वलित होकर, श्रेष्ठ सुखप्रद यज्ञ वेदिका को सुशोभित करें। हे कान्तिमान् अग्ने! आप अपनी विशिष्ट आभा से वस्त्रों की भाँति जगत् को भली प्रकार धारण करें अर्थात् पृथिवी का आवरण बनकर उसकी सुरक्षा करें।)
पौराणिक मन्त्र- सितं सूक्ष्मं सुख-स्पर्शमीशानादेः प्रियं सदा। वासोहि सर्व दैवत्यं देहालंकरणं परम्।

18.) कलश पर चावल भरा पूर्णपात्र -
वेदमन्त्र - ॐ पूर्णा दर्वि परा पत सुपूर्णा पुनरा पत। वस्नेव विक्रीणावहा इषमूर्जं शतक्रतो॥
पौराणिक मन्त्र- पूर्णपात्रमिदं दिव्यं सिततंडुल पूरितं । देवता स्थापनायैव कलशे स्थापयाम्यहम् ।
इस मन्त्र से पूर्णपात्र - चावल से भरा कटोरा कलश के ऊपर रखें।


19.) कलश पर नारियल -
वेदमन्त्र - ॐ याः फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणी:। बृहस्पति प्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्वं हस:॥
(फलों से युक्त, फलों से रहित, पुष्पयुक्त तथा पुष्परहित ऐसी ये सभी ओषधियाँ विशेषज्ञ, वैद्य द्वारा प्रयुक्त होती हुईं हमें रोगों से मुक्ति दिलाएँ।)
पौराणिक मन्त्र- फलेन फलितं सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम्। कलशे प्रक्षिपामीदं सर्वकर्मफलप्रदम्
यह मन्त्र पढ़कर कलश के ऊपर लाल वस्त्र(चुनरी) लिपटा हुआ  जटा वाला एक नारियल रखें। यहाँ ध्यान रखें कि कलश पर रखते समय नारियल का मुख अर्थात जटा वाला हिस्सा अपनी ओर(पश्चिम को) रखें और तीखा हिस्सा (पूँछ) पूर्व की ओर रखे।



20.) दाहिने हाथ अक्षत-पुष्प लेकर  वरुण देव का आवाहन करे  -
वेदमन्त्र - ॐ तत्वा यामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदा शास्ते यजमानो हविर्भिः। अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशं स मा न आयुः प्र मोषीः। ॐ भू र्भुवः स्वः -
पौराणिक मन्त्र-भो वरुण इहागच्छ , इह तिष्ठ! अस्मिन् कलशे वरुणं साङ्गं सपरिवारं सायुधं सशक्तिकं आवाहयामि स्थापयामि , पूजयामि , मम् पूजां गृहाण। अपां-पतये श्रीवरुणाय नमः।
यह कहकर अक्षत-पुष्प कलश पर छोड दें। 
फिर कलश को दाहिने हाथ से  छूते हुए बोले-
पौराणिक मन्त्र-कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुद्रः समाश्रितः। 
मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः॥
कुक्षौ तु सागराः सर्वे सप्तद्वीपा वसुन्धरा । 
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः सामवेदो ह्यथर्वणः॥

अङ्गैश्च सहिताः सर्वे कलशं तु समाश्रिताः।
(कलश के मुख में विष्णु, गले में रुद्र, मूल भाग में ब्रह्मा, मध्य भाग में मातृकायें, पेट में समस्त समुद्र, पहाड़ और पृथ्वी रहते हैं और अंगों के सहित ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद भी रहते हैं।)
अत्र गायत्री सावित्री शान्तिः पुष्टिकरी तथा॥
आयान्तु देवपूजार्थं दुरितक्षय कारकाः।
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धुकावेरि जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरुः॥ 

सर्वे समुद्राः सरितस्तीर्थानि जलदा नदाः।
आयान्तु मम शान्त्यर्थं (देवपूजार्थं) दुरितक्षय कारका : ॥
(इस कलश में ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र, मातृगण, सभी सागर, सप्तद्वीप/पहाड़, पृथ्वी, चारों वेद - छहों वेदांगों के सहित, शांति और पुष्टि करने वाली - गायत्री - सावित्री,  गङ्गा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु,कावेरी, सभी समुद्र, सरितायें, समस्त तीर्थ व जलधारायें, नदियां स्थापित हों)
झषासनाय नमो नमस्ते मगर पर विराजित श्री वरुण देव को नमस्कार


21.) अब निम्न मन्त्र से अक्षत पुष्प लेकर कलश की प्रतिष्ठा करें -

प्रतिष्ठाः -

वेदमन्त्र ॐ मनो-जूति-र्ज्जुषता माज्ज्य॑स्य बृहस्स्पतिर् - यज्ञमिमन्त॑नोत् -त्वरिष्टं यज्ञ ङं समिमं दधातु। विश्वे देवास इह-मादयन्ताम् ॐप्रतिष्ठ॥
पौराणिक मन्त्र - अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च। अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन॥ 
प्रतिष्ठा सर्वदेवानां मित्रावरुण-निर्मिता।
प्रतिष्ठां ते करोम्यत्र मण्डले दैवते: सह॥
स्मिन् कलशे वरुणाद्यावाहित देवताः सुप्रतिष्ठिता वरदा भवन्तु। वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नम:, प्रतिष्ठापयामि नमः।

यह कहकर अक्षत - पुष्प कलश के पास छोड दें ।

22.) अब वरुण आदि देवताओं का निम्न प्रकार पूजन करे। (जो सामग्री उपलब्ध न हो उसकी जगह अक्षत) :

ध्यान (पुष्प):- ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः , ध्यानार्थे पुष्प समर्पयामि ।

आसन (पुष्प) :- ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः , आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि ।

पाद्यं (जल): - ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः पादयो : पाद्यं समर्पयामि । 

अर्घ्यं :- ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः , हस्तयोरर्घ्यं समर्पयामि ।

स्नानीय जल :- ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः , स्नानीयं जलं समर्पयामि ।

स्नानाङ्गम् आचमनम् :- ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः , स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।

पंञ्चामृत स्नानं :- ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः , पंञ्चामृत स्नानं समर्पयामि ।

गन्धोदक स्नानं (चन्दन मिला जल चढ़ाये):- ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः , गन्धोदक स्नानं समर्पयामि।

शुद्धोदक स्नान :- ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः स्नानान्ते शुद्धोदक स्नांन समर्पयामि ।

आचमनः - ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः शुद्धोदक स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।

वस्त्रः - ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः , वस्त्रं समर्पयामि । (कलश की चुनरी को स्पर्श करें)

आचमनः - ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः वस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।

यज्ञोपवीतः - ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः। यज्ञोपवीतं समर्पयामि।

आचमनः - ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः यज्ञोपवीतान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।

उपवस्त्रः(मौली/लाल धागा) - ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः उपवस्त्रं समर्पयामि ।

आचमनः - ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः , उपवस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।

चन्दनः - ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः , चन्दनं समर्पयामि ।

अक्षतः - ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः , अक्षतान् समर्पयामि ।

पुष्प / पुष्पमालाः - ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः , पुष्पं (पुष्पमालाम्) समर्पयामि।

नानापरिमल - द्रव्य(हल्दी/अबीर गुलाल):- ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः , नाना परिमल द्रव्याणि समर्पयामि।

सुगन्धितद्रव्यः - ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः , सुगन्धितद्रव्यं समर्पयामि । (इत्र / सुगंधित तेल चढ़ाए)

धूपः - ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः धूपमाघ्रापयामि ।

दीपः - ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः दीपं दर्शयामि ।

हस्तप्रक्षालनम् कलश को दीप दिखाकर हाथ धो लें ।

नैवेद्यं :- ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः सर्वविद्यं नैवेद्यं निवेदयामि । नैवेद्य प्रसाद रखें..

आचमनः - ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः , आचमनीयं जलम् मध्ये पानीयं जलम् , उन्तरापोऽशने , मुख प्रक्षालनार्थे , हस्तप्रक्षालनार्थे च जलं समर्पयामि ।

करोद्वर्तनः - ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः करोद्वर्तनं समर्पयामि ( वरुण आदि देवों के हाथों पर चन्दन लगाने के लिए कलश पर चन्दन समर्पित करें । )

ऋतुफलं :- ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः ऋतुफलं समर्पयामि । (फल चढ़ाएं)

ताम्बूलः - ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः ताम्बूलं समर्पयामि । (पान का पत्ता सुपारी लौंग इलायची के साथ रखे)

दक्षिणाः (सिक्के)- ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः , कृताया : पूजाया : साद्गुण्यार्थे द्रव्यदक्षिणां समर्पयामि । 

आरती धूपः - ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः , आरार्तिकं समर्पयामि।
धूप व कर्पूर जलाकर आरती करें 

पुष्पाञ्जलिः - ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः मन्त्र पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि । फूल अर्पित करें। 

प्रदक्षिणाः - ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः , प्रदक्षिणा समर्पयामि । 
खड़े होकर अपनी जगह पर दायें ओर से एक बार घूम जाएं।

प्रार्थना :- फूल लेकर हाथ जोड़कर बोले -
पौराणिक मन्त्राः - देवदानव संवादे मथ्यमाने महोदधौ। उत्पन्नोऽसि तदा कुम्भ विधृतो विष्णुना स्वयम् ॥
त्वत्तोये सर्वतीर्थानि देवाः सर्वे त्वयि स्थिता:। त्वयि तिष्ठन्ति भूतानि त्वयि प्राणा: प्रतिष्ठिता:॥
शिव: स्वयं त्वमेवासि विष्णुस्त्वं च प्रजापतिः। आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवा: सपैतृका:॥
त्वयि तिष्ठन्ति सर्वेऽपि यत: काम फलप्रदा:। 
(हे कुम्भ! देव-दानव संवाद में समुद्र के मथे जाने पर तुम्हारी उत्पत्ति हुई, जिसे साक्षात्‌ भगवान्‌ विष्णु ने धारण किया। तुम्हारे जल में समस्त तीर्थ, समस्त देवता, समस्त प्राणी, प्राण आदि स्थित रहते हैं। तुम साक्षात्‌ शिव, विष्णु और ब्रह्मा हो। आदित्य, वसु, रुद्र, सपैतृक - विश्वेदेव आदि समस्त कार्यों के फलदाता देवता तुम्हारे जल में सर्वदा स्थित रहते हैं।)
त्वत्प्रसादा-दिमां पूजां कर्तुमीहे जलोद्भव। 
सांनिध्यं कुरु मे देव प्रसन्नो भव सर्वदा॥
वरुण: पाशभृत्सौम्य: प्रतीच्यां मकराश्रय:।
पाश हस्तात्मको देवो जल राश्यधिपो महान् ॥
नमो नमस्ते स्फटिक-प्रभाय सुश्वेत-हाराय सुमङ्गलाय।
सुपाश-हस्ताय झषासनाय जलाधिनाथाय नमो नमस्ते॥
पाशपाणि नमस्तुभ्यं पद्मिनी - जीवनायकः।
यावत्कर्म समाप्तिः स्यात् तावत् त्वं सुस्थिरो भव
फूल चढ़ा दे -
" ॐ अपां-पतये वरुणाय नमः।"

नमस्कार
ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः प्रार्थनापूर्वक नमस्कारान् समर्पयामि ।

अन्त में समर्पण करें - 
कृतेन अनेन पूजनेन कलशे वरुणाद्यावाहित देवता: प्रीयन्ताम् न मम।

कहकर पुष्प/अक्षत चढ़ा दे। इस प्रकार कलश स्थापना संपन्न  होती है। अब इसके पश्चात प्रधान देवता का पूजन किया जाना चाहिए।






टिप्पणियाँ

  1. Please mention meaning of every words of sanskrit into hindi or other language

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुझाव के लिये धन्यवाद। समध मिलते ही बाकी के श्लोकों
      के अनुवाद को भी धीरे धीरे लिख दिया जायेगा।

      हटाएं

एक टिप्पणी भेजें

कृपया टिप्पणी करने के बाद कुछ समय प्रतीक्षा करें प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है। अंतर्जाल (इन्टरनेट) पर उपलब्ध संस्कृत में लिखी गयी अधिकतर सामग्री शुद्ध नहीं मिलती क्योंकि लिखने में उचित ध्यान नहीं दिया जाता यदि दिया जाता हो तो भी टाइपिंग में त्रुटि या फोंट्स की कमी रह ही जाती है। संस्कृत में गलत पाठ होने से अर्थ भी विपरीत हो जाता है। अतः पूरा प्रयास किया गया है कि पोस्ट सहित संस्कृत में दिये गए स्तोत्रादि शुद्ध रूप में लिखे जायें ताकि इनके पाठ से लाभ हो। इसके लिए बार-बार पढ़कर, पूरा समय देकर स्तोत्रादि की माननीय पुस्तकों द्वारा पूर्णतः शुद्ध रूप में लिखा गया है; यदि फिर भी कोई त्रुटि मिले तो सुधार हेतु टिप्पणी के माध्यम से अवश्य अवगत कराएं। इस पर आपकी प्रतिक्रिया व सुझाव अपेक्षित हैं, पर ऐसी टिप्पणियों को ही प्रकाशित किया जा सकेगा जो शालीन हों व अभद्र न हों।

इस महीने सर्वाधिक पढ़े गए लेख-

हाल ही की प्रतिक्रियाएं-