सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

हरिशयनी एकादशी - चातुर्मास का शुभारंभ

  स मापन  हुआ गुप्त नवरात्रि का और इसके एक दिन पश्चात् यानि आज है हरिशयनी एकादशी । साथ ही चातुर्मास का भी प्रारम्भ होने का यह समय होता है। आइये जानते हैं ' शयनी ' एकादशी का व्रत कैसे किया जाता है।     हमारे हिन्दू धर्म ग्रन्थों में एकादशी तिथि का बहुत महत्व बताया गया है। पुराणों में वर्णन आता है कि एक बार युधिष्ठिर ने भगवान्  श्रीकृष्ण से पूछा- " भगवन् ! आषाढ़ के शुक्ल पक्ष में कौन-सी एकादशी होती है? उसका नाम और विधि क्या है ? यह बतलाने की कृपा करें। "


गुप्त नवरात्रि का महत्व [श्री दुर्गाद्वात्रिंशन्नाममाला]

आ षाढ़ व माघ मास के शुक्ल पक्ष से गुप्त नवरात्रियाँ प्रारम्भ हो जाती हैं। यूं तो प्रत्येक मास के किसी भी पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर नवमी तिथि तक के समय को नवरात्र   कहा जा सकता है परंतु इनमें से चार ही नवरात्रियां श्रेष्ठ हैं। इस प्रकार हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथों में चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ इन चार हिन्दू महीनों में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तिथि तक का समय बड़े महत्व का बताया गया है । इनमें से चैत्र मास की नवरात्रि को वासंतिक नवरात्रि , आश्विन मास की नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि और आषाढ़ व माघ मास की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि यों की संज्ञा दी गयी है। वासंतिक व शारदीय नवरात्रि तो विश्वप्रसिद्ध हैं पर गुप्त नवरात्रि नाम के ही अनुसार गुप्त हैं अर्थात् बहुत कम लोग इनके विषय में जानकारी रखते हैं। इसके साथ ही दूसरी बात यह ध्यातव्य है कि  देवी के पूजक आराधक चैत्र व आश्विन नवरात्र में तो प्रकट रूप से उपासना करते हैं। अर्थात बड़े ही  धूमधाम से उत्सव मनाते हुए नौ दिन उपवास और चण्डी पाठ विस्तार से करके कन्या पूजन सहित विधि विधान से सभी अनुष्ठान करते हैं। ले...


गंगा दशहरा व्रत विधि व पापनाशिनी गंगा जी की महिमा [गंगा दशहरा स्तोत्रम्]

भ द्रजनों,  धूंकाररूपिणी महाविद्या धूमावती जी की जयंती  के अगले दिन से प्रारम्भ होता है दस दिनात्मक गंगा दशहरा का पावन पर्व। धूर्जटी शिव शंकर की जटा से निकलने वाली माँ गंगा, जिनका जल जिस स्थान से होकर गया वे पवित्र तीर्थ बन गए।  हमारे हिन्दू धर्म ग्रन्थों में गौ, गंगा एवं गायत्री इन तीनों को पापनाशक त्रिवेणी बतलाया गया है। ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन कलिमल का दहन करने में सक्षम गंगाजी अवतरण हुआ था अतः इस इस अवसर पर  गंगास्नान का विशेष महत्व   बताया गया है।  आइये पहले माँ गंगा के स्वरूप का चिंतन करते हैं। माँ गंगा जी का ध्यान इस प्रकार है- सितमकर-निषण्णां शुक्लवर्णां त्रिनेत्राम् करधृत-कमलो-द्यत्सूत्पलाऽभीत्यभीष्टाम् । विधिहरिहर-रूपां सेन्दु-कोटीरचूडाम् कलितसितदुकूलां जाह्नवीं तां नमामि ॥ अर्थात्  श्वेत मकर पर विराजित, शुभ्र वर्ण वाली, तीन नेत्रों वाली, दो हाथों में भरे हुए कलश तथा दो हाथों में सुंदर कमल धारण किए हुए, भक्तों के लिए परम इष्ट, ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनों का रूप अर्थात् तीनों के कार्य करने वाली,...


धूमावती माँ अपने भक्तों के कल्याण हेतु रहती हैं सदा तत्पर

श्री शनिदेव की जयंती  के सात दिन बाद की तिथि अर्थात्   ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि धूमावती महाविद्या की जयन्ती तिथि है। जो व्यक्ति तंत्र के विषय में जानकारी रखते हैं वे दस महाविद्याओं से भी अवश्य परिचित होंगे। इन्हीं दस महाविद्याओं में से एक महाविद्या हैं धूमावती महाविद्या। ये विश्व की अमांगल्यपूर्ण-अवस्था की अधिष्ठात्री शक्ति हैं। वृद्धारूपा, भूख-प्यास से व्याकुल, अत्यंत रूक्ष नेत्रों वाली, विरूपा और भयानक आकृति वाली होती हुई भी अत्यंत शक्तिमयी धूमावती देवी अपने भक्तों के कल्याण हेतु सदा तत्पर रहती हैं। इनका ध्यान इस प्रकार है: धूमावती जी का ध्यान  विवर्णा चंचला दुष्टा दीर्घा च मलिनाम्बरा।   विमुक्तकुन्तला रूद्रा विधवा विरलद्विजा॥   काकध्वजरथारूढा विलम्बितपयोधरा।   शूर्पहस्तातिरुक्षा च धूतहस्ता वरानना॥   प्रवृद्धघोषणा सा तु भृकुटिकुटिलेक्षणा।   क्षुत्पिपासार्दिता नित्यं भयदा कलहास्पदा॥ अर्थात् धूमावती जी, विवर्णा, चंचला, दुष्टा व दीर्घ तथा गलित अंबर [वस्त्र] धारण करने वाली, खुले केशों वाली, विरल दांत वा...


शनिदेव हैं सूर्यपुत्र तथा दंडाधिकारी [दशरथ कृत शनि स्तोत्र]

ह मारे हिंदू धर्मग्रन्थों में ज्येष्ठ मास की प्रतिपदा तिथि को   नारद जी की जयंती कहा गया है तथा ज्येष्ठ मास की अमावास्या को  'शनि जयंती'  बतलाई गई है। ध्यातव्य है कि कुंडली में कई योग ऐसे हैं जिनमें शनि ग्रह की क्रूर दृष्टि से जातक को पीड़ा मिलती है इसीलिए बहुत से लोग शनिदेव को क्रूर ग्रह मानते हैं पर वास्तव में शनि तो प्रारब्ध के बुरे कर्मों का फल ही देते हैं और अंत में जातक को धार्मिक भी बना देते हैं; और हमारे शास्त्रों में कहा भी गया है कि कोई भी ग्रह यदि बुरे प्रभाव दे या पीड़ा दे तो उसकी उपेक्षा मत कीजिये क्योंकि इससे तो और अधिक बुरे परिणाम मिलेंगे। बल्कि हमें उन ग्रहों को पूजना चाहिए। उनके निमित्त जपदान किया जाना चाहिए इससे उन ग्रहों द्वारा कुंडली में उत्पन्न अशुभता में कमी आती है।   स्वयं महादेव ने शनिदेव को बुरे कर्म करने वालों को दंड देने का अधिकार दिया था ।  ज्येष्ठी अमावास्या को दंडाधिकारी शनिदेव की जयंती कही गयी है।  उस पर भी शनैश्चरी अमावास्या पर शनि देव की स्तुति करने का बड़ा ही महत्व है। शनैः चरति ...


भक्ति का सही अर्थ समझाने में समर्थ धर्म-प्रचारक व भगवान के मन देवर्षि नारद [श्रीनारद स्तोत्रम्]

न मस्कार, आज है भक्त शिरोमणि देवर्षि नारद जी की जयंती।  कौन नहीं जानता निरंतर " नारायण नारायण " का जप करते रहने वाले मुनि नारद जी को? नारद जी की नारायण भक्ति तो श्रेष्ठातिश्रेष्ठ है। पिछली पोस्ट में कूर्म जी के विषय में चर्चा की थी आइये आज नारद जी के विषय में चर्चा करते हैं। देवर्षि का पद प्राप्त है नारद जी को। पुराणों में वर्णित अनेक कथाओं में नारद जी का भी वर्णन आता है। नारद पुराण पढ़ा होगा आपने अथवा नहीं पढ़ा हो तो जरूर कभी पढ़कर देखिएगा नारद पुराण में हिन्दी-संस्कृत व्याकरण के विभिन्न पक्षों को रखा गया है। गणित का ज्ञान, ज्योतिष, मंत्र, औषधि, व्रतोत्सव आदि का ज्ञान आपको कूट-कूट कर इसमें भरा हुआ मिलेगा; और मिलेगा भी क्यों नहीं नारद जी कई गूढ़ बातों को जानने वाले प्रकांड विद्वान जो ठहरे। ब्रह्मा जी के मानस पुत्र नारद जी


श्री कूर्म अवतार श्रीहरि नारायण के प्रादुर्भाव की कथा

ज यन्ती तिथियों का हमारे हिन्दू धर्म में बहुत महत्व रहा है। श्री नृसिंह जी, छिन्नमस्ता जी और शरभ जी की प्रादुर्भाव तिथि के अगले दिन होती है श्री कूर्म अवतार जयंती। कूर्म को कच्छप या कछुआ भी कहा जाता है। वैशाख मास की पूर्णिमा को समुद्र के अंदर सायंकाल में विष्णु भगवान ने कूर्म [कछुए] का  अवतार लिया था। पूर्वकाल में अमृत प्रात करने हेतु देवताओं ने दैत्यों और दानवों के साथ मिलकर मन्दराचल पर्वत को मथानी बनाकर क्षीरसागर का मंथन किया था। उस मंथनकाल में इन्हीं  कूर्मरूपधारी जनार्दन विष्णु जी ने देवताओं के कल्याण की कामना से मन्दराचल को अपनी पीठ पर धारण किया था। भगवान कूर्म


'श्री नृसिंह-छिन्नमस्ता-शरभ जयंती' से 'हमारा हिन्दू धर्म व इससे जुड़ी मान्यताएँ' ब्लॉग का शुभारंभ

मि त्रों नमस्कार, सर्वप्रथम तो "श्रीनृसिंह- छिन्नमस्ता -शरभ जयंती" की आप सभी को ढेरों शुभकामनाएं। भगवत्कृपा से प्रेरणा हुई कि एक धार्मिक ब्लॉग की शुरुआत करूँ सो आज श्रीनृसिंह-छिन्नमस्ता-शरभ जयंती के शुभ अवसर से शुरुआत कर रहा हूँ " हमारा हिन्दू धर्म व इससे जुड़ी मान्यताएँ " की।  साथ ही फेसबुक पर भी एक पेज भी बनाया जो इसी ब्लॉग के नाम से ही है-  हमारा हिन्दू धर्म व इससे जुड़ी मान्यताएँ   कृपया फेसबुक पर भी हमसे जुड़ें और ट्विटर व इंस्टाग्राम   पर भी जुड़ें । भगवान नृसिंह वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को भगवान नृसिंह जी ने अवतार लेकर भक्त प्रह्लाद की हिरण्यकशिपु से रक्षा की थी इस माध्यम से भगवान विष्णु जी ने हम सभी को संदेश दिया कि बुराई का अंत होकर ही रहता है... भक्त प्रह्लाद से हिरण्यकशिपु नामक उस दानव ने हर वस्तु को इंगित कर पूछा था " क्या यहाँ हैं? तेरे विष्णु क्या वहाँ हैं ? " गरम खंभे से बंधे प्रह्लाद कहते, " हाँ हर जगह हैं, नारायण तो कण-कण में बसते हैं " तो वह उसी वस्तु को छिन्न-भिन्न कर विष्णु जी को वहाँ न पा अट्टहास करता हु...


हाल ही की प्रतिक्रियाएं-