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ग्रहण में मन्त्र पुरश्चरण का विधान

भौ गोलिक व वैज्ञानिक दृष्टि के अलावा ग्रहण का धार्मिक दृष्टि से भी अत्यन्त महत्व है। ग्रहण काल में मंत्र जप, स्तोत्र पाठ एवं दान देने का अनंत गुना महत्त्व है।  ग्रहण के मोक्ष के उपरांत अपनी क्षमता के अनुसार अवश्य दान दें। महाभारत के दानधर्म पर्व के 145 अध्याय के अनुसार शिव जी पार्वती जी से कहते हैं कि - शरद व वसंत ऋतु, शुक्ल पक्ष, पूर्णिमा, मघा नक्षत्र, चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण - ये सब अत्यन्त शुभकारक काल हैं। 1.दाता हो, 2.देने की वस्तु हो, 3.दान लेने वाला पात्र हो, 4.उत्तम व्यवस्था हो और 5.उत्तम देश, 6. उत्तम काल हो- इन सबका सम्पन्न होना शुद्धि कही गयी है। जब कभी इन सबका संयोग जुट जाये, तभी दान देना महान फलदायक होता है। इन छः गुणों से युक्त जो दान है, वह अत्यन्त अल्प होने पर भी उस का प्रभाव अनन्त होकर निर्दोष दाता को मरणोपरान्त स्वर्ग की प्राप्ति करवाता है।  चंद्र ग्रहण ग्रहण की अवधि में मंत्र का जप करने से मंत्र का पुरश्चरण करने के समान ही फल होता है। जो बहुत अधिक मंत्र जप नहीं कर सकते हैं उनके लिये यह विधि सबसे सरल है।  गुरु से प्राप्त किए गए मंत्र का ग्रहण ...


कमला महाविद्या की स्तोत्रात्मक उपासना

भ गवती  कमला  दस महाविद्याओं में दसवें स्थान पर आती है। यही श्री हरि की प्रिया महालक्ष्मी हैं। कमला महाविद्या को जगत्प्रसूता कहा गया है। जगत्प्रसूता अर्थात् संसार को उत्पन्न करने वाली। दुर्गासप्तशती के रहस्य में भी कहा गया है कि सृष्टि के आदि में भगवती महालक्ष्मी ही थीं उन्हीं से समस्त देवी देवता तथा संसार उत्पन्न हुआ।दीपावली पर हर सनातनी सुंदर प्रकार से माँ लक्ष्मी की पूजा कर के मनोवांछित फल पाता है। वैकुण्ठ-वासिनी देवी 'कमला' हैं। वे ही पाताल-वासिनी होकर 'लक्ष्मी' रूपा सुन्दरी हो जाती हैं।भगवती कमला की कृपा से धन धान्य की कमी नहीं रहती, रोग मुक्ति, कष्टों का अंत, पापों का क्षय व जीवनोपरान्त मोक्ष प्राप्त होता है।


भगवान धन्वन्तरि की स्तोत्रात्मक उपासना

उ त्तम स्वास्थ्य की आवश्यकता किसे नहीं होती?  प्रत्येक व्यक्ति स्वस्थ शरीर, शांत मन और दीर्घ आयु की कामना करता ही है। परन्तु क्या आपने कभी सोचा है कि स्वास्थ्य मात्र आधुनिक चिकित्सा का विषय नहीं, बल्कि यह एक दैविक वरदान भी है?  हमारे सनातन धर्म में ऐसे एक दिव्य देवता हैं  भगवान श्री धन्वंतरि  जी जिनके चरणों से ही आयुर्वेद का प्रादुर्भाव हुआ। पुरातन काल में जब समुद्र मंथन हुआ था, तब अमृत कलश लेकर श्री हरि विष्णु जी ही श्री धन्वन्तरि भगवान् के रूप में प्रकट हुए थे।  तभी से मानव जीवन के लिए स्वास्थ्य, औषधि व आयुर्विज्ञान का आधार स्थिर हुआ। आज जब मानव आधुनिक चिकित्सा पर निर्भर होते हुए भी भीतर से असंतुष्ट और रोगग्रस्त है, ऐसे में एक प्रश्न उठता है कि  क्या हमें फिर से भगवान धन्वंतरि के सिद्धांतों की ओर, आयुर्वेद की ओर लौटना चाहिये? भगवान  धन्वन्तरि ने तीन नाम रूपी मंत्र दिये हैं जिनका उच्चारण करने से सभी रोग सभी उत्पात दूर होते हैं - अच्युत   , अनन्त, गोविन्द | धनत्रयोदशी अर्थात् कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को इनकी ही आराधना की जाती है।  धन्व...


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